1. आज यहाँ इस भूमि पर, जिसका वर्णन कवियों, दार्शनिकों और ऋषियों ने अत्यधिक अलंकृत शब्दों में किया है, पर, आपसे संवाद करना मेरे लिए बहुत ही सम्मान और सौभाग्य की बात है।
2. मैं महान रामकृष्ण के प्रमुख शिष्य और प्रसिद्ध दार्शनिक एवं आध्यात्मिक नेता स्वामी विवेकानंद के शब्दों को उद्धृत करना चाहता हूँ: “उस समय से भी पहले, जब इतिहास का कोई लिखित प्रमाण नहीं है, और परंपरा उस गहन अतीत के अंधकार में झांकने का साहस नहीं करती, तब से लेकर अब तक, एक के बाद एक विचार उसके भीतर से निकले हैं, लेकिन हर शब्द के पीछे आशीर्वाद और उसके आगे शांति है।”
3. मुझे सप्रू हाउस में बोलने का अवसर पाकर बहुत खुशी हो रही है, जो न केवल विदेश नीति के उल्लेखनीय वास्तुकारों का निवास रहा है बल्कि स्वतंत्र भारत के पहले नेता पंडित जवाहरलाल नेहरू भी नियमित रूप से आते थे। यह मुझे पंडित नेहरू और मलेशिया के पहले प्रधानमंत्री टुंकू अब्दुल रहमान की गहरी दोस्ती की याद दिलाता है। विश्वास और साझा मूल्यों पर आधारित उनका सौहार्द हमारे लगभग सात दशकों के द्विपक्षीय संबंधों की नींव बना, ये संबंध मजबूत और अडिग रहे हैं।
4. आज अनिश्चितता के इस युग में, हम अपने नेताओं की विरासतों पर नज़र डालते हैं और देखते हैं कि किस प्रकार मानदंडों को आकार देने के उनके विचार और प्रयास पूरे क्षेत्र में गूंजे हैं और पहले से कहीं अधिक आज हमारे साथ प्रतिध्वनित होते हैं।
5. “हम कहाँ जाएं और हमारा प्रयास क्या होना चाहिए?” जैसा कि हम सभी जानते हैं, यह वही प्रश्न है जिसे पंडित नेहरू ने अपने ए ट्रस्ट विद डेस्टिनी (A Tryst With Destiny) भाषण में पूछा था और बहुत ही संक्षेप में उत्तर दिया था: “भारत के आम आदमी, किसानों और श्रमिकों को स्वतंत्रता एवं अवसर प्रदान करना; एक समृद्ध, लोकतांत्रिक और प्रगतिशील राष्ट्र का निर्माण करना तथा ऐसे सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संस्थानों का निर्माण करना जो प्रत्येक पुरुष और महिला के लिए न्याय और जीवन की परिपूर्णता सुनिश्चित करेंगे।”
6. चुनौतियों और अनिश्चितताओं से भरी दुनिया में, इन सिद्धांतों के प्रति अटूट प्रतिबद्धता ही हमें एक उज्जवल, अधिक न्यायपूर्ण कल की ओर ले जाएगी। संस्थापक पिताओं की विरासत न केवल उनके समय का प्रमाण है बल्कि एक कालातीत प्रकाशस्तंभ है, जो हमें सपने देखने, प्रयास करने और अदम्य साहस और अडिग संकल्प के साथ आगे बढ़ने का आग्रह करता है।
वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ)
दोस्तों और साथियों,
7. अपने व्याख्यान के विषय को ध्यान में रखते हुए, मैं इस बात से शुरुआत करना चाहता हूँ कि वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) एक ऐसी आवाज़ को पुनःप्राप्त करने का प्रतिनिधित्व करता है जिसे उभरते अंतरराष्ट्रीय क्रम में अब और अनदेखा नहीं किया जा सकता है। वैश्विक समृद्धि के चालक के रूप में, वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) आज विश्व के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 40% और विश्व की आबादी का लगभग 85% हिस्सा है। साल 2030 तक, चार सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से तीन वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) से होंगें– उनमें से एक निश्चित रूप से भारत होगा।
8. वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) की कहानियों के पुनरुत्थान और अंतरराष्ट्रीय प्रणाली में अधिक भागीदारी की इच्छा ने क्षेत्रीय शक्तियों को अग्रिम मोर्चे पर ला खड़ा किया है, जिससे उन्हें एजेंसी का प्रयोग करने और वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) एजेंडा कैसा होना चाहिए, इसके बारे में चर्चा को आकार देने के अवसर मिल रहे हैं।
9. वास्तव में, इस भू–राजनीतिक मोड़ पर, जहाँ रणनीतिक अनिश्चितताएं और चितांएं आम बात हैं, सभी के लिए समान अवसर के साथ एक साझा सामूहिक भलाई की तलाश में खुद को शामिल करना वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) एजेंडे का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए।
10. जैसा कि मैं देखता हूँ, एक सशक्त वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) अपरिहार्य है। अब वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने के उचित अवसर हैं, जिन्हें हम एक दूसरे के परामर्श से तय कर सकते हैं और यह निश्चित रूप से उन महत्वपूर्ण मुद्दों पर है जिन पर हम अभी भी अपना पैर जमा रहे हैं– जलवायु परिवर्तन, आपूर्ति श्रृंखला लचीलापन, खाद्य सुरक्षा और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस शासन।
11. मलेशिया की ओर से, हम मानते हैं कि वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) का उदय हमें हमारी सभी विविधताओं, मतभेदों और विवेक में एकजुट करता है। आलोचकों के भारी नकारात्मक अर्थों के बावजूद, वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) का मतलब वैश्विक उत्तर (ग्लोबल नॉर्थ) को बाहर करना नहीं है। वास्तव में, वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) की लामबंदी हमारी बढ़ती एजेंसी की स्वीकृति और हमारे जटिल रणनीतिक संदर्भों में समान रूप से एक साथ काम करने की इच्छा पर आधारित है।
12. और मेरे हिसाब से, भारत ने इस वास्तविकता का स्वागत शालीनता, दूरदर्शिता और सबसे महत्वपूर्ण– योजना के साथ किया है। पिछले साल भारत की शानदार जी20 अध्यक्षता और वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट के उद्घाटन ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत अपने भागीदारों के साथ मिलकर ग्लोबल साउथ एजेंडा को आकार देने के लिए तैयार है। वास्तव में, मलेशिया भी अफ्रीकी संघ के जी20 में शामिल होने पर गर्व करता है और इन भागीदारों एवं क्षेत्रों द्वारा लाए जाने वाले अपार मूल्य को समझता है।
रणनीतिक साझेदारी को बढ़ाना
13. हालाँकि हमने अपने द्विपक्षीय सहयोग में महत्वपूर्ण प्रगति की है, फिर भी इसे और मजबूत करने की बहुत गुंजाइश है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री मोदी और मैंने आज अपने संबंधों को व्यापक रणनीतिक साझेदारी तक बढ़ाने पर सहमति जताई। इससे कनेक्टिविटी, दीर्घकालिक आर्थिक विकास, हरित विकास, तकनीकी परिवर्तन और सार्वजनिक वस्तुओं की डिलीवरी की हमारी साझा प्राथमिकताओं को उचित मान्यता मिलेगी।
14. जैसा कि हम दोनों देशों के बीच घनिष्ठ संबंधों की आशा करते हैं, हमारे लिए हाल के वर्षों में की गई प्रगति का जायजा लेना अच्छा रहेगा और व्यापार के क्षेत्र में यह बात कहीं अधिक स्पष्ट है।
व्यापार
15. आज, मलेशिया और भारत के बीच 16.5 अरब अमेरिकी डॉलर का कारोबार होता है जो पिछले दो दशकों में 5% की प्रभावशाली चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ा है। यह वृद्धि प्रक्षेपवक्र केवल एक आंकड़ा नहीं है बल्कि मलेशिया– भारत व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते और आसियान– भारत मुक्त व्यापार समझौते जैसे ढांचों द्वारा सुगम बनाए गए गहरे आर्थिक संबंधों का प्रमाण है।
