सार
एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (एआईआईबी) की स्थापना से एशिया और विश्व भर में एक नया वाद-विवाद छिड़ गया है। यह एशिया की चुनौतीपूर्ण बुनियादी सुविधाओं की जरूरतों को पूरा करने के लिए देशों को एक साथ लाने के लिए स्थापित किया गया था। बैंक ने अपनी परिचालना के तीन साल पूरे कर लिए हैं और इसका प्रदर्शन देखकर पता चलता है कि इसने काफी प्रभावी ढंग से अपना कार्य संचालन शुरू कर दिया है। इस पृष्ठभूमि में, पेपर का उद्देश्य एआईआईबी की उत्पत्ति और क्रमागत विकास का विश्लेषण करना है। ऐसा करते हुए, पेपर में एशिया की दो उभरती शक्तियों के दृष्टिकोण का भी विश्लेषण किया गया है, जो बैंक के दो सबसे बड़े शेयरधारक होने के साथ-साथ संस्थापक सदस्य भी हैं।
एआईआईबी का क्रमागत विकास
एआईआईबी एक बहुपक्षीय वित्तीय संस्थान है जिसका मुख्यालय बीजिंग में स्थित है। एआईआईबी स्थापित करने की पहल अक्टूबर 2013 में चीन द्वारा की गई थी। संवाद संचालित सहयोगी प्रक्रिया शुरू की गई थी, जिसके तहत योजना बनाने एवं बातचीत करने में लगभग दो साल लग गए, तब जाकर एआईआईबी आधिकारिक रूप से स्थापित हो सका। इस प्रक्रिया को तीन चरणों में विभाजित किया जा सकता है। पहला चरण अक्टूबर 2013 से लेकर अक्टूबर 2014 तक था, जिसके दौरान एआईआईबी की स्थापना हेतु समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए थे। 24 अक्टूबर 2014 को, चीन और भारत समेत संभावित संस्थापक सदस्यों के 21 प्रतिनिधियों ने समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर करके एआईआईबी स्थापित करने के लिए सहमति व्यक्त की।1 एमओयू में निर्दिष्ट किया गया था कि एआईआईबी की अधिकृत पूंजी 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
एआईआईबी की स्थापना करने हेतु समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर समारोह, बीजिंग, 24 अक्टूबर, 2014 (स्रोत: www.news.cn)
दूसरा चरण नवंबर 2014 से लेकर मार्च 2015 तक था, जिसके दौरान एआईआईबी ने नए सदस्यों को स्वीकार किया। संभावी संस्थापक सदस्यों की संख्या में वृद्धि हुई और इसमें इंडोनेशिया, न्यूजीलैंड, सऊदी अरब, ताजिकिस्तान और जॉर्डन को शामिल किया गया। तीसरा चरण अप्रैल 2015 से लेकर जनवरी 2016 तक था, जब एआईआईबी ने अपनी योजना और तैयारियां पूर्ण की और औपचारिक रूप से परिचालना आरम्भ कर दी।2 57 देशों के प्रतिनिधियों ने जनवरी 2016 में एआईआईबी के उद्घाटन समारोह में भाग लिया। जबकि एआईआईबी की 75 प्रतिशत मूलपूंजी एशिया से है, वहीं कुछ गैर-एशियाई क्षेत्र जैसे कि यूरोप, उत्तरी अमेरिका और कुछ पूर्वी अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देश भी सदस्य के रूप में बैंक के साथ जुड़े हैं। बैंक के अब एशिया और पूरी दुनिया के 97 स्वीकृत सदस्य हैं।
वोटिंग शेयर प्रत्येक सदस्य देश की अर्थव्यवस्था के आकार पर आधारित है और बैंक की अधिकृत मूलपूंजी में योगदान के आधार पर नहीं। चीन की हिस्सेदारी 30.34 प्रतिशत है और उसे 26.06 प्रतिशत मत अधिकार प्राप्त है। एआईआईबी ऐसा पहला प्रमुख बहुपक्षीय विकास बैंक है जहां के प्रमुख योगदानकर्ता स्वयं ऋण लेने वाले सदस्य भी हैं ।3
