अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे से कई अफ्रीकी देश अफ्रीका में आतंकवाद पर इसके प्रभाव की संभावना को लेकर चिंतित हैं। अल-कायदा, इस्लामिक स्टेट और कई अन्य आतंकी समूह अफ्रीका के विभिन्न हिस्सों में काफी सक्रिय हैं और विगत दशक में उनकी पहुंच और प्रभाव बढ़ा है। सोमालिया, माली और नाइजीरिया जैसे अफ्रीकी देश कई सालों से इस्लामी आतंकवादियों से जूझ रहे हैं।[1] इन राष्ट्रों का समर्थन करने हेतु फ्रांस और संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) जैसी प्रमुख शक्तियां भी अफ्रीका में आतंकवाद विरोधी प्रयासों में जुटी हुई हैं।[2] हालांकि, इस तरह के सामूहिक कोशिश के बावजूद, कई अफ्रीकी देशों में आतंक का खतरा अभी तक कम नहीं हुआ है। इस संदर्भ में, अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे से अफ्रीका में इस्लामी आतंकवादी संगठनों के फिर से सक्रिय होने की संभावना बनने लगी है।
अफगानिस्तान में मौजूदा हालात को देखते हुए, नीति निर्माताओं के साथ-साथ अफ्रीका के विशेषज्ञ भी वहाँ हो रही घटनाओं पर नज़र रखे हुए थे। यहां तककि आतंकवादी समूह भी अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे पर बहुत बेसब्री से नज़र बनाए हुए थे। इसलिए, जब तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया, तो अफगानिस्तान में उनकी इस जीत का जश्न अफ्रीका के कई आतंकी समूहों ने भी मनाया। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, सोमालिया के अल-शबाब आतंकवादी समूह से जुड़े एक मीडिया आउटलेट ने लिखा है कि "ईश्वर महान है।"[3] इसके अलावा, पश्चिम अफ्रीका में अल-कायदा के सहयोगी समूह, जमात नुसरत अल-इस्लाम वाल-मुस्लिमिन (जेएनआईएम), इयाद अग घली ने तालिबान को बधाई देते हुए 2019 के बाद से अपना पहला सार्वजनिक संदेश भेजा है। पश्चिम अफ्रीका से फ्रांस के सैनिकों की नियोजित वापसी के संदर्भ में उसने कहा कि "हम जीत रहे हैं"।[4] इस बीच, फ्रांस, जो आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अफ्रीकी सरकारों का एक प्रमुख भागीदार है, अगले साल की शुरुआत तक इस क्षेत्र में अपनी सेना की उपस्थिति को लगभग 5000 से घटाकर 2500 करने की योजना बना रहा है।[5]
यहां तक कि इस क्षेत्र में किए गए आतंकवाद-रोधी अभियानों का एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय भागीदार चाड भी जी-5 साहेल बलों से अपनी सैन्य उपस्थिति को आधी करने की योजना बना रहा है। (जी-5 अंतर सरकारी सहयोग ढांचे की स्थापना पांच साहेल राज्यों, बुर्किना फासो, चाड, माली, मॉरिटानिया और नाइजर ने क्षेत्रीय संदर्भ में आतंकवाद जैसे सुरक्षा खतरों सहित साझा चुनौतियों का जवाब देने हेतु की है।) चाड के सैन्य प्रवक्ता ने कहा है कि, "यह आतंकी संगठन से बेहतर ढंग से निपटने हेतु एक रणनीतिक पुनर्नियोजन है।"[6] चूंकि, चाड अभी अपने देश में विद्रोहियों से लड़ रहा है और इसके लिए जी-5 साहेल बलों से सेना की वापसी आवश्यक है। चाड की सेना को साहेल क्षेत्र में सबसे सक्षम बल माना जाता है और इसलिए, फ्रांसीसी सैनिकों के साथ चाडियन बलों को वहां से हटाए जाने से आतंकवाद विरोधी अभियानों पर बुरा असर पड़ने की संभावना है। साहेल से फ्रांसीसी सैनिकों की उपस्थिति में कमी और अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बीच काफी समानताएं देखी जा सकती हैं।
फ्रांस के सैनिकों के हटने से माली पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा। चिंता की एक बात यह भी है कि माली के सैनिक इस्लामी आतंकवादियों को रोकने में अभी सक्षम नहीं हैं। माली की सेना 2012-13 में उत्तर की ओर से आगे बढ़ने वाली इस्लामी ताकतों को रोकने में विफल रही थी, जिसकी वजह से फ्रांस को हस्तक्षेप करना पड़ा था।[7] बहुत से लोग मानते हैं कि माली और अफगानिस्तान की स्थिति बिल्कुल एक जैसी है, जिसमें अफगानिस्तान की तरह ही माली की राज्य संरचना कमजोर है, जो काफी हद तक दूसरे देशों के समर्थन पर निर्भर है। यह सर्वविदित है कि साहेल क्षेत्र में इस्लामी आतंकवादियों के खिलाफ लड़ाई में विदेशी समर्थन और फ्रांसीसी सैनिक काफी अहम हैं।
