एम: सबसे पहले, मैं आप सभी से अनुरोध करता हूं कि अपने-अपने मोबाइल फोन साइलेंट मोड पर कर दें।
महानुभाव, यहां मौजूद विशिष्ट अतिथिगण, देवियो और सज्जनो, सभी को शुभ संध्या। भारतीय वैश्विक परिषद, नई दिल्ली की ओर से, 'थाईलैंड एवं भारत रणनीतिक भागीदार कैसे बन सकते हैं' विषय पर विशेष व्याख्यान हेतु आप सभी का स्वागत करते हुए बेहद खुशी हो रही है। यह पूरा कार्यक्रम इस तरह से होगा: राजदूत विजय ठाकुर सिंह, महानिदेशक, आईसीडब्ल्यूए द्वारा शुरुआती टिप्पणी की जाएगी, जो इस सत्र की अध्यक्षता भी करेंगे। इसके पश्चात थाईलैंड के विदेश मामलों के उप मंत्री महामहिम श्री सिहासाक फुआंगकेटकेव व्याख्यान देंगे। महामहिम इस व्याख्यान के बाद कुछ सवालों के जवाब देने के लिए भी सहमत हैं। सवाल-जवाबों के सत्र का संचालन अध्यक्ष, राजदूत विजय ठाकुर सिंह द्वारा किया जाएगा।
इसके साथ, क्या मैं अब राजदूत विजय ठाकुर सिंह, महानिदेशक आईसीडब्ल्यूए को अपनी प्रारंभिक टिप्पणी देने के लिए आमंत्रित करता हूं। धन्यवाद।
विजय ठाकुर सिंह: थाईलैंड के विदेश मामलों के उप मंत्री महामहिम श्री सिहासाक फुआंगकेटकेव जी को शुभ संध्या, नमस्कार। हमारे साथ आज यहां थाईलैंड की उप स्थायी सचिव सुश्री बुसादी सांतिपिटक्स, दिल्ली में थाईलैंड के मिशन के उप प्रमुख एवं थाईलैंड के प्रतिनिधिमंडल, मिशन के प्रमुख और डिप्लोमैटिक कॉर्प के सदस्य भी हैं और साथ ही मेरे वरिष्ठ सहयोगियोें में राजदूत, सुरेश गोयल, तथा शिक्षा जगत के सदस्य, मीडिया के सदस्य और छात्र भी मौजूद हैं।
थाईलैंड के विदेश मामलों के उप मंत्री के विशेष व्याख्यान, थाईलैंड एवं भारत रणनीतिक भागीदार कैसे बन सकते हैं? की मेजबानी करना भारतीय वैश्विक परिषद के लिए सौभाग्य की बात है। उप मंत्री, सिहासक ने 2011 से 2015 तक विदेश मंत्रालय में स्थायी सचिव का कार्य किया। इसके पश्चात, वह जापान में थाईलैंड के राजदूत रहे, और फिर बाद में फ्रांस में राजदूत के रूप में कार्य किया। इससे पहले, वह जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र एवं अंतरराष्ट्रीय संगठनों में थाईलैंड के स्थायी प्रतिनिधि थे। महामहिम, उप मंत्री सिहासक, इस वर्ष की शुरुआत में, जनवरी में भारत आए थे। और मुझे पूरा विश्वास है कि इस दौरान उन्होंने थाईलैंड के प्रति भारत में मौजूद सद्भावना को अवश्य जाना होगा। ऐसा हमारे ऐतिहासिक और सभ्यतागत संबंधों और इस बात के कारण है कि हमारे मधुर एवं मजबूत संबंध स्थिर रहे हैं और लगातार मजबूत बने हुए हैं, भले ही हम इस वक्त एक बदलती दुनिया में रह रहे हैं, जहां कई बदलाव हो रहे हैं।
जैसा कि हम जानते हैं, विश्व स्तर पर, आर्थिक विकास का केंद्र पश्चिम से पूर्व की ओर स्थानांतरित हो गया है। आज दुनिया में नए शक्ति केंद्र बन रहे हैं। नए बदलावों के साथ एक बहुध्रुवीय दुनिया उभर रही है। इस माहौल में, भारत और थाईलैंड एक मजबूत द्विपक्षीय साझेदारी हेतु मिलकर कैसे काम कर सकते हैं? सबसे पहला, यह याद रखना अच्छा होगा कि भारत और थाईलैंड समुद्री सीमाएँ हैं। इसलिए, क्षेत्र में शांति एवं स्थिरता में उनकी रुचि और भागीदारी है, और वे संचार के सुरक्षित समुद्री मार्गों के महत्व को भी समझते हैं। अमेरिका-चीन के बीच चल रहे विवाद और दक्षिण चीन सागर में तनाव का प्रभाव हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साझा भौगोलिक क्षेत्र में स्थित सभी देशों पर पड़ रहा है।
भारत की इंडो-पैसिफिक महासागर पहल और इंडो-पैसिफिक पर आसियान का दृष्टिकोण जैसी पहल समुद्री क्षेत्र के साथ-साथ इस क्षेत्र तथा अन्य क्षेत्रों में सहयोग हेतु कई अवसर प्रदान करती हैं। दूसरा, दोनों देशों की विदेश नीति दृष्टिकोण, भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी और थाईलैंड की लुक वेस्ट पॉलिसी, हमारी द्विपक्षीय बाहरी प्राथमिकताओं में आवश्यक समर्थन प्रदान करती है। भारत अपनी एक्ट ईस्ट पॉलिसी में थाईलैंड को महत्वपूर्ण मानता है और इसे आसियान समुदाय के भीतर एक मजबूत मित्र मानता है।
तीसरा, भारत और थाईलैंड अन्य क्षेत्रीय मंचों पर भी मिलकर काम करते हैं, चाहे वह बिम्सटेक हो, चाहे वह मेकांग-गंगा सहयोग हो, आईओआरए, एसीएमईएक्स (पीएच 0:04:45), और आईएमटी-जीटी हो, जो इंडोनेशिया- मलेशिया-थाईलैंड ग्रोथ कॉरिडोर है। यह वो मंच हैं जिनमें हम एक-दूसरे के साथ जुड़ते हैं। थाईलैंड वर्तमान में बिम्सटेक की अध्यक्षता कर रहा है और इस वर्ष अगले बिम्सटेक शिखर सम्मेलन का आयोजन कर रहा है। पिछले साल, हम जी20 के अध्यक्ष थे और हमने वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन नामक पहला जनवरी 2023 में और दूसरा नवंबर 2024 में दो शिखर सम्मेलन आयोजित किए थे। थाईलैंड ने इन दोनों शिखर सम्मेलनों में हिस्सा लिया, जिससे यह समझा जा सकता है कि हम ग्लोबल साउथ में भागीदार के रूप में मिलकर काम कर रहे हैं। बहुपक्षीय संस्थाएँ आज गैर-प्रतिनिधित्वात्मक एवं अप्रभावी हो चुकी हैं। सुधारित बहुपक्षवाद महत्वपूर्ण है, भले ही हम क्षेत्रीय मंचों पर सहयोग कर रहे हैं। मुझे उम्मीद है कि हम सुधारित बहुपक्षवाद के एजेंडे पर भी मिलकर काम कर सकते हैं।
अंत में, मैं कहना चाहता हूं कि यह सम्मान की बात है कि प्रधानमंत्री श्रेथा थाविसिन ने 26 जनवरी 2024 को बैंकॉक में भारतीय दूतावास द्वारा आयोजित गणतंत्र दिवस समारोह में हिस्सा लिया। यह बेहद सम्मान की बात थी, और यह दीर्घकालिक और विशेष संबंधों के प्रति राजनीतिक प्रतिबद्धता को दर्शाता है। महामहिम, वर्तमान में थाईलैंड के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री डॉ. पर्णप्री बहिद्ध-नुकारा की भारत यात्रा, साथ ही, महामहिम, आज यहां आपकी उपस्थिति इस बात को रेखांकित करती है कि भारत और थाईलैंड के बीच साझेदारी बढ़ रही है।
इन शब्दों के साथ, मैं अब थाईलैंड के विदेश मामलों के उप मंत्री महामहिम श्री सिहासाक फुआंगकेटकेव को 'थाईलैंड एवं भारत रणनीतिक भागीदार कैसे बन सकते हैं' विषय पर विशेष व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित करता हूं। महामहिम, अब आप आइए।
सिहासाक फुआंगकेटकेव: धन्यवाद, राजदूत सिंह। यहां उपस्थित होना और इतने विशिष्ट श्रोताओं के सामने बोलना मेरे लिए बहुत खुशी की बात है। आज हमारे साथ यहां राजनयिक, बुद्धिजीवी, छात्र और आम जनता के सदस्य मौजूद हैं। जब मैं ड्राइववे में गया, तो मैंने अपनी दो बहुत बड़ी तस्वीरें देखीं, और मैंने खुद से कहा, सिहासाक, आज तुम्हारे लिए एक बड़ा दिन है। इसलिए मुझे आशा है कि मेरी टिप्पणियाँ मुझे दिए गए निमंत्रण को उचित ठहराएंगी।
अपनी प्रारंभिक टिप्पणियों में, मुझे लगता है कि आपका यह कहना सही था कि हमारी साझेदारी को दुनिया में हो रहे जबरदस्त, गहन बदलावों के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। यह सिर्फ हमारे दोनों देशों के बीच की गतिशीलता नहीं है, मुझे लगता है कि यह अंतरराष्ट्रीय प्रणाली में व्यापक गतिशीलता है जो हमारी साझेदारी को आगे बढ़ा रही है। लेकिन यहां आकर, मुझे पहली बार भारत और नई दिल्ली की यात्रा की याद आ रही है। मैं हमारे पूर्व दिवंगत प्रधानमंत्री, जनरल चतीचाई चुन्हावन का निजी सचिव था और उनके साथ आया था। वास्तव में, वह भारत का दौरा करने वाले पहले थाई प्रधान मंत्री थे। लेकिन सच कहूँ तो, उस समय हमारे रिश्ते आज से बहुत अलग थे। यह दुनिया उस दुनिया से बहुत अलग थी जिसमें हम अभी रह रहे हैं, और सच तो यह था कि शीत युद्ध के कारण हमारे रिश्ते में कुछ दूरी आ गई थी।
