प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की 3-4 अगस्त, 2014 तक की गई नेपाल की दो-दिवसीय यात्रा ने भारत-नेपाल संबंधों में एक नई शुरुआत की नींव रख दी है। प्रधानमंत्री ने नेपाल के विकास के लिए अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की तथा संबंधों को एक नई ऊंचाई तक ले जाने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने का वायदा किया। इसके अलावा संप्रभुता पर बल प्रदान करने तथा नेपाल के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने की प्रतिबद्धता के साथ उन्होंने नेपाल की जनता के हृदयों और मस्तिष्कों को जीतने का सफल प्रयास किया और भारत की छवि को एक प्रधान शक्ति के रूप में एक निश्चित सीमा तक ही सीमित रखने का उल्लेख किया।
प्रधानमंत्री ने 1950 की शांति और मित्रता की संधि को संशोधित करने की इच्छा जाहिर की तथा स्पष्टत: यह कहा कि "भारत संधि की समीक्षा करने के लिए नेपाल सरकार की ओर से आने वाले सुझावों, यदि कोई हैं, पर विचार करने के लिए तैयार है। नेपाल इस संधि को 'असमान' समझता है तथा पूर्व में उसने संधि के संशोधन का मुद्दा उठाया है और उसे द्विपक्षीय वार्ताओं में एक मुख्य एजेंडा के रूप में रखने का प्रयास किया है, लेकिन कोई सुझाव प्रस्तुत नहीं किए हैं। 1950 की संधि में नेपाल की आपत्ति मुख्य रूप से इस कल्पना पर आधारित है कि यह संधि 'संप्रभु विदेश और सुरक्षा नीति' की प्रक्रिया की उसकी योग्यता को कमजोर बनाती है। 'संधि' में संशोधन अथवा समायोजन दोनों देशों के हितों की पूर्ति करेगा। भारत को भारत-विरोधी परिकल्पना को तटस्थ बनाने का अवसर प्राप्त होगा जबकि नेपाल के पास अपनी बारहमासी अस्पष्टता को त्यागने तथा भारत के साथ अपने संबंधों के लिए भविष्यगामी दृष्टिकोण अपनाने का अवसर सुलभ होगा। अब यह काठमांडू पर है कि वह प्रधानमंत्री के प्रस्ताव पर विचार करे और परिवर्तन के लिए वार्ताएं प्रारंभ करने के प्रयोजनार्थ आवश्यक कार्यवाही करे।
प्रधानमंत्री मोदी ने नेपाल के संविधान निर्माताओं और राजनीतिक नेताओं को अपनी सहायता प्रदान की तथा "नेपाली नेतृत्व और वहां की जनता को अगले वर्ष के प्रारंभ तक नया संविधान प्रख्यापित करने की उनकी प्रतिबद्धता के लिए भारत सरकार और भारतीय जनता की ओर से शुभकामनाएं संप्रेषित की। "नेपाल 2012 में नए संविधान को तैयार किए बिना संकट का सामना कर रहा है। प्रधानमंत्री ने आशा व्यक्त की कि संविधान सभा संघीय और लोकतांत्रिक राजनतिक संरचना को सहायता प्रदान करने के लिए संविधान तैयार करेगी तथा देश में गुणवत्ता को प्रोत्साहित करेगी। नेपाल के राजनीतिक नेताओं को आश्वासन देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा "समय पर संविधान लाने के लिए हम हर आवश्यक सहायता प्रदान करने के लिए तैयार है।" नेपाल की संविधान सभा को किए गए उनके संबोधन की अनेक नेपाली नेताओं द्वारा 'दलगत राजनीति' से ऊपर उठते हुए सराहना की गई थी। रुचिकर बात है कि पुष्प कुमार दाहल अथवा प्रचंड, जो भारत के कड़े आलोचक रहे हैं, ने प्रेरणाप्रद, प्रोत्साहनपूर्ण और जोशपूर्ण भाषण के लिए प्रधानमंत्री की सराहना की।
यूनाइटेड कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-माओवादी (यूसीपीएन-एम) के अध्यक्ष प्रचंड ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ भेंट करके इस बात के प्रति दृढ़ विश्वास प्रकट किया कि 'भारत-नेपाल संबंधों में एक नया अध्याय' खुल गया है।
यात्रा की समाप्ति पर जारी किए गए संयुक्त वक्तव्य ने आर्थिक और व्यापार सहयोग के लिए अनेक तरीकों का अन्वेषण करने की आवश्यकता को रेखांकित किया। प्रधानमंत्री मोदी ने राजमार्ग, सूचना प्रौद्योगिकी और विद्युत के लिए पारेषण लाइनों के माध्यम से नेपाल की सहायता करने हेतु एचआईटी अवधारणा को रेखांकित किया। भारत-नेपाल सीमावर्ती क्षेत्र में सड़कों की खस्ता स्थिति, सीमावर्ती राज्यों में बिजली की मांग और आपूर्ति में भारी अंतर तथा नेपाल में और भारत की ओर सीमावर्ती क्षेत्रों में संचार नेटवर्क की खराब स्थिति के संबंध में प्राथमिकता के आधार पर कदम उठाए जाने की आवश्यकता है ताकि सड़कों, संचार माध्यमों और विद्युत आपूर्ति में सुधार किया जा सके।
