भारत के उपराष्ट्रपति श्री एम. हामिद अंसारी की भारत में नई सरकार के गठन के पश्चात् 26-30 जून, 2014 तक चीन की प्रथम यात्रा का चीन मीडिया द्वारा तथा चीन में अंग्रेजी मीडिया द्वारा व्यापक प्रचार-प्रसार किया गया है। चीनी सरकार ने इस यात्रा को 'सफल' करार दिया है और कहा है कि इस यात्रा ने दोनों देशों के बीच "मैत्रीपूर्ण सहयोग के गहन विकास" को बल प्रदान किया है। यात्रा आंशिक दृष्टि से इसलिए महत्वपूर्ण सिद्ध हुई है क्योंकि इसने चीन के साथ भारत की राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक वार्ता के संदर्भ में एक कदम आगे बढ़ाया है तथा आंशिक रूप से इसलिए क्योंकि इसने चीनी सामाजिक विज्ञान अकादमी (सीएएसएस) में तथा बीजिंग के ग्रैंड हॉल ऑफ पीपल में पंचशील की 60वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में यात्रा पर आए भारतीय नेता द्वारा उठाए गए मुद्दों पर उल्लेखनीय बहस छेड़ दी है।
जैसाकि आधिकारिक घोषणाओं में कहा गया था, उपराष्ट्रपति ने द्विपक्षीय चर्चाएं आयोजित करने तथा 2014 में पंचशील अथवा शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों की 60वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित क्रियाकलापों में भाग लेने के लिए चीन का दौरा किया था जो 'भारत-चीन मैत्री आदान-प्रदान' वर्ष भी है। उपराष्ट्रपति के साथ एक उच्च स्तरीय शिष्टमंडल भी गया था जिसमें वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री भी शामिल थे। चीन उपराष्ट्रपति श्री ली युवान चाओ के साथ शिष्टमंडल-स्तरीय वार्ता संचालित करने तथा चिंता के मुद्दे उठाने के अलावा उपराट्रपति श्री अंसारी ने प्रीमियर ली केक्वियांग से भी भेंट की और राष्ट्रपति जी जिनपिंग से मुलाकात की।
मूर्त परिणामों के संदर्भ में, तीन महत्वपूर्ण करारों पर हस्ताक्षर किए गए जो भारत में औद्योगिक पार्कों पर सहयोग, बाढ़ के मौसम में ब्रह्मपुत्र नदी पर जल-विज्ञान जानकारी की साझेदारी के लिए क्रियान्वयन योजना तथा दोनों देशों के मध्य सरकारी अधिकारियों की क्षमता निर्माण के क्षेत्र में प्रशिक्षण के लिए संप्रेषण और सहयोग पर आधारित थे।
पहले समझौता ज्ञापन के अंतर्गत दोनों देश एक-दूसरे के देशों में निवेश में वृद्धि के लिए सहयोग पर सहमत हुए। नई दिल्ली ने भारत में चीनी औद्योगिक पार्कों की स्थापना को महत्व प्रदान किया है। ऐसा मुख्यत: इसलिए है कि यह चीन के साथ भारत के 40 बिलियन यूएस डॉलर के व्यापार घाटे का पुर्नसंतुलन करने में सहायक होगा; चीनी माल के आयात की आवश्यकता को कम करेगा जो भारत में काफी लोकप्रिय हो गया है; तथा अर्थव्यवस्था के विनिर्माण क्षेत्र को बल प्रदान करेगा जो भारत में समग्र विकास और रोजगार सृजन के लिए महत्वपूर्ण है जैसाकि कुछ विशेषज्ञों द्वारा कहा गया है, भारत भी भेषजिक और सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में चीन में औद्योगिक पार्कों की स्थापना कर सकता है।
ब्रह्मपुत्र बाढ़ आंकड़ों पर समझौता ज्ञापन भी उल्लेखनीय है। चीन न केवल 15 दिन के अतिरिक्त जल-विज्ञान आंकड़े देने के लिए सहमत हुआ, बल्कि इसने पहली भारत को बार जल-विज्ञान विशेषज्ञों को अध्ययन दौरे संचालित करने के लिए भेजे जाने की अनुमति प्रदान की। ब्रह्मपुत्र पर नए जल-विद्युत बांधों का निर्माण किए जाने की रिपोर्टें भी हैं परंतु चीनी सरकार का यह मानना है कि वे केवल जल-बहाव (रन-आफ-दि-रीवर) परियोजनाएं थीं तथा वे ब्रह्मपुत्र के जल को विपथित नहीं करेंगी। उल्लेखनीय रूप से कुछ भारतीय विशेषज्ञों ने अपनी यह चिंता व्यक्त की है कि भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र तथा अधिकांश बांग्लादेश क्षेत्र के लिए पर्यावरणीय क्षति की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। चीन को जल संबंधी मुद्दों में शामिल इसके पड़ोसी देशों की चिंताओं का निवारण करने के लिए एक सांस्थानिक तंत्र पर विचार करना चाहिए।
इसके अलावा यह उम्मीद की जाती है कि लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी, मसूरी तथा चाइना एक्जेक्यूटिव लीडरशिप एकेडमी, शंघाई का प्रथम प्रशिक्षण कार्यक्रम दोनों उभरती हुई शक्तियों को एक-दूसरे के अनुभवों से सीखने में मदद करेगा।
यह उल्लेखनीय है कि उपराष्ट्रपति के 'अंशांकित भविष्य विज्ञान : भारत, चीन और विश्व' नामक भाषण ने चीनी मीडिया में पर्याप्त रुचि का संचार किया। कुछ समाचार वेबसाइटों पर संपूर्ण भाषण का चीनी संस्करण प्रकाशित किया गया। इसके अलावा, भाषण के कुछ अंशों पर मीडिया द्वारा विशेष बल प्रदान किया गया। उस संदर्भ को समझना औचित्यपूर्ण है कि इन वक्तव्यों पर चीन में समुचित ध्यान दिया गया।