इसलिए बैंकॉक की सोच नई दिल्ली की सोच जैसी नहीं थी। लेकिन निस्संदेह, शीत युद्ध की समाप्ति के बाद इसमें बहुत बदलाव आया है। और मुझे लगता है कि हमने संबंधों में काफी सुधार हुआ है। शीत युद्ध की समाप्ति के कारण हमने विदेश नीति में बहुत अधिक बदलाव देखा गया है। और साथ ही, मुझे लगता है कि इसका भारत के भीतर बदलावों, भारत में हुए सुधारों, भारत के खुलेपन से सीधा संबंध है। और यह मेरे क्षेत्र में बदलावों, पूर्वी एशिया में बदलावों से भी जुड़ा हुआ है। और इससे भारत और आसियान के बीच और भारत का पूर्वी एशिया के साथ घनिष्ठ जुड़ाव हुआ है। और मुझे लगता है कि इसकी शुरुआत 1991 में हुई थी जब आपके उस समय के प्रधानमंत्री, प्रधान मंत्री राव ने लुक ईस्ट पॉलिसी की घोषणा की थी। और उसके बाद, मुझे लगता है कि हमने भारत को इस क्षेत्र के करीब बढ़ते देखा है। भारत 1995 में एक पूर्ण संवाद भागीदार बन गया। और फिर हमने अपने संवाद संबंधों को वर्ष 2002 में शिखर स्तर तक बढ़ाया था, मुझे लगता है, जब मैंने यहां अपने डिप्टी पर्म सेक्रेटरी से पूछा था - तो यह, 2005 की बात है। और तब वर्ष 2012 महत्वपूर्ण था, क्योंकि भारत हमारा रणनीतिक भागीदार बन गया। और 2014, यदि आपको याद होगा, प्रधानमंत्री मोदी ने - लुक ईस्ट को एक्ट ईस्ट पॉलिसी में जारी रखने की घोषणा की थी। और 2002 में, भारत काफी व्यापक बन गया - हमने भारत और आसियान के बीच एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी की। तो यह संबंधों का विकास है। और क्षेत्र के विकास, व्यापक गतिशीलता का थाईलैंड और भारत के बीच साझेदारी पर बहुत लाभकारी प्रभाव पड़ा है।
लेकिन आगे मुझे पूरा विश्वास है कि यह साझेदारी निश्चित रूप से और मजबूत होगी। और यह साझेदारी केवल द्विपक्षीय नहीं होगी, यह क्षेत्रीय साझेदारी भी होगी। और मुझे वैश्विक साझेदारी की भी उम्मीद है। मुझे विश्वास है कि हमारी साझेदारी बढ़ेगी और यह रणनीतिक साझेदारी बन जाएगी, इसकी वजह यह है कि अंतरराष्ट्रीय प्रणाली में यह बहुत गहरा विकास, जिसे आपने देखा है, वह इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का उद्भव है।
जब मैं 40 साल पहले विदेश मंत्रालय में नियुक्त हुआ था, तब इंडो-पैसिफिक जैसा कोई शब्द नहीं था। हम केवल दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और उत्तर पूर्व एशिया की बात करते थे। और फिर जब पूर्वी एशिया की अर्थव्यवस्थाएं तेजी से बढ़ने लगीं, तो हम पूर्वी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं की बात करने लगे। और फिर संयुक्त राज्य अमेरिका पूर्वी एशिया की उभरती अर्थव्यवस्थाओं का हिस्सा बनना चाहता था। हमारा सहयोग प्रशांत क्षेत्र के दोनों ओर तक फैला हुआ था। इसलिए हमारे बीच एशिया-प्रशांत सहयोग था। और अब जो शब्द हम अक्सर सुनते हैं, वह इंडो-पैसिफिक है। और इंडो-पैसिफिक का हमारी साझेदारी पर, वर्तमान और भविष्य में, बहुत महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा।
लेकिन इंडो-पैसिफिक क्या है? मैं नहीं मानता कि यह कोई भौगोलिक क्षेत्र है। मुझे लगता है कि वास्तव में यह एक भू-राजनीतिक, भू-अर्थव्यवस्था का सृजन है। यह क्या दर्शाता है? यह दुनिया में हुए गहन परिवर्तनकारी बदलावों को दर्शाता है। आपने अपनी टिप्पणियों में इनमें से कुछ बदलावों का उल्लेख किया है। सबसे पहला, पश्चिम से पूर्व की ओर शक्ति संतुलन में बदलाव। और अब हम सब इस एशियाई सदी के बारे में बात करते हैं। हम एशियाई सदी में हैं, लेकिन क्या हम एशियाई सदी को कायम रख पाएंगे? यह आने वाली चुनौतियों का सामना करने की हमारी क्षमता पर निर्भर करता है। लेकिन इंडो-पैसिफिक समुदाय, मेरा मतलब है कि यह अब एक समुदाय नहीं है, शायद एक स्मॉल C वाला समुदाय है, और मुझे लगता है कि दो चीजें बहुत गहन विकास को दर्शाती हैं। पहला, चीन का उदय। दूसरा, भारत का उत्थान।
और, आप जानते हैं, आजकल भारत के उत्थान की बात करना बहुत फैशनेबल हो गया है। आप जानते हैं, आपके वर्तमान विदेश मंत्री के तहत, लोग भारत की बढ़ती भूमिका, भारत के बढ़ते प्रभाव एवं उस उल्लेखनीय तरीके की बात करते हैं जिस तरह से भारत विदेश नीति के अपने विशेष ब्रांड, को ऐसा ब्रांड बनाने में सफल रहा है जो स्वतंत्र है लेकिन फिर भी रचनात्मक है, ऐसा ब्रांड जो हमारे सामने बढ़ती भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के बीच भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को बरकरार रखता है।
और मुझे लगता है कि इंडो-पैसिफिक शब्द परिवहन के महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों, संचार के समुद्री मार्गों के संदर्भ में दो महासागरों के बीच संबंधों को भी दर्शाता है। और, तो जो बदलाव हुआ है, वह यह है कि हिंद महासागर और प्रशांत महासागर एक रणनीतिक स्थान, एक रणनीतिक डोमेन बन गए हैं। और इसलिए नेविगेशन की स्वतंत्रता, समुद्री मार्गों की सुरक्षा और समुद्री सुरक्षा इंडो-पैसिफिक में हम सभी के लिए महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। और अब हमारे पास इंडो-पैसिफिक है जो आर्थिक महत्व एवं रणनीतिक महत्व बन रहा है। और इसका वास्तव में हमारी साझेदारी की दिशा पर बहुत महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
और मैं यह बताना भूल गया कि हमारी साझेदारी एक अन्य महत्वपूर्ण विकास से भी निर्धारित होगी, वह है आसियान का उदय, आसियान के 10 देश। अब हम संयुक्त रूप से दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं। बेशक, अकेले भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। हम उम्मीद कर रहे हैं कि अगर सब कुछ सही रहा तो वर्ष 2030 तक हम दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएंगे।
और हमें खुद पर गर्व भी है - मैं कुछ दिन पहले जर्मनी में था, और मैंने अपने जर्मन सहयोगियों से कहा कि, आप जानते हैं, हम खुद को यूरोपीय संघ के बाद दूसरा सबसे सफल क्षेत्रीय संगठन मानते हैं, लेकिन हम कभी भी यूरोपीय संघ नहीं बन पाएंगे। मुझे नहीं लगता कि हम यूरोपीय संघ बनने की आकांक्षा रखते हैं, क्योंकि हम कोई सुपरनैशनल संगठन नहीं हैं। हम संप्रभु राष्ट्रों का एक संघ हैं, जो अधिक एकीकृत हो रहे हैं, अपनी एकता, एकजुटता एवं केंद्रीयता को मजबूत करने हेतु कड़ी मेहनत कर रहे हैं, जो अब क्षेत्र की भूराजनीति के कारण चुनौतियों का विषय भी है।
इसलिए, हमारे दोनों देशों के बीच साझेदारी के लिए इंडो-पैसिफिक का क्या महत्व है? मेरा मानना है कि अवसर अधिक होना घनिष्ठ साझेदारी के लिए आवश्यक हैं। लेकिन यह इस क्षेत्र में हमारे सामने आने वाली चुनौतियों का मिलकर मुकाबला करने की हमारी क्षमता पर भी निर्भर करता है। जाहिर तौर पर साझेदारी में आर्थिक सहयोग पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, और ऐसा इसलिए है क्योंकि मुझे लगता है कि इंडो-पैसिफिक वैश्विक अर्थव्यवस्था के विकास का केंद्र बना रहेगा। और अभी इंडो-पैसिफिक में दुनिया की 60% आबादी रहती है। इसका वैश्विक विकास में दो-तिहाई योगदान है। और इसलिए हम सब कुछ सही तरीके से करते हैं, तो मुझे यकीन है कि हम अधिक समृद्धि बन पाएंगे। लेकिन मेरे आश्वस्त होने का कारण यह है कि, इंडो-पैसिफिक में हम बहुत ही विविध समूह हैं। हम एक जैसा नहीं हैं। हमारे यहां लोकतंत्र हैं, अर्ध-लोकतंत्र हैं और सत्तावादी शासन हैं। लेकिन हम सभी में एक बात समान है, वह है अपने लोगों की आजीविका में सुधार करना, हमारे लोगों के जीवन को बेहतर बनाना, हमारी विकास-समर्थक, व्यवसाय-समर्थक और बाजार-उन्मुख नीतियों को जारी रखना। और हमें इसे अकेले नहीं करना है, बल्कि अपनी अर्थव्यवस्थाओं को एकीकृत करना है, ताकि हम विकास को और भी बड़ा कर सकें। और इसलिए इस क्षेत्र में, खुद आसियान में, आसियान आर्थिक समुदाय है। हम क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी आरसीईपी के माध्यम से इस क्षेत्र में मुक्त व्यापार को बढ़ावा दे रहे हैं, जो इस समय दुनिया की सबसे बड़ी व्यापारिक व्यवस्था है। बेशक, हम चाहते थे कि भारत इसमें शामिल हो, लेकिन भारत को अपना निर्णय लेना है। लेकिन फिर भी, भारत के तैयार होने पर इसमें शामिल होने के दरवाजे खुले हैं।
