अगस्त 31 को, काबुल के स्थानीय समयानुसार मध्यरात्रि से थोड़ा आगे, आखरी US C-17 जहाज ने अफगानिस्तान से उड़ान भरी और इस तरह से देश के उस युग का अवसान हो गया जो यूएस से सम्बंधित रहा था| अनेक प्रकार से, इतिहास ने अपने आप को पुन: दोहराया है जब यूएस को अफगानिस्तान की सत्ता तालिबान जैसे आतंकवादी संगठन के हाथों सौंपनी पड़ी है जिसे वे इस देश के साथ ही काफी बड़े क्षेत्र से उखाड़ फेंकना चाहते थे| देखा जाए, तो सेना की वापसी तत्काल स्वरूप में वाशिंगटन के लिए राहत से भरी है, जिसके चलते अफगानिस्तान में विकत शत्रुता से भरे माहौल को टाला जा रहा है साथ ही और अधिक जनहानि को भी रोका जा रहा है, इसके दीर्घावधि प्रभाव राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संबंधी अस्थिरता के रूप में सामने आएंगे और ये केवल अफगानिस्तान के लिए ही नहीं, यूएसम दक्षिण एशिया के प्रमुख भाग और इनसे संबंधित विशाल भौगोलिक भाग पर भी लागू होंगे|
अफगानिस्तान में पिछले दो दशकों के दौरान रहे सम्बन्धों के मध्य इस दूसरी सबसे बड़ी जनहानि[i] के बाद, अफगानिस्तान छोड़ने के इस कदम को लेकर राष्ट्रपति बिडेन द्वारा किया गया बचाव वाशिंगटन का असंदिग्ध समर्पण दर्शाता है जबकि इस निर्णय को लेकर स्थानीय और वैश्विक स्वरूप में सही नहीं माना गया था| यू एस की अफगानिस्तान से वापसी को अनेक प्रकार से ’हार’, ’जीत’, ’अद्भुत सफलता’, ’उत्कृष्ट निर्णय’ और ’ऎतिहासिक क्षण’ के रुप में निरुपित किया गया,[ii] और इसी आधार पर पार्टी द्वारा इसका वर्णन किया गया। संभवत:, सत्य इन पराकाष्ठाओं के मध्य कहीं होगा। बहरहाल, पुनरावलोकन की दृष्टि से, बायडेन का दूसरे सैन्य प्रसार का दोहरा प्रकार जिसे अफगानिस्तान से सैन्य वापसी का एकमात्र विकल्प कहा गया था, पूरी तरह से सत्य नही भी हो सकता है। शायद, इसका कोई तीसरा तरीका है जो तालिबान को शक्ति स्थानांतरण की सुविधा अधिक सरल तरीके से दे सके, जबकि यूएस उस दौरान भी देश में बना रहे।[iii] वापसी की तारीख ने न केवल यूएस के विरुद्ध चाल शुरु की है वरन तालिबान के लिये भी जो अफगानिस्तान पर अपनी शर्तों के आधार पर साम्राज्य करने का ऎतिहासिक दावा करने जा रहे हैं।
अनेक प्रकार की अस्थिरताओं के बावजूद, यूएस की वापसी और तालिबान का काबुल पर अधिकार करना, कुछ निश्चितताओं का अनुमान लगाने में मदद करता है। यूएस की वापसी अपने पीछे एक सामरिक निर्वात को छोड़ गई है जिस स्थान को भरने के लिये चीन और रशिया जैसी शक्तियां आतुर है। अब यह उपक्रम कितना सफल होता है, यह देखा जाना है। तथापि, अफगानिस्तान ने तालिबान के शासन के अन्तर्गत, कौशल का उपयोग करते हुए केवल बीजिंग और मॉस्को के लिये ही नही वरन पाकिस्तान और टर्की जैसे देशों के लिये भी स्थान रखा है, जो इस क्षेत्र में मौजूद आपदा का फायदा लेने का प्रकार है। अब, जब तालिबान काबुल में सरकार निर्मिति के नजदीक है, उसका चीन, रशिया, पाकिस्तान, कतर, टर्की और इरान को निमंत्रण दिया जाना[iv] तालिबान का शक्तियों की धुरी को एकत्र करने का प्रकार है जो सैद्धांतिक रुप से यूएस सेना के इस क्षेत्र में उपस्थित रहने के विरुद्ध है। 