प्रस्तावना
जलवायु परिवर्तन हमारे ग्रह के लिए एक गंभीर खतरा है और इसके शमन की दिशा में काम करने तथा हमारे पर्यावरण को होने वाले नुकसान को रोकने हेतु विश्व स्तर पर तत्काल साथ मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है। अब तक, इस मुद्दे पर दुनिया द्वारा उठाए गए कदम उतने प्रभावी नहीं रहे हैं और इनकी व्यापक आलोचना भी हुई है।[i] व्यापक औद्योगीकरण एवं आर्थिक विस्तार के कारण जलवायु गिरावट एवं ग्रीनहाउस गैसों (जीएचजी) के उत्सर्जन में विकसित देशों के लंबे समय से योगदान को इस चुनौती का मूल कारण माना जाता है।[ii] हालाँकि, जलवायु परिवर्तन शमन के प्रसायों का नेतृत्व करने की क्षमता होने के बावजूद, ये विकसित एवं औद्योगिक देश सकारात्मक बदलाव का नेतृत्व करने और पर्यावरणीय स्थिरता की दिशा में कुशलता से काम करने में असमर्थ रहे हैं।[iii] इसके अलावा, इन देशों ने वित्तीय एवं तकनीकी माध्यमों से विकासशील देशों में जलवायु कार्रवाई का समर्थन करने पर अपने द्वारा की गई प्रतिबद्धताओं को पूरा नहीं किया है।
ग्लोबल साउथ में विकासशील देशों के कमजोर समुदाय व्यापक शमन एवं अनुकूलन कार्यक्रमों को ठीक से वित्त पोषित न कर पाने के कारण जलवायु संकट से असमान रूप से प्रभावित होते हैं।[iv] ग्लोबल साउथ की आवाज़ माना जाने वाला भारत, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने पर वैश्विक चर्चा का एक अभिन्न अंग है। जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए इसकी रणनीति का जीएचजी उत्सर्जन को कम करने के अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
विविध जलवायु क्षेत्र, भूभाग एवं इकोसिस्टम के कारण भारत जलवायु परिवर्तन की वजह से उत्पन्न होने वाले खतरों जैसे आपदाओं, महामारी, फसल को नुकसान, आजीविका और जैव विविधता की हानि, गरीबी एवं विस्थापन सहित अन्य खतरों के प्रति अति संवेदनशील हो जाता है।[v] वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक 2021 के अनुसार, भारत सातवां सबसे अधिक प्रभावित देश है, [vi] जबकि एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि 20 में से 17 भारतीयों को गंभीर जल एवं मौसम संबंधी आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम संबंधी चरम घटनाओं का खतरा है।[vii] हालाँकि, भारत ने जलवायु परिवर्तन के परिणामों एवं घरेलू स्तर पर इसके शमन और अनुकूलन आवश्यकताओं को संतुलित करने हेतु कई कदम उठाए हैं। इसका लंबे समय से संचयी कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन योगदान और प्रति व्यक्ति उत्सर्जन बहुत कम है, जो क्रमशः केवल तीन प्रतिशत और 1.9t CO2 प्रति व्यक्ति है।[viii] इसलिए, चुनौतियों के बावजूद, जलवायु परिवर्तन-प्रेरित चुनौतियों से निपटने में भारत की प्रगति स्थिर रही है।
2023 में सीओपी-28 शिखर सम्मेलन में, प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “भारत उन कुछ अर्थव्यवस्थाओं में से एक है जो राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) लक्ष्यों को पूरा करने की राह पर है। हम 11 साल पहले ही उत्सर्जन तीव्रता से संबंधित गैर-जीवाश्म ईंधन लक्ष्य हासिल कर चुके हैं। हमने गैर-जीवाश्म ईंधन का लक्ष्य तय समय से नौ साल पहले ही हासिल कर लिया है। और, भारत यहीं नहीं रुका। हमारा लक्ष्य 2030 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 45 प्रतिशत तक कम करना है। हमने गैर-जीवाश्म ईंधन की हिस्सेदारी को 50 प्रतिशत तक बढ़ाने का फैसला लिया है। इसने उत्सर्जन तीव्रता को कम करने और 2070 तक शुद्ध शून्य लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए भारत के समर्पण को प्रदर्शित किया।”.[ix] यह उत्सर्जन तीव्रता को कम करने और 2070 तक शुद्ध शून्य लक्ष्य की ओर बढ़ने के भारत के समर्पण को प्रदर्शित करता है।[x]
इसके अलावा, भारत ने वैश्विक मंच पर जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु लगातार कदम उठाने की वकालत की है, जिसमें मानव कल्याण एवं पर्यावरण के अंतर्संबंध पर जोर दिया गया है। 2023 में, जब भारत ने जी20 की अध्यक्षता संभाली, तो अध्यक्षता के दौरान इसका थीम 'एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य' था।[xi] यह थीम भारत के इस विचार पर बल देता है कि दुनिया भर में मानव जीवन आपस में जुड़ा हुआ है। इसलिए, हमारे समाज में चुनौतियों का समाधान करने हेतु साथ मिलकर वैश्विक प्रयास की आवश्यकता है। जी20 शिखर सम्मेलन में भारत ने जलवायु परिवर्तन का सामूहिक रूप से मुकाबला करने की आवश्यकता पर विशेष बल दिया। भारत का मानना है कि पर्यावरण को बेहतर बनाने के उद्देश्य से की गई पहलों में सार्वभौमिक भागीदारी को बढ़ावा देना आवश्यक है।[xii] हमारा देश इस सिद्धांत को रेखांकित करता है कि लोगों एवं पृथ्वी के बीच के संबंधों पर प्रकाश डालते हुए सामूहिक जुड़ाव दुनिया के कल्याण के लिए आवश्यक है। इसलिए, यह शोध-पत्र जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को संबोधित करने हेतु भारत द्वारा शुरू की गई जलवायु परिवर्तन शमन एवं अनुकूलन पहलों पर प्रकाश डालता है और भारत अन्य देशों को इन पहलों में शामिल होने हेतु आमंत्रित करने और उन्हें वैश्विक सहयोगी प्रयासों में बदलने में कैसे सफल रहा है, इसपर चर्चा करता है।
