15-16 दिसम्बर, 2016 को जापान में व्लादिमीर पुतिन की दो दिवसीय यात्रा इस तथ्य के मद्देनजर महत्वपूर्ण है कि यह एक दशक से अधिक समय में इस एशियाई देश में इस रूसी राष्ट्रपति की प्रथम आधिकारिक यात्रा थी। दोनों पक्ष विदेश और रक्षा मंत्रियों के “2+2” परामर्श को पुन: शुरू करनेपर सहमत हुए, कई द्विपक्षीय दस्तावेजों को लागू किया गया, 68 कारोबारी समझौतों पर हस्ताक्षर हुए और विवादित कुरील द्वीपसमूहों के संबंध में संयुक्त आर्थिक गतिविधि की संभावना पर बातचीत की। इन द्वीपसमूहों जिन्हें जापान में उत्तरी प्रदेश और रूस में दक्षिणी कुरील के रूप में जाना जाता है, को द्वितीय विश्व युद्ध के अंतिम दिनों में सोवियत सेनाओं द्वारा अपने अधीन ले लिया गया था, जहां से 17000 जापानी निवासियों को भागने के लिए बाध्य किया गया था। नवम्बर, 2016 में लीमा में पुतिन के साथ पैसेफिक रिम शिखर सम्मेलन से अलग हुए सम्मेलन, जिसमें उन्होंने इस शांति संधि मुद्दे पर समझौता करना चाहा था, में दिए गए अबे की पूर्व संकेत के बावजूद इस पर कोई उल्लेखनीय परिणाम अथवा निर्णय नहीं हो पाया।
रूस और जापान के बीच संबंधों में बड़ी बाधा उनके बीच विवादित कुरील द्वीपसमूहों के संबंध में तनाव है। कुरील नामक यह द्वीप श्रृंखला प्रशांत महासागर में उत्तरी छोर पर जापानी द्वीप होकेइडो से लेकर रूस के कमछटका प्रायद्वीप के दक्षिणी भाग तक फैला हुआ है। चार द्वीपसमूह नामत: कुनासीर, ईटुरूप, शिकोटान और पठारी हेबोमाई द्वीपसमूह रूस और जापान के बीच विवाद का विषय रहा है। इस विवाद के कारण दोनों देशों में औपचारिक रूप से द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के लिए किसी शांति संधि पर हस्ताक्षर नहीं हुआ है। वर्ष 1951 में सन फ्रैंसिस्को संधि में जापान ने ‘कुरील द्वीपसमूह पर अपने सभी अधिकारों, हक और दावों’ को छोड़ दिया, तथापि, इस संधि से किसी भी विवाद का समाधान नहीं हो पाया क्योंकि रूस ने इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किया और जापानी सरकार सरकार ने इन चार द्वीपसमूहों को कुरील द्वीप श्रृंखला के रूप में मान्यता नहीं प्रदान की। रूस और जापान के बीच हस्ताक्षरित 1956 की संयुक्त घोषणा से उनके बीच कूटनीतिक संबंध पुन: स्थापित हुआ तथा रूस होबोमाई और शिकोटन द्वीपसमूहों को जापान को हस्तांतरित करने पर सहमत हो गया। तथापि, जापान ने इसे अस्वीकार कर दिया क्योंकि ये दोनों द्वीपसमूह प्रश्नगत द्वीप का केवल 7 प्रतिशत ही है। उसके बाद से प्रादेशिक मुद्दा अनसुलझा ही रह गया है।
मानचित्र 1:कुरील द्वीपसमूहों को दर्शाने वाला मानचित्र
स्रोत: कार्नेगी, मास्कोसेंटर, http://carnegie.ru/2012/12/11/russia-s-pacific-future-solving-south-kuril-islands-dispute-pub-50325 जिसे 22 दिसम्बर, 2016 को अभिगम किया गया।
इस मुद्दे के महत्व को देखते हुए कुरील अथवा उत्तरी भूभागों की रणनीतिक महत्ता की जांच करना प्रासंगिक है। कुनीयार और इटुरूप द्वीप समूह संसाधन संपन्न है और यह माना जाता है कि यह भूभाग दुर्लभ धातुओं और तेल व गैस के अपतटीय रिजर्व का भंडार है। ये द्वीपसमूह प्राकृतिक वनों, ज्वालामुखियां और जलप्रतातों से भरे हैं और इनमें पर्यटन की विशाल क्षमता है। गर्म और शीतल जलधारा के मिलन स्थल पर इन द्वीपसमूहों की भौगोलिक स्थिति मत्स्यन और रूसी नौसेना