15 अगस्त को काबुल के नेस्तनाबूद होने के बाद, तालिबान ने भी संकेत दिये हैं कि रशिया और चीन के साथ की उनकी भागीदारी उच्च प्राथमिकता पर रहेगी। चीनी स्टेट कौंसलर और विदेशी मंत्री वांग यी और अफगानिस्तान के तालिबान राजनीतिक प्रमुख, मुल्ला अब्दुल गनी बारादर का चीन के तियानजिंग में 28 जुलाई को लिया गया चित्र चीन के चौकस जमीनी काम को दर्शाता है जिसमें चीन द्वारा अफगानिस्तान के साथ आपदा के समय में भी अपना फायदा करने की क्षमता को समाप्त नही होने दिया है। रशिया भी अफगानिस्तान के इस सामरिक शून्य को भरने में पीचे नही है और वे तालिबान के साथ प्राथमिक बैठकें[v] कर चुके हैं। तालिबान ने चीन और रशिया के साथ अपने संबंधों पर पुन: मुहर लगाई है, यह कहते हुए कि उनके संबंध रशिया और चीन से "बहुत अच्छे संबंध" की श्रेणी में हैं और रशिया और चीन उनके "सबसे महत्वपूर्ण भागीदार"[vi] हैं। अफगानिस्तान से यूएस सेना की वापसी संबंधी बायडेन के प्रमुख घोषणा पत्र में यह कहा गया था कि यूएस की सामरिक स्पर्था चीन और रशिया से है।[vii] पुनरावलोकन के साथ, चूंकि चीन और रशिया तालिबान के साथ नजदीकी संबंध रखना चाहते थे, ’सामरिक स्पर्धा’ का मूलाधार यूएस के लिये महत्वहीन रह गया होगा, कम से कम उस क्षेत्र में।
अफगानिस्तान में प्रमुख और मध्यम शक्तियों के मध्य आगामी स्पर्था और सीमावर्ती क्षेत्रों में इनकी जटिलताएं दक्षिणी एशिया के लिये अलग ही सरदर्द के समान काम करेंगी। अफगानिस्तान से यूएस सेना की वापसी ने तयशुदा तरीके से यूएस की मुद्रा पर भी घात किया है जो कि वैश्विक रुप से एक प्रभावी शक्ति है, बहरहाल, इसका अर्थ एशिया में सामरिक प्रभावन क्षमता की कमी से नही है। यूएस की एशिया में सामरिक अनिवार्यता, जिसमें भारतीय-प्रशांत शामिल है, इसके चलते अमेरिका की निरंतर स्पर्धात्मक सक्रियता इस क्षेत्र में दिखाई पड़ती है। यूएस दुर्जेय रुप से एशिया में उपस्थित है, सामरिक भौगिलिक स्थिति के रुप में भी और सैन्य उपायों के रुप में भी। बहरहाल, उसका झुकाव इस प्रकार के बलों का उपयोग भविष्य के लिये परखा हुआ हो सकता है, भले ही वॉशिंगटन का समुद्रगामी संतुलन और बहुपक्षीय झुकाव बढ़ रहा हो। इसके चलते यूएस पर भागीदारों और मित्रों की ओर से इस क्षेत्र में अपेक्षाओं का बोझ बढ़ने के संकेत हैं। तेजी से कम हो रही क्षमता और उपलब्ध स्रोतों के मध्य आ रहे अंतर साथ ही चीन के साथ हो रही स्पर्धा के चलते यूएस को यूएस सीनेट की ओर से $250 बिलियन का चायना कॉम्पिटिशन बिल पास करना पडा है, जिसे यूएस इनोवेशन एन्ड कॉम्पिटिशन एक्ट[viii] कहा जाता है। इसके अलावा, चीन द्वारा अफगानिस्तान को एक दीर्घकालीन अवसर के रुप में देखा जा रहा है, खासकर उसके बेल्ड एन्ड रोड पहल के लिये।[ix] चूंकि यूएस इन देशों के समूह से बाहर रहकर अफगानिस्तान पर अपना प्रभाव पहले जमाने की स्थिति में रहेगा, प्रान्तीय स्पर्धात्मक प्रकार जो कि नवीन राजनीतिक परिस्थिति के चलते उत्पन्न हो रहे हैं जिनमें शामिल है चीन, रशिया, टर्की, पाकिस्तान और कतर, जिनके द्वारा इस क्षेत्र में यूएस के भविष्य की भूमिका को तय किया जाएगा। अपनी स्थिति को मजबूत बनाये रखने के लिये, अमेरिका द्वारा निवेश, ढ़ांचागत विकास और पहुंच जैसे रास्तों पर अपना ध्यान अधिक केन्द्रित किया जा सकता है, खासकर भारत-प्रशांत के क्षेत्र में।
