सार
कनाडा अक्टूबर 2019 में अपना संघीय चुनाव आयोजित करने वाला है। कनाडा के तीनों प्रमुख राजनीतिक दल आर्थिक आव्रजन के पक्ष में हैं। कनाडा में भारतीय प्रवासियों की एक समर्थन आधार के रूप में बहुत अधिक मांग है क्योंकि वे उच्च आय प्राप्त करने वाले पेशेवर और शिक्षित होते हैं। एक समूह के रूप में, भारतीय मूल के लोग, विशेष रूप से कनाडा के सिख प्रवासी एक शक्तिशाली समूह और घरेलू राजनीतिक क्षेत्र में एक बड़ी आवाज बन गए हैं। कनाडा में 2015 के चुनावों में, भारतीय कनाडाई लोगों ने संसद में उन्नीस सीटों की जीत दर्ज की थी।
परिचय
कनाडा अक्टूबर 2019 में अपने संघीय चुनाव आयोजित करने वाला है। इन चुनावों में प्रमुख राजनीतिक दल हैं: प्रधान मंत्री जस्टिन ट्रूडो के नेतृत्व में लिबरल पार्टी, जो सत्ता को बरकरार रखने की उम्मीद में है। दो मुख्य विपक्षी दल हैं मिस्टर एंड्रयू शीर के नेतृत्व में कंजर्वेटिव पार्टी और श्री जगमीत सिंह के नेतृत्व में न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी)। अनुमान लगाया जाता है कि एक तीसरी राजनीतिक दल, ग्रीन पार्टी, मिस एलिजाबेथ मे के नेतृत्व में संसद में अपनी उपस्थिति बढ़ाएगी। राजनीतिक विचारों के अनुसार कनाडा के चुनाव में कांटे की टक्कर होने की भविष्यवाणी की गई है, क्योंकि प्रधान मंत्री ट्रूडो पर एक निजी संस्था की जांच करने के लिए अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों पर अनुचित दबाव डालने का आरोप है और लिबरल सरकार के बारे में सामाजिक सुधारों में धीमी प्रगति सहित घाटे के बजट को लेकर आलोचना की जा रही है।
इन चुनावों में कुछ प्रमुख मुद्दों पर चर्चा की जा रही है जिनमें से एक कनाडा की अर्थव्यवस्था की स्थिति है। सरकार द्वारा घोषित सामाजिक कल्याण योजनाओं पर अर्थव्यवस्था के प्रभाव के बारे में चिंताएं हैं। ‘न्यू नाफ्टा’ या संयुक्त राज्य अमेरिका-कनाडा-मेक्सिको व्यापार सौदे (यूएससीएएम) को अब तक तीन देशों से मंजूरी नहीं मिली है। विदेश मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने कहा है कि सरकार जल्द ही कनाडाई संसद के समक्ष ये समझौता पेश करेगी। यह कदम तब उठाया गया जब संयुक्त राज्य अमेरिका ने एल्यूमीनियम और स्टील पर लगा टैरिफ हटा दिया, जो प्रधान मंत्री ट्रूडो द्वारा अनुसमर्थन के लिए रखी गई एक पूर्व शर्त थी। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि सरकार कब विधेयक पेश करेगी क्योंकि अक्टूबर के चुनाव से पहले जून में ही संसद बंद हो जाएगा।
अभियान के रुख का हिस्सा बनने वाला दूसरा मुद्दा जलवायु परिवर्तन है। नई राष्ट्रीय कार्बन मूल्य निर्धारण योजना का कुछ राज्यों द्वारा विरोध किया जा रहा है और उन्होंने संघीय सरकार को अदालत में चुनौती दी है। आम जनता इस बात से चिंतित हैं कि इससे पेट्रोलियम की कीमत और हीटिंग बिल में वृद्धि आएगी। कनाडा के लोगों के लिए तीसरा प्रमुख मुद्दा आव्रजन है। संयुक्त राज्य अमेरिका के विपरीत, कनाडाई लोग आप्रवासियों के विरोध में नहीं हैं लेकिन बड़ी संख्या में शरण प्रार्थियों ने सरकार और स्थानीय निकायों के संसाधनों को प्रभावित किया है। ऐसा प्रतीत होने लगा है कि प्रधान मंत्री ट्रूडो सीमा पार करने के संकट को संभालने में असमर्थ रहे हैं।