की आवाजाही के लिए अनुकूल साबित हो सकता है। किंतु इसके अतिरिक्त, रूस के लिए कुरील्स, जो कभी रूसी साम्राज्य का हिस्सा थे, रूस के दो सबसे शक्तिशाली नौसेनाओं में से एक पैसिफिक फ्लीट की पहुंच बिंदु है। इन द्वीपसमूहों के महत्व को समझते हुए रूस ने इन वर्षों में दक्षिण कुरील्स पर सैन्य सुविधाओं के निर्माण कार्य में गति देकर इन द्वीपसमूहों में अपनी सैन्य उपस्थिति को मजबूत बनाया है। इसके महत्व को सुदूर पूर्वी क्षेत्र (आरएफई), जिसमें इस भूभाग का लगभग 40 प्रतिशत शामिल हैऔर इसके विकास के लिए पुतिन की नीति में दर्शाया गया है जिसके बारे में पुतिन ने व्यापक नीतियों की शुरूआत की है। ये कुरील द्वीपसमूह इस देश की पूर्वी सीमाओं की रक्षा करते हुए रूस के लिए एक रक्षा प्रणाली के रूप में कार्य करते हैं।
रूस के लिए कुरील द्वीपसमूह उसकी राष्ट्रीय भूभाग का हिस्सा हैं और इसलिए वह इस मामले को जापान के साथ प्रादेशिक विवाद नहीं मानता है। इस प्रकार, समय-समय पर इस शांति समझौते पर जोर दिये जाने के बावजूद कोई मूर्त और परस्पर स्वीकार्य निर्णय नहीं लिया जा सका ।
जापान के लिए उत्तरी भूभाग प्रथमत: ऐतिहासिक महत्व का है क्योंकि इसका स्वामित्व सदियों पहले से है और दूसरा 1855 में शिमोडा की संधि पर हस्ताक्षर हुआ था। इस संधि ने जापान को इन चारों द्वीपसमूहों का अधिकार तथा रूस को उत्तर के सभी भूभाग पर अधिकार प्रदान किया था। जापानी लोग जो इन द्वीपसमूहों में बस गए थे, को द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की पराजय के बाद वापस भेज दिया गया। तथापि, जापान लोगों को वापस भेजने के इस कार्य को एक गैर कानूनी कृत्य मानता है और कि जापान ने कभी भी उत्तरी भूभाग को वास्तव में नहीं त्यागा। इन द्वीपसमूहों में वर्तमान में लगभग 17,291 जापानी लोग रहते हैं जो जापान की भूस्थैतिक सूचना प्राधिकरण द्वारा 2014 के राष्ट्रव्यापी प्रशासक प्रांत और निगम क्षेत्र सर्वेक्षण पर आधारित है। ये द्वीपसमूह दक्षिणी चीन सागर और उत्तरी चीन सागर, जहां बीजिंग और टोक्यो का सेन्याकू/डियाओयू द्वीपसमूहों पर प्रतिस्पर्धी दावा है, में चीनी नौसेना गतिविधि का उत्तर देने के लिए एक रणनीतिक स्थल के रूप में कार्य करते हैं। अत: जापान इस उत्तरी भूभागों को अपना अभिन्न अंग मानता है जो ऐतिहासिक, जनसांख्यिकीय और रणनीतिक कारणों व इन द्वीपसमूहों में उपलब्ध प्रचुर संसाधनों के कारण उत्पन्न दिलचस्पी से संबद्ध है। यह इन रणनीतिक कारणों के आधार पर है जिन्हें जापानी मानते हैं, जिन्हें वे प्रत्येक वर्ष 7 फरवरी को ‘’उत्तरी भूभाग दिवस’’ के रूप में शिमोडा संधि पर हस्ताक्षर के रूप में मनाते हैं।
इस प्रकार हाल की पुतिन और अबे की बैठक से इस प्रादेशिक विवाद के संबंध में कोई बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं हुई, यद्यपि, जैसा कि पूर्व में जापानी पक्ष द्वारा कहा गया कि कुछ थोड़े संकेत हैं कि वह इस मुद्दे का समाधान चाहते हैं। तथापि, इसी अवसर पर जापानी नेता ने भी यह कहते हुए इस सच्चाई को स्वीकार किया कि दोनों पक्ष 70 वर्षों से इस मुद्दे का समाधान नहीं कर पाए हैं और इसलिए कोई भी कार्य सावधानी से किया जाना चाहिए। सावधानी पूर्वक दोनों नेता सुरक्षा संबंधी बातचीत को शुरू करने तथा द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति पर औपचारिक रूप से शांति संधि करने के एक कदम के रूप में इन द्वीपसमूहों पर संयुक्त आर्थिक गतिविधियों पर चर्चा शुरू करने के लिए सहमत हुए जैसा कि दोनों पक्षों ने संयुक्त वक्तव्य में कहा। इस परिप्रेक्ष्य से संयुक्त आर्थिक गतिविधियों को करने के लिए इस निर्णय को संबंधित राष्ट्रीय चिंताओं को शांत करने के लिए दोनों ही पक्षों द्वारा सतर्क कदम कहा जा सकता है। सहयोग के क्षेत्रों में मात्स्यिकी, पर्यटन, औषधि, पारिस्थितिकी और अन्य चीजें हैं। रूसी प्रत्यक्ष निवेश कोष (आरडीआईएफ) और जापान अंतरराष्ट्रीय सहयोग बैंक (जेबीआईसी) रूसी-जापानी निवेश परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए कुल एक बिलियन डॉलर के निवेश कोष के निर्धारण पर सहमत हुए हैं। आर्थिक सहयोग संबंधी निर्णय से दोनों ही उद्देश्यों की पूर्ति की संभावना है क्योंकि रूस विशेषकर अपने सुदूर पूर्वी भागों के विकास के लिए जापानी निवेश चाहता है और जापान आशा करता है कि संयुक्त आर्थिक परियोजनाओं से होने वाले इस मजबूत संबंध से निकट भविष्य में दोनों देशों के बीच प्रादेशिक झगड़े को सुलझाने का रास्ता निकलेगा।
यह नोट करना दिलचस्प है कि किस प्रकार ये दोनों देश अपने आर्थिक सहयोग के भिन्न आयामों को देखते हैं। जहां रूस यह कहता है कि उसका जापान के साथ कोई आर्थिक साझेदारी नहीं और दोनों देशों के बीच प्रादेशिक विवाद विद्यमान है, वहीं जापान इस प्रादेशकि विवाद पर समझौता करने के लिए रूस को प्रेरित करने हेतु एक लिवरेज के रूप में आर्थिक संबंध का उपयोग करना चाहता है। यहां इसका उल्लेख किया जाना चाहिए कि वर्ष 2006 से ही मास्को और टोक्यो के बीच द्विपक्षीय संबंध में बहुत अधिक बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2006 की तुलना में वर्ष 2007 में रूस के साथ जापान का निर्यात और आयात क्रमश: 54.1 और 60.3 प्रतिशत बढ़ा है। तथापि, 2014 के बाद से द्विपक्षीय व्यापार में कमी आयी है। उदाहरण के लिए जापान-रूस की व्यापार प्रमात्रा 2015 में लगभग 20.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा जो 2013 के सर्वोच्च उंचाई (लगभग 34.8 बिलियन डॉलर) के बाद से दूसरे वर्ष में लगातार गिरा (जापानी सांख्यिकी के अनुसार पूर्व वर्ष की तुलना में 38.8 प्रतिशत)। इसका कारण तेल की कीमतों में कमी तथा अमेरिका, यूरोपीय संघ और जापान सहित कई अन्य देशों द्वारा मार्च 2014 में क्रीमिया पर कब्जा कर लेने के बाद रूस पर लगाया गया प्रतिबंध है।
द्विपक्षीय व्यापार के साथ वर्ष 2008 और 2012 के बीच जापानी कंपनियों का रूस की अर्थव्यवस्था में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की प्रमात्रा रिकार्ड उंचाई पर थी (सारणी 1), जिसमें 2013 में 26.33 बिलियन येन से लेकर 2014 में 20.26 बिलियन येन तक की कमी आयी।
सारणी 1: वर्ष 2004-2012 के दौरान रूस में जापानी एफडीआई प्रवाह और स्टॉक (मिलियन अमेरिकी डॉलर)
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2004 |
2005 |
2006 |
2007 |
2008 |
2009 |
2010 |
2011 |
2012 |
एफडीआईप्रवाह |
49 |
95 |
160 |
99 |
306 |
391 |
350 |
339 |
757 |
एफडीआईस्टॉक |
87 |
157 |
258 |
373 |
668 |
954 |
1220 |
1725 |
2734 |
