सार
2001 में जब अमेरिका ने अलकायदा को शरण देने वाले अफगानिस्तान में तालिबान शासन पर हमला करने का फैसला किया, तो राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने इसे ‘आतंकवाद के खिलाफ युद्ध’ करार दिया था. इस हमले के साथ बुश ने आतंकवादियों को संदेश देने की कोशिश की कि यह युद्ध उनके (आतंकवादियों) अंत से पहले खत्म नहीं होगा.i वहीं, 2017 में राष्ट्रपति बनने से पहले अपने चुनाव अभियानों के दौरान ट्रंप ने अफगानिस्तान में युद्ध समाप्त कराकर अमेरिकी सैनिकों की वापसी कराने का वादा किया था.ii अमेरिका चाहता है कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल पश्चिम में आतंकवाद फैलाने के इरादे से न किया जाए. इस सिलसिले में अब तक अमेरिका और तालिबान के बीच 9 दौर की बातचीत भी हो चुकी है, हालांकि, ट्रंप इस वार्ता को अब मृत घोषित कर चुके हैं. इससे पहले तक ट्रंप का मुख्य मकसद अमेरिकी सैनिकों को अफगानिस्तान से बाहर निकालना ही प्रतीत हो रहा था, जिसके लिए वह तालिबान के साथ जल्द से जल्द समझौता कर लेना चाहते थे, जबकि 2017 में पेश की गई ट्रंप की ‘अफगान रणनीति’ का उद्देश्य ठीक इसके उलट था. जिसमें उन्होंने तालिबान से वार्ता की संभावनाओं को दरकिनार कर लड़ाई जारी रखने और अमेरिका की जीत पर अपना ध्यान केंद्रित किया था.iii हालांकि, बाद में उन्हें तालिबान के साथ वार्ता के लिए एक मंच पर आना पड़ा. ट्रंप प्रशासन की कुछ ऐसी ही अफगान नीतियों पर इस लेख में चर्चा की गई है. इस परिप्रेक्ष्य में तालिबान के साथ शांति वार्ता पर भी प्रकाश डाला गया है.
परिचय
अमेरिका में 9/11 हमले के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने ‘आतंकवाद के खिलाफ’ एक वैश्विक जंग की शुरुआत की थी. इस पर बुश का कहना था कि वह दुनिया से आतंकवाद का नामो-निशान मिटा देना चाहते हैं. इस मामले में आतंकवादियों के साथ बातचीत या चर्चा करने की कहीं कोई संभावना नहीं दिख रही थी. अफगानिस्तान में तालिबान शासन पर हमले की शुरुआत के साथ बुश ने आतंकवादियों को साफ संदेश देने की कोशिश की कि यह युद्ध तब तक समाप्त नहीं होगा, जब तक कि वैश्विक स्तर पर प्रत्येक आतंकी समूह की पहचान कर उसे खत्म नहीं कर दिया जाता. राष्ट्रपति बुश के लिए तालिबान आतंकवादियों को शरण देने वाला ‘एक हत्यारा’ था.iv वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसी ‘हत्यारे तालिबान’ के साथ शांति वार्ता की कोशिशें कीं.v अमेरिका में 2020 के आखिर में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं. ऐसे में ट्रंप की कोशिश थी कि चुनावों से पहले ही अफगानिस्तान से सैनिक वापसी के लिए जमीन तैयार की जाए.vi 2018 में शांति प्रक्रिया की शुरुआत के साथ दोनों तरफ इस लंबे युद्ध के खत्म होने की एक उम्मीद जगी थी, जो शांति वार्ता रद्दvii होने के साथ ही खत्म होती दिख रही है. इस युद्ध को शुरू हुए 18 साल हो चुके हैं, जिसमें अमेरिका अब तक एक ट्रिलियन डॉलरviii से भी अधिक खर्च कर चुका है. इस बीच, अमेरिका को अफगानिस्तान में तालिबान सरकार को उखाड़ फेंकने और 9/11 हमले के मुख्य साजिशकर्ता लादेन को मारने में कामयाबी अवश्य मिली है, लेकिन इसकी कीमत हजारों अमेरिकी सैनिकix और अफगानी नागरिकों ने अपनी जान देकर चुकाई है.
