सियोल के सेंट्रल डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने 8 जनवरी, 2021 को, जापानी सरकार को यह आदेश दिया कि वह युद्ध के दौरान यौन गुलाम बनाई गई उन महिलाओं को हर्जाने का भुगतान करे, जिन्हें शिष्ट शब्दों में “कम्फर्ट वीमेन” कहा जाता था। कोर्ट ने सभी 12 वादी महिलाओं में से प्रत्येक को 100 मिलियन दक्षिण कोरियाई वोन (91,072 अमेरिकी डॉलर) का भुगतान करने का आदेश दिया। दक्षिण कोरिया और जापान के बीच “कम्फर्ट वीमेन” का मुद्दा काफी समय से द्विपक्षीय मनमुटाव का कारण बना रहा है; हालाँकि, यह पहली बार है जब कोई दक्षिण कोरियाई अदालत इस मामले पर फैसला सुना रही है। कोर्ट ने एक अनंतिम निष्पादन आदेश भी जारी किया, जिसके तहत पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए दक्षिण कोरियाई अधिकारियों को कोरिया में जापानी संपत्ति को जब्त करने की अनुमति दी गई।1 इसी तरह का एक और मुकदमा दूसरे कोरियाई अदालत में भी लंबित है, और इसका फैसला मार्च में आने की उम्मीद है।
जैसी कि उम्मीद थी, टोक्यो ने तत्काल विरोध दर्ज कराया। जापानी विदेश मंत्री तोशिमित्सुमोटेगी ने एक बयान में कहा कि यह फैसला "बेहद अफसोसजनक और पूरी तरह से अस्वीकार्य है" और उन्होंने सियोल से आग्रह किया कि वो "राज्य के रूप में अपनी जिम्मेदारी के तहत अंतरराष्ट्रीय कानून के उल्लंघन की इस स्थिति को ठीक करने के लिए तुरंत उचित उपाय करे।"2 टोक्यो ने दावा किया कि अदालत का फैसला दोनों पक्षों के बीच हुए 1965 के राजनयिक सामान्यीकरण समझौते का उल्लंघन है जिसके तहत कोरिया में जापानी शासन के दौरान मुआवजे से जुड़े सभी मामलों को सुलझाया जा चुका था, तथा साथ ही यह 2015 के समझौते का भी उल्लंघन करता है जिसके तहत कम्फर्ट वीमेन के मुद्दे को “अंतिम तौर पर और अपरिवर्तनीय" रूप से हल किया जा चुका था।3
टोक्यो ने संप्रभुता प्रतिरक्षा के आधार पर भी अदालत के फैसले को खारिज कर दिया। यह अंतर्राष्ट्रीय कानून से जुड़ा एक सिद्धांत है जो विदेशी अदालतों के अधिकार क्षेत्र से किसी राज्य की रक्षा करता है। हालांकि, अपने फैसले में, कोरियाई अदालत ने संप्रभुता प्रतिरक्षा के सिद्धांत को यह कहते हुए लागू करने से इनकार कर दिया कि जापान ने कोरिया में अपने शासन के दौरान "व्यवस्थित तरीके से और व्यापक तौर पर अमानवीय आपराधिक कृत्यों को अंजाम देकर अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का उल्लंघन जानबूझकर किया।"4 इस दौरान द्विपक्षीय संबंधों के लिए एक सौहार्दपूर्ण समाधान और भविष्योन्मुख दृष्टिकोण का आह्वान करते हुए भी, कोरियाई सरकार अपने इस रुख पर बनी रही कि उसके पास अदालत के फैसलों में हस्तक्षेप करने का न तो अधिकार है और न ही प्राधिकार।5
कोरियाई अदालत द्वारा हर्जाने की वसूली के लिए जापानी संपत्ति को नष्ट करने की दिशा में की जाने वाली कार्रवाई की आशंका के बीच, इस बात की पूरी गुंजाइश है कि इससे दोनों देशों के बीच के द्विपक्षीय संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। दोनों देशों के संबंध दो साल पहले हुए इसी प्रकार के एक अन्य मामले के कारण अब तक के सबसे निम्न स्तर पर हैं। 2018 की शरद ऋतु में एक कोरियाई अदालत ने आदेश जारी किया कि जापानी कंपनियां कोरिया में जापानी औपनिवेशिक शासन के दौरान बंधुआ मजदूर बनाए गए लोगों को क्षतिपूर्ति का भुगतान करें। इस आदेश ने घटनाओं की एक ऐसी श्रृंखला को गति दे दी जिसके कारण द्विपक्षीय संबंधों में अभूतपूर्व गिरावट आ गई।6 2019 में हुई घटनाओं ने आर्थिक और सुरक्षा सहयोग में से राजनीतिक तनाव को अलग करके द्विपक्षीय संबंधों में एक व्यवहार्य दृष्टिकोण बनाए रखने की अब तक की रेखा पार कर जाने का संकेत दे दिया। व्यापार के शस्त्रीकरण और सैन्य खुफिया साझाकरण समझौते पर खतरा, 2018 के बाद के द्विपक्षीय तनावों की खास बातें थीं और इसने जापान-कोरिया संबंधों की संपूर्ण तारतम्यता को प्रभावित करने वाले संकट की गंभीरता और विस्तार को भी सामने ला दिया।
