इथोपिया को ग्रेट इथोपियन रेनेसां डैम (जीईआरडी)के बारे में एकतरफा नीति लागू करने से रोकने के लिए मिस्र और सूडान के साथ उसकी कई दौर की वार्ताओं तथा क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर किए गए प्रयासों के बेनतीजा रहने के बीच उसने 20 फरवरी, 2022 को बांध मे बिजली उत्पादन का काम शुरु कर दिया। नील नदी पर वर्षों से अपने कई तरह के दावे पेश करने और इस विवादस्पद विषय पर श्रेत्रीय और वैश्विक स्तर पर बंटे विभिन्न हितधारकों के बीच वार्ता में कोई प्रगति नहीं होने के बीच , इथियोपिया की ओर से उठाया गया यह कदम अप्रत्याशित नहीं है। उसके इस कदम से इस संकट के और गहराने की संभावना है साथ ही निकट भविष्य में इसका समाधान निकलने की आशा भी धूमिल हो गई है।
20 फरवरी, 2022 को, इथियोपिया के प्रधान मंत्री अबी अहमद ने जीईआरडी में बिजली उत्पादन के पहले चरण का उद्घाटन किया और बाद में ट्वीट करते हुए कहा कि यह एक नए युग की शुरुआत है और हमारे महाद्वीप के लिए अच्छी खबर है। उनके एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इथियोपिया के लोगों द्वारा बनाया गया यह बांध न केवल इथियोपियाई लोगों के लिए बल्कि सभी अफ्रीकी भाइयों और बहनों के लिए है और आज वह दिन आ गया जिसकी हर इथियोपिया ने कामना की थी और बलिदान दिया था। तुरंत बाद ही , मिस्र के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि जीईआरडी में टर्बाइन ऑपरेशन की शुरुआत का एकतरफा कदम उस घोषणा का उल्लंघन है जिसपर 2015 में इथियोपिया ने खुद हस्ताक्षर किए थे। दूसरी ओर इस विवाद से जुड़े एक अन्य पक्ष सूडान ने कहा कि बिजली उत्पादन के लिए टर्बाइन का एकतरफा संचालन सहयोग की भावना के खिलाफ है।
हालांकि इथियोपिया,के प्रधानमंत्री अबी ने विशेष रूप से मिस्र और सूडान को भरोसा दिलाया कि बांध से बनने वाली बिजली का लाभ सबको मिलेगा। उन्होंने यह भी कहा कि इथियोपिया, सूडान और मिस्र के माध्यम से पूरे यूरोप को प्रदूषण रहित बिजली का निर्यात करेगा जिससे सूडान और मिस्र का राजस्व बढ़ेगा। सूडान और मिस्र की आशंकाओं को दूर करने के अलावा, उन्होंने देशवासियों के नाम संदेश में कहा कि बांध से बनने वाली बिजली उन लोगों की तकलीफों को दूर करेगी जो दशकों से अपनी पीठ पर लकड़ी ढ़ो रहे हैं। एबी ने 5 जनवरी 2022 को बांध के स्थान पर ही अपनी कैबिनेट बैठक की थी। इसके जरिए वह यह संकेत देना चाहते थे कि मिस्र और सूडान के विरोध के बावजूद वह अपनी इस योजना पर मजबूत इरादे के साथ आगे बढ़ेगें। यह इस बात का भी संकेत था कि उनकी सरकार जल्दी ही बांध में बिजली बनाने का काम शुरु कर देगी। जुलाई 201 में हुए आम चुनाव में एबी ने चुनावी घोषणा पत्र में कहा था यदि वह दोबार सत्ता में आए तो जीतने के सौ दिनों के भीतर बांध में बिजली उत्पादन का काम शुरु करवा देंगे।
