सारांश :
वर्ष 2019 उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम तक अनेक अफ्रीकी देशों में अध्यक्षीय तथा विधायी चुनावों के कारण चर्चित रहा है। सेनेगल, डीआरसी, गिनिया बिसाऊ तथा बेनिन में चुनाव शान्तिपूर्ण ढंग से आयोजित हुए और भारी संख्या में मतदाताओं ने चुनाव में हिस्सा लिया। अफ्रीका की कुल जनसंख्या में 15 वर्ष की आयु से नीचे 43 प्रतिशत युवा होने के कारण चुनावी प्रक्रिया में इनकी भागीदारी को उत्सुकतापूर्वक लक्षित किया गया। इस क्षेत्र में सभी सरकारों के चुनावी घोषणापत्र में सुरक्षा को मजबूत करने का मुद्दा शीर्ष पर रहा।
वर्ष 2019 अफ्रीका के राजनीतिक परिदृश्य हेतु एक क्रान्तिकारी बिन्दु के रूप में उभरा। उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम तक अनेक अफ्रीकी देशों में अध्यक्षीय तथा विधायी चुनावों के कारण यह वर्ष उल्लेखनीय रहा। कांगो लोकतान्त्रिक गणराज्य, सेनेगल, नाइजीरिया, गिनिया बिसाऊ, बेनिन जैसे देश इस वर्ष के प्रारम्भ में पहले ही चुनाव सम्पन्न करा चुके थे जबकि मॉरिटैनिया, मलावी, चाड, बोत्स्वाना, ट्यूनीशिया, अल्जीरिया, मोजाम्बीक आदि देश इस वर्ष के उत्तरार्ध में अध्यक्षीय तथा संसदीय चुनावों की तैयारी कर रहे हैं।
लोकतान्त्रिक संक्रमण की यह सम्पूर्ण प्रक्रिया न केवल इस महाद्वीप के लिए बल्कि वैश्विक स्तर पर अपना प्रभाव डाल रही है। अमेरिका, फ्रांस, चीन, रूस तथा जर्मनी जैसी विश्व की सभी प्रमुख शक्तियों ने इस महाद्वीप में अपने उच्च हितों के कारण अफ्रीकी चुनावों को निकटता से अवलोकन किया तथा निगरानी की। इस आलेख में मध्य तथा पश्चिमी अफ्रीका में सम्पन्न हुए चुनावों की प्रमुख अभिवृत्तियों का परीक्षण किया जायेगा तथा मौरिटेनिया में भावी चुनावों के प्रमुख मुद्दों की चर्चा भी की जायेगी।
इन चुनावों के दौरान अवलोकित अभिवृत्तियाँ
पश्चिमी तथा मध्य अफ्रीकी देशों में लोकतन्त्रीकरण की प्रक्रिया में अधिकतम मतदाओं की उपस्थिति, पर्याप्त चुनावी सामग्री तथा चुनावी प्रक्रिया के दौरान न्यूनतम हिंसक घटनाओं का योगदान रहा। सबसे उल्लेखनीय बात कुछ चुनौतियों के बावजूद शक्ति का शान्तिपूर्ण हस्तान्तरण, चुनावी प्रक्रिया में युवाओं की भागीदारी रही तथा इन सभी देशों के लिए सुरक्षा चिन्ता का प्रमुख विषय रहा।
सेनेगल
24 फरवरी, 2019 को 6.5 मिलियन पंजीकृत मतदाओं ने अफ्रीका के सर्वाधिक शान्त राष्ट्र सेनेगल में मतदान किया। गणराज्य के लिए पार्टी एलायंस से सत्तासीन राष्ट्रपति मैकीसाल को 58 प्रतिशत मतों के साथ दूसरे कार्यकाल के लिए पुन: निर्वाचित किया गया। उनकी विजय के प्रमुख कारक देश की निरन्तर वर्धमान अर्थव्यवस्था तथा अवसंरचनात्मक विकास थे।
राष्ट्रपति मैकीसाल 2012 में अब्दुलाये वाडे को पराजित करके सत्ता में आये जो लगभग 12 वर्ष से सत्तासीन थे। सत्ता में आने के पश्चात मैकीसाल ने "2035 में उभरता सेनेगल" का महत्त्वाकांक्षी दृष्टिकोण क्रियान्वित किया जिससे आर्थिक परिवर्तन, लोककल्याण तथा उत्तम शासन जैसे तीन स्तम्भों को सहारा दिया। उभरते सेनेगल का उनका विचार भ्रष्टाचार उन्मूलन तथा देश में अवसंरचनात्मक विकास के उद्देश्य से प्रेरित था। वायदे के अनुसार 2014-2018 के दौरान योजना के प्रथम चरण में 27 अवसंरचनात्मक परियोजनाएँ तथा 17 ढाँचागत सुधार, राजमार्गों का निर्माण, रेलवे लाइन तथा डाकर में नये अन्तर्राष्ट्रीय विमानपत्तन का निर्माण और विमानपत्तन के निकट डियाम्निआडियो नामक एक नये शहर की स्थापना की गयी, ये सभी परियोजनाओं के सफल क्रियान्वयन का सूचक थीं। इस चरण में 2018 में 6.8 प्रतिशत का उच्च आर्थिक विकास देखा गया। द्वितीय चरण में 2019-2023 की अवधि शामिल की गयी है।