कनाडा के तीनों प्रमुख राजनीतिक दल आर्थिक आव्रजन के पक्ष में हैं। लिबरल पार्टी के अधीन सरकार ने वर्धित आव्रजन लक्ष्यों की नीतियों को अपनाया है, जिससे 2021 के अंत तक कनाडा में एक मिलियन से अधिक नए स्थायी निवासियों का स्वागत किया जाएगा और देश में आव्रजन दर, देश की आबादी के लगभग एक प्रतिशत तक पहुँच जाएगी। कंजर्वेटिव दल ने एक ऐसी प्रणाली बनाने की घोषणा की है जो आप्रवासियों की आत्मनिर्भर बनने की क्षमता और कनाडा के श्रम बाजार की जरूरतों, दोनों पर बल देगी। एनडीपी ने अब तक आव्रजन नीति के बारे में अपना दृष्टिकोण विस्तार में प्रस्तुत नहीं किया है, लेकिन आव्रजन के मुद्दे पर दल के विचारों में आम तौर पर आप्रवासियों के लिए करुणा और परिवार के बिछड़े सदस्यों को वापस मिलाने जैसे मुद्दों के अनुकूल रुख पर बल दिया गया है। ग्रीन पार्टी की आप्रवासन पर 16 नीतिगत प्राथमिकताओं को इस अवधारणा पर समर्पित किया गया है कि कनाडा “एक न्यायपूर्ण, निष्पक्ष और खुला देश है” और ये विश्वास कि कनाडा के नए लोग “हमारे देश के लिए अविश्वसनीय कौशल और क्षमता का स्रोत हैं।”1
कनाडा में विजिबल माइनॉरिटी
कनाडा में विजिबल माइनॉरिटी (दृश्यमान अल्पसंख्यकों) का बढ़ता राजनीतिक प्रतिनिधित्व असल में किसी भी प्रमुख राजनीतिक दल के लिए सुस्पष्ट रूप से आव्रजन विरोधी कदम उठाना लगभग असंभव बना देता है। 19 अक्टूबर, 2015 के संघीय चुनाव में विजिबल माइनॉरिटी मूल के 45 सांसदों के निर्वाचन के साथ संसद में नस्लीय विविधता के प्रतिनिधित्व में उच्च जलांक स्थापित हुआ है। 2011 के आम चुनाव की तुलना में उनकी सापेक्ष उपस्थिति चार प्रतिशत अंकों से बढ़ गई थी। तीन मुख्य राष्ट्रीय दलों ने, एक-साथ मिलकर और अलग-अलग, सबसे अधिक संख्या में विजिबल माइनॉरिटी उम्मीदवारों को नामांकित किया और साथ ही अपने नए प्रतियोगियों के मध्य सबसे अधिक प्रतिशत में विजिबल माइनॉरिटी को नामांकित किया।2 यह रुझान 2019 के चुनावों के लिए भी बने रहने की संभावना है।
2011 की जनगणना के अनुसार कनाडा में तीन सबसे बड़े विजिबल माइनॉरिटी समूह दक्षिण एशियाई, चीनी और अफ्रीकी मूल के लोग हैं। ये विजिबल माइनॉरिटी आबादी का 61.3% हिस्सा बनाते हैं। कुल 1,567,400 व्यक्तियों ने खुद को दक्षिण एशियाई बताया है जो सबसे बड़ा समूह है। ये विजिबल माइनॉरिटी की कुल आबादी का एक-चौथाई (25.0%) हिस्सा और कनाडा की कुल आबादी का 4.8% हिस्सा बनाते हैं।
दक्षिण एशियाई प्रवासी 2006 की जनगणना में दर्ज सबसे बड़े विजिबल माइनॉरिटी समूह थे। दो तिहाई दक्षिण एशियाई लोगों ने पूर्व भारतीय जातीय वंश, 9.3% ने पाकिस्तानी, 8.5% ने श्रीलंकाई और 4.7% ने पंजाबी मूल के होने की सूचना दी। दक्षिण एशियाई लोगों ने इस मूल के होने की सूचना या तो अकेले या अन्य मूल के साथ होने की दी थी।3
2011 में निवास क्षेत्रों के अनुसार, कनाडा के विदेश-जात आप्रवासियों की अधिकतर आबादी (94.8%) इन चार प्रांतों में रहती थीं: ओन्टेरियो, ब्रिटिश कोलंबिया, क्यूबेक और अल्बर्टा। ऐसे दो प्रांत जहाँ के सबसे ज्यादा लोग देश के बाहर पैदा हुए थे, वे हैं ओंटारियो, जहाँ लगभग 3,611,400 या 53.3% आप्रवासी रहते थे, और ब्रिटिश कोलंबिया, जहाँ लगभग 1,191,900 या 17.6% आप्रवासी रहते थे। कुल मिलाकर कहा जाए तो, इन दोनों प्रांतों में आप्रवासी आबादी