विश्व स्तर पर भारत की नेतृत्व वाली जलवायु परिवर्तन शमन पहल
उपलब्ध नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों का सही तरीके से उपयोग करने हेतु सामूहिक दृष्टिकोण की आवश्यकता और महत्व को समझते हुए, भारत ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई जलवायु परिवर्तन शमन पहल शुरू की है और उनका नेतृत्व किया है। भारत की निम्नलिखित पहल सहयोग के विशिष्ट संसाधनों एवं अवसरों को संबोधित करने के लिए बनाई गई हैं।
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए)
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की परिकल्पना भारत ने सौर-समृद्ध देशों के एक सहकारी नेटवर्क के रूप में की थी। 2015 में, पेरिस जलवायु सम्मेलन में, भारत और फ्रांस ने संयुक्त रूप से सौर ऊर्जा की मदद से नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन को बढ़ावा देने के गठबंधन के रूप में आईएसए की घोषणा की।[xiii] आईएसए का गठन टोरिड ज़ोन के देशों के बीच सहयोग के रूप में किया गया था, जिसमें कर्क रेखा एवं मकर रेखा के बीच के क्षेत्र शामिल हैं, जहां सूर्य की रोशनी प्रचुर मात्रा में है और सौर ऊर्जा उत्पन्न करने की क्षमता अधिक है।[xiv] गठबंधन में शुरुआत में ज्यादातर भागीदार उष्णकटिबंधीय देश थे। हालाँकि, अक्टूबर 2018 में इसकी पहली आम सभा के दौरान, आईएसए के फ्रेमवर्क समझौते में एक संशोधन किया गया, जिससे कोई भी इसका सदस्य बन सकता था और सभी संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों के लिए भागीदारी को खोल दिया गया। वर्तमान में, आईएसए के मुख्य कानूनी पाठ्स पर 116 देश हस्ताक्षरकर्ता हैं, जिनमें से 94 पूर्ण सदस्य बन गए हैं।[xv]
आईएसए का संचालन इसके व्यापक प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर केंद्रित नौ समर्पित कार्यक्रमों के माध्यम से होता है। इन कार्यक्रमों में बड़े पैमाने पर किफायती वित्त, कृषि उपयोग के लिए सौर ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ाना (एसएसएएयू), सोलराइजिंग हीटिंग एवं कूलिंग सिस्टम, स्केलिंग सोलर मिनी-ग्रिड, स्केलिंग सोलर रूफटॉप्स, स्केलिंग सोलर ई-मोबिलिटी एंड स्टोरेज, सोलर पार्क, सोलर फॉर ग्रीन हाइड्रोजन एंड सोलर बैटरी एंड वेस्ट मैनेजमेंट शामिल हैं।[xvi] विभिन्न क्षेत्रों में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने पर अपने समावेशी दृष्टिकोण एवं रणनीतिक फोकस के माध्यम से, आईएसए जलवायु परिवर्तन और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर संक्रमण से निपटने के वैश्विक प्रयासों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अपने सदस्य देशों की सौर क्षमता का लाभ उठाकर और राष्ट्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा देकर, आईएसए सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकियों को अपनाने में तेजी लाने एवं वैश्विक स्तर पर सतत विकास को बढ़ावा देने का प्रयास करता है।[xvii]
वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड (ओएसओडब्ल्यूओजी)
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) के विचार का समर्थन करने हेतु, पीएम मोदी ने 2018 में आईएसए असेंबली में वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड (ओएसओडब्ल्यूओजी) पहल का प्रस्ताव रखा।[xviii] 2021 में सीओपी26 वर्ल्ड लीडर्स समिट के दौरान इसके लॉन्च के साथ इसे और गति मिली।[xix] 80 से अधिक देशों द्वारा समर्थित, ओएसओडब्ल्यूओजी पहल के ज़रिए विश्व स्तर पर ऊर्जा आपूर्ति के नेटवर्क को जोड़ने एवं राष्ट्रीय सीमाओं से परे परस्पर जुड़े बिजली ग्रिड के विकास में सहायता करने का आह्वान किया गया।[xx] मिनी-ग्रिड और ऑफ-ग्रिड समाधानों की मदद से ऊर्जा तक पहुंच को बढ़ाकर और आसान बनाकर, यह पहल एक स्वच्छ-संचालित भविष्य में बदलाव की उम्मीद जगाती है।[xxi]
