नेपाल में नए संविधान की घोषणा के बाद से भारत नेपाल के सम्बन्धों में निरंतर कडवाहट आ रही है। इसकी शुरुआत नेपाल के तराई क्षेत्र में मधेशी समुदाय द्वारा प्रान्तों के सीमांकन एवं संविधान में संशोधन के लिए पिछले ढाई महीने से चलाये जा रहे आन्दोलन और भारत नेपाल सीमा पर तथाकथित नाकेबंदी से हुई। जिसके कारण नेपाल में पेट्रोलियम और अन्य खाद्य पदार्थो की किल्लत हो गई। इस गतिरोध के कारण यह हिमालयी देश आर्थिक रूप से नाजुक मोड़ पर आ गया है, जिसके कारण यहाँ भारत विरोधो भावनाएँ फैल रही है। नेपाल की सरकार द्वारा इस माहौल में भारत से अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने की अपील ने भी, दोनों देशों के सम्बंधो को दुखद ढ़लान की ओर पहुँचा दिया है। इस अवसर का चीन भरपूर लाभ उठाने की कोशिश कर रहा है। इसके चलते चीन और नेपाल के बीच पेट्रोलियम उत्पादों की आपूर्ति पर भी हाल ही में एक करार हो गया, जो तेल की आपूर्ति पिछले ४० साल से भारत से होती थी अब नेपाल ने निर्भरता से बचने के लिए विकल्प के रूप अन्य रास्ते खोजना शुरू कर दिया है।
नेपाल में नए संविधान के लागू होने के बाद राजनीतिक नेतृत्व में परिवर्तन आया, पूर्व प्रधानमंत्री सुशील कोइराला के पदमुक्त होने के बाद चुनाव द्वारा साम्यवादी दल नेपाल (संयुक्त मार्क्सवादी लेनिनवादी) के उम्मीदवार के पी शर्मा ओली देश के नए प्रधानमंत्री चुने गए। इसके साथ ही राष्ट्रपति पद के लिए भी इसी दल से विद्या देवी भंडारी को संसद द्वारा चुना गया। यद्यपि संविधान की घोषणा के बाद देश में उत्पन्न हुए गतिरोध का कोई हल नहीं निकल पाया है तथा इस संदर्भ में मधेशी समुदाय से चल रही वार्ताओं और संविधान में संशोधन को लेकर भी कोई ठोस परिणाम नहीं आ पायें है। यह लेख नए संविधान के लागू होने के साथ विभिन्न समूहों द्वारा प्रस्तावित संशोधन की मांग को लेकर नेपाल में उभरी राजनीतिक समस्याओं और चुनौतियों पर चर्चा प्रस्तुत करता है।
नया संविधान:
नेपाल में २० सितम्बर २०१५ का दिन ऐतिहासिक साबित हुआ। बरसों के राजनैतिक उथल-पुथल और हिंसक संघर्षों के बाद नेपाल में नया संविधान लागू हो गया। वर्ष २००७ के अंतरिम संविधान बनने के बाद ही राजतन्त्र नेपाल से खत्म हो गया लेकिन इस संविधान की घोषणा के साथ ही नेपाल में २४० साल पुराने राजतंत्र का कोई स्थान नहीं रहा तथा देश में एकात्मक व्यवस्था के स्थान पर संघीय व्यवस्था का आविर्भाव हुआ। १६ सितम्बर को संवैधानिक सभा द्वारा इसे बहुमत से पास किया गया तथा २० सितम्बर को राष्ट्रपति द्वारा इसे घोषित किया गया। ५९८ सदस्यों की संविधान सभा में ५०७ वोट इसके पक्ष में पड़े और २५ खिलाफ, जबकि ६६ गैर मौजूद रहे। यह नेपाल के इतिहास में पहली बार हुआ है कि किसी संविधान का निर्माण देश की जनता द्वारा चुनी गई संवैधानिक सभा द्वारा हुआ है।1
नया संविधान आर्थिक समानता, समृद्धता और सामाजिक न्याय को स्थापित करने हेतु समानुपातिक समावेश के सिद्धांत के आधार पर समता मूलक समाज स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध है। नये संविधान में ३०८ अनुच्छेद, ३५ भाग और ९ अनुसूचियाँ है। संविधान की प्रस्तावना में नए संविधान की प्रमुख विशेषतायें इस प्रकार है- संविधान ने शासन की संसदीय प्रणाली अपनाई है जहां कार्यकारी शक्तियां प्रधानमंत्री में निहित हैं, जो बहुमत से संसद के जरिए चुने जाएंगे। राजनीतिक दल, संघीय संसद और राज्य विधानमंडलों में मिश्रित निर्वाचन प्रणाली को अपनाया गया है जिसके तहत 60 फीसदी सदस्य प्रत्यक्ष मतदान से और 40 फीसदी आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के जरिए चुने जाएंगे। संघीय संसद में 275 सदस्य होंगे जिनमें 165 प्रत्यक्ष मतदान से चुने जाएंगे और शेष 110 आनुपातिक प्रतिनिधत्व मतदान प्रणाली से चुने जाएंगे। नए संविधान के तहत यह प्रावधान तय किया गया है कि देश बहुलवादी सिद्धांत पर आधारित बहु दलीय लोकतंत्र होगा और इस प्रावधान को बदलने के लिए संविधान में कोई संशोधन नहीं किया जा सकेगा। संविधान के अन्य सामान्य प्रावधानों में संशोधन दो तिहाई मत से हो सकेगा। संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता के साथ धर्मनिरपेक्षता को अपनाया गया है। नये संविधान के प्रावधान के तहत नागरिकता पिता या माता के नाम पर मिल सकेगी। जहां तक शासन के स्वरूप का सवाल है नये संविधान ने संघीय लोकतांत्रिक गणराज्यीय संसदीय प्रणाली के साथ बहुदलीय प्रतिस्पर्धी लोकतंत्र अपनाया है। राष्ट्रपति के चुनाव के निर्वाचक मंडल में संघीय संसद और राज्य विधानसभाओं के सदस्य होंगे। केंद्र में द्विसदनीय संसद होगी जबकि राज्य में एक ही सदन होगा।2
संविधान की मुख्य विशेषताएँ-
संप्रभुता
नए संविधान द्वारा नेपाल की संप्रभुता नेपाल की जनता में निहित की गई। संविधान की प्रस्तावना में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि, हम नेपाल के लोग राज्य के प्राधिकार और संप्रभुता को धारित करते है। हम स्वायत्तता के अधिकार और सम्पभुता को आत्मसात करते है तथा स्वशासन के साथ नेपाल की संप्रभुता, स्वतंत्रता, राष्ट्र की एकता और प्रतिष्ठा का संरक्षण करेंगे। (प्रस्तावना, नेपाल का संविधान, २०१५) सामंतवाद, आतताई शासन तथा केन्द्रीय एवं एकात्मक राज्य व्यवस्था द्वारा होने वाले भेदभाव और दमन को समूल समाप्त करने का भी उल्लेख इस प्रस्तावना में किया गया।