और इसके पश्चात, सीपीटीपीपी भी है, और ऐसे संगठनों की लिस्ट लंबी है। यह मूलतः टीपीपी था, जैसा कि आप में से कई लोग जानते होंगे। इसकी शुरुआत संयुक्त राज्य अमेरिका ने की थी। तब राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा, नहीं, उन्हें टीपीपी नहीं चाहिए। इसलिए जापान बचाव के लिए आगे आया और यह व्यापक प्रगतिशील ट्रांस-पैसिफ़िक साझेदारी बन गई। और, निःसंदेह, अमेरिका के वापस हटने का दरवाजा खुला है। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि चीन पहले ही सीपीटीपीपी का सदस्य बनने हेतु आवेदन कर चुका है। और यह क्षेत्र इस मायने में भी खास है कि इसमें कोई व्यापक सुरक्षा आर्किटेक्चर नहीं है। नहीं है। यूरोप में, उनके यहां नाटो है, हेलसिंकी समझौता है। लेकिन हमारे क्षेत्र में, यह आर्किटेक्चर का एक नमूना है। बेशक, आपके यहां आसियान के नेतृत्व वाला आर्किटेक्चर है, जो एआरएफ, आसियान क्षेत्रीय मंच, सबसे बड़ी बहुपक्षीय सुरक्षा वार्ता है। इसके बाद हमारे यहां ईएएस, पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन जैसी संस्थाएं हैं, जिनका भारत काफी हद तक हिस्सा है। और फिर, बीआरआई भी है। जो चीन की आर्थिक एवं सुरक्षा आर्किटेक्चर का संस्करण है, जो बुनियादी ढांचे के विकास को बढ़ावा देता है। और फिर मुक्त एवं खुली इंडो-पैसिफिक रणनीति और फ्री इंडो-पैसिफिक के अन्य संस्करण हैं। और, निस्संदेह, भारत, हिंद प्रशांत महासागर पहल में आपका अपना संस्करण है, जिसका हम स्वागत करते हैं।
और इसके पश्चात क्वाड है, और एयूकेयूएस है, और अब हमारे पास आईपीईएफ है। इसलिए यह क्षेत्रीय संरचनाओं का एक मिश्रण है जिसमें क्षेत्रीय आर्किटेक्चर शामिल है। हमें उम्मीद है कि किसी तरह यह सारा पैचवर्क एक ही दिशा में जाएगा और एक अच्छा रास्ता तैयार करेगा जिस पर हम सभी को गर्व हो सकता है। यानी यह आर्किटेक्चर क्षेत्र की शांति, स्थिरता और समृद्धि को रेखांकित करने में मदद करने वाला होना चाहिए। इसका मतलब यह नहीं है कि यह आसियान द्वारा निर्मित आर्किटेक्चर होनी चाहिए। इसमें अन्य आर्किटेक्चर भी शामिल होने चाहिए, जब तक हम इस क्षेत्र को स्वतंत्र, खुला, समावेशी और नियम-आधारित बनाए रखते हैं। मेरा मानना है यही सबसे महत्वपूर्ण बात है।
और इसलिए, अवसर क्या हैं? बेशक, मैंने आर्थिक साझेदारी के बारे में बात की। मुझे लगता है कि भविष्य में हमें कनेक्टिविटी पर अधिक जोर देना होगा। कनेक्टिविटी, यहाँ मेरे मित्र टीनो दिखाई दे रहे हैं, जो कनेक्टिविटी के बारे में बहुत कुछ लिखते रहे हैं। कनेक्टिविटी से व्यापार अधिक होगा, अधिक निवेश होगा, हमारी आर्थिक साझेदारी बढ़ेगी। थाईलैंड भारत को आसियान और उससे आगे अधिक बेहतर तरीके से जुड़ने हेतु कनेक्टिविटी का पुल प्रदान करने की उम्मीद करता है। एक महत्वपूर्ण परियोजना है जिस पर हम लंबे समय से चर्चा कर रहे हैं, शायद अब 20 साल हो गए हैं। और वह है भारत, म्यांमार एवं थाईलैंड के बीच त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजना। कल हमारे दोनों देशों के बीच संयुक्त आयोग की बैठक होगी। यह हमारे लिए चर्चा करने की एक महत्वपूर्ण परियोजना होगी। हम इस परियोजना में तेजी लाना चाहते हैं। मुझे लगता है कि थाईलैंड और भारत तैयार हैं। लेकिन मुझे लगता है कि म्यांमार में चीजें ठीक होने से पहले हमें थोड़ा इंतजार करना होगा, जिसके बारे में मैं थोड़ी देर बाद बात करूंगा।
और मेरा मानना है कि एक अन्य बहुत महत्वपूर्ण कनेक्टिविटी है समुद्री कनेक्टिविटी। और अब हमें एहसास हो रहा है कि हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी, अंडमान सागर भी हमें एक साथ जोड़ रहे हैं। और इसीलिए बिम्सटेक महत्वपूर्ण है। बिम्सटेक दक्षिण एवं दक्षिण पूर्व एशिया को जोड़ता है। और यह अपरिहार्य है कि जिन दो देशों को बिम्सटेक को आगे बढ़ाना है, वे थाईलैंड और भारत हैं। यही हकीकत है। और हमें इस वर्ष बिम्सटेक शिखर सम्मेलन आयोजित करना है। इसे पिछले साल आयोजित किया जाना चाहिए था, लेकिन हमने इसे इस साल तक के लिए स्थगित कर दिया है। हमने अभी तक कोई तारीख तय नहीं की है, क्योंकि हम इस बारे में गहराई से सोचना चाहते हैं कि बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में क्या परिणाम होने चाहिए। जब हमारे नेता एक साथ होते हैं, तो हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे कुछ सार्थक मुद्दों पर बात करें। और मुझे लगता है कि बिम्सटेक और भी बहुत कुछ हासिल कर सकता है, खासकर कनेक्टिविटी के मामले में और हमने बिम्सटेक देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौते के बारे में भी काफी चर्चा की।
एक अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्र जहां मुझे लगता है कि हमें साथ मिलकर काम करना चाहिए, वह है मेकांग उप-क्षेत्र का विकास। मुझे लगता है कि मेकांग उप-क्षेत्र आसियान हेतु महत्वपूर्ण है, क्योंकि मेकांग देश, थाईलैंड को छोड़कर, विकास के निचले स्तर पर हैं। इसलिए हमारे लिए विकास अंतर को पाटना महत्वपूर्ण है। लेकिन भारत के लिए, यह मेकांग-गंगा पहल के माध्यम से मेकांग उप-क्षेत्र सहयोग का भी समर्थन करता है, जिसका नेतृत्व भारत कर रहा है, जो भारत को मुख्य भूमि दक्षिण पूर्व एशिया से भी जोड़ेगा। और मुझे लगता है कि यह भारत के लिए भी महत्वपूर्ण आर्थिक प्रोत्साहन होना चाहिए। इसलिए, इन सभी आयामों में, मैं हमारे दोनों देशों के बीच आर्थिक साझेदारी को प्रयासरत, आगे बढ़ते हुए और अधिक रणनीतिक होते हुए देखता हूं। लेकिन हमें उन चुनौतियों से भी निपटना होगा जिनका हम सामना कर रहे हैं और यही हमारी शांति एवं सुरक्षा के लिए चुनौती है।
आपने एक उभरती हुई शक्ति और स्थापित शक्ति, चीन एवं संयुक्त राज्य अमेरिका, के बीच भूराजनीतिक प्रतिस्पर्धा का जिक्र किया। सिद्धांत यह कहता है कि जब आपके बीच इस तरह की प्रतिस्पर्धा होती है, तो अधिकांश समय इसके परिणाम युद्ध ही होते हैं। मुझे आशा है कि ऐसे सिद्धांत पर विश्वास करने वाले ग़लत साबित हों। लेकिन यह सिर्फ एक भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा नहीं है जो हम देख रहे हैं, यह एक भू-आर्थिक, भू-प्रौद्योगिकी प्रतियोगिता भी है। इसलिए इसमें संबंधों के सभी क्षेत्र आते हैं, और यह वह बनता जा रहा है जिसे आजकल अंतरराष्ट्रीय संबंधों में हर कोई परिभाषित कारक, या परिभाषित करने वाली शक्ति कहता है। हम निश्चित रूप से - भारत थाईलैंड की तुलना में बहुत मजबूत है, लेकिन हम किसी का पक्ष नहीं लेना चाहते हैं, और हम किसी का पक्ष लेने हेतु मजबूर नहीं होना चाहते हैं। और इसलिए - लेकिन साथ ही, हम हर समय तटस्थ नहीं रह सकते, क्योंकि तटस्थता हेतु जगह बहुत कम है। तो इसका मतलब है कि जब हमारे हितों के मामले की बात आती है तो हमें स्टैंड लेना होगा। जब यह संयुक्त राष्ट्र चार्टर जैसे उन सिद्धांतों, मूल्यों को प्रभावित करता है जिन पर हम विश्वास करते हैं तो हमें कोई रुख अपनाना होगा।
लेकिन सबसे बढ़कर, हम आशा करते हैं कि प्रमुख शक्तियां इसे अपने हित में एवं क्षेत्र के हित में देखेंगी, ताकि वे एकजुट होकर कार्य करें, अपने संबंधों को बेहतर ढंग से प्रबंधित करें, क्योंकि प्रमुख शक्तियों के रूप में यह उनकी जिम्मेदारी है कि वे अपने संबंधों को अच्छी तरह से प्रबंधित करें। विवादास्पद मुद्दे हमेशा मौजूद रहेंगे, लेकिन सहयोग के क्षेत्र भी उपस्थित हैं। और मुझे खुशी है कि वे रेलिंग की बात कर रहे हैं, वे इस बारे में बात कर रहे हैं कि संघर्ष से कैसे बचा जाए, वे जहां भी संभव हो सहयोग करने की बात कर रहे हैं। और दो प्रमुख शक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा में सबसे महत्वपूर्ण विकास वह बैठक है जो राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सैन फ्रांसिस्को में एपीईसी शिखर सम्मेलन के मौके पर राष्ट्रपति बिडेन के साथ की थी। मुझे लगता है कि इससे संबंधों को स्थिर करने के प्रयासों को बढ़ावा मिला है।
