जुलाई 2013 में रूस की विधिवत चुनी गई सरकार का जबरदस्ती तख़्ता पलटने के बाद मिस्र में प्रजातंत्र स्थापित करने संबंधी सभी आशाएं ध्वस्त हो गई हैं । मिस्र में जनवरी 2011 की क्रांति के बाद वहां की जनता द्वारा प्रजातांत्रिक शासन स्थापित किए जाने संबंधित मांगो को अभूतपूर्व झटका लगा है क्योंकि वहां के नए राजनीतिक परिदृश्य पर सेना का प्रभाव निरंतर बढ़ता जा रहा है । मिस्र की सेना ने 2013 के अंतिम महीनों के दौरान क्रांति की आलोचना करते हुए वहां अपने शासन को और मजबूत कर लिया है । वास्तव में वहां के सामंत सरदारों और पूर्व राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक के बचे खुचे हिमायतियों के बीच हितों का टकराव होने से सेना एक बड़ी शक्ति के रूप में उभरी है । ऐसा लगता है की मिस्र की सेना अपने खिलाफ हर उठने वाली आवाज को कुचल देगी ।
मिस्र की पहले से ही स्वतंत्र और शक्तिशाली सेना की ताकत उस समय और बढ़ गई जबकि 50 सदस्यई समिति द्वारा नए संविधान को मंजूर करने के साथ-साथ सेना को यह अधिकार प्राप्त हो गया कि वह मिस्र के नागरिकों के खिलाफ सैन्य न्यायालय में मुकदमे चलाए । मिस्र का नया संविधान वहां के रक्षामंत्री की नियुक्ति में पूरा अधिकार देता है । नए संविधान में सेना पर खर्च होने वाले बजट की जांच नहीं होगी और इस खर्च को एकल प्रविष्टी के जरिए राष्ट्रीय खाते में डाल दिया जाएगा । इस महीने के अंत में संविधान लागू होने के बाद सेना का वर्चस्व और अधिक संस्थागत हो जाएगा । सेना द्वारा अपने हितों की रक्षा करने संबंधी अनुमति देने के अलावा मिस्र के संविधान ने उसे यह भी अधिकार दिया है कि वह पूर्व में प्राप्त अपनी स्थिति को बहाल कर ले ।
जुलाई 2013 में सेना द्वारा मिस्र के प्रजातांत्रिक रूप से चुने गए पहले राष्ट्रपति मोहम्मद मोरसी जो मुस्लिम ब्रदरहुड पार्टी से संबंध रखते थे के खिलाफ कार्रवाई करने से लोगों के बीच गुस्सा भड़क उठा जिसके फलस्वरूप सेना को एक अस्थायी सरकार बनानी पड़ी । सेना से समर्थन प्राप्त लोगों द्वारा शासन की बागडोर संभालने पर सेना ने मुस्लिम ब्रदरहुड पार्टी के डर से अपनी एक विशेष कार्यसूची बनाकर एक दशक पुराने राजनीतिक और आर्थिक हितों की रक्षा करने का दावा किया । सेना प्रजातंत्र और राजनीतिक आजादी के खिलाफ लड़ने के नाम पर राजनीतिक विपक्ष को पूरी तरह से समाप्त करने की इच्छुक थी ।
इस परिदृश्य पर ऐसा महसूस होता है कि उदारवादी शक्तियां और सेना एक दूसरे के साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं । यह कार्य वे इस्लामी शक्तियों को समाप्त करने के प्रयोजनार्थ कर रहे हैं । पूर्ववर्ती शासन के सदस्य इस्लामी कट्टरवाद के खिलाफ लड़ने में सेना की मदद कर रहे हैं । दूसरी ओर सेना उदारवादियों द्वारा नियंत्रित मीडिया की सहायता से मुस्लिम ब्रदरहुड पार्टी के बारे में भय उत्पन्न कर रही है ।
सभी उदरवादी और धर्मनिरपेक्ष शक्तियों ने इस्लामी शक्ति के खिलाफ बड़े पैमाने पर अभियान छेड़ दिया है । ये लोग सर्वसम्मति से यह कार्य कर रहे हैं । उदारवादियों और इस्लमवादियों के बीच पारंपरिक दरार के कारण इस्लामवादी सेना की ओर उन्मुख हुए हैं ताकि वे देश की विप्लवकारी राजनीति में अपने लिए सुविधाजनक स्थान प्राप्त कर सकें ।
ऐसे समय में जबकि देश नए संविधान पर बेसब्री से जनमत संग्रह और उसके बाद संसदीय एवं राष्ट्रपति चुनावों की प्रतीक्षा कर रहा है, सेना समर्थित सरकार ने राजनीतिक हिंसा से निपटने के नाम पर कई गैर प्रजातांत्रिक कानून पारित किए । शुरू में सरकार ने मुस्लिम ब्रदरहुड पार्टी की सभी चल और अचल संपत्ति को जब्त कर लिया । इसके बाद पिछले वर्ष नवंबर में एक और गैर प्रजातांत्रिक कदम उठाया गया । इस अनुक्रम में सरकार ने एक अस्थायी विरोध कानून लागू किया जिसके तहत लोगों द्वारा किए जाने वाले विरोधों और प्रदर्शनों को लगभग गैरकानूनी करार देते हुए सरकार ने लोगों को आपातकालीन युग के कड़वे अनुभव याद दिला दिए । इस कानून का उद्देश्य यह था कि 6 “अप्रैल” और “तमररूज़” जिसका मतलब है “बागी” जैसे समूहों की प्रजातांत्रिक गतिविधियों पर नियंत्रण रखने के साथ-साथ सेना के खिलाफ लोगों की बढ़ती हुई शत्रुता को दबाया जा सके ।