स्रोत: जापान बाहरी व्यापार संगठन (जेईटीआरओ)- जापानी व्यापार और निवेश सांख्यिकी- एफडीआई प्रवाह और एफडीआई स्टॉक (भुगतानसंतुलन, निवल पर आधारित) https://www.jetro.go.jp/en/reports/statistics/
उपर्युक्त से यह देखा जा सकता है कि द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग दोनों पक्षों के संबंध में उपलब्ध क्षमता के अनुकूल नहीं रहा है। आर्थिक सहयोग के लिए आवश्यकताओं के संबंध में मतभेदों के बावजूद रूस और जापान परस्पर लाभ के लिए अपने द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ाना चाहते हैं। इस मामले में इन विवादित द्वीपसमूहों में आर्थिक परियोजनाओं के संबंध में संयुक्त रूप से कार्य करने का निर्णय आर्थिक सहयोग को बढ़ाने का एक अवसर हो सकता है। तथापि, एक ऐसा क्षेत्र जहां दोनों ही पक्ष सहमत हैं और साथ हुए हैं, वह आपरेशन की वैधानिक स्थिति है। जहां जापान यह कहता है कि इसे विशेष कानूनी स्थिति के तहत किया जाना चाहिए, वहीं रूस, जिनका इन द्वीपसमूहों पर शासन है, चाहता है कि वे द्वीपसमूह इन कानूनों के तहत रहें। इन परियोजनाओं के सफल कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए दोनों ही पक्षों द्वारा आपरेशन की कानूनी स्थिति के मुद्दे पर सहमत होना होगा।
द्विपक्षीय मुद्दों के अलावा दोनों नेताओं ने सीरिया में हालात पर भी बातचीत की। प्रधानमंत्री अबे ने गिरते मानवीय हालात पर चिंता जतायी और ‘’शत्रुतापूर्ण आचरण को रोकने के लिए वापस लौटने के महत्व तथा मानवीय सहायताके कार्यान्वयन’’ पर जोर दिया। जापान के उप मुख्य मंत्रिमंडल सचिव कोराटो नोगामी ने कहा। दूसरी ओर पुतिन ने इस क्षेत्र के अन्य देशों के साथ सीरिया संघर्ष के समाधान के लिए कार्य करने हेतु अपनी इच्छा जतायी। रूसी राष्ट्रपति ने जापान में अमेरिकी मिसाइल रक्षा प्रणाली की तैनाती पर भी अपनी चिंता जतायी, उन्होंने इसे जापानी मीडिया द्वारा दिए गए रिपोर्ट के अनुसार उत्तरी कोरिया के मिसाइल कार्यक्रम के लिए अति प्रतिक्रया बताया। अबे ने इस क्षेत्र में बढ़ती सुरक्षा चिंताओं के बीच रक्षा मुद्दों पर चर्चा के महत्व पर जोर देते हुए उन्हें आश्वस्त किया कि ये केवल आत्मरक्षा तक हीं सीमित हैं और ये पड़ोसी देशों के लिए खतरा उत्पन्न नहीं करता है।
अमेरिका पुतिन-अबे की इस बैठक के प्रति बहुत चौकन्ना था। वाशिंगटन की इस चिंता के संकेत के बावजूद कि पुतिन-अबे की बैठक का अर्थ जी7 अर्थव्यवस्थाओं द्वारा मास्को पर दबाव में छूट दी जा सकती है, जापान इस बैठक के पूर्व यह उद्धृत करते हुए आगे बढ़े कि पुतिन के दौरे को उनके विशेष पक्षों के अनुसार नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि उनकी सम्राट आकितो से मुलाकात नहीं होगी। जहां ओबामा प्रशासन ने पुतिन-अबे की बैठक पर अपनी चिंता जाहिर की थी, वहीं राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जो जनवरी, 2017 में कार्यभार संभालेंगे, ने रूस के साथ अनुकूल संबंध विकसित करने तथा जापान के साथ सहयोग बढ़ाने का संकेत दिया है। 16 नवमब्र, 2016 को अबे के साथ ट्रंप की बैठक और विदेश मंत्रालय में रूस के प्रति मैत्री भाव रखने वाले रेक्स टिलरसन के हाल के नामांकन ने इन तीन देशों- अमेरिका, रूस और जापान में एक नए समीकरण के उभरने की संभावना सृजित हुई है, यद्यपि यह अनुमान करना अभी जल्दबाजी होगी कि इन नए राजनीतिक घटनाक्रमों से किस प्रकार के भू-राजनैतिक समीकरण उभर सकते हैं।