और हाल ही में, थाईलैंड को अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, जेक सुलिवन एवं विदेश मंत्री वांग यी के बीच बैठक की मेजबानी करके काफी प्रसन्नता हुई थी। और इसलिए, हम फिर से आशा करते हैं कि इससे दोनों पक्षों को अपना रास्ता स्पष्ट करने में मदद मिली है कि वे दो प्रमुख शक्तियों के बीच इस अत्यंत महत्वपूर्ण रिश्ते को कैसे प्रबंधित करेंगे। और हमारे सामने दूसरी चुनौती भी है। बेशक, हमारे पास दक्षिण चीन सागर, पूर्वी चीन सागर, कोरियाई प्रायद्वीप, ताइवान जलडमरूमध्य जैसे फ्लैशप्वाइंट हैं। लेकिन मुझे लगता है कि हमारे साझा दृष्टिकोण से समुद्री सुरक्षा की चुनौती मौजूद है। हम नौवहन की स्वतंत्रता कैसे बनाए रखें? हम प्रशांत से हिंद महासागर तक अपने समुद्री मार्गों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं? इससे पहले, हमारा ध्यान, थाईलैंड का ध्यान और आसियान का ध्यान मुख्यतः पूर्व, प्रशांत दक्षिण चीन सागर पर केंद्रित था। लेकिन अब, तेजी से, हमारा ध्यान हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर में समुद्री सुरक्षा की ओर जा रहा है, जो मलक्का जलडमरूमध्य का प्रवेश द्वार है। और मुझे बहुत खुशी है कि भारत थाईलैंड और कुछ तटीय आसियान देशों के साथ समुद्री सुरक्षा पर, नौसैनिक अभ्यासों में बातचीत में शामिल हो रहा है। मुझे लगता है कि हमारी समुद्री सुरक्षा बढ़ाने के लिहाज से ये महत्वपूर्ण हैं।
अब, मेरे लिए तीसरी चुनौती थाईलैंड और भारत के बीच यह साझेदारी आसियान की केंद्रीयता पर आधारित होना है। और आसियान की केंद्रीयता इन दिनों संकट में है, स्पष्ट रूप से कहें तो, भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और आसियान के भीतर बदलावों के कारण, जो हम अभी देख रहे हैं। आसियान में 5 से 6 से 10 तक देशों को शामिल करने से आसियान के भीतर विभिन्न अपेक्षाओं को प्रबंधित करना अधिक कठिन हो गया है। और अभी, हमें भूराजनीतिक प्रतिस्पर्धा के कारण कभी किसी ओर, कभी किसी ओर खींचा जा रहा है।
और हम भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के बीच अपनी एकता एवं एकजुटता कैसे बनाए रखें? ऐसा आसान नहीं है। मुझे लगता है, आसियान की स्थापना के बाद से, हर कोई आसियान के अस्तित्व की बात करता था। इसलिए यह आसियान पर निर्भर करता है कि वह दो काम कर सकता है या नहीं। सबसे पहला, अपने राष्ट्रीय हितों के बारे में सोचें। दूसरा, हमारे क्षेत्रीय हितों को साथ मिलकर चलने के बारे में सोचें। यह राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय लचीलेपन की इंडोनेशियाई अवधारणा है। या सीधे शब्दों में कहें तो, मेरे अच्छे दोस्त बिलाहारी कौसिकन, जो क्षेत्रीय सुरक्षा पर बात करने हेतु कई बार भारत आए हैं, जब तक आसियान एक साथ नहीं रह पाएगा, हम अलग-अलग लटके रहेंगे। इसलिए हमें आसियान में उस सच्चाई, उस वास्तविकता की लगातार याद दिलानी होगी जो हमारे सामने है।
इसके बाद, आसियान के भीतर आगे की चुनौती यह है कि हम आसियान के तरीके पर क्या करें? उप स्थायी सचिव आसियान के महानिदेशक थे। आसियान की सफलता यह है कि हम परामर्श और आम सहमति के आधार पर काम करते हैं, जो अच्छी बात है। यानी हर किसी की भागीदारी है। लेकिन आम सहमति का मतलब कभी-कभी सबसे कम विभाजक होता है। या सर्वसम्मति का अर्थ है कि हम कुछ घटित हो जाने के बाद ही कार्य करते हैं। इसलिए आसियान को वास्तव में परामर्श एवं सर्वसम्मति के इस सिद्धांत पर पुनर्विचार करना होगा। हम इस सिद्धांत को कभी नहीं बदल पाएंगे, लेकिन हम किसी आम सहमति पर जल्दी कैसे पहुंच सकते हैं। हम अध्यक्ष की भूमिका के बारे में सोच रहे हैं, जिसमें आसियान को स्थायी रूप से निर्णय लेने वाली संस्था के रूप में, आसियान ट्रोइका को स्थायी रूप से निर्णय लेने वाली संस्था के रूप में रखा जाए। लेकिन वे विचार अभी भी अमल में लाने से दूर हैं।
फिर आसियान को अभी जो समस्या महसूस हो रही है, उसमें सबसे महत्वपूर्ण, विशेषकर जब हम म्यांमार से निपट रहे हैं, हस्तक्षेप न करने का यही सिद्धांत है। यह आसियान का अच्छा सिद्धांत है। यही कारण है कि आसियान सफल हुआ है। क्योंकि जब हमने आसियान की स्थापना की तो हम एक ही क्षेत्र में थे लेकिन हम एक-दूसरे को नहीं जानते थे। हमारे बीच भरोसा नहीं था। और इसीलिए हमें विश्वास सुनिश्चित करने के लिए इस सिद्धांत की आवश्यकता थी, ताकि हम सहयोग और एकीकरण कर सकें। लेकिन अभी हमने एकीकरण कर लिया है। अभी हम एक दूसरे पर निर्भर हैं। घरेलू और बाहरी मामलों के बीच अंतर करने का कोई तरीका नहीं है। कई बार घरेलू मामलों का प्रभाव फैल जाता है। म्यांमार के मामले में, वे अन्य देशों को प्रभावित करते हैं। इसलिए यदि हम स्वयं को हस्तक्षेप न करने की इस नीति तक कठोरता से सीमित रखना जारी रखते हैं, तो हम कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर पंगु हो जाएंगे। इसलिए हमें लचीला होना होगा। क्योंकि आसियान, जब हम घरेलू मुद्दों के बारे में बात करते हैं, तो इसका उद्देश्य किसी सदस्य देश को कमजोर करना नहीं होता है। इसका उद्देश्य किसी सदस्य देश को कठिन परिस्थिति से बाहर निकालने में मदद करना है।
हमारे लिए अहस्तक्षेप बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्धांत है। परंतु यदि आप आसियान चार्टर को देखें जिस पर हमने हस्ताक्षर किए हैं, जिसके प्रति हम प्रतिबद्ध हैं, तो इस पर कब हस्ताक्षर किए गए थे? 2007 में? लेकिन ये हमारा संविधान है। आसियान चार्टर में, यदि आप सिद्धांतों और मूल्यों से संबंधित खंड को पढ़ें, तो हम लोकतंत्र की बात करते हैं। हम मानवाधिकार की बात करते हैं। हम कानून के शासन की बात करते हैं। हम न्याय की बात करते हैं। मैं जो कहना चाह रहा हूं वह यह है कि अहस्तक्षेप के सिद्धांतों को आसियान चार्टर के भीतर मौजूद अन्य सिद्धांतों के खिलाफ लागू किया जाना चाहिए। और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आप अपने लोगों के खिलाफ जो चाहें करने हेतु अहस्तक्षेप के सिद्धांत का उपयोग रिक्त चेक के रूप में नहीं कर सकते। जवाबदेही और जिम्मेदारी होनी चाहिए। इसलिए आसियान को अपनी केंद्रीय भूमिका बनाए रखने के लिए, इस साझेदारी का सूत्रधार बनने के लिए, इस क्षेत्र के साथ भारत की सहभागिता के लिए, हमें वास्तव में आसियान के तौर तरीकों पर फिर से गौर करना होगा।
लेकिन सबसे बड़ी चुनौती जिसका हम अभी सामना कर रहे हैं और जिसकी वजह से मैें कुछ सप्ताह पहले जनवरी में भारत आया, वह म्यांमार है। म्यांमार में संकट लगातार जारी है। इस संकट को अब तीन साल से अधिक समय हो गया है। लेकिन दृष्टि में कोई अंत नहीं। वास्तव में, सशस्त्र शत्रुताएँ बढ़ती जा रही हैं। हम बहुत जटिल स्थिति का सामना कर रहे हैं क्योंकि यह सिर्फ सेना बनाम एनएलडी का मामला नहीं है। अब आपके पास एनयूजी है, आपके पास पीडीएफ है, पीपुल्स डिफेंस फोर्स है, आपके पास ईएओ, जातीय सशस्त्र संगठन भी हैं। और इसलिए यह बहुत कठिन स्थिति है। लेकिन आसियान में हम उस स्थिति को हल करने में मदद करने का प्रयास कर रहे हैं जिसे हम अपना ब्लूप्रिंट कहते हैं, जो पांच सूत्री सर्वसम्मति है।
लेकिन मूलतः, यह कागज़ पर एक खाका बनकर रह गया है। हमने तीन बार अध्यक्ष पद में बदलाव किया है। लेकिन कोई प्रगति नहीं हुई। और पांच सूत्री सहमति के तीन तत्व मूल रूप से हिंसा में कमी, शत्रुता की समाप्ति, मानवीय सहायता एवं बातचीत हैं। उसमें से किसी को भी लागू नहीं किया जा सका है।
अब थाईलैंड, निश्चित रूप से, भारत की तरह हमारा पड़ोसी देश है। हम क्या कर सकते हैं? क्योंकि अगर म्यांमार में कुछ भी होता है तो भारत की तरह थाईलैंड भी तुरंत प्रभावित होगा। इसलिए हमारे पास कार्रवाई शुरू करने के लिए पांच सूत्री सहमति को लागू करने हेतु विभिन्न विकल्प खोजने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। और इसलिए, जब हमने अपना विचार-मंथन किया, तो हमने सोचा कि मानवीय सहायता ही इसकी शुरुआती बिंदु है। क्योंकि मानवीय सहायता से तात्कालिक जरूरतें पूरी होती हैं, लोगों की दुर्दशा का समाधान करती है।