यह अनुमान लगाया गया था कि विद्युत व्यापार करार (पीटीए) पर प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान हस्ताक्षर किए जाएंगे परंतु दोनों सरकारें इस दौरे से पूर्व विद्युत व्यापार पर किसी सर्वसम्मति पर नहीं पहुंच पाई थीं। जल संसाधनों पर भारत के 'संभव' एकाधिकार के बारे में नेपाल की आशंका पारस्परिक रूप से सहमत करार में विलंब कारित कर रही है। बाधाओं के बावजूद दोनों पक्ष आशावादी हैं तथा आने वाले माहों में इस सौदे को सफल बनाने के लिए आवश्यक तैयारियां करेंगे। नेपाल के पास लगभग 83,000 मेगावट (एमडब्ल्यू) की संभावित जल-विद्युत क्षमता है, जिसमें से लगभग 40,000 मेगावाट आर्थिक और तकनीकी दृष्टि से व्यवहार्य है, जो पर्याप्त निर्यात क्षमता पेश करती है तथा स्वाभाविक रूप से यह पर्याप्त मात्रा में विदेश मुंद्रा अर्जित करने का एक सुनहरा अवसर है। बंद पड़ी परियोजनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आग्रह किया कि महाकाली नदी पर 5600 मेगावाट की पंचेश्वर बहुउद्देश्यीय योजना को जल्द प्रारंभ किया जाए। दौरे की समाप्ति पर जारी किए गए संयुक्त वक्तव्य के अनुसार "दोनों पक्षकारों ने अन्य तीन परियोजना विकास करार (पीडीए) अर्थात् अरुण-III, अपर मर्सियांगडी और नामाकोशी-III को शीघ्र समाप्त किए जाने की इच्छा व्यक्त की। उन्होंने इस बात पर बल प्रदान किया कि इस आकार की परियोजनाओं का विकास नेपाल की व्यापक जल विद्युत क्षमता के विकास के लिए एक प्रमुख उत्प्रेरक होगा।"
प्रधानमंत्री की यात्रा के संयुक्त वक्तव्य ने "उनके भू-भागों का प्रयोग एक-दूसरे के विरुद्ध किए जाने की अनुमति न देने के लिए संबंधित सरकारों की प्रतिबद्धता की पुन: पुष्टि की।" बार-बार दोहराए जाने वाले आश्वासनों के बावजूद, दोनों पक्ष पराराष्ट्रीय अपराधियों द्वारा खुली सीमा के दुरुपयोग को कम करने में सफल नहीं हो पाए हैं। सीमापार से होने वाले अपराधों को कम करने के लिए दोनों देशों को एक प्रभावी संयुक्त सीमा प्रबंध तंत्र विकसित करने की आवश्यकता है। सीमा पर विद्यमान स्थिति में निरंतर सतर्कता, संयुक्त गश्त तथा पराराष्ट्रीय अपराधों का सामना करने के लिए एक संयुक्त कार्यबल का गठन करते हुए सुधार लाया जा सकता है। सीमापार व्यापार और आवाजाही में सुधार का लक्ष्य बनाते हुए दोनों देश समस्त पांच सहमत किए गए सीमावर्ती स्थानों पर रेलवे लाइन तथा चार एकीकृत जांच चौकियों (आईसीपी) का निर्माण करने की योजना बना रहे हैं। इस यात्रा की समाप्ति पर जारी संयुक्त वक्तव्य के अनुसार "दोनों प्रधानमंत्रियों ने सक्षम अधिकारियों को सीमा पार जाने वाली रेलवे लाइन के निर्माण का निर्देश दिया।" यह एक स्वागतयोग्य कदम है जिसकी सराहना की जानी चाहिए। भारत-नेपाल सीमावर्ती क्षेत्र में सड़कों और रेलवे की सुधारी गई अवसंरचना नेपाल के साथ व्यापक आर्थिक संबंधों के भारत के दृष्टिकोण के अनुरूपरक होगी।
इस यात्रा ने भारत-नेपाल संबंधों में एक नए अध्याय का सूत्रपात किया है। 'संघीय और लोकतांत्रिक गणराज्य के विचार का अनुसमर्थन करके प्रधानमंत्री मोदी ने नेपाल के इस भय को दूर कर दिया कि भारत में नई सरकार राजतंत्र की पुन: प्राप्ति के लिए कार्य करेगी। नेपाल की संसद में दिए गए उनके ऐतिहासिक भाषण ने नेपाली जनता के हृदय और मन को जीत लिया। दोनों देशों ने नई विकासात्मक परियोजनाओं को पृष्ठांकित किया, सीमा पर शांति और सुरक्षा में सुधार लाने की उनकी इच्छा दर्शाई, सीमा पर अवसंरचना में सुधार लाने का वायदा किया तथा अनेक परियोजनाओं में धीमी गति पर चिंता व्यक्त की। वस्तुत: भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक गति पहले से ही लाई जा चुकी है तथा बेहतर अनुवर्ती कार्यवाही और क्रियान्वयन के साथ इस गति को जारी रखा जाना चाहिए।
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* डॉ. अमित कुमार, भारतीय विश्व मामले परिषद, नई दिल्ली में अध्येता हैं
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