16. इसके अलावा, हमारे देशों के बीच व्यापार संरचना का विकास मलेशिया और भारत में व्यापक आर्थिक परिवर्तनों को दर्शाता है। दो दशक पहले, भारत को मलेशिया के निर्यात में पाम ऑयल और पेट्रोलियम उत्पादों का वर्चस्व था जो कुल निर्यात का लगभग दो– तिहाई था। हालांकि, जैसे– जैसे मलेशिया की अर्थव्यवस्था में विविधता आई है, वैसे– वैसे हमारे व्यापार पोर्टफोलियो में भी विविधता आई है। आज, ये प्राथमिक वस्तुएँ भारत को निर्यात किए जाने वाले कुल वस्तुओं का केवल एक– तिहाई हिस्सा हैं, जबकि इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पाद प्रमुख निर्यात वस्तुएं बन गई हैं। यह बदलाव मलेशिया के उच्च– मूल्य– वर्धित उद्योगों की ओर संक्रमण को रेखांकित करता है।
17. भारत के नज़रिए से भी इसमें उल्लेखनीय बदलाव आया है। पहले, मलेशिया को भारत का निर्यात मांस, डेयरी और अनाज तक सीमित था लेकिन अब पेट्रोलियम उत्पाद और इंजीनियरिंग सामान मलेशिया के भारत से आयात के सबसे बड़े घटक के रूप में उभरे हैं। यह विविधीकरण भारत की बढ़ती औद्योगिक क्षमता को उजागर करता है, एक ऐसा विकास जो उपर्युक्त आर्थिक ढांचों द्वारा पूरित है, जिसने व्यापार बाधाओं को कम किया है और व्यापार प्रवाह को सुगम बनाया है।
18. बेशक, यह कहना कम बय़ानी होगी, क्योंकि हम यह मानते हैं कि भारत का नाममात्र सकल घरेलू उत्पाद 2025 तक जापान से और 2030 तक जर्मनी से आगे निकल जाएगा क्योंकि यह विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
19. स्पष्ट रूप से, मलेशिया और भारत दोनों ने हमारी आर्थिक साझेदारी में एक लंबा सफ़र तय किया है। व्यापार गतिशीलता में परिवर्तन न केवल हमारी बढ़ती आर्थिक क्षमताओं को दर्शाता है बल्कि उन रणनीतिक समझौतों को भी दर्शाता है जिन्होंने इस विकास को आधार बनाया है। हमारे व्यापार संबंधों के ऐसे आधारभूत तत्वों के साथ, आगे की राह बहुत आशाजनक है, जो भावी आर्थिक सहयोग एवं विकास हेतु विशाल अवसर प्रदान करती है।
भू– अर्थशास्त्र
20. वास्तव में, हमारे लिए उच्च तकनीक क्षेत्र में एक– दूसरे की क्षमताओं का लाभ उठाने की बहुत गुंजाइश है– जैसे, हमारे दोनों देशों में सेमीकंडक्टर उद्योग में एकीकरण को गहरा करने की काफी संभावना है। मलेशिया पहले से ही विश्व का छठा सबसे बड़ा सेमीकंडक्टर निर्यातक देश है। हमारे देश की विशेषज्ञता विशेष रूप से सेमीकंडक्टर मूल्य श्रृंखला के असेंबली, परीक्षण और पैकेजिंग खंडों में निहित है, जबकि सॉफ्टवेयर में भारत की क्षमताएं लगभग बेजोड़ हैं, इसके इंजीनियर दुनिया भर में सबसे कुशल और मांगे जाने वाले इंजीनियरों में से हैं। डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना विकास में भारत के नेतृत्व को देखते हुए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। फिर भी, जबकि अन्य लोग मलेशिया और भारत के बीच भिन्न क्षमताओं को देख सकते हैं, मैं एक जीवंत सहजीवन की संभावना देखता हूँ।