ट्रंप से पहले, ओबामा कार्यकाल में भी शांति स्थापना और सैनिक वापसी के तमाम प्रयास किए गए थे.x यहाँ तक कि ओबामा ने तालिबान के प्रति अपनी नीतियों में भी बदलाव किया था.xi उन्होंने 2013 में तालिबान के लिए दोहा में एक राजनयिक मिशन स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त किया.xii फिर, अपहरण किए गए एक अमेरिकी सैनिक की रिहाई के लिए 2014 में गुआंतानामो-बे से 5 तालिबानी नेताओं को रिहा किया गया.xiii इसके बाद भी ओबामा के प्रयत्न असफल ही रहे और तालिबान के साथ वार्ता की शुरुआत नहीं हो पाई. 2017 में राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप ने ओबामा के इन प्रयासों को आगे बढ़ाने की कोशिश की. जिसके फलस्वरूप, अब तक अमेरिका और तालिबान के बीच 9 दौर की बातचीतxiv हो चुकी है. हालांकि, फिलहाल इसका कोई हल निकलता नजर नहीं आ रहा है. ऐसे हालातों में संघर्ष विराम असंभव प्रतीत हो रहा है और अफगानिस्तान में दोबारा युद्ध की अनिश्चितता प्रबल हो गई है.
ट्रंप प्रशासन की अफगान नीतियां
ट्रंप ने अपने बहुचर्चित चुनाव अभियान 'मेक अमेरिका ग्रेट अगेन' के दौरान अफगानिस्तान में अमेरिकी युद्ध को एक बड़ी भूल करार दिया था. उन्होंने अमेरिकियों से कहा था कि वह अफगानिस्तान में युद्ध खत्म कर अपने सैनिकों को वापस लाएंगे.xv उन्होंने राष्ट्रपति ओबामा द्वारा 2009 में की गई वापसी योजना की घोषणा पर निशाना साधते हुए उनकी अफगान नीतियों को भी कोसा.xvi ट्रंप ने ओबामा प्रशासन पर बेहिसाब समय, ऊर्जा और पैसे की बर्बादी का आरोप लगाया.xvii उनकी बातों से एक बार उम्मीद जगी कि ट्रंप इस युद्ध को खत्म कर देंगे. इसलिए ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद तालिबान ने कहा था कि अमेरिका को अपनी प्रतिष्ठा, अर्थव्यवस्था और सैनिकों को नुकसान से बचाकर, अफगानिस्तान से अपनी सेनाएं हटा लेनी चाहिए.xviii ट्रंप को दिए इस संदेश में एक तरह से तालिबान ने उनके ही चुनावी भाषणों को आधार बनाया था. बहरहाल, राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप ने तालिबान की इच्छाओं के विपरीत अफगानिस्तान में और सैनिकों की तैनाती पर मुहर लगा दी.xix इसी के साथ उन्होंने युद्ध जारी रखने का साफ संदेश दे दिया.
