अंतरराष्ट्रीय ताकतों में, जो लगातार मालदीव की सरकार से राजनीतिक संकट को खत्म करने के लिए कह रहे हैं, उसमें यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र के अलावा, राष्ट्रमंडल एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय ताकत रहा है। राष्ट्रमंडलमंत्री-स्तरीय कार्यसमूह (सीएमएजी) मालदीव की सरकार के साथ-साथ उसके विपक्षी गठबंधन, मालदीव संयुक्त विपक्ष (एमयूओ) को राजनीतिक संकट का सौहार्दपूर्ण समाधान करने के लिए प्रेरित कर रहा है। सरकार के खिलाफ बोलने वाले मालदीव (पीपीएम) के सत्तारूढ़ प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव (पीपीएम) के कुछ सदस्यों तथा विपक्ष के नेताओं की गिरफ्तारी, सत्ता पर नियंत्रण पाने के लिए पीपीएम नेतृत्व के भीतर अराजकता,देश में राजनीतिक स्थिरता बहाल करने के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है। ऐसा करने में सरकार की विफलता ने सीएमएजी को सितंबर 2016 की अपनी बैठक के औपचारिक एजेंडे में मालदीव को शामिल करने के लिए बाध्य कर दिया और मार्च 2017 में होने वाली अपनी अगली बैठक में राष्ट्रमंडल की सदस्यता से मालदीव को निलंबन की चेतावनी दी। इस पृष्ठभूमि में, 13 अक्टूबर को मालदीव की सरकार ने राष्ट्रमंडल छोड़ने का फैसला कर दिया।
मालदीव 1982 में राष्ट्रमंडल में शामिल हो गया था। एक छोटे से द्वीपीयदेश के रूप में उसे स्वैच्छिक संघ की सदस्यता से लाभ लेने की उम्मीद की जा रही थी क्योंकि वह पूर्ववर्ती ब्रिटिश बस्तियों से बना देश है और उसके उद्देश्य भी उसी के समान हैं। उसके कुछ उद्देश्य हैं - स्थायी विकास, संप्रभुता की रक्षा, लोकतंत्र, शांति और सुरक्षा, मानव अधिकार आदि। चूंकि राष्ट्रमंडल के सदस्य देशों में विकसित, विकासशील और छोटे राज्य शामिल हैं, इसलिए राष्ट्रमंडल संघ के माध्यम से सदस्य देशों के बीच बातचीत से छोटे राज्यों को राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक विकास संबंधी मुद्दों के साथ-साथ तकनीकी सहायता के आधार पर लाभ मिलने की उम्मीद होती है।
भले ही मालदीव राष्ट्रमंडल में शामिल हो गयाथा, लेकिन उसकी पहली लोकतांत्रिक सरकार केवल 2008 में चुनी गई थी। तब तक देश पूर्व राष्ट्रपति गयूम के सत्तावादी शासन के अधीन था। उनके शासन में राष्ट्रमंडल के लोकतंत्र संवर्धन के मूल्यों और राष्ट्र के संस्थानों की अनदेखी की गई और न्यायपालिका, चुनाव आयोग तथा प्रशासनिक इकाइयों जैसे संस्थानों पर राष्ट्रपति का सख्त नियंत्रण था। मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ और शासन के विरूद्ध किसी भी विरोध को क्रूरतापूर्वक कुचला गया। हालांकि, गयूम के शासन में पर्यटन क्षेत्र के विकास के माध्यम से द्वीप का आर्थिक एकीकरण हुआ। 2008 के बाद से, देश में लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार की नीतियों, विकेंद्रीकरण उपायों, भ्रष्टाचार विरोधी उपायों, पुलिस और न्यायिक सुधारों के खिलाफ विपक्षी गोलबंदी के कारण राजनीतिक उथल-पुथल देखी गई। 2013 में चुने गए यामीन के नेतृत्व वाले वर्तमान शासन ने सत्ता को मजबूत करने के लिए आतंकवाद-रोधी कानून और आपराधिक मानहानि जैसे विभिन्न कानूनों की शुरुआत की और इन कानूनों का उपयोग करके सरकार के खिलाफ आवाजों को कुचलना जारी रहा। इसने राजनीतिक अस्थिरता पैदा की जिसके कारण विभिन्न स्तरों पर राष्ट्रमंडल की सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा दिया।
राजनीतिक परिस्थितियों के संबंध में मालदीव में राष्ट्रमंडल द्वारा निभाई गई कुछ महत्वपूर्ण भूमिकाएं और अवलोकन नीचे दिए गए हैं:
राष्ट्रमंडल द्वारा उठाए गए कदमों से संकेत मिलता है कि उसने मालदीव में आंतरिक राजनीतिक मतभेदों को सुलझाने में गहरी दिलचस्पी दिखाई। इस बीच मालदीव की सरकार ने 13 अक्टूबर 2016 को राष्ट्रमंडल की सदस्यता छोड़ने का फैसला किया। मालदीव की सरकार के बयान में कहा गया है कि, "राष्ट्रमंडल ने मालदीव में घरेलू राजनीतिक संवाद में एक सक्रिय भागीदार बनने का प्रयत्न किया है, जो संयुक्त राष्ट्र संघ और राष्ट्रमंडल के सिद्धांतों के विपरीत है। सीएमएजी और राष्ट्रमंडल सचिवालय को लगता है कि मालदीव, उच्च और अनुकूल प्रतिष्ठा के कारण देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा मिलती है, और शायद इसलिए भी क्योंकि यह एक छोटा राज्य है जिसमें भौतिक शक्ति की कमी है, एक आसान वस्तु होगी जिसका उपयोग किया जा सकता है विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में संगठन की अपनी प्रासंगिकता और प्रभाव को बढ़ाने हेतु लोकतंत्र को बढ़ावा देने के नाम पर।‘’
बाहर निकलने के कारण
राष्ट्रमंडल से बाहर निकलने के सरकार के फैसले से यह स्पष्ट होता है कि, राजनीतिक दलों के बीच घरेलू राजनीतिक अशांति और सत्ता पाने की लालसा,राष्ट्रमंडल द्वारा निर्धारित प्राथमिकताओं से अधिक है। राजनीतिक वार्ता में यथास्थिति के लिए दो कारणों से है। एक है पीपीएम के भीतर पार्टी के दो नेताओं गयूम और यामीन के बीच संघर्ष। दूसरा, विपक्षी गठबंधन मालदीव संयुक्त विपक्ष (एमयूओ) वर्तमान शासन को बदलने के अपने प्रयासों के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल करने का प्रयास कर रहा है। मालदीव की सरकार ने ‘मोह. नशीद द्वारा चिकित्सा उपचार के लिए यूके जाने की अनुमति मिलने के बाद ब्रिटेन में शरणार्थी का लाभ लेकर मालदीव की सरकार के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय राय जुटाने तथा मालदीव सरकार की अवहेलना करने के लिए उनकी निंदा की।
सीएमएजी की सिफारिशों को लागू नहीं करने का एक अन्य कारण हो सकता है राष्ट्रमंडल सदस्यता कीमेरिट पर भिन्न दृष्टिकोण। मालदीव का मामला बताता है कि, राष्ट्रमंडल सदस्य देशों में लोकतंत्र के विषयों पर राष्ट्रमंडल की लीवरेज सीमित है और आलोचना के घेरे में है।ऐसा इसलिए है क्योंकि लोकतंत्र का संवर्धन किसी स्वतंत्र राष्ट्र में संप्रभुता और हस्तक्षेप के सवाल से जुड़ा हुआ है। 2016 में इंडिपेंडेंट में इस मामले पर मालदीव के विदेश मंत्री का लेख उपरोक्त बिंदु को दर्शाता है। उनके अनुसार, ‘राष्ट्रमंडल ने अपनी प्रासंगिकता खो दी है और मालदीव जैसे पश्च-औपनिवेशिक देशों के संघर्ष के प्रति बहुत कम सहानुभूति दिखाई है। उन्होंने यह भी कहा कि, सरकार के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने का निर्णय पिछले राष्ट्रपति चुनावों में राष्ट्रमंडल समर्थित सीओएनआई की रिपोर्ट के अनुरूप नहीं था, जिसने चुनावों को स्वतंत्र और निष्पक्ष माना था। जबकि राष्ट्रमंडल महासचिव पेट्रीसिया स्कॉटलैंड ने कहा: "राष्ट्रमंडल परिवार - उसकी सदस्य सरकारें और दुनियाभर के लोग - इस निर्णय पर मेरी उदासी और निराशा को बड़े पैमाने पर साझा करेंगे और हम आशा करते हैं कि यह एक अस्थायी अलगाव होगा और मालदीव राष्ट्रमंडल परिवार में वापसी करने की अनुभूति महसूस करेगा, आज नहीं तो कल‘’। भारत में मालदीव के राजदूत अहमद मोहम्मद ने भी सीएमएजी की भूमिका पर अपनी निराशा व्यक्त की। उन्होंने कहा कि, "सीएमएजी ने राजनीतिक वातावरण में जो सवाल और अनिश्चितताएं पैदा कीं, उससे कई निवेश और परियोजना वित्तपोषण के अवसरों का नुकसान हुआ।" राजदूत ने यह भी बताया कि, "सीएमएजी ने 2011 में पर्थ में उल्लिखित अपने अधिदेश का उल्लंघन किया है। यह अधिदेश स्पष्ट रूप से कहता है कि हस्तक्षेप तभी होना चाहिए जब लोकतंत्र पटरी से उतर जाए या लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकारें असंवैधानिक रूप से उखाड़ फेंक दी जाएं। राष्ट्रमंडल के मालदीव को दंडित करने के निर्णय को अनुचित ठहराया गया था, विशेष रूप से जब राष्ट्रमंडल आयोग द्वारा नियुक्त सदस्यों के साथ राष्ट्रीय जांच आयोग (सीओएनआई) ने पाया कि सत्ता का हस्तांतरण संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप था”।
विपक्षी नेता मोह. नशीद और उनकी पार्टी के सदस्यों ने कई मौकों पर सीएमएजी से उसकी मालदीव सरकार को प्रभावित करने में असमर्थता के कारण अपनी नाराजगी व्यक्त की। मार्च 2016 में राउंड टेबल पर अपने साक्षात्कार के दौरान मोह. नशीद ने विश्वास व्यक्त किया कि, “मालदीव के राष्ट्रमंडल छोड़ने की कोईसंभावना नहीं है। और अगर वह इस पर गलत पाए जाते हैं तो वह किसी भी चुनाव और कार्यालय में कार्यभार ग्रहण नहीं करेंगे।”उनकी राय में यह स्प्ष्ट झलक रहा था कि सीएमएजी की भूमिका पर अपना विरोध जताने के बावजूद, वह मालदीव को राष्ट्रमंडल के सदस्य के रूप में जारी रहना चाहते हैं। विपक्षी एमडीपी ने भी सरकार द्वारा राष्ट्रमंडल छोड़ने के फैसले की निंदा की।