21. मैं यह कहते हुए अतिश्योक्ति नहीं कर रहा हूँ कि मलेशिया– भारत के बीच मजबूत संबंध वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) के बेहतर संपर्क के लिए महत्वपूर्ण हैं। हावई मार्ग से भारत से बहुत अच्छी तरह से जुड़े दक्षिण– पूर्व एशियाई देशों में से एक के रूप में, मलेशिया रणनीतिक रूप से हमारे क्षेत्रों के बीच व्यापार, शिक्षा और पर्यटन के लिए निर्बाध आवागमन को प्रोत्साहित करने के लिए स्थित है। हम सड़क मार्ग से दक्षिण– पूर्ण एशिया से जुड़ने के भारत के प्रयासों से भी परिचित हैं और भारत– म्यांमार– थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग के शीघ्र चालू होने की आशा करते हैं, जो मलेशिया के लिए भी उपयोगी होगा।
22. इसके अलावा, इंडियन ओशियन रिम एसोसिएशन (आईओआरए) में हमारी संयुक्त सदस्यता हमें बदलाव और विकास के लिए आगे बढ़ने का अवसर देती है। इस समय, मैं भारत को हिंद– प्रशांत पर आईओआरए के नज़रिए के प्रारूपण का नेतृत्व करने के लिए बधाई देना चाहता हूँ जो मुझे यकीन है कि हमारे प्रयासों को प्रासंगिक और परिप्रेक्ष्य में रखेगा।
23. अंतरराष्ट्रीय सहयोग के विषय पर, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस समय अंतरराष्ट्रीय प्रणाली की एक परिभाषित विशेषता द्विपक्षीयवाद (मिनिलेटरलिज़्म) है। कुछ लोगों के इस विचार के विपरीत कि ऐसी व्यवस्थाएँ विवादास्पद हैं, मलेशिया का मानना है कि मिलिलेटरल तंत्र अंतत) हमारे लोगों को लाभ पहुँचाने और जीवन स्तर को बढ़ाने के लिए सार्वजनिक वस्तुओं की डिलीवरी की दिशा में काम करते हैं।
24. इस तरह, मलेशिया एजेंसी का प्रयोग करने और इन व्यवस्थाओं में भाग लेने से पीछे नहीं हटेगा, जैसा कि हम उचित समझते हैं। ब्रिक्स में शामिल होने के लिए हमारा हालिया आवेदन इसका अच्छा उदाहरण है। ब्रिक्स में भाग लेकर, हमारा उद्देश्य अपने आर्थिक कूटनीति प्रयासों में विविधता लाना और साझा पहलों एवं रणनीतिक साझेदारी के माध्यम से सदस्य देशों के साथ अपने सहयोग को बढ़ाना है। ब्रिक्स के भीतर भारत की विशिष्ट और प्रभावशाली भूमिका विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि हम मानते हैं कि हमारे मजबूत द्विपक्षीय संबंध समूह की गतिशीलता में महत्वपूर्ण मूल्य जोड़ेंगे। हमें विश्वास है कि इस समूह में हमारा प्रवेश न केवल भारत के साथ हमारे आर्थिक संबंधों को मजबूत करेगा बल्कि उद्योगों एवं नीति क्षेत्रों के व्यापक स्पेक्ट्रम में सहयोग के नए रास्ते भी खोलेगा।
दोस्तों और साथियों,
क्षेत्रीय और उप– क्षेत्रीय
25. अब मैं अपना ध्यान हमारे क्षेत्रीय और उप– क्षेत्रीय व्यवस्थाओं की ओर दिलाना चाहता हूँ जो वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) एजेंडे को आकार देने में सहायक होंगे। आगामी आसियान अध्यक्ष के रूप में, मलेशिया न केवल वर्तमान आसियान व्यवस्थाओं और संस्थाओं को मजबूत करने एवं उन्हें उद्देश्य के अनुकूल बनाने पर ध्यन केंद्रित करेगा बल्कि क्षेत्रीय विकास और समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण अन्य ढांचों के साथ तालमेल भी बनाएगा।
26. इस संदर्भ में आसियान के दीर्घकालिक संवाद भागीदारों में से एक के रूप में भारत एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आसियान– भारत साझेदारी पूरे क्षेत्र में आर्थिक विकास, सुरक्षा सहयोग और सांस्कृतिक आदान– प्रदान को बढ़ावा देने में सहायक रही है। हम इस सहयोग को और गहरा करने में बहुत संभावना देखते हैं, विशेष रूप से तब जब हम आसियान की प्राथमिकताओं को वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) का समर्थन करने वाली व्यापक पहलों के साथ जोड़ना चाहते हैं। भारत और अन्य संवाद भागीदारों के साथ मिल कर काम करके, हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि आसियान क्षेत्रीय एकीकरण में सबसे आगे रहे और क्षेत्र में संवहनीय विकास हेतु प्रेरक शक्ति बना रहे।