‘हिस्ट्री वार्स’ और जापान-कोरिया संबंध
इतिहास जापान और दक्षिण कोरिया के बीच एक विभाजनकारी विषय रहा है। जापान और कोरिया के बीच का ऐतिहासिक विवाद या जैसा कि इसे कई लोग कहते हैं, 'हिस्ट्री वार', अतीत में कोरियाई प्रायद्वीप में जापान की मौजूदगी से जुड़ा हुआ है। खासकर जापानी औपनिवेशिक शासन के पैंतीस वर्षों के दौरान जो द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक चला था।7 ‘हिस्ट्री वार’ के मूल में वे “आधिकारिक कथाएँ” हैं जिन्हें दोनों देशों के सरकारी नियंत्रण वाले राजनीतिक भाषणों, स्कूल की पाठ्यपुस्तकों, संग्रहालयों और अन्य स्थानों पर बहुत गहराई से गुंथा गया है। ऐसे जैसे, इनका मकसद अतीत के बारे में जानकारी देना कम और ये बताना अधिक हो कि आधिकारिक ऐतिहासिक कथाओं में क्या शामिल किया जाना चाहिए, घटनाओं का चित्रण कैसा हो और उनसे क्या संदेश दिया जाना चाहिए।8 इस प्रकार, यह औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध कोरियाई लोगों के बीच व्याप्त गुस्से और जापान के लिए अपने अतीत की जिम्मेदारी लेने की उनकी मांग को उजागर करता है। यह भावना हरेक ऐतिहासिक मुद्दे के केंद्र में मौजूद है, जिनमें जापान के स्कूल की पाठ्य पुस्तकें, कम्फर्ट वीमेन, बंधुआ मजदूर और जापानी सरकारी अधिकारियों की यासुकुनी तीर्थ यात्रा शामिल हैं। राष्ट्रीय आत्मसम्मान और राष्ट्रीय प्रतिष्ठा के साथ इसके जुड़ाव को देखते हुए, "हिस्ट्री वार" से जुड़ी कड़वाहट का स्तर बहुत अधिक है और कोरिया तथा जापान दोनों ही जगहों पर उच्च स्तर का राजनीतिक जुनून और राजनीतिक गणनाएं चल रही हैं।
जापान और कोरिया के बीच इतिहास की वर्तमान समस्या संरचना में "माफी की राजनीति" भी शामिल है, जो पार्टियों के नैतिक कद से जुड़ी है।9 माफी में दोनों पक्षों के बीच एक समझौता होता है जिसमें यह माना जाता है कि कुछ गलत काम हुए हैं। इसमें एक पक्ष अपराध-बोध का अनुभव करता है और फिर वहां एक ऐसा पदानुक्रम स्थापित होता है जिसमें पीड़ित नैतिक रूप से बेहतर स्थिति ले लेता है जबकि अपराधी नैतिक रूप से हीन हो जाता है। माफी यदि स्वीकार कर ली जाए तो सुलह हो सकती है। हालाँकि, इसके नतीजे स्थिति को और खराब भी कर सकते हैं। यदि माफी का अर्थ विवादित है, तो पीड़ित व्यक्ति सामने वाले के आग्रह को कपटपूर्ण या अपर्याप्त बताते हुए आगे और माफी मांगने को कहता है। ऐसी स्थिति में माफ़ी मांगने वाला भड़क सकता है, क्योंकि उसे बार-बार वही करने को कहा जाता है, जो वो पहले ही कर चुका है। यह दुष्चक्र चलता रहता है, और पुरानी परतों पर नई परतों के चढ़ने से हिस्ट्री वार और भड़क जाता है। ये वो स्थिति है जिसमें जापान और कोरिया पिछले एक दशक या उससे भी अधिक समय से खुद को पाते हैं।