का हिस्सा कनाडाई आबादी के हिस्से से अधिक थी। इसकी तुलना में, इन प्रांतों में 83.7% लोग हैं, जो कनाडा में पैदा हुए थे। ऐसा पाया गया है कि कनाडा में पैदा हुए लोगों की तुलना में आप्रवासियों का शहरों में रहने की संभावना अधिक है। कुल मिलाकर, (2011 की जनगणना के अनुसार) कनाडा के तीन सबसे बड़े जनगणना महानगरीय क्षेत्र (सीएमए)4 - टोरंटो, वैंकूवर और मॉन्ट्रियल – में देश की आप्रवासी आबादी के 63.4% और हाल ही में आए आबादी के 62.5% लोग रहते हैं।5
स्रोत: कनाडा की सांख्यिकी
भारतीय मूल के कनाडाई और कनाडा के चुनाव
कनाडा में भारतीय प्रवासियों की एक समर्थन आधार के रूप में बहुत अधिक मांग है क्योंकि वे उच्च आय प्राप्त करने वाले पेशेवर और शिक्षित होते हैं। एक समूह के रूप में, भारतीय मूल के लोग, विशेष रूप से कनाडा के सिख प्रवासी एक शक्तिशाली समूह और घरेलू राजनीतिक क्षेत्र में एक बड़ी आवाज बन गए हैं। भारतीय उप-महाद्वीप से दर्ज किए गए प्रथम आप्रवासी सिख संप्रदाय के लोग थे। वे 1904 में वैंकूवर पहुंचे। आज, लगभग 30,000 भारतीय नागरिक हर साल कनाडा के नए स्थायी निवासी बनते हैं। लगभग दस हजार लोग घूमने, काम करने या अध्ययन के लिए कनाडा आते हैं।6 ओंटारियो और ब्रिटिश कोलम्बिया, उसके बाद अल्बर्टा में भारतीय मूल के सबसे अधिक प्रतिशत लोग रहते हैं और वे रहने के लिए टोरंटो और वैंकूवर, इन दो शहरों को सबसे ज्यादा पसंद करते हैं। वर्तमान के संसद में भी उनका बराबर प्रतिनिधित्व होता है। हालांकि भारतीय मूल के कनाडाई कनाडा में एक बड़े अल्पसंख्यक समूह हैं, किन्तु सिख वंश के भारतीय-कनाडाई लोग सरकार और जन-जीवन में काफी लोकप्रियता हासिल करने में सक्षम रहे हैं। उदाहरण के लिए, अल्बर्टा प्रांत के चौंतीस सांसदों में से तीन भारतीय मूल के हैं, ब्रिटिश कोलंबिया में पैंतालिस सांसदों में से पांच सांसद भारतीय मूल के हैं जिनमें कुछ प्रख्यात सिख नेता जैसे कि जगमीत सिंह और हरजीत सज्जन भी शामिल हैं। इसके अलावा भारतीय मूल के कई ऐसे राजनेता भी हैं जो वर्तमान में संसद के सदस्य नहीं हैं।
कनाडा के 2015 के चुनावों में, भारतीय कनाडाई ने संसद में उन्नीस सीटों की जीत दर्ज की थी। ये संख्या पिछली सरकार में जीती गई सीटों की संख्या से दोगुनी थी। संसद के उन्नीस सदस्यों में से, अठारह सदस्य भारत के पंजाब राज्य से हैं। इनमें से अधिकतर सदस्य ओंटारियो प्रांत के वासी हैं, जहाँ ऊपर प्रस्तुत उक्ति के अनुसार विदेशी मूल के सबसे अधिक लोगों का वास है।
संसद और मंत्रिमंडल के कुछ प्रमुख भारतीय मूल के सदस्य हैं, सांसद हरजीत सज्जन, राष्ट्रीय रक्षा मंत्री और सांसद अमरजीत सोही, अवसंरचना एवं संचार मंत्री; सांसद नवदीप बैंस, नवाचार, विज्ञान एवं आर्थिक विकास मंत्री और सांसद बर्दिश चग्गर, जिन्होंने लघु व्यवसाय एवं पर्यटन मंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की थी।
सांसद हरजीत सज्जन, |
सांसद अमरजीत सोही |
सांसद बर्दिश चग्गर |
सांसद नवदीप बैंस |
सांसद अंजू ढिल्लों (लिबरल पार्टी), क्यूबेक प्रांत में सरकार के तीन स्तरों में से किसी भी स्तर में चुनी जाने वाली पहली सिख के साथ-साथ दक्षिण एशियाई महिला भी हैं। उन्होंने न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) की अध्यक्ष मिस इसाबेल मोरिन को हराया और अब वे इस दल की अगुआई कर रहीं हैं।
