डॉ. धनुराज, अध्यक्ष, सार्वजनिक नीति अनुसंधान केंद्र, कोच्चि
राजदूत टीपी श्रीनिवासन,
विशिष्ट वक्तागण और प्रतिभागियों,
आईसीडब्ल्यूए द्वारा अपने एमओयू पार्टनर - कोच्चि स्थित सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी रिसर्च (सीपीपीआर) के साथ एक सहयोगी अनुसंधान परियोजना के हिस्से के रूप में संयुक्त रूप से आयोजित 'रणनीतिक भविष्य: क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा जटिलताएं' विषय पर वेबिनार को संबोधित करते हुए मुझे खुशी हो रही है।
हिंद प्रशांत क्षेत्र एक ऐसी नई भौगोलिक संरचना है जो दो विशाल जल क्षेत्रों - हिंद और प्रशांत महासागरों को निर्बाध रूप से जोड़ती है। इस कारण से इस क्षेत्र को एशियाई सभ्यताओं के जुड़ाव और ऐतिहासिक समुद्री संपर्कों के एक बड़े माध्यम के रुप में देखा जाता है जिसे पार करते हुए अरब, फारस, भारत, दक्षिण पूर्व एशिया और चीन के व्यापारियों ने फलते फूलते समुद्री उद्यम का निर्माण किया।
21वीं सदी में यह क्षेत्र राजनीतिक-राजनयिक-आर्थिक-रणनीतिक जैसे कई कारणों की वजह से अत्यधिक महत्व का हो गया।हिंद-प्रशांत देश वैश्वीकरण के लाभों का दोहन करने के लिए दृढ़संकल्प हैं; ऐसा कई द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौतों और व्यवस्थाओं में परिलक्षित होता है जो एकीकरण और अन्योन्याश्रयता को बढ़ावा देते हैं जिससे आर्थिक विकास और समृद्धि आती है।
एक ओर हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए जहां यह एक शुभ संकेत है वहीं दूसरी ओर यह क्षेत्र अभूतपूर्व सामरिक अशांति,बड़ी ताकतों के बीच प्रतिस्पर्धा और क्षेत्रीय शक्तियों के बीच टकराव की वजहों का भी अनुभव कर रहा है। एक शांतिपूर्ण क्षेत्र के लिए तय मानदंडों और सिद्धांतों को चुनौती दी जा रही है।
दूसरे स्तर पर, का समुद्री क्षेत्र गैर-पारंपरिक खतरों और चुनौतियों का भी हिस्सा बन रहा है, जिसने सामूहिक सुरक्षा विकल्पों को जन्म दिया है। हिंद प्रशांत क्षेत्र के देश क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने के लिए समुद्री माध्यम का उपयोग कर रहे हैं जो हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (आईओआरए), आसियान क्षेत्रीय मंच (एआरएफ), पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईएएस), एडीएमएम प्लस,आसियान समुद्री मंच (एएमएफ), जिबूती आचार संहिता (डीसीओसी) और हिंद महासागर आयोग (आईओसी) जैसे समुद्री बहुपक्षवाद' में परिलक्षित है।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ये प्रतिस्पर्धी, सामूहिक और अभिसरण सुरक्षा प्रतिमान इस क्षेत्र के देशों के लिए जटिल चुनौतियां पेश करते हैं ऐसे में उन्हें स्थिर, शांतिपूर्ण और समृद्ध नियम-आधारित समुद्री व्यवस्था के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अपने-अपने कार्यों को इसके अनुरूप प्राथमिकता देनी चाहिए।
यह हमारे ध्यान देने योग्य है कि हिंद प्रशांत क्षेत्र की भू-राजनीतिक इकाई में कई उप-क्षेत्र शामिल हैं, जिनकी अपनी अंतर-राज्यीय और अंतर-क्षेत्रीय चुनौतियां हैं और साथ ही अवसर भी हैं। समुद्री खतरों और चुनौतियों के लिए सामूहिक समाधान की खोज इस क्षेत्र की स्थिरता और व्यवस्था में योगदान कर सकती हैं। इसके लिए इन क्षेत्रों की सुरक्षा जटिलताओं, उनकी संबद्धता और उनकी पारस्परिक रणनीतिक चिंताओं के गहन अध्ययन की आवश्यकता है।
पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र वर्तमान में महान शक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा का केन्द्र बन गया है जिससे क्षेत्रीय तनाव बढ़ रहा है।
बंगाल की खाड़ी में, बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल (बिम्सटेक) जैसी सहकारी पहल के तहत; तटीय देश जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण और पारिस्थितिकी और मानव विकास जैसे मुद्दों पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
उत्तरी अरब सागर सुरक्षा क्षेत्र में समुद्री डकैती, आतंकवाद जैसे गैर-पारंपरिक खतरे मौजूद हैं। इसके साथ ही पारंपरिक खतरे और चुनौतियां भी बड़ी हैं जो भविष्य में और भयावह रूप ले सकती हैं।
हिंद महासागर के सुरक्षा क्षेत्र में भी चुनौतियों और खतरों का एक वातावरण मौजूद है जिनका स्वरूप गैर-पारंपरिक है। हालांकि, आईओआरए और क्षेत्रीय देशों ने इससे निबटने के लिए सामूहिक रूप से एक सक्षम एजेंडा तैयार किया है। जिबूती आचार संहिता और हिंद महासागर आयोग में भारत भी एक महत्वपूर्ण पर्यवेक्षक के रूप में शामिल है।
भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण रखता है और इसके साथ ही वह "स्वतंत्र और खुले, समावेशी और नियम आधारित, सुरक्षित और समृद्ध हिंद-प्रशांत क्षेत्र" के लिए प्रतिबद्ध है। 9 अगस्त को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत की पहल पर समुद्री सुरक्षा के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की उच्च-स्तरीय खुली बहस की अध्यक्षता करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बने।
इसने देखा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने सागर (क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास) के भारत के दृष्टिकोण से संबंधित पांच सिद्धांतों के आधार पर समुद्री सुरक्षा बढ़ाने और समुद्री खतरों और चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए पांच सिद्धांतों पर आधारित अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का आह्वान किया। ये हैं: (i)वैध समुद्री व्यापार के लिए, बाधाओं को दूर करना (ii) अंतरराष्ट्रीय कानून के आधार पर विवादों का शांतिपूर्ण समाधान, (iii) प्राकृतिक आपदाओं और सरकारी समर्थन के बिना समुद्री क्षेत्र के लिए खतरा पैदा करने वालों से संयुक्त रूप से लड़ना, (iv) समुद्री पर्यावरण और समुद्री संसाधनों का संरक्षण, और (v) जिम्मेदार समुद्री संपर्क।
प्रधानमंत्री ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आपसी समझ और सहयोग के आधार पर एक खुला और समावेशी ढांचा बनाने का आग्रह किया जो एक सुरक्षित और स्थिर समुद्री व्यवस्था सुनिश्चित करता हो। समुद्री सुरक्षा और संरक्षा को बढ़ाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के सिद्धांतों को रेखांकित करने वाले अध्यक्ष के एक वक्तव्य को सर्वसम्मति से बहस के अंत में अपनाया गया था। यह समुद्री सुरक्षा के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा अपनाया गया पहला व्यापक दस्तावेज बना। समुद्री संरक्षा और सुरक्षा पर अधिक ध्यान देने के साथ, यह सम्मेलन काफी सामयिक है। मैं क्षेत्रीय सुरक्षा जटिलताओं के नजरिए से हिंद-प्रशांत क्षेत्र का अध्ययन करने और समझने के लिए सीपीपीआर की सराहना करता हूं। हम सहयोगी अनुसंधान परियोजना के तहत प्रस्तावित इसके प्रकाशनों को प्राप्त करने की आशा करते हैं।
धन्यवाद!
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