इस समय, म्यांमार में 20 लाख से अधिक विस्थापित लोग हैं, जिनमें से थाई-म्यांमार सीमा पर संख्या काफी अधिक है। इसलिए हमारा मानना है कि सीमा पार मानवीय सहायता, मानवीय सहायता की आवश्यकता है। लेकिन हमारी सोच मानवीय सहायता से आगे तक की है। यदि हम इसे सही तरीके से जमीन पर उतार सकें, तो मानवीय सहायता बिना किसी भेदभाव के सभी तक पहुंच जाएगी और यह किसी एक पक्ष का साधन नहीं बनेगी। मुझे लगता है कि अगर यह प्रभावी, विश्वसनीय, पारदर्शी हो जाए। तब शायद हम कुछ बड़ा कर सकते हैं, जैसे कि शायद एक मानवीय विराम और फिर शायद एक मानवीय संवाद।
लेकिन हमारा मानना है कि म्यांमार को आसियान के साथ फिर से जोड़ने की दिशा में यह पहला कदम है। क्योंकि म्यांमार आसियान के बाहर है, हमें कभी भी चर्चा करने का अवसर नहीं मिलेगा, शायद म्यांमार में सत्ता में सरकार को मनाने का। इसलिए आसियान के साथ फिर से जुड़ना जरुरी है। लेकिन इसे ठोस प्रगति के आधार पर फिर से शामिल करना होगा और यही मानवीय सहायता है।
दूसरा, इसे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की चिंताओं पर प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा सकता है। इसलिए यह म्यांमार और एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाने वाले क्षेत्र के बाहर के देशों के बीच कुछ रचनात्मक जुड़ाव का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। मैं पड़ोसी देशों जापान, चीन और अमेरिका की बात कर रहा हूं, क्योंकि अंततः, हम सभी को म्यांमार को शांति और लोकतंत्र के रास्ते पर वापस लाने में मदद करने के लिए आगे आना होगा।
लेकिन आप देखिए, हम म्यांमार की मदद के लिए केवल इतना ही कर सकते हैं। अंततः, म्यांमार की पार्टियों को ही समस्या का समाधान करना है। हम उन्हें लुभा सकते हैं, हम उन्हें मना सकते हैं, शायद थोड़ी सी जबरदस्ती भी कर सकते हैं। लेकिन उन्हें इस बात पर सहमत करना होगा कि म्यांमार का भविष्य क्या है। और म्यांमार का भविष्य नहीं है, इसका भविष्य पहले से अलग होगा। और मुझे लगता है कि यह इस पर निर्भर है कि म्यांमार के भीतर की पार्टियां भविष्य में एक साथ काम करने को देखेंगी। और निश्चित रूप से, हम म्यांमार के मुद्दे पर भारत के साथ साझेदारी में काम करना चाहेंगे।
अब, स्पष्ट कहूं तो, मुझे थाईलैंड और भारत के बीच रणनीतिक साझेदारी से एक समस्या है। इसमें बहुत समय लग गया। जब मैं स्थायी सचिव था तब हमने रणनीतिक साझेदारी पर बात की थी। मैं यहां प्रधानमंत्री यिंगलक के साथ आया हूं। वह आपके स्वतंत्रता दिवस पर सम्मानित अतिथि थीं। लेकिन अब इसे लगभग 12 साल हो गए हैं। हमने अपनी रणनीतिक साझेदारी की दिशा में कोई प्रगति नहीं की है। और इस बीच, आपने मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया के साथ रणनीतिक साझेदारी और वियतनाम के साथ व्यापक रणनीतिक साझेदारी की। हम इसके खिलाफ भी नहीं है। यह अच्छी बात है। हमें इस क्षेत्र में भारत की और अधिक मजबूत भागीदारी की आवश्यकता है।
इसलिए इस यात्रा में और कल होने वाली हमारी चर्चाओं में, हम अपने भारतीय सहयोगियों को यह समझाने की उम्मीद करते हैं कि हमारी साझेदारी, द्विपक्षीय साझेदारी, क्षेत्रीय साझेदारी के सभी आयामों को देखते हुए, अब समय आ गया है कि हम एक दिशा की ओर बढ़ें। रणनीतिक साझेदारी जो हमारे दोनों देशों के बीच संबंधों के स्तर पर फिट बैठती है। और सबसे बढ़कर, मुझे लगता है कि हमारे बीच जो समानता है वह इंडो-पैसिफिक को लेकर हमारा दृष्टिकोण है, ऐसा दृष्टिकोण जो स्वतंत्र, खुला, समावेशी, सभी को शामिल करने वाला, किसी को छोड़कर नहीं, नियम-आधारित एवं आर्थिक सहयोग, आर्थिक समृद्धि पर आधारित है जो हमारे क्षेत्र की दीर्घकालिक एवं स्थायी शांति और स्थिरता में मदद करेगा।
आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद।
एम: महामहिम, आपकी जानकारीपूर्ण टिप्पणियों के लिए धन्यवाद। अब मैं राजदूत विजय ठाकुर सिंह, महानिदेशक, आईसीडब्ल्यूए से प्रश्नोत्तर सत्र को संचालित करने का अनुरोध करता हूं।
विजय ठाकुर सिंह: धन्यवाद। उप मंत्री, सिहासाक, आपके बहुत व्यापक एवं व्यावहारिक व्याख्यान के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, जिसमें दुनिया भर में भू-राजनीतिक, भू-अर्थशास्त्र, भू-तकनीकी प्रतिस्पर्धा पर बात की गई, और विशेष रूप से, हमारे क्षेत्र में, इंडो-पैसिफिक पर भी। आपने एक मुख्य सवाल का उल्लेख कि आसियान की केंद्रीय भूमिका के साथ क्षेत्रीय वास्तुकला को कैसे बनाए रखा जा सकता है जब आसियान स्वयं, जैसा कि आपने कहा, स्वयं को देख रहा है और देख रहा है कि कहां उसे अपने कारोबार संचालन के तरीके और आसियान के रूप में आगे बढ़ने के तरीके पर गौर करने की जरूरत है।
और साथ ही, आपने बताया कि भारत-थाईलैंड रणनीतिक साझेदारी ऐसा विषय है जिस पर काफी समय से काम चल रहा है। और आपने तीन क्षेत्रों पर प्रकाश डाला: आर्थिक साझेदारी, कनेक्टिविटी और समुद्री सुरक्षा। और उसमें, आपने अन्य जुड़ावों पर बात की। तो मैं निश्चित रूप से, यह कहता हूँ कि ये सारांश नहीं हैं, या मैं इसे संक्षेप में प्रस्तुत नहीं कर सकता, बल्कि यह एक व्यापक रुझान हैं।
और अब सवाल-जवाब का सत्र शुरु करता हूं। मैं एक बार में तीन सवाल लूँगा। अपना परिचय दें और तुरंत सवाल पूछे। मैं देख रहा हूं किसी ने वहां हाथ उठाया हुआ है। तो तीन सवाल। पूछिए।
एम: क्या हमें सवाल अलग-अलग से लेना चाहिए? क्या हमें सवाल एक साथ लेना चाहिए, एक बार में तीन?
विजय ठाकुर सिंह: नहीं, वह तो है। मैं ऐसा अगले दौर में करुंगा।
पंकज झा: धन्यवाद, महामहिम। मेरे दो बहुत सामान्य प्रश्न हैं, मुख्यतः भारत के दृष्टिकोण से। मेरा नाम प्रोफेसर पंकज झा है, मैं ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा विषय पर पढ़ाता हूँ। मेरा पहला सवाल यह है कि थाईलैंड में बीआरआई के तहत जो कुछ परियोजनाएं शुरू की गई थीं, उनमें से कुछ को कम कर दिया गया है, यानी छोटा कर दिया गया है। क्या आप इसके कारणों पर प्रकाश डाल सकते हैं? पहला सवाल।
दूसरा, भारत में क्रा ऑफ इस्थमस कैनाल को लेकर समय-समय पर काफी चर्चा होती रहती है। क्या इस विषय पर अभी भी चर्चा चल रही है या आपने इसे ठंडे बस्ते डाल दिया है? धन्यवाद। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
विजय ठाकुर सिंह: ठीक है। मैं सबसे पीछे से प्रश्न लूंगा और फिर सामने से एक प्रश्न लूंगा और फिर दूसरे दौर में जाऊंगा।
एम1: महामहिम, आपके ज्ञानवर्धक व्याख्यान के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। आपने आसियान की केंद्रीय भूमिका पर संक्षेप में चर्चा की, इसलिए मेरा सवाल इसी से संबंधित है। इसलिए हम सभी इस बात से सहमत हैं कि क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने हेतु आसियान की केंद्रीयता महत्वपूर्ण है। तो क्या आप इस बारे में अपने विचार साझा करना चाहेंगे कि वैश्विक मंच पर आसियान एकता और सामूहिक आवाज को मजबूत करने में थाईलैंड कैसे अग्रणी भूमिका निभा सकता है? धन्यवाद।
विजय ठाकुर सिंह: और एक यहीं सामने से सवाल है। अगला दौर।
एम2: महामहिम, काफी विचारशील और अच्छी जानकारी के लिए धन्यवाद। आपने सही कहा कि विश्व अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में गहन एवं अत्यंत परिवर्तनकारी बदलाव हो रहे हैं। यहां मेरा सवाल यह है कि इस स्थिति में थाईलैंड अपने लिए किस प्रकार की वैश्विक भूमिका की कल्पना करता है? और आप इंडो-पैसिफिक सहित विभिन्न क्षेत्रों में थाईलैंड की रणनीतिक गणना में भारत की उपयुक्त भूमिका को कैसे देखते हैं? धन्यवाद महोदय।
विजय ठाकुर सिंह : महामहिम?