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(सेनेगल का नया विमानपत्र ब्लेज डियाग्ने अन्तर्राष्ट्रीय विमानपत्तन, स्रोत: http://africa-businesspages.com/senegal-set-open-new-575-million-airport/)
इसके बावजूद अनेक विश्लेषकों के अनुसार मैकीसाल की इस भव्य विजय का कारण सशक्त विपक्ष का अभाव था क्योंकि उन्हें चुनौती देने वाले दो प्रमुख नेता डाकर खलीफा तथा करीम वाडे को भ्रष्टाचार में लिप्त होने के कारण चुनाव लड़ने से प्रतिबन्धित कर दिया गया था।1 शेष उम्मीदवार-पूर्व प्रधानमन्त्री इद्रीसा सीक तथा सबसे युवा उम्मीदवार औसमाने सोंको ने चुनाव परिणामों की निन्दा की और कहा कि विदेशी मीडिया सहित घरेलू मीडिया ने विधायी परिषद में अन्तिम परिणामों की घोषणा से पूर्व ही मैकीसाल को विजेता घोषित कर दिया था।2 किन्तु विपक्ष के ये सभी आरोप उस समय व्यर्थ सिद्ध हुए जब राष्ट्रीय मतगणना आयोग ने 28 फरवरी को सत्तासीन राष्ट्रपति मैकीसाल को उनके प्रमुख प्रतिद्वन्द्वी इद्रिसा सेक के 899,556 मतों के मुकाबले 2,555,426 मतों से निर्णायक रूप से विजयी घोषित कर दिया।
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दूसरे कार्यकाल में जीतने वाले राष्ट्रपति मैकीसाल, स्रोत : https://www.france24.com/en/20190228-senegal president-macky-sall-wins-election-preliminary-results)
सेनेगल के 2019 के चुनाव को 2012 में आयोजित अध्यक्षीय चुनाव की तुलना में पूरी तरह शान्तिपूर्ण माना गया। बारह वर्षों से सत्ता में रहने के बाद पुन: चुनाव में उतरने वाले तत्कालीन सेनेगल के राष्ट्रपति अब्दुलाये वाडे के निर्णय के कारण 2012 में डाकर की सड़कों पर भारी विरोध प्रदर्शन किया गया। किन्तु हाल के अध्यक्षीय चुनाव में इस प्रकार की कोई घटना नहीं घटित हुई। यहाँ तक कि अन्तर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षक जैसे यूरोपीय संघ के निर्वाचन पर्यवेक्षक आयोग के प्रमुख एलेना वालेनसियांको ने सेनेगल के चुनाव के सकारात्मक निष्पादन के विषय में टिप्पणी की।3
लोकतान्त्रिक कांगो गणराज्य
इस क्षेत्र के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तथा बड़े देशों में से एक लोकतान्त्रिक कांगो गणराज्य में पहली बार 10 दिसम्बर, 2018 को ऐतिहासिक सत्ता का हस्तान्तरण देखा गया। यह चुनाव इस देश में लोकतन्त्र के शुरुआत का साक्षी है क्योंकि इस पर सबसे अधिक समय तक शासन करने वाले जोसेफ काबिला 18 वर्षों तक सत्ता में रहने के बाद सत्ताच्युत हो गये। 