दिलचस्प रूप से दोनों देशों के बीच के इतिहास विवाद का मौजूदा स्वरूप व्यापक तौर पर लोगों का ध्यान आकृष्ट कर रहा है। साथ ही, यह कूटनीतिक टकराव कोरिया में जापानी औपनिवेशिक शासन के अंत के चार दशक बाद 1990 के दशक में उभरकर सामने आया।10 यहाँ यह नहीं कहा जा रहा है कि जापानी औपनिवेशिक शासन अतीत में जापान-कोरिया संबंधों के बीच कोई समस्या नहीं थी। जापान के औपनिवेशिक शासन के अंत के तुरंत बाद समस्या की जो प्रकृति मौजूद थी, और जो 1960 के दशक के मध्य तक राजनयिक सामान्यीकरण में देरी का एक प्रमुख कारक बनी रही थी, वह वर्तमान के ऐतिहासिक विवादों से काफी अलग थी। उस समय मुख्य फ़ोकस क्षतिपूर्ति और कोरिया में जापान समर्थक सहयोगियों की सामाजिक स्थिति पर था। कोरिया में सैन्य तानाशाही की शुरुआत के बाद, सियोल और टोक्यो ने 1965 में अपने संबंधों को सामान्य कर लिया। शीत युद्ध के भू-राजनीतिक संदर्भ तथा सियोल और टोक्यो के बीच वर्चुअल गठबंधन ने संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) के साथ कॉन्सर्ट के ज़रिये मध्यस्थता की जिसने कोरिया-जापान द्विपक्षीय संबंधों में सुधार के लिए एक संरचनात्मक स्थिति प्रदान की।11 बाद के सैन्य शासनों के तहत कोरियाई राज्य ने जापान को अपने आर्थिक आधुनिकीकरण के लिए पूंजी और प्रौद्योगिकी के एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में देखा और लोकप्रिय भावनाओं की अनदेखी करते हुए कई बार टोक्यो के साथ व्यावहारिक संबंध बनाए रखा।
कूटनीतिक सामान्यीकरण संधि के साथ-साथ दोनों देशों ने ‘संपत्ति और दावों तथा आर्थिक सहयोग में समस्याओं के निपटान’ के संबंध में एक समझौते पर भी हस्ताक्षर किए, जो कोरिया में जापानी औपनिवेशिक शासन के दौरान उत्पन्न दावों से संबंधित है। अदायगी समझौते के अनुसार जापानी सरकार ने कोरिया को 800 मिलियन अमेरिकी डॉलर का आर्थिक सहयोग पैकेज दिया। वर्तमान में सियोल और टोक्यो अदायगी समझौते की शर्तों की व्याख्या को लेकर एक अंतरराष्ट्रीय कानूनी विवाद में फंसे हुए हैं।12
1980 के दशक में जापान के इतिहास की पाठ्यपुस्तकों पर उठा विवाद जापान और कोरिया के बीच इस तरह का पहला प्रमुख इतिहास मुद्दा था।13 इतिहास की एकदम भिन्न धारणा अगले तीन दशकों तक विवाद का मुख्य केंद्र बनी रही जबकि इसी दौरान यासुकुनी तीर्थ यात्राओं, कम्फर्ट वीमेन और बंधुआ मजदूर जैसे अन्य मुद्दे भी सतह पर आने लगे, जिन्होंने दोनों देशों में व्यापक रूप से लोगों का ध्यान आकर्षित किया। यद्यपि कि इस बात को लेकर कोई स्पष्ट विवरण नहीं है कि दोनों देशों के बीच के इतिहास विवाद को हवा देने में किन कारकों का हाथ रहा है, फिर भी, कुछ ऐसे घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय बदलाव हुए जो इनके उभरने की परिस्थितियों पर प्रकाश डाल सकते हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सोवियत संघ के पतन और शीत युद्ध की समाप्ति ने अतीत के अधूरे पड़े मुद्दों को समाप्त करने के लिए बाहरी औचित्य को कम कर दिया। 1980 के दशक के उत्तरार्ध से कोरिया का लोकतांत्रिक परिवर्तन एक और महत्वपूर्ण कारक था जिसने ऐसी स्थितियां पैदा कीं, जिसमें नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं को अपने हक़ के लिए आवाज उठाने का मौका मिल गया। इसमें वे महिला अधिकार आंदोलन भी थे जो औपनिवेशिक प्रथाओं की शिकार महिलाओं के लिए न्याय की मांग कर रहे थे और उनमें कम्फर्ट वीमेन तथा बंधुआ मजदूर के मुद्दे भी शामिल थे। 1990 का दशक दोनों देशों में नेताओं की एक नई पीढ़ी के उदय का साक्षी बना, जिन्होंने यथास्थिति को चुनौती दी और इतिहास की आधिकारिक कथाओं पर फिर से गौर करने की बात की। कोरिया में तेजी से हुई आर्थिक वृद्धि ने उसके राष्ट्रीय आत्मविश्वास और गौरव में वृद्धि की, और अब वह एक मुखर राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय आत्म-सम्मान की नींव पर कोरिया की राष्ट्रीय पहचान के पुनर्निर्माण की दृष्टि से प्रभावशाली बन गया था।
