वर्ष 2009 में भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री केविन रड द्वारा आस्ट्रेलिया और भारत के बीच औपचारिक सहमति वाली रणनीतिक साझेदारी के बाद से दोनों देशों के बीच परस्पर समझ और सहयोग के आधार पर एक साझेदारी के निर्माण की नई शुरूआत हुई। आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री मेलकॉम टर्नबुल की हाल की चार दिवसीय यात्रा (9 अप्रैल-12 अप्रैल, 2017) एक महत्वपूर्ण यात्रा थी, क्योंकि यह भारत-आस्ट्रेलिया संबंधों को मजबूती प्रदान करने में एक और कदम था। पिछले पांच वर्षों में आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री की यह तीसरी भारत यात्रा थी और सितम्बर, 2015 में प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद टर्नबुल की पहली यात्रा थी। इसके पूर्व उसके पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री टोनी अबॉट ने सितम्बर, 2014 भारत की यात्रा की थी। पिछले दो दशकों में किसी आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री की यह आठवीं यात्रा थी। ऐसी नियमित यात्रा यह दर्शाती है कि आस्ट्रेलिया भारत को एक मजबूत क्षेत्रीय ताकत के रूप में कितना मान देता है।
इस यात्रा के पूर्व भारतीय पक्ष की ओर से आर्थिक प्रतिबद्धता प्राप्त करने के प्रति आस्ट्रेलियाई प्रशासन में महत्वपूर्ण आकांक्षा थी कि इससे भारत-आस्ट्रेलिया द्विपक्षीय व्यापार में बढ़ोतरी के लिए आर्थिक अवसर खुलेंगे। यह एक ऐसी आकांक्षा थी जिसे प्रधानमंत्री टर्नबुल द्वारा अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों द्वारा मिले विरासत को आगे बढ़ाया गया। यद्यपि, इस यात्रा से ऐसी आकांक्षा को पूरा करने में सफलता नहीं मिली किंतु यह निश्चय ही एक दूसरे की जटिलताओं, बाध्यताओं और कठिनाइयों को समझने में एक सकारात्मक कदम था।
यह एक ऐसी यात्रा थी जिसमें प्रधानमंत्रियों ने दिल्ली मेट्रो में यात्रा करते हुए अथवा अक्षरधाम मंदिर में घूमते हुए औपचारिक रूप से व्यापक चर्चा की। आधिकारिक बैठकों के साथ-साथ प्रधानमंत्री टर्नबुल और प्रधानमंत्री मोदी को विभिन्न बारिकियों पर चर्चा करने का अवसर प्राप्त हुआ जो भारत और आस्ट्रेलिया के कारोबारी समुदायों के बीच एकमत बनाने के पूर्व समाधान किए जाने की आवश्यकता थी। दोनों नेताओं के बीच बनी समझ इस यात्रा से वापस लौटने के बाद प्रधानमंत्री टर्नबुल द्वारा दिए गए साक्षात्कार में परिलक्षित हुई। उन्होंने कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के साथ यह सुनिश्चित करने के लिए साथ मिलकर कार्य किया कि दोनों पक्ष एक साथ हैं। प्रधानमंत्री टर्नबुल प्रधानमंत्री मोदी द्वारा प्रदर्शित नेतृत्व और भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के प्रति बहुत हीं आशान्वित हैं और उन्होंने आशा व्यक्त की कि बहुत जल्द ही वे व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (सीईसीए) को आकार देने के लिए एक रणनीति बनाने संबंधी विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं पर कार्य करेंगे। वे उन विभिन्न बाधाओं को खाइयों की साथ मिलकर पहचान करेंगे, उन्हें परस्पर परामर्श और बातचीत के माध्यम से उन्हें दूर करेंगे। यह समझौता भविष्य में मुक्त व्यापार समझौते की प्राप्ति का एक तंत्र होगा। उन्होंने यह भी कहा कि उनके पास कई ऐसे मुद्दे हैं जिन पर अनौपचारिक रूप से चर्चा किए जाने की आवश्यकता है।
