हिमालयी देश भूटान भारत और चीन के मध्य अवस्थित है। विश्व में बड़े राष्ट्रों के पड़ोस में भूआबद्ध रूप से किसी देश का होना बहुत ही पेचीदगी पूर्ण स्थिति पैदा कर देता है। अपनी क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता को अक्षुण्ण रखते हुए भारत के साथ सम्बन्ध प्रगाढ़ किये और चीन के साथ सम्बंधों को आगे बढ़ाने का मार्ग अपनाया। सीमित आर्थिक और सैन्य क्षमताओं के होते हुए भी भूटान का अनूठा राजनीतिक चरित्र कभी औपनिवेशिक प्रभाव में नहीं आया तथा साथ ही दो विश्व युद्धों और शीत युद्ध के प्रत्यक्ष प्रभाव से भी स्वयं को बचा कर रखा। तिब्बती संस्कृति, भाषा और इतिहास से गहरा संपर्क होने के कारण तथा वहीं चीन एवं तिब्बत के मध्य विवादित सम्बन्ध होने से इस क्षेत्र में भूटान का भू-सामरिक महत्व में उल्लेखनीय रूप से वृद्धि हुई है। वहीँ दूसरी ओर भूटान भारत के सम्बन्ध सौहाद्रता तथा समझ पर विकसित हुए है जिसने भूटान में संसदीय लोकतंत्र को शुरुआत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आर्थिक रूप से अल्प विकसित राष्ट्र होने के बावजूद भूटान भारत के लिए भू सामरिक द्रष्टि से सर्वोपरि है (विशेष रूप से भारत के ‘चिकिन नेक कोरिडोर’ में अवस्थित होने के कारण तथा यहाँ से नेपाल और बांग्लादेश की दूरी भी कम है), इसके अलावा चीन के साथ विवादित सीमा भी भूटान के भू सामरिक महत्व को और भी बढ़ा देती है।
चीन के उद्देश्य भूटान में १९६० तक न केवल सीमित और अल्पकालीन रहे, वरन सीमा विवाद हल न हो पाने के कारण तनाव पूर्ण रहे और ऐसा तब तक रहा जब तक १९८४ में भूटान ने सीमा सम्बन्धी वार्ता की शुरुआत चीन से नहीं की।1
काफी पहले से ही नेपाल और चीन ने भारत को आलम्ब बनाकार अपने अपने हितों को साधा हैं जबकि वहीं भूटान सदैव भारत के समर्थन में खड़ा रहा है। प्रारंभ में भूटान और चीन के सम्बन्ध समस्या ग्रस्त रहे, वर्ष १९५४ में “अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ़ चाइना” में प्रकाशित नक़्शे में भूटान के बहुत से क्षेत्र पर चीन ने अपना दावा प्रदर्शित किया, जिसके कारण काफी लम्बे समय तक चले सीमा विवाद की शुरुआत हुई थी। यह नक्शा प्रदर्शित करता है कि “भूटान का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र चीन का प्राक ऐतिहासिक क्षेत्र है।” इस संदर्भ में भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने भारतीय संसद में कहा था कि “हिमालयी अवरोध में प्रवेश भारत को स्वीकार्य नहीं है और भूटान, नेपाल और सिक्किम की सुरक्षा का दायित्व भारत पर है।”2 वर्ष १९५० में ही चीन ने “भूटान को तिब्बत की हथेली की पांच अंगुलियों में से एक माना था।”3 वर्ष १९५८ में चीन ने अपने एक अन्य नक़्शे में भूटान की बहुत सी भूमि पर दावा जताया और साथ ही भूटान की लगभग ३०० वर्ग किमी भूमि पर कब्ज़ा भी कर लिया। चिंतित भूटान ने इस समय एक दशक पुरानी ब्रिटिश विरासत भारत भूटान संधि १९४९ के अनुच्छेद २ का सहारा लिया जिसमें कहा गया है कि ”इस परिस्थिति में भूटान सरकार ने तय किया कि विदेशी मामलों के संबंध में वह भारत सरकार की सलाह अनुसार निर्देशों का अनुसरण करेगी।”4 वर्ष १९६० में चीन की तरफ से एक और भड़काऊ बयान आया जिसमें चीन के एक नेता ने कहा कि “भूटानी, सिक्किमी और लद्दाखी तिब्बत में एक संयुक्त परिवार का गठन करते हैं। वे हमेशा से तिब्बत और चीन की मात्रभूमि की प्रजा रहे हैं।” उन्हें एक बार फिर संयुक्त होना चाहिए तथा साम्यवाद का पाठ सीखना चाहिए।5
