कई अर्थों में द्विपक्षीय संबंधों में बदलाव से अधिक निरंतरता रहेगी। सकारात्मक सहयोग के विभिन्न संभावित क्षेत्रों का पता लगाया जाना है।
वर्ष 2019 विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों में और लगभग एक ही समय में आम चुनावों का वर्ष रहा है। भारत में, 23 मई 2019 को चुनाव परिणामों की घोषणा की गई जिसके परिणामस्वरूप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल के लिए पदभार संभाला। उन्होंने 30 मई 2019 को प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की। ऑस्ट्रेलिया में, 18 मई 2019 को संघीय चुनाव हुआ, जिसके परिणामस्वरूप कंजर्वेटिव लिबरल-नेशनल गठबंधन की जीत हुई जो कुछ हद तक चमत्कारिक थी। पार्टी के नेता स्कॉट मॉरिसन ने 29 मई 2019 को ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। पदस्थ प्रधानमंत्री की जीत लिबरल पार्टी के लिए भी एक बड़ा आश्चर्य है क्योंकि विश्लेषकों और चुनाव पूर्व अमुमानों ने सेंटर-लेफ्ट लेबर पार्टी की जीत की भविष्यवाणी की थी। लिबरल-नेशनल गठबंधन ने प्रतिनिधि सभा की कुल 78 सीटों में से सभी अर्थात् 78 सीटों पर जीत हासिल की। इससे पहले, स्कॉट मॉरिसन ने अगस्त 2018 में आंतरिक पार्टी वोट के माध्यम से मैल्कम टर्नबुल की जगह लिबरल पार्टी के प्रमुख और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री का पदभार संभाला था। स्कॉट मॉरिसन के पुन: चुनाव जीतने से ऑस्ट्रेलियाई राजनीति में कुछ स्थिरता आने की आशा है, जिसने पिछले 11 वर्षों में सात प्रधानमंत्री देखे हैं।
भारत में मोदी सरकार और ऑस्ट्रेलिया में मॉरिसन प्रशासन के लिए एक नए कार्यकाल के साथ, यह विश्लेषण करना महत्वपूर्ण है कि आने वाले वर्षों में भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंधों के लिए इसका क्या अर्थ है।
भारत-ऑस्ट्रेलिया द्विपक्षीय संबंधों में 2014 के बाद से भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल और 2013 के बाद से ऑस्ट्रेलिया में लिबरल पार्टी के प्रशासन में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। वर्ष 2014 में प्रधानमंत्रियों की पारस्परिक यात्रा द्विपक्षीय संबंधों में नई ऊर्जा लाने में विशेष रूप से महत्वपूर्ण रही। 2014 में प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा 28 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की ऑस्ट्रेलिया की पहली यात्रा थी। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री टोनी एबॉट का यात्रा के समय लंबे समय से प्रतीक्षारत 'असैनिक परमाणु सहयोग समझौते' (सीएनसीए) पर हस्ताक्षर किए गए। नवंबर 2018 में भारतीय राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की हाल की यात्रा, भारतीय राष्ट्र प्रमुख की पहली ऑस्ट्रेलिया यात्रा थी, जो भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंधों के ऊपर उठते प्रक्षेपवक्र में परिलक्षित है। प्रधानमंत्री मोदी और मॉरिसन दोनों ने नवंबर 2018 में सिंगापुर में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईएसए) के मौके पर भेंट की और द्विपक्षीय सहयोग को गहरा करने के लिए व्यापार और निवेश, रक्षा और सुरक्षा तथा अन्य क्षेत्रों पर चर्चा की। भारतीय प्रधानमंत्री ने अपने ऑस्ट्रेलियाई समकक्ष को भारत आने का निमंत्रण भी दिया। आशा की जाती है कि प्रधानमंत्री मॉरिसन के अधीन सत्तारूढ़ लिबरल पार्टी की निरंतरता और मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के साथ, दोनों देशों के संबंधों में और प्रगति होगी।