40 मिलियन पंजीकृत मतदाताओं में से 60.04 प्रतिशत लोगों ने मतदान किया जो कुछ छिटपुट चुनावी घटनाओं को छोड़कर शान्तिपूर्ण ही रहा। इसमें चुनाव आयोग कुछ शंकित सा दिखाई दिया जिसने एक सप्ताह का विलम्ब करने के बाद चुनाव परिणामों की घोषणा की। इस अवधि के दौरान कांगो निवासियों के बीच चुनाव के विजेता को लेकर अत्यधिक शंकाएँ देखी गयीं। लामुका विपक्षी गुट के मार्टिन फेलू तथा यूनियन फॉर डेमोक्रेसी एण्ड सोशल प्रोग्रेस (यूडीपीएस) के फेलिक्स शीसेकेडी के बीच कड़े मुकाबले की सम्भावना व्यक्त की जा रही थी। कैथोलिक चर्च के हस्तक्षेप के कारण स्थिति और भी बिगड़ गयी जिसने अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया की रिपोर्ट के आधार पर राष्ट्रपति चुनाव में मार्टिन फेलू के विजयी होने की घोषणा कर दी।4 किन्तु यह सम्पूर्ण राजनीतिक नाटक राष्ट्रीय स्वतन्त्र चुनाव आयोग (सीईएनआई) द्वारा फेलिक्स शिसेकेडी को विजेता घोषित करने के बाद समाप्त हो गया जिन्हें मार्टिन फेलू के कुल मतों के 34.7% मतों के मुकाबले 38 प्रतिशत मत हासिल हुए थे।
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(स्रोत: https://africanarguments.org/2019/01/10/drc-election-results-analysis-implausible/)
परिणामत:, संवैधानिक न्यायालय ने मार्टन फेलू की चुनावी याचिका को रद्द करते हुए घोषणा की पुष्टि कर दी। यह डीआरसी के हालिया महत्त्वपूर्ण राष्ट्रपति चुनाव का एक सूचक है जिसने देश में शक्ति के ढाँचे को परिवर्तित कर दिया जो नाटकीयता से अछूता नहीं था।
गिनिया बिसाऊ
एक अन्य पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनिया बिसाऊ में 10 मार्च, 2019 को विधायी चुनाव सम्पन्न हुए। 1.9 मिलियन मतदाताओं में से लगभग 760,000 पंजीकृत मतदाताओं ने संसद के 102 प्रतिनिधियों को चुनने के लिए अपने मतों का प्रयोग किया जो कि 2015 से इस चुनाव तक अस्थिर रही।
वर्ष 2015 में सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रधानमन्त्री सिमोज पेरीरा वाज की सरकार को अफ्रीकन पार्टी फॉर इंडिपेंडेंस ऑफ गिनिया एण्ड केप वर्डे (पीएआईजीसी) के राष्ट्रपति जोसे मैरियो वाज द्वारा भंग कर देने के कारण राजनीतिक संकट प्रारम्भ हो गया। इस विघटन का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पहलू पीएआईजीसी का समर्थन करने वाले 15 सदस्यों द्वारा समर्थन वापस लेना था और इस दल ने संसद में अपना बहुमत खो दिया। इसी बीच संसद के अध्यक्ष सिप्रियानो कस्सामा ने राष्ट्रपति के साथ सहयोग करने से इन्कार कर दिया। इस संघर्ष के कारण गिनिया बिसाऊ में राजनीतिक तथा संवैधानिक संकट उत्पन्न हो गया। राष्ट्रपति जोसे मैरियो वाज ने कार्लोस कोरिया, बेसिरोद्जा, उमराव मुख्तार सिसोको एम्बालो, आगस्तो एन्टोनियो आर्थर डी सिल्वा जैसे अनेक सांसदों को प्रधानमन्त्री के रूप में इस आशा से नियुक्त किया कि इससे संकट का समाधान हो जायेगा किन्तु इनमें से कोई भी अधिक समय तक शासन नहीं कर पाया। बाद में 2018 में राष्ट्रपति जोसे मैरियो वाज ने राजनीतिक अवरोध को समाप्त करने के लिए एरिस्टाइड्स गोम्स को प्रधानमन्त्री नियुक्त किया। अत: इस विधायी चुनाव में जिसमें सत्तासीन दल पीएआईजीसी-द अफ्रीकन पार्टी फॉर द इंडिपेंडेंस ऑफ गिनिया एण्ड केप वर्डे विजेता बनी जिसने 102 में से 47 सीटें हासिल कीं, लम्बे समय तक अस्थिरता के पश्चात महत्त्वपूर्ण ढंग से एक निश्चित स्थिरता स्थापित करने में सफल रही।
बेनिन
28 अप्रैल, 2019 को विधायी चुनावों के सफल संचालन के साथ बेनिन ने लोकतान्त्रित राष्ट्र की अपनी छवि बरकरार रखी। एकसदनीय राष्ट्रीय असेम्बली हेतु 83 प्रतिनिधियों के निर्वाचन के लिए लगभग पाँच मिलियन लोगों ने मतदान किया।