भाषा
अनुच्छेद ६ के अनुसार, नेपाल में बोले जाने वाली सभी मात्र्भाषायें राष्ट्र की भाषा होंगी। अनुच्छेद ७ के अनुसार, देवनागरी लिपि में लिखी हुई नेपाली भाषा राष्ट्र की आधिकारिक भाषा होगी। लोकतान्त्रिक गुण को अपनाते हुए अनुच्छेद ७ की उपधारा २ में वर्णित किया गया है कि प्रान्तों को यह अधिकार होगा कि वे बहुसंख्य लोगों द्वारा बोले जाने वाली एक या अन्य भाषा को प्रान्त की आधिकारिक भाषा बना सकते है।
धर्मनिरपेक्षता
नए संविधान में धर्मनिरपेक्षता के प्रावधान को डालना काफी चुनौती भरा कार्य था। इससे पूर्व के संविधानो में नेपाल हमेशा एक हिन्दू राष्ट्र रहा है। अनुच्छेद ४ के उपभाग १ के स्पष्टीकरण में धर्मनिरपेक्षता को परिभाषित करते हुए कह गया है कि, “प्राचीन काल से माने जा रहे धर्म और संस्कृति का संरक्षण तथा धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्वतंत्रता का अवलंबन। भाग ३ में मौलिक अधिकारों के अंतर्गत धार्मिक स्वतंत्रता में कहा गया कि, “प्रत्येक व्यक्ति को अपनी इच्छा अनुसार किसी भी धर्म का अवलंबन करने और उसका संरक्षण करने का पूर्ण अधिकार है”। (अनुच्छेद २६, उपभाग १) माओवादियों द्वारा इस बात का विरोध शुरू से ही रहा था, वही संवैधानिक सभा ने भी इसे सिरे से खारिज कर दिया। कुछ धार्मिक समूह इसको लेकर प्रदर्शन भी कर रहे है।
सामजिक न्याय
संविधान की प्रस्तावना में सामजिक न्याय के बारे में वर्णित है। प्रस्तावना में कहा गया कि विविधता में एकता, सामाजिक और सांस्कृतिक भात्रतव, सहिष्णु और सौहाद्र द्रष्टिकोण को उन्नत और संरक्षित करने हेतु वर्ग, जाति, क्षेत्र, भाषा, धर्म, लैंग्किकता के आधार पर सभी प्रकार के भेदभावों को मिटाते हुए हम बहुजातीय, बहुभाषीय, बहुसांस्कृतिक और भौगोलिक विविधता को आत्मसात करते है। हम यह भी संकल्प प्रदर्शित करते है कि समतामूलक अर्थव्यवस्था, समृद्धता और सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करने हेतु आनुपातिक समावेश एवं सहभागिता के सिद्धांत के आधार पर समतावादी समाज का निर्माण करेंगे।(प्रस्तावना, नेपाल का संविधान, २०१५)
अनुच्छेद ४७ के उपभाग १ में कहा गया है कि, “सामाजिक रूप से पिछड़ी महिलायें, दलित, आदिवासी, आदिवासी जनजाति, खास आर्य, मधेशी, थारू, किसान, मजदूर, वंचित वर्ग, मुस्लिम, पिछड़े वर्ग, अल्पसंख्यक, हाशिये के लोग, लुप्तप्राय समुदाय, लैंगिक तथा योनिक अल्पसंख्यक सभी को रोजगार पाने और राज्य की संरचना में समावेश के सिद्धांत के आधार पर भाग लेने का अधिकार है।
नागरिकता
नागरिकता का विषय भी इस संविधान में बहस का मुद्दा रहा है। अनुच्छेद १० की उपधारा १ और २ में कहा गया है कि किसी भी नेपाली नागरिक को नागरिकता अर्जित करने से मन नहीं किया जा सकता है तथा देश में एकल नागरिकता ही होगी।
संविधान का अनुच्छेद ११ की उपधारा २ के भाग अ के अनुसार कोई भी व्यक्ति जिसने नए संविधान, २०१५ के लागू होने से पूर्व वंशानुगत रूप में नेपाल की नागरिकता ग्रहण कर ली है और किसी व्यक्ति के जन्म के समय उसके माता या पिता नेपाल के नागरिक थे तथा उसका मूल निवास नेपाल में है, ऐसे स्थिति में उन्हें नेपाल का नागरिक माना जायेगा। नागरिकता के प्रावधान में मुख्य बात ये थी कि वंशानुगत प्रदत्त नागरिकता वाले नागरिक ही देश के मुख्य पदों पर रहेंगे।
इस संविधान का अनुच्छेद ११ की उपधारा ६ में कहा गया कि एक विदेशी महिला नेपाली नागरिक से विवाह करने के बाद केवल नेपाल की देशियकरण नागरिकता ही प्राप्त कर सकेगी। अनुच्छेद ११ की उपधारा ७ में ऐसा प्रावधान है जो कि मधेसियों के साथ भेदभाव करता परिलक्षित होता है। इस प्रावधान के अनुसार यदि किसी व्यक्ति का जन्म नेपाली महिला जिसका विवाह विदेशी नागरिक से हुआ है उसे वंशानुगत तौर पर नागरिकता नहीं मिलेगी।
मौलिक अधिकार
मौलिक अधिकार नेपाल के पूर्व संविधान में भी शामिल थे, नेपाल के संविधान २०१५ में कुछ अधिकार अनूठे और नए भी जुड़े, जैसे, अनुच्छेद ३५ स्वच्छ वातावरण में रहने के अधिकार की बात करता है। यदि व्यक्ति प्रदूषण से पीड़ित होता तो क्षतिपूर्ति राज्य करेगा। अनुच्छेद ३६ नेपाली जनता को खाद्य का अधिकार प्रदान करता है। संयुक्त राष्ट्र का खाद्य एवं कृषि संगठन काफी लम्बे समय से नेपाल में इस अधिकार की पैरवी कर रहा था तथा संविधान में इस अधिकार को शामिल करने का समर्थन भी इस संगठन ने किया है।3 अनुच्छेद ४१ सामाजिक न्याय के अंतर्गत खाद्य सुरक्षा को समाहित करता है। अनुच्छेद ४१ में वर्णित है वृद्ध नागरिकों को राज्य द्वारा विशेष संरक्षण तथा सामाजिक सुरक्षा का अधिकार होगा। अनुच्छेद १८ की उपधारा ३ यौनिकता (समलैंगिक) के आधार पर किसी के साथ भेदभाव न हो इस बात की पुष्टि करता है। दक्षिण एशिया के देशों में इस प्रकार के अधिकार देखने को कम मिलते है।