जापान में गठबंधन शासन द्वारा दी गयी प्रतिक्रिया में इस तथ्य को उद्धृत किया गया कि पुतिन-अबे की बैठक गठबंधन से ही बहुत अधिक समर्थन पाने में असफल रही क्योंकि इस प्रादेशिक विवाद मामले में कोई उपलब्धि हासिल नहीं हुई। इस गठबंधन के कुछ ही सदस्य यथा लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) के उपाध्यक्ष मासाहिको कोमुराऔर एलडीपी के कनिष्ठ गठबंधन साझेदार कोमेटो के नेता नातसुओ यामागुची को इन आर्थिक परियोजनाओं को विकसित करने में एकमत तैयार करने के लिए संदर्भित किया गया। रूस में सार्वजनिक मत समग्र रूप से इस तथ्य का संकेत था कि यह प्रादेशिक रियायत के उलट है।
पुतिन-अबे बैठक से रूस-जापान संबंधों के संबंध में कोई आकस्मिक उन्नति नहीं हुईफ तथापि, यह तथ्य कि शिंजो अबे ने अब तक इन विवादित द्वीपसमूहों में किसी विशेष आर्थिक व्यवस्था की स्थापना के माधन से इस दशकों पुराने विवाद के समाधान हेतु वचन के लिए यामागुची प्रशासक प्रांत में अपने गृह नगर में किसी को आमंत्रित नहीं किया, जो रूस-जापान संबंधों को पुनर्व्यवस्थित करने के एक प्रतिबद्धता स्तर को बतलाता है। अबे के शासनकाल के दौरान ही वर्ष 2013 में दोनों देशों के बीच व्यापार प्रमात्रा में 6.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई और रूस-जापान की नई आर्थिक परियोजनाओं सहित कई उच्च स्तरीय समझौतों पर हस्ताक्षर हुए जिनका लक्ष्य द्विपक्षीय सहयोग के विकास को और आगे ले जाना था। हाल की बैठकों में लगभग 80 समझौते हुए जिनमें विदेश मंत्रियों के बीच वार्ता, तेल और गैस सहित ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग, परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण इस्तेमाल, रूसी सुदूर पूर्व क्षेत्र में उद्योगों को बढ़ावा देने में सहयोग और एशिया –प्रशांत क्षेत्र के लिए निर्यातों हेतु इसे बेस बनाना तथा कृषि और मत्स्य पालन में सहयोग शामिल हैं। इन घटनाक्रमों के माध्यम से जापान ने मास्को के साथ अपने संबंधों को पुन: शुरू करने के अपने इरादे को अव्यक्त रूप से जता दिया है। तथापि साथ ही साथ वह जापान में शांति और सुरक्षा बनाए रखने तथा एशिया-प्रशांत क्षेत्र में स्थायित्व के लिए अमेरिका को एक अनिवार्य ताकत मानता है। इस संबंध में जो नीतियां राष्ट्रपति ट्रंप ने रूस के प्रति अपनाया है, जिसके साथ उसने संबंधों में गर्माहट लाने का संकेत दिया है, से भावी घटनाक्रमों को बनाने अथवा बिगाड़ने में सहायता मिलेगी।
वर्तमान संदर्भ में मास्को और टोक्यो एक शांति समझौते पर पहुंचने के कदम के रूप में इन विवादित द्वीपसमूहों पर संयुक्त आर्थिक गतिविधियां स्थापित करने का मार्ग तलाश रहे हैं। फिर भी यह देखना शेष है कि क्या दोनों पक्ष वास्तव में इस 70 वर्ष पुराने प्रादेशिक विवाद के संबंध में स्वीकार्य समाधान कर सकते हैं और क्या इन द्वीपसमूहों के संबंध में प्रस्तावित आर्थिक सहयोग से संबंध के वास्तविक पुनर्मेल के लिए अनुकूल परिस्थिति सृजित कर सकता है।
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*डॉ. संघमित्रा सरमा, भारतीय विश्व मामले परिषद, नई दिल्ली में अध्येता हैं
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अस्वीकरण: व्यक्त मंतव्य लेखक के हैं और परिषद के मंतव्यों को परिलक्षित नहीं करते।