2021 में, बीस वर्ष से ज़्यादा समय से चल रहा अपना सैन्य अभियान समाप्त करते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका ने अफ़गानिस्तान से अपनी सेना वापस बुला ली। अफ़गान राष्ट्रीय सुरक्षा बलों और निर्वाचित सरकार दोनों के पतन के पश्चात् तालिबान सरकार बनाकर सत्ता में वापस आ गया। हालांकि, अफ़गानिस्तान में कुछ हद तक स्थिरता आई है, लेकिन मानवीय संकट अभी बना हुआ है, अर्थव्यवस्था तबाह हो गई है और देश को अंतर्राष्ट्रीय सहायता की ज़रूरत है। आज, तालिबान शासन के अंतर्गत अफ़गानिस्तान का सुरक्षा परिदृश्य विरोधाभासी रूप से ऐसा नज़र आता है जो पहले की तुलना में काफ़ी शांतिपूर्ण है, हालाँकि हिंसा प्रभावित ऐसे कुछ क्षेत्र अभी भी हैं जो देश और क्षेत्र की सुरक्षा को ख़तरा पैदा करते हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका ने तालिबान या इसकी सरकार को मान्यता नहीं दी है और तालिबान के ऐसे प्रमुख सदस्यों के ख़िलाफ़ लंबे समय से प्रतिबंध लगाए हुए हैं, जो अब सरकार के प्रमुख सदस्य हैं। ऐसे में संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए दुविधा की स्थिति है क्योंकि यह स्पष्ट है कि तालिबान को किसी प्रभावी राजनीतिक या सशस्त्र विरोध का सामना नहीं करना पड़ रहा है; और वे निकट भविष्य में भी सत्ता में बने रह सकते हैं। इसके लिए अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को तालिबान के साथ मानवीय संकट को रोकने और अफगानिस्तान में स्थिरता के रणनीतिक लक्ष्य को हासिल करने के लिए बीच का रास्ता तलाशने की आवश्यकता होगी। इसका एक विकल्प यह है कि, वे तालिबान को कुछ बदलाव करने और अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का पालन करने हेतु मजबूर करने के लिए अफगानिस्तान को अलग-थलग करने का रास्ता अपना सकते हैं। ऐसे मानदंडों में महिलाओं और लड़कियों को समान अधिकार देना, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा करना, वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित करना, लोगों के कल्याण के लिए विकास कार्य करना व कट्टरता खत्म करने की पहल करना शामिल है।
इस संदर्भ में, इस शोध-पत्र में अफगानिस्तान के संबंध में संयुक्त राज्य अमेरिका के नीति निर्माताओं के सामने आने वाली मौजूदा चुनौतियों का विश्लेषण किया गया है।
तालिबान की सत्ता में वापसी और संयुक्त राज्य अमेरिका के सामने चुनौतियाँ
अमेरिका द्वारा अपनी सेना हटाने की योजना अचानक नहीं बल्कि लंबे समय से चल रही थी। सैनिकों को हटाने का पहली बार जिक्र 2009 में ओबामा प्रशासन द्वारा किया गया था। हालाँकि, उनका प्रशासन ऐसा करने में असमर्थ रहा। इसके बाद, राष्ट्रपति ट्रम्प ने तालिबान के साथ सैनिकों की वापसी समझौते पर बातचीत की और सैनिकों की संख्या में कमी शुरू कर दी। राष्ट्रपति बिडेन ने 1 मई 2022 की समयसीमा को टाल दिया, जिस पर उनके पूर्ववर्ती राष्ट्रपति ने बातचीत की थी, लेकिन आखिरकार अगस्त 2022 के अंत तक सभी सैनिकों को वापस बुला लिया।
भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा
हालांकि, संयुक्त राज्य अमेरिका ने अमेरिका के सबसे लंबे समय तक चले युद्ध से अपनी सेना हटा ली, लेकिन इससे एक शक्ति शून्यता की स्थिति भी पैदा हो गई, क्योंकि सैनिकों की वापसी से अफगानिस्तान में अंतर्राष्ट्रीय सहायता भी खत्म हो गई और कई नागरिक समाज संगठन भी वहां से हट गए, जिसकी आवश्यकता नहीं थी।