नेपाली जनता की प्रतिक्रिया
नए संविधान की घोषणा के बाद नेपाल के ज्यादातर लोगों ने ख़ुशी जाहिर की। देश के बड़े राजनीतिक दल नेपाली कांग्रेस, संयुक्त मार्क्सवादी लेनिनवादी और माओवादी दल ने इस नये संविधान का स्वागत किया तथा इसे एक बड़ी उपलब्धि माना। लेकिन इसके साथ ही दूसरी ओर से इसका विरोध भी शुरू हो गया। विरोध करने वालों में मुख्यतया ६ प्रदर्शनकारी समूह रहे है- मधेश दल, जनजाति समूह, महिलायें, राजशाही के पक्षधर, हिन्दू कट्टरपंथी तथा विखंडित चरमपंथी माओवादी। मधेशियों, थारुओं, महिलाओं और अन्य जन जातियों समुदायों का विरोध इसलिए है कि कुछ तो प्रावधानों मे ही खामियां हैं तथा कुछ प्रावधान संविधान के सिद्धांत से मेल नहीं खाते। तराई में बसे मधेसियों व जनजातियों का कहना है कि उनके साथ अनेक स्तरों पर भेदभाव किया गया है। इन समुदायों की प्रमुख आपत्ति है- संघीय ढांचे में ७ प्रांतीय राज्यों के गठन पर और नागरिकता के प्रावधान पर। इन समुदायों का कहना है कि नये प्रान्तों के गठन से उन्हें देश की राजनीति में उचित आनुपातिक प्रतिनिधित्व नहीं मिल पा रहा है। ऐसी स्थिति बना दी गई है कि इनके लिए राष्ट्रीय तो छोड़िए प्रांतीय स्तरों के चुनावों में भी निर्वाचित होना कठिन होगा। जिस समावेशी समाज निर्माण का संकल्प लेकर संविधान का निर्माण किया गया है यह उसके विपरीत है। दूसरी आपत्तिजनक बात है- शादी के बाद पत्नी को स्वयमेव नागरिकता न मिलना। इसमें लिखा है कि अगर कोई नेपाली नागरिक विदेशी लड़की से शादी करेगा तो उस लड़की को 15 वर्ष बाद अंगीकृत नागरिकता दी जाएगी। यानी 15 वर्ष वह नेपाल की नागरिक नहीं हो सकती। इसका अर्थ यह है कि उसे सेना, पुलिस, प्रशासन से लेकर राजनीति के उच्च पदों पर जाने का अधिकार नहीं होगा। यही नहीं उसका जो बच्चा होगा उसे भी अंगीकृत नागरिक ही माना जाएगा। तराई क्षेत्र में औसत 60 प्रतिशत शादियां उससे लगे भारतीय भू-भाग बिहार और उत्तर प्रदेश में होती है। इसीलिए नेपाल के साथ रोटी और बेटी का संबंध कहा जाता है। इस प्रावधान के बाद रोटी और बेटी का संबंध खत्म हो जाएगा। मधेसियों का भारत के साथ स्वाभाविक लगाव है। कभी ऐसा सोचा ही नहीं गया कि संविधान उनके स्वाभाविक रिश्ते की मार्ग में आड़े आएगा। जब नागरिकता ही नहीं मिलेगी तो फिर ये सामाजिक संपर्क भी टूटेंगे।4
संविधान निर्माण की प्रक्रिया
नेपाल में अभी तक ४ संविधान बन चुके है जिनमें दो संविधान (१९५१ और २००७) अंतरिम बने है। संविधान जन इच्छा के अनुरूप न होने के कारण दो बार (१९९० और २००६) जन आन्दोलन भी हो चुके है। वर्ष १९५० के दौरान से ही जनता की मांग थी कि संविधान का निर्माण चुनी हुई संवैधानिक सभा द्वारा होना चाहिए और यह मांग वर्ष १९९६ के माओवादी आन्दोलन से और प्रखर होती चली गई। वर्ष २००५ में नरेश ज्ञानेन्द्र द्वारा सम्पूर्ण राजनीतिक शक्ति को अपने हाथों में ले लेने के बाद देश में राजनीतिक संकट पैदा हो गया जिसके फलस्वरूप जन आन्दोलन द्वितीय प्रारंभ हुआ। नवम्बर २००६ में एक समग्र शांति समझौता हुआ जिसमे सात दलीय गठबंधन और माओवादियों एक साथ आये और जन आक्रोश के चलते नरेश को सत्ता छोडनी पड़ी। इस प्रकार माओवादी युद्ध विराम और सात दलीय गठबंधन संवैधानिक सभा के लिए सहमत हुए। अप्रैल २००८ में संवैधानिक सभा के चुनाव हुए जिसमे नेपाल साम्यवादी दल (माओवादी) ने बहुमत हासिल किया और सरकार बनाई। इस चुनाव में नेपाल के लोगों को संवैधानिक सभा के लिए ६०१ सदस्यों को चुनना था। संवैधानिक सभा के द्वारा ही सरकार का गठन होना था और उसके द्वारा ही नए संविधान का निर्माण भी होना था जो जनता के समक्ष एक प्रकार से जटिल कार्य था। इस चुनाव में १७.६ मिलियन पंजीकृत मतदाता थे और उन्हें २४० निर्वाचन क्षेत्रों से २०,८२० मत केन्द्रों से वोट डालना था। ५५ राजनीतिक दलों ने ३९४९ उम्मीदवार खड़े किये जिनमे ३६७ महिलायें थी। इसमें मुख्य दल नेपाली कांग्रेस, संयुक्त मार्क्सवादी लेनिनवादी दल और नेपाल साम्यवादी दल (माओवादी) प्रतियोगिता में थे। मतदाताओं को दो बैलट पत्रों पर वोट डालना था- प्रथम, २४० सीटों के लिए सर्वाधिक मत प्राप्त व्यक्ति की विजय (फर्स्ट पास्ट द पोस्ट) के अनुसार वोट डालना था और द्वतीय, ३३५ सीटों के लिए आनुपातिक प्रतिनिधित्व के अनुसार वोट डालना था।
और शेष २६ सीटों को कैबिनेट द्वारा चुने गए लोगों से भरा जाना था। इस चुनाव में माओवादी दल विजयी हुए और सरकार बनाई। वर्ष १९९६ से आन्दोलन कर रहे माओवादी नेताओं से जनता को यह उम्मीद थी कि वे जल्द ही एक समावेशी संविधान का निर्माण कर देश में शांति और लोकतंत्र की नींव को मजबूत करेंगे। लेकिन वे अपनी दलगत, संस्थागत समस्याओ में ही उलझे रहे।