(छवि स्रोत: https://nationalinterest.org/blog/buzz/why-terrorism-rising-west-africa-132612)
पश्चिम अफ्रीका में, बोको हराम और इसके पश्चात्, इस्लामिक स्टेट ऑफ वेस्ट अफ्रीका प्रोविन्स (आईएसडब्ल्यूएपी) चाड झील क्षेत्र के आसपास अपनी उपस्थिति को मजबूत करने में कामयाब रहा है। बोको हराम और आईएसडब्ल्यूएपी की वजह से नाइजीरिया सबसे अधिक प्रभावित हुआ है, यहां सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों लोग विस्थापित हुए हैं। इसी तरह, पूर्वी अफ्रीका में, अस्थिर सोमालिया में सक्रिय अल-शबाब एक बड़ा खतरा बना हुआ है।[8]1990 के दशक के अंत में, पूर्वी अफ्रीका में अल-कायदा के आतंकवादियों ने केन्या और तंजानिया में स्थित अमेरिकी दूतावासों पर हमला किया था, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए थे।[9] अब भी, सोमालिया में स्थिति नाजुक और आंतरिक सुरक्षा के कमजोर होने की वजह से अल-शबाब द्वारा इसका शोषण किए जाने की संभावना है। सोमालिया से उभर रहे आतंकी खतरे को रोकने हेतु सैन्य सहायता, प्रशिक्षण एवं लक्षित हवाई हमलों सहित विदेशी समर्थन बहुत जरुरी है। इस्लामवादियों ने उत्तरी मोज़ाम्बिक में भी अपनी जड़ें जमा ली हैं और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (डीआरसी) में काफी सक्रिय हैं।[10]मोज़ाम्बिक में इस्लामवादियों ने काबो डेलगाडो प्रांत पर कब्जा कर लिया था जो मोज़ाम्बिक गैस उद्योग के लिए बेहद महत्वपूर्ण है और मोज़ाम्बिक सरकार को इस क्षेत्र पर फिर से नियंत्रण करने हेतु बाहरी समर्थन लेना पड़ा था।
(छवि स्रोत: https://www.weforum.org/agenda/2018/10/how-to-tackle-the-terrorist-threat-in-east-africa/ )
अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे से, पूर्वी अफ्रीकी राज्य भी नशीले पदार्थों के अवैध व्यापार के बढ़ने को लेकर चिंतित हैं, क्योंकि अफगानिस्तान हेरोइन के सबसे बड़े उत्पादक देशों में से एक है।[11] विगत कुछ वर्षों में, पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका का समुद्र तट ड्रग तस्करी के मार्ग के रूप में उभरा है जिसे 'दक्षिणी मार्ग' के नाम से जाना जाता है। इस रास्ते से अफगानिस्तान से हेरोइन पश्चिमी बाजारों में भेजी जाती है।[12] इसके अलावा, हेरोइन का उपभोक्ता बाजार पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीकी क्षेत्र में तेजी से बढ़ रहा है।[13] तस्करी नेटवर्क का पूर्वी अफ्रीका की आपराधिक गतिविधियों से गहरा संबंध हैं। पहले भी, अमेरिका समर्थित अफगान सरकार ने अफीम की खेती को रोकने के उपाय किया था, लेकिन असफल रही। पूर्वी अफ्रीकी राज्य इस बात को लेकर चिंतित हैं कि अफगानिस्तान पर तालिबान कब्जे से; हेरोइन की तस्करी बढ़ जाएगी। तालिबान से जुड़े के कुछ संगठन, विशेष रूप से जो दक्षिणी अफगानिस्तान में हैं, उनका नशीली दवाओं की तस्करी से गहरा संबंध है और कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, वे नशीली दवाओं के व्यापार से पैसा कमाते हैं।[14] यह देखना दिलचस्प होगा कि तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार अफीम की खेती की समस्या से कैसे निपटती है।
अफगानिस्तान में हाल के घटनाक्रमों से काफी कुछ सीखा जा सकता है। सुरक्षा विशेषज्ञ सलाह दे रहे हैं आतंकवादी अपनी जड़े न जमा सके इसके लिए अफ्रीकी सरकारों को सुधारात्मक कदम उठाना चाहिए। एक राय यह भी है कि साहेल से फ्रांसीसी सेना की कमी करना आतंकवाद विरोधी प्रयासों के लिए अच्छा संकेत नहीं है और फ्रांस अपनी सेना की उपस्थिति को कम करने के निर्णय पर फिर से सोचना चाहिए।[15]