इस पहल का उद्देश्य जुड़ाव के तीन प्रमुख स्तंभों : राजनीतिक जुड़ाव, संस्थागत जुड़ाव और अनुसंधान व ज्ञान साझा करने के आधार पर वैश्विक सहयोग और इंटरकनेक्टिविटी को बढ़ावा देना है। पहले स्तंभ का उद्देश्य प्रत्येक क्षेत्र के प्रतिनिधि व्यक्तियों या समूहों द्वारा संचालित राजनीतिक सहभागिता के माध्यम से भाग लेने वाले देशों के बीच विश्वास बनाना है। दूसरे स्तंभ का उद्देश्य आईएसए और अन्य बहुपक्षीय हितधारकों वाली एक संयुक्त समिति के नेतृत्व में वित्तीय एवं तकनीकी क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के बीच जुड़ाव को आसान बनाना है। तीसरा स्तंभ नियामकों एवं ग्रिड ऑपरेटरों के अंतरराष्ट्रीय पीयर-टू-पीयर लर्निंग नेटवर्क में ज्ञान एवं जानकारी साझा करने पर केंद्रित है।[xxii] कुल मिलाकर, ओएसओडब्ल्यूओजी साझेदारी के तहत सरकारों और व्यवसायों के बीच सहयोग का उद्देश्य क्षेत्रों और महाद्वीपों में ऊर्जा ग्रिड की पहुंच को बढ़ाना है, जिससे टिकाऊ ऊर्जा तक सार्वभौमिक पहुंच का मार्ग प्रशस्त हो सके। यह सामूहिक प्रयास नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर दुनिया की निर्भरता हेतु आवश्यक बुनियादी ढांचे को विकसित करने का प्रयास करता है, और इस तरह से स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण की विश्वव्यापी पहल को आगे बढ़ाता है।[xxiii]
लीडरशिप ग्रुप फॉर इंडस्ट्री ट्रांज़िशन (LeadIT)
स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन की दिशा में काम करने वाली एक अन्य पहल लीडरशिप ग्रुप फॉर इंडस्ट्री ट्रांज़िशन (LeadIT) है। LeadIT को 2019 में न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासचिव के जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन में लॉन्च किया गया था और इसे जलवायु-सुरक्षित औद्योगिक संक्रमण हासिल करने का एक तंत्र माना गया था।[xxiv] यह प्रयास विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) के समर्थन से स्वीडन और भारत की सरकारों द्वारा शुरू किया गया था और यह भारी उद्योग से शुद्ध-शून्य उत्सर्जन को लक्षित करने वाली पहली वैश्विक उच्च-स्तरीय पहल का प्रतिनिधित्व करता है।[xxv]
स्टॉकहोम पर्यावरण संस्थान के एक अध्ययन के अनुसार, वैश्विक CO2 उत्सर्जन में उद्योगों का योगदान लगभग 30% है। इसलिए, इस क्षेत्र में ग्लोबल वार्मिंग को दो डिग्री तक सीमित करने के पेरिस समझौते के लक्ष्य को हासिल करने हेतु उत्सर्जन में कटौती अधिक की आवश्यकता है।[xxvi] इसके अलावा यह देखते हुए कि उद्योगों द्वारा डीकार्बोनाइजेशन के प्रयास मुख्यतः केवल विकसित देशों में किए जाते हैं, LeadIT से बढ़ते औद्योगिक उत्सर्जन का खामियाजा भुगत रहे विकासशील देशों की विशेष चुनौतियों का समाधान करने की उम्मीद है।[xxvii] इस परिवर्तन को हासिल करने के लिए, LeadIT उच्च-स्तरीय संवादों, डीकार्बोनाइजेशन विशेषज्ञों के बीच बैठकों, वैज्ञानिक उपकरणों के साथ प्रक्रियाओं को बढ़ाने और भारी उद्योग क्षेत्रों में डीकार्बोनाइजेशन योजनाओं और निवेशों पर नज़र रखने के रूप में सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के कारकों के बीच सहयोग को बढ़ाता है।
लीडरशिप ग्रुप फॉर इंडस्ट्री ट्रांज़िशन के दृष्टिकोण के सबसे महत्वपूर्ण घटकों में से एक इंडस्ट्री ट्रांजिशन ट्रैकर है, जो राष्ट्रीय स्तर पर सकारात्मक बदलाव की दिशा में उद्योग के प्रदर्शन एवं प्रगति का एक ऑनलाइन डेटाबेस है।[xxviii] ट्रैकर उद्योग की प्रगति का एक संक्षिप्त अवलोकन दिखाता है, विशेषतः 2050 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने में। यह बड़े पैमाने पर विभिन्न देशों में परिवर्तन की स्थिति की निगरानी करने और भारी उद्योग क्षेत्रों में बदलाव की परिकल्पना करने में मदद करता है।[xxix] इस दृष्टिकोण की मदद से, LeadIT एक सहयोगी नीति नेटवर्क बनाने, वित्तीय प्रवाह को बढ़ाने और स्थायी औद्योगिक कार्यप्रणाली में परिवर्तन में तेजी लाने हेतु अच्छे तरीकों को साझा करने का प्रयास करता है।
वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन
हरित परिवर्तन (ग्रीनर ट्रांजिशन) की आवश्यकता को समझते हुए, भारत ने नई दिल्ली में जी20 शिखर सम्मेलन में प्राथमिकता पहल के रूप में वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य जैव ईंधन पर स्विच करने के जलवायु-सुरक्षित लाभों को हासिल करने हेतु वैश्विक साझेदारी बनाना है।[xxx] गठबंधन में 19 राष्ट्र और 12 अंतर्राष्ट्रीय संगठन हैं, जिनमें विश्व आर्थिक मंच, विश्व बैंक एवं एशियाई विकास बैंक जैसे प्रभावशाली निकाय शामिल हैं।[xxxi] इस गठबंधन में क्रमशः दुनिया के सबसे बड़े और दूसरे सबसे बड़े जैव ईंधन उत्पादक, अमेरिका और ब्राजील भी शामिल हैं।[xxxii]
मुख्यतः टिकाऊ जैव ईंधन को अपनाने में तेजी लाने के उद्देश्य से, इस गठबंधन का लक्ष्य जैव ईंधन प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाने, अप्रत्यक्ष भूमि उपयोग परिवर्तन (आईएलयूसी) से जुड़ी चिंताओं को दूर करने और ठोस मानकों एवं प्रमाणन तंत्र की स्थापना हेतु टिकाऊ जैव ईंधन के उपयोग को बढ़ाने की दिशा में भी काम करना है।[xxxiii] ज्ञान के केंद्र के रूप में, गठबंधन सुरक्षित एवं किफायती नवीकरणीय ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करते हुए वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।[xxxiv] अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी शुद्ध-शून्य उद्देश्यों के साथ संरेखित करने हेतु इस दशक में जैव ईंधन उत्पादन में वार्षिक 11% वृद्धि की आवश्यकता को रेखांकित करती है, जिसे हासिल करने के लिए ग्लोबल बायोफ्यूल एलायंस या वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन प्रयास कर रहा है।[xxxv]
