दोस्तों!
यूक्रेन का युद्ध अपने चौथे वर्ष में प्रवेश कर चुका है और इस दौरान जीवन, मूलभूत सुविधाओं और पर्यावरण के विनाशकारी हानि को रोकने के लिए पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान खोजने हेतु कोई विश्वसनीय द्विपक्षीय वार्ता नहीं हुई है।
विश्व इस विवाद की वैश्विक प्रकृति को समझता है और इसीलिए युद्ध की शुरुआत से ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय युद्ध का शीघ्र समाधान निकालने हेतु यूक्रेन और रूस दोनों पक्षों के साथ लगातार संपर्क में रहा है।
भारतीय वैश्विक परिषद यूक्रेन युद्ध पर सक्रिए रूप से नज़र बनाए हुए है और दोनों पक्षों के प्रतिनिधिमंडलों के साथ बातचीत कर रहा है। अप्रैल 2023 में, इसने युद्ध के वैश्विक प्रभावों पर बातचीत हेतु यूक्रेन की प्रथम उप विदेश मंत्री एमिना द्ज़ापारोवा की मेज़बानी की थी। उसी वर्ष, आईसीडब्ल्यूए ने दिसंबर में आपकी परिषद के साथ भी बातचीत की और हमें आपकी फिर से मेज़बानी करते हुए खुशी हो रही है। फरवरी 2024 में, आईसीडब्ल्यूए को यूक्रेन की उप विदेश मंत्री सुश्री इरयाना बोरोवेट्स के विचार सुनने का सौभाग्य मिला। इस प्रकार, हमारी पिछली बातचीत के आधार पर, मैं युद्ध के बारे में आपके आकलन को सुनने और यह समझने के लिए उत्सुक हूँ कि पिछली बार हमारी बातचीत के बाद से स्थिति कैसे बदल गई है।
यूक्रेन युद्ध के पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान की संभावनाएं धूमिल होती जा रही हैं। राष्ट्रपति ट्रम्प के चुनाव के साथ अमेरिकी नीति में बदलाव, यूरो– अटलांटिक गठबंधन का कमज़ोर पड़ना और युद्ध के मैदान में हाल ही में रूस की सफलताओं ने यूक्रेन के लिए किसी भी तरफ से सुरक्षा गारंटी के अभाव में शांति प्रक्रिया को और अधिक जटिल बना दिया है।
युद्ध ने यूरोपीय देशों की कमज़ोरियों को उजागर कर दिया है जो अपनी रक्षा असुरक्षाओं से जूझ रहे हैं। यूरोप आंतरिक और बाहरी दोनों ही तरह से एक बड़े मंथन के दौर से गुज़र रहा है। कई यूरोपीय देशों में दक्षिणपंथी दलों की चुनावी सफलताएं मुख्यधारा के यूरोपीय आख्यानों के लिए ख़तरा हैं। इसने तेज़ी से टूटते ट्रांस– अटलांटिक गठबंधन के साथ यूरोप को अपनी सैन्य और रक्षा क्षमताओं का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए विवश कर दिया है। इसके अलावा, यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने, राष्ट्रपति ट्रंप के साथ आपकी बैठक के बाद टिप्पणी की है कि 'हम पुनः शस्त्रीकरण के युग में हैं और यूरोप अपने रक्षा खर्च को बड़े पैमाने पर बढ़ाने के लिए तैयार है।' यूक्रेन में युद्ध पर इस पुनर्मूल्यांकन का प्रभाव अभी देखा जाना बाकी है।
हालाँकि यूक्रेन युद्ध का मुख्य प्रभाव यूक्रेन और यूरोप पर पड़ा है लेकिन इसके प्रभाव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हुए हैं। ईंधन की बढ़ती कीमतों और ऊर्जा एवं खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान ने बढ़ती मुद्रास्फीति, वैश्विक खाद्य असुरक्षा, ऊर्जा बाज़ार में अस्थिरता और आर्थिव विकास में गिरावट में योगदान दिया है। युद्ध के इन प्रतिकूल प्रभावों को विशेष रूप से ग्लोबल साउथ द्वारा महसूस किया गया है, जिससे यह युद्ध में एक हितधारक बन गया है। यह बताता है कि युद्ध के समाधान के लिए कई तीसरे पक्ष की शांति योजनाएं ब्राज़ील, मैक्सिको, इंडोनेशिया और अफ्रीकी महाद्वीप जैसे देशों से आई हैं।
एक जिम्मेदार वैश्विक खिलाड़ी और ग्लोबल साउथ के महत्वपूर्ण सदस्य के रूप में भारत ने यूक्रेन में शांति की आवश्यकता पर लगातार ज़ोर दिया है। भारतीय नज़रिए से, युद्ध की समाप्ति केवल मानव जीवन को होने वाले अंतहीन नुकसान को रोकने के लिए ही तत्काल आवश्यक है बल्कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को सामान्य करके विश्व अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिए भी जरूरी है। यूक्रेन में युद्ध का सीधा असर भारत पर पड़ा है क्योंकि यूक्रेन भारतीय छात्रों का लोकप्रिय गंतव्य रहा है। इसलिए, भारत ने न केवल भारतीय छात्रों को बल्कि दूसरे देशों के छात्रों को भी युद्धग्रस्त इलाकों से निकालने के लिए ऑपरेशन गंगा शुरू किया था। इस निकासी प्रक्रिया में यूक्रेन की भूमिका की भारत में बहुत सराहना की गई है।