सिहासाक फुआंगकेटकेव: धन्यवाद। खैर, बीआरआई पर, मुझे लगता है कि बीआरआई की बहुत आलोचना हुई है, लेकिन आपको इसके सकारात्मक पक्ष को भी देखना चाहिए, क्योंकि यह क्षेत्र में मानव अवसंरचना के विकास की आवश्यकता को पूरा करता है। लेकिन, निःसंदेह, हर चीज़ का कुछ लाभ और कुछ नुकसान दोनों होता है। और यदि आप वह देश हैं जिसे लाभ हो रहा है, तो सही निर्णय लेना आपके ऊपर है। सही? और इसलिए मुझे नहीं लगता कि चीनी उस विशेष देश के साथ जो कुछ भी चाहते हैं उसे उस विशेष देश पर थोप सकते हैं।
तो थाईलैंड के मामले में, ऐसा ही है। थाईलैंड के लिए क्या अच्छा है? यही हमारे निर्णय का आधार है। और इसलिए शायद हमें परियोजना को थोड़ा कम करना होगा। लेकिन निःसंदेह, यह ऐसा निर्णय है जिसे हमें लेना होगा। लेकिन मेरा मतलब है, ऐसी कई अन्य परियोजनाएं हैं जो मुझे यकीन है कि प्रत्येक देश की कनेक्टिविटी, आर्थिक विकास को बढ़ाने में बहुत फायदेमंद रही हैं। और इसलिए हम इसे प्रोजेक्ट दर प्रोजेक्ट देख रहे हैं। और हम वह निर्णय ले रहे हैं जो थाईलैंड के लिए अच्छा है। और इसलिए बीआरआई के प्रति हमारा दृष्टिकोण यही है।
क्रा कैनाल पर, हाँ, इस पर कई वर्षों से चर्चा हो रही है, मुझे लगता है, सैकड़ों वर्ष पहले से। नहर की खुदाई की लोगों ने काफी सराहना की है, नहर की अवधारणा से प्रभावित हो गए हैं कि यह कैसे गेम चेंजर हो सकता है। लेकिन वास्तविकता यह है कि, फिर से, कनेक्टिविटी की बात करते हुए, समुद्री मार्गों की सुरक्षा बहुत महत्वपूर्ण है। और अभी, हमारे पास एक चोक प्वाइंट है, एक बहुत बड़ा चोक प्वाइंट है, जो मलक्का जलडमरूमध्य है। और निश्चित रूप से, और इसमें कुछ जोखिम भी हैं। इसलिए हमने सोचा कि शायद हमें इस प्रोजेक्ट पर गौर करना चाहिए। लेकिन यह नहर नहीं बनेगी। यह बनने जा रही है, आजकल उपलब्ध नई तकनीक के साथ, यह वह होगा जिसे हम लैंड पुल कहते हैं।
इसलिए हम दो बंदरगाह बनाएंगे, एक थाईलैंड की खाड़ी पर, प्रशांत महासागर, दक्षिण चीन सागर, प्रशांत महासागर के सामने, और फिर दूसरा अंडमान सागर पर, बंगाल की खाड़ी, हिंद महासागर और उससे आगे के सामने। और हमने इन दोनों बंदरगाहों को, गहरे समुद्री बंदरगाहों को, रेल से, सड़क से, पाइपलाइन से जोड़ने के बारे में सोचने की कोशिश की। ये तो कमाल की सोच है।
और प्रधानमंत्री अपनी विदेश यात्राओं में इस परियोजना का प्रचार करते रहे हैं। यह एक बड़ा प्रोजेक्ट है। इसपर किसी एक देश या एक कंपनी का नियंत्रण नहीं होगा। और इसलिए सबसे पहले, हम यह समझा रहे हैं कि परियोजना क्या है, हम इस परियोजना से क्या हासिल करने की उम्मीद करते हैं, इससे व्यावसायिक संदर्भ में, परिवहन के संदर्भ में कैसे लाभ होगा और साथ ही समुद्री सुरक्षा भी बढ़ेगी। और इसलिए हम उम्मीद कर रहे हैं कि देश इसमें रुचि दिखाएंगे, निजी क्षेत्र रुचि दिखाएंगे। लेकिन यह एक बहुत बड़ा प्रोजेक्ट है। और जैसे-जैसे हम आगे बढ़ेंगे इसपर हम और अधिक जानकारी देने का प्रयास कर रहे हैं।
आसियान पर सवाल है कि थाईलैंड कैसे मदद कर सकता है? यह सिर्फ थाईलैंड नहीं है। यह आसियान के 10 देशों को चाहिए, जिन्हें यह महसूस करना होगा कि आसियान को एक साथ मिलकर काम करना होगा। लेकिन हम यह भी मानते हैं कि वास्तविकता यह है कि कुछ देशों को आसियान में नेतृत्व करना होगा। जिन देशों ने नेतृत्व किया है उनमें इंडोनेशिया, सिंगापुर, मलेशिया और थाईलैंड और अब वियतनाम जैसे देश शामिल हैं। लेकिन थाईलैंड के साथ समस्या, और बहुत स्पष्ट रूप से कहें तो, यह है कि हम विगत कुछ वर्षों से एमआईए, मिसिंग इन एक्शन की श्रेणी में हैं। लोगों ने कहा है कि अब विदेश नीति शायद घरेलू स्तर पर केंद्रित हो गई है। इसलिए थाईलैंड को आगे आना होगा और योगदान देना होगा, न कि हमारे नेतृत्व में, बल्कि आसियान के अन्य देशों के साथ मिलकर भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा की चुनौतियों से निपटने का रास्ता खोजने में मदद करनी होगी, कि कैसे आसियान अपनी केंद्रीयता बनाए रख सकता है। फिर से, आसियान के मूल सिद्धांतों पर वापस आते हुए जिन्हें हमें अपने एकीकरण की वास्तविकताओं के साथ, वर्तमान समय की वास्तविकताओं के साथ तालमेल बिठाना होगा।
और इसलिए, मुझे उम्मीद है कि आसियान की केंद्रीयता को सुदृढ़ और पुनर्जीवित करने के लिए थाईलैंड हमारी सोच के संदर्भ में योगदान दे सकता है।
अब हम परिवर्तनकारी बदलाव की बात कर रहे हैं। मुझे लगता है कि एक चीज़ जो हमने देखी है वह है शक्ति संतुलन में पश्चिम से पूर्व की ओर बदलाव। लेकिन दूसरा महत्वपूर्ण गहन विकास शक्ति संतुलन में अंतर का है। जैसा कि आपने सही कहा, हम एक बहुध्रुवीय दुनिया में रहते हैं। लेकिन हमारे पास दो शक्तिशाली ध्रुव हैं। लेकिन हमारे पास अन्य ध्रुव भी हैं जिन्हें आकार ले रही नई अंतर्राष्ट्रीय, विश्व व्यवस्था को आकार देने में भूमिका निभानी चाहिए। और उस ध्रुव के बीच, क्योंकि भारत भी होगा, और जैसे अन्य देश होंगे, हमारे पास ब्रिक्स है। लेकिन जो महत्वपूर्ण है वह है ग्लोबल साउथ। ग्लोबल साउथ, जब आप जी20 की अध्यक्षता करते थे, तो आपने ग्लोबल साउथ की आवाज बनने की बात की थी। इसलिए हमें अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था, संस्थाओं को भी अधिक लोकतांत्रिक, अधिक प्रतिनिधिमूलक बनाना होगा।
और हम प्रमुख साझेदारों के साथ काम करने की आशा करते हैं, हम आशा करते हैं कि आने वाली नई व्यवस्था को आकार देने में ग्लोबल साउथ के साथ काम करेंगे, जो निश्चित रूप से उन परिवर्तनों को दर्शाएगा जो हमने अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली में देखे हैं।
विजय ठाकुर सिंह: धन्यवाद. मैं अगले प्रश्न लूंगा। मैं आपको सवाल पूछने दूंगा; आपने पहले पूछा था। मुझे लगता है कि मुझे इस ओर से सवाल लेना चाहिए, ठीक है, अब हम शुरू करेंगे।
सुरेश गोयल: बहुत बहुत धन्यवाद विजय और महामहिम। अब आपने जो व्याख्यान दिया वह बहुत व्यापक था। मेरा नाम सुरेश गोयल है, मैं पूर्व विदेश सेवा अधिकारी हूं, मैंने उस क्षेत्र में 10 साल तक सेवा की है जहां आप स्थित हैं, जिसमें आपके पड़ोसी लाओस में राजदूत की पोस्टिंग भी शामिल है।
मेरा सवाल इस क्षेत्र में आपकी केंद्रीय भूमिका से संबंधित है, और आपने इसके बारे में, कनेक्टिविटी पर बहुत बात की है। और थाईलैंड कनेक्टिविटी का केंद्र है, न कि केवल बिम्सटेक, आसियान, बल्कि व्यावहारिक रूप से संपूर्ण इंडो-पैसिफिक के लिए। यदि आप मलक्का जलडमरूमध्य को भूल जाएं, तो जमीन से जमीन तक, आपके पास पूर्व-पश्चिम आर्थिक गलियारा था, जो वहां स्थापित की जा रही कनेक्टिविटी का एक केंद्रीय हिस्सा था। मेरा सवाल यह है कि किसी भी अच्छी कनेक्टिविटी परियोजना, जो मेरे विचार से क्षेत्र में राजनीतिक एवं रणनीतिक स्थिरता के लिए अहम है, के लिए एक समान सुरक्षा माहौल की भी आवश्यकता होगी जहां एक को दूसरे से दबाव महसूस न हो। मैं किसी का भी नाम नहीं ले रहा हूं, लेकिन आप समझ रहे हैं कि मैं क्या कह रहा हूं।
अब मुद्दा वास्तव में यह है, और यही मूल आपत्ति है जो हमें पहले बीआरआई पर भी थी, कि क्षेत्र में किसी भी प्रकार की कनेक्टिविटी परियोजना में सुरक्षा कारक होंगे जिनसे आसियान स्वयं निपटने में सक्षम नहीं है। आप ऐसा कैसे कर सकते हैं?