रणनीतिक और रक्षा साझेदारी
इस यात्रा से आस्ट्रेलिया और भारत के बीच रणनीतिक संबंध में महत्वपूर्ण मजबूती मिली। अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद और पारदेशीय संगठित अपराध से निपटने के लिए सहयोग बढ़ाने हेतु एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया गया। आशा की जाती है कि ऐसे सहयोग से आस्ट्रेलियाई आर भारतीय कानून प्रवर्तन, सीमा और गुप्तचर एजेंसियों के बीच बेहतर समझ बनेगी जो अंततोगत्वा वैश्विक और क्षेत्रीय सुरक्षा खतरों को दूर करने की दोनों देशों की क्षमता को मजबूत करेगी। प्रधानमंत्री टर्नबुल भारत को एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरता देख रहा है और उसके पश्चात वह अपनी सैन्य और रणनीतिक ताकत को मजबूत करेगा। कानून व्यवस्था के रूप में प्रतिबद्ध भारत इस क्षेत्र में धीरे धीरे स्थायित्व की एक ताकत बन रहा है। टर्नबुल ने माना कि भारत एक बड़ी ही महत्वपूर्ण उभरती महाशक्ति है जिसके नीतिगत हित आस्ट्रेलिया के समान हैं जिसे उन्होंने जोर देकर कहा कि अपने अधिकार में महत्वपूर्ण हिंद-प्रशांत नौसेना ताकत पहले से ही है। उन्होंने घोषणा की कि दोनों देशों को समग्र क्षेत्र के सामान्य रणनीतिक दृष्टिकोण को आकार देने के लिए हमारे मित्रों और साझीदारों को शामिल करने की आवश्यकता है। टर्नबुल ने कहा कि आस्ट्रेलिया, भारत और जापान के बीच त्रिपक्षीय अनुबंध इसका एक अच्छा उदाहरण है जैसा कि हमारा अमेरिका के साथ संबंधित द्विपक्षीय संबंध है। उन्होंने एशिया प्रशांत आर्थिक सहयोग फोरम (एपीईसी) में भारत की सदस्यता का भी समर्थन किया। दोनों प्रधानमंत्रियों ने साझा अनुभवों को साझा करने एवं समुद्री संसाधनों की रक्षा करने के लिए साझेदारी बनाने, पर्यावरण क्षय को रोकने, और नीली अर्थव्यवस्था की क्षमता का दोहन करने पर सहमति जताते हुए पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईएएस) को मजबूत करने पर सहमत हुए।
मानव तस्करी और अनियमित प्रवर्जन तथा लोगों की तस्करी से निपटने हेतु सहयोग को मजबूत करने के लिए दोनों ही नेता अपने देशों की संप्रभुता, अंतरराष्ट्रीय कानून और संबंधित घरेलु कानूनों के संगत सहयोग बढ़ाने के लिए दिशानिर्देश विकसित करने पर सहमत हुए।
11 अप्रैल को राष्ट्रीय रक्षा महाविद्यालय को संबोधित करते हुए उन्होंने बताया कि किस प्रकार आस्ट्रेलिया अपने समुद्री सिद्धांत और नौसेना की ताकत को मजबूत कर रहा है। उन्होंने कहा कि किस प्रकार भारतीय और आस्ट्रेलियाई सैनिक, नौसेना और वायु सेना ने शांति और संघर्ष में एक दूसरे के साथ मिलकर कार्य किया, एक साथ मिलकर लड़ा और प्रथम विश्व युद्ध के दौरान मध्य पूर्व में एवं पश्चिमी मोर्चे पर गालीपोली के बारे में उल्लेख किया।