ईरान के इस्लामी गणराज्य के मजलिस-ए शूरा-ए इस्लामी (संसद) के अध्यक्ष
महामहिम श्री अली अरदाशिर लारिजानी
के साथ
गोल मेज चर्चा
पर
इवेंट रिपोर्ट
सप्रू हाउस, नई दिल्ली
26 फरवरी 2013
ईरान के इस्लामी गणराज्य के मजलिस-ए शूरा-ए इस्लामी (संसद) के अध्यक्ष महामहिम श्री अली अरदाशिर लारिजानी के साथ 26 फरवरी 2013 को विश्व मामलों की भारतीय परिषद (आईसीडब्ल्यूए) में गोल मेज चर्चा का आयोजन किया गया था। इसकी अध्यक्षता ईरान और संयुक्त अरब अमीरात के इस्लामी गणराज्य में भारत के पूर्व राजदूत के.सी. सिंह ने की। गोल मेज चर्चा में ईरान की ओर से एक बड़ा प्रतिनिधिमंडल शामिल हुआ, जिसमें ईरान के विदेश मंत्रालय के कांसुलर और संसदीय कार्य मंत्री श्री हसन घाघवी, भारत में ईरान के राजदूत महामहिमराजदूत घोलम रजा अंसारी और ईरान के कई सांसद,भारत के प्रमुख प्रतिभागियों में राजदूत राजीव के. भाटिया, आईसीडब्ल्यूए के महानिदेशक, राजदूत कंवल सिब्बल, राजदूत के.पी. फैबियन और राजदूत सीकरी शामिल थे।
ईरान के प्रतिनिधिमंडल का स्वागत करते हुए राजदूत राजीव के भाटिया ने कहा कि चर्चा में बड़ी संख्या में प्रतिभागियों की मौजूदगी ने भारत और ईरान द्वारा साझा किए गए श्रेष्ठसंबंधों का परिचारक है। अपने भाषण में श्री अली लारिजानी ने सामरिकअध्ययनमें शामिल होने के लिए आईसीडब्ल्यूए की सराहना की और भारत की विदेश नीति निर्माण में अपनी भूमिका पर जोर दिया। इसके अलावा उन्होंने भारत को काफी महत्व दिया।
श्री लारिजानी ने ईरान की वर्तमान छवि को संदर्भित किया और कहा कि देश को पश्चिम द्वारा एक विशेष तरीके से चित्रित किया जा रहा है। ईरान ने द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से कई अलग स्थितियां देखी थी और वर्तमान स्थिति देश की अनेक स्थितियों में से सिर्फ एक थी। ईरान प्रमुख शक्तियों द्वारा खेले जा रहे शीत युद्ध का साक्षीथा। शीत युद्ध की समाप्ति के बाद दुनिया ने एक सुपर पावर कावर्चस्व देखा। हालांकि,यह अल्पकालिक था, परंतु इसके परिणाम अत्यंत घातक हुए जिसके कारण अनेक युद्ध हुए सैन्यएकपक्षीयताजो अफगानिस्तान, इराक, फिलिस्तीन और लेबनान में देखे गए। इन युद्धों के कारण अमेरिका की 'रीढ़ की हड्डी' अब टूट गई है।
श्री लारिजानी ने टिप्पणी की कि विश्वएक नए युग में प्रवेश कर रहा है; कुछ के लिए यह युग हेगेल के मंतव्यऔर 'इतिहास के अंत' के मंतव्यका प्रतिनिधित्व करता है। हालांकि, यह सिद्धांत लंबे समय तक नहीं चल सकता। एक अधिक यथार्थवादी सिद्धांत एक बहु-ध्रुवीय विश्वका है; अनेक राष्ट्र वृहत बड़ी क्षमताएं प्रदर्शितकर रहे हैं और इस दौर में अहम भूमिका निभाना चाहते हैं। ये राष्ट्रनिम्नलिखित विशेषताओं का प्रदर्शन करते हैं:
उन्होंने अपने भाषण के पहले भाग का यह कहते हुए निष्कर्ष निकाला कि सफल देश वे हैं जिनकेइस क्षेत्र में भरोसेमंद सहयोगी है; क्षेत्रीय मित्र एक-दूसरे की पूरक भूमिका निभाते हैं और पूर्व के देश एकजुट हो सकते हैं।
भारत-ईरान संबंध
भारत-ईरान संबंधों का उल्लेख करते हुए श्री लारिजानी ने ऐतिहासिक संबंधों का स्मरण करते हुए कहा कि अंग्रेजों के आने से पहले भारत में फारसी भाषा किस प्रकार व्यापक थी। उन्होंने कहा कि ईरान और भारत एक दूसरे के पूरक हो सकते हैं और विज्ञान और प्रौद्योगिकी में सहयोग के जरिए उनकी आवश्यकताओं को पारस्परिक रूप से पूरा किया जा सकता है। भारत, ईरान के जरिए भी नए बाजारों तक पहुंच प्राप्त कर सकता है।
हालांकि, श्री लारिजानी ने आगाह किया कि इस रिश्ते के 'दुश्मन' हैं जो बहु-ध्रुवीय विश्वनहीं चाहते हैं । उन्होंने विलाप करते हुए निष्कर्ष निकाला कि ये शक्तियां उभरते देशों को विभिन्न संघर्षों में व्यस्त रखती है ताकि वे सशक्तन बन सकें।
अध्यक्ष राजदूत के.सी. सिंह ने श्री लारिजानी से सहमति व्यक्त की कि भारत और ईरान एक-दूसरे को अच्छी तरह समझते हैं। हालांकि, उन्होंने सुपर पावर के रूप में अमेरिका की स्थिति पर अपनी असहमति व्यक्त की। उन्होंने कहा कि हालांकि यह सच है कि अमेरिका खाड़ी क्षेत्र से पीछे हट रहा है, लेकिन यह सच नहीं है कि अमेरिका में गिरावट आ रही है और वह इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहेगा। उन्होंने श्री लारिजानी से सहमत होकर यह निष्कर्ष निकाला कि एक बहु-ध्रुवीय विश्व के हित में है ।
प्रश्नोंत्तर सत्र में प्रतिभागियों की सक्रिय भागीदारी देखी गई। ईरान के परमाणु कार्यक्रम, सीरिया, अमेरिका और भारत-ईरान संबंधोंकी भूमिका से जुड़े मुद्दे उठाए गए और श्री लारिजानी ने इन सभी प्रश्नोंके बारे में विस्तार से उत्तरदिया।
श्री लारिजानी ने ईरान के असैन्य परमाणु ऊर्जा के अधिकार का बचाव किया । उन्होंने कहा कि आईएईए के नियमों के अनुसारईरान परमाणु सामग्री प्राप्त करने का हकदार है। हालांकि, ईरान को यह नहीं मिली और उसे अपनी आवश्कताओं की पूर्ति के लिए यूरेनियम का 20 प्रतिशत संवर्धन शुरू करने के लिए मजबूर होना पड़ा । उन्होंने यह भी कहा कि ईरान पर पश्चिमी प्रतिबंध सदैवके लिए नहीं चलने वाले हैं ।
सीरिया में चल रहे तनाव से जुड़े एक प्रश्नमें श्री लारिजानी ने कहा कि सीरिया में लोकतंत्र के लिए अंदर से राजनीतिक सुधार की आवश्यकताथी और हथियारों की आपूर्ति करके सैन्य हस्तक्षेप सही नहीं था।
भारत और ईरान के बीच सहयोग के लिए उनके दीर्घकालिक दृष्टिकोण के बारे में पूछे जाने पर श्री लारिजानी ने निम्नलिखित बिंदुओं को सूचीबद्ध किया:
रिपोर्ट: डॉ आसिफ शुजा, अध्येता, विश्व मामलों की भारतीय परिषद