ट्रंप ने 21 अगस्त 2017 को अफगानिस्तान और दक्षिण एशिया के लिए नई रणनीति की घोषणा करते हुए कहा था कि “आतंकवादी ध्यान से सुन लें, अमेरिका तुमको हराए बिना हार नहीं मानेगा.”xx 2009 में दिए गए ओबामा के भाषणxxi की तरह, ठीक उसी भाषा में ट्रंप ने भी कहा कि “हमारे सैनिक जीतने के लिए लड़ेंगे. अब स्पष्ट रूप से, दुश्मनों पर हमला कर उन्हें मिटाना, अलकायदा को कुचलते हुए तालिबान को अफगानिस्तान पर कब्जा करने से रोकना, और अमेरिका के खिलाफ आतंकी हमलों पर रोक लगाना ही हमारे लिए जीत की परिभाषा होगी.”xxii इस अभियान से प्रतीत हो रहा था कि ट्रंप तालिबान की लड़ाई जारी रखने की इच्छा को पंगु बना कर, उन्हें ये विश्वास दिलाना चाहते हैं कि वह युद्ध के मैदान में उनसे नहीं जीत सकते.xxiii अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने भी इस रणनीति का इस्तेमाल तालिबान पर दबाव बनाने वाले एक हथियार के तौर पर किया था. उन्होंने तालिबान से बातचीत करने का आग्रह करते हुए कहा था कि “तुम यह युद्ध नहीं जीत पाओगे.”xxiv असल में इस रणनीति का मुख्य मकसद तालिबान को बातचीत के लिए मजबूर करनाxxv और सैनिकों की वापसी के रास्तों को तलाशना ही था.xxvi अफगानिस्तान में और सैनिकों की तैनाती के फैसले पर तालिबान ने चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर अमेरिका अपने सैनिकों को वापस नहीं बुलाता, तो अफगानिस्तान इस महाशक्ति के लिए कब्रगाह बन जाएगा.xxvii
अफगानिस्तान में और सैनिकों की तैनाती का आदेश ट्रंप की ‘समग्र संसाधनों के एकीकृत उपयोग’ की नीति के तहत दिया गया था. ट्रंप प्रशासन अफगानिस्तान में राजनीतिक समाधान के लिए इस नीति का उपयोग कर रहा है. इसके लिए राजनयिक, आर्थिक और सैन्य शक्ति उपकरणों का इस्तेमाल किया गया है.xxviii ट्रंप ने अफगान तालिबान को वार्ता की मेज पर लाने के लिए पाकिस्तान पर भी इस नीति का इस्तेमाल किया था.xxix ट्रंप जानते हैं कि पाकिस्तान आतंकवादियों के लिए, खासकर अफगान तालिबान के लिए एक सुरक्षित ठिकाना रहा है.xxx इस कारण उन्होंने अपर्याप्त प्रयासों के लिए पाकिस्तान को लताड़ा और फिर, उसे मिलने वाली वित्तीय मदद पर रोक लगा दी.xxxi हालांकि, और मजबूत प्रयासों के बदले में ट्रंप ने इमरान खान को अमेरिकी सहायता फिर से शुरू करने की पेशकश भी की थी.xxxii इस मामले में पाकिस्तानी पत्रकार एवं शोधकर्ता अदनान आमिर का मानना है कि शांति समझौते में पाकिस्तान को शामिल करने से ट्रंप को कुछ हासिल नहीं होगा. इसके पीछे एक बड़ा कारण यह है कि अफगान लड़ाके पाकिस्तान के इशारों पर चलने के लिए बाध्य नहीं हैं. तालिबान नेता निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं!xxxiii
ट्रंप के भाषणों से झलकता है कि वह अफगानिस्तान से सैनिकों की वापसी चाहते हैं, लेकिन इस मामले में उनकी नीतियां अस्पष्ट हैं. वह ओबामा की तरह अफगानिस्तान से बाहर निकलने की तारीख की घोषणा करने के पक्ष में नहीं हैं. ट्रंप का मानना है कि पहले से सैन्य परिवर्तन की घोषणा नहीं करनी चाहिए, ताकि दुश्मनों को अमेरिकी रणनीति और योजनाओं का पता न लगे. साथ ही, वह व्हाइट हाउस में ऐसे सलाहकारों को रखना चाहते हैं, जो उन्हें अफगानिस्तान पर प्रभावोत्पादक नीतियां सुझाएं, न कि दोबारा से अमेरिका को युद्ध में झोकें. हाल में अफगानिस्तान के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने वाले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन की बर्खास्तगी के साथ ट्रंप ने साफतौर पर यह संकेत दे भी दिया. इससे पहले भी ट्रंप अपने दो सुरक्षा सलाहकारों को हटा चुके हैं.xxxiv ट्रंप, बोल्टन के कई फैसलों से असहमत थे.xxxv बोल्टन ने तालिबान के साथ शांति वार्ता पर आपत्ति जताई थी और समझौते का विरोध किया था.xxxvi एक तरह से बोल्टन ट्रंप की शांति वार्ता की कोशिशों पर पानी फेरते हुए दिख रहे थे.
