नया वर्ष शुरू होते ही भारत और अमेरिका के संबंधों में एक प्रकार का लघु संकट उत्पन्न हो गया था । 21वीं शताब्दी की रणनीतिक भागीदारी के तहत उस समय एक हलचल उत्पन्न हुई जब अमेरिका के न्याय विभाग ने भारतीय कूटनीतिज्ञ डिप्टी कौंसल जनरल सुश्री देवयानी खोबरा गाडे के विरुद्ध वीजा संबंधी हेराफेरी का आरोप लगाया था । उनके विरुद्ध आरोप थे कि उन्होंने अपनी घरेलू नौकर सुश्री संगीता रिचर्डस के लिए वीजा प्राप्त करने हेतु अमेरिकी कौंसुलेट को गलत सूचना दी थी । सुश्री खोबरागाडे पर यह भी आरोप लगाया गया था कि उन्होंने अपनी घरेलू नौकर के वेतन और उपचार की बाबत अमेरिका में लागू श्रमिक क़ानूनों पर भी अमल नहीं किया था । भारत सरकार ने इन आरोपों की विधिमान्यता पर सवाल उठाते हुए अपने कूटनीतिज्ञ की किसी भी गलती से इंकार कर दिया । सरकार ने आरोपों को नकारते हुए अमेरिकी प्राधिकारियों के समक्ष संबंधित दस्तावेज़ प्रस्तुत कर दिए ।
दोनों देशों के बीच इस तनाव में उस समय कुछ कमी आई जब अमेरिका के स्टेट डिपार्टमेन्ट ने सुश्री खोबरागाडे को संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के स्थायी मिशन के सदस्य के रूप में प्रत्यायित करते हुए उसे पुनः पूर्ण कूटनीतिज्ञ संरक्षा प्रदान की । इसके बाद अमेरिकी न्यायालय से अनुमति लेने के उपरांत 10 जनवरी 2014 को भारतीय कूटनीतिज्ञ अपने देश में वापस आ गई हैं, यद्यपि यह संकट अभी बीच में फंसा हुआ है, तथापि अमेरिकी न्याय विभाग ने कूटनीतिज्ञ के विरुद्ध लगाए गए आरोपों को वापस लेने से इंकार कर दिया है । अमेरिकी न्याय विभाग को उनकी गिरफ्तारी की बाबत माफीनामा जारी करना है । यदि वे भारतीय कूटनीतिज्ञ के रूप में अमेरिका वापस आती हैं तो उन पर मुकदमा नहीं चलाया जाएगा । दूसरी ओर यदि वे निजी व्यक्ति की हैसियत से अमेरिका जाती हैं तो उन पर मुकदमा चलाया जाएगा ।
इस प्रकरण में भारत और अमेरिका के बीच तनाव होने के कई कारण हैं । भारत ने उस तरीके का कड़ा विरोध किया है जिसके तहत अमेरिकी मार्शल कार्यालय ने कूटनीतिज्ञ के खिलाफ कार्रवाई की । उन्हें सार्वजनिक रूप से हिरासत में लेकर हथकड़ियां लगाई गईं और उनका लिबास उतरवाकर उनकी तलाशी ली गई । भारत सरकार ने उनकी गिरफ्तारी के बाद उनके साथ किए गए इस दुर्व्यवहार पर सवाल उठाए हैं । भारतीय पदाधिकारियों ने इस बात पर भी आपत्ति जताई है कि कूटनीतिज्ञ के खिलाफ लगाए गए आरोपों की जानकारी भारत की विशेष सचिव सुजाता सिंह और अन्य वरिष्ठ भारतीय पदाधिकारियों को नहीं दी गई जो 12 दिसंबर 2013 को सुश्री खोबरागाडे की गिरफ्तारी से पहले अमेरिका में मौजूद थे । इस संबंध में यह दलील प्रस्तुत की गई कि यदि भारत को इन आरोपों के बारे में बता दिया जाता तो वह छानबीन में अमेरिकी प्राधिकारियों के साथ सहयोग नहीं करता । भारत ने अमेरिका के इस रवैये पर भी कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की कि अमेरिकी सरकार ने उस घरेलू नौकर को तलाश करने संबंधी उसके कई अनुरोधों का भी जबाव नहीं दिया जो अमेरिका में जून 2013 से गायब है । वाशिंगटन में स्थित भारतीय दूतावास ने इस मामले को बार-बार अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेन्ट और नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास में उठाया । भारत ने दावा किया है कि उसके दूतावास और पदाधिकारियों ने अमेरिकी और भारत में स्थित अमेरिकी दूतावास के प्राधिकारियों को सुश्री रिचर्डस के गायब होने के बारे में विधिवत रूप से सूचना दी थी । स्पष्टतः न तो भारतीय दूतावास और न ही विदेश मंत्रालय को यह सूचना दी गई कि वे होमलैंड सेक्यूरिटी से संबंधित अमेरिकी विभाग की हिरासत में हैं ।