7 दिसंबर 2016 को मालदीव इंडिपेंडेंट के एक लेख में मालदीव के ब्रिटिश राजदूत श्री जेम्स डौरिस ने कहा कि, "सीएमएजी का बयान अच्छे दोस्तों द्वारा पेश की गई सुविचारित सलाह की भावना से देखा जाना चाहिए था। अच्छे दोस्तों से मेरा मतलब उन दोस्तों से है, जो हमारे बारे में सकारात्मक सोच रखते हैं, जब उनकी नजर में हम गतल दिशा में जा रहे हों तब वे हमें सही रास्ता दिखाने के लिए तत्पर रहते हैं तथा हमजब हम सही सही कर रहे होते हैं, तो वे उससे खुश होते हैं।‘’उन्होंने यह भी कहा कि ब्रिटिश सरकार समान हितों, सिद्धांतों और मूल्यों के आधार पर तथा लोकतंत्र और मानव अधिकारों को मजबूत करने में मदद देने के आधार पर, मालदीव और उसके लोगों के साथ निरंतर कार्य करती रहेगी।
आर्थिक प्रभाव
क्या राष्ट्रमंडल छोड़ने का निर्णय मालदीव की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा, यह एक और पहलू है। राष्ट्रमंडल की सदस्यता स्वैच्छिक है और उम्मीद की जाती है कि व्यापार संपर्कों के विकास के माध्यम से सदस्य राष्ट्रों को लाभ होगा। इसके साथ-साथ, लोकतंत्र संवर्धन, मानव अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर राष्ट्रमंडल चार्टर के उद्देश्यों का कार्यान्वयन बाध्यकारी नहीं है। आर्थिक अनुबंधन के संदर्भ में, राष्ट्रमंडल को छोड़ना अन्य देशों के साथ मालदीव के व्यापार संबंधों को प्रभावित कर सकता है या नहीं, इस संबंध में नीचे व्यापार / सहायता / निवेश और पर्यटन के कुछ आंकड़े दिए गए हैं जो मालदीव की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव को समझने में मदद करेंगे।
व्यापार/ सहायता/ निवेश
2009 से 2014 तक मालदीव के निर्यात स्थलों का डब्ल्यूटीओ डेटा बताता है कि एशिया और यूरोपीय क्षेत्र मुख्य निर्यात गंतव्य थे। एशिया के भीतर थाईलैंड मुख्य निर्यात गंतव्य था, जिसके बाद श्रीलंका, जापान और भारत थे। मध्य पूर्व क्षेत्र में, यूएई ने 2009 में अपनी हिस्सेदारी0% से बढ़ाकर 2014 में 0.5% कर दी थी (कुल निर्यात यूएस $ 144.8 मिलियन)। 2009-2014 तक एशियाई क्षेत्र मालदीव का मुख्य आयात गंतव्य था, इसके बाद मध्य पूर्व और यूरोप का स्थान था। डेटा से पता चलता है कि एशिया (मामूली रूप से) और यूरोप से आयात का हिस्सा कम हो गया था, क्योंकि मध्य पूर्व का हिस्सा 2009 के बाद से 2014 के कुल व्यापार के 16.1% से 2014 में 28.5% तक काफी बढ़ गया था। मशीनरी और इलेक्ट्रॉनिक्स आयात का प्रमुख हिस्सा थे, जिनके बाद खाद्य पदार्थों, ईंधन, आधार वस्तुओं, विविध विनिर्मित वस्तुओं, लकड़ी और रसायनों का स्थान था। राष्ट्रमंडल देशों, अर्थात भारत, श्रीलंका, ब्रिटेन और मलेशिया का हिस्सा केवल सिंगापुर को छोड़कर, मालदीव के निर्यात और आयात व्यापार में मध्यम है। क्या ये देश व्यापार समीकरणों में फेरबदल करके मालदीव सरकार को प्रभावित करने वाले हैं, यह एक सवाल है। और वर्तमान परिदृश्य में, ये देश इस विकल्प को नहीं चुन सकते हैं क्योंकि राष्ट्रमंडल देशों से आयात में ज्यादातर मूलभूत चीजें होती हैं जो बड़ी आबादी की पूर्ति करती हैं। उदाहरण के लिए, 'भारत से मालदीव कृषि और मुर्गीपालन उत्पाद, चीनी, फल, सब्जियां, मसाले, चावल, गेहूं का आटा, कपड़ा और दवाइयां जैसे आवश्यक वस्तुओं का आयात करता है।' जबकि ब्रिटेन की सहायता मुख्य रूप से मानव संसाधन विकास पर लक्षित है और मूलभूत वस्तुओं के आयात के लिए श्रीलंका भी एक महत्वपूर्ण भागीदार है।निर्यात में मुख्य रूप से येलोफिन टूना मछली और स्किपजैक टूना का योगदान है।
