जबकि अरब विश्व अभी भी अरब स्प्रिंग के बाद की स्थिति की चपेट में है, जून के द्वितीय सप्ताह में इराक में एक नया संकट प्रस्फुटित हो गया, जब छद्म जिहादियों के एक समूह, जिन्हें 'इराक और सीरिया के इस्लाम राज्य' (आईएसआईएस) कहा जाता था, ने मुसेल (मोसुल) और तिकरिट के शहरों सहित आधे उत्तरी इराक पर कब्जा कर लिया था। आईएसआईएस की ओर से किए गए अकस्मात् नरसंहार के फलस्वरूप हजारों सहधर्मी क्षेत्र से भाग गए तथा उसने इराक में शिते ठिकानों के मध्य भय का वातावरण उत्पन्न कर दिया। उन्होंने न केवल कस्बों पर कब्जा किया और केन्द्रीय बैंक को लूटा बल्कि 30,000 की केन्द्रीय सेना को बिना किसी प्रतिरोध के उनकी चौकियों से भागने के लिए विवश कर दिया जिससे उनके पीछे हथियारों और गोला-बारूद का जखीरा रह गया जिस पर बाद में विद्रोहियों ने कब्जा कर लिया।
अब तक हजारों नागरिक और लड़ाके मारे जा चुके हैं तथा सैकड़ों को बंदी बना लिया गया है जिनमें 40 भारतीय श्रमिक भी हैं। यह संभावना है कि यह स्थिति और भी बदतर हो सकती है क्योंकि शिते आध्यात्मिक नेताओं ने लोगों को हथियारों से लैस होने के लिए कहा है ताकि इराक के शिते राष्ट्र को छुड़ाया जा सके। प्रमुख शिते प्राधिकारियों द्वारा जारी फतवे से प्रेरित होकर शिते उग्रवादियों ने आईएसआईएस लड़ाकों और उनके सहयोगियों को जड़ से उखाड़ने की कसम खाई है। देश बर्बाद होने के कगार पर है तथा विदेशी हस्तक्षेप अनिवार्य हो गया है क्योंकि इराकी सरकार अमेरिका का हस्तक्षेप मांग रही है, जबकि तुर्की नाटो के हस्तक्षेप का आह्वान कर रहा है।
आईएसआईएस की सटीक उत्पत्ति का पता लगा पाना कठिन है, परंतु यह तत्कालीन बाथ पार्टी के सदस्यों और सद्दाम की प्रतिबंधित सेना, सुन्नी जनजातीय नेताओं, क्षेत्र में विद्यमान जिहादी अवयवों तथा उन लोगों का विस्तारित कट्टरवादी सुन्नी गठबंधन है, जो मलीकी के नेतृत्व वाले शिते शासन की बहिष्कारक नीति से संतुष्ट नहीं थे। आईएसआईएस को पूर्व में आईएसआई (इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक) के रूप में जाना जाता था परंतु जब वह अरब स्प्रिंग के बाद सीरिया में विकीर्णित हो गया, इस समूह का नाम बदलकर आईएसआईएस रखा गया। आईएसआईएस तब प्रधानता से उभरा जब उन्होंने अपने अधिपत्य को साबित करने के लिए फ्री सीरियन आर्मी और अन्य असाद-विरोधी सेनाओं के विरुद्ध खुले युद्ध की घोषणा कर दी।
वर्तमान स्थिति का मूल 2003 के अमेरिकी आक्रमण में निहित है जिसके उपरांत इराकी सेना छिन्न-भिन्न हो गई तथा नई राष्ट्रीय राजनीतिक व्यवस्था के उद्भव से बाथी सदस्यों का अपर्वजन हो गया। यह स्थिति तब और भी खराब हो गई जब देश के नए प्रधानमंत्री नूरी-अल-मलीकी ने शिते और सुन्नियों के बीच एक नई विभाजनकारी रेखा खींचते हुए पंथवादी पहचान का सांस्थानीकरण किया। शिया प्रधानता वाली नई सरकार ने अपवर्जन की नीति अंगीकार की तथा 'अपकेन्द्रित' राजनीति के स्थान पर 'अभिकेन्द्रित' विधियों पर अधिक विश्वास व्यक्त किया। श्री मलीकी ने अपने पक्ष में अमेरिकी सहायता एकत्र की और अपने विरोधियों को किनारे कर दिया। देश के सुन्नी उपराष्ट्रपति पर मारक दस्ते का नेतृत्व करने का आरोप लगाया गया और वे 2012 से तुर्की में निर्वासन में रह रहे हैं।
