यूक्रेन में राजनीतिक उथल-पुथल विश्व के लिए चौंकाने वाला संभावित विषय बन गया है, जहां विवादग्रस्त पक्षकारों -- रूस, कीव में अंतरिम सरकार, अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच बढ़ा हुआ तनाव एक खतरनाक स्तर तक पहुंच गया था। 17 अप्रैल को पक्षकारों ने जिनेवा में वार्ताओं के लिए बैठक की तथा वे विभिन्न निर्दिष्ट उपायों पर सहमत हुए जैसे तनाव में कमी लाना और सभी यूक्रेनी राष्ट्रिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना, सशस्त्र गुटों को हिंसा भड़काने वाली कार्यवाहियों अथवा उकसाने वाली हरकतों से दूर रखना तथा यहूदीवाद के विरोध सहित उग्रवाद, नस्लवाद और धार्मिक असहिष्णुता की सभी अभिव्यक्तियों की निंदा की गई और उन्हें अस्वीकृत किया गया। इस करार में सभी अवैध सशस्त्र समूहों से अस्त्र त्यागने, सभी अवैध रूप से कब्जाए गए भवनों को उनके वैध स्वामियों को लौटाने, यूक्रेन के शहरों और कस्बो में सभी अवैध रूप से कब्जाए गए मार्गों, चौराहों और अन्य सार्वजनिक स्थानों को खाली करने तथा सभी अपराधियों को सर्वक्षमा प्रदान करने का आह्वान किया गया था तथा सभी सिवाए उन अपराधियों को छोड़कर जो मृत्युदंड के अपराधों के दोषी थे।
इस करार की सफलता प्रश्नों के घेरे में आ गई थी क्योंकि पूर्वी यूक्रेन में रूस-समर्थित अलगाववादियों ने करार का उल्लंघन करते हुए सरकारी भवनों पर कब्जा जमाए रखना जारी रखा तथा उन्होंने 'हथियारों को आत्मसमर्पण के आह्वान' का अनुपालन करने में कोई दिलचस्पी नहीं दर्शाई। इसके स्थान पर, रूस-समर्थित प्रदर्शनकारियों ने करार की अवमानना की तथा अत्यंत आक्रामक व्यवहार दर्शाया। 25 अप्रैल को अलगाववादियों ने यूरोपीय सुरक्षा निगरानीकर्ताओं के एक समूह को 'जासूसों' के रूप में नज़रबंद करके रखा। यह समूह यूरोप में सुरक्षा और सहयोग संगठन के तत्वावधान के अधीन जर्मनी द्वारा प्रचालित सैन्य प्रेक्षक मिशन का भाग था। रूस समर्थित अलगाववादियों की भड़काने वाली कार्रवाइयों ने पश्चिम और रूस के बीच तनाव को और बढ़ा दिया क्योंकि जी-7 रूस पर और प्रतिबंध लगा रहा था जिससे रूसी राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुतिन के कुलीनों और परामर्शकों को लक्ष्य बनाया गया यदि सशस्त्र समूह हथियार नहीं डालते हैं। रूस ने इन प्रतिबंधों को 'अस्वीकार्य' बताया तथा कहा कि यह अकेला देश नहीं है जो यूक्रेन में स्थिति सामान्य करने के लिए कार्यवाही क्रियान्वित करने के लिए उत्तरदायी है। रूस और यूक्रेन में रूस-समर्थित तत्वों ने यह स्पष्ट कर दिया था कि अलगाववादियों की सरकारी भवनों को तब तक खाली करने की मंशा नहीं है, जब तक कीव में पश्चिम विरोधी अंतरिम सरकार सरकारी भवन खाली नहीं करती है। रूस और रूस-विरोधी अलगाववादियों ने महसूस किया कि कीव में अंतरिम सरकार ने फरवरी से ही शक्ति के केन्द्र पर अवैध रूप से कब्जा जमाया हुआ है।
कीव, अमेरिका और यूरोपीय संघ में अंतरिम सरकारें पूर्वी यूक्रेन में असंतोष को बढ़ावा देने के लिए रूस पर दोषारोपण कर रही हैं जिसका खंडन राष्ट्रपति पुतिन द्वारा 17 अप्रैल को किया गया। उन्होंने उल्लेख किया कि क्रीमिया के बाद डोनेस्टैक, खारकीव और लहमांस में असंतोष कीव के प्राधिकारियों के विरुद्ध लोगों की शिकायतों का चरम बिंदु है जिन्होंने उनके अधिकारों और वैध मांगों की अनदेखी की है। रूस एक ऐसे हल्के परिसंघ की मांग कर रहा है जो यूक्रेन के वायदा किए गए संवैधानिक सुधारों की गारंटी प्रदान करता हो, जिसमें रूस-समर्थित अलगाववादियों का सरकारी अधिकार के वितरण में शक्तियां प्रदान की गई हों।
