हस्ताक्षर करने के बाद से यह पहली बार है कि बीते दो सालों में दो से अधिक बार भारत ने सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) में संशोधन हेतु स्थायी सिंधु आयोग (पीआईसी) के माध्यम से पाकिस्तान को समन भेजा है या इस संबंध में इस्लामाबाद को पत्र लिखा है।[i] पहला औपचारिक समन 25 जनवरी 2023 को जारी किया गया था जो कि भारत की दो पनबिजली परियोजनाओं (एचईपी)– झेलम पर 330 मेगावाट की किशनगंगा एचईपी (केएचईपी) और चेनाब पर 850 मेगावाट की रतले एचईपी, पर, पाकिस्तान की आपत्तियों पर चर्चा करने के लिए हेग में मध्यस्थता न्यायालय (सीओए) की बैठक से ठीक दो दिन पहले था। इसके बाद, भारत ने 27 जनवरी 2023 को सीओए की बैठक का बहिष्कार किया क्योंकि नई दिल्ली का रुख इन परियोजनाओं से संबंधित मामलों को एक ‘तटस्थ विशेषज्ञ’ (एनई) के माध्यम से हल करने का है। आईडब्ल्यूटी के प्रावधानों के अनुसार, सीओए में जाने से पहले एनई को मामले पर गौर करना चाहिए। सीओए की बैठक का बहिष्कार करके भारत ने मतभेदों को सुलझाने की प्रक्रिया को चुनौती दी। अप्रत्यक्ष रूप से, इसने आईडब्ल्यूटी के मध्यस्थ विश्व बैंक (डब्ल्यूबी) पर भी सवाल उठाया कि उसने एनई और सीओए दोनों प्रक्रियाओं को एक साथ चलाने की अनुमति दी, न कि बाद में। 30 अगस्त 2024 की तिथि वाला दूसरा समन इस संधि की ‘समीक्षा और संशोधन’ के उद्देश्य से भेजा गया था जो ‘एकतरफा’ है। 20 जनवरी 2025 को, एनई, मिशेल लिनो ने कहा कि वह इस मामले पर निर्णय लेने के लिए ‘सक्षम’ हैं, जिससे इस मुद्दे पर भारत की स्थिति कुछ हद तक सही साबित होती है।
इन समनों को भेजकर भारत ने 64-वर्ष पुराने सिंधु जल संधि को अपडेट करने की जरूरत को स्पष्ट रूप से दर्ज किया है। यह देखते हुए कि सिंधु जल संधि को अक्सर दो देशों के बीच कूटनीतिक बातचीत और विवाद समाधान के एक बेहतरीन उदाहरण के रूप में उद्धृत किया जाता है, यह सवाल उठाता है कि भारत अब इसे संशोझित करने पर क्यों विचार कर रहा है? इसके अलावा, एनई के बयान का आईडब्ल्यूटी के भविष्य के क्या अर्थ है? इन्हें समझने के लिए, हमें आईडब्ल्यूटी के तहत उठे कु विवादों पर गौर करना होगा और मामले के व्यापक ढांचे के भीतर दो एचईपी पर चल रहे मतभेदों को समझना होगा।
कूटनीतिक सुनहरा पल
साल 1947 में विभाजन के कारण, नव निर्मित राष्ट्र– भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल प्रणाली के विभाजन को लेकर समस्या उत्पन्न हुई। उस समय, जल वितरण पर एक यथास्थिति करार पर हस्ताक्षर किए गए थे, जो समस्याओं को हल करने में विफल रहा। नौ साल की बातचीत के बाद 19 सितंबर 1960 को कराची में भारत के प्रधानमंत्री जवाहलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने आईडब्ल्यूटी पर हस्ताक्षर किए। चूंकि वार्ता प्रक्रिया विश्व बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष यूज़ीन ब्लैक द्वारा शुरू की गई थी, इसलिए विश्व बैंक भी इस संधि पर हस्ताक्षरकर्ता बन गया और इस संधि के अंतर्गत एक तीसरा पक्ष, मध्यस्थ बना हुआ है।