उपराष्ट्रपति की इस स्वीकरोक्ति कि पंचशील के पांच सिद्धांत "एक नई राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था की स्थापना के लिए आधारभूत दिशा-निर्देश प्रतिपादित करते हैं" (सीएएसएस को संबोधित करते हुए) तथा "पंचशील एक ऐसा ढांचा उपलब्ध कराता है जिसके भीतर एक औचित्यपूर्ण और साम्यापूर्ण वैश्विक व्यवस्था प्राप्त की जा सकती है" (पंचशील की 60वीं वर्षगांठ के समारोह को संबोधित करते हुए) को चीन में विभिन्न मीडिया स्रोतों द्वारा व्यापक रूप से उद्धृत किया गया और इस पर पर्याप्त बल प्रदान किया गया। चीन के संदर्भ में यह एशिया के लिए एक नए सुरक्षा ढांचे की स्थापना करने की राष्ट्रपति जी. जिनपिंग की इच्छा के संदर्भ में उल्लेखनीय है जहां एशियाई देश अपने कार्यों का प्रबंधन करेंगे तथा बाहरी शक्तियां, विशेष रूप से अमेरिका की उसमें अत्यंत कम भूमिका होगी। एक उभरती हुई शक्ति के रूप में, चीन एशियाई भू-राजनीति के लिए एक वैकल्पिक ढांचे का निर्माण करने की योजना बनाने का विचार रखता है तथा यह वक्तव्य चीन को एशियाई सिद्धांतों के साथ उसकी एकजुटता अभिव्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है।
"हमारे साझे हितों द्वारा हमारे बीच अंतरों में कमी आती है" उपराष्ट्रपति द्वारा दिए गए भाषण से एक अन्य वक्तव्य है जिसका पर्याप्त प्रचार-प्रसार प्रदान किया गया। यह वक्तव्य चीन के प्रति चीनी सरकार के दृष्टिकोण के ही संदर्भ में दिया गया है जिससे यह स्पष्ट हुआ कि भारत का चयन प्रीमियर ली के क्वियांग द्वारा विदेशी दौरे के लिए प्रथम गंतव्य के रूप में किया गया था।
इसके अलावा, भारतीय उपराष्ट्रपति की यह टिप्पणी कि वे "चीन के बहुत शीघ्र एक विकसित देश बन जाने" की आशा करते हैं", की भी चीन में व्यापक सराहना की गई। यह बात समझी जा सकती है क्योंकि चीन में वर्तमान बहस चीन में सौम्य रूप से समृद्ध तथा विकसित समाज का निर्माण करने के मुद्दे के इर्द-गिर्द घूमती है।
यह भी उल्लेखनीय है कि उपराष्ट्रपति ने पंचशील की भूमिका का मूल्यांकन भारत-चीन संबंधों के लिए एक ढांचे के रूप में किया। भारत-चीन संबंधों में सिद्धांतों के क्रियान्वयन का मूल्यांकन करने के लिए विश्लेषण किए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, 'हमारा रिकार्ड मिश्रित है, परंतु इसमें सुधार हो रहा है। 1962 का विवाद' भारत-चीन के द्विपक्षीय संबंधों में पंचशील के सिद्धांतों से विपथन का क्षण था। इसके परिणामस्वरूप, भारत में पंचशील के महत्व को नज़रअंदाज किया गया। 1988 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी की चीन की ऐतिहासिक यात्रा ने भारत-चीन संबंधों की नई शुरुआत की नींव रखी। दोनों देशों के क्रमिक नेताओं द्वारा इन संबंधों को शांति और समृद्धि के लिए रणनीतिक और सहयोग की भागीदारी के स्तर तक ले जाया गया। आज जो बात अधिक महत्वपूर्ण है, वह यह आश्वासन देना है कि दस्तावेजों पर हस्ताक्षर, जिनमें पंचशील भी शामिल है, सिद्धांतों का पूरी भावना के साथ अनुपालन करने की गंभीर प्रतिबद्धता भी व्यक्त करते हैं। अनेक अवसरों पर, पंचशील का अंगीकरण सुविधा का विषय बन गया है।
उपराष्ट्रपति ने दोनों देशों तथा विश्व के लिए एक मूल्यवान ढांचे का सुझाव भी दिया। उन्होंने 'वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य में उभरती हुई बहु-ध्रुवीय प्रवृत्ति का अवलोकन भी किया "....भारत और चीन को इस उभरते और विकसित होते ढांचे में पारस्परिक लाभ के लिए सहयोग करना चाहिए।" यह एशिया और विश्व में उभरती हुई शक्तियों के लिए हितों की पूर्ति कर सकता है। जैसा कि एक भारतीय विशेषज्ञ द्वारा कहा गया है, "विश्व के हितों का श्रेष्ठ रूप से संरक्षण सतर्कता से किए गए बहु-ध्रुवीय संवर्धन के माध्यम से तथा शक्तियों के विभिन्न ध्रुवों अथवा स्तंभों के मध्य एक आंतरिक संतुलन के माध्यम से किया जा सकता है। आवश्यकता इस बात की है कि भारत-चीन संबंधों और विश्व मामलों के प्रति उनके दृष्टिकोण में किसी भी नकारात्मक संदर्श अथवा घटनाक्रम को दूर रखा जाए।'
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*डॉ. संजीव कुमार, भारतीय विश्व मामले परिषद, नई दिल्ली में अध्येता हैं
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