अंतर्राष्ट्रीय मामलों की भारतीय परिषद ने भारत-लैटिन अमेरिका तथा कैरिबियन संबंधों (एलएसी) का जायजा लेने पर राष्ट्रीय संगोष्ठी विषय पर 08-09 अगस्त 2019 को एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया।
संगोष्ठी के प्रतिभागियों में पूर्व राजनयिकों तथा भारत से सात विश्वविद्यालयों के विद्वानों और प्रबुद्ध मंडल, एवं उद्योग मंडलों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए। संगोष्ठी में चार सत्र, नामतः भारत एवं लैटिन अमेरिका तथा कैरिबियन संबंधः राजनीतिक संबंध मजबूत करना; व्यापार, निवेश एवं विकास में पूरक तैयार करना; सांस्कृतिक और सामाजिक सहभागिता के माध्यम से सेतु निर्माण करना; तथा भारत-एलएसी संबंधों में प्रसार व समरसता शामिल थे। शिष्टमंडलों के प्रमुखों तथा लैटिन अमेरिका एवं कैरिबियन क्षेत्र के विभिन्न शिष्टमंडलों के अन्य अधिकारियों ने भी भाग लिया। विदेश राज्यमंत्री एवं संसदीय मामलों के राज्य मंत्री, श्री वी. मुरलीधरन ने स्वागत भाषण दिया। अंतर्राष्ट्रीय मामलों की भारतीय परिषद के महानिदेशक, डॉ. टी.सी.ए. द्वारा शुभारंभ अभ्युक्ति दी गई तथा मुख्य संबोधन, भारत में सूरीनाम की राजदूत एच.ई. सुश्री आशना कनहाई द्वारा दिया गया।
प्रथम सत्र की अध्यक्षता कोल्बिया, वेनेजुएला एवं क्यूबा में भारत के भूतपूर्व राजदूत, श्री दीपक भोजवानी द्वारा की गई। इस सत्र में उच्च शिक्षा अकादमी मणिपाल के सहायक प्रोफेसर, भूराजनीति व अंतर्राष्ट्रीय विभाग, डॉ. अपराजिता गंगोपाध्याय, विभागाध्यक्ष, अंतर्राष्ट्रीय संबंध विभाग, गोवा विश्वविद्यालय व लैटिन अमेरिकी अध्ययन का यूजीसी केन्द्र तथा डॉ. स्तुति बनर्जी, अध्येता, अंतर्राष्ट्रीय मामलों की भारतीय परिषद वक्ता के रूप में शामिल थे। इस सत्र में स्वास्थ्य, शिक्षा, विज्ञान तथा तकनीकी, नाभिकीय ऊर्जा, अंतरिक्ष सहयोग, नवीकरणीय ऊर्जा एवं कृषि जैसे क्षेत्रों में कार्य करके भारत तथा एलएसी क्षेत्र के मध्य संबंध बनाने की आवश्यकता पर विचार किया गया। इसमें भारत और इन क्षेत्रों के मध्य संबंधों में राजनीतिक तथा आर्थिक परस्परताओं को समझते हुए भारत तथा लैटिन अमेरिका और कैरिबियन राष्ट्रों के मध्य दक्षिण-दक्षिण सहयोग की भूमिका को समझने का प्रयास किया गया।
द्वितीय सत्र अर्जेन्टिना, उरुग्वे और पैराग्वे में भारत के भूतपूर्व राजदूत श्री आर. विश्वनाथन की अध्यक्षता में हुआ। इस सत्र में श्री हरि शेषशायी, मुम्बई से एक स्वतंत्र शोधछात्र, श्री प्रणव कुमार, निदेशक, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नीति प्रभाग सीआईआई (CII), भारत तथा डॉ. नित्या नंद, वरिष्ठ अध्येता व टीईआईआई (ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान) के संबद्ध निदेशक वक्तागण शामिल थे।
तृतीय सत्र श्री अखिलेश मिश्रा, महानिदेशक, सांस्कृतिक संबंधों की भारतीय परिषद् की अध्यक्षता में हुआ था। इस सत्र, में डॉ. सोन्या सुरभी गुप्ता, यूरोपियन एवं लैटिन अमेरिकी अध्ययन केन्द्र, नेलसन मंडेला हाउस, मुजीब बाग, जामिया मिलिया इस्लामिया, डॉ. अपराजिता कश्यप, सहायक प्रोफेसर, कनाडाई, सं.रा. एवं लैटिन अमेरिकी अध्ययन (जे.एन.यू.) तथा प्रोफेसर कविता पंजाबी, तुलनात्मक साहित्य विभाग, जाधवपुर विश्वविद्यालय, वक्तागण शामिल थे। इस सत्र में जन संपर्क को बढ़ाने के प्रभावी तरीके के रूप में साहित्यिक कार्यों के अनुवाद की भूमिका पर प्रकाश डाला गया। इसमें भारत और इन क्षेत्रों के मध्य साहित्यिक आदान-प्रदान के इतिहास को भी तलाशा गया, विशेषकर रूडो और मार्केज़ के साथ रबींद्रनाथ टैगोर और कबीर की रचनाओं को।
चतुर्थ सत्र गुएना के भूतपूर्व उच्चायुक्त एवं क्यूबा के राजदूत श्री आर. राजगोपालन की अध्यक्षता में हुआ था। इस सत्र में डॉ. अतानू महापात्रा, सभापति, प्रवासी अध्ययन केन्द्र, गुजरात केन्द्रीय विश्वविद्यालय, डॉ. प्रीति सिंह, एसोसिएट प्रोफेसर, कनाडियाई, सं.रा. एवं लैटिन अमेरिकी अध्ययन केन्द्र (जेएनयू) तथा डॉ. अब्दुल गफ्फार, एसोसिएट प्रोफेसर, धनामंजूरी विश्वविद्यालय, मणिपुर, वक्तागण शामिल थे। सत्र में एलएसी क्षेत्र और भारत के प्रवासीयों की पारम्परिक प्रकृति की ओर इशारा किया और कैरेबियन और लैटिन अमेरिका में प्रवासीयों के मध्य अंतर पर भी जोर देते हुए उनके अनुभवों का दोहन करने की आवश्यकता बताई।
समापन सत्र एक गोल मेज चर्चा थी जिसकी अध्यक्षता सुश्री योजना पटेल, संयुक्त सचिव, (लैटिन अमेरिका एवं कैरेबियन प्रभाग), विदेश मंत्रालय ने की थी। अर्जेंटिना के राजदूत, चिली के राजदूत, क्यूबा के राजदूत, अल सलवाडोर के राजदूत, गुएना के उच्चायुक्त, त्रिनिदाद और टोबैगो के प्रभारी डीएफ़ेयर तथा पनामा के राजदूत ने अन्यों के मध्य सत्र में भाग लिया। सत्र का लक्ष्य भारत एवं एलएसी क्षेत्र के मध्य संबंधों को पुनर्जीवित और पुनः सक्रिय करना था तथा अंत में इसी की सिफारिश की गई।