संधि में 12 अनुच्छेद हैं, जिनमें से पहला अनुच्छेद सिंधु, झेलम और चेनाब को पश्चिमी नदियों के रूप में और सतलुज, ब्यास और रावी को पूर्वी नदियों के रूप में परिभाषित करता है।[ii] अनुच्छेद II के अनुसार, “पूर्वी नदियों का सारा पानी भारत के अप्रतिबंधित उपयोग के लिए उपलब्ध होगा”, जबकि अनुच्छेद III में कहा गया है कि “पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों का वह सारा पानी अप्रतिबंधित उपयोग के लिए मिलेगा जिसे भारत को अनुमत उपयोग से परे बहने देना है।”[iii] भारत को पश्चिमी नदियों का उपयोग चार उद्देश्यों के लिए करने की अनुमति है– घरेलू उपयोग, गैर– उपभोग्य उपयोग, कृषि उपयोग और जलविद्युत उत्पादन– जिनमें से सभी को आईडब्ल्यूटी में परिभाषित किया गया है।[iv]
साल 1960 के आईडब्ल्यूटी को एक सफलता के रूप में सराहा गया, विशेषरूप से तब जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हो चुका था, इसके बावजूद कठिन बातचीत के बाद एक व्यापक रुपरेखा पर सहमति बनी। उसी समय के अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट आइज़नहावर ने कहा था कि यह संधि “बेहद निराशाजनक विश्व तस्वीर का अच्छा पहलू" है।[v]
भारत और पाकिस्तान के बीच पूर्ण युद्ध लड़े जाने के बावजूद आईडब्ल्यूटी में सफलता के कुछ अच्छे उदाहरण हैं। चिनाब नदी पर सलाल बांध को लेकर 1974 में पाकिस्तान द्वारा उठाई गई पहली आपत्ति का 1978 में समाधान किया गया था। इसी तरह, पाकिस्तान द्वारा उठाए गए छह विशिष्ट डिजाइन आपत्तियों के बावजूद 2010 तक बगलिहार एचईपी पर मुद्दों का समाधान, भारत और पाकिस्तान के बीच आईडब्ल्यूटी के तहत जल कूटनीति को किसी भी अन्य चीज़ की तुलना में अधिक प्रभावी बनाता है। दरअसल, उसी साल पाकिस्तान ने झेलम पर 240 मेगावाट की उरी II एचईपी और सिंधु की सहायक नदी सुरू पर 44 मेगावाट की चुतक एचईपी पर अपनी आपत्तियां भी वापस ले लीं। यह पहली बार था जब किसी परियोजना के डिजाइन से जुड़े मुद्दे को पीआईसी स्तर पर सफलतापूर्वक सुलझाया गया था।[vi]
बढ़ते विवाद
सिंधु जल संधि भी समस्याओं से अछूती नहीं रही है। भारत द्वारा पाकिस्तान को हाल ही में भेजे गए समन को सिंधु जल संधि से जुड़ी दो बहसों के संदर्भ में पढ़ा जाना चाहिए।
पहला, संधि के अनुसार भारत के पानी के हिस्से के बारे में है। सिंधु नदी प्रणाली के पानी का लगभग 20% भारत को उसके अनन्य उपयोग के लिए, 33 मिलियन एकड़ फीट (एमएएफ) आवंटित किया गया है। शेष 80%, 135 एमएएफ, पाकिस्तान को आवंटित किया गया है।[vii] हालांकि, इसे पाकिस्तान के पक्ष में एक अनुचित व्यवस्था के रूप में देखा जा सकता है जिस पर भारत ने एक ऊपरी तटवर्ती देश के रूप में सहमति व्यक्त की थी, आशा है कि इससे पाकिस्तान अधिक सुरक्षित महसूस करेगा। हालांकि पाकिस्तान का असंतोष शुरू से ही दिखाई दे रहा था। तुलबुल नौवहन परियोजना इसका एक उदाहरण है। साल 1984 में बनाया जाना शुरू किए जाने के बाद पाकिस्तान द्वारा इस पर आपत्ति जताए जाने के बाद 1987 में इस परियोजना को स्थगित करना पड़ा था। इसमें कहा गया था कि वुलर बैराज भंडारण परियोजना, जिसे पाकिस्तान में तुलबुल परियोजना के लिए इस्तेमाल किया जाता है, आईडब्ल्यूटी के तहत अनुमत भंडारण क्षमता से अधिक भंडारण क्षमता का उल्लंघन कर रही थी। भारत द्वारा समझौता किए जाने के बावजूद, पाकिस्तान ने इस परियोजना को पूरी तरह से खारिज कर दिया। कई वार्ताएं– 1998, 2004, 2006–07 (समग्र वार्ता के तहत), 2011 और 2012 – इस मामले को सुलझा नहीं सकीं, हालांकि भारत इसके निलंबन के– 1987 के फैसले की समीक्षा कर रहा है [viii] और इस मुद्दे पर फिर से चर्चा करने पर ज़ोर दे रहा है जिसे पाकिस्तान ने नज़रअंदाज़ कर दिया है।
