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विवाद
दक्षिण चीन सागर ऐतिहासिक रूप से विवादित क्षेत्र है, जिसमें कई देश इसके कुछ हिस्से पर अपनी संप्रभुता का दावा करत हैं। यह विवाद चीन, फिलीपींस, वियतनाम, ब्रुनेई और मलेशिया के बीच है। इसमें जल के साथ– साथ सीमा का निर्धारण करना भी शामिल है। चीन इस क्षेत्र के 90 प्रतिशत से अधिक हिस्से पर अपना दावा करता है। इसके दावों को अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षर यू (U) के आकार की “नाइन– डैश– लाइन” से दर्शाया गया है।
तनाव
चीन ने दक्षिण चीन सागर में अपनी गतिविधियों को धीरे– धीरे बढ़ाया और आक्रामक रुख बनाए रखा। यह क्षेत्र अलग– अलग देशों के बीच बढ़ते तनाव के साथ भू– राजनीति का रंगमंच बन गया है। इन तनावों ने बदले में क्षेत्र के भीतर और बाहर अमेरिका और दूसरे देशों का भी ध्यान अपनी तरफ खींचा है जिससे सुरक्षा के मामले में अस्थिरता पैदा हो गई है।
अंतरराष्ट्रीय संबंध का सिद्धांत
अच्छे पड़ोसी, क्षेत्रवाद और कानून का शासन अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मूल सिद्धांत हैं। ये सभी सिद्धांत न केवल दक्षिण चीन सागर विवाद पर लागू होते हैं बल्कि इसके शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में आगे बढ़ने का रास्ता भी दिखाते हैं।
किसी देश के विकास और उसकी क्षमता तक पहुंचने के लिए सुरक्षित माहौल सुनिश्चित करने हेतु अच्छे पड़ोसी की तलाश करना महत्वपूर्ण है। एक जिद्दी पड़ोसी सुरक्षा और विकास दोनों के लिहाज से बोझ होता है जबकि एक शांतिपूर्ण पड़ोसी आपकी संपत्ति जैसा होता है। पड़ोसी एक दूसरे को किसी दूसरे के मुकाबले ज्यादा अच्छी तरह से समझते हैं। आखिरकार, आज की सीमाओं और देशों के बनने से पहले भी जीवन अस्तित्व में था और लोग समुदायों में रहा करते थे। इसलिए अच्छे पड़ोसी के सिद्धांत में साझा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए पड़ोसी देशों का सहयोग शामिल होता है।
क्षेत्रवाद एक साझा पहचान और उद्देश्य की अभिव्यक्ति है जिसका उद्देश्य आम चुनौतियों का सामना करने के लिए सामूहिक कार्रवाई करना है। क्षेत्रवाद इस विचार पर आधारित है कि किसी क्षेत्र के देश उस क्षेत्र के मुद्दों और समस्याओं को सबसे अच्छी तरह समझते हैं और उन्हें हल करने के लिए सबसे बेहतर तरीके से सुविधासंपन्न होते हैं। क्षेत्रवाद के सिद्धांत के आधार पर, दक्षिण पूर्व एशिया के इस मामले में, क्षेत्रीय सामूहिक कार्रवाई अतिरिक्त क्षेत्रीय मदद/ हस्तक्षेप का सहारा लेने को प्राथमिकता देती है।
अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रति सम्मान एक मौलिक सिद्धांत है जो देश के व्यवहार में निश्चितता और पूर्वानुमेयता एवं अंतर– देशीय संबंधों में व्यवस्था और स्थिरता सुनिश्चित करता है।
हालांकि, चीन द्वारा इन बुनियादी अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांतों की अवहेलना की गई है।
अब तक के प्रयास
आचार संहिता स्थापित करने की दिशा में चीन के साथ काम करने के प्रयास अब तक सफल नहीं हुए हैं हालांकि चीन और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच वार्ता बहुत समय से चल रही है लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि ये कब समाप्त होगी।
इस तथ्य को देखते हुए कि चीन अब तक अन्य दावेदारों के साथ आचार– संहिता पर बातचीत करने में अनिच्छुक रहा है और इसने 2016 के स्थायी मध्यस्थता न्यायालय के फैसले को खारिज कर दिया है, संदेह बना हुआ है कि क्या चीन जल्द ही किसी कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार होगा! अगर किसी तरह से यह बाधा दूर हो जाती है, तो भी क्रियान्वयन को लेकर चिंता बनी रहेगी। क्या किसी उल्लंघन की निगरानी और उसे लागू करने के लिए कोई प्रभावी व्यवस्था होगी?
