महामहिम, प्रतिष्ठित विशेषज्ञ और मित्रो!
पृष्ठभूमि
‘माइन एक्शन : पाथवे टू ए सेफ़र वर्ल्ड’ विषय पर आयोजित इस संगोष्ठी को संबोधित करते हुए मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है, जिसका आयोजन युद्ध-पश्चात् पर्यावरण प्रबंधन संगठन होराइजन ग्रुप, थिंक टैंक इंडिया इंटरनेशनल फोरम ऑन माइन एक्शन एंड सेफ्टी (आईआईएफओएमएएस) द्वारा किया गया है और सेंटर फॉर लैंड वारफेयर स्टडीज (सीएलएडब्लूएस) और भारतीय वैश्विक परिषद (आईसीडब्ल्यूए) द्वारा समर्थित है। मैं आयोजकों को आज चर्चा के लिए इस विषय को चुनने हेतु धन्यवाद देती हूं, जो दुनिया में बढ़ते युद्ध और संघर्ष को देखते हुए सही समय पर आयोजित हो रही है।
निरस्त्रीकरण
2. मैं आयोजकों को इस विषय को निरस्त्रीकरण के नज़रिए से देखने के उनके प्रयास के लिए भी बधाई देना चाहूंगी। भारत में निरस्त्रीकरण की एक लंबी परंपरा है। निरस्त्रीकरण का समर्थन करना दुर्बलता या पिछड़ापन का संकेत नहीं है, बल्कि यह विचारों की समृद्धि, आध्यात्मिक शक्ति और सार्वभौमिक भाईचारे की भावना का प्रतीक है। निरस्त्रीकरण मानव जाति और हमारे भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक है। इसके अलावा, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि निरस्त्रीकरण से मानवता के संसाधनों का सही उपयोग हो सकेगा तथा पूरी दुनिया में शांति का माहौल बन सकेगा।
वास्तविकताएँ
3. हालाँकि, शांति की दिशा में काम करने के बजाय, आज दुनिया युद्ध के रास्ते पर चलती दिख रही है। प्रतिस्पर्धा और घृणा की गहरी भावना ने अंतर-देश संबंधों से लेकर अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था तक, प्रौद्योगिकी से लेकर अंतर-धार्मिक इंटरफेस तक पूरी दुनिया के सभी क्षेत्रों में अपनी जगह बना ली है। इसलिए, ऐसे समय में जब निरस्त्रीकरण के दृष्टिकोण की जरुरत सबसे अधिक है, वास्तविकताएँ इससे अलग नज़र आती हैं। इसके अलावा, निरस्त्रीकरण के मसले पर पारंपरिक उत्तर-दक्षिण का विभाजन कम नहीं हो रहा है क्योंकि प्रमुख शक्तियाँ यह भूल चूंकि हैं कि निरस्त्रीकरण अभी भी वैश्विक एजेंडा है।
निकट भविष्य
4. क्या मौजूदा भू-राजनीतिक बदलाव और वैश्विक उथल-पुथल के परिणामस्वरूप निरस्त्रीकरण प्रमुख मुद्दा बन पाएगा; क्या निरस्त्रीकरण नई विश्व व्यवस्था का एक आधारभूत सिद्धांत बन जाएगा - यह तो समय ही बताएगा!
सुरंगों की बढ़ती संख्या
5. ज़मीन और समुद्र दोनों जगह सुरंगें कई शताब्दियों से मौजूद हैं; लेकिन 20वीं सदी में इनका प्रसार, जो कि खूनी था, अभूतपूर्व पैमाने पर हुआ है। विश्व युद्धों के दौरान और उसके कारण इनका उपयोग जबरदस्त तरीके से बढ़ा। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, आज, अफ़गानिस्तान, कंबोडिया, वियतनाम, सीरिया, यमन, इराक जैसे लगभग 70 देश लगभग 110 मिलियन सक्रिय बारूदी सुरंगों की वजह से अत्यधिक प्रदूषित हैं। संयुक्त राष्ट्र की वेबसाइट के अनुसार, बारूदी सुरंगों के कारण हर महीने लगभग 1000-2000 लोग मारे जाते हैं और अपंग हो जाते हैं और अगर कोई नई बारूदी सुरंग नहीं बनाई गई तो दुनिया से अभी की सभी सक्रिय बारूदी सुरंगों को हटाने में 1100 साल लग जाएँगे - यह हर तरह से एक बेतुका आँकड़ा है!