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत के लिए समस्या यह है कि पाकिस्तान ने पश्चिमी नदियों पर भारत द्वारा कार्यान्वित की गई या कार्यान्वित की जाने वाली परियोजनाओं पर लगातार और बार– बार आपत्तियां उठाई हैं। जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, भारत के पास पश्चिमी नदियों पर कुछ विशेष अधिकार भी हैं। फिर भी, ध्यान देने योग्य बात है कि “पश्चिमी नदियों की बिजली परियोजनाओं से प्राप्त की जा सकने वाली लगभग 20,000 मेगावाट की अनुमानित बिजली क्षमता में से भारत द्वारा अब तक केवल 3,482 मेगावाट की क्षमता का” निर्माण किया जा सका है।[ix] इसका यह मतलब नहीं है कि भारत ने पाकिस्तान के जल क्षेत्र का अतिक्रमण किया है। हालाँकि, विशेष रूप से आईडब्ल्यूटी के उल्लंघन के ‘डिज़ाइन’ के बहाने, इस्लामाबाद ने पश्चिमी नदियों के अपने हिस्से का उपयोग करने के भारत के प्रयासों को रोकना अपनी आदत बना ली है। उदाहरण के लिए, केएचईपी ( KHEP) पर पहली बार 1988 में आपत्ति जताई गई थी।[x] साल 2005 तक, भारत द्वारा प्रस्तावित डिज़ाइन परिवर्तनों के बावजूद, पाकिस्तान ने सहमती नहीं जताई। इस मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान के बीच 2005–06 में हुई समग्र वार्ता के दौरान भी उठाया गया था। इस पर की गई आपत्तियों में से चार डिज़ाइन से जुड़ी थीं और अन्य दो जल मोड़ एवं जलाशय की गाद प्रबंधन के कानूनी पहलुओं से संबंधित थीं।[xi] साल 2013 में, सीओए ने भारत के रुख को सही ठहराया, विशेष रूप से नीलम (झेलम) नदी से पानी मोड़ने के उसके अधिकार को।[xii] इनमें से एक मुद्दे को दोनों आयुक्तों द्वारा सौहार्दपूर्ण तरीके से सुलझाए जाने के बावजूद,[xiii] 2014 में एक बार फिर पाकिस्तान ने आपत्ति जताई। साल 2016 तक, इस मामले को इसके डिज़ाइन पर तीन मुख्य आपत्तियों के साथ सीओए के पास भेज दिया गया, प्रक्रिया में मामले को एनई को संदर्भित नहीं किया गया था। इसी प्रकार, रतले, पाकल दुल, लोअर कलनई आदि जलविद्युत परियोजनाएं उन परियोजनाओं में से हैं, जिनके डिजाइन पर पाकिस्तान की आपत्तियां, भारत को रन–ऑफ– द– रिवर (आरओआर) परियोजनाओं से पनबिजली उत्पादन का लाभ उठाने, यह अधिकार भारत को सिंधु जल संधि के तहत प्राप्त है, से रोकने के प्रयास के अलावा और कुछ नहीं लगतीं।