अमेरिका-तालिबान शांति वार्ता
2007 में तत्कालीन अफगान राष्ट्रपति हामिद करज़ई ने तालिबान के साथ शांति वार्ता की पेशकश की थी, लेकिन तालिबान ने इसे खारिज कर दिया.xxxvii इसके बाद भी वार्ता के कई प्रयास किए गए, फरवरी 2018 में अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी ने तालिबान को एक वैध राजनीतिक दल के रूप में मान्यता देने की पेशकश के साथ बिना शर्त शांति वार्ता के लिए आमंत्रित किया था.xxxviii तब भी तालिबान अफगान सरकार के साथ बातचीत के लिए राजी नहीं हुआ. तालिबान का कहना है कि काबुल में बैठी सरकार अमेरिका की कठपुतली है, इसलिए वह सीधे अमेरिकी सरकार से बात करने पर जोर देता रहा है.xxxix इस मामले में अमेरिकी सरकार कहती रही है कि जो भी वार्ता होगी वह ‘अफगान नेतृत्व वाली, अफगान स्वामित्व वाली और अफगान नियंत्रित’ होगी.xl बावजूद इसके, जुलाई 2018 में ट्रंप प्रशासन ने अपने शीर्ष राजनयिकों को तालिबान से बातचीत शुरू करने का आदेश दे दिया.xli विशेषज्ञ कहते हैं कि एक तरह से ट्रंप ने तालिबान की इस शर्त को मान लिया था कि वार्ता में अफगान सरकार को शामिल नहीं करना है.xlii इसके बाद, बातचीत की संभावनाओं को तलाशने के लिए अमेरिकी अधिकारियों ने कतरxliii से लेकर काबुलxliv तक की यात्रा की. शांति वार्ता और सैनिक वापसी के बदले में अमेरिका की तीन शर्तें रहीं हैं, जिन पर वह तालिबान का आश्वासन चाहता है: पहला, अफगानिस्तान का इस्तेमाल पश्चिम के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों के रूप में नहीं किया जाएगा; दूसरा, लोगों का कत्लेआम बंद हो; और तीसरा, तालिबान अफगान संविधान का पालन करे और आतंकवादियों के साथ अपने रिश्ते खत्म करे.xlv अमेरिका का मानना है कि शांति प्रक्रिया पर अंतिम फैसला केवल अफगान लोगों को ही लेना है.xlvi अफगान लोगों में आम राय बनाने के लिए ही शायद, ट्रंप ने अफगान मामलों में लंबा अनुभव रखने वाले पश्तून मूल के जलमय खलीलजाद को विशेष दूत बनाया था. खलीलजाद अफगानिस्तान और इराक में अमेरिकी राजदूत भी रहे हैं.xlvii
12 अक्टूबर 2018 को अमेरिका और तालिबान के बीच कतर में शांति वार्ता की शुरुआत हुई थी.xlviii अब तक इस वार्ता के 9 दौर पूरे हो चुके हैं.xlix बातचीत के बाद प्रमुख वार्ताकार खलीलजाद ने घोषणा की थी कि वह तालिबान के साथ एक समझौते पर पहुंच गए हैं.l ऐसे में समझौते पर सहमति की उम्मीद की जा रही थी.li प्रस्तावित समझौते के तहत शर्त थी कि हस्ताक्षर करने के 135 दिनों के भीतर अमेरिका अपने 5,000 सैनिकों को वापस बुला लेगा. बदले में तालिबान ने वादा किया था कि वह अफगानिस्तान को वैश्विक आतंकवादी हमलों के लिए लॉन्च पैड के रूप में इस्तेमाल होने नहीं देगा और अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद गनी सरकार के साथ अफगानिस्तान के राजनीतिक भविष्य पर बात करेगा.lii हालांकि, समझौते में अलकायदा को हराने के लिए अमेरिकी फौजों के अफगानिस्तान में बने रहने, वहाँ युद्ध की समाप्ति और अमेरिकी समर्थक अफगान सरकार की कोई गारंटी नहीं थी. ऐसे में इस मसौदे पर न तो अफगानिस्तान में और न हीं अमेरिका में एक राय बनती