दक्षिण कोरिया में 9 मार्च को नए राष्ट्रपति का चुनाव होना है जो निर्वतमान राष्ट्रपति मून जे-इन का स्थान लेंगे। मई 2022 में मून जे- इन का पांच साल कार्यकाल पूरा हो जाएगा। राष्ट्रपति का चुनाव बहुमत के आधार पर प्रत्यक्ष रूप में -पास्ट-द-पोस्ट विधि से किया जाता है। सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक पार्टी के ली जे-म्युंग और मुख्य विपक्षी पीपुल्स पावर पार्टी के यूं सुक-योल इस बार राष्ट्रपति पद के मुख्य दावेदार हैं। एक दूसरे के चरित्र पर लांछन लगाने के नकारात्मक प्रचार के बीच, गवर्नर ली और यूं के बीच कांटे की टक्कर दिखाई दे रही है। तीसरे उम्मीदवार पीपुल पार्टी के चे ओल-सू के साथ यूं खेमे के जुडने के हाल के घटनाक्रम से ऐसा लगता है कि यूं को ली पर बढ़त मिल सकती है।
एक कुशल प्रशासक के रूप में काम करने की वजह से राजनीतिक हलकों में "बुलडोजर" के रूप में जाने जाने वाले उम्मीदवार ली ने सेओंगनाम शहर के मेयर के रूप में और बाद में सबसे बड़े प्रांत ग्योंगगी के गवर्नर के रूप में अपनी नेतृत्व क्षमता को साबित किया है। ली की पृष्ठभूमि पिछले दो प्रगतिशील पार्टी उम्मीदवारों, राष्ट्रपति मून जे-इन और पूर्व राष्ट्रपति रोह मू-ह्यून (2003-2007) के समान है जो एक एक गरीब पृष्ठभूमि से आने के बावजूद मानवाधिकार मामलों के अधिवक्ता के रूप में करियर बनाने के बाद, राजनीति के क्षेत्र में भी तेजी से उभरे।
दूसरी ओर, यूं राजनीति में नए हैं। वे अप्रत्याशित रूप से एक साल पहले राजनीति में आए थे। उम्मीदवार, यूं का एक साहसी लोक अभियोजक के रूप में साफ सुथरा रिकार्ड है। वे पूर्व राष्ट्रपति पार्क गुएन-हे के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले सहित कई हाई-प्रोफाइल मामलों की जांच कर चुके हैं। वर्तमान शासन के साथ मतभेद होने के बाद वह विपक्ष की पहचान बन गए , जिसके कारण मुख्य अभियोजक के पद से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
विदेश नीति विमर्श
अधिकांश लोकतांत्रिक देशों की तरह दक्षित कोरिया में भी राष्ट्रपति चुनाव में घरेलू मुद्दों पर अधिक जबकि विदेश और सुरक्षा नीति के मुद्दों पर कम ही ध्यान दिया जाता है।ऐसे समय में जबकि कोरिया कोविड महामारी की सबसे बड़ी लहर का सामना कर रहा है, राष्ट्रपति चुनाव में नीतिगत बहस का अधिकांश हिस्सा महामारी और आर्थिक सुधार पर केंद्रित है। अमेरिका-चीन के प्रति दृष्टिकोण में भिन्नता राष्ट्रीय हित और विदेश नीति की प्राथमिकताओं के बारे में उनकी अलग-अलग धारणाओं को इंगित करती है। रियल स्टेट और नौकरियों जैसे आर्थिक मुद्दों पर सबकी नीति कमोबेश एक ही जैसी है लेकिन, राजनयिक संबंधों और सुरक्षा के मामले पर प्रत्येक उम्मीदवार की अपनी अलग राय है। हालांकि सभी उम्मीदवार इस बात पर एकमत हैं कि अमेरिका और चीन के बीच चल रही तगड़ी प्रतिद्ंदिता ने दक्षिण कोरिया की रणनीतिक स्थिति को व्यापक रूप से प्रभावित किया है और इससे निबटना उत्तर कोरिया से निबटने जैसी ही बड़ी चुनौती है। अमेरिका और चीन के संबंधों के प्रति उनके दृष्टिकोण में भिन्नता राष्ट्रीय हित और विदेश नीति की प्राथमिकताओं के बारे में उनकी अलग-अलग धारणाओं को दर्शाती है।