ईएएस के समय 14 नवंबर, 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन
स्रोत: https://twitter.com/PMOIndia
रणनीतिक और राजनीतिक क्षेत्रों में, इसका ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि दोनों देशों ने विभिन्न अवसरों पर भारत-प्रशांत के लिए अपने पूरक दृष्टिकोण को दोहराया है। भू-राजनीतिक वातावरण में तेजी से बदलाव के साथ अनिश्चितता और अस्पष्टता इस क्षेत्र की विशेषता बन गई है। हाल ही में शांगरी-ला डायलॉग 2019 में बोलते हुए, ऑस्ट्रेलियाई रक्षा मंत्री लिंडा रेनॉल्ड्स ने कहा कि "भारत-प्रशांत क्षेत्र ऑस्ट्रेलिया की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है ... यह क्षेत्र अधिक समृद्ध हो रहा है, लेकिन यह अधिक प्रतिस्पर्धी भी बन रहा है।"1 भारत और ऑस्ट्रेलिया एक साझा महासागर की अपनी भौगोलिक निकटता के कारण, भारत-प्रशांत क्षेत्र की भू-राजनीतिक व्यवस्था में बढ़ते व्यापार और निकट सुरक्षा सहयोग को प्रमुखता देते हैं।
भारत-प्रशांत के लिए जो "वैश्विक अवसरों और चुनौतियों की एक विशाल सारणी का घर है",2 भारत का दृष्टिकोण "मुक्त, खुले और समावेशी भारत-प्रशांत" पर जोर देता है। भारत की पुनः प्रबलित ‘एक्ट ईस्ट’ नीति अपने विस्तारित पूर्वी पड़ोस पर केंद्रित है, जो एक महत्वपूर्ण रणनीतिक भागीदार के रूप में ऑस्ट्रेलिया के महत्व को रेखांकित करते हुए ऑस्ट्रेलिया को अधिक केंद्रित तरीके से भारत के हित की परिधि में ले आई है। दूसरी ओर, ऑस्ट्रेलिया भारत-प्रशांत के वैश्विक दृष्टिकोण को अपनाने के लिए तत्पर है, उसने अपने पश्चिमी पड़ोस विशेष रूप से भारत के साथ संबंधों पर जोर दिया है। ऑस्ट्रेलिया आधिकारिक तौर पर अपने रक्षा श्वेत पत्र 2013 में भारत-प्रशांत शब्द का उपयोग करने वाला पहला देश था और इसने 'एक खुले, समावेशी और नियम-आधारित क्षेत्र' की आवश्यकता पर जोर दिया। ऑस्ट्रेलिया, भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) और जापान के साथ ‘चतुष्कोणीय’ परामर्शों की एक महत्वपूर्ण कड़ी है।
द्विपक्षीय संबंधों में अतीत की सकारात्मक घटनाओं के बावजूद, विशेष रूप से जब व्यापक भारत-प्रशांत क्षेत्र में एक स्थिर क्षेत्रीय व्यवस्था बनाने के लिए सक्रिय भूमिका निभाने की बात आती है तो दोनों पक्षों की कुछ राजनीतिक महत्वाकांक्षा रही है। दोनों के बीच सुरक्षा सहयोग धीमी गति से विकसित हुआ है। यह क्षेत्रीय मामलों में चीन और अमेरिका की भूमिका के प्रति अलग-अलग रवैये के कारण है, विशेष रूप से इसलिए कि ऑस्ट्रेलिया अमेरिका, चीन और भारत के साथ अपने संबंधों में संतुलन बनाए रखने की कोशिश करता है और शून्य-राशि के खेल में फंसना नहीं चाहता। भारत इस क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया की रणनीतिक प्रतिबद्धता के बारे में भी सतर्क है।