उन्होंने दोनों देशों के बीच ऐसे ऐतिहासिक संबंधों को मजबूत करने पर जोर दिया। प्रधानमंत्री टर्नबुल ने कहा कि उसकी सरकार की योजना नई हथियार प्रणाली और अन्य सैन्य हार्डवेयर पर अगले पांच वर्षों में 195 बिलियन डॉलर खर्च करने की है। रणनीतिक संबंध की बढ़ती प्रकृति को समझते हुए दोनों नेताओं ने भारत और जापान के बीच मौजूद सुरक्षा संबंध के स्तर के समान हीं अपने सुरक्षा संबंधों को बनाने का इरादा जताया। यह भी निर्णय लिया गया कि दोनों प्रधानमंत्री बाद में ‘’2+2 रणनीतिक बातचीत’’-अपने रक्षा और विदेश मंत्रियों की बैठक- की अनुसूची की घोषणा करेंगे। दोनों ही नेतागण भारत और आस्ट्रेलिया के अपने प्रथम द्विपक्षीय संयुक्त सैन्य अभ्यासों को करने पर सहमत हुए जो 2018 में होने जा रहा है, विशेष बल द्विपक्षीय अभ्यास की पुनरावृत्ति 2017 के अंत में तथा संयुक्त नौसेना अभ्यास का दूसरा संस्करण उन्होंने 2015 में शुरू किया (द्विपक्षीय समुद्री अभ्यास जिसका नाम आउसिन्डेस्क रखा गया है, वह 2018 के प्रथम भाग में पश्चिमी आस्ट्रेलिया में होगा)। दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय श्वेत नौवहन समझौते की महत्वपूर्ण भूमिका पर भी जोर दिया जिस पर भारत और आस्ट्रेलिया ने 2015 में हस्ताक्षर किया था।
टर्नबुल ने भारत के साथ आस्ट्रेलिया के रक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा संबंध को ‘स्वाभाविक साझेदारी’ के रूप में घोषित किया जिसे दोनों देशों को सतत रूप से विकसित करते रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय स्थिरता संबंधी सहयोग दोनों ही राष्ट्रों के हितों पर आधारित है। विशेषकर वैश्विक रूप से और इस क्षेत्र में तेजी से बदलते शक्ति संतुलन के साथ हिंद-प्रशांत में देशों को अपेक्षाकृत अधिक बड़ी भूमिका अदा करनी है, और भारत, जापान और आस्ट्रेलिया हिंद –प्रशांत के इस रणनीतिक प्रवाह के केन्द्र में है। भारत, आस्ट्रेलिया और जापान के बीच त्रिपक्षीय पहल जिसे अब तक अपनाया गया है, महत्वपूर्ण रूप से मजबूत किए जाने की आवश्यकता है। भारत और आस्ट्रेलिया के समुद्री संबंध में बड़ी प्रगति हुई और इसमें आगे बढ़ने में और सहयोग के बड़े अवसर हैं जिनकी पहचान दोनों ही राष्ट्रों द्वारा की गयी। इन नेताओं ने सहयोग के व्यापक प्रकृति को तैयार करने के लिए अपने मित्रों और साझेदारों को शामिल करने, एक दूसरे की क्षमताओं को विकसित करने तथा समग्र क्षेत्र के सामान्य रणनीतिक दृष्टिकोण को आकार देने की आवश्यकता को महसूस किया।
एक संयुक्त वक्तव्य में दोनों ही नेताओं ने एक शांतिपूर्ण और समृद्ध हिंद-प्रशांत के लिए अपनी प्रतिबद्धता की परिपुष्टि करते हुए समुद्री सुरक्षा व संचार के समुद्री लेनों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने में सामान्य हितों को मजबूत करने पर सहमति जतायी। दोनों ही नेताओं ने नौवहन और आकाशीय उड़ान की स्वतंत्रता, अबाधित कानूनी वाणिज्य और शांतिपूर्ण तरीके से समुद्री विवादों के निपटारे के महत्व को पहचाना।
आर्थिक सहयोग
आस्ट्रेलिया और भारत की अर्थव्यवस्थाएं एक दूसरे की पूरक हैं। यहां यह नोट किया जा सकता है कि भारत को आस्ट्रेलिया का कोयला निर्यात सबसे अधिक है, यह कुल निर्यात का लगभग 44 प्रतिशत है जिसका मूल्य 2015 में लगभग 5.5 बिलियन डालर है, इसके बाद शिक्षा निर्यात है (भारतीय छात्र उच्च शिक्षा के लिए आस्ट्रेलिया जाते हैं), यह 20 प्रतिशत है और इसका मूल्य 2.5 बिलियन डॉलर है और उसके बाद सोना और तांबा का निर्यात है। फिर भी दोनों देशों के बीच व्यापार की प्रमात्रा जितनी होनी चाहिएउतनी नहीं है। आस्ट्रेलिया के लिए भारतीय निर्यात में परिष्कृत पेट्रोलियम, कारोबारी सेवाएं, दूरसंचार सेवाएं, कार, रत्न और आभूषण तथा पर्यटन है। आस्ट्रेलिया का आसियान और चीन सहित दस देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौता है (इसे दिसम्बर, 2015 में लागू किया गया था)।