अतीत की असंगत व्याख्या के कारण समय-समय पर लगने वाले झटकों के बावजूद, दोनों पक्षों के बीच के द्विपक्षीय संबंध इतिहास के मुद्दों को सुलझाने के प्रयास में भी लगे रहे। सुरक्षा सहयोग में भी महत्वपूर्ण सुधार हुए, खासकर 1994 में पहले उत्तर कोरिया नाभिकीय संकट के बाद, द्विपक्षीय और अमेरिका को शामिल करते हुए त्रिपक्षीय प्रारूप में। बहरहाल, 2012 में कम्फर्ट वीमेन तथा राज्य की सीमा के मुद्दों पर हुई घटनाओं की श्रृंखला ने दोनों पक्षों के बीच संबंधों को तेजी से शांत कर दिया, मगर उनके साथ उच्च स्तर का राजनीतिक तनाव और कूटनीतिक गतिरोध बना रहा।14 2015 में सियोल और टोक्यो ने अमेरिकी मध्यस्थता के ज़रिये, कम्फर्ट वीमेन के मुद्दे पर एक समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसने घोषित तौर पर यह ज़ाहिर कर दिया कि दोनों देशों ने विवाद को ‘अंतिम और अपरिवर्तनीय रूप से' समाप्त कर दिया है।15 2017 में, कोरिया में हुए राजनीतिक बदलावों के बाद, कम्फर्ट वीमेन का मुद्दा एक बार फिर जोर पकड़ा, और इस बार समझौते को व्यापक तौर पर मिली असहमति को इसका आधार बनाया गया।16 एक सर्वेक्षण के अनुसार, लगभग 56 प्रतिशत कोरियाई लोगों ने इस सौदे को अस्वीकार कर दिया, और 75 प्रतिशत ने यह भी माना कि “मुद्दा अब तक हल नहीं हुआ है"।17
2018 में, कोरियाई सरकार ने रिकोन्सिलिएश्न एंड हीलिंग फाउंडेशन को भंग कर दिया, जो 2015 के समझौते को लागू करने के लिए केन्द्रीय भूमिका में था। जापानी परिप्रेक्ष्य में, फाउंडेशन को भंग किये जाने का अर्थ था ‘कम्फर्ट वीमेन’ समझौते को निलंबित करना, और इस प्रकार इसे एक अंतर्राष्ट्रीय समझौते का उल्लंघन माना गया।18 प्रधानमंत्री शिंजो आबे को घरेलू स्तर पर भारी आलोचना का सामना करना पड़ा, जिन्होंने 2015 के सौदे को सफल बनाने के लिए अत्यधिक राजनीतिक पूंजी झोंक दी थी। 2018 के अदालती आदेश, जिसमें बंधुआ मजदूर मामले में जापानी कंपनियों को क्षतिपूर्ति देने का आदेश दिया गया था, के खिलाफ आबे की कड़ी प्रतिक्रिया वास्तव में अपनी खोई हुई राजनीतिक पूँजी को वापस पाने के लिए आवेग में दी गई प्रतिक्रिया थी। टोक्यो की ‘जैसे को तैसा’ वाली प्रतिक्रिया ने द्विपक्षीय संबंधों के बीच राजनीतिक तथा आर्थिक/सैन्य पहलुओं को अलग-अलग रखने की अतीत की रेखा को पार करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया।19
रणनीतिक विचलन तथा बढ़ता अविश्वास
जापान और कोरिया के बीच संबंधों की वर्तमान स्थिति को ‘जटिल मल्टीपल फ्रैक्चर’ के तौर पर बेहतर ढंग से बताया जा सकता है। जहाँ इतिहास से जुड़े मुद्दे दोनों पक्षों के संबंधों में आई गिरावट के लिए सबसे तात्कालिक और सतत कारण हैं, वहीं ये उनके द्विपक्षीय संबंधों की संरचना में बदलाव के संकेत भी हैं। जापान-कोरिया संबंधों का विकास शीत युद्ध के संरचनात्मक ताने-बाने तथा अमेरिका के साथ उनके सम्बद्ध गठजोड़ के कारण हुआ था। यहाँ तक कि शीत युद्ध की समाप्ति के बाद भी, उत्तर कोरिया की नाभिकीय चुनौती उत्तर-पूर्व एशिया में अमेरिका के नेतृत्व वाले सुरक्षा क्रम को प्रोत्साहित करती रही, जहाँ कोरिया और जापान के रणनीतिक एवं सुरक्षा संबंधी हित जुड़े हुए थे। हालाँकि, हाल के वर्षों कुछ क्षेत्रीय मुद्दों को लेकर जापान और कोरिया के रणनीतिक हितों में विचलन देखा गया है, जिसमें चीन, उत्तर कोरिया तथा उभरते हुए क्षेत्रीय सीमा क्रम शामिल हैं।