दूसरी बहस जिसके माध्यम से भारत के समनों को देखा जा सकता है, वह है– नई दिल्ली के रणनीतिक और राष्ट्रीय हित। सिंधु जल प्रणाली के ऊपरी तटवर्ती राष्ट्र होने की स्थिति का दुरुपयोग न करने के बावजूद, भारत को कभी भी कोई सराहना नहीं मिली, न ही पाकिस्तान ने जल को लेकर स्वयं को सुरक्षित महसूस किया, यहाँ तक कि आईडब्ल्यूटी के लागू होने के बाद भी। पिछले दशक में भारत– पाकिस्तान के रिश्ते केवल खराब ही हुए हैं, विशेष रूप से जब सीमा पार से आतंकवाद जारी रहा, जो जल कूटनीति के घटते दायरे को दर्शाता है। साल 2016 में उरी में भारतीय सैन्य अड्डे पर हमले के बाद, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सिंधु जल संधि के रणनीतिक पहलू पर विचार करने के लिए एक अंतर– मंत्रालयी टास्क फोर्स बनाया था, जिसमें कहा गया था कि “खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते”।[xiv] तब से, भारत ने आईडब्ल्यूटी के प्रावधानों के अनुसार पश्चिमी और पूर्वी दोनों नदियों के पानी को अनुकूल स्तर तक प्रबंधित और उपयोग करने संबंधी कई परियोजनाओं में तेज़ी लाई है। भारत के अनन्य उपयोग के तहत पूर्वी नदियों के संबंध में, 95% पानी का उपयोग किया गया है। हालांकि, रावी नदी से हर साल करीब 2 एमएफए पानी का इस्तेमाल नहीं हो पाता है, जिसके प्रबंधन के लिए भारत ने बीते कुछ सालों में कदम उठाए हैं।[xv] पश्चिमी नदियों पर हाल के वर्षों में नियोजित परियोजनाओं में 540 मेगावार क्वार, 1000 मेगावाट पाकल दुल, 624 मेगावाट किरू, 390 मेगावाट किर्थई I और 930 मेगावाट किर्थई II, 1856 मेगावाट सावलकोट आदि शामिल हैं। इन मामलों में भी पाकिस्तान की बढ़ती आपत्तियों ने भारत के आईडब्ल्यूटी के तहत अपने अधिकार का उल्लंघन किया है। ऐसा तब है जब भारत ने पीआईसी के जरिए सभी आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराई है।
जैसा कि समझा जाता है, मुद्दों को सुलझाने के लिए आईडब्ल्यूटी के अनुच्छेद IX के तहत एक क्रमिक व्यवस्था दी गई है। उठाए जाने वाले किसी भी ‘प्रश्न’ की सबसे पहले ‘आयोग द्वारा जांच’ की जाती है। यदि समाधान नहीं हो पाता, तो ‘मतभेद’ को विश्व बैंक द्वारा नियुक्त ‘तटस्थ विशेषज्ञ’ के समक्ष रखा जाता है। अंतिम उपाय के रूप में ही कोई ‘विवाद’ हेग में सीओए के पास जाता है। हाल के मामले में, पाकिस्तान ने 2015 में एनई के जरिए मामले को सुलझाने की कोशिश की लेकिन अगले ही साल वह सीओए की राह पर चल पड़ा। यह पाकिस्तान द्वारा संधि प्रक्रियाओं का उल्लंघन करने और इसे एकतरफा रूप से विवाद घोषित करने के जैसा है। यहाँ इस बात पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि आईडब्ल्यूटी का अनुच्छेद VII भविष्य के सहयोग और “नदियों के इष्टतम विकास में साझा हितों” पर ज़ोर देता है जो संधि की भावना को स्पष्ट करता है। यदि सहकारी भावना ही सवालों के घेरे में हैं तो संधि के प्रावधान भी सवालों के घेरे में हो सकते हैं। इसके अलावा, अनुच्छेद XII (3) में कहा गया है कि “संधि के प्रावधानों को समय– समय पर संशोधित किया जा सकता है”। इसी धारा के तहत हाल ही में आईडब्ल्यूटी में “संशोधन” की मांग करने हेतु समन भेजे गए थे। यह पहली बार नहीं है कि इस तरह के संशोधन का सुझाव दिया गया है। अगस्त 2021 में, भारत में एक संसदीय स्थायी समिति ने जल संसाधन प्रबंधन को प्रभावित करने वाले नए कारकों, जैसे– जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग और उन्नत ज्ञान एवं प्रौद्योगिकियों के मद्देनज़र आईडब्ल्यूटी को संशोधित करने की अनुशंसा की जो संधि पर हस्ताक्षर किए जाने के समय मौजूद नहीं थे।[xvi]
आगे क्या?