एआईआईबी की दृष्टि -लीन (एक छोटी कुशल प्रबंधन टीम और उच्च कुशल कर्मचारी) क्लीन (भ्रष्टाचार के प्रति शून्य सहिष्णुता वाला एक नैतिक संगठन), और ग्रीन (एक संस्था जो पर्यावरण के सम्मान में बनाया गया है) इसके मुख्य सिद्धांत हैं। विभिन्न अवसरों पर श्री जिन लिकुन, अध्यक्ष, एआईआईबी ने इन सिद्धांतों पर प्रकाश डाला है। एआईआईबी के समझौते की शर्तों के अनुसार, इसके अध्यक्ष का उद्देश्य परियोजनाओं के प्रबंधन में पारदर्शिता और सदस्य राज्यों के प्रति उत्तरदायित्व लेने पर बल देते हुए इस बहुपक्षीय वित्तीय संस्थान के लिए एक नियम-आधारित प्रशासन का निर्माण करना है।
बैंक ने विश्व बैंक, अफ्रीकी विकास निधि, एशियाई विकास बैंक, यूरेशियाई विकास बैंक, पुनर्निर्माण और विकास के लिए यूरोपीय बैंक समेत कई बहुपक्षीय संस्थानों के साथ सह-वित्तपोषण पर समझौता ज्ञापन (एमओयू) या सह-वित्तपोषण रूपरेखा समझौते पर हस्ताक्षर किया है।
9 मई, 2019 को एआईआईबी ने बुनियादी संरचनाओं के लिए वित्तपोषण प्रदान करने हेतु पहली वैश्विक बॉन्ड की कीमत तय कर एक नई मिसाल कायम की है। 2.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का पंच-वर्षीय बॉन्ड एशिया में सामाजिक-आर्थिक विकास लाने की दिशा में निवेशकों की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। ऋण पूंजी बाजारों में इस शुरुआती सौदे ने लगभग 27 देशों का प्रतिनिधित्व करते दुनिया भर के 90 से अधिक निवेशकों से 4.4 बिलियन ऑर्डर्स आकर्षित किया। यह अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली में एआईआईबी की बढ़ती स्वीकार्यता को दर्शाता है।
चीन: इतिहास से सीख और उठते वाद-विवाद
चीन वैश्विक आर्थिक प्रशासन के लिए दो समानांतर साधनों का उपयोग करता है। चीन में जिसे 'दो पैरों पर चलना' कहा जाता है। एक, संयुक्त रूप से एआईआईबी जैसे संस्थानों की स्थापना करना और दूसरा आईएमएफ और विश्व बैंक जैसे पारंपरिक अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में सुधारों को आगे बढ़ाना है।
एआईआईबी के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 16 जनवरी 2016 को उल्लेख किया “जहां तक एआईआईबी के परिचालना प्रतिमान और सिद्धांतों का सवाल है, इसे एक बहुपक्षीय विकास बैंक के रूप में कार्य करना चाहिए। इसे शासन संरचना, पर्यावरण और सामाजिक लाभ नीतियों, खरीद नीति और ऋण स्थिरता के संदर्भ में मौजूदा बहुपक्षीय विकास बैंकों के अनुभव और सर्वोत्तम प्रथाओं से सीख हासिल करनी चाहिए। पारस्परिक सीख और साझा से एआईआईबी को उच्च मानकों के अनुसार कार्य संचालन करने में मदद मिलती है।”4 उद्घाटन समारोह में उनके संबोधन से एआईआईबी तंत्र के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली में आमूल परिवर्तन लाने का कोई संकेत नहीं मिलता है।
यह भी उल्लेखनीय है कि चीन का सामान्य रूप से बहुपक्षवाद और विशेष रूप से एआईआईबी के प्रति दृष्टिकोण, चीन में वाद-विवादों का मुद्दा रहा है। कुछ चीनी विद्वानों, विशेष रूप से बीजिंग फॉरेन स्टडीज यूनिवर्सिटी के लॉ स्कूल से बिन गु, ने बल देकर कहा है कि खासकर इतिहास से प्राप्त सीखों के कारण चीन बहुपक्षवाद के इर्द-गिर्द घूम रहा है।5 बहुपक्षवाद को उन वैश्विक संस्थानों के लिए एक महत्वपूर्ण कुंजी मानी जाती है जो सफल हुए हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में की गई पहली, और शायद सबसे महत्वपूर्ण बहुपक्षीय प्रयास थी ब्रेटन वुड्स प्रणाली की रचना करना। युद्ध के पश्चात अंतर्राष्ट्रीय संस्था के रूपरेखा के निर्माण की बागडोर विश्व की दो शक्तियों, यूके और यूएसए के हाथों में थी। दोनों शक्तियां आर्थिक वास्तुकला निर्माण की अगुआई करने के लिए उत्सुक थीं। यूके की ओर से वार्ता करने वाली टीम का नेतृत्व जॉन एम केन्स ने किया, जो 20 वीं शताब्दी के सबसे महान अर्थशास्त्रियों में से एक थे, जबकि अमेरिकी टीम का नेतृत्व मुख्य वार्ताकार हैरी डी व्हाइट ने किया था।