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(बेनिन में मतदाताओं की कम संख्या, स्रोत : https://www.ft.com/content/7fc326Q0-6bff-11eQ-80c7-60ee53e6681d')
यद्यपि चुनाव शान्तिपूर्ण ढंग से सम्पन्न हो गये किन्तु मार्च 2019 में बेनिन की सड़कों पर भारी विरोध प्रदर्शन हुए। यह विरोध प्रदर्शन चुनाव आयोग के निर्णय के विरुद्ध थे जिसने पाँच प्रमुख दलों को चुनाव में भाग लेने से वंचित कर दिया था। विभिन्न राजनीतिक विश्लेषकों ने चुनाव आयोग के इस निर्णय की आलोचना की और आरोप लगाया कि चुनाव में भाग लेने के लिए अपने वफादार दलों को सन्तुष्ट करने के लिए सत्तासीन राष्ट्रपति पैट्रिस टैलन का यह गुप्त अभियान था। राष्ट्रीय चुनाव आयोग (सीईएनए) द्वारा निर्धारित चुनाव में भाग लेने वाले दो प्रमुख दल ब्रूनो एमाउसू के नेतृत्व वाला प्रोग्रेसिव यूनियन तथा जीन-माइकल एबिम्बोला के नेतृत्व वाला रिपब्लिकन ब्लॉक थे। इस विरोध प्रदर्शन का आयोजन प्रतिष्ठित राजनीतिक हस्तियों तथा सिविल सोसाइटी कार्यकर्ताओं जैसे कावरी फोर्सेस फॉर एन इमर्जिंग बेनिन (एफसीबीई) के थॉमस बोनी, सोशल लिबरल यूनियन (यूएसएल) के सेबेस्टीन एजावन, एरिक हाउंदेते, कोटोनू में संसद के उपनेता द्वारा किया गया। इन्होंने राष्ट्रपति पैट्रिस टैलन की अपनी सत्ता के केन्द्रीकरण की नीति के कारण बेनिनवासियों की स्वतन्त्रता के हनन की निन्दा की। यह चुनाव के एक माह पूर्व केवल मार्च माह में घटित हुआ जिसमें संस्थागत सुधार किये गये थे जिसके कारण विपक्षी दलों को चुनाव से वंचित कर दिया गया क्योंकि ये दल सरकार के आलोचक थे। सरकार के विरुद्ध उन्होंने जो आरोप लगाये उससे बेनिन में लोकतान्त्रित प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न खड़े हो गये।
चुनावी प्रक्रिया में युवाओं का समावेश
इन सभी प्रमुख चुनावों की राजनीति में युवाओं का समावेशन एक प्रमुख प्रकरण बना रहा। अफ्रीका की जनसंख्या में 43 प्रतिशत युवा 15 वर्ष5 की आयु से नीचे होने के कारण चुनावी प्रक्रियाओं में युवाओं की भागीदारी को उत्सुकतापूर्वक लक्षित किया गया। चुनावी दलों ने सोशल मीडिया का भरपूर उपयोग किया जिसने चुनावी प्रक्रिया में युवाओं की भागीदारी को सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। सेनेगल के चुनाव में सबसे युवा उम्मीदवार उस्माने सोंको थे जिनकी आयु 44 वर्ष थी और उन्होंने अपने सक्रिय सोशल मीडिया अभियान में युवाओं का ध्यान आकर्षित किया तथा 15.67 प्रतिशत मत प्राप्त करके इस दौड़ में उच्चतम तीसरे स्थान पर रहे। सोंको की चुनावी घोषणा में सेनेगल के लिए एक नवीन नीति की झलक दिखाई दी जिसमें औपनिवेशिक शासकों से मुक्ति का मार्ग था। सोंको ने विदेशी निवेश और विशेष रूप से फ्रांस द्वारा किये गये निवेश पर निर्भरता तथा 1960 में औपनिवेशिक युग की समाप्ति के पश्चात फ्रांसीसी फ्रैंक के उपयोग पर सेनेगल की वर्तमान नीति पर प्रश्नचिह्न खड़े किए। उनके चुनावी अभियान में क्रमबद्ध ढंग से सीएफए फ्रैंक के स्थान पर घरेलू मुद्रा के उपयोग का पक्ष लिया गया। सोंको की नीतियों ने युवाओं तथा जनसमुदाय को प्रभावित किया और अनेक युवा उनके समर्थन आ गये और अनेक युवा फेसबुक तथा ट्विटर पर उनके पक्ष का समर्थन कर लगे।