चीन ने इस कमी को भरने की कोशिश की है और दो मुख्य कारणों से तालिबान के साथ अपनी भागीदारी बढ़ाई है। पहला है आतंकवाद का मुद्दा। चीन सीमा पर कट्टरपंथी और आतंकवादी समूहों के सक्रिय होने को लेकर आशंकित है, खासकर चीन के झिंजियांग प्रांत की सीमा से लगे क्षेत्रों में। चीन के लिए दूसरा कारण आर्थिक है। क्षेत्र में अस्थिरता से बेल्ट एंड रोड पहल और पाकिस्तान के साथ आर्थिक गलियारे सहित व्यापक चीनी आर्थिक जुड़ाव प्रभावित होंगे। इसके अलावा, चीन अफगानिस्तान में उपलब्ध अप्रयुक्त खनिज संसाधनों में भी रुचि रखता है। यूएस जियोग्राफिकल सर्वे (यूएसजीएस)[i] की रिपोर्ट और देश की सैटेलाइट मैपिंग के अनुसार, यूएसजीएस का अनुमान है कि 900 बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य के खनिज भंडार कई अलग-अलग रूपों में मौजूद हैं, जिनमें तांबा, लोहा, सोना और सबसे खास तौर पर एक मिलियन मीट्रिक टन से अधिक दुर्लभ पृथ्वी तत्व शामिल हैं।[ii] कई विशेषज्ञों को लगता है कि यह एक संभावित अनुमान है क्योंकि अभी और खोज की जानी बाकी है। तालिबान इन खनिजों के निष्कर्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय निवेश को लेकर तैयार है और चीन को तांबे व लोहे की खदानें बनाने का अनुबंध दिए गए हैं। हालाँकि, सुरक्षा चिंताओं के कारण निष्कर्षण एक समस्या बनी हुई है। सुरक्षा के अलावा, इन संसाधनों को निकालने के लिए ऊर्जा संसाधनों की उपलब्धता भी संदिग्ध बनी हुई है। इसके साथ ही, अधिकारियों के बीच भ्रष्टाचार की चिंता, विशेष रूप से गरीब देशों में निष्कर्षण उद्योगों की नकारात्मक छवि की अधिक विकसित अर्थव्यवस्थाओं द्वारा उनका शोषण किया जा रहा है और पर्यावरण संबंधी चिंताएँ हैं।
चीन वैश्विक और क्षेत्रीय आधिपत्य की अपनी महत्वाकांक्षा को ध्यान में रखते हुए अफ़गानिस्तान में कोई भूमिका निभाना चाहता है। हालाँकि, चीन द्वारा वहां की अर्थव्यवस्था में और अधिक निवेश करने से पहले उसके स्थिर होने का इंतज़ार करने की संभावना है। अपनी ओर से, तालिबान चीन को अपनाने के लिए तैयार रहा है, इसे अपना महत्वपूर्ण भागीदार बताते हुए और यह कहते हुए कि वे अफ़गानिस्तान के विकास हेतु चीन के साथ काम करने को लेकर उत्सुक हैं।
चीन के अलावा, संयुक्त राज्य अमेरिका के नीति निर्माताओं को अफ़गानिस्तान में रूस के हित और रूस व चीन के बीच हितों के बढ़ते संबंधों को लेकर भी सावधान रहना होगा। काबुल से अमेरिकी सैनिकों की वापसी को वाशिंगटन की शक्ति कमजोर होना माना गया था; मास्को अपने पड़ोस में अस्थिरता नहीं चाहता है। अफ़गानिस्तान मध्य एशियाई देशों की सीमा से सटा हुआ है, और रूस यह सुनिश्चित करना चाहेगा कि अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी समूहों द्वारा ऐसी कोई सीमा पार घुसपैठ न हो जो उसके प्रभाव क्षेत्र की स्थिरता को ख़तरा बन सकती है। रूस नशीली दवाओं की तस्करी और हथियारों के प्रसार जैसे गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरों से भी अवगत है और इसे संबोधित करने हेतु मध्य एशियाई देशों और अफ़गानिस्तान के साथ काम कर