वर्तमान उपयोग
6. यूक्रेन और गाजा में चल रहे युद्ध में अक्सर बारूदी सुरंगों का इस्तेमाल किया जाता रहा है। अफ्रीकी महाद्वीप के दक्षिण सूडान, डीआरसी, अंगोला, सोमालिया और साहेल क्षेत्र सहित अन्य संघर्षग्रस्त देशों में अधिक संख्या में बारूदी सुरंगों का इस्तेमाल किया जा रहा है। दक्षिण पूर्व एशिया में, लाओ पीडीआर, कंबोडिया, वियतनाम, म्यांमार समकालीन और दशकों पुरानी बारूदी सुरंगों से प्रभावित हैं, जो भविष्य की पीढ़ियों को प्रभावित कर रही हैं। गैरकानूनी सशस्त्र समूहों, आतंकवादी संगठनों और विद्रोही समूहों द्वारा भी बारूदी सुरंगों और आईईडी का अंधाधुंध और गैर-जिम्मेदाराना तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है।
सैन्य रणनीतियाँ
7. बारूदी सुरंगें बिछाना सैन्य और नौसेना की तैयारियों का मुख्य काम है। दुश्मन को नुकसान पहुँचाने और रोकने के लिए, बारूदी सुरंगें कई प्रमुख शक्तियों और अन्य देशों की युद्धक्षेत्र रणनीतियों और सैन्य सिद्धांतों में उपयोगी साबित होती रही हैं। भारत अपने प्रतिकूल सुरक्षा माहौल कि वजह से बारूदी सुरंगों के उपयोग को मजबूर है। इसे निषेध करने से न केवल क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा परिवेश में सुधार होगा, बल्कि सभी पक्षों की ओर से स्थायी एवं सतत शांति तथा निरस्त्रीकरण पर दृढ़ एवं स्पष्ट प्रतिबद्धता भी देखने को मिलेगी। इसके लिए विश्वास का माहौल होना अनिवार्य है।
भारत का कर्तव्यनिष्ठ दृष्टिकोण
8. यह कहने की जरुरत नहीं है कि भारत सभी प्रकार की बारूदी सुरंगों पर सार्वभौमिक और स्पष्ट प्रतिबंध लगाने हेतु प्रतिबद्ध है। स्वेच्छा से और अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सचेत, भारत न तो बाहरी और न ही घरेलू स्तर पर बारूदी सुरंगों का व्यापार या लेनदेन करता है। इसने लंबे समय से नॉन-डिटेक्टबल बारूदी सुरंगों का उत्पादन बंद कर दिया है और अपने अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों का अनुपालन करते हुए सभी नॉन-डिटेक्टबल बारूदी सुरंगों को डिटेक्टबल बना दिया है। भारत में प्राइवेट सेक्टर द्वारा बारूदी सुरंगों का निर्माण नहीं किया जाता है।
बारूदी सुरंगों को हटाने की चुनौतियाँ और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की जरुरत
9. हालांकि, बारूदी सुरंगों का संक्रमण भारत के लिए कोई गंभीर मुद्दा नहीं है, लेकिन यह उन देशों के लिए गंभीर मुद्दा है जो, जैसा कि मैंने कहा, विशेष रूप से अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया में, लंबे समय से या अन्यथा संघर्ष से त्रस्त हैं। बारूदी सुरंगों को हटाने में आने वाली चुनौतियाँ जैसे कि पुरानी बारूदी सुरंगें, अलग-अलग तरह की बारूदी सुरंगें, बारूदी सुरंगों को हटाने के दौरान पर्यावरण संरक्षण, विविध भूभाग व स्थलाकृति, जलवायु परिस्थितियाँ, प्रौद्योगिकी उन्नयन, लागत प्रभावी समाधान हेतु अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता है; इसके लिए सर्वोत्तम तरीकों को साझा करना, क्षमता सृजन, तकनीकी सहयोग और जागरूकता पैदा करना सबसे महत्वपूर्ण हैं।
माइन एक्शन के प्रति भारत का दृष्टिकोण
