श्री कुलभूषण जाधव के मामले में भारत द्वारा दायर की गई याचिका के बारे में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) का अंतिम फैसला 17 जुलाई, 2019 को सुनाया गया। इस फैसले में 42 पन्नों का दस्तावेज़ शामिल है। भारतीय और पाकिस्तानी, दोनों मीडिया ने ही इस फैसले को अपने-अपने देश की जीत क़रार दिया। पाकिस्तानी मीडिया का कहना था कि आईसीजे ने जाधव को दोषमुक्त क़रार देने और उनकी रिहाई के भारतीय दावे को खारिज कर दिया है।1 इस लेख में भारत की अपील को स्पष्ट करने और इसका विश्लेषण करने का प्रयास किया गया है।
8 मई, 2017 को भारत ने आईसीजे में याचिका दायर की कि पाकिस्तान ने कुलभूषण जाधव नामक भारतीय नागरिक को गिरफ्तार कर उसे बिना कोई राजनयिक पहुंच उपलब्ध कराये आनन-फानन में उस पर मुक़ददमा चलाकर उसे मौत की सज़ा सुनाई है, जो 1963 में हुई वियना संधि की धारा 36 (1) का उल्लंघन है।2 भारत ने उसे अनुचित रूप से पकड़े जाने पर विचार करने के चलते आईसीजी को उसकी फांसी पर रोक लगाने का अनुरोध किया।3 भारत ने क्रमशः मई और सितंबर 2017 में आईसीजे को अनुरोध और स्मृतिपत्र दिया था।
विश्लेषकों का कहना है कि यह मामला 'सुई जेनेरिस' है।4 यह अपनी तरह का पहला मामला था, जिसमें भारत की ओर से वियना राजनयिक संबंध संधि और साथ ही अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकारों की रक्षा करने से जुड़े कानूनों के खिलाफ अपील की गई थी। आईसीजे ने वियना राजनयिक संबंध संधि के उल्लंघन पर विचार किया, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार के उल्लंघन पर कोई विचार नहीं किया।
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1 “ICJ rejects Indian plea for Jadhav‟s acquittal, release”, Dawn, July 18, 2019, https://www.dawn.com/news/1494738/icj-rejects-indian-plea-for-jadhavs-acquittal-release as accessed o July 23, 2019
2 The Vienna Convention on Consular Relations of 1963 is an international treaty that defines a framework for consular relations between independent states.
3 Application Instituting Proceedings filed in the Registry of the Court on 8 May 2017 Jadhav Case, International Court of Justice, May 8, 2017, https://www.icj-cij.org/files/case-related/168/168-20170508-APP-01-00-EN.pdf as accessed on July 19, 2019
4 „Sui Generis‟ means unique
पाकिस्तान हमेशा भारत द्वारा पाकिस्तान में प्रायोजित आतंकवाद और जासूसी पर चर्चा छेड़ने के लिए किसी तिलस्मी वजह की तलाश में रहा है। यही कारण है कि पाकिस्तान के लिए कुलभूषण जाधव की गिरफ्तारी कर कोई मनघड़ंत मामला बनाना ज़रूरी था।
13 दिसंबर 2017 को पाकिस्तान ने भारतीय आवेदन पर तीन बुनियादी आपत्तियां उठाते हुए भारत के स्मृतिपत्र का विपक्ष प्रस्तुत किया और तर्क दिया कि इसे क्यों खारिज किया जाना चाहिए। पाकिस्तान ने पहली आपत्ति में कहा कि भारत ने जाधव मामले को आईसीजे में लाकर न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग किया है। ऐसा इसलिए था क्योंकि, हालाँकि भारत द्वारा इस न्यायालय से किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए निर्णय या आदेश की मांग की गयी थी, लेकिन वास्तव में, इसका कुछ अलग ही उद्देश्य था, जिसके कारण यह आवेदन उस प्रावधान के दायरे से बाहर हो जाता है, जिस पर यह कथित रूप से आधारित था।.5
दूसरे, पाकिस्तान ने यह तर्क दिया कि आईसीजे को अधिकारों के दुरुपयोग के आधार पर भारत का आवेदन खारिज कर देना चाहिए। इसमें यह कहा गया कि भारत जाधव की भारतीय राष्ट्रीयता साबित करने में नाकाम रहा है और यह आवेदन देने के योग्य नहीं है। पाकिस्तान ने यह दावा भी किया कि भारत ने वर्ष 2001 के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1373 के तहत अपने अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों का उल्लंघन किया है और भारत ने जाधव को जासूसी और आतंकवादी गतिविधियां अंजाम देने के लिए अधिकृत किया है।6
तीसरा, पाकिस्तान ने "स्वच्छ हाथ" और “ex turpicausa non orituractio" और “ex injuria jus non oritur” के सिद्धांतों के आधार पर यह तर्क दिया कि भारत के आवेदन का आधार भारत का कथित गैर-कानूनी आचरण है और इसलिए इस मामले को खारिज कर दिया जाना चाहिए।7
17 जुलाई, 2019 को सुनाये गए अपने अंतिम फैसले में आईसीजे ने कहा कि 'विवादों के अनिवार्य निपटान' से संबंधित वियना राजनयिक संबंध संधि के वैकल्पिक प्रोटोकॉल के अनुच्छेद 1 के तहत आने वाले मामलों में सुनवाई करने का उसे पूरा अधिकार प्राप्त है।
पाकिस्तान द्वारा उठायी गई पहली आपत्ति को खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा कि उसके विचार में भारत ने अपने प्रक्रियात्मक अधिकारों का दुरुपयोग नहीं किया है।
