"पूर्वी यूरोपीय देशों के संपादकों/पत्रकारों
के
एक प्रतिनिधिमंडल
के साथ एक बातचीत
पर इवेंट रिपोर्ट
सप्रू हाउस, नई दिल्ली
10 जनवरी, 2011
विश्व मामलों की भारतीय परिषद (आईसीडब्ल्यूए) ने 10 जनवरी, 2011 को "पूर्वी यूरोपीय देशों के संपादकों/पत्रकारों के प्रतिनिधिमंडल के साथ एक बातचीत" का आयोजन किया। पूर्वी यूरोप के निम्नलिखितसंपादकों/पत्रकारों नेबैठक में भाग लिया।
श्री जोजसेफ गाइर्गी फारकास-हंगरी
श्री पीटर नेमेथ-हंगरी
श्री लास्ज़लो बेंडा-हंगरी
श्री एंथनी जॉर्जिएफ-बुल्गारिया
सुश्री दिमाना त्रकोवा, बुल्गारिया
श्री वोजसिच जजिएलस्की-पोलैंड
सुश्री कारोलिना साइगोनेक-पोलैंड
श्री मिलान लिबिगर-चेक गणराज्य
श्री करल टोमन- चेक गणराज्य
श्री आंद्रेज मिहोलिक-स्लोवेनिया
श्री जोरान सेंकोविक-स्लोवेनिया
श्री मार्को बायोसिना-क्रोएशिया
श्री क्रिस्टियन एम्पेनु-रोमानिया
सुश्री इरिनिया स्टोइका-रोमानिया
राजदूतसुधीर देवेरे, महानिदेशक, आईसीडब्ल्यूए का अध्यक्षीय संबोधन
अध्यक्ष महोदय ने अतिथियों का भव्यस्वागत किया और आईसीडब्ल्यूए की अतीत और वर्तमान गतिविधियों के बारे में परिचय दिया।
उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत और पूर्वी और मध्य यूरोप के देशों ने पिछले कुछ वर्षों में बहुत सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए हैं। भारत अल्पविकासशील देशों में से एक था, जिनके शीत युद्ध के दौरान और बाद में इस क्षेत्र के देशों के साथ उत्कृष्ट संबंध थे।
भारत की विदेश नीति प्राथमिकता के बारे में जानकारी देते हुए अध्यक्ष ने कहा:
भारत के बुनियादी विदेश नीति के सिद्धांत अपरिवर्तित रहते हैं, नामत स्वतंत्रता, कार्रवाई की स्वतंत्रता, गुटनिरपेक्षता (शास्त्रीय अर्थों में नहीं)। हालांकि, पिछले 10-15 वर्षों में भारतीय विदेश नीति मेंकाफी नवाचार और विकास हुए हैं। जलवायु परिवर्तन, डब्ल्यूटीओ, वैश्विक वित्तीय मुद्दों आदि जैसे सुरक्षा और गैर सुरक्षा मुद्दों के मामले में भारत तेजी से वैश्विक समुदाय का प्रमुख साझेदार बनता जा रहा है।
बैठक में अध्यक्ष और प्रतिभागियों ने निम्नलिखित विषयों परचर्चा की संरचना की:
- भारत की विदेश नीति-बहस का मुख्य मुद्दा यह था-क्या भारत की विदेश नीति है? तर्क दिया गया कि भारतीय विदेश नीति विकास की प्रक्रिया में है। भारत एक गैर धमकी देने वाली शक्ति है और उसके पास संतुलनकारी भूमिका निभाने की सूक्ष्म नीति है और इसे नीति की कमी के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए ।
- गुटनिरपेक्ष आंदोलन का भविष्य (एनएएम)-यह नोट किया गया कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन में अनेक परिवर्तन हुए है और इसे फिर से परिभाषित किए जाने की आवश्यकता है।
- भारत का दुष्करपड़ोस-चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के संदर्भ में कठिन पड़ोस के मुद्दे पर चर्चा की गई। यह नोट किया गया कि भारत धैर्यपूर्वक पाकिस्तान के नेतृत्व और सशस्त्र बलों में मन परिवर्तन की प्रतीक्षा कर रहा है ताकि वे आतंकवाद को विदेश नीति के साधनके रूप में इस्तेमाल किए बिना भारत के साथ रह सकें। अफगानिस्तान की स्थिति अस्थिर और नाजुक बताई गई अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में भारत के योगदान को स्वीकार किया गया जबकि 2014में अफगानिस्तान से नाटो सेनाओं की वापसी और 'उदारवादी तालिबान' के विचार जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रश्नउठाया गया। चीन भारत के लिए एक सैद्धांतिकविदेश नीति चुनौती बना हुआ है। एक तरफ साझेदारी और दूसरी तरफ प्रतिस्पर्धा का जिक्र चीन के प्रति भारत की नीति के रूप में किया गया।
- सुधारितसंयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में भारत की स्थायी सीट की लालसा। यह सुझाव दिया गया था कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् सहित संयुक्त राष्ट्र में सुधार की आवश्यकता है और भारत सुधारितसंयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में स्थायी सीट का हकदार है।
- भारत के बुनियादी ढांचे मेंविकास-भारत की बुनियादी ढांचे के विकास की खोज और आगामीवर्षों में एक ट्रिलियन डॉलर खर्च करने की उसकी योजना पर ध्यान दिया गया । इसमें स्पष्ट किया गया कि विदेशी कंपनियां इस प्रक्रिया में शामिल हैं और भारत में उनका स्वागत है।
- रूस और पूर्वी यूरोप के बीच घनापन-यह तर्क दिया गया था कि रूस और पूर्वी यूरोप के बीच घनापन मुख्य रूप से रूस पर निर्भर करता है । नाटो के साथ रूस के संबंधों के संदर्भ में यह सुझाव दिया गया था कि दोनों एक साथ होसकते हैं और यह रूस के लिए 1980 के दशक में खोए हुए को पाने का एक अच्छा अवसर हो सकता है।
- पूर्वी यूरोप और भारत- यह उल्लेख किया गया था कि पूर्वी यूरोप के देश भारत को एक निवेशक (जैसा कि हंगरी में टाटा द्वारा किया गया) के रूप में भी देखते हैं और न केवल बाजार के रूप में।
पूर्वी यूरोपीय देशों के मुलाजिमों को लगा कि भारत एक उभरती हुई वैश्विक शक्ति है। इसके अलावा भारत को वैश्विक समुदाय को अपनी विदेश नीति समझाने की आवश्यकताहै।
रिपोर्ट: संजीव कुमार, अध्येता, विश्व मामलों की भारतीय परिषद