मालदीव के भारत, चीन, अमेरिका और श्रीलंका जैसे देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार इस प्रकार हैं। भारत और मालदीव द्विपक्षीय व्यापार रु.700 करोड़ (US $ 105.22 मिलियन) है। मालदीव ने 15 सितंबर 2014 को चीन के साथ आर्थिक और व्यापार सहयोग पर एक संयुक्त समिति की स्थापना पर एक समझौता किया और वर्तमान में चीन-मालदीव मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहा है। 2014 की पहली छमाही में, चीन-मालदीव द्विपक्षीय व्यापार की मात्रा US $ 73 मिलियन से अधिक थी। मालदीव का एक अन्य महत्वपूर्ण द्विपक्षीय आर्थिक भागीदार श्रीलंका हैजिनका 2013 में द्विपक्षीय व्यापार $ 71.95 मिलियन था। अमेरिका और मालदीव के बीच द्विपक्षीय आर्थिक संबंध सुधर रहे हैं। उदाहरण के लिए, “मालदीव ने संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ एक व्यापार और निवेश ढांचे के समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं और अक्टूबर 2014 में अपनी पहली बैठक की, जिसमें द्विपक्षीय व्यापार और निवेश को बढ़ाने के उपायों की जांच करने के लिए एक मंच प्रदान किया गया। मालदीव को जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंस (जीएसपी) कार्यक्रम के तहत एक लाभार्थी देश के रूप में नामित किया गया है, जिसके तहत मालदीव जिन उत्पादों का निर्यात कर सकता है, वे संयुक्त राज्य अमेरिका में शुल्क-मुक्त प्रवेश के लिए पात्र होंगे। जीएसपी कार्यक्रम निवेशकों को मालदीव में उत्पादन करने और अमेरिकी बाजार के लिए चयनित उत्पादों को शुल्क-मुक्त निर्यात करने के लिए एक प्रोत्साहन देता है।" 15 अप्रैल 2013 को, कतर राष्ट्र सरकार औरमालदीव की सरकार के बीच आर्थिक, वाणिज्यिक और तकनीकी सहयोग पर एक समझौता पर हस्ताक्षर किए गए थे। जून 2013 में, थाईलैंड की सरकार और मालदीव सरकार के बीच एक व्यापार और आर्थिक सहयोग समझौता किया गया था।
मालदीव द्वारा प्राप्त विकास सहायता और अनुदान सहायता मालदीव के मुख्य दाताओं के बारे में एक अंतर्दृष्टि भी प्रदान करती है। विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, 2008-2014 से मालदीव द्वारा प्राप्त कुलराजकीय विकास सहायता (ओडीए) और राजकीय अनुदान सहायता में कमी आई है। नीचे दी गई तालिका इस संबंध में सूचना प्रदान करती है।
2008 US$ |
2009 US$ |
2010 US$ |
2011 US$ |
2012 US$ |
2013 US$ |
2014 US$ |
54.390.000.0 |
33.200.000.0 |
110.750.000.0 |
53.320.000.0 |
56.530.000.0 |
21`.190.000.0 |
24.780.000.0 |
स्रोत: विश्व बैंक
यदि हम भारत, श्रीलंका, सऊदी अरब, यूरोपीय संघ, चीन और अमेरिका द्वारा मालदीव को दी गई सहायता पर दृष्टिपात करें, तो मालदीव कई क्षेत्रों के लिए सहायता प्राप्त करता है जो सुरक्षा से लेकर, सैन्य, सामाजिक और आर्थिक विकास तक हैं। अमेरिकी विदेश विभाग के अनुसार, मालदीव को अमेरिकी सहायता देने का उद्देश्य, “मालदीव की सेनाओं के साथ समुद्री सुरक्षा, आतंकवाद निरोधक, कानून प्रवर्तन, और काउंटर नारकोटिक्स सहयोग को बढ़ावा देना और वैश्विक जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों से देश की अनुकूलनएवं सहिष्णुता क्षमता को बढ़ाने में मदद करना है। 2016 में, 'इंटरनेशनल एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएस एड) की मालदीव को दी गई सहायता राशि $ 1,197,540 (सभी एजेंसियां $ 1.2 मिलि.) है। एजेंसी द्वारा कार्यान्वित गतिविधियों में मालदीव (मालदीव जीसीसी) में जलवायु अनुकूलनता और जल सुरक्षा को बढ़ाना, विकास सहायता और कार्मिक (क्रॉस-कटिंग) गतिविधियां शामिल हैं।
मालदीव को विकास सहायता प्रदान करने में चीन एक महत्वपूर्ण भागीदार रहा है। उदाहरण के लिए, 2012 में, मालदीव के राष्ट्रपति की चीन यात्रा के दौरानचीन की सरकार ने $ 500 मिलियन की सहायता का वादा किया था। अगस्त 2014 में, चीन ने मालदीव गणराज्य की सरकार और चीन गणतंत्र सरकार के बीच आर्थिक और तकनीकी सहयोग पर एक समझौते के तहत $ 100 मिलियन देने का वादा किया। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सितंबर 2014 में मालदीव की यात्रा के दौरान, पारस्परिक रूप से सहमत बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए अगले 3 साल के लिए मालदीव को अनुदान सहायता के रूप में आरएमबी 600 मिलियन देने का वादा किया गया। श्री शी जिनपिंग ने सैन्य सहयोग के लिए एक और 'आरएमबी 20 मिलियन सहायता, और मालदीव में स्वास्थ्य और चिकित्सा सेवाओं के लिए दक्षिण-दक्षिण सहयोग में एक और आरएमबी 20 मिलियन देने की पेशकश की। चीन मालदीव के इब्राहिम नासिक अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे (आईएनआईए) और माले-हुलहुले पुल के आधुनिकीकरण से भी जुड़ा है। एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट (एक्जिम) बैंक ऑफ चाइना ने दिसंबर 2015 में इब्राहिम नासिर इंटरनेशनल एयरपोर्ट (आईएनआईए) के विकास के लिए मालदीव को 373 मिलियन अमरीकी डालर (एमवीआर 57 बिलियन) का ऋण दिया था। परियोजना की कुल लागत USD 800 मिलियन (एमवीआर 12.3 बिलियन) है। चीन ने मालदीव को नर-हुलहुले पुल के निर्माण के लिए 100 मिलियन डॉलर की सहायता दी। मालदीव ने 2014 में चीन के मैरीटाइम सिल्क रूट प्रोजेक्ट को अपना समर्थन दिया।
सऊदी अरब अर्थव्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य और रक्षा के क्षेत्रों में मालदीव सरकार को सहायता देता आ है। उदाहरण के लिए, 'उसने विभिन्न विकास परियोजनाओं के वित्तपोषण के अलावा,मालदीव के छात्रों की छात्रवृत्ति का आवंटन बढ़ाकर एक सौ पचास कर दिया है, जो मूल रूप से पचास थी।' सितंबर 2016 में मालदीव की सरकार ने इब्राहिम नासिर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के विस्तार के वित्तपोषण के लिए सऊदी फंड फॉर डेवलपमेंट (एसएफडी) के साथ 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर के ऋण समझौते पर हस्ताक्षर किए। एसएफडी ने हुलहुमाले के पुनर्निर्मित कृत्रिम द्वीप में बुनियादी ढांचा विकास परियोजनाओं के लिए 80 मिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण की भी मंजूरी दी । मई 2015 में बजट सहायता के लिए यूएस $ 20 मिलियन अनुदान के अलावा, सऊदी अरब सरकार ने मालदीव के सुदूर उत्तरी प्रवालद्वीप(एटोल) में एक ट्रांसशिपमेंट पोर्ट के लिए व्यवहार्यता अध्ययन हेतु वित्त सहायता के रूप में यूएस $ 1 मिलियन की अनुदान सहायता भी प्रदान की। अक्टूबर 2016 में, सऊदी सरकार ने मालदीव को $ 150 मिलियन के बेलआउट ऋण दिए।
भारत मालदीव का एक प्रमुख विकास भागीदार है और स्वास्थ्य क्षेत्र, क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण (आईसीसीआरके तहत छात्रों के लिए छात्रवृत्ति, सार्क चेयन एवं आईटीईसी) में सुधार लानेमें प्राकृतिक संकट और आपदाओं से उबरने के लिए मालदीव को सहायता देने में भारत की मानवतावादी और विकास सहायता महत्वपूर्ण रही है। उदाहरण के लिए, 'इंदिरा गांधी मेमोरियल हॉस्पिटल (आईजीएमएच), फैकल्टी ऑफ इंजीनियरिंग टेक्नोलॉजी (एफईटी) और फैकल्टी ऑफ हॉस्पीटेलिटी एंड टूरिज्म स्ट्डीज (आईएमएफएफएचटीएस) सहित मालदीव के अग्रणी संस्थानों को भारत की सहायता से बनाया गया था। जब मालदीव में सुनामी का प्रकोप हुआ, तब भारत ने जुलाई 2007 में 10 करोड़ रुपयों की सहायता दी और जब 2007 में देश में ज्वारभाटा प्रकोप आया तब यूएस डॉलर समतुल्य 100 मिलियन रुपये की सहायता प्रदान की। विदेश मामलों की स्थायी समिति (2014-15) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत द्वारा मालदीव को अनुदान सहायता और ऋण के संबंध में दिए गए समग्र आवंटन को नीचे दी गई तालिका में दर्शाया गया है।
अनुदान सहायता (करोड़ में) |
बीई 2014-15 |
आरई 2014-15 |
बीई 2015-16 (प्रस्तावित) |
मालदीव |
183.00 |
25.00 |
183.00 |
अब्दुल्ला यामीन सरकार केमालदीव इकोनॉमिक विज़न 2013-2018 के दस्तावेज़ में उल्लेख किया गया है कि मालदीव निवेश के लिए खुला है। विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए, 2015 में सरकार ने संवैधानिक बदलाव किए और 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक के निवेश के लिए भूमि हेतु विदेशी स्वामित्व की अनुमति दी। इस कानून के अलावा, "घरेलू और विदेशी दोनों निवेशकों के लिए लागू विशेष आर्थिक क्षेत्रों (एसईजेड) में नया निवेश प्रोत्साहन, एक समान व्यापार लाभ कर (बीपीटी) (प्रतिकूल रॉयल्टी शासन की जगह), और विवाद निपटान गारंटी पेश की गई।"