उत्तर कोरिया को अलग-थलग रखने में दोनों देशों की साझा रुचि पिछले तीन दशकों से सियोल और टोक्यो के बीच सुरक्षा सहयोग का एक महत्वपूर्ण कारक बनी हुई थी। हालाँकि, अब उत्तर कोरिया को लेकर कोरिया और जापान की नीति एक-दूसरे पर अविश्वास जताते हुए दो अलग-अलग दिशाओं में जाती दिख रही है, विशेष कर 2018 में अमेरिका-उत्तर कोरिया वार्ता की शुरुआत के बाद से।20 राष्ट्रपति मून जे-इन के शासनकाल में, कोरिया ने अंतर-कोरिया संबंधों को बेहतर बनाने तथा उत्तर कोरिया के सामान्यीकरण को भी उतनी ही प्राथमिकता दी है, जितना कि परमाणु नि:शस्त्रीकरण को। हालाँकि, पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे के शासनकाल में जापान का पूरा जोर अधिकतम दबाव के द्वारा उत्तर कोरिया के पूर्ण और सत्यापन योग्य परमाणु नि:शस्त्रीकरण को प्राप्त करने पर था। टोक्यो को डर है कि प्योंगयांग के लिए सियोल का आरम्भिक रुझान उसके हितों को कम कर सकता है। सियोल और टोक्यो का विचलन उनकी संबंधित राजनयिक स्थितियों में भी परिलक्षित होता है। 2018 में जापान ने प्योंगयांग के परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम को "अभूतपूर्व रूप से गंभीर और आसन्न खतरे"21 के रूप में घोषित किया, जबकि दक्षिण कोरिया अब उत्तर कोरिया को अपने "दुश्मन" के रूप में नहीं देखता है, वह पदनाम जिसे उसने अपने उत्तरी पड़ोसी को वर्षों से दे रखा है।
भले ही तेजी से बढ़ते चीन के प्रति सियोल और टोक्यो के दृष्टिकोण जटिल और बहुआयामी हैं, रणनीतिक दृष्टिकोण से उनका आपसी अविश्वास उनके बढ़ते हुए नीति विचलन में भी परिलक्षित होता है। इस संबंध में ज्यादातर आकलन 2010 के मध्य में चीनी राष्ट्रपति पार्क गुएन-हाइ के शासनकाल के दौरान चीन के साथ संबंधों को मजबूत करने के सियोल के दृष्टिकोण पर आधारित है, जबकि टोक्यो बीजिंग के साथ क्षेत्रीय और राजनयिक गतिरोध में उलझा हुआ था। भारी आर्थिक व्यस्तता के अलावा, सियोल बीजिंग को उत्तर कोरिया के मुद्दे को सुलझाने में एक महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में देखता है। जापान के खिलाफ इतिहास के मुद्दे पर सियोल और बीजिंग के बीच बढ़ते मेल-मिलाप ने जापान के साथ फाल्ट लाइन को और गहरा कर दिया है। हाल ही में, चीन को लेकर उनकी संबंधित स्थिति में कुछ मिलाप हुआ है, विशेष रूप से टीएचएडीडी ¼THADD½ मिसाइल मुद्दे पर बीजिंग के साथ सियोल के गतिरोध तथा चीन के साथ जापान के पुनर्संबंध के बाद। हालांकि, टोक्यो में कई रणनीतिक टिप्पणीकारों को अभी भी इस बात की चिंता है कि कोरिया चीनी क्षेत्रीय आधिपत्य को स्वीकार कर सकता है।22
एक अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्र जहाँ सियोल और टोक्यो आंख मिलाकर बात नहीं करते हैं, वह है क्षेत्रीय क्रम को लेकर उनका दृष्टिकोण तथा अमेरिका की क्षेत्रीय भूमिका पर उनका भिन्न दृष्टिकोण। जहाँ वाशिंगटन और टोक्यो एक स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक क्षेत्रीय क्रम के दृष्टिकोण का नेतृत्व कर रहे हैं, वहीं सियोल की दृष्टि अस्पष्ट रही है।