2011 में निर्माण शुरू होने के बाद से जीईआरडी सूडान, इथियोपिया और मिस्र के बीच तगड़े विवाद का कारण रहा है। इसे लेकर मिस्र का विरोध सबसे ज्यादा है क्योंकि जिस नील नदी पर यह बांध बना है उसे वह अपनी जीवन रेखा मानता है। मिस्र को लगातार इस बात का डर सता रहा है कि बांध को भरने और वहां बिजली उत्पादन से उसे नील नदी के 55.5 अरब घन मीटर (बीसीएम) पानी के वार्षिक कोटे से वंचित कर दिया जाएगा। मिस्र जीईआरडी के माध्यम से नील नदी पर इथियोपिया के बढ़ते नियंत्रण से भी डरता है जो नील पर उसके ऐतिहासिक दावे को कमजोर कर सकता है। मिस्र बांध को भरने के खिलाफ नहीं है, लेकिन इसे भरने के लिए एक समय सीमा चाहता है और इथियोपिया द्वारा इसे तेजी से भरने की नीति के खिलाफ है। क्षेत्रीय और विश्व स्तर पर हाल के सभी प्रयास इस संकट को हल करने में विफल रहे हैं। मिस्र ने सितंबर 2019 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में इस मुद्दे को उठाया था, जुलाई 2020 में इसे फिर से अफ्रीकी संघ में ले जाया गया और जुलाई 2021 में एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में लाया गया, लेकिन यह प्रयास भी विफल रहा।
जीईआरडी में तेरह टर्बाइनों में से एक ने रविवार को काम करना शुरू कर दिया और इसके पहले चरण में 375 मेगावाट (मेगावाट) बिजली का उत्पादन होने की उम्मीद है, जिसका अर्थ है कि जीईआरडी के माध्यम से जितनी बिजली उत्पादन की योजना बनाई गई थी उसका लगभग पांच प्रतिशत पहले ही हासिल कर लिया जाएगा। बिजली उत्पादन शुरू करने के इथियोपिया के इस एकतरफा फैसले को इस विवादास्पद परियोजना के इतिहास की एक प्रमुख घटना के रूप में देखा जा रहा है, जो इस क्षेत्र में और विशेष रूप से मिस्र और इथियोपिया के बीच भू-राजनीतिक माहौल को और बिगाड़ सकता है, क्योंकि मिस्र की जल विद्युत आवश्यकता का 90 फीसदी केवल नील नदी के माध्यम से पूरा होता है। इथियोपिया ने मिस्र और सूडान के विरोध के बावजूद पहले (2020 और 2021 में) बांध को भरने का काम शुरु किया और अब उसने यहां बिजली उत्पादन भी शुरू कर दिया है ऐसे में इथियोपिया को उसके इस एकतरफा फैसले पर पुनर्विचार के लिए बाध्य करने के लिए एक नए तंत्र की आवश्यकता हो सकती है।
इथियोपिया बांध के माध्यम से अपनी अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने की आकांक्षा रखता है और 5000-6500 मेगावाट की उत्पादक क्षमता के साथ महाद्वीप में बिजली उत्पादन के सबसे बड़े केंद्र के रूप में उभरना चाहता है। वाशिंगटन में ब्रुकिंग इंस्टीट्यूट से जुड़े जीईआरडी के विशेषज्ञों में से एक के अनुसार बिजली उत्पादन से इथियोपिया को अपनी अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में मदद मिलेगी, जो देश में खूनी संघर्ष कोविड महामारी और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में लगातार हो रही बढ़ोतरी से बुरी तरह प्रभावित हुई है। इथियोपिया ने हाल के वर्षों में दस प्रतिशत की वृद्धि दर बनाए रखी लेकिन कोविड महामारी और अन्य घरेलू संकट के कारण यह नीचे आ गयी है और निकट भविष्य में भी इसके कम रहने की उम्मीद है। इस बिजली उत्पादन से और बाद में सूडान, जिबूती और केन्या जैसे देशों को इसके निर्यात से इथियोपिया अपनी अर्थव्यवस्था में सुधार कर सकता है। इथियोपिया ने 2019 में सूडान और जिबूती को बिजली निर्यात से 66.4 मिलियन अमेरिकी डॉलर का राजस्व अर्जित किया है। इथियोपिया एक महत्वाकांक्षी क्षेत्रीय शक्ति है और बिजली उत्पादन के माध्यम से राजस्व अर्जित करके, यह देश एक बड़ी क्षेत्रीय शक्ति बनने के अपने सपने को पूरा कर सकता है और पहले से ही भारी आर्थिक दबाव और अन्य सुरक्षा मुद्दों से जूझ रहे मिस्र के राजनीतिक और रणनीतिक आधिपत्य का एक बड़ा प्रतिद्वंद्वी भी बन सकता है।