इस अनुक्रम में भारतीय पक्ष की ओर से आपत्ति व्यक्त करने का दूसरा बड़ा कारण यह भी था कि अमेरिका ने भारतीय न्यायिक व्यवस्था को उपेक्षित करते हुए घरेलू नौकर के परिवार को देश छोड़ने के लिए कहा । इस समय भारत के न्यायालय में उस घरेलू नौकर और उनके पति के विरुद्ध मामले लंबित हैं । भारतीय दूतावास द्वारा कूटनीतिज्ञ की गिरफ्तारी से मात्र दो दिन पहले देश छोड़ने संबंधी आदेश के कारण भारत सरकार और अधिक क्षुब्ध हो गई क्योंकि इस मामले को मानव तस्करी से जोड़ दिया गया था । भारत का दावा है कि अमेरिकी प्राधिकारियों के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है कि वे भारतीय नागरिकों को भारत छोड़ने के लिए कहें जबकि उनके विरुद्ध न्यायालय में मुकदमा चल रहा है । इस कार्रवाई को अमेरिका द्वारा भारतीय न्यायिक व्यवस्था की अवमानना के रूप में देखा गया है । उल्लेखनीय है कि यह कार्रवाई इस बात के बावजूद शुरू की गई कि सुश्री खोबरागाडे ने अमेरिकी न्यायालय से भारत लौटने की अनुमति मांगी थी ।
कुछ राजनीतिक दलों ने सुश्री खोबरागाडे की निर्बाध वापसी को भारत सरकार द्वारा इस मामले पर की गई कड़ी कार्रवाई की परिणति माना है जबकि कुछ अन्य राजनीतिक दलों का मानना है कि चूंकि लगाए गए आरोपों को अभी तक नहीं हटाया गया है इसलिए इसे विजय के रूप में मानना समय से पहले की बात होगी । इस बीच भारत सरकार ने नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास के पदाधिकारी श्री वेन मे पर यह आरोप लगाते हुए उन्हें निष्काषित कर दिया कि घरेलू नौकर के परिवार के लिए वे ही टिकट लाये थे । भारत द्वारा की गई कार्रवाई जबावी कार्रवाई के सिद्धांतों पर आधारित थी । इसके अलावा अमेरिकी दूतावास के कार्मिकों और उनके परिवार के सदस्यों को दिए गए विशेष अधिकार भी वापस ले लिए गए जो आने वाले कुछ समय तक जारी रहेंगे । आशा है कि दोनों देशों द्वारा सहमति बनने पर कुछ विशेष अधिकारों को बहाल कर दिया जाएगा । भारत के विदेश मंत्री श्री सलमान खुर्शीद ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा है कि भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में कोई बिगाड़ नहीं आया है । भारत ने मांग की है कि अमेरिका बिना शर्त माफी मांगकर उसके कूटनीतिज्ञ के खिलाफ लगाए गए आरोपों को वापस ले । भारत ऐसे प्रयास भी कर रहा है जिससे भविष्य में उसके दूतावास और उसके कौंसलर स्टाफ को इन्हीं बुनियादों पर परेशान न किया जाए । इस अनुक्रम में यह भी खबर मिली है कि विदेश मंत्रालय ऐसी व्यवस्था कर रहा है कि जिसके तहत दूतावास स्टाफ के घरेलू नौकर को भविष्य में भारतीय श्रमिक क़ानूनों के तहत रखा जाएगा ।
इस घटना से भारत और अमेरिका के बीच परस्पर विश्वास को चोट पहुंची है तथापि इस कूटनीतिज्ञ हलचल से दोनों देशों के बीच भागीदारी पर कोई असर नहीं पड़ा है । इस बात पर चिंता करने का कोई कारण नहीं है कि इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना का दोनों देशों के बीच संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा । इसकी मिसाल इस प्रकार दी जा सकती है कि सड़क पर गड्ढा पड़ने पर उसकी मरम्मत की जाएगी तथापि इसे सड़क अवरोध का नाम नहीं दिया जा सकता अर्थात दोनों देशों के बीच बेहतर संबंधों में कोई रुकावट पेश नहीं आएगी ।
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*डॉ.स्तुति बनर्जी , भारतीय विश्व मामले परिषद, नई दिल्ली में अध्येता हैं
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