23 वाशिंगटन के दबाव के बावजूद इंडो-पैसिफिक अवधारणा का समर्थन करना अभी बाकी है। कोरिया अमेरिका के साथ अपने गठबंधन को अपनी सुरक्षा के एक आवश्यक स्तंभ के रूप में देखता है, लेकिन, कोरियाई प्रायद्वीप के लिए इसके दायरे को सीमित रखता है। अमेरिकी नेतृत्व वाली कई क्षेत्रीय पहलों से कोरिया के अनुपस्थित रहने के कारण अमेरिका की क्षेत्रीय भूमिका को लेकर कोरियाई और जापानी विचारों के बीच भिन्नता भी तीखी होती जा रही है।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के शासनकाल में पूर्वोत्तर एशिया में अमेरिकानीत क्रम में आई गिरावट ने भी जापान-कोरिया संबंधों की संरचनात्मक नींव को कमजोर करने में योगदान दिया। जापान और कोरिया के बीच बहस के पहले चरणों में, अमेरिका एक स्थिर कारक था। मिसाल के तौर पर, दोनों देशों के बीच 2015 का कम्फर्ट वीमेन समझौता अमेरिकी हित के कारण संभव हुआ। हालांकि, गठबंधन को लेकर ट्रम्प प्रशासन की सामान्य उपेक्षा तथा जापान और कोरिया से जुड़े त्रिपक्षीय ढांचे की एकजुटता को बनाए रखने में इसकी रुचि की कमी ने भी द्विपक्षीय संबंधों को कमजोर करने में योगदान दिया है।
एक अन्य कारक जो कोरिया-जापान संबंधों को कमजोर कर रहा है, वह है उनके संबंधित आर्थिक विकास को लेकर उनके पारस्परिक महत्व में आई सापेक्ष गिरावट। अतीत में, शीत युद्ध के दौरान जापान के साथ अपने संबंधों को सामान्य बनाने के लिए जिस एक महत्वपूर्ण कारक ने कोरिया को उकसाया था, वह था उसके अपने आर्थिक आधुनिकीकरण के लिए जापानी तकनीक और पूंजी की मांग। अब अपने तेज आर्थिक विकास और अंतर्राष्ट्रीयकरण के साथ, कोरिया जापान पर निर्भर नहीं रह गया है; बल्कि वे कई क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धी बन गए हैं। अतीत की तुलना में, एक-दूसरे के साथ उनके आर्थिक विनिमय का हिस्सा प्रतिशत के रूप में काफी कम हो गया है। उदाहरण के लिए, 1993 और 2018 के बीच कोरिया के व्यापार का हिस्सा 18 से 8 प्रतिशत तक गिर गया, जबकि दूसरी ओर, चीन के साथ सियोल के व्यापार का हिस्सा जापान और अमेरिका दोनों के व्यापार को एक साथ मिला देने से भी ज्यादा है।24
निष्कर्ष
जहाँ तक जापान-कोरिया संबंधों का सवाल है, 2020 दोनों देशों के लिए काफी हद तक शांत रहा, क्योंकि दोनों देश अपने-अपने यहाँ कोविड-19 महामारी से मुकाबला करने पर ध्यान केंद्रित किये हुए थे। इस बात की उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री शिंजो आबे के इस्तीफे के बाद जापान में आया राजनीतिक बदलाव द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने में कुछ नई गति प्रदान कर सकता है। राष्ट्रपति मून जे-इन के साथ अपनी बातचीत के दौरान नए प्रधानमंत्री योशीहितो सुगा ने सियोल के साथ संबंधों को बेहतर बनाने के लिए काम करने की अपनी इच्छा जताते हुए कहा, "हम अपने वर्तमान के बहुत कठिन संबंधों को ऐसे ही नहीं छोड़ सकते हैं।"25 हालाँकि उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पहला कदम कोरिया उठाएगा। कम्फर्ट वीमेन तथा बंधुआ मजदूर के मुद्दों पर प्रधानमंत्री सुगा का कड़ा रुख इस बात को दर्शाता है कि कोरिया को लेकर वे अपने पूर्ववर्ती शासकों की भांति ही सख्त हैं। यह पहले ही स्पष्ट हो गया था जब जापान ने एक बयान जारी कर सियोल में चीन, जापान और दक्षिण कोरिया के बीच होने वाले त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री सुगा के भाग लेने से इनकार कर दिया था। उसका कहना था कि जब तक कोरिया इस बात की गारंटी नहीं देता है कि बंधुआ मजदूर मामलों में कोरियाई अदालत के 2018 के आदेश के मुताबिक क्षतिपूर्ति की वसूली के लिए कोरिया में जापानी संपत्तियों पर कब्ज़ा नहीं किया जाएगा, तब तक सुगा इसमें शामिल नहीं होंगे।