सांसद अंजू ढिल्लों |
2018 में, श्री जगमीत सिंह कनाडा की तीन प्रमुख पार्टियों में से एक न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) का नेतृत्व करने वाले पहले सिख नेता बने। वे भारतीय आप्रवासियों के पूत हैं और सिख धर्म का पालन करते हैं और अगर उनकी पार्टी अक्टूबर 2019 में संघीय चुनाव जीत जाती है, तो वे कनाडा के पहले सिख प्रधानमंत्री बन जाएंगे। एनडीपी ने संघीय सरकार बनाने के लिए पर्याप्त सीटें नहीं जीती हैं, पर फिर भी, वे प्रांतों में एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं। ये दल वर्तमान ब्रिटिश कोलंबिया और अल्बर्टा में सत्ता में है।
श्री जगमीत सिंह, न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता
ऐसा प्रतीत होता है कि एनडीपी के नेता विशेष रूप से भारतीय प्रवासियों का मत बटोरकर प्रधान मंत्री ट्रूडो को चुनौती दे सकते हैं। क्योंकि वे एक आकर्षक युवा राजनेता हैं और कनाडा में सभी समुदायों और लिंग के लोगों के साथ काम करते हुए परिवर्तन लाना चाहते हैं, इसलिए श्री सिंह को भी वहीं लाभ मिलते दिख रहे हैं जो 2015 में प्रधान मंत्री ट्रूडो को मिले थे। श्री सिंह की राजनीतिक विचारधारा सामाजिक लोकतांत्रिक नीतियों पर केंद्रित है, जिसका उद्देश्य गरीबी और असमानता घटाना है। 2019 के चुनावों के लिए उनका अभियान ‘एक-साथ मिलकर, प्रेम और साहस से कनाडा का निर्माण करने’ के प्रसंग पर आधारित है। वे जलवायु परिवर्तन, सुलह और चुनावी सुधार जैसे मुद्दों को संबोधित करने के अपने अभियान एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं और यह सुनिश्चित करने की दिशा में काम कर रहे हैं कि कनाडा में किसी भी व्यक्ति को उसके रंग के कारण कहीं रोका ना जाए।7 ये वहीं मुद्दे हैं जो लिबरल पार्टी के एजेंडे का हिस्सा रहे हैं, लेकिन अब सवालों में घिरे हुए हैं। विपक्ष का हिस्सा होने के नाते, वे आर्थिक मुद्दों पर सरकार के ट्रैक रिकॉर्ड की आलोचना करते रहे हैं। अपनी सबसे हालिया वितर्कों में, उन्होंने प्रधान मंत्री ट्रूडो पर जांच बिठाने और उनसे इस्तीफे की मांग की थी, क्योंकि उन पर आरोप थे कि उन्होंने क्यूबेक में स्थित एक निर्माण कंपनी एसएनसी-लावालिन के खिलाफ, लीबिया के अधिकारियों को घूस देने के आरोपों पर मुकदमा चलाने का निर्णय लेने के लिए अपने न्याय मंत्री एवं महान्यायवादी पर अनुचित दबाव डाला था। किन्तु, सरकार ने कहा कि कंपनी को एक समझौता दिया जाए जिसके तहत उसे अपनी गलतियों के लिए जुर्माना भरना होगा। भारत के संबंध में, श्री सिंह ने भारत में अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती हिंसा के बारे में भी चिंता व्यक्त की है। एक वकील होने के नाते, उन्होंने खालिस्तान समर्थकों का बचाव करने के लिए काम किया और कहा कि उन्होंने 'आत्मनिर्णय के अधिकार' का समर्थन किया है।
