19 वर्षों के अंतराल के बाद, इजरायल के राष्ट्राध्यक्ष, राष्ट्रपति रियूवेन रिवलिन की भारत यात्रा ने भारत-इज़राइल संबंधों को फिर से गति प्रदान की है - जो औपचारिक सामरिक साझेदारी न होने के बावजूद एक स्थिर, रणनीतिक, आपसी समझ, सहयोग और विकास पर आधारित है। 1992 में भारत-इज़राइल राजनयिक संबंधों की स्थापना की 25वीं वर्षगांठ के रूप में वर्ष 2016 को बहुत प्रसन्नता के साथ मनाया जा रहा है। भारत-इज़राइल संबंध का स्वरूप एक-दूसरे की क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय तथा एक-दूसरे की क्षेत्रीय समस्याओं कीअनिवार्यताओं को समझने पर आधारित है। वर्तमान इज़राइली राष्ट्रपति की यात्रा, जो 1995के बाद तीसरी उच्च स्तरीय यात्रा है (राष्ट्रपति एज़र वीज़मैन ने 1997 में भारत की यात्रा की थी और 2003 में प्रधानमंत्री एरियल शेरोन ने), को राजनीतिक और रणनीतिक हलकों के बीच उल्लेखनीय माना जा रहा है। दोनों देशों के बीच, हाल ही में भारतीय गृह मंत्री (2014), और भारतीय रक्षा मंत्री (2015) तथा विदेश मंत्री सुषमा स्वराज (2016) और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी (2015) की यात्रा के बीच मंत्रिस्तरीय दौरे किए गए। भारत के किसी भी राष्ट्रपति ने इससे पहले इजराइल यात्रा नहीं की थी। इजराइल के राष्ट्रपति रियूवेन रिवलिन की भारत की वर्तमान यात्रा भारतीय राष्ट्रपति के निमंत्रण पर की गई थी।
यात्रा के दौरान राष्ट्रपति रिवलिन,जिनके साथ व्यापार और शैक्षणिक नेताओं का एक बड़ा प्रतिनिधिमंडल भी आया था, ने चंडीगढ़ शहर में एक एग्रो-टेक सम्मेलन का उद्घाटन करने हेतु भारतीय राष्ट्रपति के साथ चंडीगढ़ का दौरा किया और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्रमोदी,भारतीय शिक्षा मंत्री प्रकाश प्रकाश केशव जावड़ेकर तथा कई वरिष्ठ मंत्रियों, औद्योगिक एवं व्यावसायिक प्रतिनिधियों, शिक्षाविदों शैक्षिक विद्वानों के साथ-साथ, भारतीय यहूदी समुदायों के नेताओं से मुलाकात एवं बैठकें कीं। यह गौरतलब है कि भारत के केरल और मणिपुर राज्योंमें चिह्नित विभिन्न यहूदी समुदायों तथा यहूदी आबादी वाले राज्यों के यहूदी लोग इजरायल में फिर से बस गए हैं।
राष्ट्रपति रिवलिन की यात्रा के दौरान 20 से अधिक शिक्षा सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। राष्ट्रपति की यात्रा ने इजरायल और भारतीय विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के बीच छात्रों का आदान-प्रदान, संयुक्त अनुसंधान परियोजनाओं सहितअकादमिक सहयोग को बढ़ावा देने तथा अकादमिक संबंधों को बढ़ावा देने का मार्ग प्रशस्त करने पर जोर दिया। इस यात्रा ने आपसी व्यापार एवं निवेश सहयोग के दायरे को व्यापक बनाने के साथ-साथ कृषि, जल और सिंचाई प्रौद्योगिकियों (सूखा-ग्रस्त क्षेत्रों और जल प्रबंधन में सूक्ष्म सिंचाई सहित) और अन्य नवप्रवर्तन क्षेत्रों में व्यापार निवेश तथा तकनीकी साझेदारी को मजबूत करने पर जोर दिया। भारत-इज़राइल अकादमिक शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए, राष्ट्रपति रिवलिन ने कहा कि वर्तमान में, इज़राइल में 40 संयुक्त अनुसंधान परियोजनाओं के अलावा, 10 प्रतिशत अंतरराष्ट्रीय छात्र और शोधकर्ता भारत