मई 2021 में ईरान के 13वें राष्ट्रपति चुनाव के लिए आधिकारिक तौर पर प्रचार शुरु होन से कुछ दिन पहले, ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामनेई ने अपनी पिछली टिप्पणी पर स्पष्टीकरण दिया और कहा कि अगली सरकार ‘युवा और क्रांतिकारी’ होनी चाहिए। उन्होंने ऐसा कहने की वजह बताते हुए कहा कि शासन में युवा और अनुभवी, दोनों ही तरह के लोग होने चाहिए लेकिन सबसे महत्वपूर्ण शर्त यह थी कि उनमें ‘विश्वास और ईमानदारी हो और वे क्रांति से प्रेरित’ हों।[i] अपने उसी भाषण में, उन्होंने ‘पश्चिमी तौर–तरीकों और धारणाओं के प्रति लगाव' रखने वालों और 'देश एवं क्रांति' को 'सामान्य' बनाने के आह्वान द्वारा 'परिवर्तन' की तलाश करने वालों– दूसरे शब्दों में अंतरराष्ट्रीय मानकों के करीबियों' की भी आलोचना की। नेता की टिप्पणी में रूहानी प्रशासन के ‘अंतरराष्ट्रीयतावादी’ दृष्टिकोण को रेखांकित किया गया, और इसे ईरान की समग्र विदेश नीति को 'कट्टरपंथ मुक्त' करने के साधन के रूप में पश्चिम की ओर एक ‘खुली और आकर्षक' नीति द्वारा परिभाषित किया गया। साथ ही घरेलू नीति के कुछ पहलू, विशेष रूप से सामाजिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता, न केवल कम हुई बल्कि उन्हें अवैध भी घोषित कर दिया गया था। ‘क्रांतिकारी’ तत्व– उनमें से कई इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (आईआरजीसी) की युवा पीढ़ी से हैं– पश्चिम के वैचारिक दृष्टिकोण के विरोधी हैं और पश्चिम में अपनी असफल पहुँच के लिए अंतरराष्ट्रीयतावादियों की निंदा करते हैं। पश्चिम के साथ उनका राजनयिक संबंध सर्वोच्च नेता के उस दृष्टिकोण से संबद्ध है जिसे ‘तकनीकी’ माना जाता है और जो संयुक्त व्यापक कार्य योजना (जेसीपीओए) और मंजूरी राहत के पूर्ण कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने तक सीमित है।
रईसी प्रशासन की विदेश नीति की प्राथमिकताएं
5 अगस्त को अपने उद्घाटन समारोह में राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने कहा कि “ईरान के खिलाफ सभी अवैध अमेरिकी प्रतिबंधों को हटाया जाना चाहिए। नई सरकार देश की समस्याओं को दूर करने के लिए अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए काम करेगी… हम अर्थव्यवस्था को स्थिर करना और आत्मनिर्भर बनना चाहते हैं”।[ii] अर्थव्यवस्था पर रईसी की टिप्पणी अयातुल्ला खामनेई द्वारा समर्थित ‘प्रतिरोधी अर्थव्यवस्था’ की अवधारणा के अनुरूप थी। ‘प्रतिरोधी अर्थव्यवस्था’ में देश की प्रौद्योगिकी और निवेश संबंधी जरूरतों के लिए पश्चिम का रूख करने की बजाय फारस की खाड़ी, कॉकस, मध्य और दक्षिण एशिया में ईरान के पड़ोसियों के साथ व्यापार संबंधों को मजबूत बना कर देश की घरेलू क्षमताओं को मजबूत बनाने का प्रयास करती है। रईसी प्रशासन की दीर्घकालिक रणनीतिक रूपरेखा तब और स्पष्ट हो गई जब अरब और उत्तर अफ्रीकी मामलों के उप विदेश मंत्री (2011-16) और बहरीन में ईरान के राजदूत (2007) रहे और ईरान के पड़ोसी अरब देशों का व्यापक अनुभव रखने वाले राजनयिक हुसैन अमीर– अब्दुल्लाहियान को देश का विदेश मंत्री नियुक्त किया गया। कुछ समय पहले तक, वह संसद के स्पीकर बघेर ग़ालिबफ और उनके पूर्वर्ती अली लारिज़ानी– जो सर्वोच्च नेता के सलाहकार और चीन के साथ सामरिक संबंधों के लिए ईरान के विशेष प्रतिनिधि थे, के विदेश नीति सलाहकार थे और इन्होंने चीन के साथ 25 वर्ष की व्यापक रणनीतिक साझेदारी समझौते पर बातचीत में अहम भूमिका निभाई थी।