सीईसीए का तात्पर्य व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता है। भारत ने मलेशिया और सिंगापुर के साथ सीईसीए पर हस्ताक्षर किया है। सीईसीए में ‘’नकारात्मक सूची और प्रशुल्क दर कोटा (टीआरक्यू) वस्तुओं को छोड़कर सूचीबद्ध / सभी वस्तुओं पर चरणबद्ध तरीके से प्रशुल्क को कम करने/ समाप्त करना’’ शामिल है। |
यद्यपि आशाएं बहुत बड़ी थीं कि दोनों ही नेता बहु प्रतीक्षित सीईसीए के संबंध में कार्य करेंगे जो मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) का मार्ग प्रशस्त कर सकता है, किंतु कुछ मूलभूत बाधाएं बनी हुई हैं। संरक्षणवाद, प्रशुल्क संबंधी बाधाएं तथा भारतीय अर्थव्यवस्था के कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में विदेशी निवेश की अनुमति की आशंका जिसे समाप्त नहीं किया गया, और आस्ट्रेलिया में अपने श्रम को अधिक पहुंच देने के लिए भारत की मांग को आस्ट्रेलियाई सरकार द्वारा सहमति देने में असफलता के कारण सीईसीए को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका है। प्रधानमंत्री टर्नबुल ने कहा कि यद्यपि दोनों ही नेता इसमें महत्वपूर्ण प्रगति चाहते हैं किंतु इसमें उतनी तेज प्रगति नहीं हुई है जितनी कि दोनों देश चाहते थे। प्रधानमंत्री टर्नबुल ने यह स्पष्ट किया कि यद्यपि भारत और आस्ट्रेलिया के बीच एक दशक में व्यापार की प्रमात्रा दोगुनी होकर 20 बिलियन डॉलर हो गया है, किंतु यह जितना व्यापार किया जा सकता है और होना चाहिए उसका एक अंशमात्र है। उन्होंने बताया कि विदेशी ब्रांडों और विदेशी निवेशों के संबंध में भारत और भारतीय घरेलु संवेदनशीलता में विद्यमान संरक्षणवाद एक बाधा है जिसे पार किए जाने की आवश्यकता है। भारत आस्ट्रेलिया का पांचवां सबसे बड़ा निर्यात बाजार और दसवां सबसे बड़ा समग्र व्यापारिक साझेदार है जो दोतरफा व्यापार में लगभग 20 बिलियन डॉलर है, वर्ष 2015 के अंत तक भारत में आस्ट्रेलिया का कुल निवेश 10.6 बिलियन डॉलर है और आस्ट्रेलिया में भारतीय निवेश 11.6 बिलियन डॉलर है। आस्ट्रेलियाई विदेश और व्यापार विभाग ने एक मुख्य वार्ताकार के माध्यम से भारतीय और आस्ट्रेलियाई नौकरशाह में विद्यमान गलतफमियों और आशंकाओं के समाधान के लिए एक सामान्य आधार तैयार करने का प्रयास किया है। आस्ट्रेलिया आईएसडीएस (निवेशक राष्ट्र विवाद समाधान) का एक टीपीपी (ट्रांस पैसेफिक पार्टनरशिप) मॉडल चाहता है जबकि भारत अधिक सीमित संस्करण चाहता है। भारत शून्य प्रशुल्क संबंधी प्रस्ताव के प्रति अनिच्छुक है विशेषकर आस्ट्रेलियाई कृषि उत्पादों और दुग्ध उत्पादों के प्रति। भारत ने अल्प श्रम बाजार परीक्षण सहित अस्थायी कामगारों व छात्र वीजा में विस्तार व कंप्युटर संबंधी सेवा प्रदाताओं से जुड़े मामलों में अन्य बदलावों की मांग की थी किंतु 457 वीजा को समाप्त कर दिए जाने के साथ ही भारत की यह आशा अपूर्ण ही रही। 