हरित विकास समझौता
जी20 नई दिल्ली घोषणा में हरित विकास समझौता शामिल था,[xxxvi] जिसका उद्देश्य विशेषतः दुनिया के दक्षिण के देशों के सामने आने वाली चुनौतियों का सामना करना और एक हरित समाज की ओर परिवर्तन को प्रोत्साहित करने हेतु मिलकर काम करने के लिए उत्तर और दक्षिण के बीच की खाई को पाटना है। यह समझौता कई विचारों पर आधारित है जो मिलकर इसे आकार देते हैं। सबसे पहला, यह कुशल संसाधन उपयोग और टिकाऊ उपभोग पर आधारित है, जो सतत विकास हेतु लाइफस्टाइल जैसी पहल के सिद्धांतों की विशेषता है।[xxxvii] फिर, यह स्वच्छ और समावेशी ऊर्जा प्रणालियों में परिवर्तन पर केंद्रित है और 2030 तक दुनिया भर में नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने पर जोर देता है।[xxxviii] यह सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के पूरे दायरे सहित, स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में टिकाऊ जलवायु वित्त और महत्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। यह जलवायु विनियमन और टिकाऊ संसाधन प्रबंधन में नीली अर्थव्यवस्था की भूमिका को मान्यता देता है। अंत में, यह आपदा-लचीले बुनियादी ढांचे की आवश्यकता और आपदाओं के प्रभाव को रोकने हेतु जी20 के भीतर एक नए आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्य समूह जैसे प्लेटफार्मों की स्थापना पर भी जोर देता है।[xxxix] ये घटक मिलकर हरित विकास संधि बनाते हैं, जिसे जी20 नेताओं द्वारा पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देने और हरित, अधिक लचीले भविष्य हेतु देशों के बीच सहयोग को आसान बनाने के लिए अपनाया गया है।
मिशन LiFE - लाइफ़स्टाइल फ़ॉर द एनवायरनमेंट
ग्लासगो[xl] में सीओपी26 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा प्रस्तुत मिशन LiFE पहल ने विश्व स्तर पर भारत के नेतृत्व वाले अभियान के लिए मंच तैयार किया है, जिसमें जलवायु परिवर्तन और इसके प्रभावों से निपटने हेतु व्यक्तिगत कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। उन्होंने इसे "विवेकहीन एवं विनाशकारी उपभोग के बजाय सचेत और विचारपूर्वक उपयोग" के लिए वैश्विक अभियान बताया, जिसका उद्देश्य एक स्थायी वातावरण तैयार करना है।[xli] इस प्रकार, इस विचारशील विज़न के साथ, भारत ने अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) में LiFE प्रावधानों एवं दृष्टिकोणों को शामिल किया।[xlii]
मिशन LiFE एक नॉन-लीनियर और समकालीन दृष्टिकोण के ज़रिए संचालित होता है और इसे तीन चरणों में पेश किया गया है। पहला चरण, मांग में बदलाव, दैनिक जीवन में बुनियादी पर्यावरणीय कार्यों में वैश्विक भागीदारी को बढ़ावा देने पर केंद्रित है। इस चरण का उद्देश्य यह सुझाव देना है कि व्यक्ति पर्यावरण के अनुकूल प्रथाओं को अपनाएँ। दूसरा चरण, आपूर्ति में परिवर्तन, बाज़ारों में व्यक्तिगत मांग में बदलाव के आधार पर आपूर्ति रणनीतियों में समायोजन पर केंद्रित है। पर्यावरण-अनुकूल व्यवहारों को व्यापक रूप से अपनाने से आपूर्ति में बदलाव की उम्मीद है, जिसके लिए नई मांगों के अनुरूप खरीद प्रथाओं की आवश्यकता होगी। तीसरा चरण, नीति में बदलाव, औद्योगिक एवं सरकारी नीतियों में प्रमुख बदलावों को लक्षित करके मिशन LiFE के दीर्घकालिक उद्देश्यों को प्राप्त करना चाहता है। मांग एवं आपूर्ति की गतिशीलता को प्रभावित करके, मिशन का लक्ष्य टिकाऊ खपत और उत्पादन को बढ़ावा देना है।[xliii] मिशन LiFE का अंतिम लक्ष्य अधिक टिकाऊ भविष्य के लिए नीतियों में प्रणालीगत बदलाव लाना है।
राष्ट्रीय स्तर पर, भारत LiFE संबंधी कार्यप्रणाली एवं दृष्टिकोणों को बढ़ावा देने हेतु कई कदम उठा रहा है। मिशन LiFE का लक्ष्य 2028 तक भारतीयों में पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवन शैली का प्रचार करना है। देश को उम्मीद है कि 2028 तक भारत में कम से कम 80% ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकाय स्थायी जीवन शैली अपनाएंगे।[xliv] कार्य-उन्मुख दृष्टिकोण के साथ, भारत अन्य देशों के लिए मिशन LiFE में शामिल होने का मंच तैयार करता है, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के एक अध्ययन से पता चलता है कि 2030 तक, इससे प्रति वर्ष 2 बिलियन मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन में कमी हो सकती है।[xlv]
ग्रीन क्रेडिट्स इनिशिएटिव