25 दिसंबर 2013 को सरकार ने उस समय अत्यधिक जघन्य और गैर प्रजातांत्रिक कदम उठाया जब मिस्र के विदेशमंत्री और उप-प्रधानमंत्री अब्दुल फतेह अलसीसी ने मुस्लिम ब्रदरहुड पार्टी को देश के भीतर और बाहर एक आतंकवादी संगठन करार दिया जिससे देश में प्रजातांत्रिक प्रक्रिया को भारी झटका लगा । यह निर्णय मंसोरा के नील डेल्टानगर में सुरक्षा निदेशालय के परिसर में बम विस्फोटक होने के बाद लिया गया जिसमें 20 से अधिक लोग मारे गए थे । सिनाई में सक्रिय सलाफ़िस्ट समूह-अंसार-वैतुलमुकद्दस (यरूशलम मस्जिद के समर्थक) ने इस बम विस्फोट की ज़िम्मेदारी लेने का दावा किया तथापि इसका दुष्परिणाम मुस्लिम ब्रदरहुड पार्टी को सहन करना पड़ा क्योंकि यह सेना के विरुद्ध अनवरत लड़ाई में शामिल है ।
अब तक ऐसा कोई साक्ष्य नहीं मिला है कि मुस्लिम ब्रदरहुड पार्टी उपर्युक्त घटना में शामिल हो तथापि देश में राजनीतिक कमजोरी और अनिश्चितता से सेना को यह मदद मिली कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा और राजनीतिक स्थिरता के नाम पर इस्लामिक समूह को निशाना बनाए । मुस्लिम ब्रदरहुड के खिलाफ सेना को नए कानून के तहत यह अधिकार मिल गया है कि वह इस्लामी संगठन के साथ किसी प्रकार का भी तालमेल अथवा सहानुभूति रखने वाले व्यक्तियों को गिरफ्तार कर सकती है । इस कानून से लोगों को विरोध जताने या गुस्सा दिखाने पर पाबंदी लगाने में मदद मिली ।
नए कानून बनाने का उद्देश्य यह था कि लोगों को राजनीतिक रूप से सक्रिय होने से रोका जा सके वह भी उस समय जबकि देश संवैधानिक जनमत संग्रह, संसदीय और राष्ट्रपति चुनाव जैसी राजनीतिक प्रक्रिया से गुजर रहा है । यह चुनाव अगले कुछ महीनो में होने वाले हैं । इस अनुक्रम में सेना उन घरेलू और क्षेत्रीय शक्तियों से ताकत प्राप्त कर रही है जो अपने राजनीतिक और रणनीतिक हितों के कारण देश में प्रजातांत्रिक व्यवस्था के विरोधी हैं । सेना द्वारा की गई यह व्यवस्था प्रजातंत्र के लिए एक बड़ा झटका है और मिस्र के रक्षामंत्री द्वारा दिए गए वचन के विरुद्ध देश की प्रगति के लिए अच्छा संकेत नहीं है । ऐसी आशंकाएं जताई जा रही हैं कि धर्मनिरपेक्षवादियों और इस्लामवादियों के बीच बातचीत का रास्ता और अधिक अवरुद्ध हो जाएगा तथा निकट भविष्य में देश में राजनीतिक समाधान अथवा स्थिरता की सभी आशाएं समाप्त हो जाएंगी ।
मुस्लिम ब्रदरहुड पार्टी को अलग-थलग करने से मिस्र में हिंसा की वारदातें बढ़ जाएंगी । इस समय मिस्र पहले से ही अपरिपक्व सुरक्षा व्यवस्था और अस्थिर राजनीतिक वातावरण से जूझ रहा है । गैर इस्लामी समूहों के बीच राजनीतिक मतैक्य से एक ऐसे गठबंधन का आविर्भाव हो सकता है जिससे सेना को नुकसान पहुंचेगा । इसके अतिरिक्त इस्लामवादियों को अस्थायी रूप से नामंज़ूर कर देने से भी सेना के खिलाफ गुस्सा भड़केगा । प्रजातांत्रिक आवाजों को दबाने से राजनीतिक महानुभवों के हित साध्य होंगे जिससे जनवरी क्रांति द्वारा उत्पन्न प्रजातांत्रिक महत्वकांक्षा छिन्न-भिन्न हो जाएगी । मौजूदा राजनीतिक अनिश्चितता से मिस्र में स्थिरता लाने की संभावनाएं कम होने के साथ-साथ मिस्री समाज का प्रजातांत्रिक ताना-बाना बिखर जाएगा ।
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*फ़ज़्ज़ूर रहमान सिद्दीकी, भारतीय विश्व मामले परिषद, नई दिल्ली में अध्येता हैं
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