आसियान सीओसी
दक्षिण चीन सागर विवाद पर समझ के लिए एक वैकल्पिक रूपरेखा पर विचार किया जा सकता है जो आसियान (ASEAN) के संस्थापक सिद्धांतों पर आधारित हो और उन्हें मजबूत करे एवं कानून के शासन को कायम रखे, दक्षिण पूर्व एशियाई दावेदारों के बीच इस पर विचार किया जा सकता है। दक्षिण चीन सागर पर आसियान आचार संहिता का स्वागत किया जाएगा।
संभवतः वर्तमान मलेशियाई अध्यक्षता और वियतनाम– फिलीपींस संबंधों (अगस्त 2024 में पहला संयुक्त समुद्री अभ्यास) और मलेशिया– वियतनाम संबंधों (नवंबर 2024 के व्यापक रणनीतिक साझेदारी समझौता का खत्म होना) में हाल की सकारात्मक गतिशीलता इस संबंध में आवश्यक प्रोत्साहन प्रदान करेगी।
भारत
जबकि दक्षिण चीन सागर आसियान और चीन के पड़ोसी देशों के बीच विवाद का विषय है, इस क्षेत्र में होने वाली घटनाएं भारत को प्रभावित करती हैं क्योंकि दक्षिण– पूर्व एशिया इसके विस्तारित पड़ोस में आता है। हमारी एक्ट ईस्ट पॉलिसी और हिन्द– प्रशांत विभाजन के संदर्भ में, विवादित क्षेत्र में तनाव नियमित रूप से क्षेत्र के हमारे मित्र देशों का साथ कूटनीतिक एवं शास्त्रीय चर्चाओं में सामने आता है।
भारत का 55 प्रतिशत से अधिक व्यापार दक्षिण चीन सागर मार्ग से होता है। भारत दक्षिण चीन सागर के तटीय देसों के साथ तेल और गैस क्षेत्र में सहयोग, समुद्री अभ्यास और एचएडीआर (HADR) सहयोग समेत अलग– अलग प्रकार की गतिविधियां करता है।
हिंद– प्रशांत क्षेत्र का एक प्रमुख देश होने के नाते, समुद्र में अच्छी व्यवस्था बनाए रखने और क्षेत्रीय एवं वैश्विक शांति और सुरक्षा को बढ़ाने में हमारी दिलचस्पी है। भारत का हिंद– प्रशांत नज़रिया एक स्वतंत्र, खुले, समावेशी क्षेत्र का है जो प्रगति और समृद्धि की साझा तलाश में सभी को ले कर चलता है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत की हिंद– प्रशांत नीति आसियान की केंद्रीयता पर आधारित है। हिंद– प्रशांत शब्द गढ़े जाने से पहले भी, पूर्वी एशियाई क्षेत्र के प्रति भारत का दृष्टिकोण आसियान और इसकी व्यवस्था सीएससीएपी, एआरएफ, एडीएमएम+ (CSCAP, ARF, ADMM+), पूर्वी एशियाई शिखर सम्मेलन आदि के साथ अपनी संलग्नता पर आधारित रहा है।
भारत का मानना है कि दक्षिण– पूर्व एशियाई देशों का भाग्य उनके द्वारा ही तय किया जाना चाहिए, न कि दूसरों द्वारा निर्धारित किया जाना चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
दक्षिण चीन सागर एक जटिल मुद्दा है। क्षेत्र के देशों को संयम बरतने और शांति बनाए रखने तथा तनाव कम करने के लिए उकसावे का सहारा न लेने का संदेश देना जरूरी है। नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के लिए चुनौती के सामने अंतरराष्ट्रीय कानून, विशेष रूप से यूएनसीएलओएस (UNCLOS) 1982 को बनाए रखने के महत्व पर संदेश देना भी महत्वपूर्ण है, जिसका पालन भारत ने हमेशा किया है।
जैसा कि कहा गया है, यह कहना भी महत्वपूर्ण है कि ऐसे में जब संचार हेतु समुद्री मार्गों का खुला होना रक्षणीय सिद्धांत है, नौवहन की स्वतंत्रता समुद्र में अच्छी व्यवस्था और शांति बनाए रखने के लिए सहकारी समुद्री कार्यक्षेत्र जागरूकता संरचना जैसी योग्यता के बिना नहीं रहती है।
समापन उक्ति
आज हमारी पैनल चर्चा का उद्देश्य दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर सहयोगात्मक तरीके से आगे बढ़ना है, साथ ही इस क्षेत्र में बढ़ते तनाव के बारे में भी गहराई से जानकारी रखना, जैसा कि अमेरिका– चीन प्रतिद्वंद्विता के बीच दक्षिण चीन सागर में जहाजों के बीच अक्सर होने वाली झड़पों और वर्दीधारी कर्मियों के बीच झड़पों में देखा जाता है। इस क्षेत्र में तनाव के हिंद– प्रशांत में अन्य भड़काऊ स्थिति यानी ताइवान जलडमरूमध्य तक फैले का वास्तविक खतरा है; और इस क्षेत्र के अन्य क्षेत्रों में भी जहां क्षेत्रीय या समुद्री सीमाएं अपरिभाषित हैं जैसे पूर्वी चीन सागर या थाईलैंड की खाड़ी; और चीन की परिधि पर अन्य अस्थिर क्षेत्रों तक भी।
दुर्भाग्य से, आज विश्व युद्ध और ध्रुवीकरण से ग्रस्त है और हमें इस पृष्ठभूमि में आगे बढ़ने का रास्ता तलाशने की कोशिश करनी होगी। जहाँ तक भारत का सवाल है, अपने हितों और साझा उद्देश्यों को पूरा करने तथा क्षेत्र के देशों के साथ अपने पारंपरिक मैत्रीपूर्ण संबंधों को और मजबूत करने के लिए, वह रक्षा, सुरक्षा और सैन्य से लेकर सैन्य तक के क्षेत्रों में उनके साथ संबंध विकसित कर रहा है।
मैं एक रोचक और जीवंत चर्चा की आशा करती हूँ। मैं पैनल के सदस्यों को शुभकामनाएं देती हूँ।
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