विजय ठाकुर सिंह: धन्यवाद। हां श्रीधर, अब आप।
श्रीधर कुमारस्वामी: शुभ संध्या, सर। मैं एशियन एज और डेक्कन क्रॉनिकल से श्रीधर हूं। महोदय, भारत में हमें यह विश्वास या मान लिया गया है कि विगत कुछ वर्षों में हमने वास्तव में बिम्सटेक और आसियान के ज़रिए थाईलैंड के साथ अपनी भागीदारी बढ़ाई है। हम आसियान के साथ बातचीत कर रहे हैं, सभी 10 नेताओं को अपने गणतंत्र दिवस समारोह में आमंत्रित कर रहे हैं और उनके साथ बातचीत कर रहे हैं। तो इसलिए, हमें यह सुनकर थोड़ा आश्चर्य हुआ कि आप द्विपक्षीय संबंधों की गति से काफी निराश लग रहे हैं, और आपको लगता है कि हमारी रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने हेतु ज्यादा कुछ नहीं किया गया है, इसके क्या कारण हैं, इसके क्या कारक हैं, क्या दोनों देशों के बीच आदान-प्रदान की कोई कमी है, यही मेरा सवाल है। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
विजय ठाकुर सिंह: धन्यवाद. और मैं अब आपका सवाल लूंगा।
अवनि सबलोक: आपके ज्ञानवर्धक व्याख्यान के लिए धन्यवाद, महामहिम। मैं अवनि सबलोक हूं और मेरा सवाल डिजिटल अर्थव्यवस्था पर है। भारत और थाईलैंड दोनों डिजिटल अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। ऐसे में अग्रणी डिजिटल अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में थाईलैंड के सामने प्रमुख चुनौतियाँ और अवसर क्या हैं, और भारत एवं थाईलैंड इस क्षेत्र में कैसे सहयोग कर सकते हैं? धन्यवाद।
विजय ठाकुर सिंह: महामहिम?
सिहासाक फुआंगकेटकेव: धन्यवाद। कनेक्टिविटी के संदर्भ में, और मुझे लगता है कि आपने सुरक्षा के भू-राजनीतिक निहितार्थों एवं दबावों पर सवाल पूछा है, और मेरा मानना है कि आप शायद एक निश्चित देश की बात कर रहे हैं। मेरा मानना है कि हम जिस वास्तविकता के साथ जी रहे हैं, वह यह है कि हमें सभी प्रमुख शक्तियों से निपटना होगा। और हमें यह जानते हुए उनसे निपटना होगा कि प्रमुख शक्तियों के साथ हमारे संबंधों में लाभ भी हैं और हानियां भी हैं। और इसलिए - और यही वह तरीका है जिससे हमें अपने संबंधों को देखना है।
मुझे लगता है कि आप थाईलैंड से उत्तर की ओर स्थित प्रमुख शक्ति की बात कर रहे हैं। देखिए, वह देश इस क्षेत्र में है। वह देश, एक बढ़ती हुई शक्ति है। इसके लाभ भी हैं, और हानियां भी है। इसलिए आप इससे कैसे निपटते हैं? मुझे लगता है कि हमारे पास उस प्रमुख शक्ति से निपटने हेतु समझदारी होनी चाहिए। लेकिन साथ ही, जब भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा होती है, यदि आप - मुझे लगता है कि मेरे मित्र, बिलाहारी ने फिर कहा, यदि आप थोड़े चतुर हैं, यदि आपके पास बुद्धि है, यदि आपके पास चपलता है, तो शायद जब आप दो प्रमुख शक्तियों के साथ जुड़े होते हैं और जिस तरह से आप प्रमुख शक्ति के दबाव को संभालते हैं, तो आप कुछ हद तक एजेंसी की खोज कर सकते हैं। इसलिए हमारे पास कोई आसान समाधान नहीं है, लेकिन मुझे लगता है कि हमें यह सीखना होगा कि दबाव से कैसे निपटा जाए, और, आप जानते हैं, यही वास्तविकता है जिसके साथ हम रहते हैं।
जुड़ाव पर। हां, यह सही है, मैं निराश हूं, इसलिए नहीं कि मैं भारत से निराश हूं, मैं संबंधों की गति से निराश हूं। सही? 12 साल हो गए, हम प्रगति नहीं कर पाए। शायद यह थाईलैंड की ओर से एक प्रतिबिंब है। शायद थाई राजनीति में 12 वर्षों में क्या हुआ है? आपको पता है क्या हुआ? मुझे आपको बताने की जरूरत नहीं है। मुझे यकीन है कि आप जानते हैं कि क्या हुआ था, और हो सकता है कि थाई राजनीति के उतार-चढ़ाव ही ऐसी देरी के लिए जिम्मेदार हों जिसका हमें सामना करना पड़ा है। और शायद, आंतरिक रूप से केंद्रित होने के कारण, हम किसी तरह कुछ देशों की रडार स्क्रीन से गायब हो गए, और शायद इसी तरह हमने अपना रणनीतिक महत्व खो दिया।
इसलिए मुझे लगता है कि यह थाईलैंड पर भी एक चिन्ह है। लेकिन फिर, अब थाईलैंड के संदर्भ में, थाईलैंड में एक लोकतांत्रिक निर्वाचित सरकार है, थाईलैंड में एक नागरिक नेतृत्व वाली सरकार है, थाईलैंड में ऐसी सरकार है जो लोकतंत्र और मानवाधिकारों की बात करने में शर्माती नहीं है। और इसलिए मुझे लगता है कि अब समय आ गया है, और थाईलैंड भी अपनी अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित कर रहा है, हमारी अर्थव्यवस्था का पुनर्गठन कर रहा है। अब समय आ गया है कि हम वास्तव में अपनी रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ाने का प्रयास करें, क्योंकि यह हमारे अतीत के साथ न्याय नहीं है, यह हमारे वर्तमान के साथ न्याय नहीं है, और हमारे संबंधों के भविष्य के साथ भी न्याय नहीं है। यही मेरी आशा है। लेकिन मैं भारत से निराश नहीं हूं, बल्कि मैं सिर्फ एक तथ्य बता रहा हूं।
तीसरा, डिजिटल अर्थव्यवस्था पर, हां, निश्चित रूप से, क्योंकि, मुझे लगता है कि कई देशों के सामने आने वाली चुनौती, विशेष रूप से कोविड-19 के मद्देनजर, सामान्य रूप से व्यवसाय की तरह आर्थिक सुधार नहीं है। हमें अपनी अर्थव्यवस्था को बदलना है, हमें अपनी अर्थव्यवस्था को हरित अर्थव्यवस्था और डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर परिवर्तित करना है। और इसलिए डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर बढ़े बिना, मुझे लगता है कि हम प्रतिस्पर्धी नहीं हो सकते। और इसलिए हम डिजिटल अर्थव्यवस्था के संदर्भ में बहुत कुछ कर रहे हैं।
थाईलैंड में, हमने अपनी बैंकिंग प्रणाली को डिजिटल बना दिया है, और हम डिजिटल डेटा सेंटर बनने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। और इसलिए हमारे यहां कई परियोजनाएं चल रही हैं। जब हमारे प्रधान मंत्री न्यूयॉर्क गए, तो उन्होंने माइक्रोसॉफ्ट से मुलाकात की, उन्होंने अमेज़ॅन, गूगल से मुलाकात की और उन्हें थाईलैंड में डेटा सेंटर स्थापित करने हेतु आमंत्रित करने का प्रयास किया, जो डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है। और निश्चित रूप से भारत, मुझे लगता है, मैं कंपनी का नाम भूल गया, लेकिन भारत में एक बड़ी कंपनी है जो थाईलैंड में डिजिटल डेटा सेंटर में निवेश करने वाली है, यहां जिसे हम ईईसी कहते हैं, थाईलैंड के पूर्वी तट पर हमारा प्रमुख आर्थिक विकास क्षेत्र है।
इसलिए निश्चित रूप से डिजिटल अर्थव्यवस्था, डिजिटलीकरण, डिजिटल तकनीक कुछ ऐसी चीजें हैं जिन्हें हम अपनाना चाहते हैं, हम बढ़ावा देना चाहते हैं।
विजय ठाकुर सिंह: धन्यवाद, महामहिम। मैं प्रश्नों का एक आखिरी दौर लूँगा। मेरा एक हाथ वहां है, एक हाथ पीछे है और एक हाथ यहां पीछे है। क्या ये ठीक है? ठीक है। तो, अगला. आप वहां से शुरू कर सकते हैं. आइए, आप यहां से शुरुआत करें. अब आप।
राजलक्ष्मी देशमुख: आपके ज्ञानवर्धक सत्र के लिए धन्यवाद महामहिम। मेरा नाम राजलक्ष्मी है, मैं दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा हूं और मेरा सवाल यह है कि उत्तर, क्षमा करें, दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में चीन के बढ़ते प्रभाव पर आपका क्या विचार है? कृपया शेयर करें। धन्यवाद।
विजय ठाकुर सिंह: धन्यवाद. यह एक सवाल है। ठीक है, आप शुरू करें।
एफ1: महामहिम, आपकी ज्ञानवर्धक टिप्पणियों के लिए धन्यवाद। आपने अपनी बातचीत में दक्षिण चीन सागर की बात की। मैं थाईलैंड की भौगोलिक स्थिति और दक्षिण चीन सागर के दावेदारों के साथ आर्थिक संबंधों के बारे में सोच रहा था कि दक्षिण चीन सागर में स्थिर और शांतिपूर्ण दीर्घकालिक समाधान में योगदान देने हेतु थाईलैंड भविष्य में क्या रणनीति अपना सकता है? क्या चीन के साथ आचार संहिता पर बातचीत आगे बढ़ने का रास्ता है?
विजय ठाकुर सिंह: ठीक है, और आखिरी सवाल।
एम2: शुभ संध्या मंत्री जी। आपकी ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए धन्यवाद। मेरा प्रश्न इंडो-पैसिफिक पर है। आपने पिछले कुछ वर्षों में शुरू की गई विभिन्न पहलों के बारे में बात की, चाहे वह आईपीईएफ, क्वाड और एयूकेयूएस हो, और हमने देखा है कि कई देशों ने विभिन्न ब्लॉकों के गठन पर आपत्तियां व्यक्त की हैं। क्या थाईलैंड का भी यह मानना है कि वास्तव में विभिन्न गुटों का गठन क्षेत्र में शांति के लिए हानिकारक होगा?