देखा जाए, तो तालिबान को हाल ही में प्राप्त सत्ता के कारण वे यूएस के इस क्षेत्र में उपस्थित रहने के विरोध में है और यह न्यायसंगत लगता है, दो दशकों तक यूएस सैन्य की यहां पर उपस्थिति के चलते भी उनका इसे लेकर निरंतर विरोध रहा है, दीर्घावधि में, यह शक्ति का ध्रुवीकरण दक्षिण एशिया और खासकर एशिया के वृहद भाग पर अपना प्रभाव दिखा सकता है। स्थानीय देशों के लिये, खासकर भारत के लिये, अफगानिस्तान में पैदा होने वाली स्थिति के चलते अनेक चुनौतियां सामने आनेवाली हैं। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण है, यूएस के साथ अपने नजदीकी संबंधों को सफलतापूर्वक चलाना, और यह मांग बहुपक्षीय भागीदारी के चलते सामने आ रही है जैसे क्वाड और इसके चलते स्थानीय शांति और सुरक्षा को सुनिश्चित करने और इस गारंटी के साथ आगे बढ़ना तय किया जाना है कि अफगानिस्तान के साथ सामरिक रुप से रहा जाए।
एक अतिरिक्त चुनौती जो अफगानिस्तान के चलते सामने आ सकती है और जो पूरे क्षेत्र को प्रभावित कर सकती है, वह है एक और शक्ति युद्ध जिसमें प्रतिनिधित्व दांव पर लगा रहेगा।[x] विशेष रुप से देखा जाए, तो इस क्षेत्र में दो शक्ति ध्रुव दिखाई दे सकते हैं जिनमें सामरिक दुश्मनी हो सकती है, इसमें यूएस और उसके मित्र/सहयोगी एक ओर हो सकते हैं और दूसरी ओर चीन-रशिया और अन्य देशों का समूह, और इसके चलते दक्षिण एशिया का सामरिक भूगोल काफी हद तक बदल सकता है। दक्षिण एशिया में विविध देशों के विविध लाभ भी हैं, खासकर भारत-पाकिस्तान और भारत-चीन के संबंध, इसके चलते इस क्षेत्र में स्पर्धात्मक प्रकार को बढ़ावा मिल सकता है, सहभागिता संबंधी उलझनें, निवेश और संबंधों पर प्रभाव पड सकता है। इस संबंध में एक उदाहरण है इस संभावना का कि चीनी बीआरआई भविष्य में अफगानिस्तान तक विस्तारित हो सकता है,[xi] भौगोलिक प्रकार से क्षेत्र के अन्य प्रकल्पों में असमान पहुंच होने की भी संभावना है जैसे इन्टरनैशनल नॉर्थ साउथ ट्रान्सपोर्ट कॉरिडोर (आईएनएसटीसी) आदि। दूसरी बात है, इसमें कनेक्टिविटी या संयोजकता के प्रकल्प शामिल हैं जैसे इरान, भारत और अफगानिस्तान के मध्य त्रिपक्षीय प्रकल्प जिसके अन्तर्गत जटिल चाबहार-ज़ाहेदान-काबुल कॉरिडोर निर्मित होना प्रस्तावित है।[xii] ये अपेक्षाकृत दूरस्थ प्रकार की समस्याएं हैं जिनमें कुछ सीधे खतरे भी शामिल हैं और ये अधिकांश रुप से दक्षिण एशियाई देशों के लिये है जिसके चलते यहां पर अस्थिरता में वृद्धि और आतंकवाद में बढ़ोतरी देखी जा सकती है।
अफगानिस्तान से यूएस की वापसी ने असुरक्षा का एक उत्तर दान सामने रखा है जो स्थानीय रुप से समस्त दक्षिण एशियाई देशों के लिये अस्थिरता का कारण सिद्ध हो सकती है।
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*डॉ. विवेक मिश्रा, रिसर्च फेलो, इंडियन काउंसिल ऑफ़ वर्ल्ड अफेयर्स।
अस्वीकरण: व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
सन्दर्भ