संविधान सभा नये संविधान के निर्माण की घोषणा करने के बाद से काफी निर्धारित तिथियाँ निकल चुकी थी। लेकिन संविधान का निर्माण निर्धारित समय में पूरा नहीं हो पाया। अंततः संवैधानिक सभा को भंग कर दिया गया और पुनः चुनाव की घोषणा कर दी गई। नवम्बर, २०१३ में संवैधानिक सभा का पुनः चुनाव हुआ और नेपाली कांग्रेस ने इसमें बहुमत प्राप्त किया एवं सरकार का नेतृत्व किया। दूसरी संवैधानिक सभा के चुनाव की पद्धति भी पहले जैसे ही रही लेकिन खास बात यह रही कि पिछले चुनाव में २६ राजनीतिक दलों ने इसमें भाग लिया लेकिन इस बार ३१ दलों ने चुनाव लड़ा और मुख्य बात यह थी कि तराई और जनजाति समूहों के दलों की भागीदारी बढ़ गई। जनवरी २०१५ तक संविधान बनाने का समय तय किया था इस दूसरी संवैधानिक सभा ने लेकिन संविधान निर्माण प्रक्रिया में अड़चने निरंतर बनी रही।
संवैधानिक सभा द्वारा देश में संघीय संरचना पर आम सहमति बनाने में काफी समय व्यतीत हो चुका है। इस दौरान विपक्षी दल चाहते थे कि संघवाद जैसे विवादास्पद मुद्दे पर देश में एक सहमति बने बल्कि प्रतिपक्ष का मानना था कि इस मुद्दे को बहुमत द्वारा सुलझाया जाये। संघवाद के मुद्दे के अलावा सरकार के रूप, न्यायिक व्यवस्था, चुनाव व्यवस्था और नागरिकता जैसे मुद्दो पर भी दलों में सहमति नहीं थी। इन मुद्दों पर एक राय बनाने के लिए देश के चार बड़े राजनीतिक दलों ने ८ जून को एक १६ सूत्री समझौते को अंगीकार किया। जिसके आधार पर नए संविधान का निर्माण कार्य आगे बढेगा।5
इस समझौते में ३१ में से केवल ४ दल ही शामिल थे जो कि हाशिये के लोगों का काफी कम प्रतिनिधित्व करते थे। लेकिन देश के तीन बड़े राजनीतिक दलों को यह फायदा दिख रहा था कि इस समझौते में उन्होंने थारू-मधेसी नेता बिजय गच्छेदार को शामिल किया इस समझौते में मिश्रित चुनावी व्यवस्था के साथ संसदीय व्यवस्था की बात कही गई है तथा पृथक संवैधानिक न्यायालय का वर्णन था। इसके अतिरिक्त इसमें कहा गया कि नए संविधान की घोषणा और केन्द्रीय तथा प्रांतीय विधायिकाओं के चुनाव तक संघीय प्रान्तों के नामकरण और उनके सीमांकन को स्थगित रखा जाये। नये प्रान्तों के सीमांकन के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया जायेगा जो ६ माह में इस कार्य को पूरा करेगी। इस बात का पूरे राष्ट्र में विरोध हुआ और आन्दोलन भी शुरू हुआ क्योंकि संघीय संरचना के प्रकटीकरण की प्रतीक्षा सीमान्त जनजाति के लोग काफी समय से कर रहे थे जो कि उनके प्रतिनिधित्व को संघीय व्यवस्था में समावेषित करता।
लेकिन १९ जून को सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश ने इस समझौते पर प्रहार किया। न्यायमूर्ति गिरीश चंद्र लाल की एकल पीठ ने प्रतिवादियों को अगले आदेश तक अंतरिम संविधान के अनुच्छेद (1), 82 और 138 के अनुसार इस करार को लागू नहीं करने का आदेश दिया। शीर्ष अदालत ने वकील और मधेसी कार्यकर्ता की रिट याचिका पर यह आदेश जारी किया। उन्होंने इस करार के कुछ बिंदुओं पर आपत्ति की है।
इस रिट याचिका में दलील दी गयी है कि राज्य पुनर्गठन और संघीय राज्यों का सीमांकन, उनकी संख्या और नामों का निर्धारण अंतरिम संविधान के अनुच्छेद 138 के अनुसार संविधान सभा द्वारा उसके भंग होने से पहले किया जाना चाहिए। इस कार्य को अन्य समिति या संस्था पर नहीं छोड़ा जा सकता।
संघवाद का प्रयोजन
नेपाल में प्रान्तों के पुनर्गठन की मांग पहचान और क्षमता के आधार पर प्रथम संवैधानिक सभा द्वारा निर्धारित की गई थी। पहचान के अंतर्गत पांच मापदंड रखे गए- संजातीयता, भाषा, संस्कृति, भौगोलिकता और एतिहासिक पहचान। इससे समुदायों के मध्य गंभीर मतैक्य पैदा हुए और संजातीयता के मुद्दे पर आम सहमति नहीं बन सकी तथा प्रथम संवैधानिक सभा भंग हो गई। क्षमता के मापदंड में चार तत्व थे- आर्थिक अन्तर्सम्बंध तथा क्षमता, मूलभूत ढांचे और जीवन क्षमता का विकास, प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता और प्रशासनिक सुविधा।6 नेपाल के प्रारम्भिकी संविधान २०१५ के अनुच्छेद ६० में त्रिस्तरीय संघीय व्यवस्था- संघीय, प्रांतीय एवं स्थानीय का वर्णन था। पहचान और क्षमता के अतिरिक्त, जाति, समुदाय, संस्कृति, भूगोल, इतिहास और संलग्नता के आधार पर आठ प्रान्तों के गठन का प्रावधान था।7
संविधान का अनुच्छेद ८८ बताता है कि भूगोल, जनसँख्या और क्षेत्रीय संतुलन के आधार पर १६५ निर्वाचन क्षेत्र होंगे। यदि १६५ निर्वाचन क्षेत्रो को आठ प्रान्तों में बांटा जाये तो प्रत्येक प्रान्त को २०.६२ निर्वाचन क्षेत्र मिलेंगे। अनुच्छेद ८८ के निर्धारित प्रावधानों के अनुसार, जनसँख्या के लिए ५० प्रतिशत, २५ प्रतिशत भौगोलिकता के आधार पर और २५ प्रतिशत क्षेत्रीय संतुलन के लिए भार मिलेगा। भौगोलिकता के लिए विशेषज्ञों द्वारा एक अनुपात में भूमि का समायोजन तय किया गया कि एक वर्ग किमी में कम से कम २० लोग होने चाहिए। उदाहरण के लिए, डोल्पा जिला ३६,७०० वर्ग किमी है, ऐसे में डोल्पा जिला १८३५ वर्ग किमी पर सिमट जाता है। विशेषज्ञों ने इसके लिए एक क्षेत्रीय संतुलन के प्रतिनिधि के रूप में स्थानीय वित्तीय आयोग द्वारा रचित दूरी आधारित अनुक्रमणिका/सूची का प्रयोग किया।