457 वीजा (जिसके तहत अस्थायी कामगार चार वर्षों के लिए वह ठहर सकता था) को समाप्त किए जाने से वर्तमान में आस्ट्रेलिया में कार्यरत 95000 अस्थायी विदेशी कामगारों पर असर पड़ेगा (इनमें से अधिकांश कामगार भारतीय हैं)। यह दो टीयर वाली नयी प्रणाली है जहां शुरूआत में दो वर्षों के लिए वीजा दिया जाता है और दूसरे वीजा वर्ग का फोकस चार वर्ष की सीमा के साथ रणनीतिक, दीर्घकालिक कौशल पर होता है। इस 457 वीजा से आस्ट्रेलिया में स्थायी निवासी बनने की प्रक्रिया भी सुकर हुई। इस वीजा को समाप्त कर दिए जाने से स्थायी निवासी अधिकार प्राप्त करने की सुविधा समाप्त हो गयी। इस निर्णय ने आस्ट्रेलिया में कामगार संघों और कारोबारी सर्किलों में महत्वपूर्ण चर्चा शुरू हो गयी है क्योंकि अस्थायी वीजा योजना आस्ट्रेलिया के लिए एक जीवनरेखा रही है और इस वर्तमान निर्णय का आस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
भारतीय कारोबारी घरानों (विशेषकर कृषि और दुग्ध क्षेत्र में) को आस्ट्रेलियाई कारोबारी घरानों की आवश्यकताओं से सहमत होने में समय लगेगा। केवल सतत चर्चा और विचार विमर्श से ही दोनों राष्ट्र ऐेसे प्रशुल्क संबंधी बाधाओं को दूर करने के लिए भारत में और भारतीय कारोबारी घरानों में विश्वास निर्माण करने और एकमत होने के लिए एक सामान्य आधार का पता लगाने में समर्थ होंगे, जिससे न केवल आस्ट्रेलिया बल्कि इस क्षेत्र और इसके परे अन्य राष्ट्रों में भी ऐसे एफटीए को सृजित करने में सुविधा होगी।
संयुक्त वक्तव्य में दोनों ही नेतागण इस पर सहमत हुए कि साझा समृद्धि और विकास प्रत्याशा एक मुक्त, वैश्विक व्यापार प्रणाली व नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था से पूरी होगी और उन्होंने उच्च गुणवत्ता वाले क्षेत्रीय बृहद आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) के समयबद्ध निष्कर्ष की मांग की।
इस दौरे के दौरान प्रधानमंत्री टर्नबुल और टीसीएस के प्रबंध निदेशक, राजेश गोपीनाथन के बीच सीधी बातचीत, जो प्रधानमंत्री टर्नबुल के मुम्बई के दौरे के दौरान हुई थी, के बाद टाटा कंसल्टेंसी सर्विस (टीसीएस) ने यह घोषणा की कि वह आस्ट्रेलिया में एक नया टीसीएस नवोन्मेषी प्रयोगशाला स्थापित करेगा। ऐसे उपक्रम से प्रधानमंत्री टर्नबुल के नवोन्मेषी और विज्ञान संबंधी एजेंडे को मजबूती मिलेगी, इससे कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण निवेश होगा जिसमें वित्तीय सेवाएं, नागरिक उड्डयन और खुदरा क्षेत्र शामिल है।वर्तमान में टीसीएस के पास नौ ऐसे प्रयोगशालाएं हैा (इनमें से दो क्रमश: यूके और अमेरिका में अवस्थित है, शेष सात प्रयोगशाला भारत में अवस्थित है।)
प्रधानमंत्री टर्नबुल की अगुवाई वाले शिष्टमंडल ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में सहयोग के संबंध में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और जियोसाइंस आस्ट्रेलिया के बीच दो कार्यान्वयन समझौतों पर भी हस्ताक्षर किया। असैन्य विमानन सुरक्षा में सहयोग के संवर्धन और विकास के लिए एक ऐसा ही समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुआ जिससे दोनों के रणनीतिक और असैन्य हित मजबूत करने के लिए है।