कानूनन, भारत ने सिंधु जल संधि से संबंधित मामलों में जैसा उचित समझा वैसा किया। जब भारत और पाकिस्तान दोनों ने 2016 में, एनई और सीओए के माध्यम से, अलग– अलग तरीकों से समाधान की मांग की तो इस मुद्दे पर विश्व बैंक ने 'विराम' लगा दिया। हालांकि, 2022 में, सीओए में एक एनई और एक अध्यक्ष दोनों को नियुक्त करके, विश्व बैंक ने संधि की अपनी व्याख्या करने की आज़ादी ले ली, एक ऐसा रवैया जिससे भारत खुश नहीं है। साल 2023 में, भारत ने कहा कि आईडब्ल्यूटी पर पाकिस्तान के ‘अड़ियल रवैये’ ने उसे समन भेजने पर विवश किया, साथ ही एक ही सवाल पर समानांतर प्रक्रियाओं का पालन करना अभूतपूर्व है और एक विरोधाभासी/‘कानूनन अस्थिर’ स्थिति पैदा करता है। यह स्थिति अभी भी कायम है। भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि पाकिस्तान आईडब्ल्यूटी में संशोधन के अनुरोधों को नज़रअंदाज़ करता है तो पीआईसी की कोई बैठक आयोजित नहीं की जा सकती। यही कारण है कि मई 2022 में पीआईसी की 118वीं बैठक अंतिम बैठक थी।
हालांकि भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि के प्रावधानों को लेकर विवाद बढ़ रहे हैं, लेकिन लंबे समय से चली आ रही इस संधि से दोनों पड़ोसियों के बीच तत्काल जल युद्ध की आशंका नहीं है। समन को तकनीकी मामले के रूप में देखा जाना चाहिए, जो पाकिस्तान को 90 दिनों के भीतर जवाब देने के लिए बाध्य करता है। साल 2023 और 2024 दोनों में, पाकिस्तान ने निर्धारित समय के भीतर जवाब दिया, हालांकि, आईडब्ल्यूटी में संशोधन के मूल मुद्दे का समाधान किए बिना या संतोषजनक उत्तर दिए बिना। साल 2023 के आईडब्ल्यूटी समन में, पाकिस्तान के अटॉर्नी जनरल ने कहा था कि भारत एकतरफा तरीके से आईडब्ल्यूटी में बदलाव नहीं कर सकता।[xvii] हालांकि, ऐसा लगता है कि इस्लामाबाद अपने एकतरफा फैसले को भूल गया है, जिसमें उसने वर्तमान मुद्दों के संबंध में एनई की नियुक्ति की बजाए सीओए के पास जाने का फैसला किया था।
इस स्तर पर, भारत ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि वह संधि में क्या संशोधन करना चाहता है (कम– से– कम सार्वजनिक रूप से) लेकिन उसने दो जलविद्युत परियोजनाओं के बारे में सात सवालों को उत्तरदाता के समक्ष रखा है। उत्तरदाता द्वारा हाल ही में दिए गए बयान, जिसमें कहा गया है कि भारत के सभी प्रश्न उसके 'सक्षम' अधिकार क्षेत्र में आते हैं, भारतीय पक्ष को मजबूत बनाते हैं। यदि भारत इस मामले को आगे बढ़ाना जारी रखता है और कानूनी रास्ता अपनाना पड़ता है