उप्संकल्पना के आधार पर इस स्थानीय वित्तीय आयोग द्वारा रचित दूरी आधारित अनुक्रमणिका/सूची के अनुसार, अधिकतम और न्यूनतम मूल्य/महत्त्व क्रमशः २.५ और १.० अंक है। नतीजन हिसाब यह बताता है कि केवल हुम्ला जिले की सूची २.५ जबकि डोल्पा और मुगू दोनों जिलो की सूची २.५० है। बाकि जिलो का मूल्य १.५ से १.० के मध्य है। इस पद्धति के अनुसार तराई में ६१ निर्वाचन क्षेत्र होने चाहिए तथा शेष १०४ पहाड़ी जिलो में रहेंगे। इस प्रकार, औसतन तराई के प्रत्येक जिले में ३.०४ निर्वाचन क्षेत्र होने चाहिए तथा पहाड़ी जिलो में १.८९ निर्वाचन क्षेत्र होने चाहिए। इस विश्लेषण के अनुसार पर्वतीय क्षेत्र में पाँच तथा तराई में तीन प्रान्त होंगे।
देश के पूर्व में विवादास्पद जिले झापा, मोरंग और सुनसरी की मिश्रित सूची में केवल ६.४९ अंक के मूल्य बनते है अतः इन जिलों को मिलाकर एक पृथक प्रान्त का निर्माण नहीं हो सकता। ये जिले या तो मेची और कोशी खंडो के बाकी जिलों के साथ जुड़ सकते है या फिर धनुष और महोत्तरी जिलों के साथ जुड़ सकते है। कैलाली और कंचनपुर सुदूर पश्चिम के जिलों के साथ जुड़ने चाहिए।
प्रान्तों के नामकरण का निर्णय विधानसभाएँ दो तिहाई बहुमत से लेंगी जिनका चुनाव जल्द होगा। काफी छोटे राजनीतिक दल इस व्यवस्था के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे है और मांग कर रहे है कि प्रान्तों के नाम और सीमांकन न करके संविधान की रचना करना गलत है।8
थारू-मधेशी आन्दोलन और संघवाद
संविधान निर्माण प्रक्रिया ८ वर्षो से जारी है जिससे लोगों की यह उम्मीद है कि इसके जरिये उन्हें देश की संस्थाओं और राजनीतिक सत्ता से अलग रखा जाता था, अब उनका विकास होगा और भेदभाव खत्म होगा। इन समूहों में विशेष रूप से तराई में रहने वाले मधेसी, थारू और इसी के जैसे अन्य समूह, पहाड़ों और मैदान पर रहने वाले दलित, पहाड़ी संजातीय जनजाति (राष्ट्र के मूलवासी) समूह और महिलायें आते है।9
देश में हाल ही में हुए संघर्ष की शुरुआत ७५ प्रशासनिक जिलों के स्थान पर संघीय संरचना के प्रस्ताव प्रारूप को अमल में लाने के बाद हुई। तराई समुदाय के लोग चाहते थे कि तराई मैदान का दक्षिण क्षेत्र एक प्रान्त में रहे तथा साथ ही साथ उत्तर दक्षिण के प्रशासनिक खंड भी एक ही प्रान्त में रहे, इन्हें पहाड़ी और पर्वतीय प्रशासनिक खंडो में न मिलाया जाये। पहाड़ी क्षेत्रों में कुछ जनजाति समूह अपने आपको पारंपरिक तौर पर अक्षुण्ण रखना चाहते है, हाँलाकि यह प्रदर्शन में नहीं लाया गया। अन्य मुद्दे भी विवादास्पद रहे पर प्रत्यक्ष रूप से इस प्रदर्शन में शामिल नहीं थे; प्रस्तावित नागरिकता के पैमाने से एकल अभिभावक के बालको को अधिकारों के साथ नागरिकता मिलने में परेशानी थी जिस प्रकार से वंशानुगत तौर पर नागरिकता दी जा रही है। तथा साथ ही प्रस्तावित चुनाव व्यवस्था और निर्वाचिकाओं के सीमांकन के आधार भी आन्दोलनकारी जनता के प्रतिनिधित्व को सही रूप में सामने नहीं लाते है।10
मधेशी समुदाय, जो कि देश की जनसँख्या का एक बड़ा हिस्सा है और तराई में और थारू समुदाय में सबसे बड़ा समुदाय है। उनका मानना है कि वर्तमान व्यवस्था उन्हें जनसांख्यिकीय रूप में राजनीतिक स्तर पर पिछड़ा बना रही है। उन्हें उम्मीद थी कि नई व्यवस्था से उन्हें लाभ होगा पर मैदानी भाग का हिस्सा पहाड़ी क्षेत्र में मिलाने पर आपत्ति थी। परम्परागत रूप से पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाले समुदाय और प्रारूप संविधान के निर्माताओं का यह तर्क था कि पहाड़ी क्षेत्रों से तराई की ओर लोगों की नियमित आवाजाही है और इससे मिश्रित समुदाय भी निर्मित होता है तथा इसके अलावा पहाड़ी लोगों के इन क्षेत्रों में व्यवसायिक सम्बन्ध भी है। मधेशी और थारू समुदाय के लोग यह मानते थे कि ये बड़े राजनीतिक दल इन समुदायों के राजनीतिक सशक्तिकरण के लिए कुछ कदम उठायेंगे पर वे अपने वादों से पीछे हटते नज़र आते है। प्रान्तों के सीमांकन को लेकर जब आन्दोलन और तेज हुआ तो संविधान निर्माताओं ने लेखन प्रक्रिया भी तेज किया और जन इच्छाओं के मद्देनजर ६ प्रांतीय मॉडल पर सहमति बनाई। थारू नेता रुक्मणि चौधरी ने इस पर कहा कि ‘६ प्रान्तों के मॉडल को अपनाना मूल निवासियों के लिए आत्महत्या के सामान है, हमने तराई में दो प्रान्तों की मांग की है- मधेश और थारुहट, बल्कि इस प्रस्ताव में एक अधुरा मधेश है और थारुहट है ही नहीं। हमने कहा था कि हम उत्तर दक्षिण मॉडल पर आधारित संघीय प्रान्त नहीं चाहते जहाँ पर्वत और तराई एक प्रान्त में हो, लेकिन उन्होंने वही किया और मूल निवासियों के साथ धोखा किया है’। २१ अगस्त को आन्दोलन में उग्रता को देखते हुए नेपाली कांग्रेस, यूएमएल और माओवादी दल एक ७ प्रांतीय संघीय समझौते पर राजी हुए लेकिन मधेश फोरम लोकतान्त्रिक इस योजना से असहमत थी। लेकिन जब इस मसौदे को संवैधानिक सभा में प्रस्तुत किया तो सीमान्त लोगों के प्रतिनिधियों ने इसका बहिष्कार किया।11 संवैधानिक सभा जिसका नेतृत्व नेपाली कांग्रेस, नेपाल साम्यवादी दल-संयुक्त मार्क्सवादी-लेनिनवादी, संयुक्त नेपाल साम्यवादी दल (माओवादी) कर रहे थे, नये संविधान के प्रावधानों पर मतदान की प्रक्रिया शुरू कर अंततः इसे उदघोषित किया।12
मधेशियों और थारुओं के अनुसार प्रान्तों की संरचना-
झापा, मोरंग और सुनसरी का विलय प्रान्त १ से २ में होना चाहिए।