न केवल सोशल मीडिया में बल्कि चुनावों से परे प्रदर्शनों में भी अफ्रीकी युवाओं ने सक्रिय रूप से भाग लिया। गिनिया बिसाऊ चुनाव के दौरान छात्रों ने तीव्र विरोध प्रदर्शन किया क्योंकि शिक्षकों की हड़ताल के कारण शिक्षा क्षेत्र ठप पड़ गया था। देश में संसदीय संकट के कारण बजटीय प्रस्ताव तथा वैधानिक कार्यों का क्रियान्वयन विलम्बित हो गया जिससे विद्यार्थियों पर निकृष्टतम प्रभाव पड़ा क्योंकि सरकार द्वारा पिछले वेतन न दिये जाने के कारण शिक्षकों ने निरन्तर हड़ताल जारी रखी थी।6
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(गिनिया बिसाऊ में छात्रों का विरोध प्रदर्शन, स्रोत: https://www.africanews.com/201Q/02/0Q/guinea-bissau-students-protest-over-threat-by-teachers-to -strike / /)
पश्चिमी अफ्रीका क्षेत्र में घातक आतंकवादी हमले होते रहे जिसमें पश्चिमी तथा मध्य अफ्रीकी क्षेत्र के अनेक जिहादियों का हाथ था। बोको हरम, इसकी उपशाखा आईएसआईएस-पश्चिमी अफ्रीका (आईएसआईएस-डब्ल्यूए) अनुषंगी जैसे इस्लामी आतंकवादी समूहों के विप्लव तथा अल-कायदा से सम्बद्ध विभिन्न जिहादी गुटों एवं इस्लामिक स्टेट ने सम्पूर्ण क्षेत्र तथा यहाँ की विभिन्न सरकारों को भयाक्रान्त कर दिया। इस क्षेत्र में सभी सरकारों के चुनावी घोषणा-पत्र में आतंकवाद निरोधी नीतियाँ शीर्ष पर रखी गयीं ताकि सुरक्षा को मजबूती प्रदान की जा सके।
2018 में सेनेगल ने सबसे बड़ा आतंकवाद निरोधी ट्रायल प्रारम्भ किया जिसमें 29 लोगों को इस्लामिक स्टेट की विचारधारा प्रसारित करने का अपराधी ठहराया गया।7 सेनेगल सरकार ने माना कि सीमावर्ती क्षेत्रों में प्रभावी सुरक्षा प्रबन्धन के अभाव के कारण देश में सुरक्षा सम्बन्धी खतरा उत्पन्न हो गया है।8 चुनावी अभियान के दौरान सीमापार आतंकवाद को समाप्त करने के लिए राष्ट्रपति मैकीसाल ने सुरक्षा पर पर्याप्त ध्यान केन्द्रित किया। डीआरसी के सम्बन्ध में कहा गया कि इस्लामिक स्टेट उन क्षेत्रों में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए प्रयास करेगा जहाँ केन्द्र सरकार के पास आतंकवादी आक्रमणों को विफल करने के लिए सीमित संसाधन होंगे। चुनाव में जीत के पश्चात नवनिर्वाचित राष्ट्रपति फेलिक्स शिसेकेडी ने सुरक्षा की मजबूती को भ्रष्टाचार तथा मानव अधिकारों के हनन के उन्मूलन सहित अपनी 'परिवर्तित कार्यसूची' में प्रमुख स्थान दिया है।9 उनके वायदों के बावजूद देश में आईएस समर्थित गुट एलायड डेमोक्रेटिक फोर्सेज (एडीएफ) द्वारा 18 अप्रैल, 2019 को पहला आक्रमण कर दिया गया जिसकी जड़ें यूगांडा में थीं जिसमें उत्तरी किवू प्रान्त में स्थित कमांगो गाँव, बेनी सिटी में शस्त्रहीन कैम्प के आठ लोगों की मृत्यु हो गयी। यह उल्लेख करना महत्त्वपूर्ण है कि बेनी उन तीन शहरों में से एक है जहाँ जनता को इबोला के संक्रमण के कारण मताधिकार से वंचित कर दिया गया था।10 विश्लेषकों के अनुसार यह खतरा इस प्रकार का है कि शिसेकेडी सरकार को आतंकवादी खतरों से निपटने तथा क्षेत्र में शान्ति स्थापित करने के लिए युगांडा के साथ क्षेत्रीय सुरक्षा हेतु विशेष रूप से प्रभावी उपाय करने चाहिए।11