दुबई में सीओपी28 में मिशन लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट के सिद्धांतों को आगे बढ़ाते हुए, भारत ने एक और ग्रह-समर्थक रणनीति, ग्रीन क्रेडिट इनिशिएटिव का आह्वान किया।[xlvi] विश्व के कई नेताओं द्वारा समर्थित, पीएम मोदी ने स्वीडिश पीएम उल्फ क्रिस्टरसन, मोजाम्बिक के राष्ट्रपति फिलिप जैसिंटो न्यूसी और यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष चार्ल्स मिशेल के साथ ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम का वेब पोर्टल लॉन्च किया।[xlvii] यह पहल पारंपरिक कार्बन क्रेडिट मानसिकता से आगे बढ़कर और कार्बन सिंक बनाने के लिए सार्वजनिक भागीदारी को प्रोत्साहित करके मिशन LiFE को जोड़ती है। यह पर्यावरण की सुरक्षा के उद्देश्य से नए तरीकों और कार्यक्रमों को साझा करने का एक भागीदारी मंच तैयार करना चाहता है।[xlviii]
ग्रीन क्रेडिट्स इनिशिएटिव भारत सरकार के लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट (LiFE) पहल के तहत काम करता है, जो अपनी दो सबसे बड़ी प्राथमिकताओं के रूप में जल संरक्षण एवं वनीकरण के महत्व पर जोर देता है। सरकार के पर्यावरण एजेंडे के भीतर, यह एक ऐसे तंत्र का कार्य करता है जो बाजार में विभिन्न क्षेत्रों एवं हितधारकों के बीच स्वैच्छिक पर्यावरणीय कार्यों को प्रोत्साहित करता है।[xlix] यह एक ऐसी प्रक्रिया का काम करता है जहां खरीद-बिक्री किए जाने योग्य ग्रीन क्रेडिट जारी करके पर्यावरणीय कार्यों को प्रोत्साहित किया जाता है। विशिष्ट पर्यावरणीय गतिविधियों के लिए आवंटित इन क्रेडिट्स का घरेलू बाजार प्लेटफार्मों पर खरीद-बिक्री की जा सकती है।[l] इस दृष्टिकोण का उद्देश्य निगमों और निजी कंपनियों को ग्रह-समर्थक गतिविधियों जैसे पेड़ लगाना, टिकाऊ कृषि संबंधी कार्य करना, जल संरक्षण और उचित अपशिष्ट प्रबंधन के लिए कार्यप्रणाली को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना है। इन कार्यों को प्रोत्साहित करके, यह पहल सतत विकास को बढ़ावा देते हुए देश के सामने आने वाली जलवायु चुनौतियों का समाधान करना चाहती है।[li]
स्थिर पर्यावरणीय परिवर्तनों का बढ़ता जोखिम न केवल संरक्षण बल्कि प्राकृतिक संसाधनों को बहाल करने के महत्व को भी रेखांकित करता है। सफल होने के लिए, इस कार्यक्रम को भारतीय बाजार से परे जाना होगा।[lii] इस पहल में अन्य देशों की भागीदारी से पर्यावरणीय स्थिरता की खोज में तेजी से वृद्धि होगी, जिससे अंतर्राष्ट्रीय सहयोगात्मक दृष्टिकोण का लक्ष्य साकार होगा।
वैश्विक मंच पर भारत के नेतृत्व वाली जलवायु परिवर्तन अनुकूलन पहल
जलवायु परिवर्तन शमन एवं अनुकूलन पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, भारत ने ऐसी योजनाएँ और पहल शुरू की हैं जिसमें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के खिलाफ लचीलापन बनाने में वैश्विक भागीदारी का रास्ता तलशा जाता है। इसलिए, वैश्विक भागीदारी के साथ भारत के नेतृत्व वाली पहल निम्नलिखित हैं जो विशेषतः बेहतर अनुकूलन क्षमताओं एवं कार्यप्रणाली को सक्षम करने की दिशा में काम करती हैं:
आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन (सीडीआरआई)
2019 में न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासचिव के जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन में लॉन्च किया गया, आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन (सीडीआरआई) की अवधारणा भारत द्वारा की गई थी और संयुक्त राष्ट्र द्वारा समर्थित थी।[liii] भारत ने 12 अन्य संस्थापक सदस्यों, अर्थात् ऑस्ट्रेलिया, भूटान, फिजी, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मालदीव, मैक्सिको, मंगोलिया, रवांडा, श्रीलंका और यूके के साथ यह पहल शुरू की। सीडीआरआई अब एक बहु-हितधारक साझेदारी बन गई है जिसमें 31 देशों, छह अंतरराष्ट्रीय संगठनों, बहुपक्षीय विकास बैंकों, शैक्षणिक संस्थानों एवं निजी क्षेत्र के संगठनों की भागीदारी है।[liv]
सीडीआरआई का मुख्य उद्देश्य लचीली अवसंरचना तैयार करना तथा मौजूदा संरचनाओं को अधिक लचीला बनाना है, जिसे अंततः प्राकृतिक आपदाओं के कारण अवसंरचना के नुकसान को कम किया जा सके। सीडीआरआई में ऐसा माना गया है कि प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के नुकसान का 66% तक अवसंरचना की क्षति के कारण हुआ है।[lv] इसलिए, सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) लक्ष्य 9.1 के अनुरूप, इस गठबंधन का लक्ष्य टिकाऊ एवं लचीली अवसंरचना बनाना है और प्रशासन, नीति, उभरती प्रौद्योगिकी, जोखिम मूल्यांकन, पुनर्प्राप्ति और लचीलापन मानकों सहित प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना है।[lvi] इसके अलावा, एसडीजी लक्ष्य 9.क विकासशील देशों को वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्रदान करने के महत्व पर जोर देता है, जिस पर गठबंधन सामूहिक वित्त एवं क्षमता सृजन का आह्वान करके ध्यान केंद्रित करता है। इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (यूएनडीआरआर) का भी अनुमान है कि ढांचागत विकास में निवेश के लिए अगले 20 वर्षों में लगभग 94 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता है।[lvii] इसलिए, भारत ने सीडीआरआई पर सहयोग का आह्वान करने में अग्रणी भूमिका निभाई और सभी स्तरों पर क्रॉस-सेक्टर प्रतिबद्धताओं को बढ़ावा देकर लचीली अर्थव्यवस्थाओं एवं समुदायों को तैयार करने के लिए अपने समावेशी दृष्टिकोण और विकसित एवं विकासशील देशों, छोटे द्वीप विकासशील राज्यों (एसआईडीएस) और लैंडलॉक्ड विकासशील देशों (एलएलडीसी) के प्रयासों में तालमेल बिठाने की क्षमता पर जोर दिया।