भूटान के लिए तिब्बत पर चीन द्वारा हमला एक पड़ोसी द्वारा दूसरे पड़ोसी के क्षेत्र को विजित करने से अधिक मायने रखता था। गहराई से देखें तो भूटान और तिब्बत की आस्थाओं में अंतर है, लेकिन मोटे तौर पर यह समरूप ही है, दोनों ही बौद्ध संस्कृति के महायान पीठ से सम्बन्ध रखते हैं।6
इसके अलावा भूटान के राजनीतिक सभ्रांत वर्ग का सामाजिक सम्बन्ध और धार्मिक सम्बन्ध तिब्बत से जुड़े रहे थे । इस संदर्भ में, जब तिब्बत विश्व के नक़्शे से अद्रश्य हो गया तो भूटान के लिए यह एक प्रकार से अस्तित्व का संकट बन गया। यह मामला तब और पेचीदगी पूर्ण हो गया जब तिब्बत के लोग और धार्मिक संस्थाओं पर चीन द्वारा अत्याचार की व्यथा की बात आई, जैसा कि भूटान आने वाले तिब्बती शरणार्थियों ने वर्णित किया।7 इस परिस्थिति पर नियंत्रण पाने के लिए भूटान ने तिब्बत से सभी सम्बन्ध तोड़े (स्वतः ही चीन से भी सम्बन्ध टूट गये) और उत्तरी सीमाओं को बंद कर दिया। इस संकट के बाद तिब्बत पर चीन ने वर्ष १९५० में अपना आधिपत्य स्थापित किया और वर्ष १९६२ में चीन भारत युद्ध ने भूटान पर दबाव बनाया कि वह सुरक्षा के बिंदु को ध्यान में रखते हुए अपने उत्तरी पड़ोसी देश के साथ प्राचीन सम्बंधों को रोक दे और अपने व्यापार मार्ग को भारत की ओर अभिमुख करे।8 यह निर्णय लेना भूटान के लिए आसान कार्य नहीं था।9
भूटान के प्रति चीन की पहल और १९६२ के भारत चीन युद्ध समाप्त होने के बाद भूटान में चीन पक्षीय समूह शासक वर्ग में उभरने लगा था।10 यह संदर्भ भारत चीन युद्ध के बाद की परिणिति को परिलक्षित करता है जहाँ भारत भूटान को सुरक्षा के आश्वासन देने में असमर्थ महसूस कर रहा था और भूटान के लिए यह सही था कि वह भारत और चीन के साथ ‘बराबरी की मित्रता’ की नीति का पालन करे।11
१९५० के दशक के अंत में चीन द्वारा भूटान के साथ प्रत्यक्ष सम्बन्ध स्थापित करने के प्रयास असफल रहे। इसका मुख्य कारण था भूटान की आध्यात्मिक जन्म स्थली तिब्बत के प्रति चीन की नीति। भारत और चीन के प्रतिकूल सम्बन्धों ने भूटान और चीन के मध्य दूरी बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। १९७० के दशक के अंत में भारत की जनता सरकार के नेतृत्व में भारत चीन सम्बन्ध सुधरने लगी थी, जिससे भूटान और चीन के सम्बन्धों में भी सकारात्मक परिवर्तन आये। भारत और चीन के मध्य सम्बन्धों के सामान्य होने से भूटान और चीन के मध्य प्रत्यक्ष संपर्क स्थापित होने के लिए माहौल बनने लगा। चीन के लिए भूटान से सम्बन्ध विकसित करना ही मात्र लक्ष्य नहीं है।12 चीन मानता है कि भूटान के साथ इसके सम्बन्ध ‘पश्चिमी विकास रणनीति’ का एक हिस्सा है, जिसके द्वारा हिमालय क्षेत्र में तिब्बत को पुनः अपनी केन्द्रीय स्थिति प्राप्त करने में सहायता मिलेगी।13
एक घटना के रूप में विरोधाभास तरीके से वर्ष १९७९ में चीन ने भूटान की भूमि सीमा द्वारा घुसपैठ कर दी जिसके फलस्वरूप दोनों देश एक दूसरे के आमने सामने आ गये।14 इस समय भूटान ने अपनी आवाज १९४९ की भूटान भारत संधि के आधार पर भारत के माध्यम से उठाई, वहीं चीन ने इस मुद्दे को द्विपक्षीय तरीके से सुलझाने की पेशकश की। शुरूआती दौर में भूटान चीन के मध्य प्रत्यक्ष रूप से संलग्नता के तौर तरीकों पर बातचीत वर्ष १९८१ में शुरू हुई और और प्रत्यक्ष रूप से सीमा विवाद पर बातचीत वर्ष १९८४ में प्रारम्भ हुई।