27. दूसरा, आसियान और बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी– सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकॉनमिक कोऑपरेशन (बिमस्टेक/ BIMSTEC) के बीच बेहतर जुड़ाव न केवल हमारे क्षेत्रों को जोड़ेगा बल्कि उन चुनौतियों, जरूरतों और प्राथमिकताओं पर भी प्रकाश डालेगा जिन्हें हमेशा ‘मुख्यधारा’ नहीं माना जाता। ये चुनौतियाँ, जो हमारे भूदृश्यों को आकार देने वाले भूगोल, हमारी आबादी को परिभाषित करने वाले अनूठे जनसांख्यिकी या हमारी आजीविका को बनाए रखने वाले विशेष संसाधनों में निहित हो सकती हैं, वे खामोश लेकिन शक्तिशाली ताकतें हैं जिन्हें स्वीकार और संबोधित किया जाना चाहिए।
28. इस प्रयास में, वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) एजेंडा का सार एक अंतर्निहित लामबंदी से कम नहीं होना चाहिए– जो हमारे साझा मानदंडों और मूल्यों में दृढ़ता से निहित हो और जो वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) की विशेषता वाली असाधारण विविधता का सम्मान करे।
दोस्तों और साथियों,
शासन– अंतराल और भूराजनीति
29. मैं अभूतपूर्व समय में भारत के दौरे पर आया हूँ। प्रतिस्पर्धा, प्रतिद्वंद्विता और भू– राजनीति के क्षेत्र में अत्यधिक उतार– चढ़ाव अब यथास्थिति बन गए हैं। हम एक अंतराल में जी रहे हैं और सांस ले रहे हैं, जीवन के स्थिर होने और उस चरण में वापस लौटने की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जिससे हम परिचित हैं। लेकिन कठोर वास्तविकता यह है कि जिन संस्थानों और संरचनाओं के साथ हम काम करते हैं और फलते– फूलते हैं, वे आज की चुनौतियों का प्रभावी तरीके से जवाब नहीं दे सकते हैं।
30. एक उभरती हुई शक्ति के रूप में भारत ने आज की बू– राजनीतिक अनिश्चितताओं से निपटने में उल्लेखनीय लचीलापन और सूझबूझ दिखाई है। भारत का अनूठा बहु– संरेखित दृष्टिकोण, जिसके लिए प्राथमिकताओं और चुनौतियों का चतुराईपूर्ण और कुशल विभाजन आवश्यक है, सीखने लायक है– विशेष रूप से उभरते हुए हिंद– प्रशांत व्यवस्था के केंद्र में स्थित एक दक्षिण– पूर्व एशियाई देश के नज़रिए से।
31. मैं यह दोहराना चाहूँगा कि भारत और मलेशिया के बीच संबंध मजबूत, जीवंत और जीवंत व्यापार, वाणिज्यिक एवं सांस्कृतिक संबंधों के बल पर बने हैं लेकिन सबसे बढ़कर ये संबंध साझे अनुभवों, समान लक्ष्य और सदियों पुराने पारिवारिक संबंधों पर आधारित हैं।
32. हमारे संबंधों में धारणाओं को आकार देने की एक जबरदस्त शक्ति है, एक अद्वितीय गतिशीलता जो हमारे संबंध की असाधारण प्रकृति की गवाही देती है जो महज कूटनीति से परे हैं और हमारे साझा अस्तित्व के मूल्य को छूती है।
33. जबकि अटलांटिक महासागर को साम्राज्यवादी विस्तार, वीभत्स उपनिवेशवाद और दासता के काले इतिहास को झेलना पड़ रहा है और प्रशांत महासागर की दुनिया तनावों से ग्रस्त है एवं शीत युद्ध के नवीनीकरण के केंद्र में है, यहां हिंद महासागर की दुनिया में हम वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए एक स्थिर और लचीला आधार बना सकते हैं।
समावेशिता, नैतिकता और मानवता
34. हमें उन आलोचकों को नहीं कहना चाहिए जो यह तर्क देते हैं कि बहुसंस्कृतिवाद, समावेशिता और साझा समृद्धि केवल सुविधा की निर्मितियां हैं जिनकी पूर्ति असंभव है क्योंकि जैसा कि वे कहते हैं, मनुष्य एक आर्थिक प्राणी है जो आत्म– संरक्षण और आत्म– प्रशंसा की प्रवृत्ति से प्रेरित होता है।