पाकिस्तान द्वारा उठाई गई दूसरी आपत्ति के मामले में न्यायालय का यह निष्कर्ष था कि भारत ने आवेदन करते समय अपने अधिकारों का दुरुपयोग नहीं किया है। न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया कि 'संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है' और जाधव भारतीय नागरिक हैं। न्यायालय ने पाकिस्तान की दूसरी आपत्ति में उठाई गई अन्य आपत्तियों को उनमें कोई "दम" नहीं होने के आधार पर खारिज कर दिया।
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5 Counter Memorial of the Islamic Republic of Pakistan, International Court of Justice, December 13, 2017, https://www.icj-cij.org/files/case-related/168/168-20171213-WRI-01-00-EN.pdf as accessed on July 19, 2019
6 The United Nations Security Council Resolution 1373 of 2001 states that UN member states were encouraged to share their intelligence on terrorist groups in order to assist in combating international terrorism. The resolution also calls on all states to adjust their national laws so that they can ratify all of the existing international conventions on terrorism. States “should also ensure that terrorist acts are established as serious criminal offences in domestic laws and regulations and that the seriousness of such acts is duly reflected in sentences served”, https://www.unodc.org/pdf/crime/terrorism/res_1373_english.pdf as accessed on July 22, 2019
7 “Ex turpi causa non orituractio” means of an illegal cause there can be no lawsuit and “ex injuria jus non oritur” means law (or right) does not arise from injustice
पाकिस्तानी पक्ष की तीसरी आपत्ति पर विचार करते हुए न्यायालय का कहना था कि उसे भारत का कोई भी गैरकानूनी आचरण नहीं लगा और उसने पाकिस्तान का "स्वच्छ हाथ" सिद्धांत खारिज कर दिया। पाकिस्तान इस बात की कोई व्याख्या नहीं कर पाया कि भारत के गैरकानूनी आचरण (कथित जासूसी) के कारण पाकिस्तान जाधव को राजनयिक पहुंच उपलब्ध कराने में कैसे नाकाम रहा। इस तरह से न्यायालय ने “ex turpicausa non orituractio" नामक सिद्धांत के आधार पर पाकिस्तान की आपत्ति को सही नहीं माना। न्यायालय ने आगे कहा कि इसी तरह “ex injuria jus non oritur" का सिद्धांत, जिसमें कहा गया है कि गैर-कानूनी आचरण से पक्षों के बीच संबंधों से जुड़े कानून पर कोई असर नहीं पड़ता है, इस मामले में विद्यमान परिस्थितियों के दृष्टिगत प्रासंगिक नहीं है।
इसका कहना था कि इस मामले के आईसीजे के दायरे में आने के कारण भारत की अपील स्वीकार्य है। न्यायालय ने कहा कि वियना संधि में जासूसी के मामलों में किसी भी कथित अपवाद का कोई ज़िक्र नहीं है, जैसा कि पाकिस्तान ने दावा किया था।8 न्यायालय ने मानवाधिकारों के बारे में पाकिस्तान के दावों को सिरे से खारिज कर दिया। इसने स्पष्ट रूप से कहा है कि पाकिस्तान निम्न आधार पर वियना संधि का पालन करने में विफल रहा है:
जहां तक राहत की बात है, न्यायालय ने फैसला दिया कि पाकिस्तान पर "अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निरंतर चलते गलत कामों को रोकने का" अंतरराष्ट्रीय दायित्व बनता है। जाधव को उनके अधिकारों के बारे में सूचित किया जाना चाहिए और कहा कि भारतीय राजनयिक अधिकारियों को जाधव तक पहुंच दी जानी चाहिए और उन्हें कानूनी मदद लेने का प्रबंध करने की अनुमति देनी चाहिए।
पाकिस्तान जाधव को दोषी क़रार देने और उसकी सज़ा पर पुनर्विचार करेगा और इस तरह की समीक्षा को स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से करने के लिए, यदि आवश्यक हुआ, तो उचित कानून बनाएगा। जब तक पाकिस्तान इस तरह के कदम उठाता है और इस मामले में अनिश्चितता बरक़रार रहती है, उस समय तक आईसीजे ने फांसी पर रोक लगा दी।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने आईसीजे के फैसले को सही माना और इसका स्वागत किया। पाकिस्तान ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि आईसीजे ने जाधव की रिहाई की भारतीय मांग को स्वीकार नहीं किया और इसके बजाय पाकिस्तानी न्यायिक प्रणाली पर अपना भरोसा जताया।
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8 Examples of Avena and Other Mexican Nationals (Mexico v. United States of America), Judgment, I.C.J. Reports 2004 (I), p. 48, para. 83; Certain Questions of Mutual Assistance in Criminal Matters (Djibouti v. France), Judgment, I.C.J. Reports 2008, p. 232, para. 153 were cited in the verdict.
यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि आईसीजे में श्री जाधव पर चल रहा में मामला उन्हें रिहा कराने और भारत को सौंपे जाने से संबंधित नहीं था। भारत ने दावा किया कि पाकिस्तान ने एक भारतीय नागरिक को हिरासत में लेकर वियना संधि का उल्लंघन किया, भारत को समय पर सूचित नहीं किया और बिना किसी कानूनी मदद उपलब्ध कराये जाधव को सज़ा सूना दी, इन बातों से आईसीजे ने सहमति व्यक्त की। न्यायालय ने आगे कहा कि पाकिस्तान को3 जाधव को दोषी क़रार देने और सज़ा देने की समीक्षा करनी चाहिए और इस पर पुनर्विचार करना चाहिए, जिसके दौरान उनकी पसंद का व्यक्ति उनका क़ानूनी प्रतिनिधि होगा।
विदेश मंत्री श्री एस. जयशंकर ने 18 जुलाई, 2019 को संसद को संबोधित करते हुए कहा था कि “कुलभूषण जाधव उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों के मामले में निर्दोष हैं। ज़बरन ली गई कोई स्वीकारोक्ति, और वो भी बिना कानूनी प्रतिनिधित्व और नियत प्रक्रिया के, इस तथ्य को बदल नहीं सकती है। हम एक बार फिर से पाकिस्तान को उन्हें रिहा कर हमारे यहां भेजने का आह्वान करते हैं”9
18 जुलाई 2019 को श्री जाधव को उनके अधिकारों के बारे में जानकारी दी गई। लेकिन पाकिस्तान ने भारतीय दूतावास के प्रतिनिधि के साथ जाधव की बातचीत के दौरान एक पाकिस्तानी अधिकारी की मौजूदगी की मांग की थी, जिस पर भारत सहमत नहीं था। प्रत्युत्तर में भारत ने जाधव को राजनयिक पहुंच की ज़रूरत पड़ने पर उन्हें 'निर्बाध पहुंच' दिए जाने की मांग की है।
इस तरह से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि पाकिस्तानी और भारतीय मीडिया द्वारा आईसीजे के फैसले पर किये गए जीत के दावों के बावजूद जाधव का मुकदद्मा लंबा चलने वाला है। आईसीजे के फैसले से जो राहत की बात उभरी है वो है उनकी फांसी पर लगी रोक, जिससे उन्हें स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी कानूनी कार्यवाही का अवसर मिलने के साथ साथ राजनयिक पहुंच भी प्राप्त हो सकेगी । पाकिस्तान द्वारा पैदा किये गए कूटनीतिक गतिरोध, जिसमें उसने भारतीय उच्चायुक्त श्री अजय बिसारिया को वापस भेजकर भारत के साथ अपने राजनयिक संबंधों का स्तर कम कर दिया है, से स्थिति और जटिल हो गई है। पाकिस्तान के प्रतिशोधी दृष्टिकोण और भारत द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद पाकिस्तान द्वारा छेड़ी गई चर्चा के कारण अत्यधिक संभवाना है कि श्री जाधव की क़ैद अब और लंबी हो जाएगी। इस बात की अत्र्याधिक संभावना है कि जब तक राजनयिक संबंध सामान्य नहीं हो जाते हैं, तब तक श्री जाधव को न तो राजनयिक पहुंच मिलेगी और न ही उनकी सज़ा की समीक्षा की जाएगी।
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* डॉ. ध्रुवज्योति भट्टाचार्जी, शोधार्थी, वैश्विक मालों की भारतीय परिषद।
अस्वीकरण: यहां व्यक्त किए गए विचार शोधकर्ता के हैं, इस परिषद के नहीं हैं।
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9 “External Affairs Minister‟s statement in the Parliament regarding Kulbhushan Jadhav”, Ministry of External Affairs, Government of India, July 18, 2019, https://www.mea.gov.in/Speeches- Statements.htm?dtl/31621/External+Affairs+Ministers+statement+in+the+Parliament+regarding+Kulbhushan+Jadhav as accessed on July 22, 2019