6 यूके ने बहुपक्षवाद के बजाय द्विपक्षीय दृष्टिकोण का समर्थन किया। फिर भी, बहुपक्षवाद के पक्ष में संयुक्त राज्य अमेरिका के दृष्टिकोण को अपनाया गया, जो बाद में एक सफल दृष्टिकोण साबित हुआ। इसके उदाहरण हैं आईएमएफ और विश्व बैंक। कुछ चीनी विशेषज्ञों का तर्क है कि यह प्रकरण वैश्विक वित्तीय तंत्र में बहुपक्षवाद की सफलता को दर्शाता है।
इस अनुभव से सीख लेते हुए, यह स्पष्ट है कि बहुपक्षीय संस्थानों, विशेष रूप से एआईआईबी की स्थापना करते हुए चीनी सोच अमेरिकी सोच से काफी मिलती-जुलती है। हालाँकि, चीनी अनुभव यह भी बताता है कि द्विपक्षवाद के महत्व को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। द्विपक्षीय विकास ऋण और बुनियादी संरचना परियोजनाएं, जिसके तहत एक सरकार से दूसरी सरकार के मध्य सहयोग किया जाता है, अब भी चीन के विदेशी निवेश में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। चीन ने ऐसे कई स्टैंड-अलोन निवेश तंत्र बनाए हैं जो 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का संयुक्त निधि लक्ष्य रखते हैं तथा जिसमें 40 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सिल्क रोड निधि, 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर की चीन-अफ्रीका विकास निधि और 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर की चीन-रूस क्षेत्रीय विकास निवेश निधि शामिल है।
स्रोत: एआईआईबी: विकास निधि बढ़ाने के प्रयोग
https://unctad.org/en/pages/newsdetails.aspx?OriginalVersionID=1704
यह स्पष्ट है कि चीन में एआईआईबी वाद-विवादों का केंद्र बन गया है। ‘चीन के नेतृत्व में एआईआईबी’ पर पश्चिमी देशों में चल रहे वाद-विवाद वास्तविक और शक्ति संक्रमण सैद्धांतिक ढांचे पर आधारित हैं, जिसमें ये तर्क दिया जा रहा है कि चीन एक उभरती और संशोधनवादी शक्ति होने के नाते अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बदल कर रख देगा। चीन प्रमुख भूमिका लेने के लिए अपनी भूमिका बढ़ाने की कोशिश करेगा।7 चीनी विशेषज्ञों ने इस तर्क का खंडन करते हुए कहा है कि एआईआईबी का उद्देश्य मौजूदा संस्थानों के लिए एक सहायक भूमिका निभाना है ना कि उन्हें बदलना।8 चीनी दृष्टिकोण से, एआईआईबी चीन के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि (क) यह विदेशी व्यापार और निवेश बढ़ाने में मदद करता है; (ख) चीनी उद्यम बुनियादी संरचनाओं के निर्माण में अग्रणी स्थान पर हैं और एआईआईबी के माध्यम से विकास के लिए महत्वपूर्ण अवसर प्राप्त करेंगे; (ग) चीनी उद्यमों को अपने स्थानीय निवेश के लिए बेहतर सुरक्षा मिल सकती है, इस प्रकार निवेश जोखिम कम होगा; और (ड) एआईआईबी विश्व के आर्थिक और वित्तीय नियम बनाने में चीन का प्रभाव बढ़ाने में मदद कर सकता है।9
भारत और एआईआईबी
चीन भारत की भागीदारी को लेकर बेहद उत्सुक था और जुलाई 2014 में ब्राज़ील में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के मौके पर राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपनी पहली मुलाकात के दौरान इस संबंध में आमंत्रण प्रस्तुत किया था। भारत ने एआईआईबी का संस्थापक सदस्य बनने का विकल्प मुख्य रूप से इसलिए चुना क्योंकि एआईआईबी की स्थापना से पहले वार्ता संचालित सहयोगी प्रक्रिया शुरू हो गई थी। एशियाई देशों ने एआईआईबी के लिए भारत के समर्थन को बैंक की स्थापना के लिए एक बड़ा प्रोत्साहन माना।