दिखी.liii अफगानिस्तान पर काम कर चुके पूर्व अमेरिकी राजनयिकों के एक धड़े ने शांति समझौते को ट्रंप की जल्दबाजी करार दे दिया. यह अफगानिस्तान में शांति स्थापना, अलकायदा के साथ तालिबान के संबंध विच्छेदन को शक की निगाह से देखते हैं और दोबारा से अफगानिस्तान में गृह युद्ध की संभावना जता रहे हैं.liv सीआईए और पेंटागन के भी कुछ अधिकारी समझौते की शर्तों से संतुष्ट नहीं थे.lv वहीं, गनी प्रशासन भी इस मसौदे पर चिंतित दिखा और उसने इसे यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि प्रस्तावित समझौता इस बात का आश्वासन नहीं देता कि अमेरिकी सैनिकों के जाने के बाद तालिबान अपना वादा निभाएंगे.lvi
विशेषज्ञों का कहना है कि तालिबान के साथ प्रत्येक वार्ता के पहले और बाद में खलीलजाद ने काबुल का विश्वास जीतने की कोशिश की थी, जबकि वार्ता में वह अमेरिका का प्रतिनिधित्व करते थे. ऐसे में अफगान सरकार अमेरिका पर पूरा भरोसा करके नहीं चल सकती थी. काबुल ने तालिबान के ऊपर दबाव बनाया था कि वह उनसे बात करे, क्योंकि वह मानते थे कि खलीलजाद अफगान सरकार के प्रतिनिधि नहीं हैं.lvii गनी अमेरिका की इस बात पर भी तैयार नहीं दिखे कि अफगानिस्तान की जेलों में बंद तालिबान लड़ाकों को छोड़ दिया जाए. उनका कहना था कि ऐसा तभी होगा जब तालिबान पूर्ण संघर्ष विराम पर राजी होगा.lviii ऐसे में तमाम असहमतियों के कारण माइक पोंपियो इस मसौदे पर हस्ताक्षर नहीं कर पाए थे.lix परिणामस्वरूप, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने इस शांति वार्ता को खत्म करने की घोषणा कर दी. शांति वार्ता को ‘दफन’ करने से पहले ट्रंप ने तालिबान और अफगान नेताओं के साथ कैंप डेविड में होने वाली एक गुप्त बैठक को भी रद्द कर दिया था.lx हालांकि, बैठक में शामिल होने के लिए अफगान तालिबान चाहता था कि पहले अमेरिका दोहा समझौते पर हस्ताक्षर करे.lxi साथ ही, तालिबान नेता कैंप डेविड में अफगान सरकार के साथ वार्ता के लिए भी राजी नहीं थे.lxii ऐसे में इस बात की पूरी संभावना थी कि ट्रंप की यह कोशिश बुरी तरह विफल हो जाती. शायद इसलिए ट्रंप ने इस गुप्त बैठक को रद्द करना ही बेहतर समझा. हालांकि, ट्रंप ने काबुल में तालिबानी हमले को इसके पीछे का कारण बताया था, जिसमें एक अमेरिकी सैनिक की मौत हो गई थी.lxiii
इस शांति वार्ता के खात्मे के साथ अफगान सरकार और तालिबान के बीच स्थायी युद्ध विराम और सरकार में हिस्सेदारी को लेकर होने वाला बातचीत का दूसरा चरण खतरे में पड़ गया है.lxiv हालांकि, अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने शांति समझौते की उम्मीदों को अभी भी जिंदा रखा है.lxv वहीं, तालिबान का कहना है कि अमेरिका से बातचीत के दरवाजे अभी भी खुले हैं.lxvi इससे पहले, तालिबान नेताओं ने शांति वार्ता के हालिया घटनाक्रम पर चर्चा करने के लिए मॉस्को का दौरा किया था. जहां रूस ने अमेरिका और तालिबान के बीच शांति वार्ता दोबारा से शुरू करने पर जोर दिया है.lxvii वहीं, तालिबान प्रतिनिधिमंडल ने शांति वार्ता को लेकर नवीनतम घटनाओं पर चर्चा करने के लिए ईरानlxviii और चीनlxix का भी दौरा किया है.