इन्फ्रास्ट्रक्चर फॉर रेजिलिएंट आइलैंड स्टेट्स (आईआरआईएस)
ग्लासगो में सीओपी26 शिखर सम्मेलन में लॉन्च किए गए इन्फ्रास्ट्रक्चर फॉर रेजिलिएंट आइलैंड स्टेट्स को स्मॉल आइलैंड डेवलपिंग स्टेट्स (एसआईडीएस) के बुनियादी ढांचे के विकास की दिशा में एक समर्पित कदम के रूप में सीडीआरआई द्वारा सह-निर्मित किया गया था।[lviii] सदस्य देशों द्वारा सहयोगात्मक, व्यवस्थित दृष्टिकोण के ज़रिए स्थायी प्रगति प्राप्त करने में कमजोर द्वीप देशों का समर्थन करने हेतु यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, फिजी, जमैका और मॉरीशस के साथ भारत द्वारा भी इसे पेश किया गया था।[lix] आईआरआईएस का लक्ष्य बुनियादी ढांचे प्रणालियों को मजबूत करने और लचीलापन क्षमता का निर्माण करने के लिए संभावित तकनीकी साझेदारी के अवसरों को निर्धारित करने के लिए एसआईडीएस के साथ काम करना है।
इसके अलावा, आईआरआईएस का उद्देश्य तीन प्रमुख परिणामों को आगे बढ़ाकर एसआईडीएस एक्सेलरेटेड मोडैलिटी ऑफ एक्शन (एसएएमओए) मार्ग में सीधे योगदान देना है। सबसे पहला, यह जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदा-प्रेरित जोखिमों के प्रभावों के खिलाफ एसआईडीएस में बुनियादी ढांचे की लचीलापन को मजबूत करना चाहता है। दूसरे, इसका उद्देश्य ज्ञान को बढ़ाना एवं बेहतर साझेदारियों के माध्यम से एसआईडीएस बुनियादी ढांचे में लचीलापन-निर्माण प्रणालियों को विलय करने पर ध्यान केंद्रित करना है। अंत में, यह अपने दृष्टिकोण के माध्यम से लैंगिक समानता और विकलांगता समावेशन को बढ़ावा देने का भी प्रयास करता है।[lx] इन ठोस प्रयासों के माध्यम से, आईआरआईएस एसआईडीएस में बुनियादी ढांचे की लचीलापन और स्थिरता को आगे बढ़ाने का प्रयास करता है, जिससे उनकी दीर्घकालिक समृद्धि एवं कल्याण में योगदान होता है।
हरित हाइड्रोजन में संक्रमण का मंच तैयार कर रहा है भारत
भारत राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर कई पहलों के ज़रिए शमन योजनाओं में अग्रणी भूमिका कर रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर, भारत सरकार, गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) और विभिन्न निजी पक्ष इस मुद्दों के समाधान हेतु सहयोग कर रहे हैं। राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन जलवायु स्थिरता के प्रति एक ऐसा ही समकालीन दृष्टिकोण है, जिसने बहुत सराहना बटोरी है।
भारत का ऊर्जा संक्रमण सभी क्षेत्रों में नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ाने पर केंद्रित है, जिसमें हरित हाइड्रोजन एक आशाजनक विकल्प के रूप में उभर रहा है। हरित हाइड्रोजन का उत्पादन जल एवं नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से लगातार किया जाता है। न्यूनतम ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करने की अपनी विशेषता के कारण इसमें दिलचस्पी बढ़ रही है।[lxi] इसकी क्षमता को पहचानते हुए, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कई उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए 4 जनवरी, 2022 को राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन को मंजूरी दी।[lxii] इनमें हरित हाइड्रोजन उत्पादन में भारत को विश्व स्तर पर अग्रणी बनाना, निर्यात के अवसर पैदा करना, आयातित जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करना, स्वदेशी विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ावा देना, निवेश आकर्षित करना, रोजगार पैदा करना और अनुसंधान एवं विकास पहल का समर्थन करना शामिल है।[lxiii] हरित हाइड्रोजन के उत्पादन और अपनाने को बढ़ावा देकर, भारत का लक्ष्य अपने कार्बन पदचिह्न को कम करना, ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाना और टिकाऊ तरीकों से आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है।