भारत एआईआईबी का दूसरा सबसे बड़ा शेयरधारक है, जिसकी हिस्सेदारी 8.52 प्रतिशत और मतदान हिस्सेदारी 7.5 प्रतिशत है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी के निदेशक प्रो. रथिन रॉय ने कहा: "एआईआईबी बुनियादी संरचनाओं के वित्तपोषण हेतु मौजूदा दायरा बढ़ाने के लिए उभरती अर्थव्यवस्थाओं के मध्य रचनात्मक सहयोग का एक उदाहरण है ..." 10 भारतीय दृष्टिकोण से, बैंक अवसंरचना वित्तपोषण के लिए समृद्ध संसाधन पूंजी आधार प्रदान करता है, जो एशिया में विकास के लिए अच्छा है। भारत सरकार के सूत्रों का कहना है कि यह एडीबी और आईएमएफ जैसे अन्य वित्तीय संस्थानों के साथ मिलकर एक सराहनीय भूमिका निभाकर बुनियादी संरचनाओं की कमी को दूर करने में मदद करेगा और सुशासन के लिए काम करेगा।11 श्री जिन लिकुन, अध्यक्ष, एआईआईबी ने बैंक की परिचालना में "एक बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाने" के लिए भारत की प्रशंसा की है।
जून 2018 में मुंबई में एआईआईबी की तीसरी वार्षिक बैठक का उद्घाटन करते हुए, प्रधान मंत्री नरेंद्रमोदी ने कहा: “यह [एआईआईबी] एशिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार है। स्थायी अवसंरचनाओं में एआईआईबी द्वारा किए गए निवेश से अरबों लोगों का जीवन प्रभावित हो सकता है।”12
एआईआईबी की तीसरी वार्षिक बैठक में प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी, 26 जून, 2018, मुंबई
अपेक्षाकृत कम समय में, एआईआईबी ने 8.03 बिलियन अमेरिकी डॉलर के वित्तपोषण के साथ 16 देशों में 40 परियोजनाओं को मंजूरी दी है।13 इसका सबसे बड़ा प्राप्तकर्ता भारत रहा है, जिसे लगभग 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर की नौ परियोजनाएँ मिली हैं।14 इन परियोजनाओं में मुख्य रूप से स्मार्ट शहरों समेत ऊर्जा, परिवहन और भारत में निधि पर भी बल दिया गया है, जो व्यापक अवसंरचना परियोजनाओं पर काम करता है।
आगे का रास्ता
बैंक में भारत द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए, यह सलाह दी जाती है कि एआईआईबी को भारत में एक क्षेत्रीय कार्यालय खोलने पर विचार करना चाहिए। यह अधिक कुशल तरीके से बैंक का कार्य संचालन करने में मदद करेगा।
यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मुख्य सिद्धांत जैसे कि पारदर्शिता, जवाबदेही, पर्यावरण के लिए चिंता, एआईआईबी की स्थापना से पहले सलाहकारी वार्ता - ये सभी कारक एआईआईबी को अन्य चीनी योजनाओं/पहलों, जैसे कि बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) से अलग करते हैं। एआईआईबी की स्थापना से पहले इसके द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया बहुपक्षवाद की वास्तविक भावना का उदाहरण है। इसलिए, भारत एआईआईबी के साथ जुड़ा और इसकी सफलता के लिए कड़ी मेहनत की है।
कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि अब जब एशिया के दो राजनीतिक दिग्गज एआईआईबी के सदस्य हैं, संगठन के भीतर प्रभाव के लिए उनमें मुकाबला हो सकता है और इससे भू राजनीतिक विवाद उत्पन्न हो सकता है। ऐसी परिस्थितियों में, संस्थानों के भीतर आम सहमति बनाना मुश्किल हो सकता है। यदि ऐसा होता है, तो भारत को चल रही और भविष्य की परियोजनाओं के विवादों से निपटने के लिए तैयार रहना चाहिए।