सरकार की कुछ महत्वपूर्ण परियोजनाएँ हैं;
विदेशी निवेश पर प्रतिबंधों को हटा देने के कारण मालदीव को विभिन्न देशों से काफी राशि मिल रही है। उदाहरण के लिए, चीन और सऊदी अरब ने काफी धन देने की घोषणा की है और आईएनआईए एवं माले-हुलेहुले पुल, जैसा कि ऊपर उल्लिखित है, को विकसित करने में गहरी दिलचस्पी दिखाई है। मालदीव सरकार ने iHavan - एकीकृत परियोजना को मालदीव के उत्तरी इहावन्दिहप्पोलु प्रवालद्वीप में कार्यान्वित किया जाना है - के लिए एक मास्टर प्लान सृजन का कार्य नवंबर 2016 में एक प्रमुख सिंगापुर फर्म सुरबाना जुरॉन्ग प्रा. लिमि. को सौंपा। इस बीच, संयुक्त राज्य अमेरिका के बोस्टन कंसल्टेंसी ग्रुप ने iHavan की व्यवहार्यता आयोजना संचालित की, और सरकार को परियोजना के साथ आगे बढ़ने का संकेत दिया।
व्यापार के साथ अतीत में अपने पर्यटन को विकसित करने के मामले में श्रीलंका मालदीव के लिए एक महत्वपूर्ण भागीदार रहा है। जून 2014 में, दोनों देशों ने श्रीलंका के निवेश बोर्ड और मालदीव के आर्थिक विकास मंत्रालय के बीच सहयोग को मजबूत करने पर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। परिणामस्वरूप, श्रीलंका के निवेशकों से मालदीव में निवेश में वृद्धि हुई है। उदाहरण के लिए,यूएनसीटीएडवर्ल्ड इनवेस्टमेंट रिपोर्ट के अनुसार, मालदीव में 2015 में घोषित की गई सबसे बड़ी ग्रीनफील्ड परियोजना उद्योग सेगमेंट (होटल) श्रीलंका की कंपनी हैलीज़ को अनुमानित $ 183 मिलियन के पूंजीगत व्यय के साथ सौंपी गई है।मालदीव में श्रीलंका के अन्य महत्वपूर्ण निवेशक क्षेत्र हैं - पर्यटन क्षेत्र, ऐटकन स्पेंस, जो पहले से ही अपने अदारन ब्रांड के तहत मालदीव में पांच रिसॉर्ट संचालित करता है। मार्च 2016 में उन्होंने मालदीव सरकार के साथ एक अतिरिक्त द्वीप, वर्तमान में एक निर्जन द्वीप जिसे 'आरा' कहा जाता है, को अन्य रिसॉर्ट में विकसित करने के लिए पट्टे पर देने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।‘श्रीलंका के ब्रोब्स होटल्स एंड रिसॉर्ट्स लिमिटेड, जो ब्राउन इनवेस्टमेंट्स पीएलसी की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है,तथाश्रीलंकन पार्टनर्स पाम गार्डन और ईडन होटल के साथ यूएस $ 1.5 मिलियन की संयुक्त राशि के लिए मालदीवियन कंपनी बोडुफारु बीच रिज़ॉर्ट प्राइवेट लिमिटेड को खरीदा है। मालदीव के रा एटोल में बोडुफारुफिनोलु द्वीप के लिए कंपनी के पास 50 साल की लीज है, और नए मालिकों ने एक पर्यटक रिसोर्ट विकसित करने की योजना बनाई है। श्रीलंका के पड़ोसी सीलोन होटल्स कॉर्पोरेशन (सीएचसी) ने 2016 में घोषणा की कि उन्होंने मालदीव में $ 50 बिलियन (एमवीआर 523 मिलियन / यूएसडी 34 मिलियन) रिसॉर्ट का विकास कार्य शुरू कर दिया है।
तथापि, विदेशी निवेश पर कानूनों को आसान बनाने के बावजूद, मालदीव में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) 2014 में यूएस $ 333 मिलियन से घटकर 2015 में324 मिलियन डॉलर हो गया। मालदीव में 2010 से राजनीतिक घटनाक्रम का एफडीआई प्रवाह पर असर पड़ा है।
सकल घरेलू उत्पाद में पर्यटन क्षेत्र का 2015 में योगदान 23.6% है, जो 2014 से 25.3%अधिक है। 2010-2014 के दौरान क्षेत्रों के बीच बाजार हिस्सेदारी के मामले में, यूरोप चार साल यानी2010-2013 और 2014में एशिया में शीर्ष पर रहा है, और उसके बाद प्रशांत सबसे बड़ा बाजार है। तीसरा प्रमुख बाजार 3.4%हिस्सेदारी के साथ अमेरिका था और मध्य पूर्व की बाजार हिस्सेदारी 3.1%है। अफ्रीका केवल 0.7% बाजार हिस्सेदारी के साथ सबसे कम योगदान देने वाला बाजार था। पर्यटकों की जानकारी से पता चलता है कि मालदीव यूरोपीय संघ तथा उसके बाद चीन के पर्यटकों को निरंतर आकर्षित कर रहा है। एक अन्य महत्वपूर्ण उभरता हुआ बाजार मध्य पूर्व है।