यद्यपि मिस्र या सूडान के लिए इस बांध से जल प्रवाह को लेकर तत्काल कोई खतरा नहीं है क्योंकि पन बिजली बनाने के लिए टर्बाइन के संचालन के लिए तकनीकी रूप से बांध में जमा पानी को छोड़ने की आवश्यकता होती है। लेकिन एक बार जब उत्पादन मिस्र और सूडान के समन्वय के बिना नियमित रूप से शुरू हो जाएगा, तो इथियोपिया का नील नदी पर पूर्ण नियंत्रण हो जाएगा और वह अपनी इच्छा से इसका उपयोग करने के लिए स्वतंत्र होगा जो कि जल प्रवाह के निचले इलाकों में बसे देश, विशेष रूप से मिस्र के दीर्घकालिक हित को खतरे में डाल सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि गर्मियों में टर्बाइन के संचालन से सूडान और मिस्र दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
जीईआरडी जैसे बड़े जलविद्युत बांध के संयत्र आमतौर पर बरसात के मौसम में भर जाते हैं और शुष्क मौसम में खाली हो जाते हैं। लेकिन इस क्षेत्र में नियमित बाढ़ और सूखे तथा पानी को जमा रखने और छोड़ने पर हितधारकों के बीच समन्वय का अभाव दक्षिणी मिस्र में स्थित इस बांध के संचालन को प्रभावित कर सकता है जो मिस्र में लगभग 6 प्रतिशत बिजली की जरूरतों को पूरा करता है।
मिस्र और सूडान दोनों के लिए दूसरी चिंताएँ यह हैं कि क्या उन्हें सूखे वर्षों के दौरान पर्याप्त पानी मिलेगा क्योंकि इथियोपिया ने मिस्र और सूडान दोनों के लिए पानी की आपूर्ति के निश्चित कोटा के लिए कभी कोई प्रतिबद्धता नहीं व्यक्त की है जो कि मिस्र की प्रमुख मांगों में से एक रहा है। बिजली उत्पादन की शुरुआत के बाद, सूडान और मिस्र दोनों के पास बहुत कम विकल्प रह गए हैं और एक तरह से इस मामले में वे इथियोपिया के अधीन हो गए हैं और ऐसे में इथियोपिया की पेशकश को स्वीकार करने के लिए मजबूर होंगे।
इस बीच, जब भी जीईआरडी की सफलता की बात आई है मिस्र ने हमेशा इथियोपिया के दावों पर सवाल उठाए हैं। इस बार भी एक बार फिर से मिस्र को इथियोपिया के जीईआरडी में बिजली उत्पादन शुरू करने के दावे पर संदेह है क्योंकि टर्बाइन के संचालन से पानी का जो फव्वारा निकलता है उसकी कोई किसी भी तस्वीर नहीं दिखायी गयी है।. मिस्र के अधिकारियो का मानना है बिजली उत्पादन की खुशी मनाए जाने का लक्ष्य केवल इथियोपियाई लोगों का मनोबल बढ़ाना था। मिस्र के पूर्व सिंचाई मंत्री डॉ. मोहम्मद नस्र आलम ने यहां तक दावा किया कि सबसे अच्छी स्थिति में भी एक भी टर्बाइन 50 मेगावाट से अधिक का बिजली उत्पादन नहीं कर सकता है। उन्होंने तर्क दिया कि ऐसे में इथियोपिया की ओर से प्रदर्शित उत्साह का उद्देश्य केवल अपने देशवासियों को बांध भरने के तीसरे चरण के लिए तैयार करना है। काहिरा विश्वविद्यालय में भूविज्ञान और जल विषय के एक प्रोफेसर का मानना है कि एक या दो टर्बाइनों के संचालन से मिस्र या सूडान को कोई नुकसान नहीं होगा, लेकिन भले ही जीईआरडी में बिजली उत्पादन एक बल्ब को जलाने लायक ही क्यों न हो यह गृहयुद्ध और अन्य सुरक्षा मुद्दों और बिगड़ती अर्थव्यवस्था के बीच आंतरिक स्तर पर बहुत सारी चुनौतियों का सामना कर रहे प्रधानमंत्री अबी के राजनीतिक कद को ऊंचा जरूर कर सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि मिस्र बिजली उत्पादन का विरोध नहीं करता है लेकिन इससे सूडान और मिस्र को नील नदी के पानी का जो हिस्सा मिलता है उसको कोई नुकसान नहीं होना चाहिए और इथियोपिया को बांध के पीछे अधिक पानी जमा नहीं करना चाहिए।