26 जो बिडेन प्रशासन के आगमन से जापान और कोरिया के बीच संबंधों में सुधार की संभावनाएं बनती हैं क्योंकि उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ संबंधों को दुरुस्त करने तथा जापान और कोरिया के साथ त्रिपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने का वादा किया है। हालांकि, यह संभावना इस बात पर निर्भर करेगी कि अमेरिका में कोविड-19 महामारी की गंभीर स्थिति को देखते हुए नया प्रशासन विदेश नीति पर कितना ध्यान केंद्रित कर पाता है। "इतिहास" के मुद्दों से जुड़ी राष्ट्रवाद की चरम भावनाओं को देखते हुए, दोनों नेतृत्व किसी भी तरह की रियायतें नहीं दे सकते हैं और न ही खुद को कमजोर दिखा सकते हैं। इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, कम्फर्ट वीमेन के मुद्दे पर हुए नए विकास के संदर्भ में जापान-कोरिया संबंधों की संभावना विकट लग रही है क्योंकि इसमें रिश्ते को और पटरी से उतारने की क्षमता है।
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* डॉ. जोजिन वी. जॉन , शोध अध्येता, विश्व मामलों की भारतीय परिषद, नई दिल्ली।
अस्वीकरण: व्यक्त किए गए विचार शोधकर्ता के हैं न कि परिषद के।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
पाद टिप्पणियां
[1] "South Korea ‘comfort women’ ruling risks deepening Japan dispute", Financial Times, January 8, 2021, https://www.ft.com/content/3e05a6a7-e56e-4fe7-9e89-0fea6ebbe6aaAccessed on January 29, 2021
2 "Japan urges South Korea to "immediately" act over comfort women ruling", Kyodo News, January 23, 2021, https://english.kyodonews.net/news/2021/01/78f5c234c406-japan-urges-s-korea-to-immediately-act-over-comfort-women-ruling.html?phrase=Abe%20ulcerative%20colitis&words=Accessed on January 29, 2021
3 "South Korea seeks 'amicable solution' with Japan over 'comfort women' issue", Japan Times, January 24, 2021, https://www.japantimes.co.jp/news/2021/01/24/national/south-korea-japan-comfort-women/ Accessed on January 29, 2021
4 "In a first, South Korean court orders Japan to compensate former 'comfort women'", Japan Times, January 8, 20211, https://www.japantimes.co.jp/news/2021/01/08/national/first-south-korean-court-comfort-women/ Accessed on January 28, 2021
5 "South Korea seeks 'amicable solution' with Japan over 'comfort women' issue", Japan Times, January 24, 2021, https://www.japantimes.co.jp/news/2021/01/24/national/south-korea-japan-comfort-women/ Accessed on January 29, 2021
6 Alexandra Sakaki (2019), Japan-South Korea Relations – A Downward Spiral, https://www.swp-berlin.org/fileadmin/contents/products/comments/2019C35_skk.pdf Accessed on January 29, 2021
7 Michael Lewis (2017), 'History Wars' and Reconciliation in Japan and Korea: The Roles of Historians, Artists and Activists, New York: Palgrave Macmillan
8Peter Duus (2017), “Introduction: History Wars in Postwar East Asia,
1945–2014”, in Michael Lewis (ed), 'History Wars' and Reconciliation in Japan and Korea: The Roles of Historians, Artists and Activists, New York: Palgrave Macmillan.