'व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाते हुए गवर्नर ली किसी भी खास विचारधारा को न अपनाते हुए व्यावहारिकता और समस्या के समाधान पर आधारित विदेश नीति की वकालत करते हैं। उनकी विदेश नीति उत्तर कोरिया के मुद्दे को प्राथमिकता देती प्रतीत होती है, जैसा कि वर्तमान मून प्रशासन के मामले में देखने को मिलता है जो निरोध, कूटनीति और संवाद का मिला जुला रूप है चीन की बढ़ती मुखरता को लेकर व्यक्त की जा रही चिंताओं पर ली का कहना है कि "दक्षिण कोरिया को अपने सबसे बड़े व्यापारिक भागीदार चीन के साथ साझेदारी बनाए रखनी चाहिए। इसके अलावा, उनका यह भी कहना है कि "व्यावहारिकता यही कहती है कि उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम, कोरियाई प्रायद्वीप पर शांति और स्थिरता, सीमा पार पर्यावरण प्रदूषण और कोविड महामारी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों के समाधान के लिए दक्षिण कोरिया को चीन के साथ मिलकर चलने की आवश्यकता है।" वह एक ऐसी सक्रिय और दूरंदेशी कूटनीति को महत्व देने की बात करते हैं"जो राष्ट्रीय हित को बढ़ावा देने के लिए अमेरिका और चीन की प्रतिद्वंदिता को एक अवसर के रूप में इस्तेमाल कर सके । उन्होंने किसी एक पक्ष को चुनने की नीति का कड़ा विरोध किया है। इस संबंध में उन्होंने कहा; "दक्षिण कोरिया दुनिया की छठी सबसे बड़ी सैनिक ताकत होने के साथ साथ दुनिया की 10वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी है, तो ऐसे में हमें दूसरे देशों के हितों के अनुसार अपनी नीति बनाने के लिए दबाव में क्यों आना चाहिए? मुझे लगता है कि अब ऐसा समय आ रहा है जहां हम किसी एक पक्ष को चुनने की बजाए अपने राष्ट्रीय हितों को सबसे उपर रखने के बारे में स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकते हैं। अमेरिका और चीन हमसे सहयोग के लिए आगे बढ़े इसके लिए राजनयिक कौशल की आवश्यकता होगी ... देश को अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर निर्णय लेने की आवश्यकता है ।"
ऐसी संभावना है कि चीन नीति के बारे में व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने तथा अमेरिका और चीन के बीच प्रतिस्पर्धा को ध्यान में रखते हुए विभिन्न मुद्दों पर कोरिया की स्थिति तय करने की सोच के साथ ली , मून प्रशासन के अमेरिका के साथ गठबंधन और चीन के साथ रणनीतिक साझेदारी बनाए रखने की संतुलित कूटनीति' के दृष्टिकोण को जारी रखेंगे।
प्रचार के दौरान यूं ने कोरिया को एक बडी वैश्विक ताकत बनाने की सोच रखते हुए संभावित विदेश नीति अपनाने की वकालत की है। वह उत्तर कोरिया पर केद्रित, चीन के तुष्टिकरण और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक निष्क्रिय और अस्पष्ट क्षेत्रीय दृष्टिकोण पर आधारित मून प्रशासन की विदेश नीति के आलोचक रहे हैं। उन्होंने अमेरिका और चीन के बीच तीव्र प्रतिस्पर्धा के मुद्दों पर सैद्धांतिक रुख नहीं अपनाने और चीन में मानवाधिकारों के मुद्दों पर चुप्पी साधे रखने की मून प्रशासन के 'अस्पष्ट रणनीतिक ' दृष्टिकोण की भी आलोचना की है। यूं के अनुसार, देश की इस भीरू विदेश नीति ने दक्षिण कोरिया की वैश्विक और क्षेत्रीय स्थिति को और कमजोर कर दिया है। यूं जिस विदेश नीति की बात कहते हैं उसमें खासतौर से परमाणु निरस्त्रीकरण की नीति पर दबाव बनाना, सशर्त जुड़ाव को प्राथमिकता देते हुए उत्तर कोरिया के प्रति एक कठोर नजरिया रखने , मून प्रशासन के दौरान अमेरिका के साथ कमजोर पड़ चुके संबंधों को मजबूत करना, चीन के साथ संबंधों को नए सीरे से तय करना और हिंद-प्रशांत क्षेत्र के प्रति एक सक्रिय दृष्टिकोण शामिल है।