अफगानिस्तान पर भारत का नजरिया
अब तक अफगान शांति प्रक्रिया में भारत को शामिल नहीं किया गया है, जबकि भारत इस क्षेत्र में बड़ी भूमिका में मौजूद है, इस बात को खुद ट्रंप ने भी स्वीकार किया है. हालांकि वह चाहते हैं कि भारत भी यहाँ लड़ाई लड़े.lxx तालिबान के सत्ता से हटने के बाद से ही काबुल के साथ नई दिल्ली के करीबी संबंध रहे हैं. भारत ने अफगानिस्तान में शांति के लिए अफगान नेतृत्व वाली, अफगान स्वामित्व वाली और अफगान नियंत्रित वार्ता का समर्थन किया है.lxxi अफगानिस्तान में क्षमता निर्माण के साथ संसद भवन, स्कूल-कॉलेज से लेकर विश्वविद्यालय, सड़क, विद्युत लाइन, क्रिकेट स्टेडियम जैसी ढांचागत परियोजनाओं के निर्माण में भारत ने अरबों डॉलर का निवेश किया है.lxxii अफगान-भारत मैत्री बांधlxxiii दोनों देशों के बीच संबंधों को और भी गहरा बनाता है. इसके अलावा, भारत अफगानिस्तान के 31 प्रांतों में 116 ‘उच्च-प्रभाव वाली सामुदायिक विकास परियोजनाओं’lxxiv पर भी काम कर रहा है. इन परियोजनाओं पर सितंबर 2017 में सहमति बनी थी, जिसके अंतर्गत भारत अफगानिस्तान में पानी, कृषि, सिंचाई, नवीकरणीय ऊर्जा, सूक्ष्म जल विद्युत जैसी परियोजनाओं पर 2 बिलियन डॉलर की बड़ी रकम खर्च करेगा. इससे अफगानिस्तान में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिलेगा. वहीं, भारत अफगान छात्रों को छात्रवृत्ति, सेना, राजनयिकों और चुनाव अधिकारियों को प्रशिक्षण प्रदान करता रहा है.
भारत सरकार द्वारा किए गए कार्यों और प्रयासों ने अफगान नागरिकों के बीच भारत के लिए एक सकारात्मक माहौल तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इसने अफगानिस्तान को एक मजबूत लोकतंत्र बनाने के लिए अफगान लोगों में सक्रिय भागीदारी को भी प्रोत्साहित किया है. अफगान लोग दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र से प्रभावित हैं और अपने देश में भी भारत जैसी लोकतांत्रिक व्यवस्था चाहते हैं.lxxv ऐसे में अमेरिकी सैनिकों की वापसी अफगानिस्तान में भारत के प्रयासों और कार्यों को प्रभावित कर सकती है. इससे अफगान राजनीति में तालिबान के पहले से ज्यादा ताकतवर हो जाने का खतरा भी पैदा हो सकता है.lxxvi विशेषज्ञों का कहना है कि इससे उन्हें कट्टर इस्लामिक एजेंडे को फैलाने में बड़ी आसानी होगी, जिससे अफगानिस्तान के साथ-साथ आसपास का समूचा क्षेत्र उग्र इस्लामी ताकतों की चपेट में आ सकता है.lxxvii जिसका भारत पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका है.