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(एडीएफ का झंडा जिस पर नया नाम है "तौहीद वाऊ मुजाहिदीन (एमटीएम) में मदीना-एकेश्वरवाद तथा पवित्र योद्धाओं का नगर", जो इस्लामिक स्टेट के साथ इसके घनिष्ठ सम्बन्ध को दर्शाता है, स्रोत: https://thedefensepost.com/2018/12/04/tentative-ties-allied-democratic-forces-isis-dr-congo/)
अफ्रीका के लघुतम शहरों में से एक होने के कारण सुरक्षा के सन्दर्भ में गिनिया बिसाऊ में विधायी चुनाव की अपनी सार्थकता है। यह गृह युद्धों तथा राजनीतिक अनिश्चितताओं से जूझता रहा है, यहाँ 16 घातक हमले हुए और देश के तटीय क्षेत्र मादक पदार्थों की तस्करी के पनाहगाह बन चुके हैं। एकमात्र धुंधली आशा यह है कि देश में विधायी चुनाव सम्भवत: राजनीतिक संघर्षों को समाप्त कर सकें जिसने अनेक वर्षों से यहाँ की राजनीतिक संस्थाओं तथा अर्थव्यवस्था को तहस-नहस कर रखा है।
आगामी चुनाव
22 जून, 2019 को एक अन्य पश्चिमी अफ्रीका देश मौरिटेनिया में राष्ट्रपति चुनाव सम्पन्न होंगे। मौरिटेनिया के लिए यह एक निर्णायक चुनाव होगा क्योंकि प्रभावशाली यूनियन फॉर द रिपब्लिक से सम्बद्ध देश के वर्तमान राष्ट्रपति मोहम्मद आउल्ड अब्देल अजीज 2009 से सत्ता में रहने के पश्चात पदच्युत होंगे। राष्ट्रपति मोहम्मद आउल्ड अब्देल अजीज की व्यापक आलोचना की गयी जिन्होंने 2017 में एक जनमत संग्रह अभियान के द्वारा जिसमें 1.4 मिलियन मौरिटेनिया निवासियों में से 53.73 प्रतिशत लोगों ने मतदान किया और इसके माध्यम से उन्होंने मौरिटेनियाई सीनेट का उच्छेद कर दिया, देश के झण्डे तथा चुनाव आयोग को बदल दिया। यद्यपि राष्ट्रपति ने सीनेट को समाप्त करने के विषय में कुछ चुनौतियों का हवाला दिया और अपने प्रशासन में स्थानीय आवाज को प्रोत्साहित करने के लिए क्षेत्रीय निर्वाचन परिषद का गठन किया किन्तु अनेक राजनीतिक विश्लेषकों ने टिप्पणी की कि अब्देल अजीज सत्ता की अपनी तीसरी पारी के लिए आधार तैयार कर रहे हैं। अत: राष्ट्रपति पद की दौड़ से हटने के उनके निर्णय ने विपक्षी दलों तथा राजनीतिक कार्यकर्ताओं को हतप्रभ कर दिया। किन्तु राष्ट्रपति कार्यालय ने 29 जनवरी, 2019 को अब्देल अजीज के करीबी पूर्व रक्षा मन्त्री मोहम्मद आउल्ड शेख को सम्भावित उम्मीदवार के रूप में अनुमोदित कर दिया। इससे मौरिटेनिया जनता में चुनावों की वैधता के विषय में संशय उत्पन्न हो गया। इस बात की भी सम्भावना है कि शासक दल रिपब्लिक यूनियन चुनावी प्रक्रिया में हेर-फेर कर सकता है क्योंकि इसने 2018 में आयोजित विधायी, क्षेत्रीय तथा स्थानीय चुनावों में एकतरफा विजय हासिल की थी।
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(राष्ट्रपति मोहम्मद आउल्ड अब्देल अजीज (बायें) तथा रक्षा मन्त्री मोहम्मद आउल्ड शेख मोहम्मद अहमद, स्रोत: https://www.menas.co.uk/blog/president-mohamed-ould-abdel-aziz-indicates-his-successor/)