उसी प्रकार, यद्यपि सभी सरकारी अनुमोदन प्राप्त कर लिए गए हैं किंतु भारत को यूरेनियम के हस्तांतरण के संबंध में किसी विशिष्ट समय-सीमा की घोषणा नहीं की गयी थी, किंतु दोनों ही नेताओं ने विश्वास जताया कि ऐसी बिक्री शीघ्र ही शुरू की जाएगी।प्रधानमंत्री टर्नबुल ने आस्ट्रेलिया-भारत ऊर्जा वार्ता के माध्यम से समस्त ऊर्जा संसाधनों के संवर्धन में भारत के साथ सहयोग करने की अपनी प्रतिबद्धता को दुहराया। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में स्थापित अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन में शामिल होने के आस्ट्रेलिया के शामिल होने का इरादा की घोषणा की।
दोनों ही नेताओं ने आस्ट्रेलिया – भारत सीईओ मंच के महत्व को मानते हुए भारत में अति महत्वपूर्ण आगामी आस्ट्रेलिया कारोबारी सप्ताह (2017 के दूसरे भाग में) पर विचार किया।
सामाजिक सहयोग
आर्थिक सहयोग के साथ कई समझौते ज्ञापन थे जिन पर सहमति बनी ताकि सामाजिक समझ और सहयोग को मजबूत बनाया जाए तथा दोनों ही देश जलवायु, वन्यजीव और पर्यावरण की रक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता जतायी। जलवायु, वन्यजीव और पर्यावरण संबंधी समझौता ज्ञापन का अभिप्राय जलवायु परिवर्तन संबंधी घरेलु कार्यों के संबंध में सहयोग को मजबूत करना तथा पर्यावरणीय आंकड़ा संग्रहण में सुधार करना है। स्वास्थ्य और औषधि के क्षेत्र में सहयोग को मजबूत करने; अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में सहयोग संबंधी व्यवस्था को कार्यान्वित करने संबंधी एमओयू सहयोग के ऐसे क्षेत्र रहे हैं जहां दोनों ही राष्ट्रों को एक दूसरे से बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है।
इस शिष्टमंडलकी कार्यसूची में शिक्षा सबसे उपर थी, आस्ट्रेलिया के शिक्षा मंत्री सेनेटर सिमोन बर्मिंघम और आस्ट्रेलिया के उच्च रैंक वाले विश्वविद्यालयों के वायस चांसलर को मिलाकर आठ सदस्य वाले इस शिष्टमंडल ने प्रधानमंत्री टर्नबुल के ‘न्यू कोलंबो प्लान’ को मजबूती देने पर जोर दिया जहां भारतीय छात्रों को आस्ट्रेलिया में अध्ययन करने का अवसर प्राप्त होता है और आस्ट्रेलियाई छात्रों को आस्ट्रेलियाई सरकार द्वारा छात्रवृत्ति और अनुदान सहायता सहित भारत में यात्रा और अध्ययन से यहां के बारे में अधिक जानने का अवसर प्राप्त होता है। इस दौरे के दौरान डेकिन विश्वविद्यालय, आस्ट्रेलिया और मणिपाल ग्लोबल एजुकेशन सर्विस (एमएजीई) ने बंगलुरू में शिक्षा व प्रशिक्षण कार्यक्रमों को शुरू करने तथा आंकड़ा विज्ञान व उत्कृष्ट साइबर सुरक्षा केन्द्र की स्थापना के लिए एक रणनीतिक गठबंधन शुरू करते हुए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।
भारतीय राजमार्ग इंजीनियर्स अकादमी (आईएएचई), नई दिल्ली ने भी स्मार्ट परिवहन में उत्कृष्टता केन्द्र की स्थापना के लिए यूनिवर्सिटी आफ न्यू साउथ वेल्श (यूएनएसडब्लू) के साथ समझौता किया। इस शिष्टमंडल ने भारत में आस्ट्रेलियाई शिक्षा प्रतिनिधियों के संघ के सदस्यों के साथ मुलाकात की जिन्होंने संयुक्त रूप से एक दूसरे के स्नात्कोत्तर डिग्रियों को परस्पर मान्यता देने के लिए कार्य किया। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान- भारतीय खनन विद्यालय (आईआईटी-आईएसएम), धनबाद में आस्ट्रेलिया-भारत खनन साझेदारी पर भी नई दिल्ली में विदेश मंत्रालय के अधिकारियों और आस्ट्रेलियाई उच्चायुक्त द्वारा एक समझौते पर हस्ताक्षर किया गया। उन्होंने विश्व के सबसे उन्न्त नैनो जैवप्रौद्योगिकी अनुसंधान केन्द्र, ऊर्जा और अनुसंधान संस्थान (टेरी) और डेकिन विश्वविद्यालय, आस्ट्रेलिया के बीच एक संयुक्त उपक्रम का भी उद्घाटन किया। ग्वाल पहाड़ी, गुड़गांव में स्थापित टेरी-डेकिन नैनो जैव प्रौद्योगिकी केन्द्र (टीडीएनबीसी) का लक्ष्य अन्य क्षेत्रों सहित भारतीय कृषि की विद्यमान समस्याओं के लिए नवोन्मेषी विचारों को सहायता प्रदान करना और उन्हें पोषित करना है। यह केन्द्र डेकिन विश्वविद्यालय की चल रही ‘डेकिन भारत अनुसंधान पहल’ का विस्तार है। दोनों प्रधानमंत्री इसे नोट कर खुश थे कि हाल के आस्ट्रेलिया – भारत रणनीतिक अनुसंधान कोष (एआईएसआरएफ) वित्तपोषण दौर के सफल परिणाम (दोनों सरकारों ने इस कोष में 100 मिलियन डॉलर से अधिक वित्तपोषण की प्रतिबद्धता जतायी है) के बाद अगले तीन वर्षों में भारतीय और आस्ट्रेलियाई अनुसंधानकर्ताओं की और सात परियोजना टीमों को सहायता प्रदान की जाएगी (इसके लिए प्रधानमंत्री टर्नबुल ने 7 मिलियन डॉलर की घोषणा की)। आस्ट्रेलिया-भारत रणनीतिक अनुसंधान निधि सूक्ष्म प्रौद्योगिकी, कृषि, खाद्य सुरक्षा, स्मार्ट शहरों आदि जैसे क्षेत्रों में सहयोगपूर्ण अनुसंधान के लिए है।
खेलों में सहयोग संबंधी समझौता एक उदाहरण है जहां दोनों देशविभिन्न राष्ट्रों को निकट लाने के लिए एक माध्यम के रूप में खेलों को सुकर बनाने के लिए सहयोग के जरिये एक स्थान बना सकते हैं। इस समझौता ज्ञापन का लक्ष्य भारतीय राष्ट्रीय खेल विश्वविद्यालय की स्थापना करना है जिसमें भारत सरकार के साथ आस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालय साझेदारी करेगा। प्रधानमंत्री टर्नबुल ने राष्ट्रीय खेल विश्वविद्यालय का उद्घाटन करते हुए मुम्बई में प्रसिद्ध भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर सेमुलाकात की। प्रधानमंत्री ने 2018 में गोल्ड कोस्ट में राष्ट्रमंडल खेलों से पूर्व आस्ट्रेलिया में प्रशिक्षण के लिए भारतीय खेल टीमों को आमंत्रित भी किया।
भावी संभावनाएं
आस्ट्रेलियाई संसद में भारत को सिविल परमाणु अंतरण संबंधी अधिनियम, 2016 की यात्रा में प्रधानमंत्री मोदी और प्रधानमंत्री टर्नबुल की सहमति के बाद गति आयी जिसमें सहमति बनी कि वर्ष 2015 में तुर्की में जी20 देशों के शिखर सम्मेलन में परे आस्ट्रेलिया द्वारा भारत को यूरेनियम का निर्यात किया जाएगा, इसने दोनों ही नेताओं के बीच महत्वपूर्ण सकारात्मकता को सृजित किया। आस्ट्रेलिया के पास विश्व के यूरेनियम भंडार का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा है और जैसी की सूचना है, वह वार्षिक रूप से लगभग 7,000 टन यूरेनियम का निर्यात करता है। यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां भारत और आस्ट्रेलिया संबंध का एक नया स्तर विकसित होगा। अन्य नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों को विकसित करने के लिए संयुक्त रूप से कार्य करने के साथ-साथ असैन्य परमाणु कार्यक्रम के क्षेत्र में भी बड़ा अवसर है।