निष्कर्ष
अफगानिस्तान में शांति और वहाँ से अमेरिकी फौजों की वापसी गनी और ट्रंप दोनों के लिए महत्वपूर्ण है.lxxviii एक ओर जहां अफगानिस्तान में इस साल सितंबर के आखिर में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं. वहीं, 2020 के आखिर में अमेरिका में भी राष्ट्रपति चुनाव तय हैं. ऐसे में गनी चाहेंगे कि अफगानिस्तान में शांति का माहौल बने और उनके लिए संपूर्ण अफगानिस्तान राजनीतिक पदार्पण के लिए तैयार रहे. वहीं, ट्रंप के लिए भी यह एक शानदार मौका है कि वह अपने वादे को पूरा कर सैनिकों की वापसी कराएं. ट्रंप अगर ऐसा कर पाते हैं तो संभवत: वह अमेरिकी इतिहास के सबसे लंबे युद्ध को समाप्त कराने वाले एक ‘महान राष्ट्रपति’ के रूप में याद किए जाएंगे. हालांकि, इसके लिए ट्रंप को अपनी विदेश नीति में धार लाने की जरुरत है. विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप की विदेश नीति आक्रामक नहीं है.lxxix उनका प्रशासन अफगान तालिबान के मददगार पाकिस्तान पर पूरी तरह से दबाव बनाने में असफल रहा है. ऐसा प्रतीत होता है कि उसने पाकिस्तानी छद्दम प्रयासों के आगे घुटने टेक दिए हैं. वहीं, नई दिल्ली और काबुल के घनिष्ट संबंधों को देखते हुए भी इस्लामाबाद यह नहीं चाहेगा कि अफगानिस्तान में शांति कायम हो. पाकिस्तान के सामरिक हित इसी में हैं कि अफगानिस्तान में अस्थिरता रहे और तालिबान अमेरिका के साथ किसी समझौते पर न पहुंचे. ऐसे में ट्रंप प्रशासन को इस्लामाबाद पर नकेल कसनी होगी और दुनिया को यह दिखाना होगा कि आतंकवाद के खिलाफ उसकी ‘नीतियों में दोहरापन’lxxx नहीं है.
तालिबान के साथ वार्ता रद्द करने के बाद अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी का वादा अब दूर की कौड़ी प्रतीत हो रहा है. अमेरिका के लिए अब स्थिति गले में फंसी हड्डी की तरह हो गई है. इस परिस्थिति को कुछ विशेषज्ञों ने स्टेलमेटlxxxi करार दिया है. ट्रंप जब कहते हैं कि वह इस धरती से अफगानिस्तान का नामो-निशान मिटाने का माद्दा रखते हैं,lxxxii तो निश्चित तौर पर यह उनकी कुंठा को प्रदर्शित करता है. ट्रंप ने वर्ष 2019 की पहली मंत्रिमंडल की बैठक में कहा थाlxxxiii कि अब अमेरिका के लिए अफगानिस्तान में कुछ शेष नहीं बचा है, सिवाय पैसों की बर्बादी, सैनिकों की क्षति और आर्थिक नुकसान के. यहाँ एक डर यह भी बना हुआ है कि कहीं अफगानिस्तान अमेरिका के लिए एक और वियतनाम न बन जाए.lxxxiv जैसा कि 9/11 हमले के तीन साल बाद लादेन ने कहाlxxxv था कि "हमने पिछले 10 सालों में मुजाहिद्दीन के साथ मिलकर रूस की ऐसी कमर तोड़ी है कि वह कंगाल हो गया और आखिरकार खुद ही हार मानकर पीछे हट गया. अब हम अमेरिका के साथ भी यही रणनीति अपना रहे हैं. अमेरिका को इससे जान-माल के साथ आर्थिक और राजनीतिक नुकसान भी होगा." विशेषज्ञों का मानना हैlxxxvi कि तालिबान ने सोवियत संघ के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी है, और पिछले 18 सालों से अमेरिका से सिर्फ इसलिए नहीं लड़ रहा है ताकि उसके साथ एक समझौता कर सके! बल्कि यह लड़ाई सत्ता की है, जो 2001 में उससे छीन ली गई थी.