इन चिन्ताओं के बीच मौरिटेनियाई जनसाधारण द्वारा विभिन्न विरोध प्रदर्शनों तथा जुलूसों के कारण मौरिटेनियाई राजनीतिक परिदृश्य में एक सकारात्मक संकेत दिखाई देता है जो कि इस नेतृत्व से तंग आ चुके थे। प्राय: सरकार की आलोचना करने वालों के दमन ने केन्द्रीकृत संस्थान को ऐसा स्थान दिया जिसकी जनसामान्य के प्रति कोई जवाबदेही नहीं थी। अत: विपक्षी दलों के नेताओं, विभिन्न सिविल सोसाइटी समूहों ने तीव्र ढंग से विरोध प्रदर्शन किया और चुनाव का बहिष्कार करने की धमकी दी। यहाँ तक कि विपक्षी दलों का एक गठबन्धन गृहमन्त्री से मिला और वर्तमान चुनाव आयोग को भंग करने की माँग की। इन सभी कारकों ने देश में एक स्वतन्त्र तथा निष्पक्ष चुनाव की आशा को बल दिया। इसके अतिरिक्त सितम्बर 2018 में आयोजित विधायी तथा नगर निगम के चुनावों ने लोकतान्त्रित प्रक्रिया की स्थापित होने आशा को पुष्ट किया जिसमें 98 दलों तथा 1.4 मिलियन पंजीकृत मतदाताओं ने भाग लिया।
इस चुनाव के प्रमुख मुद्दे अन्य पश्चिमी अफ्रीकी देशों के समान ही हैं जैसे आर्थिक विकास की दर कम होना, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार। किन्तु मीडिया की रिपोर्टों के अनुसार सेनेगल तथा डीआरसी के विपरीत मौरिटेनियाई युवाओं ने लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में विश्वास करने से इन्कार कर दिया क्योंकि यहाँ बेरोजगारी की दर बहुत अधिक है जो कि लगभग 39 प्रतिशत है।12 ऐसी सम्भावना है कि राष्ट्रपति चुनावों में भाग लेने वाले युवाओं की संख्या बहुत कम होगी यद्यपि वे 4.5 मिलियन जनसंख्या का लगभग 60 प्रतिशत हैं। इस आगामी चुनाव के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण गम्भीर समस्या आतंकवादी हमलों को लेकर है। अनेक विश्लेषकों के अनुसार इस्लामिक मगरिब में अल-कायदा से सरकारी सूचना के निर्गमन के साथ मौरिटेनिया में जिहादी तत्व पुन: उठ खड़े होंगे जिनका सम्भावित निशाना विदेशी हो सकते हैं।13 वर्तमान राष्ट्रपति आउल्ड अब्देल अजीज के अधीन इस देश ने आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष में पर्याप्त प्रगति की है। अत: यह देखना शेष है कि नव निर्वाचित राष्ट्रपति देश में उभरते आतंकवाद से किस प्रकार निपटेंगे।
निष्कर्ष
अनेक देशों में चुनाव शान्तिपूर्ण ढंग से सम्पन्न हुए और चुनाव के दिन भारी संख्या में मतदाओं ने हिस्सा लिया। बेनिन को छोड़कर पहले के चुनावों की तुलना में मतदाताओं की भागीदारी की दर स्वीकार्य रही। गिनिया बिसाऊ में सर्वाधिक 84.69 प्रतिशत मतदाताओं ने भाग लिया जबकि सेनेगेल, डीआरसी तथा बेनिन में क्रमश: 66.23 प्रतिशत, 67.04 प्रतिशत तथा 23 प्रतिशत मतदाताओं ने भाग लिया। अनेक विश्लेषकों के अनुसार बेनिन में कम मतदान होने का एकमात्र कारण बेनिन के चुनावों में विपक्षी दलों की भागीदारी न होना था जैसा कि संवैधानिक न्यायालय ने चुनाव लड़ने के लिए केवल दो ही दलों को योग्य ठहराया था। अत: यदि हम इन चुनावों पर ध्यान दें तो केवल एक ही स्पष्ट प्रवृत्ति दिखाई देती है कि सत्ता का तथाकथित परिवर्तन एक मिथक हो चुका है। उपर्युक्त देशों के मामले में ऐसा इसलिए है क्योंकि वहाँ पर कोई सशक्त विपक्ष नहीं था जो कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था की महत्त्वपूर्ण कड़ी होता है। इससे लोकतान्त्रिक हेराफेरी की गतिविधि स्पष्ट प्रतीत होती है। हम इस तथ्य की अनदेखी नहीं कर सकते हैं कि इन देशों के नेतृत्व की प्रवृत्ति चुनावी परिणामों में धाँधली करना है और निकट भविष्य में उनके निरंकुश सत्तावादी होने की सम्भावना है।
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* लेखिका, शोधकर्ता, वैश्विक मामलों की भारतीय परिषद, नई दिल्ली।