कुल मिलाकर, 2016 में व्यापार / सहायता / निवेश और पर्यटन पर उपरोक्त डेटा से पता चलता है कि भारत और श्रीलंका के साथ चीन, यूरोपीय संघ, सऊदी अरब, मालदीव के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भागीदार हैं। विश्व बैंक के अनुसार, मालदीव में घरेलू राजनीतिक स्थिति के फलस्वरूप चीन और यूरोपीय संघ से पर्यटन के कम आगमन के कारण सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि में2015 में गिरावट आई। उदाहरण के लिए, 2013-2014 में, जीडीपी की वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत थी और 2015 में यह गिरकर 1.9 प्रतिशत हो गई। रिपोर्ट में 2016 में जीडीपी की वृद्धि दर 3.5% रहने का अनुमान लगाया गया। द वर्ल्ड बैंक, साउथ एशिया इकोनॉमिक फोकस 2016 की रिपोर्ट में भी उल्लेख किया गया है कि 'निर्माण कार्य 2015 में विकास के सबसे महत्वपूर्ण घटक के रूप में पर्यटन से आगे निकल गया। विदेशियों को भूमि स्वामित्व देने के लिए सरकार द्वारा प्रतिबंधों में छूट देने के चलते विभिन्न परियोजनाओं में निवेश का एक कारण हो सकता है। इसके साथ, डेटा से पता चलता है कि चीन, सऊदी अरब और थाईलैंड जैसे गैर-राष्ट्रमंडल देश भी महत्वपूर्ण विकास भागीदार के रूप में उभर रहे हैं। कुछ रणनीतिक बुनियादी ढांचा विकास परियोजनाओं के लिए चीन और सऊदी अरब जैसे देशों से 2014-2015 में मालदीव द्वारा प्राप्त/के लिए घोषित विदेशी सहायतायह दर्शाती है किमालदीव सरकार महत्वपूर्ण क्षेत्रों में विदेशी निवेश को आकर्षित करने के अपने अभियान "व्यापार के लिए सहायता" में सफल रही है। ।
क्या यह भारत के हित में है?
इस संदर्भ में राष्ट्रमंडल के सदस्य के रूप में और मालदीव के पड़ोसी के रूप में भारत की भूमिका पर ध्यान दिया जाना जरूरी है। 2013 में यामीन सरकार के गठन के बाद, देश में अशांत अराजक आंतरिक राजनीतिक माहौल पर अपनी प्रतिक्रिया देते समय भारत का दृष्टिकोण बहुत सतर्क रहा। मालदीव के विपक्षीनए गठबंधन मालदीव संयुक्त विपक्ष (एमयूओ)को मान्यता देनेके अनुरोध और अब तक शरणार्थी की स्थिति पर भारत चुप रहा। इससे विपक्षी गठबंधन के नेता मोह. हामिद अब्दुल गफूर ने यह कह दिया कि, 'मालदीव के घटनाक्रम पर भारत की चुप्पी परेशान करने वाली है और एक निकटतम लोकतांत्रिक पड़ोसी के रूप में आप उम्मीद करते हैं कि एक मजबूत लोकतंत्र के रूप मेंभारत मालदीव में लोकतंत्र को बहाल करने के लिए अधिक नैतिक समर्थन प्रदान करेगा'।मोह. नशीद ने मार्च 2016 में राउंड टेबल में एक साक्षात्कार में भी ऐसा ही विचार व्यक्त किया था जब उन्होंने कहा था कि, "तानाशाहों के साथ तुष्टिकरण सही परिणाम नहीं दे सकता"। उसी समय, उन्होंने "इंडिया फर्स्ट पॉलिसी" पर जोर दिया। उनका बयान एक संकेत है कि, विपक्षी गठबंधन भारत से वर्तमान शासन के राजनीतिक विपक्ष के प्रति दृष्टिकोण की निंदा करने की अपेक्षा करता है।
पिछले दो वर्षों से भारत का दृष्टिकोण मालदीव को उसके विकास से संबंधित मुद्दों पर द्विपक्षीय और राष्ट्रमंडल ढांचे की दृष्टि से अर्थात दोनों नजरिए से मालदीव का समर्थन करना रहा है और भारत ने मालदीव में राजनीतिक स्थिरता और बहुलवाद का समर्थन किया। इस संदर्भ में, मालदीव का राष्ट्रमंडल से बाहर होने का निर्णय लेने से भारत के पास राष्ट्रमंडल के माध्यम से मालदीव में राजनीतिक घटनाक्रम को प्रभावित करने के आधार पर बहुत कम विकल्प थे। ऐसे परिदृश्य में, जहां राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से गहन राजनीतिक अस्थिरता की ओर बढ़ रहे हैं, भारत द्विपक्षीय तंत्र के माध्यम से किसी को कैसे प्रेरित या प्रभावित कर सकता है? अतीत में भारत और मालदीव के द्विपक्षीय संबंधों को आंतरिक राजनीतिक घटनाक्रम और मालदीव सरकार द्वारा लिए गए राजनीतिक निर्णयों के कारण निश्चितताओं और अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ा। उदाहरण के लिए, अतीत में, 1980 के दशक में, गयूम की सरकार को हटाने के प्रयासों को भारतीय हस्तक्षेप ने विफल कर दिया था और राष्ट्रमंडल ने भारत की कार्रवाई को समर्थन दिया था। 