राष्ट्रीय उन्नत अध्ययन संस्थान (एनआईएएस), बैंगलौर के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिकों के एक समूह के साथ "विज्ञान कूटनीति" विषय पर 23 अप्रैल 2019 को सप्रू हाउस में परस्पर संवाद का आयोजन किया गया था।
एनआईएएस के दल में डॉ. वी.एस. रामामूर्ति, भूतपूर्व सचिव, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, डॉ. एन. रामामूर्ति, भूतपूर्व निदेशक, भौतिक एवं रसायन विज्ञान प्रभाग, अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए), प्रोफेसर राजाराम नागप्पा, प्रमुख, अंतर्राष्ट्रीय सामरिक एवं सुरक्षा अध्ययन कार्यक्रम, एनआईएएस, डॉ. पी.एम. सुंदराराजन, भूतपूर्व निदेशक, रक्षा एवियोनिक्स अनुसंधान प्रतिष्ठान (डीएआरई), डीआरडीओ, डॉ. एल.वी. कृष्णन्न, भूतपूर्व निदेशक, सुरक्षा अनुसंधान एवं भौतिक स्वास्थ्य कार्यक्रम, इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केन्द्र, कलपक्कम तथा डॉ. डी. सुब्बा चंद्रन, एनआईएएस शामिल थे।
अंतर्राष्ट्रीय मामलों की भारतीय परिषद के महानिदेशक, डॉ. टी.सी.ए राघवन ने "विज्ञान कूटनीति" विषय के महत्व पर प्रकाश डाला तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसे सीमांत विषयों को पारंपरिक क्षेत्र के अध्ययन में एकीकृत करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मामलों की भारतीय परिषद् की आवश्यकता को हाइलाइट किया जो परिषद् में ध्यानाकर्षण का केंद्र बिंदु रहा। डॉ. सुबा चंद्रन ने विदेशी संबंधों के संचालन के लिए एक उपकरण के रूप में भारतीय विशेषज्ञता और विज्ञान और प्रौद्योगिकी में विकास के प्रयोग पर एनआईएएस की एक जारी परियोजना के विषय में जानकारी दी।
अन्य देशों विशेषकर पड़ोसी देशों के साथ कूटनीतिक रणनीति में सहयोग करने के लिए वैज्ञानिकों के दल ने अपने-अपने क्षेत्र जैसे कि अंतरिक्ष, परमाणु संबंधी, रक्षा, वायुमंडल तथा कृत्रिम बुद्धि में उनकी क्षमताओं पर अपना दृष्टिकोण संक्षेप में साझा किया। स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में नाभिकीय प्रौद्योगिकी पर भारत की विशेषज्ञता पर बल दिया गया।
चर्चा के दौरान, यह सुझाव दिया गया कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी परियोजनाएँ "विज्ञान कूटनीति" के संदर्भ में, अपने प्रमुख तकनीकी सहयोग कार्यक्रम आईटीईसी सहित विदेश मंत्रालय के विकास सहयोग प्रशासन की एक परिभाषित उपसमिति बना सकती हैं।