आश्चर्यजनक रूप से इस बार इथियोपिया द्वार उठाए गए कदम पर मिस्र की प्रतिक्रिया अतीत के विपरीत काफी हल्की थी और यह सिर्फ मिस्र के विदेश मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर पोस्ट भर की गई। लेकिन मिस्र के लोगों ने सरकार की इस हल्की प्रतिक्रिया पर सोशल मीडिया पर अपना गुस्सा जमकर निकाला और इसे हाल के वर्षों में विशेष रूप से जुलाई 2021 में बांध को भरने पर यूएनएससी की विशिष्ट चुप्पी के बाद से मिस्र के कमजोर पड़ते राजनयिक और रणनीतिक दबदबे के संकेत के रूप में देखा। इथियोपिया की राजधानी अदिसअबाबा की गलियों में लोगों को बड़े पैमाने पर जश्न मनाते देखा गया इसी बीच मिस्र के एक नागरिक ने ट्वीट किया “बड़ी चुनौतियों के बावजूद इथियोपियो को तीन ऐतिहासिक जीत मिली है एक युद्ध के मोर्चे पर, दूसरी राजनयिक मोर्चे पर और तीसरी राष्ट्रीय परियोजना के स्तर पर”।
यह भी एक सच्चाई है कि बिजली उत्पादन करने के मामले में इथियोपिया अतीत में कई बार दिक्कतों का सामना कर चुका है। पहले उसकी योजना अक्टूबर 2021 में ही उत्पादन शुरू करने की थी लेकिन कुछ तकनीकी कारणों से इसमें देरी हो गई। अब उत्पादन शुरू होने के बाद भी, जीईआरडी के परियोजना निदेशक, किफले होरो ने कहा कि बिजली उत्पादन शुरु होने का मतलब परियोजना का पूरा होना नहीं है और अभी भी परियोजना को पूरा होने में 2-3 साल लग सकते हैं।
उपरोक्त स्थितियों में कोई भी यह निष्कर्ष निकाल सकता है कि निकट भविष्य में इस संकट का कोई समाधान नहीं है। ऐसा लगता है कि इथियोपिया ने न केवल अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत किया है बल्कि जीईआरडी की शुरुआत के बाद मिस्र की तुलना में अधिक सौदेबाजी की शक्ति हासिल कर ली है। हालांकि इथियोपिया ने डाउनस्ट्रीम देशों को सुनिश्चित किया है कि ऊर्जा उत्पादन से उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा लेकिन इससे सूडान और मिस्र को पानी के निश्चित वार्षिक कोटा के निर्बाध प्रवाह का विवादास्पद मुद्दा अभी भी अनसुलझा रह गया है।
अतीत में भी एक अनुकूल राय बना पाने के मिस्र के प्रयास विफल रहे हैं। दूसरी ओर इथियोपिया ने भी क्षेत्रीय या वैश्विक स्तर के संगठनों जैसे अफ्रीकी संघ या संयुक्त राष्ट्र के कठोर और भारी दबाव के अभाव में अपनी एकतरफा नीति को आगे बढ़ाना जारी रखा। यह देखने की जरूरत है कि और टर्बाइन चालू होने पर मिस्र कैसी प्रतिक्रिया देता है और इन टर्बाइनों के चलने से क्या वास्तव में मिस्र में नील नदी का जल प्रवाह प्रभावित होता है।
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*डॉ. फज्जुर रहमान सिद्दीकी, वरिष्ट शोध अध्येता, भारतीय वैश्विक परिषद, नई दिल्ली।
अस्वीकरण: व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।
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