दूसरी ओर, कुछ ऐसे उदाहरण मौजूद हैं कि बहुपक्षीय संगठनों ने भारत और चीन को अपेक्षाकृत एक तटस्थ कार्यक्षेत्र प्रदान किया है जिसमें दोनों देशों ने धीरे-धीरे अपने हितों की समानता को स्वीकार करना शुरू कर दिया है। बहुपक्षीय स्तर पर इस तरह की समझ से उनके जटिल द्विपक्षीय संबंधों की प्रकृति पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ने की उम्मीद है।
संक्षेप में, यह कहा जा सकता है कि चीन और भारत दोनों में मुख्यधारा के प्रवचन, मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली में एक क्रांतिकारी परिवर्तन लाने की मांग करने के बजाय , सुशासन का पालन करके और एडीबी और आईएमएफ जैसे अन्य वित्तीय संस्थानों के साथ पूरक भूमिका निभाके अवसंरचनाओं की कमी से उभरने में एआईआईबी की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालते हैं। बैंक ने अपने संचालन की अल्प अवधि में प्रभावी ढंग से काम किया है और सामान्य पैमाने पर बुनियादी संरचनाओं के वित्तपोषण में एशिया की बड़ी रिक्तियों को भरना शुरू कर दिया है। बैंक ने निश्चित रूप से एक अच्छी शुरुआत की है, हालांकि इससे काफी अधिक उम्मीदें की जा रही हैं।
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* लेखक, शोधकर्ता, वैश्विक मामलों की भारतीय परिषद, नई दिल्ली।
अस्वीकरण : इसमें व्यक्त विचार शोधकर्ता के हैं न कि परिषद के।
अंत टिप्पण
1 Liu Dongmin, Vision and Governance of Asian Infrastructure Investment Bank (Beijing: Foreign Language Press , 2016)
2 Ibid
(5) बैंगलोर मेट्रो रेल परियोजना - लाइन आर ६ (6) ट्रांसमिशन सिस्टम सुदृढ़ीकरण परियोजना (7) गुजरात ग्रामीण सड़कें (एमएमजीएसवाई) परियोजना भारत अवसंरचना कोष (8) आंध्र प्रदेश 24x7 - सभी के लिए बिजली
4 “Full text of Chinese President Xi Jinping's address at AIIB inauguration ceremony” available at , http://www.chinadaily.com.cn/business/2016-01/16/content_23116718.htm
5 Bin Gu “Chinese Multilateralism in the AIIB” Journal of International Economic Law, 2017, 20, 137–158
6 ibid
7 Miran Park “China Led AIIB as a Gradual Modification of Asian Financial order: Chinese Strategies to Launch New Financial Institutions/ Journal of International and Area Studies vil 24 no 2 2017.
8 Shao Yuqun, “Assessing China-U.S. Relations In The Trump Era” available at http://en.siis.org.cn/Research/EnInfo/4290
9 Zhang Maorong “Significance of establishing AIIB http://www.china.org.cn/opinion/2016-02/22/content_37840678_2.htm
10 As quoted in 50 nations in, AIIB takes shape https://www.thehindu.com/news/national/india-signs-articles-that-determine-each-countrys-share-in-asian-infrastructure-investment bank/article7368050.ece
11 Usha Titus, Joint Secretary, Economic Affairs division of the Ministry of Finance , GOI was quoted in “India, 20 others set up Asian Infrastructure Investment Bank” https://indianexpress.com/article/business/economy/india-20-others-set-up-asian-infrastructure-investment-bank/
12 “PM’s address at the opening ceremony of the Third Annual Meeting of AIIB”, 26 June 2018, https://www.pmindia.gov.in/en/news_updates/pms-address-at-the-opening-ceremony-of-the-third-annual-meeting-of-aiib/
13 www.aiib.org