यह देखे जाने की आवश्यकता है कि यह रणनीतिक साझेदारी किस प्रकार विकसित होती है क्योंकि आस्ट्रेलिया ने भारत को पहले ही हिंद महासागर क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण रक्षा साझेदार के रूप में मान्यता दी है (जैसा कि 2016 में जारी डिफेंस ह्वाइट पेपर में उल्लिखित है)। अमेरिका के साथ एक रणनीतिक साझेदारी एक बड़ी भूमिका अदा कर सकती है।जैसा कि पूर्व में सुरक्षा सहयोग की रूपरेखा पर सहमति बनी, उस अनुसार भविष्य में संयुक्त रक्षा उत्पादन की भी गुंजाइश है और दोनों देश हिंद महासागर क्षेत्रीय संघ (आईओआरए), एक औपचारिक समझौता, जो संबंध को मजबूत बना सकता है, में शामिल है, इसमें पहले से ही दानों ही देशों की हिस्सेदारी है। रणनीतिक क्षेत्र में संगत भूमिका यह है जिसमें भारत हिंद – प्रशांत क्षेत्र को मजबूती प्रदान करने में अदा कर सकता है, की मांग की जानी चाहिए। जहां अंतरिक्षप्रौद्योगिकीमें सहयोग के संबंध में समझौते किए गए हैं, वहीं इस क्षेत्र के देश अपनी रणनीतिक स्थिति को मजबूत करने तथा अपनी समुद्री निगरानी में और बढ़ोतरी करने में भारत में विकसित सेटेलाइट कार्यक्रम का लाभ ले सकते हैं।
जहां आस्ट्रेलिया में बहुत सारे छात्र अध्ययन कर रहे हैं (जिनकी संख्या लगभग 60,000 है और यह आस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था में लगभग 2.3 बिलियन डॉलर का योगदान कर रहे हैं), किंतु ऐसा प्रतीत होता है कि वर्तमान टर्नबुल की सरकार का इन छात्रों को वर्क परमिट की सुविधा देने का कोई इरादा नहीं है। जो छात्र आस्ट्रेलिया में अपने अध्ययन की समाप्ति के बाद वहां रोजगार चाहते हैं, उन्हें बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। ‘आस्ट्रेलिया प्रथम’ को अपनाने के बदले कुशल और प्रशिक्षित भारतीय कामगारों को समामेलित करने के लिए विशिष्ट क्षेत्रों में वर्क परमिट की उपलब्धता को सुकर बनाने का एक अवसर हो सकता है क्योंकि यह भविष्य में आस्ट्रेलिया में उच्च अध्ययन के लिए आवेदन करने वाले छात्रों की संख्या को प्रभावित कर सकता है।
आस्ट्रेलियाई सरकार कई अनुमोदित संस्थाओं और विश्वविद्यालयों की सूची ला सकती है जिन्हें भारत स्थित आस्ट्रेलियाई उच्चायोग में उपलब्ध कराया जा सकता है, जो आस्ट्रेलिया में व्यावसायिक और उच्च शिक्षा के आकांक्षी छात्रों के लिए चयन और प्रवेश प्रक्रिया को आसान बना सकता है। ‘कुशल भारत’ के उद्देश्य को मजबूत करने के लिए आस्ट्रेलियाई संस्थाएं वर्तमान में कुछ दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालयों में प्रचलित साझा पाठ्यक्रमों के लिए अवसर प्रदान करने हेतु भारतीय विश्वविद्यालयों के सहयोग से इनकी स्थापना कर सकती हैं। इसके लिए ऐसे स्थापित किए जाने वाले कैंपसों हेतु आवश्यक नीतियों के कार्यान्वयन के साथ चर्चा और विचार-विमर्श की बड़ी आवश्यकता है।
यह नोट किया गया है कि आस्ट्रेलिया और भारत कई मामलों में एक जैसे हैं इनमें राष्ट्रमंडल का हिस्सा होने की साझी विरासत, अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल और प्रत्यक्ष रूप से एक समान लोकतांत्रिक और कानूनी प्रक्रिया शामिल है। दोनों ही राष्ट्रों के लिए यह आवश्यक है कि वे एक दूसरे की घरेलु और क्षेत्रीय बाध्यताओं को समझते हुए सभी उपलब्ध द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और बहुपक्षीय मंचों पर साथ आएं। इस दौरे ने नि:संदेह इस दिशा में एक सकारात्मक गति सृजित की है।
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* डॉ. ध्रुबज्योति भट्टाचार्यजी , भारतीय विश्व मामले परिषद, नई दिल्ली में अध्येता हैं