भारतीय और विशेष रूप से सिख प्रवासियों के मध्य अपने समर्थन का आनंद लेना जारी रखने के लिए, प्रधान मंत्री ट्रूडो ने कोमागाटामारू घटना के लिए 2016 में हाउस ऑफ कॉमन्स में औपचारिक रूप से माफी मांगी, जब 1914 में भारतीय प्रवासियों को लेकर आ रही एक जहाज को वैंकूवर से वापस भेज दिया गया था। फरवरी 2018 में उनके भारत दौरे को लेकर कनाडा में उनकी आलोचना की गई थी और कहा गया कि सिखों का मत बटोरने के लिए ये चुनाव से पहले की गई एक कोशिश है। उनकी सरकार को दुबारा से इन्ही आरोपों का सामना करना पड़ा जब उन्होंने कनाडा के प्रति आतंकवाद के खतरे पर जन सूचना की भाषा बदल दी थी। दिसंबर 2018 में पहली बार जारी की गई सूचना में खालिस्तान/सिख आतंकवाद को कनाडा के लिए खतरा बताया गया था। इस सूचना में सिख समूहों बब्बर खालसा अंतर्राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सिख युवा संघ का नाम शामिल था और इसे आतंकवाद के साथ जुड़ा हुआ बताया गया था। सूचना में स्पष्ट रूप से ऐसे संगठनों के लिए कनाडा स्थित “वित्तपोषण” के बारे में उल्लेख किया गया है।8 उन्हें कनाडा की आपराधिक संहिता के तहत आतंकवादी संस्थाओं के रूप में भी सूचीबद्ध किया गया है। हालांकि, सिख समूहों के विरोध का सामना करने के पश्चात, अप्रैल 2019 में, भाषा बदल दी गई। अपनी समीक्षा में, सरकार ने स्पष्ट किया, “सरकार सावधानीपूर्वक ऐसे शब्दों का चुनाव करेगी जो इरादे या विचारधारा पर केंद्रित हो। उदाहरण के लिए, पहले कदम के रूप में, सरकार ऐसे शब्दों का उपयोग करने के बजाय जो अनजाने में सम्पूर्ण धर्म का खंडन करते हैं, इन शब्दों का उपयोग करेगी: भारत में एक स्वतंत्र राज्य स्थापित करने के लिए हिंसा का समर्थन करने वाले लोगों को अतिवादी कहा जाएगा।”9 पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भाषा में किए गए बदलाव का विरोध किया और कहा कि ये भारतीय और वैश्विक सुरक्षा के लिए खतरा है। उन्होंने कहा कि इस तरह के करतूतों से आतंकवादी गतिविधियों को समर्थन और वास्तव में अतिवाद को बढ़ावा मिलता है।10 सूचना की भाषा में बदलाव करने की ये घटना पिछले साल इसी तरह के एक प्रकरण की याद दिलाता है, जिसमें कुछ सिख कार्यकर्ताओं के शिकायत के बाद “खालिस्तानी अतिवाद की निंदा करते और भारत में एक स्वतंत्र खालिस्तानी राज्य बनाने के पक्ष में हिंसा करने वाले किसी भी व्यक्ति की बड़ाई करते” एक संसदीय प्रस्ताव को निरस्त करना पड़ा।11 भारत पंजाब में खालिस्तान आंदोलन को रोकने और हाशिए पर रखने में सक्षम रहा है; पर फिर भी ये चिंता का विषय बना हुआ है। कुछ कनाडाई सिख प्रवासी भारतीयों द्वारा आंदोलन समर्थन भारतीय राज्य के प्रति अपना बैर जारी रखने के लिए कट्टरपंथियों को उकसाता है।
कनाडा की कंज़र्वेटिव पार्टी भी भारतीय प्रवासियों का समर्थन जुटाने की कोशिश कर रही है। कनाडा के कंज़र्वेटिव पार्टी के नेता श्री एंड्रयू शीर ने अक्टूबर 2018 में भारत का दौरा किया। इस दौरे में पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ एक मुलाकात और हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) की यात्रा शामिल थी। अपने दौरे के दौरान उन्होंने कहा कि कंजर्वेटिव पार्टी हिंसा का समर्थन नहीं करती है और ऐसे समूहों या लोगों का साथ नहीं देंगे जो अपने राजनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हिंसा का विकल्प चुनते हैं। उन्होंने स्पष्ट बताया कि उनकी पार्टी और कनाडा के लोग एकजुट भारत के लिए खड़े हैं और कनाडाई समाज के प्रति अपना बहुमूल्य योगदान देने के लिए कनाडा में रहने वाले सिखों की सराहना करते हैं। उनके दौरे का उद्देश्य भारत के साथ संबंधों को मजबूत करना और अगर अक्टूबर 2019 में सत्ता में आते हैं तो भारत के साथ रणनीतिक संबंधों का विस्तार करना था। कंजर्वेटिव पार्टी ने ट्रूडो सरकार की आलोचना की क्योंकि वे सिखों के ‘अलगाववादी प्रचारों’ के दबाव का सामना करने में असमर्थ रहे थे, हालांकि, इसके कुछ सांसदों ने समुदाय से समर्थन सुनिश्चित करने के प्रयास में पंजाब की स्वतंत्रता हेतु शांतिपूर्वक बातचीत करने की आवश्यकता के बारे में कहा था।