15 भूटान और तिब्बत के मध्य सीमा को सही रूप से चिन्हित नहीं किया गया था। चीन द्वारा तिब्बत पर आक्रमण के बाद ४७० किमी की यह गैर चिन्हित सीमा विवाद का मुद्दा बन गई। सीमा के गैर चिन्हित प्रकृति होने कारण चीन द्वारा काफी बार घुसपैठ की घटना हुई। चीन द्वारा भूटान की भूमि में मुख्य रूप से घुसपैठ वर्ष १९६७, १९७९ और १९८३ में किया गया।16 उल्लेखनीय बात यह है कि दोनों देशों के मध्य प्रत्यक्ष संलग्नता/जुड़ाव के बाद भी भूटान की भूमि पर चीन द्वारा घुसपैठ जारी रहा। चीन ने घुसपैठ द्वारा भूटान पर दबाव बनाकर यह सिद्ध करने की कोशिश की कि भारत इस सीमा विवाद में कोई सहायता नहीं कर सकता।17 आधिकारिक तौर पर वर्ष १९८४ में सीमा विवाद को सुलझाने के लिए भूटान और चीन के मध्य द्विपक्षीय वार्ता शुरू हुई, जो कि अभी तक चल रही है। प्रारंभ में ही सीमा विवाद पर वार्ता करते समय विवादास्पद क्षेत्रों को चिन्हित कर लिया गया था, जिनमें मुख्यतः उत्तर पश्चिमी क्षेत्र में (धोकलाम, सिचुलुंग, द्रमाना, समस्ते, हा और पारो जिले) तथा मध्य क्षेत्र में (वाद्रुंगफोद्रांग जिले में पस्मालुंग और जकार्लुंग घाटी) है।18 विवादास्पद भूमि ७६४ वर्ग किमी है, जिसमें उत्तरी पश्चिमी क्षेत्र २६९ वर्ग किमी है और मध्य क्षेत्र ४९५ वर्ग किमी है।19
इस काल में भूटान के प्राधिकारियों ने चीन द्वारा विवादास्पद भूमि पर सड़क निर्माण और आवाजाही जैसी गतिविधियों पर भी गौर किया।20 ये गतिविधियाँ दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संपर्कों से उत्पन्न हुई सदभावना के बावजूद भी चल रही थी। जब भूटान ने इस मुद्दे पर आवाज उठाई तो चीन ने विवादित सीमा और शांति बनाये रखने हेतु एक अंतरिम समझौते का प्रस्ताव सामने रखा।21 भूटान ने इसे स्वीकार किया और दिसम्बर १९९८ को बीजिंग में सीमा वार्ता के १२वें दौर के समय ही शांति बनाए रखने और सीमा क्षेत्र पर भूटान और चीन के मध्य समझौते पर हस्ताक्षर हुए; यह समझौता एक नहीं बल्कि कई मायनों में महत्वपूर्ण था।22 भूटान और चीन के मध्य यह पहला द्विपक्षीय समझौता और इस मामले पर यह पहला क़ानूनी दस्तावेज था। चीन ने पहली बार इस समझौते पर हस्ताक्षर करके भूटान की संप्रभुता और स्वतंत्रता के दर्जे को स्वीकार किया। समझौते का अनुच्छेद १ स्पष्ट रूप से वर्णित करता है कि दोनों पक्ष इस विचार का अवलम्बन करेंगे कि सभी बड़े और छोटे, कमजोर और ताकतवर राष्ट्रों को सामान मानेंगे तथा एक दूसरे का सम्मान करेंगे। चीन की तरफ से इस बात की पुष्टि की गई कि वह भूटान की क्षेत्रीय अखंडता, संप्रभुता एवं स्वतंत्रता का पूर्ण रूप से सम्मान करेगा। दोनों पक्ष इस बात पर तैयार हुए कि वे शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांतों के आधार पर मित्रता और अच्छे पड़ोसी के रूप में सहयोगात्मक सम्बंधों को विकसित करेंगे।23
समझौते का अनुच्छेद ३ कहता है कि मार्च १९५९ से पूर्व की मौजूदा भूटान चीन सीमा की यथा स्थिति को बरकरार रखा जाये। अनुच्छेद में कहा गया कि दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए हैं कि सीमा के मसले, शांति, आवाजाही के साथ साथ दोनों देशों की सीमाओं से सम्बंधित अंतिम हल निकलने से पहले मार्च १९५९ से पूर्व की सीमाओं की स्थिति को बरकरार रखा जायेगा। तथा सीमा की यथा स्थिति पर एकपक्षीय कार्यवाही नहीं होगी।24