चितवन जो कि प्रान्त ३ में है और नवलपारसी जो कि प्रान्त ५ है, का विलय प्रान्त २ में होना चाहिए।
कैलाली और कंचनपुर जो कि प्रान्त ७ में है, उनका विलय प्रान्त ५ में होना चाहिए।
सात प्रान्तों पर आधारित संघीय मॉडल का मानचित्र 13
धर्मनिरपेक्षता
धर्मनिपेक्षता के मामले पर बहस संवैधानिक सभा में निरंतर बनी रही। काफी लम्बे समय से हिन्दू राष्ट्र बने रहने के कारण नेपाल को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाना काफी चुनौती पूर्ण कार्य रहा। देश के तीन बड़े राजनीतिक दलों ने प्रारूप संविधान में संयुक्त रूप से संशोधन प्रस्ताव रखा जिसमे धर्मनिपेक्षता को इस प्रकार परिभाषित किया गया ‘प्राचीन काल से माने जा रहे धर्म और संस्कृति का संरक्षण तथा धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्वतंत्रता’।14 लेकिन संविधान में धर्मनिपेक्षता की इस प्रकार की परिभाषा रखने से वस्तुतः नेपाल को हिन्दू राष्ट्र बनाने की मंशा स्पष्ट झलकती है। प्राचीन काल के धर्म को संरक्षण देकर तीनो राजनीतिक दल अप्रत्यक्ष रूप से देश को हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते है। विभिन्न धार्मिक समूह, वंचित समूह और दलित समूह चाहते थे कि धर्मनिरपेक्ष संविधान बने जिससे उन्हें कट्टरपंथी हिन्दू रिवाजों से उत्पन्न भेदभाव से मुक्ति मिले। नेपाल की जनसँख्या के ३० प्रतिशत संजातीय समूह भी धर्मनिरपेक्ष संविधान के पक्ष में थे।15 वही दूसरी तरफ राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक जैसे दल और हिन्दू संगठन देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने के पक्ष में थे।
बहुत से मूलवासी और संजातीय समूह जीववादी है जो यह मानते है कि हिन्दू धर्म के कारण उनकी पहचान फीकी पड़ रही है। एक धर्म के प्रभाव में वृद्धि के फलस्वरूप किरात धर्म में यकायक बढ़ोतरी हुई। २००१ और २०११ के जनगणना के आंकड़ो की तुलना करे तो हम देखेंगे कि इस धर्म में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। किरात एक मूलवासी समूह है जिसकी स्वयं की सभ्यता और इतिहास है, और यह एक धर्म के वर्चस्व से पीड़ित रहा है।16 वर्तमान धरमनिरपेक्षता के पहलू द्वारा सभी धर्मो और समुदायों के हितों की रक्षा सामान रूप से की जानी चाहिए तथा उन्हें अपना धर्म मानने और अवलंबन करने के लिए समान अवसर प्रदान किये जाने चाहिए।
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया
अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय ने नेपाल में नए संविधान की घोषणा होने पर इसका स्वागत किया है। विश्व शक्तियों एवं संयुक्त राष्ट्र एवं यूरोपीय संघ जैसे समुदायों ने नेपाल में चल रहे आन्दोलन और संवैधानिक संकट को वार्ता द्वारा शांतिपूर्वक सुलझाने की मंशा जाहिर की है।
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि, “चीन तहेदिल से नए संविधान की घोषणा पर नेपाल को बधाई देता है तथा यह उम्मीद करता है कि इस अवसर से नेपाल में राष्ट्रीय एकता, स्थिरता और विकास स्थापित होगा”।17 पाकिस्तान के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने नेपाल द्वारा नये संविधान को ग्रहण करने के मौके पर बधाइयाँ दी और कहा कि “हम नेपाल की सरकार और राजनीतिक दलों का इस उपलब्धि पर अभिनन्दन करते है। पाकिस्तान को यह विश्वास है कि नया संविधान नेपाल में लोकतंत्र की नीवं को मजबूत करेगा।“ बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने नए संविधान की घोषणा के मौके पर नेपाल के लोगों को बधाइयाँ दी।18
संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ने नेपाल में नए संविधान की घोषणा पर कहा कि “नेपाल सरकार को सभी नेपालियों के विचारो और इच्छाओं को समाहित करने का सतत प्रयास करना चाहिए तथा यह सुनिश्चित भी किया जाये कि वैश्विक सिद्धांतो और मानदंडो जैसे लैंगिक समानता, धार्मिक स्वतंत्रता और नागरिकता का अधिकार को संविधान में आलिंगनबद्ध किया जाये”।19 यूरोपीय संघ के प्रवक्ता ने कहा कि, “यूरोपीय संघ यह उम्मीद करता है कि सभी दल एकजुट होकर संवाद और सहमति के वातावरण में नेपाली नागरिकों के समक्ष आई चिंताओं को सुलझाएंगे”।20 ब्रिटेन की तरफ से कहा गया कि “हम इस प्रक्रिया के अंतिम चरण का गहराई से अवलोकन कर रहे है। हमें आशा है है कि यह नया संविधान समावेशी, व्यापक रूप से समर्थित तथा समानता के अन्तर्राष्ट्रीय मानकों को पूरा करेगा”।21 इस अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया में अमेरिका, यूरोपीय संघ और ब्रिटेन की प्रतिक्रिया कुछ हद तक भारत सर साम्यता रखती है।
भारत की प्रतिक्रिया
भारत नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना का समर्थक रहा है, बल्कि भारत की कोशिशों से ही नेपाल की राजनीतिक पार्टियाँ और माओवादी एक साथ आकार लोकतान्त्रिक संविधान बनाने के लिए तैयार हुए थे। ऐसे में भारत को नेपाल में संविधान लागू होने से ख़ुशी होनी चाहिए थी, लेकिन भारत की प्रतिक्रिया इस पर काफी तल्ख रही। इसकी मुख्य वजह मधेशियों का असंतोष है। मधेशी भारतीय मूल के है और वे भारत की सीमा से लगे इलाको में रहते है। खासकर बिहार के सीमावर्ती क्षेत्रों से मधेशियों के गहरे सम्बन्ध है। इसलिए इन क्षेत्रों में अशांति का असर भारत पर भी पड़ेगा।