राष्ट्रपति पद के इन दोनों उम्मीदवारों के बीच फर्क ,उत्तर कोरिया जैसी एक बड़ी समस्या के प्रति उनके दृष्टिकोण में स्पष्ट दिखाई देता है। उम्मीदवार ली का कहना है कि वह मून जे-इन की प्रशासन नीतियों पर अमल करते हुए चरण-दर-चरण दो अलग अलग दृष्टिकोण में समन्वय बनाते हुए चलेंगे। यह नीति उत्तर कोरिया को परमाणु निरस्त्रीकरण की दिशा में ले जाने के साथ ही शांति प्रक्रिया को प्रश्रय देने और इस बारे में उत्तर कोरिया के हर प्रयास की अनुकूल प्रतिक्रिया देने पर आधारित है। इस संबंध में, उम्मीदवार ली मून प्रशासन के 'एंड ऑफ वॉर डिक्लेरेशन' के प्रस्ताव को अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच परमाणु वार्ता में आए गतिरोध को खत्म करने के अवसर के रूप में देखते हैं। यह वार्ता 2019 में हनोई शिखर सम्मेलन के बाद से अधर में लटकी हुई है। दूसरी ओर, उम्मीदवार यूं एक ऐसी कठोर विदेशी नीति के हिमायती हैं जो उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम पर केन्द्रित है और ताकत के इस्तेमाल से शांति सुनिश्चित करने का समर्थन करती है। उत्तर कोरिया के साथ सशर्त संबंधों पर यूं का जोर राष्ट्रपति ली मायुंग-बक और पार्क ग्यून-हे प्रशासन के तहत अपनाई गई पिछली सरकारों की रूढ़िवादी नीति के अनुसरण पर है। उत्तर कोरिया के आक्रामक रवैये से निपटने की यूं की कठोर नीति बचाव के लिए पहले आक्रमण करो के रूप में स्पष्ट दिखती है।
हालांकि उम्मीदवार ली और यूं दोनों इस बात पर सहमत हैं कि कोरिया-अमेरिका गठबंधन कोरियाई विदेश नीति का आधार है लेकिन वहीं दूसरी तरफ अमेरिका के प्रति उनका नजरिया भिन्न है जो अमेरिका-कोरिया संबंधों की वर्तमान स्थिति के उनके मूल्यांकन और धारणा को दर्शाता है। उम्मीदवार ली उभरती प्रौद्योगिकियों, आपूर्ति श्रृंखला, जलवायु परिवर्तन और अन्य गैर-पारंपरिक सुरक्षा चुनौतियों सहित सैन्य क्षेत्रों से परे इस गठबंधन के दायरे का विस्तार करके इसे और व्यापक रूप देने पर जोर देते हैं। अमरीका और दक्षिण कोरिया गठबंधन के बारे में ली की धारणा मून जे-इन प्रशासन से विरासत में मिली है जो इस बात पर महत्व देती है कि 'मौजूदा सुरक्षा गठबंधन में अर्थव्यवस्था और अन्य व्यापक क्षेत्रों को शामिल किया जाना चाहिए'। दूसरी ओर, उम्मीदवार यूं ने इस गठबंधन में विश्वास को मजबूत बनाने पर जोर दिया है जो उनके अनुसार वर्तमान प्रशासन के दौरान कमजोर हुआ है। इस संबंध में उन्होंने थड मिसाइल प्रणाली की अतिरिक्त तैनाती के साथ गठबंधन के रणनीतिक आयाम को मजबूत करने और दक्षिण कोरिया-अमेरिका प्रतिरोध क्षमता को और सशक्त बनाने की बात कही है।
पिछले चुनावों के विपरीत इस बार चीन के साथ दक्षिण कोरिया के संबंध भी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों के बीच बहस का विषय बन गए हैं। उम्मीदवार ली ने चीन के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखने के लिए अपना तर्क दिया है उनका यह तर्क अमेरिका और चीन में से किसी एक का भी पक्ष लेने से बचने के साथ ही मुख्य रूप से आर्थिक तर्कों पर आधारित है। एक तरह से देखा जाए तो चीन-कोरिया संबंधों पर ली की स्थिति काफी हद तक मून प्रशासन की नीति के अनुरूप है। उदाहरण के लिए, वह ली मून की विवादास्पद 'थ्री नो' के रूख का समर्थन करते हुए कहते हैं कि "चीन के साथ आर्थिक सहयोग को देखते हुए यह नीति उचित है"। उम्मीदवार यूं चीन के साथ दक्षिण कोरिया के संबंधों पर अधिक मुखर नजर आते हैं। मून की चीन नीति की आलोचना करते हुए उनका तर्क है कि "चीन के साथ जटिल संबंधों को फिर से बदलने की जरूरत है" और "दक्षिण कोरिया-चीन सहयोग का नया युग इस सिद्धांत पर आधारित होना चाहिए कि सुरक्षा मुद्दों से आर्थिक मुद्दे प्रभावित नहीं होने चाहिए" और यह "परस्पर सम्मान पर आधारित होना चाहिए"।