2012 में, भारतीय कंपनी जीएमआर को मोह. वाहिद के राष्ट्रपति काल में मालदीव छोड़ने के लिए कहा गया था, जिसके बाद द्विपक्षीय संबंधों पर असर पड़ा था जिसके कारणभारत ने मालदीव को$ 25 मिलियन की बजट सहायदता देने पर रोक लगा दी। अक्टूबर 2016 में, जीएमआर ने मालदीव सरकार के खिलाफ मध्यस्थ में जीत हासिल की और सरकार ने माले में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे को विकसित करने हेतु कंपनी के साथ अनुबंध को गैरकानूनी तरीके से समाप्त करने के लिए 270 मिलियन डॉलर का भुगतान किया। भारत मालदीव के आंतरिक मामलों में उसे प्रभावित करने के लिए दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) के क्षेत्रीय समूह का इस्तेमाल करने कीइच्छा नहीं रखेगा। इन परिस्थितियों में, सरकार के बदलाव के लिए अगले राष्ट्रपति चुनावों तक इंतजार करना होगा जो राजनीतिक स्थिरता की गारंटी दे सकता है; या, चूंकि विपक्ष कानूनी तरीकों के माध्यम से सरकार को बदलने के लिए दृढ़ है,इसलिए 2018 चुनावों से पहले गयूम को अपनी पार्टी के सांसदों का समर्थन हासिल करने की संभावना है। इस परिदृश्य में, 2018 के चुनावों से पहले सरकार बदल सकती है, जिससे लोगों को अति आवश्यक राजनीतिक स्वतंत्रता, मानवाधिकारों के लिए सम्मान और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देने के आधार पर बहुत ही जरूरी राजनीतिक स्थिरता आ सकती है। तीसरा, देश में बढ़ता चरमपंथ और भारत के लिए इसके सुरक्षा निहितार्थ एक मुद्दा है और यह वर्तमान में द्विपक्षीय आर्थिक और सुरक्षा जुड़ाव के माध्यम से इस मुद्दे से निपट रहा है। और दोनों देशों ने इस मोर्चे पर एक सकारात्मक भूमिका निभाई है। उदाहरण के लिए, भारत और मालदीव ने अप्रैल 2016 में मालदीव के राष्ट्रपति की भारत यात्रा के दौरान रक्षा सहयोग पर एक कार्ययोजना पर हस्ताक्षर किए और मोह. यामीन ने आश्वासन दिया कि उनकी सरकार "इंडिया फर्स्ट पॉलिसी" का पालन करेगी। बंदरगाहों का विकास, निरंतर प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण, उपकरणों की आपूर्ति और समुद्री निगरानी रक्षा सहयोग के मुख्य तत्व हैं। इससे पता चलता है कि हिंद महासागर की सुरक्षा मालदीव के साथ निरंतर द्विपक्षीय बातचीत में एक प्रेरक मुद्दा रहा है और भारत ने भी अतीत में मालदीव पर दंडात्मक कार्रवाई न करने हेतु सीएमएजी को मनाने में अहम भूमिका निभाई। फिर भी, मालदीव सरकार राजनीतिक वार्ता पर कोई प्रगति दिखाने में असफल रही, जिसके कारण सितंबर 2016 में सीएमएजी के औपचारिक एजेंडे में मालदीव को शामिल किया गया।
निष्कर्ष
उपरोक्त घटनाक्रम बताते हैं कि, मालदीव द्वाराराष्ट्रमंडल से बाहर जाने के निर्णय ने मालदीव में राजनीतिक घटनाक्रमों पर भारत की स्थिति को और अधिक पुख्ता करने के लिए बहुपक्षीय मंच छीन लिया है। इसके साथ,मालदीव ने भी राष्ट्रमंडल देशों की मदद से घरेलू मतभेदों को सुलझाने के लिए एक मंच खो दिया है। इस बीच, मालदीव ने गैर-राष्ट्रमंडल देशों के साथ अपने आर्थिक अनुबंधन को बढ़ाया। इस संदर्भ में, दोनों सरकारें मालदीव में आंतरिक राजनीतिक संकट से, जिसके भविष्य में सुरक्षा सहयोग के लिए निहितार्थ हो सकते हैं, कैसे निपटने जा रही हैं, यह भारत-मालदीव संबंधों को निर्धारित करेगा। जहां तक मालदीव के संबंध में राष्ट्रमंडल के दृष्टिकोण का संबंध है, इस पर अटकले हैं। चूंकि, मालदीव लंबे समय तक एक व्यक्ति के शासन के अधीन रहा, इसलिए उसे बहुदलीय भागीदारी के साथ नियमित चुनाव कराने के आधार पर 2008 के बाद से प्राप्त किए गए लाभ नहीं खोने चाहिए थे। लोकतांत्रिक संस्थानों की स्थापना लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करने में एक और कदम है और राष्ट्रमंडल मंच देश के नेतृत्व को वैसा करने की आवश्यकता की याद दिलाने में सहायक था। इसके साथ, राष्ट्रमंडल मंच को नए तरीकों को विकसित करना पड़ सकता है, जैसे कि आर्थिक भागीदारी बढ़ाना, न कि राष्ट्रमंडल देशों द्वारा लंबे समय तक एक व्यक्ति शासन का सामना करने वाले देशों से मात्र राजनीतिक अनुबंधन से निपटना चाहिए, क्योंकि मालदीव के मामले ने प्रदर्शित किया है किराष्ट्रमंडल द्वारा लोकतांत्रिक सुधारों में अपनाई गई कार्यपद्धतियां सफल नहीं हुईं।
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*डॉ. एम. समता, भारतीय विश्व मामले परिषद, नई दिल्ली में अध्येता हैं
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