10. माइन एक्शन के प्रति भारत का दृष्टिकोण बहुआयामी है और इसमें संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना, द्विपक्षीय सहायता और प्रशिक्षण, घरेलू अनुसंधान एवं विकास तथा समाधानों की तैनाती, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और नागरिक समाज के साथ सहयोग के ज़रिए योगदान शामिल है। इसमें माइन हटाने के अभियान, जन जागरूकता अभियान, पीड़ितों की सहायता, वित्तीय, रोजगार व स्वास्थ्य सहायता के ज़रिए पीड़ितों का पुनर्वास और अपंग हुए लोगों को विधायी संरक्षण शामिल है। यह निरस्त्रीकरण और मानवीय उद्देश्यों के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
11. भारत ने कंबोडिया, लाओ पीडीआर, अंगोला, बेनिन और अफगानिस्तान में काम करने वाली माइन क्लीयरेंस टीमों को प्रशिक्षित किया है। भारत ने श्रीलंका में माइन क्लीयरेंस कार्यों के लिए सहायता प्रदान की है। आतंकवादियों, चरमपंथियों और गैरकानूनी सशस्त्र समूहों द्वारा आईईडी का उपयोग भी भारत के लिए विशेष चिंता का विषय है क्योंकि वह दशकों से सीमा पार आतंकवाद का शिकार रहा है। आईईडी पर प्रशिक्षण हेतु भारतीय उत्कृष्टता केंद्र ने भूटान, बांग्लादेश, ऑस्ट्रेलिया और वियतनाम सहित कई विदेशी प्रतिनिधिमंडलों के लिए कार्यशालाएँ आयोजित की हैं।
12. महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर, भारतीय विदेश मंत्रालय ने प्रसिद्ध भारतीय धर्मार्थ संगठन भगवान महावीर विकलांग सहायता समिति (बीएमवीएसएस) के साथ मिलकर 2018 में ‘इंडिया फॉर ह्यूमैनिटी’ पहल की शुरुआत की, जिसमें कृत्रिम अंग - ‘जयपुर फुट’ - फिटमेंट कैंप आयोजित किए गए। इस पहल के अंतर्गत मलावी, इराक, नेपाल, मिस्र, बांग्लादेश, इथियोपिया, सीरिया, श्रीलंका, मंगोलिया आदि देशों में हजारों कृत्रिम अंग लगाए गए हैं। इस पहल को 2026 तक बढ़ा दिया गया है।
13. भारत प्राइवेट सेक्टर की खनन निरोधक संस्थाओं जैसे होराइजन ग्रुप के ज़रिए भी अन्य देशों को माइन क्लीयरेंस में अपनी विशेषज्ञता प्रदान करके अपनी भूमिका निभा रहा है। माइन क्लीयरेंस ऑपरेशन के साथ-साथ, होराइजन ग्रुप विदेशों में पीड़ितों की सहायता और जोखिम शिक्षा जैसी कल्याणकारी गतिविधियों में भी भाग ले रहा है। हमें उम्मीद है कि इस क्षेत्र में ऐसी और भी भारतीय संस्थाएँ सामने आएंगी।
समापन टिप्पणी
14. जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय के सामने बारुदी सुरंगों से पीड़ितों की याद में रखी गईं बड़ी टूटी हुई कुर्सी हमें आगाह करती है कि ‘दुनिया तीन पैरों वाली कुर्सी पर टिकी हुई है’ और सभी देशों और सभी लोगों से जागने और हथियारों से होने वाली मौत व विनाश से निपटने का आह्वान करती है। कुर्सी के बगल में पानी के फव्वारे जहां बच्चे नहाते और खेलते हुए दिखते हैं, इस बात का प्रतीक हैं कि ‘मानव हृदय में आशा हमेशा बनी रहती है’। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहमत मानदंड, नियम, सहयोग की भावना और निरस्त्रीकरण ही मानव जाति के लिए आगे बढ़ने का एकमात्र समझदारी भरा तरीका है।
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