यद्यपि अनुमान लगाया जाता है कि कनाडा में रहने वाली कुल आबादी का चार प्रतिशत भारतीय मूल के कनाडाई लोग हैं, पर फिर भी भारतीय सिख समुदाय, जो इस आबादी का आधा हिस्सा हैं, कनाडा के सार्वजनिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे अब तक के कनाडा में भारतीय मूल के समुदाय के सबसे प्रमुख और राजनीतिक रूप से सक्रिय समुदाय रहे हैं। कनाडा के राजनीतिक दलों को उनसे मिलने वाली आर्थिक सहायता इसका मुख्य कारण है। समुदाय के नेता गुरुद्वारों के माध्यम से इकट्ठा किए गए धन से उम्मीदवारों को सहायता प्रदान करने में सक्षम हैं। सिख समुदाय को किसी विशेष उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करने के लिए प्रभावित करने की भी क्षमता रखते हैं। यह इस तथ्य से स्पष्ट होता है कि प्रधान मंत्री ट्रूडो समेत राष्ट्र के प्रमुख नेताओं ने बैसाखी समारोह और खालसा दिवस में भाग लिया जिसने आतंकवादियों और उनके कार्यों का महिमामंडन किया है। इस तरह के समारोह कनाडा के राजनेताओं को चुनावी रूप से शक्तिशाली जातीय समूह को संबोधित करने के लिए मंच प्रदान करते हैं। जिन निर्वाचन क्षेत्रों में कड़ा मुकाबला होता है, वहां अक्सर सिखों के मत को निर्णायक घटक के रूप में देखा जाता है। सिख समुदाय ने अपनी ताकत और नुकसान पहुंचाने की क्षमता तब दिखाई, जब इसने कनाडा में आतंकवाद के खतरे पर उपरोक्त उल्लिखित सार्वजनिक सूचना में इस्तेमाल किए गए शब्दों के प्रति अपनी नाराजगी जताते हुए एक प्रभावशाली गुरुद्वारा, ओंटारियो खालसा दरबार के बोर्ड में लिबरल पार्टी के दो सांसदों के पिताओं को नियुक्त करने से इनकार कर दिया था।
कनाडा के राजनीतिक दलों में सिख समुदाय की प्रमुख भूमिका का एक अन्य कारण है “पे-टू-प्ले” आधार के माध्यम से निधि एकत्र करना, जिसमें कोई भी मतदाता जो किसी राजनेता को पद के लिए नामित करने में मदद करना चाहता है, उन्हें पहले एक फ़ॉर्म पर हस्ताक्षर करना और सदस्यता शुल्क का भुगतान करना होता है। इससे बड़े समूह जैसे कि निगम अनुकूल नीतिगत परिणाम हासिल करने की आशा से काफी अधिक मात्रा में चंदा इकट्ठा करने में सक्षम रहे हैं। यह धार्मिक मण्डली बनाने और आप्रवासी या विजिबल माइनॉरिटी समूहों को वफादारी के साथ मतदान कर एक मुख्य भूमिका निभाने की अनुमति देता है। क्योंकि सिख प्रवासी अधिक सुस्पष्ट और राजनीतिक रूप से सक्रिय होते जा रहे हैं, कनाडा की राजनीति में इनका अतिप्रतिनिधित्व और साथ ही प्रभाव भी बढ़ता जाएगा।
भारत और कनाडा
व्यापार और वाणिज्य, निवेश और विकास परियोजनाओं के माध्यम से अंतर्योजन बढ़ने की वजह से और प्रवासियों के बढ़ते महत्व के कारण एक देश के घरेलु मुद्दे दूसरे देशों के राजनैतिक-आर्थिक निर्णयों पर भी असर डालते हैं।