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* लेखक, शोध प्रशिक्षु, आईसीडब्ल्यूए, नई दिल्ली
अस्वीकरण: व्यक्त विचार और मत शोध प्रशिक्षु के हैं और परिषद या इसके किसी भी पदाधिकारी की राय को प्रतिबिंबित नहीं करते।
i Address to a Joint Session of Congress and the American People, Office of the Press Secretary, The White House, Washington, D.C. September 20, 2001,
https://georgewbush-whitehouse.archives.gov/news/releases/2001/09/20010920-8.html
ii Sumit Kumar, “Af: US withdrawal, its implications,” Deccan Herald, 21 February 2019,
www.deccanherald.com/opinion/perspective/af-us-withdrawal-its-719475.html
iii Remarks by President Trump on the Strategy in Afghanistan and South Asia, NATIONAL SECURITY & DEFENSE, The White House, Washington, D.C. 21 August 2017 https://www.whitehouse.gov/briefings-statements/remarks-president-trump-strategy-afghanistan-south-asia/
iv “Address to a Joint Session of Congress and the American People,” Office of the Press Secretary, The White House, Washington, D.C. 20 September 2001,
https://georgewbush-whitehouse.archives.gov/news/releases/2001/09/20010920-8.html
v Richard Fontaine, “Trump Might Make a Big Mistake in Afghanistan,” The Atlantic, 2 August 2019
https://www.theatlantic.com/ideas/archive/2019/08/trump-big-mistake-afghanistan/595306/
vi “Trump Wants All Troops Out Of Afghanistan By 2020 U.S. Election,” Radio Free Europe/Radio Liberty, 03 August 2019
https://www.rferl.org/a/trump-wants-us-troops-out-afghanistan-2020-us-election/30090167.html
vii “Trump Says He 'called off' Peace Talks With Taliban Over Attack,” AL JAZEERA, 8 September 2019,
www.aljazeera.com/news/2019/09/trump-called-peace-talks-taliban-attack-190908014028311.html
viii KIMBERLY AMADEO, “Afghanistan War Cost, Timeline, and Economic Impact,” The Ongoing Costs of the Afghanistan War, The Balance, Dotdash Publishing, 15 June 2019,
https://www.thebalance.com/cost-of-afghanistan-war-timeline-economic-impact-4122493
ix Congressional Research Service, Afghanistan: Background and U.S. Policy In Brief by Clayton Thomas, R45122, 01 August 2019, https://fas.org/sgp/crs/row/R45122.pdf
x Frud Bezhan, "A Decade In The Making: U.S.-Taliban Peace Deal Appears Within Reach," Radio Free Europe/Radio Liberty, 14 August 2019,
xi Abubakar Siddique, "Are The Taliban Terrorists?," Radio Free Europe/Radio Liberty, 05 February 2015, https://gandhara.rferl.org/a/afghanistan-are-taliban-terrorists/26832355.html
xii Sumit Kumar, “Af: US withdrawal, its implications,” Deccan Herald, 21 February 2019,
www.deccanherald.com/opinion/perspective/af-us-withdrawal-its-719475.html
xiii KATHY GANNON, "Taliban: 5 freed from US military prison now in Qatar office," FOX News Network, 30 October, https://www.foxnews.com/world/taliban-5-freed-from-us-military-prison-now-in-qatar-office
xiv "Astonishing: Taliban responds to Trump's peace talks withdrawal," Al Jazeera, 13 September 2019, https://www.aljazeera.com/programmes/talktojazeera/2019/09/taliban-respond-trump-peace-talks-withdrawal-190912103207588.html
xv Jeremy Diamond, "Donald Trump: Afghanistan war a 'mistake,' but troops need to stay," CNN, 06 October 2015, https://edition.cnn.com/2015/10/06/politics/donald-trump-afghanistan-war-mistake-troops-stay/index.html
xvi EMRAN FEROZ, "Trump Inherits the Good War," The Atlantic, 16 December 2016,
www.theatlantic.com/international/archive/2016/12/trump-afghanistan-ghani-taliban-isis/509843/
xvii AARON O’CONNELL, "WHAT WILL BE THE FATE OF TRUMP’S AFGHAN CAMPAIGN?," War on the Rocks Media, 18 JANUARY 2019,
https://warontherocks.com/2019/01/what-will-be-the-fate-of-trumps-afghan-campaign/
xviii "Afghan Taliban react on Donald Trump’s election as US president," The Khaama Press News Agency, 09 November 2016,
https://www.khaama.com/afghan-taliban-react-on-donald-trumps-election-as-us-president-02244/
xix Sumit Kumar, “Af: US withdrawal, its implications,” Deccan Herald, 21 February 2019,
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