15 अगस्त को, जब तालिबान काबुल पर अधिकार कर रहा था, नाइजीरिया के राष्ट्रपति मुहम्मदु बुहारी ने लंदन स्थित फाइनेंशियल टाइम्स में एक ऑप-एड (संपादकीय) लिखा। नाइजीरिया बोको हराम की वजह से आतंकवाद का शिकार है और नाइजीरियाई राष्ट्रपति द्वारा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, विशेषकर अमेरिका से अपील करना एक उचित कदम है। लेख में, उन्होंने अफ्रीका में आतंकवाद से लड़ने हेतु अमेरिकी सहायता को बढ़ाने पर बल दिया। राष्ट्रपति बुहारी ने तर्क दिया कि, हालांकि अफ्रीका के अपने सैनिक भी आतंकवादियों से लड़ रहे हैं, लेकिन उनकी "तकनीकी सहायता, अच्छे हथियार, खुफिया और व्यवस्था के ज़रिए और मदद की जा सकती है।"[16] उन्होंने कहा कि अफ्रीका में आतंकवाद को रोकने हेतु सैन्य सहायता आवश्यक है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है।[17] नाइजीरिया को "अपने आर्थिक और जनसांख्यिकीय विकास के बीच असमानता" को दूर करने हेतु अमेरिका की मदद की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि 2001 के बाद से, जब अमेरिका का आतंकवाद पर वैश्विक युद्ध (जीडब्ल्यूओटी) शुरू हुआ है, अफ्रीका की आबादी अब लगभग दोगुनी हो चुकी है। हालांकि, इसी दौरान, दुनिया की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने के बावजूद, अफ्रीका में रोजगार के अवसर पर्याप्त रूप से नहीं बढ़े हैं। इस संदर्भ में, अपने बेहतर भविष्य की उम्मीद छोड़ चुके बेरोजगार, गरीब युवाओं को आतंकवादी समूह अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहे हैं। इसलिए, बुहारी ने लिखा है कि, "हां, हमें तकनीकी और खुफिया सहायता की आवश्यकता है जो हमारी सेनाओं के पास नहीं है। लेकिन, हमें अपनी जमीन पर ऐसे लोगों की जरूरत है, जो निर्माणकर्ता हों, सेना के नहीं। अफ्रीका की आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई दुनिया की लड़ाई है।"[18] बुहारी का यह लेख इन आतंकी समूहों की विचारधारा के सवाल पर नहीं है। बल्कि, यह लेख विकास और सुरक्षा के बीच संबंधों पर आधारित है। वास्तव में, लेख आतंकवाद को खत्म करने में आर्थिक विकास की भूमिका को रेखांकित करता है। बुहारी लिखते हैं कि "हम उन्हें राजमार्ग, रेल लिंक - और नौकरी - से हरा देंगे।"[19]ऐसा प्रतीत होता है कि बुहारी आतंकवाद विरोधी अभियानों में तकनीकी और विकासात्मक समर्थन तो चाहते हैं, लेकिन अपनी जमीन पर विदेशी सैनिकों की उपस्थिति से सावधान भी नज़र आते हैं। यह देखना बाकी है कि क्या वह अपनी इस सोच पर आगे बढ़ पाएंगे। इस बीच, उम्मीद है कि अफ्रीका की मौजूदा स्थिति से सामने आती चेतावनियों पर दुनिया ध्यान देगी।
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* डॉ. संकल्प गुरज़र , अध्येता, भारतीय वैश्विक परिषद, नई दिल्ली।
अस्वीकरण: व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
संदर्भ:
[1] Giovanni Faleg and KatariinaMustasilta, “Salafi-Jihadism in Africa: A winning strategy”, EU Institute for Security Studies, June, 2021. Available at: https://www.iss.europa.eu/sites/default/files/EUISSFiles/Brief_12_2021.pdf (Accessed on August 25, 2021)
[2] Giovanni Faleg and KatariinaMustasilta, “Salafi-Jihadism in Africa: A winning strategy”, EU Institute for Security Studies, June, 2021. Available at: https://www.iss.europa.eu/sites/default/files/EUISSFiles/Brief_12_2021.pdf (Accessed on August 25, 2021)
[3]Catherine Byaruhanga, “Africa's jihadists: What Taliban takeover of Afghanistan means”, BBC News, August 21, 2021. Available at: https://www.bbc.com/news/world-africa-58279439 (Accessed on August 25, 2021)