मून प्रशासन की चीन नीति की और आलोचना करते हुए यूं ने इसे समर्पण वाली नीति करार देते हुए कहा है कि यह नीति अपनाने के कारण दक्षिण कोरिया को "चीन के आर्थिक प्रतिबंधों के सामने झुकना पड़ा और अपने सुरक्षा हितों को त्यागना पड़ा "। उन्होंने दक्षिण कोरिया में और अधिक थड मिसाइलें लगाने का भी वादा किया है।
चीन के बारे में उम्मीदवार यूं के बढ़-चढ़कर दिए ये बयान नीतियों में कितने तब्दील होंगे यह देखा जाना बाकी है फिर भी इसमें दो राय नही कि कोरिया में खासकर युवा मतदाताओं के बीच बढ़ती चीन विरोधी भावना की पृष्ठभूमि में यह एक चुनावी रणनीति है। थड मिसाइल विवाद के बाद 2016 से चीन के प्रति कोरिया में नकारात्मक भावना तेजी से बढ़ रही है। बीजिंग शीतकालीन ओलंपिक खेलों में कोरियाई एथलीटों की जगह चीन के एथलीटों को दी गई वरीयता से जुड़े विवादास्पद फैसलों के कारण इसने और खराब रूप अख्तियार कर लिया है। चीन के खिलाफ इस भावना को अभिव्यक्ति देते हुए उम्मीदवार यून सोक-योल ने कहा, "अधिकांश कोरियाई, विशेष रूप से युवा लोग, चीन से नफरत करते हैं।"
ऐतिहासिक घटनाओं को लेकर कोरिया और जापान के बीच उत्पन्न विवाद मून जे-इन प्रशासन के पांच वर्षों के दौरान जारी रहा है। एक ऐसे संदर्भ में जहां कोरिया में अभी भी जापानी विरोधी भावना मौजूद है, दोनों उम्मीदवारों ने कोरिया-जापान संबंधों पर किसी तरह का रूख दिखाने से परहेज किया है सिवाय इसके कि वह जापान के साथ संबंधों में सुधार चाहते हैं। हालांकि दोनों उम्मीदवार 'जापानी समर्थक' होने से बचने की कोशिश भी करते रहे हैं।
कोरिया और हिंद प्रशांत क्षेत्र
हालांकि हिंद-प्रशांत क्षेत्र के बारे में भी कोरिया के दृष्टिकोण का इन दोनों उम्मीदवारों ने अपनी विदेश नीति की बहस में उल्लेख किया है। इस क्षेत्र को लेकर अपनी शुरूआती हिचकिचाहट के बावजूद, पिछले तीन वर्षों में दक्षिण कोरिया का दृष्टिकोण काफी स्पष्ट हुआ है। मून प्रशासन ने सार्वजनिक स्वास्थ्य, हरित विकास, कनेक्टिविटी और अन्य गैर-पारंपरिक सुरक्षा मुद्दों पर क्षेत्रीय स्तर पर कोरिया की नई दक्षिणी नीति और विभिन्न देशों की हिंद प्रशांत नीति के बीच तालमेल खोजने के लिए कदम उठाए है। हालांकि कोरिया के हिंद प्रशांत क्षेत्र के प्रति इस दृष्टिकोण का एक उल्लेखनीय पहलू उसकी उन छोटी/बहुपक्षीय पहलों में भाग लेने की अनिच्छा के रूप में भी दिखी है जो इस क्षेत्र के नए संस्थागत ढांचे को संचालित करती हैं। उम्मीदवार ली ने अपनी विदेश नीति की योजना में "स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र " के लिए नई दक्षिणी नीति को जारी रखने के अपने इरादे पर जोर दिया है।