से हैं, जिन्हें दोनों सरकारों द्वारा समर्थन दिया गया है। अधिकांश इज़राइली विश्वविद्यालयों में भारतीय अध्ययनों को शामिल किया गया है, जैसे कि तेल अवीव विश्वविद्यालय, जिसमें छात्रों को मराठी सिखाने का एक कोर्स है। फिर भी, शिक्षा कूटनीति के विस्तार को बढ़ाने के लिए सुधार की महत्वपूर्ण गुंजाइश है। इजरायल के प्रतिनिधिमंडल में इजरायल उच्च शिक्षा बजट समिति परिषद के साथ-साथ इजरायल के विभिन्न प्रमुख विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों के बारह उच्च-स्तरीय प्रतिनिधि शामिल थे।
राष्ट्रपति रिवलिन नेपीएम मोदी के साथ एक संयुक्त प्रेस सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन पूरकताओं का उल्लेख किया जिससे कृषि, शिक्षा, जल और सौर ऊर्जा के क्षेत्रों में सहयोग के लिए बड़ी गुंजाइशें खुली हैं, जिन्हें उन्होंने चार-रंगों वाली क्रांति कहा, जो कि भारतीय नेतृत्व का विजन भी है। रिवलिन ने आगे यह भी कहा कि वर्तमान भारत-इजरायल संबंध केवल एक रणनीतिक या आर्थिक साझेदारी नहीं है, अपितु यह एक ऐसी साझेदारी है ‘’जो उस पानी में जिसे हम पीते हैं, उस खाद्य में जिसे हम खाते हैं, उस प्रौद्योगिकी में जिसका हम उपयोग करते हैं, और हमारे जीवन के कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अंतर ला रही है”। ‘मेक इन इंडिया’के सिद्धांत को आगे बढ़ाते हुए, राष्ट्रपति रिवलिन ने ‘मेक विद इंडिया’ का आदर्श वाक्य जोड़ा। रिवलिन ने दोनों देशों के बीच तालमेल बनाने में भारत की औद्योगिक शक्ति के साथ इजराइली नवप्रर्वतन के समावेशन पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच वाणिज्यिक संबंध मजबूत हुए हैं, जो जल शोधन से लेकर दूरसंचार उत्पादों तक; प्रकाशिकी से धातु तक, रक्षा और विमानन सेहीरे, कपड़ा, रसायन और चिकित्सा उपकरण तकविभिन्न प्रकार के वस्तुओं एवं ज्ञान'तक फैल चुका है।
भारतीय नेतृत्व ने इस बात पर जोर देकर कहा कि भारत को अपने पड़ोसी द्वारा चुनौती दी जाती है, जोनिरंतर आतंकवाद को समर्थन देता है और उसका उपयोग एक स्टेट पॉलिसी के रूप में करता है।दक्षिण एशियाई देशों में वर्तमान तनाव काफी अधिक है।आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई तब और ज्यादा मजबूत हो जाती है, जब दोनों नेतृत्व किसी भी रूप में आतंकवाद की निंदा करते हैं। इजरायल भी आतंकवाद का शिकार रहा है। राष्ट्रपति रिवलिन ने आतंकवाद से लड़ने में भारत को पूर्ण समर्थन देने का वचन दिया। उन्होंने कहा कि "आतंक, आतंक है, आतंक है, चाहे कोई भी इसे अंजाम देता है जिसमें निर्दोष लोगों कोशिकार होना पड़ता है। और हम सभी का कर्तव्य है कि हम अपने शब्दों में आतंकवाद की कड़ी निंदा करें, और इस भयानक बुराई के खिलाफ अपनी पूरी ताकत से लड़ें।'' पीएम मोदी ने इस तरह के खतरों का मुकाबला करने के लिए एक संयुक्त समझ की आवश्यकता पर बल दिया क्योंकि ये खतरे शांति और विकास के मार्ग में एक बड़ी बाधा बने हुए हैं। भारत की रणनीतिक अनिवार्यता को ध्यान में रखते हुए, और भारत के ईरान के साथ अच्छे संबंध, जिसने इजरायल को नष्ट करने के अपने इरादे को स्पष्ट किया है, राष्ट्रपति रिवलिन ने संकट की घड़ी के दौरान इज़राइल को भारत के समर्थन की सराहना की।