रहा है। हालांकि, अफगानिस्तान में अपने पिछले अनुभव को देखते हुए, रूस अफगानिस्तान की घरेलू राजनीति में बहुत अधिक शामिल नहीं होना चाहेगा। ऐसी संभावना है कि रूस तालिबान और उसके नेताओं पर अधिक अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों को रोकने, तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार के अलगाव को समाप्त करने और अफगानिस्तान तथा यूरेशियन क्षेत्र के बीच संबंधों में मदद करने वाला मध्यस्थ बनने के लिए चीन के साथ सहयोग करना जारी रखेगा। हालांकि रूस के पास क्षेत्रीय सुरक्षा की चिंताओं का कोई ठोस समाधान नहीं हैं, फिर भी, चीन के साथ, इसने संयुक्त राज्य अमेरिका से कोई भी जुड़ाव न होने की स्थिति में अफगानिस्तान में अपनी उपस्थिति स्थापित की है।
संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए, चीन और रूस के बीच बढ़ती निकटता और अफगानिस्तान सहित अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर उनका साथ आना एक चुनौती पेश करते हैं। चीन और रूस तालिबान के सदस्यों पर प्रतिबंधों से संबंधित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के कई प्रस्तावों को रोकने में सफल रहे हैं।
इसी पड़ोस में आने वाले पाकिस्तान ने तालिबान की वापसी को अफगानिस्तान के साथ संबंधों को फिर से स्थापित करने का अवसर माना था। हालांकि, ऐसे संकेत हैं कि तालिबान की वापसी इस्लामाबाद के लिए भी कुछ चुनौतियां पेश कर रही है। तालिबान की वापसी ने पाकिस्तान स्थित कई आतंकवादी संगठनों के मनोबल को बढ़ा दिया है। पाकिस्तान में कई आतंकवादी हमले हुए हैं जिसमें कई निर्दोष लोगों की जान गई है।
पाकिस्तान सरकार ने आतंकवाद विरोधी अभियानों में अपनी उत्तरी सीमा पर सैन्य हमले किए हैं। तालिबान ने इस हमले को अपनी संप्रभुता का उल्लंघन बताया है। अफ़गानिस्तान-पाकिस्तान संबंध उनकी साझा 1,600 मील की सीमा पर लंबे समय से चल रहे और जातीयता के रंग से रंगे विवाद से और भी जटिल हो गए हैं, जिस पर तालिबान और पाकिस्तानी सरकारी बलों के बीच बीच-बीच में झड़पें होती रही हैं, साथ ही पाकिस्तान में अफ़गान शरणार्थियों की भारी मौजूदगी भी है। नवंबर 2023 में, पाकिस्तान की सरकार ने अचानक अपंजीकृत अफ़गान शरणार्थियों को पाकिस्तान छोड़ने का आदेश दिया, जिससे हज़ारों लोग विस्थापित हो गए, जिससे तालिबान और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया। इससे अफ़गानिस्तान में मानवीय संकट और बढ़ गया है और वापस लौटने वाले शरणार्थियों की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ गई है।
पाकिस्तान खुद ही आंतरिक राजनीतिक और आर्थिक संकट का सामना कर रहा है; और ऐसे में अफगानिस्तान की स्थिति भी, इसके क्षेत्र की स्थिरता के लिए चिंता का विषय है, जिस पर संयुक्त राज्य अमेरिका के अगले प्रशासन को ध्यान देने की आवश्यकता है।
आतंकवाद का मुकाबला