[4]Catherine Byaruhanga, “Africa's jihadists: What Taliban takeover of Afghanistan means”, BBC News, August 21, 2021. Available at: https://www.bbc.com/news/world-africa-58279439 (Accessed on August 25, 2021)
[5]Catherine Byaruhanga, “Africa's jihadists: What Taliban takeover of Afghanistan means”, BBC News, August 21, 2021. Available at: https://www.bbc.com/news/world-africa-58279439 (Accessed on August 25, 2021)
[6]Al Jazeera, “Chad says will withdraw half its troops from G5 Sahel force”, August 21, 2021. Available at: https://www.aljazeera.com/news/2021/8/21/chad-says-will-withdraw-half-its-troops-from-g5-sahel-force (Accessed on September 3, 2021).
[7]Al Jazeera, “France to pull more than 2,000 troops from Africa’s Sahel region”, July 9, 2021. Available at: https://www.aljazeera.com/news/2021/7/9/france-to-pull-more-than-2000-troops-from-africas-sahel (Accessed on August 25, 2021).
[8] Isaac Kaledzi, “Taliban triumph means more worries in Africa”, Deutsche Welle, August 18, 2021. Available at: https://www.dw.com/en/taliban-triumph-means-more-worries-in-africa/a-58898090 (Accessed on August 25, 2021).
[9] Isaac Kaledzi, “Taliban triumph means more worries in Africa”, Deutsche Welle, August 18, 2021. Available at: https://www.dw.com/en/taliban-triumph-means-more-worries-in-africa/a-58898090 (Accessed on August 25, 2021).
[10] Isaac Kaledzi, “Taliban triumph means more worries in Africa”, Deutsche Welle, August 18, 2021. Available at: https://www.dw.com/en/taliban-triumph-means-more-worries-in-africa/a-58898090 (Accessed on August 25, 2021).
[11] Aggrey Mutambo, “Why Taliban takeover is causing anxiety in Africa”, The East African, August 21, 2021. Available at: https://www.theeastafrican.co.ke/tea/news/east-africa/why-taliban-takeover-is-causing-anxiety-in-africa-3519570 (Accessed on August 25, 2021).
[12] Aggrey Mutambo, “Why Taliban takeover is causing anxiety in Africa”, The East African, August 21, 2021. Available at: https://www.theeastafrican.co.ke/tea/news/east-africa/why-taliban-takeover-is-causing-anxiety-in-africa-3519570 (Accessed on August 25, 2021).
[13] Aggrey Mutambo, “Why Taliban takeover is causing anxiety in Africa”, The East African, August 21, 2021. Available at: https://www.theeastafrican.co.ke/tea/news/east-africa/why-taliban-takeover-is-causing-anxiety-in-africa-3519570 (Accessed on August 25, 2021).
[14] Aggrey Mutambo, “Why Taliban takeover is causing anxiety in Africa”, The East African, August 21, 2021. Available at: https://www.theeastafrican.co.ke/tea/news/east-africa/why-taliban-takeover-is-causing-anxiety-in-africa-3519570 (Accessed on August 25, 2021).
[15] Isaac Kaledzi, “Taliban triumph means more worries in Africa”, Deutsche Welle, August 18, 2021. Available at: https://www.dw.com/en/taliban-triumph-means-more-worries-in-africa/a-58898090 (Accessed on August 25, 2021).
[16] Muhammadu Buhari, “Africa needs more than US military aid to defeat terror”, Financial Times, August 15, 2021. Available at: https://www.ft.com/content/5e50eed6-1ca6-4a28-8341-52157b2f946e (Accessed on August 26, 2021).
[17] Ibid
[18] Ibid
[19] Ibid