भारत की यह भी आपति रही कि वर्ष २००७ में अंतरिम संविधान बनाते वक्त जो आश्वासन नेपाल की राजनीतिक पार्टियों ने उन्हें दिए थे, उन्हें पूरा नहीं किया गया। तब यह तय किया गया था कि सभी वर्गों और समूहों को इसमें उचित प्रतिनिधित्व मिलेगा।
भारत द्वारा नए संविधान में संशोधन के सुझाव:
भारत ने नये संविधान का अवलोकन करने के पश्चात् संविधान में संशोधन के निम्न सात सुझाव दिए-
भारतीय कदम पर नेपाल की प्रतिक्रिया
भारत द्वारा दिए गए इन सुझावों का नेपाल के राजनेताओं ने स्वागत नहीं किया। नेपाल के मीडिया ने इसकी भर्त्सना करते हुए इसे भारत का अनावश्यक हस्तक्षेप कहा। नेपाल मूल की विदुषी मल्ल्लिका शाक्य इस मसले पर कहती है कि भारत का यह हस्तक्षेप नेपाली लोगों में धुर्वीकरण को बढाता है और नेपाल की एकीकृत राजनीति में विरोधाभास पैदा करता है, अतः इस समस्या का हल नेपाल को स्वयं ही निकालने दे।
नेपाल विशेषज्ञ प्रो. एस. डी. मुनि इस बारे में कहते है कि इस प्रकार के धुर्वीकरण में भारत का किसी एक पक्ष का साथ देना न तो बुद्धिमानी की नीति है और न ही प्रभावशाली कूटनीति है।23 नेपाल के कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी) प्रमुख पुष्प कमल दहाल उर्फ प्रचंड ने कहा कि उनका देश भारत से अच्छी दोस्ती चाहता है, लेकिन नेपाल को कोई "यस मैन" के रूप में देखे यह मुमकिन नहीं है। नेपाल में भारतीय सीमा से लगे अनेक हिस्सों में नये संविधान को लेकर हिंसक प्रदर्शनों पर भारत द्वारा चिंता जताये जाने के बाद प्रचंड ने यह बात कही। प्रचंड ने भारत की प्रतिक्रिया पर कहा नेपाली जनता के लंबे संघर्ष और बलिदान के बाद संविधान आया है। नेपाल की संविधान सभा शांति प्रक्रिया के साथ जुडी थी। इस प्रक्रिया में भारत का शुरू से ही सहयोग और सद्भाव रहा है। जव संविधान बना तो हमें उम्मीद थी कि भारत को भी अनुभूति होगी, वह इसका स्वागत करेगा लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत को इसे लेकर कुछ आपत्तियां हैं, इसका हमें थोडा दुख है।24 काठमांडू पोस्ट ने इस बारे में कहा कि “ दिल्ली अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए सीमा का उल्लंघन कर रही है जो कि ठीक नहीं है। नेपाली अख़बार कांतिपुर ने लिखा कि ‘ये समस्याएं हमारे लिए सुलझाने के लिए है, एक पड़ोसी देश इस चित्रण में आये और हमारी आंतरिक समस्याओं एवं चुनौतियों को सुलझाये यह हमें स्वीकार नहीं है।“ द राइजिंग नेपाल ने लिखा कि,”भारत ने अभी तक नेपाल के नये संविधान का स्वागत नहीं किया है, जो कि भारत की सीमा से लगे तराई क्षेत्र में अस्थिरता लाएगा।“25
नये संविधान से असंतुष्ट मधेशियों के आन्दोलन के चलते संविधान की घोषणा के तुरंत बाद ही भारत नेपाल सीमा पर अघोषित नाकेबंदी हो गई, जिससे नेपाल में खाद्य आपूर्ति एवं पेट्रोलियम उत्पादों की आपूर्ति बंद हो गई। नेपाल ने इसका आरोप भारत पर लगाते हुए कहा कि भारत यह दबाव जान बूझ कर बना रहा है। वही भारत का कहना है कि इस प्रकार की आर्थिक नाकेबंदी की उसने कोई घोषणा नहीं की है। नेपाल के उपप्रधानमंत्री ने इस आर्थिक नाकेबंदी के मामले को संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून के सम्मुख भी रखा है। यह कदम दोनों देशों के मध्य अविश्वास एवं कटुता को और गहरा करती है। यदि यह गतिरोध की स्थिति आगे बनी रही तो काफी उद्योग एवं कारोबार को बंद करना पड़ेगा जिसका नुकसान भारत को भी उठाना पड़ेगा। क्योंकि खुली सीमा होने की वज़ह से दोनों देशों के मध्य व्यापार निर्बाध रूप से चलता है। अतः इससे पहले कि भारत नेपाल सम्बंधो में कटुता और बढे, दोनों देशों को बिना समय गँवाए कूटनीतिक रास्ते से इस मसले का हल करना चाहिए।
वर्त्तमान गतिरोध का भविष्य
नेपाल के पूर्व संविधानों की रचना के दौरान ये देखा गया है कि, जब कभी संजातीयता, शासन, भाषा और क्षेत्रीय समस्याओं को अनदेखा किया गया है, इसकी पुनरावृत्ति बाद में मुख्य मुद्दो के रूप में सामने होती है, जिसके कारण देश में जन आन्दोलन और क्रांति का जन्म होता है। नये संविधान द्वारा स्थिरता लाने के लिए, संवैधानिक सभा को देश में उठती मांगो और आवाजों को सुनना चाहिए था और उन्हें समाहित करना था।
भारत को जरुरत है कि वह अपने कुटनीतिक द्रष्टिकोण को नरम रखे, अपने आपको सीमान्त समूहों और नेपाल सरकार के खेमे के साथ एक सार्थक संवाद के जरिये जोड़े। इस प्रकार से उप क्षेत्रीय एकीकरण मजबूत होगा, जिस पर भारत ने हमेशा से जोर दिया है। नेपाल का संविधान नम्य है, इसमें संशोधन की गुंजाईश का क्षेत्र व्यापक है। राजनीतिक इच्छा द्वारा वर्तमान गतिरोध और संकट का एक तार्किक हल निकाला जा सकता है।26
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* लेखक, अनुसंधान अध्येता, आईसीडब्ल्यूए, सप्रू हाउस, नई दिल्ली.