भारतीय नेतृत्व ने कई मौकों पर रूस और यूक्रेन दोनों के साथ सक्रिए रूप से बातचीत की है और शत्रुता को तत्काल समाप्त करने की वकालत की है। प्रधानमंत्री मोदी जी का यह कथन "यह युद्ध का युग नहीं है" युद्ध– मुक्त विश्व के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। वसुधैव कुटुम्बकम—"संपूर्ण विश्व एक परिवार है"— के दर्शन पर आधारित भारत सामूहिक वैश्विक समृद्धि हेतु चर्चा और सहयोग के माध्यम से विवादों को हल करने में विश्वास रखता है।
भारत यूक्रेन विवाद को सुलझाने के लिए कूटनीतिक प्रयासों में सक्रिए रूप से शामिल रहा है, रूस और यूक्रेन में अपने समकक्षों के साथ महत्वपूर्ण चर्चाएं की हैं। भारत ने डेनमार्क, माल्टा, सऊदी अरब में आयोजित यूक्रेन के शांति सूत्र पर आधारित बैठकों में भाग लिया है। इसके अतिरिक्त भारत ने स्विस शांति शिखर सम्मेलन में भाग लिया, जिसमें राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की की दस– सूत्री शांति योजना पर ध्यान केंद्रित किया गया। यह संवाद और कूटनीति के माध्यम से शांतिपूर्ण समाधान को बढ़ावा देने के लिए नई दिल्ली की निरंतर प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने शांति प्रक्रिया में भारत की भागीदारी के चार सिद्धांतों पर प्रकाश डाला है (1) इसे शांति का समय होना चाहिए (2) युद्ध के मैदान में युद्ध का कोई समाधान नहीं होगा (3) किसी भी सफल शांति प्रक्रिया हेतु दोनों पक्षों को वार्ता मेज पर होना चाहिए और (4) भारत चिंतित है और युद्ध का हल निकालने के प्रयास में लगा हुआ है। उन्होंने कहा कि यदि दोनों पक्ष सलाह मांगते हैं तो भारत सलाह देने को भी तैयार है।
भारत परमाणु संयंत्रों की सुरक्षा और संरक्षा सुनिश्चित करने को सर्वोच्च महत्व देता है और उसने युद्ध के परमाणु नतीजों की संभावनाओं के बारे में चिंता व्यक्त की है। इसने यह भी स्पष्ट रूप से कहा है कि यह परमाणु हथियारों के इस्तेमाल या इस्तेमाल की धमकी को अस्वीकार्य करता है। परमाणु हथियारों के बारे में बढ़ती बयानबाज़ी मददगार नहीं है।
भारत ने अपने यूक्रेनी साझेदारों को मानवीय सहायता प्रदान करने में सक्रिए रूप से हिस्सा लिया है। युद्ध आरंभ होने के बाद से ही भारतीय पक्ष ने यूक्रेन को मानवीय मदद की 15 से अधिक खेपें पहुँचायी हैं। यह मदद यूक्रेन की भौतिक और वित्तीय दोनों आवश्यकताओं को पूरा करती है और इसमें दवाईयां, चिकित्सा उपकरण और अन्य राहत सामग्री शामिल है, इसके अलावा संकट के इस समय में यूक्रेन को अपनी शिक्षा प्रणाली जारी रखने के लिए अवसंरचनात्मक मदद भी शामिल है।
भारत और यूक्रेन के बीच घनिष्ठ द्विपक्षीय संबंध हैं जो रक्षा, व्यापार, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक सहयोग के क्षेत्र तक फैला हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की के बीच पहले हुई टेलीफोन पर बातचीत के आधार पर, प्रधानमंत्री मोदी 1992 में दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध स्थापित होने के बाद यूक्रेन की यात्रा करने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री बन गए। यात्रा के दौरान, नेताओं ने व्यापार और वाणिज्य, कृषि, फार्मास्यूटिकल्स, रक्षा, शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी एवं संस्कृति जैसे क्षेत्रों में भावी सहयोग हेतु तत्परता व्यक्त की, साथ ही डिज़िटल सार्वजनिक अवसंरचना, उद्योग, विनिर्माण और हरित ऊर्जा के क्षेत्र में एक मजबूत साझेदारी की आवश्यकता पर भी चर्चा की।
यूक्रेन को ऐसे समय में रूस, यूरोपीय संघ और अमेरिका से निपटना पड़ रहा है जब उसकी जमीनी जंग भी जारी है। अपने लोगों की रक्षा करने की आपकी दृढ़ता और इच्छाशक्ति उल्लेखनीय है। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में छोटे देशों को भी अपनी एजेंसी होती है। महाशक्तियों के बीच प्रतिद्वंद्विता के सामने तटस्थता बनाए रखना कहना जितना आसान होता है, करना उतना ही मुश्किल। और इससे भी ज्यादा मुश्किल है युद्ध के समय लोगों की राय को सही दिशा देना। इन मुश्किल समय में आपकी कूटनीतिक पहुंच महत्वपूर्ण है। भारत में आपका एक दोस्त है और यह हमारा आश्वासन है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि भारत तटस्थ नहीं है, यह शांति के पक्ष में है।
आईसीडब्ल्यूए को यूक्रेन के अपने सहयोगियों की मेज़बानी करके खुशी हो रहा है और हम यूक्रेन की वर्तमान स्थिति एवं भारत– यूक्रेन द्विपक्षीय संबंधों पर उनके विचार सुनने को उत्सुक हैं। हम इसके बाद एक दिलचस्प चर्चा की आशा करते हैं।
अब मैं 'यूक्रेनियन प्रिज़्म' के अपने सहयोगियों को अपने विचार व्यक्त करने के लिए आमंत्रित करती हूँ।
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