अस्वीकरण : इसमें व्यक्त विचार शोधकर्ता के हैं न कि परिषद के।
अंत टिप्पण
1Adeoye, A. “Senegal President MackySall Officially wins re-election”, CNN, 6 March 2019, Accessed 2 April 2019, URL: https://edition.cnn.com/2019/03/06/africa/senegal-president-sall-re-election-intl/index.html
2“Senegal: 2 Main opposition candidates contest Sall’s victory claim”, Africa News, 25 February 2019, Accessed on 15 March 2019, URL: https://www.africanews.com/2019/02/25/senegal-2-main-opposition-candidates-contest-sall-s-victory-claim/
3 “Senegal’s Macky Sall in Sweeping Election Victory”, Daily Nation, 1 March 2019, URL: https://www.nation.co.ke/news/africa/Senegal-Sall-in-sweeping-election-victory/1066-5003934-6q2mu1/index.html
4 “Recap of DRC’s 2018 polls [2]: Voting, delayed results, ‘shock’ winner”, Africa News, 1 February 2019, Accessed 15 April 2019, URL: https://www.africanews.com/2019/02/01/recap-of-drcs-2018-polls-2-voting-delayed-results-shock-winner//
5 Langdon, S. et al. (2018), African Economic Development, Routedge : New York, Pages7-35
6Guinea-Bissau: students protest over threat by teachers to strike”, Africa News, 9 February 2019, Accessed on 3 March 2019, URL:https://www.africanews.com/2019/02/09/guinea-bissau-students-protest-over-threat-by-teachers-to-strike//
7“Islamist terrorist groups are turning their attention to West Africa”, The Washington Post, 3 July 2018, Accessd 5 April 2019, URL: https://www.washingtonpost.com/news/worldviews/wp/2018/07/03/islamist-terrorist-groups-are-turning-their-attention-to-west-africa/?utm_term=.a29da5fd3b2a
8“Country Reports: Africa”, US Department of State, Accessed 9 April 2019, URL: https://www.state.gov/j/ct/rls/crt/2017/282841.htm
9“ISIS Claims First Attack in the Democratic Republic of Congo”, New York Times, 19 April 2019, Accessed 24 April 2019, URL:https://www.nytimes.com/2019/04/19/world/africa/isis-congo-attack.html
10“Tshisekedi could transform DRC into a 'truly democratic' country: United States”, Africa News, 5 April 2019, Accessed 10 April 2019, URL: https://www.africanews.com/2019/04/05/tshisekedi-could-transform-drc-into-a-truly-democratic-country-united-states//
11 “ISIS Claims First Attack in Democratic Republic of Congo”, The new York Times, 19 April 2019, URL: https://www.nytimes.com/2019/04/19/world/africa/isis-congo-attack.html
12 “Students arrested in protests over university age limit”, University World News, 18 October 2018, Accessed 5 May 2019, URL: https://www.universityworldnews.com/post.php?story=20181016131401818
13 Porter, G. (2018), “ The Renewed Jihadi Threat in Mauritania”, CTC Sentinal, 11(7), Accessed 25 April 2019, URL: https://ctc.usma.edu/renewed-jihadi-terror-threat-mauritania/