अमेरिका के लिए, अफगानिस्तान के प्रति उसकी नीति में आतंकवाद का मुकाबला एक प्राथमिक चिंता का विषय बना हुआ है। अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत (आईएसकेपी) की अफगानिस्तान में उपस्थिति अधिक है। आईएसकेपी ने तालिबान की वापसी का विरोध किया है और तालिबान अधिकारियों के खिलाफ कई हमले किए हैं और नागरिकों व जातीय अल्पसंख्यकों को मार डाला है। खुफिया एजेंसियों की चिंता यह है कि आईएसकेपी पड़ोसी देशों में घुसपैठ करने के लिए अफगानिस्तान के भीतर के क्षेत्रों पर नियंत्रण चाहता है, यह अफगानिस्तान के बाहर भी आतंकी हमलों में शामिल है, जैसे कि ईरान और रूस में, समूह की यूरोपीय धरती पर हमले करने की इच्छा के साथ। अमेरिकी खुफिया समुदाय के वार्षिक जोखिम आकलन (फरवरी 2024) के अनुसार, "आईएसआईएस-खुरासान अफगानिस्तान में विदेशी हितों के खिलाफ हमलों को बढ़ाकर तालिबान शासन की वैधता को कमजोर करने वाले हमले करने की कोशिश कर रहा है।"[iii]
अल-कायदा का तालिबान के साथ बहुत करीबी रिश्ता है, और अमेरिकी और संयुक्त राष्ट्र द्वारा लगाए गए कई प्रतिबंधों के बावजूद ये संबंध नहीं टूटे हैं। अल-कायदा का अफ़गानिस्तान से काम करना जारी है, और चिंता यह है कि यह अफ़्रीका में अपने नेटवर्क को मज़बूत कर रहा है और अमेरिका तथा उसके सहयोगी हितों पर आगे भी हमला करना जारी रखेगा। अमेरिकी खुफिया एजेंसी के अनुसार, "इज़राइल के खिलाफ़ हमास के हमले से प्रेरित अल-कायदा और आईएसआईएस दोनों ने अपने समर्थकों को इज़रायली और अमेरिकी हितों के खिलाफ़ हमले करने का निर्देश दिया है"।[iv] सैनिकों वापसी की शुरुआत से ही, अमेरिकी अधिकारियों ने यह कहा था कि वे अफ़गानिस्तान के बाहर के ठिकानों का उपयोग करके ज़मीन पर सैन्य उपस्थिति के बिना अफ़गानिस्ता में मौजूद आतंकवादी खतरों से निपटने में सक्षम हैं। यह रणनीति पहले से चुनी गई अफ़गान सरकार द्वारा दिए जाने वाले समर्थन पर आधारित थी। तालिबान के सत्ता में आने के साथ, संयुक्त राज्य अमेरिका को खुफिया जानकारी जुटाने की अपनी नीति में बदलाव करना पड़ा, लेकिन यह एक मुश्किल बनी हुई है। राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति 2022 में बताया गया है कि संयुक्त राज्य अमेरिका अपनी रणनीति, यानी "अमेरिका के नेतृत्व वाली, साझेदार-सक्षम" को बदलकर "साझेदार-नेतृत्व वाली, अमेरिका-सक्षम" करेगा। ऐसा खतरों को रोकने, उनका पता लगाने और उनसे निपटने के लिए प्रणालियों के निर्माण या विस्तार करके किया जाएगा, साथ ही प्रभावी शासन का समर्थन करने, स्थिरीकरण और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और चल रहे संघर्षों को हल करने के लिए अमेरिका और साझेदारों के प्रयासों[v] का लाभ उठाकर कट्टरपंथ के मूल कारणों को संबोधित किया जाएगा, जो कि सहयोगियों के साथ मिलकर अफगानिस्तान में वापसी के बाद स्थिरता लाने की जिम्मेदारी उठाने की अमेरिका की इच्छा को दर्शाता है।
मानवीय संकट और आर्थिक संकुचन
शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त की 2023 वैश्विक रुझान रिपोर्ट के अनुसार, 2023 के अंत तक, वैश्विक स्तर पर दर्ज किए गए अफ़गान शरणार्थियों की संख्या 6.4 मिलियन थी, जो शरणार्थियों की दुनिया में सबसे अधिक संख्या में से एक है।