शान्ति बनाये रखने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बावजूद, चीन भूटान की धरती पर लगातार घुसपैठ करता रहा जिससे भय का माहौल व्याप्त हो गया। चीन वर्ष २००४ और २००९ में विवादास्पद क्षेत्र में सड़क निर्माण के कार्य में भी लिप्त रहा है तथा काफी बार भूटान चीन सीमा पर भूटान की शाही सेना की चौकियों पर घुसपैठ की है।25
हाल ही में भूटान और चीन दोनों के नेतृत्व के मध्य हुए वार्तालाप महत्वपूर्ण रूप से सकारात्मक रहे हैं। दोनों देश प्रमुख अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में बैठक कर रहे हैं और सम्बंधों को सुधार रहे हैं। वर्ष २०१२ में रियो दे जेनेरो में सम्पोषित विकास पर संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन के दौरान भूटान और चीन के प्रधानमंत्री मिले और चीन के प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर कहा कि ‘चीन चाहता है कि भूटान के साथ औपचारिक सम्बन्ध स्थापित हों, दोनों देशों के मध्य सीमा सम्बन्धी मसले सुधरे, सभी क्षेत्रों में आदान प्रदान मजबूती से हो जिससे कि चीन भूटान सम्बन्ध नए आयामों तक पहुँचें’।26 २४ अगस्त २०१५ को भूटान और चीन के बीच सीमा पर २३वें दौर की बातचीत में बहुपक्षीय सम्बन्धों के विभिन्न आयामों पर चर्चा हुई। उन्होंने पारस्परिक हित और चिंताओं के अलावा कई क्षेत्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय विचारों का आदान प्रदान किया। उन्होंने चीन में जुलाई २०१४ में हुई २२वें दौर की सीमा वार्ता के परिणामों और निष्कर्षों पर बातचीत की। इसके लिए अक्टूबर २०१४ में थिम्पू में और मार्च २०१५ में बीजिंग में विशेषज्ञ समूह की दो बैठकें भी हुईं और पश्चिमी सेक्टर के संयुक्त तकनीकी फील्ड सर्वे का प्रथम चरण जून २०१५ तक पूरा किया। यह भी निश्चित हुआ कि पश्चिमी सेक्टर के संयुक्त तकनीकी फील्ड सर्वे का अंतिम चरण सितम्बर २०१५ में पूरा हो जायेगा और वर्ष के अंत तक विशेषज्ञ समूह की बैठक द्वारा पश्चिमी सेक्टर के इन दोनों सर्वे को मिलाकर एक संयुक्त रिपोर्ट/प्रतिवेदन तैयार किया जायेगा। उन्होंने विशेषज्ञ समूह के दो नेताओं को निर्देश दिया कि वे अब तक जो प्रगति हुई है उसके आधार पर एक पारस्परिक स्वीकृत प्रस्ताव पर चर्चा करें।27
अभी हाल ही में चीन और नेपाल की नजदीकियाँ सामरिक और व्यापारिक तौर पर बढ़ी हैं तथा चीन अपने पूर्वी तट से भी सामरिक चुनौतियों का सामना कर रहा है। ऐसे में भूटान को अपने आंतरिक घेरे में लेने की अहम कवायद गौर करने लायक है। अब यह पूर्ण रूप से भूटान पर निर्भर करता है कि वह कैसे चीन के इस दबाव का संतुलित विरोध करते हुए अपने बड़े पड़ोसी देशों के साथ सौहाद्रपूर्ण रिश्ते कायम रखता है।
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* लेखक, शोध अध्येता, विश्व मामलों की भारतीय परिषद्, सप्रू हाउस, नई दिल्ली
व्यक्त विचार शोधकर्ता के हैं, परिषद के नहीं.
Endnotes:
1 Tilak Jha, “China and Its Peripheries: Limited Objectives in Bhutan,” Issue Brief 233, August 2013, IPCS, http://www.ipcs.org/pdf_file/issue/IB233-TilakJha-ChinaPeriphery-Bhutan.pdf.
2 Surjit Mansingh, “China-Bhutan Relations,” China Report (New Delhi), vol. 30, no. 2, 1994, p. 177.
3 S. D. Muni, “Bhutan Steps Out,” The World Today (London), vol. 40, no. 12, December 1984, p. 516.
4 Ahsan, Syed Aziz-al and Bhumitra Chakma. “Bhutan's Foreign Policy: Cautious Self Assertion?” Asian Survey. (USA: University of California Press, 1993), pp. 1043-1054.