क्षेत्र की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक संसक्ति तथा जनसांख्यिकी की वैविध्यपूर्ण प्रकृति के कारण इराक का संकट संपूर्ण क्षेत्र को प्रभावित कर सकता है। आईएसआईएस के उदय ने ईरान में भय की लहर दौड़ा दी है क्योंकि इसने अपने एकमात्र पश्चिमी साथी (इराक) की उत्तरजीविता को संकट में डाल दिया है जो निकट भविष्य में विभाजन की स्थिति को झेल सकता था। इराक में आईएसआईएस के उदय से ईरान के भीतर युद्धरत सुन्नी समूहों के उत्प्रेरित होने की संभावना है जिससे इसकी आंतरिक सुरक्षा को खतरा हो सकता है। ऐसी रिपोर्टें भी हैं कि इस्लामी क्रांतिकारी गार्ड कोर (आईआरजीसी) की 'अल-क्वड्स ब्रिगेड' के प्रमुख श्री कासम सोलेमनी पहले से ही बगदाद में हैं जो भावी योजना को निर्धारित कर रहे हैं। बगदाद में अस्थिर स्थिति हिजबुल्ला को भी ईरान में धकेल सकती है जो अल-क्वड्स ब्रिगेड के साथ सीरिया में असाद-विरोधी सेनाओं के साथ युद्ध में शामिल था।
इराक की वर्तमान कमजोर स्थिति समूचे क्षेत्र में शिते बलों को संगठित कर सकती है जिससे वे इराक के शिते राज्य को छुड़ाने के उद्देश्य से सीरिया के विरुद्ध एक नए युद्ध में शामिल हो सके। ईरान के आध्यात्मिक नेता पहले ही लोगों से आतंकवादियों के विरुद्ध हथियार उठाने का आग्रह कर रहे हैं। आईएसआईएस की यात्रा सीरिया में सुन्नी युद्धकर्ताओं को पुन:संगठित करेगी जिन्होंने पिछले कुछ महीनों में अपने कदम सीमित किए है तथा वे एक नया युद्ध प्रारंभ कर सकते हैं। उनकी भागीदारी पंथवादी विभाजन को और भी अधिक गहन बनाएगी क्योंकि इरान में सरकार-समर्थक टीवी चैनल पहले से ही तुर्की और सउदी माल के बहिष्कार का आह्वान कर रहे हैं जिससे यह दर्शाया गया है कि वे आईएसआईएस समर्थक सुन्नी शासक हैं।
प्रधानमंत्री मलीवी का अमेरिका के लिए हस्तक्षेप करने और आईएसआईएस के विरुद्ध हवाई हमले करने का आह्वान घरेलू राजनीति में उथल-पुथल लाएगा जिससे क्षेत्र अशांत बनेगा। अमेरिका द्वारा कोई हस्तक्षेप लोकतांत्रिक युग को वापस लाएगा तथा संप्रभुत्ता प्राप्त करने के संघर्ष को दशकों पीछे धकेल दिया जाएगा।
तुर्की इस बढ़ते हुए संकट के सबसे पुराने पीड़ितों में से एक है, जब तुर्की काउंसुलेट के अस्सी से अधिक अधिकारियों को बंधक बना लिया गया था जिससे तुर्की ने नाटो द्वारा हस्तक्षेप की मांग की। तुर्की इराक के साथ अपनी सीमाओं के निकट होने को ध्यान में रखते हुए इराक में वर्तमान घटनाओं में शामिल न होने का जोखिम नहीं उठाएगा। वर्तमान स्थिति के तुर्की को तेल की आपूर्ति को बाधित करने की संभावना है क्योंकि यह किरकुट से तुल की मुख्य आपूर्ति प्राप्त करता है जो आईएसआईए के नियंत्रण में है। तुर्की का इराक में उच्च निवेश है तथा दोनों के बीच व्यापार की मात्रा 12 बिलियन यूएस डॉलर प्रतिवर्ष है।
ये घटनाक्रम एक कमजोर केन्द्र के विरुद्ध कुर्दों को और भी मजबूत बनाएंगे जो स्वयत्तता और तेल तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण बनाने के लिए एक लंबा संघर्ष कर रहे हैं। आईएसआईएस द्वारा आक्रमण ने मलीकी सरकार की राजनीतिक और रक्षा संबंधी सुभेद्यताओं को उजागर कर दिया है जो कुर्दिस्तान की अर्ध-स्वतंत्रता को और भी समेकित बनाएंगी।
आईएसआईएस पर आक्रमण अरब विश्व में पंथवादी विभाजन को और भी गहन बना सकता है, जो पहले से ही पंथवादी विभाजन से जूझ रहा है। यह नया गहरा ऊर्ध्व और क्षैतिज विभाजन तात्कालिक चिंता के अन्य सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर प्रधानता जमाएगा जिससे लोगों की व्यापक लोकतांत्रिक आकांक्षाओं की पूर्ति नहीं होगी। हो रहे वर्तमान शिया-सुन्नी टकरावों के बारे में समूचे क्षेत्र में विवाद को और गहरा बना सकते हैं और क्षेत्र की राजनीति पर प्रभाव डाल सकते हैं और क्षेत्र के लिए समय आ गया है कि वे आपस में अभिसारिता और एकता का परिचय दें ताकि पंथवादी इरादों को नाकाम किया जा सके और क्षेत्र को एक नई समस्या से बचाया जा सके।
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*फ़ज़्ज़ूर रहमान सिद्दीकी, भारतीय विश्व मामले परिषद, नई दिल्ली में अध्येता हैं
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