एक निजी थिंक-टैंक और भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के अध्यक्ष, इज़राइली राष्ट्रपति के सम्मान में आयोजित रात्रिभोज में बोलते हुए,सीआईआईके अध्यक्ष, डॉ. नौशाद फोर्ब्स ने कहा कि भारत और इज़राइल के बीच संबंध अच्छे हुए हैं, जैसा कि दो नेताओं के बीचसंबंधों के लिए महत्वपूर्ण डाइनामिज्म और दिशा से पता चलता है। रात्रि भोज के दौरान, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के निदेशक, सुंजॉय जोशी ने कहा कि भारत के लिए, इज़राइल एक ऐसा देश है जो असंख्य चुनौतियों का सामना कर रहा है, लेकिन वह स्पष्ट नीतियों और कार्यों के साथ उनका मुकाबला करने में संकोच नहीं करता है। दोनों देशों ने सहयोग और आर एंड डी के लिए नए आयाम खोले हैं, जिनमें रक्षा और कृषि के क्षेत्रों में विभिन्न नवप्रवर्तन और प्रौद्योगिकीय आयाम शामिल हैं, और दोनों देशों ने खुद को ’मित्र’ घोषित करने के लिए परिपक्वता और खुलापन इजहार किया है।
भारत ने पिछले कुछ वर्षों में इजरायल के साथ महत्वपूर्ण रक्षा सहयोग में प्रवेश किया है, जिसमें भारत के डीआरडीएल के साथ बराक सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल रक्षा प्रणाली विकसित करना तथा 'स्पाइक' एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल (एटीजीएम) सहित कई अन्य हथियार और रक्षा उपकरण, निगरानी और काउंटर आतंकवाद अभियानोंके प्रयोजन के लिए मानवरहित हवाई वाहनों से संबद्ध मौजूदा प्रौद्योगिकी को मजबूत करने के साथ-साथ सूक्ष्म और नैनो-उपग्रहों को विकसित करने में संयुक्त सहयोग, सूचना और रडार प्रौद्योगिकियों के साथ-साथ वायु रक्षा प्रणालियोंशामिल हैं। इजरायल भारत को रक्षा उपकरणों की आपूर्ति में तीसरा सबसे बड़ा देश है, जिसमें पिछले एक दशक में लगभग 12 बिलियन डॉलर की खरीद एक इतिहास है। अक्टूबर 2016 में, भारतीय रक्षा मंत्रालय ने इजरायल से भारतीय सेना के लिए सैनिक रेडियो सेट की खरीद को मंजूरी दी, जो कि इजरायल से नवीनतम रक्षा खरीद में से एक है। रक्षा और जवाबी आतंकवाद तंत्र को मजबूत करने के लिए तकनीकी विशेषज्ञता और कौशल को साझाकर दोनों देशों के बीच संयुक्त प्लेटफार्मों को विकसित करने की महत्वपूर्ण गुंजाइश है। हालाँकि, राष्ट्रपति रिवलिन की वर्तमान यात्रा को सार्वजनिक रूप से दोनों राष्ट्रों के बीच शैक्षिक, अभिनव और व्यापारिक आयामों को मजबूत करने के रूप में चित्रित किया गया था, जिससे2017 में भारतीय प्रधानमंत्री मोदी की इज़राइल की यात्रा का मार्ग प्रशस्त हुआ था, जो कि इजरायल के राजदूत, डैनियल कार्मोनके अनुसारदोनों देशों के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण यात्रा होगी।
जबकि कृषि, ऊर्जा और रक्षा में आयामों की खोज पूर्व में पहले ही कर ली गई है, लेकिन सौर ऊर्जा, तकनीकी शिक्षा और संयुक्त अनुसंधान एवं विकास के क्षेत्र में अधिक तालमेल किए जाने से अभी तक कम समझे गए विषयों को और अधिक गति एवं संबल प्राप्त होगा।
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*डॉ. ध्रुबज्योति भट्टाचार्जी, भारतीय विश्व मामले परिषद, नई दिल्ली में अध्येता हैं
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