9For more discussion on “politics of apology” see; Peter Hays Gries, China’s NewNationalism: Pride, Politics and Diplomacy, Berkeley: University of California Press, 2004.
10Kan Kimura (2019), The Burden of the Past: Problems of Historical Perception in Japan-Korea Relations, University of Michigan Press.
11 Victor D. Cha (1996), “Bridging the Gap: The Strategic Context of the 1965 Korea—Japan Normalization Treaty”, Korean Studies , 1996, Vol. 20, pp. 123-160
12 Jinyul Ju, "The Japan-Korea Dispute Over the 1965 Agreement", The Diplomat, October 23, 2020 https://thediplomat.com/2020/10/the-japan-korea-dispute-over-the-1965-agreement Accessed on February 268, 2021
13 Op.cit Kan Kimura (2019),
14Alexandra Sakaki and Junya Nishino, Japan's South Korea predicament, International Affairs, Volume 94, Issue 4, July 2018, Pages 735–754, https://doi.org/10.1093/ia/iiy029 p.739 Accessed on January 28, 2021
15Ankit Panda, "The ‘Final and Irreversible’ 2015 Japan-South Korea Comfort Women Deal Unravels", The Diplomat, January 9, 2017, https://thediplomat.com/2017/01/the-final-and-irreversible-2015-japan-south-korea-comfort-women-deal-unravels/ Accessed on January 30, 2021
16 Alexandra Sakaki, Japan-South Korea Relations – A Downward Spiral More than “Just” Historical Issues SWP Comment 2019/C 35, August 2019, https://www.swp-berlin.org/10.18449/2019C35/ Accessed on January 29, 2021
17 The 5th Japan-South Korea Joint Public Opinion Poll (2017), https://www.genron-npo.net/en/archives/170721_en.pdf Accessed on January 29, 2021
18 Ibid
19 In the early months of 2019, the dispute between Japan and Korea over Korean Supreme Court’s order to pay compensation to the victims of forced labour during Japanese colonial period remained largely a war of words in public and in diplomatic channels. In July 2019, the Japanese government imposed export restrictions on three chemicals critical to South Korean high-tech manufacturing. Tokyo referred to national security considerations instead of the forced labor dispute as the reason for its move. However, the move was largely seen as retaliation against Seoul’s failure to handle recent rulings by South Korean courts ordering Japanese firms to pay compensation to Korean forced labour victims. Furthermore, in August, Japanese government removed Korea from the "white-list"- list of countries that have the most-favoured status as trade partners. In response Korea also announced its move to drop Japan from its “white list” of countries. Korea later announced the termination of the General Security of Military Information Agreement (GSOMIA). The General Security of Military Information Agreement (GSOMIA) is an agreement signed in November 2016 between the two countries to share sensitive information about threats from North Korea. The decision to terminate GSOMIA was reversed later through the intervention of the US.
20 Op. cit Alexandra Sakaki and Junya Nishino.
21"North Korea still ‘serious and imminent threat’: Japan", The Hindu, August 28, 2018, https://www.thehindu.com/news/international/north-korea-still-serious-and-imminent-threat-japan/article24799036.eceAccessed on January 29, 2021
22Op.cit Alexandra Sakaki, p.6
23Jojin John "South Korean Approach to Indo-Pacific: Engaging without Endorsing", 20 June 2020, /show_content.php?lang=1&level=3&ls_id=5023&lid=3656 Accessed on January 29, 2021
24Op.cit Alexandra Sakaki, p.6
25 "PM Suga talks with Moon for first time but signals no fresh start", Japan Times, September 24, 2020, https://www.japantimes.co.jp/news/2020/09/24/national/politics-diplomacy/japan-suga-south-korea-moon-first-call Accessed on January 29, 2021
26 "Japan, China and South Korea to delay trilateral summit to 2021", Nikkeei Asia, December 3, 2020, https://asia.nikkei.com/Politics/International-relations/Japan-China-and-South-Korea-to-delay-trilateral-summit-to-2021 Accessed on January 29, 2021