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[ii] “Biden defends Afghan withdrawal as ‘best decision’ for US”. Al Jazeera. 31 August 2021. URL: https://www.aljazeera.com/news/2021/8/31/taliban-declares-afghanistans-independence-after-us-withdrawal (Accessed September 06, 2021)
[iii] “Biden's Afghanistan withdrawal could've gone so differently”. MSNBC. 1 September 2021. URL: https://www.msnbc.com/opinion/biden-s-afghanistan-withdrawal-could-ve-gone-so-differently-n1278163 (Accessed September 06, 2021)
[iv] “Taliban finalise Afghanistan govt formation, invite China, Russia, Pakistan to ceremony”. India Today. September 06 2021. URL:
https://www.indiatoday.in/world/story/taliban-final-touches-to-afghanistan-govt-formation-1849685-2021-09-06 (Accessed September 06, 2021)
[v] Isachenkov, V (2021). “Taliban visit Moscow to say their wins don’t threaten Russia”. AP News. July 08 2021. URL:
https://apnews.com/article/taliban-moscow-europe-russia-51327432f1455020352826281c6c4e73 (Accessed September 06, 2021)
[vi]“China is our Most Important Partner: Taliban”. LiveMint. 3 September 2021. URL: https://www.livemint.com/news/india/china-is-our-most-important-partner-say-taliban-11630662700353.html (Accessed September 06, 2021).
[vii]“Biden Says Afghan Quagmire Would Have Helped Russia, China”. NDTV. August 17 2021. URL: https://www.ndtv.com/world-news/us-president-joe-biden-says-afghan-quagmire-would-have-helped-russia-china-2512003 (Accessed September 06, 2021).
[viii] Edmonsdon, C (2021). “Senate Overwhelmingly Passes Bill to bolster Competitiveness with China. New York Times. June 08 20212021. URL: https://www.nytimes.com/2021/06/08/us/politics/china-bill-passes.html (Accessed September 05, 2021)
[ix] Yuanchao, Li (2015). “Promote China-Afghanistan Cooperation and Bring New Life to the Silk Road”. Ministry of Foreign Affairs of China. URL: https://www.fmprc.gov.cn/mfa_eng/wjdt_665385/zyjh_665391/t1312149.shtml (Accessed September 06, 2021)
[x] Lynch, C. and Gramer, R. (2021). “China, Russia Look to Outflank U.S. in Afghanistan”. Foreign Policy. September 02 2021. URL: https://foreignpolicy.com/2021/09/02/afghanistan-withdrawal-china-russia-outflank-geopolitics-united-nations/ (Accessed September 06, 2021)
[xi] Verma, K.J. (2021).“China eyes BRI extension to Afghanistan as it awaits Taliban to form government. LiveMint. 3 September 2021. URL: https://www.livemint.com/news/world/china-eyes-bri-extension-to-afghanistan-as-it-awaits-taliban-to-form-govt-11630678935241.html (Accessed September 06, 2021).
[xii] Roche, E (2016). “India, Iran and Afghanistan ink trade corridor pact”. Live Mint. Date of Publication? URL: https://www.livemint.com/Politics/pI08kJsLuZLNFj0H8rW04N/India-commits-huge-investment-in-Chabahar.html (Accessed September 06, 2021)