5 Centre for Bhutan Studies, “Economic and Political Relations between Bhutan and Neighbouring Countries.” Monograph 12 April 2004, http://www.bhutanstudies.org.bt/wp-content/ uploads/monograph/mono-Ecnmc-Pol-Rel-BtNghbrng.pdf.
6 Karma Galay, “International Politics of Bhutan,” Journal of Bhutan Studies (Thimphu), vol. 10, Summer 2004, p. 98, URL: http://www.bhutanstudies.org.bt/pubFiles/v10-8.pdf.
7 Leo E. Rose, “Bhutan’s External Relations,” Pacific Affairs (Vancouver), vol. 47, no. 2, Summer 1974, p. 195.
8 Thierry Mathou, “Tibet and its Neighbors: Moving toward a New Chinese Strategy in the Himalayan Region,” Asian Survey (Berkeley), vol. 45, no. 4, July-August 2005, p. 515.
9 Mathew C Joseph, “China South Asia Strategic Engagements 2 – Bhutan China Relations,” ISAS Working Paper, No. 157, August 23, 2012, Institute of South Asian Studies, National University of Singapore, p. 7, http://www.isas.nus.edu.sg/Attachments/PublisherAttachment/ISAS_Working_Paper_157_-_Bhutan_-_China_23082012174042.pdf.
10 S. D. Muni, “Bhutan Steps Out,” The World Today (London), vol. 40, no. 12, December 1984, p. 515
11 Mathew C Joseph, “China South Asia Strategic Engagements 2 – Bhutan China Relations,” ISAS Working Paper, No. 157, August 23, 2012, Institute of South Asian Studies, National University of Singapore, p. 8, http://www.isas.nus.edu.sg/Attachments/PublisherAttachment/ISAS_Working_Paper_157_-_Bhutan_-_China_23082012174042.pdf.
12 Mathew C Joseph, “China South Asia Strategic Engagements 2 – Bhutan China Relations,” ISAS Working Paper, No. 157, August 23, 2012, Institute of South Asian Studies, National University of Singapore, p. 9, http://www.isas.nus.edu.sg/Attachments/PublisherAttachment/ISAS_Working_Paper_157_-_Bhutan_-_China_23082012174042.pdf.
13 Thierry Mathou, “Tibet and its Neighbors: Moving toward a New Chinese Strategy in the Himalayan Region,” Asian Survey (Berkeley), vol. 45, no. 4, July-August 2005, p. 388.
14 Dorji Penjore, “Security of Bhutan: Walking between the Giants,” Journal of Bhutan Studies (Thimphu), vol. 10, Summer 2004, pp. 116-117.
15 Ibid, p. 117.
16 S. D. Muni, “Bhutan Steps Out,” The World Today (London), vol. 40, no. 12, December 1984, p. 515.
17 Mathew C Joseph, “China South Asia Strategic Engagements 2 – Bhutan China Relations,” ISAS Working Paper, No. 157, August 23, 2012, Institute of South Asian Studies, National University of Singapore, p. 9, http://www.isas.nus.edu.sg/Attachments/PublisherAttachment/ISAS_Working_Paper_157_-_Bhutan_-_China_23082012174042.pdf.
18 Medha Bisht, “Sino- Bhutan Boundary Negotiations: Complexities of the ‘Package Deal’,” IDSA Comment, 19 January 2010, URL: http://www.idsa.in/idsacomments/Sino-BhutanBoundaryNegotiations_mbisht_190110.
19 Ibid.
20 Dorji Penjore, “Security of Bhutan: Walking between the Giants,” Journal of Bhutan Studies (Thimphu), vol. 10, Summer 2004, p. 117.
21 Ibid.
22 Thierry Mathou, “Tibet and its Neighbors: Moving toward a New Chinese Strategy in the Himalayan Region,” Asian Survey (Berkeley), vol. 45, no. 4, July-August 2005, pp. 410-411.
23 Ibid.
24 Ibid.
25 S. Chandrashekharan, “Bhutan’s Northern Border: China’s Bullying and Teasing Tactics,” Update No. 82, Note no. 564, 14 January 2010, South Asia Analysis Group, URL: http://www.southasiaanalysis.org/%5Cnotes6%5Cnote564.html.
26 “China, Bhutan Look to Establish Formal Ties,” Sino Daily, June 22, 2012, http://www.sinodaily.com/reports/China_Bhutan_look_to_establish_formal_ties_999.html.
27 Press Release, MFA/BDA-8/115, August 26, 2015, Ministry of Foreign Affairs, Royal Government of Bhutan, http://www.mfa.gov.bt/wp-content/uploads/2015/08/IMG_0002.pdf.