कनाडा के साथ भारत के संबंध घनिष्ठ सहयोग और मनमुटाव के चरणों से गुजरे हैं। यह विशेष रूप से शीत युद्ध के दौरान, खासकर परमाणु प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सत्य था। शीत युद्ध के बाद के दशकों में भी संबंधों में अधिक सुधार नहीं देखी गई। भारत के परमाणु परीक्षण (1998) की कनाडा द्वारा निंदा की गई और भारत पर प्रतिबंध लगाए गए। बहरहाल, हाल के वर्षों में, कनाडा के साथ भारत के संबंधों में वृद्धि देखी गई है। उच्च स्तरीय दौरों, व्यापार समझौतों, रक्षा सहयोग, स्वच्छ ऊर्जा सहयोग, परमाणु सहयोग और लोगों के बीच बढ़ते आपसी संपर्क के माध्यम से द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत किया जा रहा है। भारत और कनाडा कई महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों जैसे कि मुक्त व्यापार, जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद आदि पर एक साझा दृष्टिकोण रखते हैं। भारत के लिए, यह संबंध इसके आर्थिक विकास और कनाडा में आर्थिक रूप से स्थिर तथा राजनीतिक रूप से सक्रिय भारतीय प्रवासियों के साथ संबंधों को गहरा करने के लिए महत्वपूर्ण रहा है। प्रधान मंत्री ट्रूडो और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी बतौर शासनाध्यक्ष चार बार: प्रधान मंत्री ट्रूडो के भारत दौरे (फरवरी 2018) के दौरान, मनीला, फिलीपींस में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (नवंबर 2017); हैम्बर्ग, जर्मनी में आयोजित जी-20 (जुलाई 2017) और वाशिंगटन परमाणु सुरक्षा शिखर सम्मेलन (अप्रैल 2016 में) में मुलाकात करने में कामयाब रहे हैं। अप्रैल 2015 में प्रधानमंत्री मोदी के कनाडा दौरे के दौरान प्रधानमंत्री ट्रूडो ने बतौर लिबरल पार्टी के नेता टोरंटो में उनसे मुलाकात की थी।
इन संबंधों में सबसे बड़ी अड़चनें कनाडा के खालिस्तान समर्थक कार्यकर्ता और भारत पर इसके विनाशकारी प्रभाव रहीं हैं। कनाडा में एक-के-बाद-एक बनने वाली सरकारों द्वारा इन संगठनों के खिलाफ कोई कार्रवाई ना की जाने के कारण आन्दोलन को खुला और आर्थिक समर्थन मिलता रहा है, जिससे संबंधों में प्रगति धीमी होती जाएगी। भारत अपने नागरिकों को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है और कनाडा द्वारा अपने नागरिकों को भी ये अधिकार देने की सराहना करता है, पर फिर भी, भारत चाहेगा कि कनाडा के उच्च सुरक्षा अधिकारी और राजनेता ये सुनिश्चित करने के लिए उचित कदम उठाएं कि इन अधिकारों का दुरुपयोग भारत में और/या भारत के खिलाफ हिंसा और अलगाववाद को उकसाने और/या ऐसे संगठनों और लोगों को आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए ना किया जाए जो भारत की क्षेत्रीय अखंडता को भंग करते हैं। भारत ये भी चाहेगा कि कनाडा कुछ ऐसे कदम उठाए जिससे निकाले जा रहे जुलूसों में आतंकवादियों और भारत के खिलाफ उनके करतूतों का महिमामंडन रोका जा सके। संबंधों को अधिक मजबूत बनाने के लिए, कनाडा को इन मुद्दों पर भारत की चिंताओं को गहराई से समझने और उन्हें हल करने की आवश्यकता है। जहाँ दोनों राष्ट्रों के बीच आर्थिक संबंध आगे बढ़ रहे हैं, वहीं ये सुनिश्चित करने के लिए कि दोनों राष्ट्र मजबूत संबंध बनाने के लिए आपसी मतभेदों को दूर कर करीब आएं, संबंधों के राजनीतिक और सुरक्षा पहलुओं को और गहरा बनाने की आवश्यकता है।