पारंपरिक सैन्य विरोध की परिकल्पना नहीं की गई है, जैसा विवादग्रस्त पक्षकारों द्वारा दावा किया किया गया है, लेकिन यूक्रेन के समीप और इर्द-गिर्द उनके सैन्य ठिकानों की स्थापना पक्षकारों के मध्य तनाव में वृद्धि कर रही है। यूक्रेन के रक्षा मंत्री मिखाइल कोवल ने 26 अप्रैल को टिप्पणी की कि रूसी सैन्य टुकड़ियां यूक्रेन की सीमा के 2-3 किलोमीटर (1.2-1.8 मील) तक पहुंच गई हैं। यूक्रेन को भय है कि रूस की सेना की शक्ति को ध्यान में रखते हुए, यह अत्यंत कम समय में जमीन और आकाश से हमला करने में समर्थ है तथा इसने पश्चिम को सैन्य सहायता के लिए कहा है। 17 अप्रैल को नाटो के महासचिव एंडर्स फोग रैस्मुसेन ने कहा कि यूक्रेन में पश्चिम-समर्थित सरकार के साथ सैन्य गठबंधन पूर्वी यूरोप में इसकी उपस्थिति में वृद्धि करेगा जिसमें यूक्रेन के पश्चिम में बाल्टिक क्षेत्र में अधिक सैन्य आक्रमण तथा बाल्टिक सागर और पूर्वी भूमध्यसागर में सहबद्ध युद्धपोतों की तैनाती भी शामिल है।
रूस ने पश्चिम को आश्वासन दिया है कि पूर्वी यूक्रेन पर आक्रमण करने की कोई योजना नहीं है तथा 40,000 टुकड़ियों की तैनाती सैन्य कवायदों का भाग थी। तथापि, 3 अप्रैल को, नाटो के विदेश मंत्रियों ने रूस के साथ नागरिक और सैन्य सहयोग समाप्त करने का आदेश दिया और रूस पर आरोप लगाया कि वह अपनी टुकड़ियों की उपस्थिति से यूक्रेन में असंतोष को बढ़ावा दे रहा है। इन आरोपों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पुतिन ने कहा कि यह अमेरिका का पाखंड है क्योंकि अमेरिका, यूगोस्लाविया, इराक, अफगानिस्तान और लीबिया में कार्रवाई कर सकता है, परंतु रूस को अपने हितों की रक्षा करने की अनुमति नहीं है।
यूक्रेन संकट गहन होता रहा है क्योंकि रूस के उसके पड़ोसी क्षेत्र में रणनीतिक हितों को पश्चिम द्वारा चुनौती दी जा रही है। हालांकि रूस पश्चिम के साथ सैन्य टकराव में फंसने का इच्छुक नहीं है, परंतु यदि परिस्थितियां ऐसे बनती हैं, तो वह इससे पीछे नहीं हटेगा। आर्थिक पक्ष में रूस प्रतिबंधों के कारण अभी तक प्रभावित नहीं हुआ है क्योंकि रूसी ऊर्जा पर यूरोप निर्भर है। पश्चिम तेल के मूल्यों में वृद्धि किए जाने पर अमेरिकी डॉलर पर पड़ने वाले प्रतिबंधों के परिणामों को समझता है।
पश्चिम ऊर्जा के लिए ईरान के साथ गठबंधन करते हुए रूस की अपेक्षा करने का प्रयास कर सकता है, लेकिन इस विकल्प की संभावित सफलता कम है क्योंकि रूस और ईरान के सुदृढ़ द्विपक्षीय संबंध हैं। तेहरान उन्हें परेशान नहीं कर सकता है। पश्चिम के साथ इसके राजनयिक तनावों के इतिहास को ध्यान में रखते हुए पश्चिम इसे संशय के साथ देखता है। रूस ईरान के साथ अपने संबंधों को मजबूत बनाने का प्रयास करेगा तथा पश्चिम के साथ अपने ऊर्जा सौदों को भी बनाए रखेगा क्योंकि यह उस राजस्व को नहीं खोना चाहेगा जो यह तेल और गैस का निर्यात करने के माध्यम से प्राप्त करता है।
यूक्रेन का संकट खतरनाक बनता जा रहा है। क्षेत्र के अन्य भागों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ने से रोकने के लिए इस समस्या का निवारण के लिए एक सौहार्दपूर्ण समाधान की आवश्यकता प्रतीत होती है। वर्ष 2014 के अंत से प्रारंभ होने वाली अफगानिस्तान से अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा बलों को वापस लिए जाने की प्रक्रिया के साथ, पश्चिम को आईएसएएफ की टुकड़ियों के सुरक्षित निर्वासन के लिए वापसी के मार्गों हेतु रूस की आवश्यकता है। पश्चिम अपनी पहले से ही थकी सेना को रूस के साथ एक अन्य सशस्त्र टकराव में झोंकना नहीं चाहेगा। इस खेल में यूक्रेन को हानि हुई है क्योंकि गृह-युद्ध जैसी स्थिति वहां विद्यमान है और क्षेत्र की शांति भी भंग हुई है।
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*डॉ. इन्द्राणी तालुकदार, भारतीय विश्व मामले परिषद, नई दिल्ली में अध्येता हैं
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