समाप्ति नोट:
1 Hari Phuyal, “Nepal's New Constitution: 65 Years in the Making”, THE DIPLOMAT, 18 September, 2015,
http://thediplomat.com/2015/09/nepals-new-constitution-65-years-in-the-making/
2 Dev, “Nepal constitution 2072 2015 Features”, One Click Nepal, September 20, 2015,
http://oneclicknepal.com/nepal-constitution-2072-2015-features/
3 Nepal enshrines the Right to Food in new constitution,
http://www.fao.org/news/story/en/item/334895/icode/
4 अवधेश कुमार, “नेपाल का नया संविधान भेदभाव पूर्ण”, पीपुल्स समाचार, September 27, 2015,
http://www.peoplessamachar.co.in/index.php/ind/53-editorial/98630-2015-09-27-17-42-54
5 “The 16-Point Agreement”, South Asia Terrorism Portal, http://www.satp.org/satporgtp/countries/nepal/document/papers/16-point_Agreement.htm
6 KL Devkota, “Drawing the line”, The Kathmandu Post, July 22, 2015, http://kathmandupost.ekantipur.com/printedition/news/2015-07-21/drawing-the-line.html
7 Rajeev Dhawan, “It's time to leave Nepal alone”, Daily Mail Online, October 4, 2015, http://www.dailymail.co.uk/indiahome/indianews/article-3259672/It-s-time-leave-Nepal-alone.html
8 Nepal to be split into eight federal provinces in deal ending years of stalemate over new constitution, South China Morning Post, June 9 2015, http://www.scmp.com/news/asia/south-asia/article/1819174/feuding-parties-agree-split-nepal-eight-provinces-ending-years
9 Nepal: Conflict Alert, International Crisis Group, September 2, 2015, http://www.crisisgroup.org/en/publication-type/alerts/2015/nepal-conflict-alert.aspx
10 Nepal: Conflict Alert, International Crisis Group, September 2, 2015, http://www.crisisgroup.org/en/publication-type/alerts/2015/nepal-conflict-alert.aspx
11 Nepal: Conflict Alert, International Crisis Group, September 2, 2015, http://www.crisisgroup.org/en/publication-type/alerts/2015/nepal-conflict-alert.aspx
12 We have to address the concerns of the marginalized, The Kathmandu Post, September 14, 2015, http://kathmandupost.ekantipur.com/news/2015-09-14/we-have-to-address-the-concerns-of-the-marginalised.html
13 “Parties agree to go for 7-province model”, Nepal Mountain News, August 21, 2015, http://www.nepalmountainnews.com/cms/2015/08/21/parties-agree-to-go-for-7-province-model/
14 “Secularism retained in new constitution”, The Himalayan Times, September 14, 2015, http://thehimalayantimes.com/kathmandu/ca-resumes-voting-on-statute-articles-amendment-proposals/
15 David Kainee, “Risky rider”, Republica, Nepal Republic Media, September 13, 2015, http://myrepublica.com/opinion/story/28061/risky-rider.html
16 David Kainee, “Risky rider”, Republica, Nepal Republic Media, September 13, 2015, http://myrepublica.com/opinion/story/28061/risky-rider.html
17 Foreign Ministry Spokesperson Hong Lei's Regular Press Conference on September 21, 2015, Embassy of the People’s Republic of China in the Federal Democratic Republic of Nepal, Official Website, September 21, 2015, http://np.chineseembassy.org/eng/fyrth/t1298582.htm
18 “Pakistan Welcomes the Promulgation of New Constitution in Nepal,” Press Release/Speeches, September 21, 2015, Ministry of Foreign Affairs, Government of Pakistan, http://www.mofa.gov.pk/pr-details.php?mm=MzA5MA
19 Statement on the Promulgation of Nepal’s Constitution, September 22, 2015, http://nepal.usembassy.gov/pr-09-22- 2015.html
20 Statement by the Spokesperson on the promulgation of a new Constitution in Nepal, 18 September 2015. http://www.eeas.europa.eu/delegations/nepal/documents/press_corner/2015.09.18_en.pdf
21 Minister for Asia, Hugo Swire, Awaits Nepal’s New Constitution and Urges Calm from All Sides, https://www.gov.uk/government/news/uk-hopes-for-inclusive-resolution-for-nepal
22 Make seven changes to your Constitution: India tells Nepal, Indian Express, September 24, 2015 http://indianexpress.com/article/world/neighbours/make-seven-changes-to-your-constitution-address-madhesi-concerns-india-to-nepal/#sthash.EktVITR5.dpuf,
23 Sanjay Kumar, “Nepal Tests India’s Much Touted Neighborhood Diplomacy”, The Diplomat, September 26, 2015
http://thediplomat.com/2015/09/nepal-tests-indias-much-touted-neighborhood-diplomacy/
24 “भारत का "यस मैन" नहीं बनेगा नेपाल:प्रचंड”, खास खबर, September 22, 2015, http://www.khaskhabar.com/picture-news/news-seeks-friendship-but-nepal-will-not-be-yes-man-of-india-prachand-1-13036.html
25 Aditi Phadnis, “High drama in the Himalayan nation”, Business Standard, September 26, 2015, http://www.business-standard.com/article/current-affairs/high-drama-in-the-himalayan-nation-115092600790_1.html
26 SD Muni, “Nepal’s New Constitution: Towards Progress or Chaos?”, Economic and Political Weekly, October 3, 2015, p. 19