[vi] अफ़गान लोगों को हिंसा, अति गरीबी और खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ रहा है, राष्ट्र अपने लोगों को भोजन, शिक्षा व स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय सहायता पर निर्भर है। दशकों के संघर्ष और अस्थिरता ने अफ़गानिस्तान की अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया है। जारी संघर्ष के अलावा, अफ़गानिस्तान बार-बार होने वाली प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित हुआ है, जिसमें सूखा, बाढ़ और भूकंप शामिल हैं, जिससे विस्थापित लोगों और वापस लौटने वालों सहित हज़ारों अफ़गानों को तत्काल सहायता की आवश्यकता है। महिलाओं और बच्चों पर इसका प्रभाव विशेष रूप से विनाशकारी रहा है। महिलाओं और लड़कियों के मौलिक अधिकार खतरे में हैं, और कई बच्चे स्कूल जाने से वंचित हैं। इसके साथ ही, बच्चों, विशेषकर लड़कियों में कुपोषण बहुत अधिक है। तालिबान ने महिलाओं के काम करने पर भी प्रतिबंध लगा दिए हैं, जिससे अर्थव्यवस्था के पुनर्विकास पर और असर पड़ा है, आधी आबादी अपने लिंग के कारण अपना योगदान देके योग्य नहीं है, जिससे घरों की घरेलू अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है। संयुक्त राज्य अमेरिका ने बड़े पैमाने पर विस्थापन और महिलाओं, लड़कियों और अल्पसंख्यकों के साथ किए जा रहे व्यवहार पर चिंता व्यक्त की है।
स्थिति से अवगत, संयुक्त राज्य अमेरिका ने अफ़गानिस्तान को मानवीय सहायता दी है और अगस्त 2021 के मध्य से अफ़गानों के लिए लगभग 2 बिलियन डॉलर की मानवीय सहायता प्रदान करते हुए अफ़गानिस्तान में सबसे बड़ा मानवीय दाता है।[vii] हालाँकि, समस्या की भयावहता को देखते हुए, प्रदान की गई सहायता अपर्याप्त है। हालांकि, संयुक्त राज्य अमेरिका सहित कई देश अफ़गान लोगों की दुर्दशा को लेकर चिंतित है और देश को अंतर्राष्ट्रीय सहायता का समर्थन करते हैं, तालिबान सरकार द्वारा मानवीय सहायता के लिए दिए गए धन को डायवर्ट करने या उसका दुरुपयोग करने की संभावना और अतीत में ऐसा करने के आरोपों ने ऐसी सहायता मिलना मुश्किल बना दिया है। सहायता में रुकावट और यह बात कि संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके साझेदारों ने विश्व बैंक, आईएमएफ और एशियाई विकास बैंक द्वारा दी जाने वाली बुनियादी ढांचा परियोजनाओं और अन्य प्रकार की सहायता को निलंबित कर दिया है, साथ ही अमेरिकी बैंक खातों में रखे अफगान सरकार के भंडार को फ्रीज कर दिया है, ने आर्थिक पतन को और बढ़ा दिया है।
संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए सामने वास्तविकता यह है कि मानवीय सहायता की तत्काल आवश्यकता है, लेकिन सहायता देना कोई दीर्घकालिक समाधान नहीं है, और अफगानिस्तान को एक व्यवहार्य, आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था और प्रभावी शासन तंत्र बनाने की जरुरत है। अमेरिकी नीति निर्माताओं के लिए व्यावहारिक समस्या सबसे पहले यह समझने की है कि वह तालिबान के अधीन अफगानिस्तान को किस स्तर तक सहायता प्रदान कर सकता है और इस सहायता का उपयोग करने हेतु वह तालिबान पर क्या नियम व शर्तें, यदि कोई हों, लगा सकता है। दूसरा, यह कैसे सुनिश्चित किया जाए कि तालिबान द्वारा सहायता को अन्य उद्देश्यों के लिए डायवर्ट न किया जाए।
निष्कर्ष