नीति आयोग द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत का वार्षिक ऊर्जा आयात 160 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है, जिसने इस चुनौती को दूर करने तथा देश को हरित हाइड्रोजन उत्पादन, निर्यात एवं विनिर्माण के एक प्रमुख केंद्र के रूप में स्थापित करने हेतु राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन की स्थापना को प्रेरित किया है।[lxiv] इस पहल के माध्यम से नीति समर्थन जारी है, जिसके माध्यम से 2030 तक सालाना पांच मिलियन मीट्रिक टन हरित हाइड्रोजन के स्वदेशी उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए 197 बिलियन रुपये आवंटित किया जाएगा।[lxv] हालांकि, निर्यात के अवसर काफी अधिक हैं, हरित हाइड्रोजन के लिए स्थानीय मांग पैदा करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। नवीकरणीय ऊर्जा संवर्धन नीतियों के समान, सब्सिडी और खरीद दायित्व स्थानीय मांग को प्रोत्साहित कर सकते हैं, जिससे घरेलू स्तर पर हरित हाइड्रोजन को अपनाने में मदद मिलेगी। इसलिए, शैक्षणिक कौशल, औद्योगिक विशेषज्ञता एवं स्वच्छ ऊर्जा क्षमता का लाभ उठाते हुए, भारत का लक्ष्य हरित हाइड्रोजन के माध्यम से वैश्विक ऊर्जा संक्रमण में अग्रणी बनना है।[lxvi]
निष्कर्ष
दुनिया को जलवायु परिवर्तन के दूरगामी प्रभावों का सामना करना पड़ रहा है। लगातार बढ़ती जनसंख्या और दुनिया भर में औद्योगिक गतिविधियां बढ़ने से जलवायु परिवर्तन के प्रभाव तेजी से बढ़ रहे हैं। जलवायु-संबंधी आपदाओं की बढ़ती संख्या और उन विनाशकारी परिणामों को कम करना महत्वपूर्ण है जिनका दुनिया पहले से ही सामना कर रही है।[lxvii] संसाधनों की कमी, वायु प्रदूषण, बढ़ते वैश्विक तापमान एवं ग्लेशियर के पिघलने के व्यापक प्रभावों से कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता स्पष्ट होती है। यदि जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग मौजूदा स्तर से जारी रहे तो गंभीर परिणाम होंगे।
भारत उन पहलों का नेतृत्व कर रहा है जिसमें जलवायु परिवर्तन एवं इसके परिणामी प्रभावों से निपटने हेतु सामूहिक दृष्टिकोण की तलाश की जाती है। देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी सराहना मिली है क्योंकि इसकी पहल में दुनिया भर की भागीदारी देखी गई है। इन पहलों का नेतृत्व करने में भारत की निर्णायक भूमिका विकासशील देशों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने की उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाती है। यह अन्य देशों की तुलना में बेहतर संसाधन होने के बावजूद जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को संबोधित करने में विकसित देशों की अप्रभावीता पर भारत के रुख को भी दर्शाता है। इस मुद्दे के समाधान हेतु बेहद जरूरी वैश्विक सहयोग पर भारत का जोर उसके नेतृत्व दृष्टिकोण में दिखाई देता है, क्योंकि सौर ऊर्जा, जैव ईंधन, हरित हाइड्रोजन आदि जैसे नवीकरणीय संसाधन पहले से ही मौजूद हैं और उनका उपयोग किया जा रहा है। भारत ने इन संसाधनों का सही तरीके से उपयोग करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोगी नेटवर्क की शुरुआत की है।
इसके साथ-साथ, भारत ने ऊर्जा उत्पादन के हरित तरीकों को अपनाने की अपनी क्षमता बढ़ाई है। गैर-जीवाश्म बिजली उत्पादन में वृद्धि हुई है, नवीकरणीय क्षमता 165 गीगावॉट तक पहुंच गई है, जो कुल बिजली उत्पादन क्षमता का 40% है।[lxviii] सौर क्षमता में पर्याप्त वृद्धि देखी गई है, जो 60.8 गीगावॉट तक पहुंच गई है, जबकि परमाणु ऊर्जा 6.78 गीगावॉट का योगदान देती है, जिसमें से कुल उत्पादन में 42% गैर-जीवाश्म बिजली है।[lxix] भारत की जलवायु परिवर्तन नीतियां जलवायु परिणामों के साथ विकास को संरेखित करने को प्राथमिकता देती हैं, भेद्यता को कम करने हेतु मिशन और कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करती हैं। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और स्वच्छ तकनीकों को बढ़ाने की प्रतिबद्धताओं और रणनीतियों के साथ, भारत ने 2016 से अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) को पूरा करने में बड़ी प्रगति की है।[lxx] उत्सर्जन की तीव्रता को कम करने के प्रयास सफल रहे हैं, लक्ष्य पहले ही हासिल कर लिए गए हैं और भविष्य के लिए लक्ष्य तय किए गए हैं।[lxxi] यह प्रगति टिकाऊ ऊर्जा और जलवायु कार्रवाई के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती है और नवीकरणीय एवं गैर-जीवाश्म स्रोतों के माध्यम से ऊर्जा के उत्पादन में लगातार वृद्धि की निगरानी करने और जलवायु-अनुकूल और पर्यावरण के प्रति जागरूक वैश्विक सहयोगी पहलों का नेतृत्व करने की देश की क्षमता को रेखांकित करती है।
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*विजय आनंद पनिगढ़ी, भारतीय वैश्विक परिषद, नई दिल्ली में शोध प्रशिक्षु हैं।
अस्वीकरण : यहां व्यक्त किए गए विचार निजी हैं।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
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[iii] Sridharan, S. (2023, September 16). Climate change: Global South suffers from developed world's inaction. Policy Circle. Retrieved March 7, 2024, from https://www.policycircle.org/opinion/climate-change-inaction-inertia/.