विदेश नीति के मोर्चे पर अमेरिका के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी और चीन के साथ अपने आर्थिक संबंधों को संतुलित करना कैनबरा के लिए सबसे जटिल मुद्दों में से एक रहा है। अमेरिका और चीन के साथ ऑस्ट्रेलिया के संबंधों का प्रबंधन करना, मॉरिसन सरकार के लिए विदेश नीति का एक कठिन काम बना हुआ है और ऐसे समय में जब अमेरिका और चीन एक व्यापारिक युद्ध में रत हैं, जिसके क्षेत्रीय और वैश्विक भू-राजनीति पर मध्यम और दीर्घकालिक प्रभाव पड़ने की संभावना है। चीन के कारक ने ऑस्ट्रेलियाई राजनीति में हाल ही में एक शानदार भूमिका निभाई है। पिछले वर्ष ऑस्ट्रेलियाई संसद ने घरेलू राजनीति में गुप्त विदेशी हस्तक्षेप को प्रतिबंधित करने वाला एक कानून पारित किया था, जो ऑस्ट्रेलिया की घरेलू राजनीति में चीनी मध्यस्थता पर लक्षित था। ऑस्ट्रेलिया अपने पड़ोस अर्थात् दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में चीन के हालिया दबाव के बारे में विशेष रूप से आशंकित है और प्रशांत द्वीप समूह के लिए चीन की सहायता और ऋण कार्यक्रमों के विरुद्ध मुखर है। हाल ही में ऑस्ट्रेलिया ने चीनी दूरसंचार दिग्गज हुआई और जेडटीई को ऑस्ट्रेलिया के नियोजित 5जी नेटवर्क में किसी भी भागीदारी से प्रतिबंधित कर दिया है। पूर्व प्रधानमंत्री मैल्कम टर्नबुल, जिनके कार्यकाल में सरकार ने यह निर्णय लिया, उन्होंने इसे 'राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं के आधार पर' और 'भविष्य में प्रतिकूल आकस्मिकताओं के विरुद्ध' बचाव करने की आवश्यकता बताया।3 लेबर पार्टी के सत्ता में आने पर संभवतः ऑस्ट्रेलिया-चीन संबंध की गतिशीलता कुछ अलग होती।4
भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच सुरक्षा संबंध अनिवार्य रूप से समुद्री सहयोग से विकसित होंगे। कैनबरा और नई दिल्ली दोनों के लिए, उनकी सुरक्षा और समृद्धि आंतरिक रूप से उनके आसपास के जल से जुड़ी हुई है। ऑस्ट्रेलिया के लिए, अपने दो-महासागरों वाली भौगोलिक स्थिति के साथ, 99% ऑस्ट्रेलियाई निर्यात समुद्र द्वारा किया जाता है, इसी तरह भारत के लंबे समुद्र तटों के साथ, इसका 95% व्यापार समुद्री मार्ग से होता है। अतएव, महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों की सुरक्षा और संरक्षा दोनों देशों की प्राथमिकता है। अंतरराष्ट्रीय संघर्ष और बदलती भू-राजनीतिक गतिकी सहित क्षेत्र में उत्पन्न कई चुनौतियों से समुद्री सुरक्षा को खतरा है, अब यह ऊर्जा राजनीति और गैर-पारंपरिक खतरों की चुनौती से और प्रबलित हो गई है। इस क्षेत्र में भारत और ऑस्ट्रेलिया के पास दो महत्वपूर्ण नौसेनाएं हैं, उनकी वर्द्धित समुद्री क्षमताओं के साथ द्विपक्षीय सहयोग के अतिरिक्त अन्य तटवर्ती भागों को समुद्री व्यवस्था बनाए रखने के बहुपक्षीय प्रयासों के एक हिस्से के रूप में शामिल करने में भी मदद मिल सकती है। वर्ष 2013 में हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (आईओआरए) के सुदृढीकरण में दोनों देशों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और दोनों ने पहली बार समुद्री सुरक्षा पर एक कार्य समूह बनाकर समुद्री सुरक्षा से संबंधित मुद्दों को आईओआरए के एजेंडा में शामिल किया था। दोनों देशों को, क्षेत्रीय वास्तुकला को मजबूत करने के लिए भविष्य में समन्वित तरीके से महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की जरूरत है।
ऑसीइंडेक्स-2019
स्रोत: https://www.indiannavy.nic.in/content/royal-australian-navy-ships-and-submarine-visakhapatnam-
भागीदारी-ऑसीइंडेक्स-19