35. हम ऐसी धारणा को अस्वीकार करते हैं जो अलगाववाद की दयनीय गंध को सहन करती हैं और बहिष्कारवाद एवं संरक्षणवाद के झूठे देवताओं की पूजा करती है क्योंकि हमारा मानना है कि कोई भी व्यक्ति द्वीप नहीं है और कोई भी व्यक्ति दूसरों की मदद एवं सहयोग के बिना वास्तव में समृद्ध नहीं हो सकता है।
36. फिर भी, हम प्रशांत और अटलांटिक महासागर के साथ अपने सहज और गहरे संबंधों के प्रति अंधे नहीं हो सकते। हम दरवाज़े बनाने के व्यवसाय में नहीं हैं, दीवारें तो दूर की बात है, बल्कि उन पुलों को मजबूत करने में लगे हैं जो हमें एक दूसरे से जोड़ते हैं।
37. महात्मा गांधी के अमर शब्द याद आ रहे हैं: “‘ पाप से घृणा करो, पापी से नहीं' एक ऐसा सिद्धांत है जिसे समझना तो आसान है लेकिन इसका पालन शायद ही कभी किया जाता है और यही कारण है कि दुनिया में नफ़रत का ज़हर फैलता है।”
38. हम पर चरमपंथ के सभी रूपों और दुर्भावना, विद्वेष और शत्रुता का खतरा मंडरा रहा है जो निरपेक्ष हठधर्मिता से पैदा होता है। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, जैन, यहूदी, ईसाई, बौद्ध– हम इतिहास और मूल्यों को साझा करते हैं। हम ज्ञान के स्रोत साझा करते हैं और यादों के उस साझा ख़ज़ाने में हम सत्य, नैतिकता, मानवता और शांति के लिए अपनी सहज इच्छा के अपने साझा मूल्यों को प्रमाणित करते हैं।
39. हमें हर दिन होने वाली आक्रामकता से लेकर लाखों फिलिस्तीनियों को हिंसक तरीके से उखाड़ फेंकने और विस्थापित करने की राजनीति और हज़ारों निर्दोष लोगों की हत्या करने वाले नरसंहारों तक अंतरधार्मिक हिंसा के खिलाफ खड़ा होना चाहिए। हम सभी इस बात पर सहमत हो सकते हैं चाहे हमारी पृष्ठभूमि कुछ भी हो, कि यह निश्चित रूप से न तो हमारा उच्च आह्वान है और न ही मानव जाति का उच्च उद्देश्य एक दूसरे को नीचा दिखाना और बर्बाद करना है।
दोस्तों और साथियों,
आखिर में
40. जिस रास्ते पर हम खड़े हैं, वह आसान नहीं होगा। हम विश्व में होने वाले भयानक बदलावों, आंदोलनों के मुहाने पर खड़े हैं जो हर चक्कर के साथ इसे थोड़ा अलग तरीके से घुमाते हैं। और हाँ, आगे हमेशा खतरे रहेंगे जो छाया में छिपे होंगे। लेकिन हमें उनका सामना करने में निडर होने का संकल्प लेना चाहिए। यह याद रखना चाहिए कि सच्ची महानता जीवन के तूफानों से बचने में नहीं बल्कि अडिग संकल्प के साथ उनका सामना करने में निहित है।
41. एक सामंजस्यपूर्ण और न्यायपूर्ण विश्व की हमारी अथक खोज में, जहाँ शांति का शासन हो और समभाव हमारा मार्गदर्शक हो, हमें प्रख्यात रवीन्द्रनाथ टैगोर की गहन बुद्धिमत्ता याद आती है। उनके शब्द समय के गलियारों में गूंजते हैं, हमें सुरक्षा के आराम को अपनाने के लिए नहीं, बल्कि प्रतिकूल परिस्थितियों का डटकर सामना करने के लिए अदम्य साहस का आग्रह करते हैं: “मुझे खतरों से बचने के लिए प्रार्थना नहीं करनी चाहिए बल्कि उनका सामना करने में निडर होना चाहिए।”
42. विचारों के शिल्पकारों के इस स्वर्ग में, जहाँ की हवा राष्ट्र निर्माण के उस निरंतर कार्य की ऊर्जा से गूंजती है, आईए हम मिलकर एक ऐसे भविष्य बनाने का संकल्प लें जो हमारे साझा प्रयासों की चमक से प्रकाशित हो और उन आदर्शों के प्रति अटूट प्रतिबद्ध हों जो हमें परिभाषित करते हैं।
धन्यवाद।
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