रूस और ईरान के बीच राजनीतिक और सैनिक संबंध विशेष रूप से उस समय विस्तारित हुए हैं जबकि सीरिया का संकट अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच गया था । रूस और ईरान के बीच निकट मैत्रीपूर्ण संबंधों के कारण 2013 में दो महत्वपूर्ण करार हुए अर्थात सीरिया के द्वारा रसायनिक हथियारों को समाप्त करने संबंधी करार तथा ईरान और पी5+1 के बीच नाभिकीय पाबंदी के संबंध में पक्षपातपूर्ण व्यवहार ।
रूस और ईरान के बीच संबंध जटिलता और पेचीदगी लिए हुए हैं । सोवियत संघ के जमाने में ईरान को यह खतरा था कि रूस ईरान की खाड़ी में अपनी साम्राज्यवादी प्रवृत्ति अपनाकर ईरान को साम्यवादी देश बना देगा । 1975-1989 के दौरान अफगानिस्तान पर हमले, 1980-1988 के दौरान ईरान-इराक युद्ध पर सोवियत यूनियन की कड़ाई से तटस्थ रहने की नीति और युद्ध के अंतिम चरण में सोवियत यूनियन द्वारा इराक को सैनिक सहायता ऐसे मुद्दे थे जिससे दोनों देशों के बीच मामलों में जटिलता आई तथापि राष्ट्रीय हितों और बदलती हुई राष्ट्रीय नीतियों के कारण मास्को और तेहरान के बीच संबंधों में सुधार आया है जो अब निरंतर आगे बढ़ रहे हैं ।
1990 के दौरान रूस और ईरान को पश्चिमी जगत से अलगाव का मुंह देखना पड़ा । पश्चिमी देश रूस की साम्यवादी नीति और उसके द्वारा महाशक्ति बनने संबंधी महत्वकांक्षा को अच्छी नजर से नहीं देखते थे । दूसरी ओर ईरान द्वारा अमेरिकी दूतावास के कार्मिकों को नजरबंद करना और ईरान-इराक युद्ध के दौरान अरब जगत को ईरान से उत्पन्न खतरे के कारण पृथककरण की यह प्रक्रिया अमल में आई ।
रूस का अलगाव न्यू अब्रोड, मध्य एशिया, ट्रांस कोकेशिया, पश्चिम एशिया और ईरान की भूरणनीतिक अवस्थिति के कारण अमल में आया । जहां तक ईरान का मामला है वह अनिच्छुक रूप से रूस का साथ दे रहा था तथापि पश्चिम और मध्य एशिया में अपने भूरणनीतिक हितों के कारण उसे रूस के साथ अपने संबंध बहाल करने पड़े । तेहरान ने मास्को से हथियार खरीदने के साथ-साथ अपने नाभिकीय कार्यक्रम के लिए प्रौद्योगिकीय सहायता भी प्राप्त की । सोवियत युग समाप्त होने के बाद रूस और ईरान अपनी भूराजनीतिक स्थिति के कारण तर्कसंगत आधार पर परस्पर सहयोग के लिए मजबूर हुए तथापि इन परस्पर संबंधों में बदलाव भी आया ।
1990 के अंत के दौरान और 2009 में रूस और अफ्रीका के बीच नई नीति शुरू होने से उनके द्विपक्षीय संबंधों में बिगाड़ शुरू हुआ । इस बिगाड़ का कारण रूस द्वारा ईरान को एस-300 रक्षा प्रणाली देने से इंकार, ईरान के नाभिकीय कार्यक्रम में तटस्थता, कैस्पियन क्षेत्र और मध्य एशिया में आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव की बाबत गैर अनुकूल प्रतिस्पर्द्धा थी । 2012 से लेकर अब तक अरब स्प्रिंग की शुरुआत और सीरिया से संबंधित संकट के गहराने से दोनों देशों के बीच द्वीपक्षीय संबंध आगे बढ़ने शुरू हुए ।
रूस और ईरान मध्य एशिया, काकेशस और सीरिया में महत्वपूर्ण चुनौतियों का मिलकर सामना कर रहे हैं । 2012 में दोनों के बीच एक सुरक्षा समझौता हुआ जिसमें अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों से संबंधित आसूचना का आदान-प्रदान शामिल था । रूस ने ईरान के नागर-नाभिकीय कार्यक्रम में सहायता दिए जाने के बारे में भी वादा किया । इसके अलावा रूस ईरान से कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों यथा इस्लामी उग्रवाद और अमेरिकी मिसाइल रक्षा कवच लगाए जाने की बाबत भी अपने संबंधों को मजबूत करना चाहता है ।