जैसे ही संसद ने कैबिनेट उम्मीदवारों के लिए विश्वास मत डाला, अमीर– अब्दुल्लाहियान ने सांसदों से कहा कि रईसी सरकार की विदेश नीति ‘एशिया– केंद्रित’ है और वे ‘विदेश मंत्रालय को बरजाम (जेसीपीओए/ JCPOA) से नहीं जोड़ेंगे और मंजूरियों को निरस्त करने के लिए सभी प्रयास करेंगे’[iii] इसके अलावा राजनीतिक मामलों के उप विदेश मंत्री के तौर पर जेसीपीओए के आलोचक राजनयिक अली बघेरी– खानी की नियुक्ति जेसीपीओए पर बातचीत के लिए नए प्रशासन के नज़रिए को स्पष्ट करता है। बघेरी– खानी 2007 से 2013 तक सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (एसएनएससी) के सचिव और ईरान के मुख्य परमाणु वार्ताकार रहे– सईद जलीली के सहायक थे। दोनों ने ‘प्रतिरोध कूटनीति’ को अपनाया, जो पश्चिमी देशों के साथ बातचीत के दौरान उनके स्पष्ट और अड़ियल नज़रिए को दर्शाता है।
रईसी सरकार की विदेश नीति के अनुकूलन के बारे में, विदेश मंत्री अमीर– अब्दुल्लाहियान ने कहा है कि यह एक 'संतुलित विदेश नीति’ अपनाएगा जो पड़ोसी और एशियाई देशों के साथ संबंधों को बेहतर बनाने के लिए अच्छा होगा “क्योंकि 21वीं सदी एशिया का है और हम एशिया में उभरती नई आर्थिक शक्तियों के गवाह हैं।”[iv] पश्चिम और पूर्वी ईरान के बीच भू– राजनीतिक स्थिति में निहित समानता या संतुलन का सिद्धांत (तवाज़ोन), आधुनिक ईरान की विदेश नीति का एक प्रमुख सिद्धांत है जो 1848-51 में अपनाया गया था जब कज़र युग के प्रधानमंत्री तक़ी खान– जिन्हें अमीर कबीर के नाम से जाना जाता है– ने 'निष्पक्षता (बिटराफी) या गुटनिरपेक्षता' की नीति अपनाकर ब्रिटेन और रूस में टकराव के बीच ईरान की स्वतंत्रता को बनाए रखने की मांग की थी।[v] इसलिए ‘एक संतुलित विदेश नीति’ रणनीतिक स्वतंत्रता एवं गतिशीलता को बनाए रखने के लिए बहुत मायने रखती है। पिछले एक दशक में, ईरान ने चीन, रूस और भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के साथ अपने संबंधों को सुधारा है, यह वैश्विक राजनीतिक अर्थव्यवस्था का एशिया की ओर स्थांतरण और ईरान के सामने पेश किए गए अवसरों का संतुलन है। इसी प्रकार यूरेशिया में क्षेत्रवाद और संघाई सहयोग संगठन (एससीओ) में शामिल होने के काफी समय से जारी प्रयासों के बारे में ईरान के नज़रिए को नई विश्व व्यवस्था, जो अमेरिका और पश्चिम पर कम निर्भर है, को आगे बढ़ाने के रूप में देखा जाता है।
एससीओ की सदस्यता के लिए ईरान का लंबे समय से जारी प्रयास
ईरान ने परमाणु मुद्दे पर रूस और चीन के साथ संस्थागत सहयोग के माध्यम से अमेरिका के दबाव को संतुलित करने के लिए अहमदीनिजाद प्रशासन की पूर्व की ओर देखो नीति के हिस्से के रूप में 2008 में एससीओ की पूर्ण सदस्यता हेतु आवेदन किया था। हालांकि, सदस्यता के अनुरोध को इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि एससीओ के नियम संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों के तहत सदस्यता दिए जाने के लिए देश को अयोग्य मानते हैं। जेसीपीओए पर हस्ताक्षर करने के बाद, रूस ईरान की सदस्यता का मुख्य समर्थक बन गया लेकिन ताज़िकिस्तान की इस्लामिक रिवाइवलिस्ट पार्टी के नेता मुहिद्दीन कबीरी को 2015 में ईरान द्वारा भेजे गए निमंत्रण के कारण ताज़िकिस्तान के साथ तेहरान के तनावपूर्ण संबंध, मुद्दा बना रहा। इसके अलावा, 2017 में भारत और पाकिस्तान के परिग्रहण के बाद चीन ने समूह के विस्तार के समेकन का समर्थन किया। ईरान ने एससीओ में दूसरी बार सदस्यता न मिलने के कारण 2016 और 2017 के एससीओ शिखर सम्मेलनों में विदेश मंत्री स्तर पर अपनी भागीदारी को कम कर दिया।