दूसरी ओर उम्मीदवार यूं कोरिया को विश्व राजनीति में एक केन्द्रीय भूमिका दिलाने के इरादे से हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए एक मजबूत कोरियाई नीति का आह्वान करते हैं। क्वाड देशों और कोरिया के प्रति चीन के आक्रामक रूख को एक समान बताते हुए , उन्होंने बदलते अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में एक भीरू और निष्क्रिय दृष्टिकोण अपनाने के लिए मून प्रशासन की आलोचना की है और हिन्द प्रशांत क्षेत्र के लिए "एक स्वतंत्र, खुली और समावेशी व्यवस्था" को सक्रिय रूप से बढ़ावा देने की आवश्यकता पर बल दिया है। इस संबंध में, उन्होंने क्वाड कार्य समूहों और अन्य क्षेत्रीय बहु/लघुपक्षीय पहलों में कोरिया की ओर से सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता बताई है।
निष्कर्ष
चुनाव प्रचार के दौरान अलग-अलग राजनीतिक पहचान और बयानबाजी के बावजूद, रूढ़िवादी और प्रगतिशील दोनों किस्म के दलों द्वारा सत्ता में आने के बाद विदेश नीति के प्रति एक उदारवादी दृष्टिकोण ही अपनाया जाता है। हालाँकि, उनके नजरिए में अंतर को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह संभावित रूप से कोरिया को एक अलग विदेश नीति की दिशा में ले जा सकता है।
पहले औपनिवेशिक काल में जापानियों द्वारा और फिर शीत युद्ध के दौरान अमेरिका समर्थित तानाशाही हुकूमत के कारण बाहरी ताकतों के प्रभाव में करीब एक सदी तक कष्ट झेलने का इतिहास समेटे कोरिया में अब अमेरिका के साथ गठबंधन बनाए रखने के बावजूद एक प्रगतिशील राजनीतिक व्यवस्था के तहत स्वतंत्र विदेश नीति अपनाए जाने पर जोर दिया जा रहा है। दूसरी ओर, उत्तर कोरिया और अन्य क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर रूढ़ीवादी दल अमेरिका के साथ अधिक जुड़ाव रखते हैं। यदि देश में इस बार सत्ता प्रगतिवादियों से रूढ़िवादियों के हाथ में चली गई तो उत्तर कोरिया के प्रति देश की विदेश नीति ज्यादा सख्त हो सकती है। इसका सीधा मतलब यह होगा कि बातचीत की मौजूदा सोच पर आधारित विदेश नीति अधिक आक्रामक नीति में बदल जाएगी जो शांति प्रक्रिया की तुलना में परमाणुनिरस्त्रीकरण पर अधिक जोर देने वाली होगी। उत्तर कोरिया के प्रति दक्षिण कोरिया की यह नीति चीन के साथ उसके संबंधों को और बिगाड़ देगी क्योंकि वह शांति और स्थिरता की बजाए परमाणु निरस्त्रीकरण को प्राथमिकता देने वाली होगी। ऐसे में कोरियाई प्रायद्वीप में यह तनावपूर्ण सुरक्षा स्थिति अमेरिका और चीन के बीच मौजूदा संबंधों से लाभ उठाने के उसके अवसर को भी कमजोर कर देगी। इसके अलावा बहुत कुछ इस बात पर भी निर्भर करेगा कि उत्तर कोरिया का व्यवहार कैसा रहता है।
चुनाव के नतीजे चाहे जो भी निकलें विदेश नीति के मामले में मून प्रशासन की नई दक्षिणी नीति ही जारी रहने की संभावना है फिर चाहे भले ही यह किसी दूसरी सरकार के नाम पर ही क्यों न हो। आसियान देशों और भारत के साथ विभिन्न स्तर पर आर्थिक और राजनयिक संबंधों को बनाने के प्रयास को दक्षिण कोरिया में सभी दलों का समर्थन प्राप्त है यह प्रवृत्ति पिछले दो दशकों में लगातार विकसित होती रही है। एक रूढ़िवादी शासन के तहत भी कई छोटी और बहुपक्षीय पहलों में भागीदारी सहित, हिंद-प्रशांत क्षेत्र के प्रति एक सक्रिय दृष्टिकोण के तहत प्रस्तावित बातचीत के प्रयासों के तौर तरीकों और दायरे को बढ़ाने की संभावनाएं बनी रह सकती हैं।
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*डॉ. जोजिन वी जॉन, शोध अध्येता, भारतीय वैश्विक परिषद, नई दिल्ली।
अस्वीकरण: व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।
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