चेचनिया और दागिस्तान में अलगाववादी आंदोलन रूस के लिए बड़े राष्ट्रीय खतरे हैं । चेचनिया में सुन्नी मुसलमानों का बाहुल्य है और ईरान चेचन लोगों के खिलाफ मास्को के युद्ध का इसलिए समर्थन करता है क्योंकि उसका मानना है कि यह रूस का आंतरिक मामला है । वह मास्को के दावे का इसलिए भी समर्थन करता है क्योंकि चेचन लोगों को सऊदी अरब द्वारा वित्तपोषित, पाकिस्तान द्वारा प्रशिक्षित और तुर्की तथा अमेरिका द्वारा कूटनीतिज्ञता आधार पर सहायता दी जा रही है । ज्ञातव्य हो कि दागिस्तान काकेशस क्षेत्र की ओर मार्ग प्रशस्त करता है तथा ईरान की सीमाएं कैस्पियन सागर से भी मिलती हैं । दागिस्तान में बहुत अधिक तनाव होने के कारण रूस को डर है कि ईरान इस मुस्लिम बहुल्य गणराज्य को प्रभावित कर सकता है ।
चेचनिया, दागिस्तान, मध्य एशिया में इस्लामी उग्रवाद और अलगाववादी आंदोलनों और अफगानिस्तान में 2014 के बाद की स्थिति के कारण रूस और ईरान एक दूसरे के निकट आ गए हैं । इस्लामी मिलिटेंट राजनीतिक समूह हिजबुल्ला और हम्मास के साथ ईरान के निकट संबंध होने के कारण वह रूस को अलकायदा और दूसरे सुन्नी उग्रवादियों से लड़ने में मदद कर सकता है ।
जहां तक ईरान के नाभिकीय कार्यक्रम का संबंध है रूस अंतर्राष्ट्रीय प्रावधान के अनुसार ईरान को नाभिकीय हथियार बनाने से रोकना चाहता है । इस समझौते का उद्देश्य यह है कि अमेरिका को रोमानिया और पोलैंड में उसके मिसाइल लगाने से रोका जा सके । रोमानिया और पोलैंड की सीमाएं रूस के करीब हैं । मास्को का मानना है कि उसकी सुरक्षा को मिसाइल रक्षा प्रणाली के कारण खतरा उत्पन्न हो रहा है । ये मिसाइलें इसलिए लगाई गई हैं ताकि पश्चिम एशिया, उत्तर अफ्रीका और विशेष रूप से ईरान द्वारा छोड़ी गई मिसाइलों को निशाना बनाया जा सके ।
कैस्पियन सागर के निकट रूस की उत्तरी सीमाएं ईरान से मिलती हैं और दोनों देशों के सुरक्षा, सैन्य, राजनीतिक और आर्थिक हित एक समान हैं । रूस सीरिया को रासायनिक हथियारों से मुक्त करने तथा अपनी कूटनीतिक युक्तियों के जरिए ईरान के नाभिकीय कार्यक्रम को आंशिक रूप से रोकने में सफल रहा है जिसके कारण अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य पर उसकी विशेष छवि उभर कर सामने आई है ।
बदलते हुए वैश्विक परिदृश्य पर रूस, अमेरिका की हस्तक्षेप एवं बल प्रयोग संबंधी एकपक्षीय विदेश नीति के खिलाफ ईरान के जबरदस्त समर्थक के रूप में सामने आया है । ईरान ने रूस द्वारा अन्य देशों के मामलों में दखल न देने और झगड़ों को शांतिपूर्ण ढंग से कौशलपूर्ण कूटनीतिज्ञता के जरिए सुलझाने संबंधी विदेश नीति की प्रशंसा की है । ईरान ने रूस के साथ अपने संबंध बढ़ाकर रूस से सलाफिस्ट आतंकवाद के खिलाफ लड़ने में भी सहायता प्राप्त की है । सलाफिस्ट आतंकवादी समूह एक सुन्नी पंथ है जो पश्चिम एशिया के देशों में फैला हुआ है । यह संगठन सीरिया सहित आस-पास के क्षेत्रों को भी प्रभावित कर रहा है ।
ईरान के तेल का वैश्विक मंडियों में निर्यात, मध्य एशिया, कैस्पियन सागर और पश्चिम एशिया का विवाद रूस और ईरान के बीच विवाद बन सकते हैं । तथापि अरब स्प्रिंग और बहुध्रुवीयकरण पर आधारित नई विश्व व्यवस्था रूस और ईरान की इस आशय के साथ मदद कर सकते हैं कि वे राष्ट्रीय हितों और सुरक्षा को दृष्टिगत रखते हुए परस्पर लाभकारी संबंध स्थापित करें ।
*****
*डॉ. इन्द्राणी तालुकदार, भारतीय विश्व मामले परिषद, नई दिल्ली में अध्येता हैं
*
अस्वीकरण: व्यक्त मंतव्य लेखक के हैं और परिषद के मंतव्यों को परिलक्षित नहीं करते।