हालांकि, 2017 में पूर्व विदेश मंत्री ज़वाद ज़रीफ़ के दौरे के बाद तेहरान ने दुशान्बे के साथ संबंधों में सुधार किया, क्षेत्रीय भू–राजनीतिक माहौल में हुए बदलाव, विशेष तौर पर अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी और क्षेत्रीय सहयोग के विस्तार के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र को संतुलित करने हेतु मास्को के साथ बीजिंग के एक जैसे विचारों ने यूरेशियाई समूह में ईरान की सदस्यता की मंजूरी का आधार तैयार किया। इसके अलावा, ईरान मध्य एशिया में सुन्नी जिहादी आंदोलनों के प्रसार का विरोध करता रहा है। इसलिए, इसके लिए भी एससीओ की तरह ही इस क्षेत्र में चरमपंथ और आतंकवाद के खिलाफ सहयोग पर ध्यान देना मायने रखता है। उल्लेखनीय है कि एससीओ के सुरक्षा–उन्मुख फोकस के बावजूद, सरकार में बैठे कुछ लोग भू–आर्थिक आधार, जो भविष्य में समूह के विकास पर चीन के नज़रिए से मेल खाता है, पर एससीओ में ईरान की सदस्यता के पक्षधर हैं। आर्थिक मामलों के उपाध्यक्ष मोहसिन रेज़ाई ने कहा कि ईरान की सदस्यता 'ईरान को पूर्व और पश्चिम एवं उत्तर और दक्षिण यूरेशिया के बीच आर्थिक गलियारा बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम होगा’।[vi]
तेहरान में उत्साह के बावजूद, यदि 2017 विस्तार के पूरे हुए पिछले दौर में कोई निर्देश दिया गया हो तो, एससीओ में ईरान की सदस्यता को मंजूरी मिलने में दो वर्षों का समय लग सकता है। इस बीच, नई सरकार जेसीपीओए के साथ फिर से वार्ता आरंभ करने पर ध्यान देगी। शासन मंडल की बैठक में ईरान विरोधी प्रस्ताव को टालने के लिए ईरान के परमाणु ऊर्जा संगठन के नए प्रमुख और अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के बीच हाल ही में किए गए अंतिम मिनट समझौते से यह संकेत मिलता है कि रईसी की टीम वार्ता के फिर से शुरु किए जाने से पहले से खतरे में नहीं डालना चाहती।[vii]
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*डॉ. दीपिका सारस्वत भारतीय वैश्विक परिषद, नई दिल्ली की रिसर्च फेलो हैं।
अस्वीकरण: ये लेखक के अपने विचार हैं।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
[i] “Only those believe in the people and youth and who pursue justice should hold executive power, Khamenei.ir, 11 May, 2021, https://english.khamenei.ir/news/8493/Only-those-who-believe-in-the-people-and-youth-and-who-pursue
[ii] “Raisi in his inauguration speech; hands extended to neighbours, strike oppression everywhere,” Shafaq News, 5 August, 2021, https://shafaq.com/en/World/Raisi-in-his-inauguration-speech-hands-extended-to-neighbors-striking-oppression-everywhere
[iii] Amir Abdollahian: I will use my efforts to make sanctions ineffective, Iran News, 23 August, 2021, https://irannewsdaily.com/2021/08/amir-abdollahian-i-will-use-all-my-effort-to-make-sanctions-ineffective/
[iv] Ibid.
[v] R.K. Ramazani, “Iran’s Foreign Policy: Contending Orientations,” Middle East Journal, Vol.23, No.2, 1989, pp-202-217.
[vi] “Iranian officials hail importance to obtain permanent membership in SCO”, Xinhuanet, 19 September, 2021, http://www.news.cn/english/2021-09/19/c_1310198050.htm
[vii] “New memory cards, but no access to footage: Iran’s deal with the UN atomic agency,” Hindustan Times, 12 September, 2021, https://www.hindustantimes.com/world-news/new-memory-cards-but-no-access-to-footage-iran-s-deal-with-un-atomic-agency-101631457466578.html