*****
* लेखिका, शोधकर्ता, वैश्विक मामलों की भारतीय परिषद, नई दिल्ली।
अस्वीकरण: इसमें व्यक्त किए गए विचार शोधकर्ता के हैं, परिषद के नहीं।
_________________________________
1 Stephen Smith And Noah Turner, “Canada’s 2019 federal election: How could it affect immigration and Express Entry?,” https://www.cicnews.com/2019/05/canadas-2019-federal-election-how-could-it-affect-immigration-and-express-entry-0512307.html#gs.dqx564, Accessed on 23 May 2019.
2 Jerome H. Black, “The 2015 Federal Election: More Visible Minority Candidates and MPs,” http://www.revparl.ca/40/1/40n1e_17_Black.pdf, Accessed on 23 May 2019, pp 21
3Statistic Canada, Census Programme, “Ethnic and cultural origins of Canadians: Portrait of a rich heritage,” https://www12.statcan.gc.ca/census-recensement/2016/as-sa/98-200-x/2016016/98-200-x2016016-eng.cfm Accessed on 08 March 2019.
4Area consisting of one or more neighbouring municipalities situated around a core. A census metropolitan area must have a total population of at least 100,000 of which 50,000 or more live in the core. A census agglomeration must have a core population of at least 10,000.
5Statistic Canada, Census Programme, “Ethnic and cultural origins of Canadians: Portrait of a rich heritage,” https://www12.statcan.gc.ca/census-recensement/2016/as-sa/98-200-x/2016016/98-200-x2016016-eng.cfm Accessed on 08 March 2019.
6 Canada Immigration Newsletter, “The Story of Indian Immigration to Canada,” https://www.cicnews.com/2014/04/story-indian-immigration-canada-043365.html#gs.7mku6j, Accessed on 24 August 2019.
7Peter Zimonjic, “Jagmeet Singh wins leadership of federal NDP on first ballot,” Accessed on 01 November 2017.
8 J.J. McCullough, “Fringe Sikh interests have outsize influence in Canada. Why is no one pushing back?,” https://www.washingtonpost.com/opinions/2019/05/06/fringe-sikh-interests-have-outsize-influence-canada-why-is-no-one-pushing-back/?noredirect=on&utm_term=.c8524f78ca0b, Accessed on 27 May 2019.
9Government of Canada, “2018 Public Report on the Terrorism Threat to Canada: April 12 Update,” https://www.publicsafety.gc.ca/cnt/rsrcs/pblctns/pblc-rprt-trrrsm-thrt-cnd-2018/index-en.aspx, Accessed on 24 April 2019
10 Harpreet Bajwa, “Amarinder Singh flays Canada for removing Khalistani references from its threat report,” http://www.newindianexpress.com/nation/2019/apr/14/amarinder-singh-flays-canada-for-removing-khalistani-references-from-its-threat-report-1964247.html, Accessed on 09 May 2019.
11 J.J. McCullough, “Fringe Sikh interests have outsize influence in Canada. Why is no one pushing back?,” https://www.washingtonpost.com/opinions/2019/05/06/fringe-sikh-interests-have-outsize-influence-canada-why-is-no-one-pushing-back/?noredirect=on&utm_term=.c8524f78ca0b, Accessed on 27 May 2019.