अफ़गानिस्तान की रणनीतिक स्थिति, चीन और रूस के बढ़ते हितों से निपटने की जरुरत, और आतंकवाद-रोधी जानकारी हेतु क्षेत्र की निगरानी करने और मानवीय संकट का समाधान तलाशने की आवश्यकता कुछ ऐसी चुनौतियाँ हैं, जिनका समाधान करने की कोशिश अमेरिका अफ़गान नीति बनाते समय कर रहा है। भले ही अमेरिका तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार को मान्यता नहीं देता है, और उसके सामने कोई अन्य विपक्ष नहीं है, लेकिन उसे इस सवाल का जवाब तलाशना होगा कि क्या वह तालिबान से अलग-थलग रह सकता है। लंबे समय तक अलग-थलग रहने से चीन और रूस को अपने संबंधों को गहरा करने का समय मिल जाएगा, फिर भी तालिबान के साथ जुड़ाव से अमेरिका की आतंकवाद-रोधी नीतियों पर इसके अपने प्रभाव होंगे। दूसरा सवाल यह है कि तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार के साथ कितना जुड़ाव होना चाहिए और क्या अफ़गानिस्तान से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने हेतु जुड़ाव ही अच्छा रास्ता है। तीसरी बुनियादी चुनौती यह है कि अमेरिकी नीति की प्राथमिकताओं : अफ़गानिस्तान को स्थिर करने और अफ़गानों को सहायता प्रदान करने पर कैसे किया जाए, जिन्हें समेटना मुश्किल हो सकता है, ऐसी कार्रवाइयों से बचते हुए जो तालिबान के कट्टरपंथी विचारधारा को लाभ पहुँचा सकती हैं।
खराब आर्थिक विकास और मानवीय संकट के कारण भूमि से घिरा अफगानिस्तान फिर से अनिश्चित भविष्य का सामना कर रहा है। यह अनिश्चितता क्षेत्र की शांति और सुरक्षा के लिए खतरा है। आगामी ट्रम्प प्रशासन की अफगान नीति अभी तक रेखांकित नहीं है, फिर भी, आतंकवाद से संबंधित चिंताओं, चीन और रूस के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका के बढ़ते तनाव और क्षेत्र में इनकी बड़ी भूमिका के साथ, आगामी प्रशासन अमेरिकी भागीदारों के साथ मिलकर अफगानिस्तान की वजह से आने वाली चुनौतियों का सबसे व्यवहार्य समाधान तलाशने के लिए काम करेगा।
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*डॉ. स्तुति बनर्जी, वरिष्ट शोध अध्येता, भारतीय वैश्विक परिषद, नई दिल्ली।
अस्वीकरण: व्यक्त किए गए विचार निजी हैं।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
पाद-टिप्पणियां
[i] Reports are available at https://www.usgs.gov/special-topics/usgs-projects-in-afghanistan/publications
[ii] https://www.newsecuritybeat.org/2012/07/new-usgs-report-and-maps-highlight-afghanistans-mineral-potential-but-obstacles-remain/
[iii] Office of the Director of National Intelligence, “Annual Threat Assessment of the U.S. Intelligence Community (February 2024),” https://www.dni.gov/files/ODNI/documents/assessments/ATA-2024-Unclassified-Report.pdf, Accessed on 07 November 2024.
[iv] Ibid.
[v] The White House, “National Security Strategy 2022,” https://www.whitehouse.gov/wp-content/uploads/2022/10/Biden-Harris-Administrations-National-Security-Strategy-10.2022.pdf, Accessed on 07 November 2024.
[vi] The White House, “National Security Strategy 2022,” https://www.whitehouse.gov/wp-content/uploads/2022/10/Biden-Harris-Administrations-National-Security-Strategy-10.2022.pdf, Accessed on 07 November 2024.
[vii] USAID, “Afghanistan,” https://www.usaid.gov/humanitarian-assistance/afghanistan#:~:text=The%20U.S.%20Government%20is%20the,from%20USAID%E2%80%94%20since%20August%202021.Accessed on 08 November 2024.