दोनों देशों की नौसेनाओं के बीच का संपर्क फलदायी रहा है। रॉयल ऑस्ट्रेलियन नेवी (आरएएन) और भारतीय नौसेना (आईएन) के बीच द्विपक्षीय अभ्यास की तीसरी पुनरावृत्ति, ऑसीइंडेक्स विशाखापट्टनम में 2-14 अप्रैल 2019 के बीच आयोजित की गई थी, जिसमें पनडुब्बी रोधी युद्ध अभ्यास सहित उन्नत युद्ध अभ्यासों की एक श्रृंखला आयोजित की गई थी।5 विगत वर्षों में ऑसीइंडेक्स एक परिष्कृत पनडुब्बी रोधी अभ्यास बन गया है। इस वर्ष के अभ्यास में अब तक की सबसे अधिक इकाइयाँ शामिल थीं। ऑस्ट्रेलिया के रक्षा मंत्री क्रिस्टोफर पायने ने अभ्यास की शुरुआत में कहा कि "भारत ऑस्ट्रेलिया के लिए एक महत्वपूर्ण सुरक्षा भागीदार है, भारत के साथ ऑसीइंडेक्स के माध्यम से जुड़ाव इस वर्ष ऑस्ट्रेलिया की भारत-प्रशांत प्रयास श्रृंखला1 की आधारशिला है"।6
इस संबंध के आर्थिक पहलू भी द्विपक्षीय संबंधों के ध्यान केंद्रित क्षेत्र रहे हैं। 22 नवंबर 2018 को राष्ट्रपति कोविंद की आस्ट्रेलिया यात्रा के समय दोनों देशों के बीच शिक्षा और व्यावसायिक संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए पाँच समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए थे। 2018 में ऑस्ट्रेलिया के विदेश और व्यापार विभाग ने 2035 तक एक भारतीय आर्थिक रणनीतिःसंभावनाओं से प्रतिपादन तक पहुंचना (एन इंडिया इकोनॉमिक स्ट्रेटेजी 2035: नेविगेटिंग फ्राम पोटेंशियल टू डिलीवरी) शीर्षक एक रिपोर्ट जारी की। अप्रैल 2017 में भूतपूर्व ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री मैल्कम टर्नबुल की भारत यात्रा के समय, उनके द्वारा भारत में ऑस्ट्रेलियाई व्यवसायों के अवसरों की पहचान करने और 2035 तक भारत के विकास प्रक्षेपवक्र पर विचार करने के लिए एक स्वतंत्र रिपोर्ट बनाने के विचार की घोषणा की गई थी।7 रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री मॉरिसन ने टिप्पणी की थी कि “रिपोर्ट एक खाका है… जो भविष्य के आर्थिक जुड़ाव के लिए एक रोडमैप प्रदान करता है। भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था अगले 20 वर्षों में ऑस्ट्रेलियाई व्यापार के लिए किसी अन्य एकल बाजार की तुलना में अधिक अवसर प्रदान करती है” वास्तव में, उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को अपने बधाई संदेश देते समय रिपोर्ट के बारे में भी उल्लेख किया, क्योंकि उन्होंने लिखा था "हमारी भारत आर्थिक रणनीति हमारे संबंधों को एक नए स्तर पर ले जाएगी।"8 भारत ऑस्ट्रेलिया का पाँचवां सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। 2017-18 में ऑस्ट्रेलिया के साथ वस्तुओं और सेवाओं में भारत का कुल व्यापार 18 अरब अमरीकी डॉलर था, जिसमें 14 अरब अमरीकी डॉलर का आयात और 4 अरब अमरीकी डॉलर का निर्यात शामिल था।9 भारत ऑस्ट्रेलिया के प्राकृतिक गैस, कोयला, एलएनजी और अब सीएनसीए के बाद यूरेनियम के लिए एक आकर्षक बाजार है।
1 भारत-प्रशांत प्रयास 2019, भारत, श्रीलंका, मलेशिया, थाईलैंड, वियतनाम, सिंगापुर और इंडोनेशिया सहित ऑस्ट्रेलिया के क्षेत्रीय पड़ोसियों के साथ उसके महत्वपूर्ण जुड़ाव गतिविधियों की एक श्रृंखला है, जिसका उद्देश्य मार्च से मई 2019 तक अंतरसक्रियता को बढ़ाना है। ऑस्ट्रेलियाई रक्षा बल की क्षेत्र से संबंधित प्रमुख गतिविधि और क्षेत्रीय सुरक्षा बलों के साथ ऑस्ट्रेलिया की भागीदारी और साझेदारी को मजबूत करने के लिए 2016 के रक्षा श्वेत पत्र के वादे को पूरा करता है।