और दूसरा प्रश्न म्यांमार पर है। आपने कहा कि म्यांमार की स्थिति वास्तव में बहुत जटिल और अनिश्चित है, और फिर आपने सुझाव दिया कि आसियान को इसके लिए क्या करना होगा। तो वास्तव में आपको क्या लगता है कि म्यांमार में स्थिति को नियंत्रण में लाने में आसियान को किस प्रकार की भूमिका निभानी चाहिए? धन्यवाद।
विजय ठाकुर सिंह: महामहिम?
सिहासाक फुआंगकेटकेव: फिर से, दक्षिण पूर्व एशिया में चीन के प्रभाव पर। मैंने इसे पहले ही नोट कर लिया है, क्योंकि चीन वस्तुतः हमारा पड़ोसी है। चीन आर्थिक शक्ति की दृष्टि से, राजनीतिक शक्ति की दृष्टि से, अपने प्रभाव की दृष्टि से आगे बढ़ रहा है। इसलिए हम उससे बच नहीं सकते। और मुझे लगता है कि मुझे मेरे वियतनामी सहयोगी ने बताया था, और उन्होंने मुझसे कहा था कि जो कोई भी वियतनाम का नेता बनने की इच्छा रखता है, उसे दो चीजें करनी होगी। सबसे पहली, चीन के साथ रहना और चीन के खिलाफ खड़े होना। यही वास्तविकता है। मुझे लगता है कि जब आपका सामना किसी प्रमुख शक्ति से होता है, तो आपको एक प्रमुख शक्ति के साथ रहना होता है और उस प्रमुख शक्ति के सामने खड़ा होना होता है।
लेकिन निःसंदेह, दक्षिण पूर्व एशिया की सोच वैसी नहीं है। वियनतियाने, लाओस की सोच मनीला, फिलीपींस की सोच के समान नहीं है। यही समस्या है। इसलिए आसियान को सुरक्षा की इस अलग धारणा को इस तरह से प्रबंधित करना होगा कि हमें यह पहचानना होगा कि एक साथ रहना, हमारे सर्वोत्तम हित में है - अगर हम एक साथ रहते हैं, अगर हमारे पास एकता, एकजुटता है, और हमारी एकजुटता दर्शाते हैं, तो यह किसी प्रमुख शक्ति के साथ हमारे संबंधों को प्रबंधित करने का सबसे अच्छा तरीका होगा।
अब, दक्षिण चीन सागर पर, यह एक बहुत ही जटिल स्थिति, क्षेत्र में टकराव का मुख्य बिंदु है। लेकिन, आप देखिए, पूरा आसियान नहीं, हर देश विवाद में भागीदार नहीं है। बहुत सारे आसियान देश, चीन हैं, लेकिन समस्या - दावों को लेकर है, दक्षिण चीन सागर में परस्पर विरोधी दावे हैं। लेकिन मुझे लगता है कि मुख्य समस्या यह है कि चीन अपने नाइन डैश, डैश नाइन के साथ ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर पूरे दक्षिण चीन सागर पर दावा करता है। लेकिन, मुझे लगता है कि हमारे लिए यही है कि आइए - विवेक से काम लें। तर्क से काम लें। और अकारण कोई घटना न होने दें। हमें चीजों को यथासंभव शांत रखना होगा।' और सुनिश्चित करना होगा कि, हम कूटनीति के माध्यम से समाधान निकाले। क्योंकि यह बहुत जटिल हो सकता है। विशेष रूप से, यह भू-राजनीतिक संघर्ष से प्रभावित हो सकता है, जिससे यह और भी कठिन हो जाएगा। और इसलिए, हमारे लिए, सबसे पहले, नेविगेशन की स्वतंत्रता, समुद्री मार्गों की सुरक्षा, अंतर्राष्ट्रीय कानून के प्रति सम्मान, हर किसी की ओर से स्वयं-संयम सुनिश्चित करना है। और हम इस आचार संहिता पर काम करने का प्रयास कर रहे हैं ताकि इन सिद्धांतों को हर कोई अपना सके और फिर शायद हम संबंधित पक्षों के बीच बातचीत के चैनल स्थापित करने का प्रयास कर सकें। लेकिन जो आवश्यक है वह यह है कि स्थिति को क्षेत्रीय शांति और क्षेत्र की स्थिरता को प्रभावित करने से रोका जाए और इसलिए इस संबंध में आचार संहिता बहुत महत्वपूर्ण है।
अब इंडो-पैसिफिक की बात करते हैं। हमारे पास कोई व्यापक सुरक्षा संरचना नहीं है। हमारे पास आसियान के नेतृत्व वाला एक पैचवर्क है, जो खुला और समावेशी है, बहुपक्षीय है, बातचीत पर केंद्रित है। लेकिन हमारे पास क्वॉड जैसी व्यवस्था है, जो समावेशी नहीं है। हमारे पास एयूकेयूएस है, जो समावेशी नहीं है। लेकिन हमें इस हकीकत के साथ भी जीना होगा। भारत क्वॉड का सदस्य है। भारत क्वॉड को उस तरह नहीं देखता जिस तरह संयुक्त राज्य अमेरिका क्वॉड को देखता है, ऐसा मुझे ऐसा लगता है।
लेकिन वैसे भी, आप देखते हैं, शायद ये व्यवस्थाएं, क्वाड या एयूकेयूएस, कुछ उपयोगी उद्देश्य भी पूरा कर सकती हैं यदि वे क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखते हैं, यदि वे निवारक बनती हैं, निवारण करती हैं, क्योंकि हमारे बीच यह भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा चल रही है। लेकिन अगर यह किसी विशेष देश पर निर्देशित गुटों, सैन्य गुट के निर्माण की ओर आती है, तो हमारे सामने एक खतरनाक स्थिति पैदा हो जाएगी। और हम उस तरह की वास्तुकला नहीं देखना चाहते हैं, क्योंकि जिस वास्तुकला में हम विश्वास करते हैं वह समावेशी है, जो शक्ति के संतुलन में संतुलन की ओर ले जाती है। हम इसे इसी तरह देखते हैं।
हमें हकीकत के साथ जीना होगा। हम यह नहीं कह सकते कि हमें क्वॉड पसंद नहीं है। इसलिए हम अपनी आशा व्यक्त करते हैं कि क्वॉड एक सैन्य गुट नहीं बनेगा, किसी विशेष देश पर अंकुश लगाने या अलग-थलग करने की कोशिश करने वाला नहीं बनेगा। इससे रोकने में मदद मिल सकती है, लेकिन मुझे लगता है कि लंबे समय में हमें इंडो-पैसिफिक के एक साझा दृष्टिकोण की दिशा में काम करना चाहिए, जो हम सभी का मानना है। धन्यवाद।
विजय ठाकुर सिंह: धन्यवाद, महामहिम। लेकिन क्वॉड पर थोड़ा और कहना चाहूंगा, क्योंकि क्वॉड वास्तव में चार साझेदारों, समान साझेदारों के बीच एक साझेदारी है। और हम उन मुद्दों पर विचार करने हेतु एकजुट हुए हैं जिन पर हम साथ मिलकर काम कर सकते हैं। और ऐसे कई मुद्दे हैं जिन पर हमने कोविड के समय से लेकर वैक्सीन कूटनीति पर एक साथ काम किया गया है और हमने विभिन्न अन्य क्षेत्रों में एक साथ काम किया है। आपको क्वॉड से समुद्री डोमेन जागरूकता पहल मिली है, जो पूरे क्षेत्र के लिए सहायक है। इसलिए हम वास्तव में क्वॉड को एक साझेदारी के रूप में देखते हैं। यह क्षेत्र में स्थिरता में योगदान देता है।
और पहल, मेरा मतलब है, यह वास्तव में एक क्वॉड नहीं है, लेकिन आपके पास आईपीईएफ, इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क की पहल है, जिसमें भारत एक भागीदार है और मैं समझता हूं कि थाईलैंड भी एक भागीदार है। इसलिए इस क्षेत्र में कई पहलें हैं और मुझे लगता है कि हम सभी शांति, स्थिरता एवं साझेदारी के एक ही उद्देश्य की दिशा में काम कर रहे हैं।
सिहासाक फुआंगकेटकेव: और भारत जैसे देशों को उन पहलों को रचनात्मक दिशा, सकारात्मक दिशा की ओर ले जाना भी आवश्यक है। जैसा कि आपने बताया, ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां हम क्वॉड के साथ मिलकर काम कर सकते हैं।
विजय ठाकुर सिंह: हाँ, महामहिम। विभिन्न क्षेत्रों में साझेदारियाँ हैं और मुझे लगता है कि ऐसे कई क्षेत्र हैं जहाँ आसियान भी देख सकता है और सामूहिक रूप से हमारे साथ मिलकर काम कर सकता है। तो इनके साथ, क्या आप कुछ और सवाल लेना चाहेंगे?
सिहासाक फुआंगकेटकेव: नहीं, अब और सवाल नहीं।
विजय ठाकुर सिंह: धन्यवाद। बहुत बहुत धन्यवाद, महामहिम। विभिन्न सवालों और विभिन्न प्रकार के सवालों का उत्तर देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। और हम कल आपकी चर्चाओं की प्रतीक्षा करेंगे और हम परिणाम की प्रतीक्षा करेंगे। धन्यवाद, महामहिम।
सिहासाक फुआंगकेटकेव: बहुत बहुत धन्यवाद। मुझे यहां बुलाने के लिए धन्यवाद।
एम: आईसीडब्ल्यूए की ओर से, मैं इस अवसर पर एक बार फिर महामहिम श्री सिहासाक फुआंगकेटकेव को धन्यवाद देना चाहता हूं कि उन्होंने इतने महत्वपूर्ण विषय पर विशेष व्याख्यान देने के हमारे अनुरोध को विनम्रतापूर्वक स्वीकार किया। आपकी टिप्पणियों से हमें काफी लाभ हुआ है और बहुमूल्य अंतर्दृष्टि मिली है। मैं आज शाम अपने दर्शकों को इस कार्यक्रम में उनकी बहुमूल्य भागीदारी के लिए भी धन्यवाद देता हूं। अब मैं सभी को फ़ोयर (मनोरंजन शाला) में हाई टी के लिए आमंत्रित करना चाहूंगा। आप सभी को धन्यवाद और आपका दिन शुभ हो।
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