[iv] Suri (2023), op. cit.
[v] Sharma, S. (2023, January 16). India's Climate Change Policy: Challenges and Recommendation. Indian School of Public Policy. Retrieved March 4, 2024, from https://www.ispp.org.in/indias-climate-change-policy-challenges-and-recommendations/.
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[ix] Modi, N. (2023, December 1). Special Address by the Prime Minister at the inauguration of High Level Segment of COP-28 of HoS/HoG. Press Information Bureau. Retrieved March 8, 2024, from https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1981612.
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[xi] Mehta (2023), op. cit.
[xii] Mehta (2023), op. cit.
[xiii] Jha, V. (2023, October 18). International Solar Alliance: Bridging the Gap. CSEP. Retrieved March 13, 2024, from https://csep.org/reports/international-solar-alliance-bridging-the-gap/.
[xiv] Jha, V. (2023, October 18). International Solar Alliance: Bridging the Gap. CSEP. Retrieved March 13, 2024, from https://csep.org/reports/international-solar-alliance-bridging-the-gap/.
[xv] Jha, V. (2023, October 18). International Solar Alliance: Bridging the Gap. CSEP. Retrieved March 13, 2024, from https://csep.org/reports/international-solar-alliance-bridging-the-gap/.
[xvi] Guvvadi (2023), op. cit.
[xvii] Guvvadi (2023), op. cit.
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[xxxvi] Modi (2023), op. cit.
[xxxvii] Modi (2023), op. cit.
[xxxviii] Modi (2023), op. cit.
[xxxix] Modi (2023), op. cit.
[xl] Modi (2023), op. cit.
[xli] Modi (2023), op. cit.
[xlii] Modi (2023), op. cit.
[xliii] Modi (2023), op. cit.
[xliv] Modi (2023), op. cit.
[xlv] Modi (2023), op. cit.
[xlvi] Yadav (2023), op. cit.
[xlvii] Yadav (2023), op. cit.
[xlviii] Yadav (2023), op. cit.
[xlix] Yadav (2023), op. cit.
[l] Yadav (2023), op. cit.
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[liii] IISD. (2019, October 3). India Launches Global Coalition for Disaster-Resilient Infrastructure | News | SDG Knowledge Hub | IISD. SDG Knowledge Hub. Retrieved March 14, 2024, from https://sdg.iisd.org/news/india-launches-global-coalition-for-disaster-resilient-infrastructure/.
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[lix] The Hindu. (2021, November 2). PM Modi launches 'Infrastructure for Resilient Island States' for most vulnerable countries. The Hindu. Retrieved March 14, 2024, from https://www.thehindu.com/news/national/pm-modi-launches-infrastructure-for-resilient-island-states-for-most-vulnerable-countries/article37299999.ece.
[lx] The Hindu. (2021, November 2). PM Modi launches 'Infrastructure for Resilient Island States' for most vulnerable countries. The Hindu. Retrieved March 14, 2024, from https://www.thehindu.com/news/national/pm-modi-launches-infrastructure-for-resilient-island-states-for-most-vulnerable-countries/article37299999.ece.
[lxi] Rao, A. (2024, February 15). India's Plans to Achieve Cost-Effective Green Hydrogen Production. India Briefing. Retrieved March 19, 2024, from https://www.india-briefing.com/news/india-strives-for-cost-effective-green-hydrogen-production-30876.html/.
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[lxvii] Singh, A., Bose, A., & Negi, A. (2022, July 8). How does India taken a leadership role in tackling climate change? MyGov Blog. Retrieved March 6, 2024, from https://blog.mygov.in/editorial/how-does-india-taken-a-leadership-role-in-tackling-climate-change-3/.
[lxviii] Deb, K., & Kohli, P. C. (2022, December 8). Assessing India's Ambitious Climate Commitments - Center on Global Energy Policy at Columbia University SIPA | CGEP. Center on Global Energy Policy. Retrieved March 19, 2024, from https://www.energypolicy.columbia.edu/publications/assessing-india-s-ambitious-climate-commitments/.
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[lxxi] Deb, K., & Kohli, P. C. (2022, December 8). Assessing India's Ambitious Climate Commitments - Center on Global Energy Policy at Columbia University SIPA | CGEP. Center on Global Energy Policy. Retrieved March 19, 2024, from https://www.energypolicy.columbia.edu/publications/assessing-india-s-ambitious-climate-commitments/.
[lxxi] Ibid.
[lxxi] Sharma (2023), op. cit.
[lxxi] Yadav (2023), op. cit.