उत्पादों की टोकरी के विस्तार के प्रयास किए जा रहे हैं। हालाँकि, वार्ता के नकारात्मक पक्ष में, 2011 के बाद से व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (सीईसीए) पर प्रगति धीमी रही है। इसलिए इस स्तर पर क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) पर ध्यान दिया जाना चाहिए। जनवरी 2019 में, इंडोनेशिया के जकार्ता में आयोजित द्वितीय विशेष व्यापार वार्ता समिति (टीएनसी) की बैठक पर आधारित रिपोर्टों के अनुसार, आरसीईपी पर वार्ता अंतिम चरण तक पहुंच गई है। अतएव, इस समय आरसीईपी को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, क्योंकि सीईसीए पर बातचीत की स्थिति अभी भी बहुत दूर है। आगामी वर्षों में दोनों देशों के बीच घनिष्ठ आर्थिक साझेदारी के निर्माण की अपार संभावना है।
स्रोत: वाणिज्य विभाग, आयात- निर्यात डेटा बैंक, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, http://commerce-app.gov.in/eidb/icstcntq.asp
ऑस्ट्रेलिया से प्रवासियों, पर्यटकों और छात्रों के आदान-प्रदान के मामले में भारत उल्लेखनीय योगदान करता है। 60,000 से अधिक भारतीय छात्र ऑस्ट्रेलिया में पढ़ रहे, कुल अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के लगभग 45.4% के बराबर हैं।10 भारत पर्यटकों के लिए ऑस्ट्रेलिया का नौवां सबसे बड़ा बाजार भी है जिसके आगे बढ़ने की आशा है। ऑस्ट्रेलिया की जमसंख्या में 3% भारतीय प्रवासी हैं, जो लोगों के मजबूत परस्पर संबंधों (पी2पी) का निर्माण कर सकते हैं। हालांकि, जैसा कि अमेरिका और कई यूरोपीय देशों के साथ हो रहा है, यहाँ भी अप्रवासियों की बाढ़ को अनदेखा करने की भावना का उदय हो रहा है। लिबरल पार्टी ने आव्रजन मुद्दे पर एक कठोर दृष्टिकोण अपनाया है। मॉरिसन सरकार ने ऑस्ट्रेलियाई लोगों के 'जीवन की गुणवत्ता' की रक्षा के लिए आप्रवासन में कटौती करने के लिए मार्च 2019 में एक योजना का अनावरण किया।11 इसलिए इस सरकार के आव्रजन पर सख्त होने की संभावना है जो विशेष रूप से निकट भविष्य में भारत के कुशल प्रवासियों को प्रभावित कर सकती है। यह भारत सरकार के लिए एक चुनौती होगी। हालांकि यह पर्यटकों, छात्रों आदि भारतीय नागरिकों की आवाजाही के लिए अपेक्षाकृत कम चुनौतीपूर्ण होगा, जो आने वाले वर्षों में बढ़ने के लिए तैयार है और इससे ऑस्ट्रेलियाई अर्थव्यवस्था को भी काफी फायदा होगा, उत्प्रवास मुद्दे चुनौतियों से घिर जाएंगे।
संक्षेप में, ऑस्ट्रेलिया न केवल एक व्यापारिक साझेदार के रूप में, बल्कि एक उभरते हुए रणनीतिक साझेदार के रूप में भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने में मजबूत रुचि दर्शा रहा है। मोदी और मॉरिसन सरकारों की निरंतरता के साथ द्विपक्षीय संबंधों के अधिकांश पहलुओं में मजबूत निरंतरता बनी रहने की संभावना है। क्षेत्र के लिए आर्थिक क्षेत्र और स्थिरता, खुलेपन और नियम आधारित व्यवस्था के साझा उद्देश्यों पर व्यापक रूप से जोर देने के साथ, यह आवश्यक है कि दोनों देशों को अब महत्वपूर्ण रणनीतिक और आर्थिक साझेदारों के रूप में गहराई से संबंध बनाना आरंभ करना चाहिए।
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*डॉ. प्रज्ञा पांडेय, भारतीय विश्व मामले परिषद, नई दिल्ली में अध्येता हैं
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