तो एनई द्वारा अपने विचार दिए जाने के बाद विश्व बैंक को सीओए का रास्ता अपनाना पड़ सकता है। हालांकि यह सीधे तौर पर भारत की जीत नहीं हो सकती है लेकिन यह इस मामले पर भारत की स्थिति को सही साबित करता है। इससे भारत को सिंधु जल संधि के बारे में नया नजरिया विकसित करने के लिए तकनीकी मार्ग अपनाने में मदद मिलेगी और पाकिस्तान को बातचीक के लिए विवश होना पड़ेगा। सिंधु जल संधि में संशोधन से भारत को ही लाभ होगा और वह सिंधु जल प्रणाली के जल का अधिक संतोषजनक तरीके से उपयोग कर सकेगा।
हाल के घटनाक्रमों के रणनीतिक पहलू को कम नहीं आंका जा सकता। अगर मामले को कानूनी तरीके से आगे बढ़ाया जाए और सही निर्णय लिया जाए तो भारत को लाभ मिलने की आशा है। हालांकि, इस संबंध में कुछ बातों पर सावधानी बरती जाने की जरूरत है। सबसे पहले, चिनाब नदी पर, विशेष रूप से, कई परियोजनाओं की योजना बनाई गई हैं और उन्हें मंजूरी दी जा रही है।[xviii] पारिस्थितिकी या पर्यावरण के मोर्चे पर पाकिस्तान को किसी भी तरह का लाभ उठाने से रोकने के लिए, परियोजना नियोजन और मूल्यांकन के शुरुआती चरण में प्रोटोकॉल का पालन किया जाना चाहिए। दूसरा, विश्लेषकों ने पाकिस्तान द्वारा चीन की मौन मदद लेने की संभावना के बारे में चेतावनी दी है।[xix] ऐसे कई तरीके हैं जिनके ज़रिए चीन इस मामले का फ़ायदा उठा सकता है, सबसे ज्यादा उम्मीद की जाने वाली बात यह है कि वह ब्रह्मपुत्र बेसिन पर ऊपरी तटवर्ती देश के रूप में फ़ायदा उठा सकता है। चीन ने ब्रह्मपुत्र के ऊपरी हिस्से पर कई परियोजनाओं की योजना बनाई है/ निर्माण किया है जिससे भारत की चिंताएं बढ़ गईं हैं। इसके अलावा, आईडब्ल्यूटी को न केवल दक्षिण एशिया में बल्कि व्यापक स्तर पर विवाद समाधान का एक बेहतरीन उदाहरण माना जाता है। जैसे– जैसे यह कमज़ोर होता जाएगा, आने वाले समय में द्विपक्षीय भारत– पाक मुद्दों के द्वार खुलते या बढ़ते हुए दिख सकते हैं।
फिर भी, किसी भी नतीजे को अच्छे से समझने के कारण, भारत ने यह आकलन किया है कि अपने राष्ट्रीय हितों और अधिकारों की रक्षा के लिए यह जोखिम उठाना उचित है। ऐसे में जब भारत अपने अमृतकाल का जश्न मना रहा है, वैश्विक मामलों पर कूटनीति के उच्च मंचों पर आत्मविश्वास से खड़ा है और विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है, इसके विपरीत पाकिस्तान हाल के दिनों में अपने सबसे बुरे दौर से गुज़र रहा है। इसकी अर्थव्यवस्था चरमरा गई है और ऐसे लगता है कि इसे कोई राहत नहीं मिली है। पाकिस्तानी समाज लगातार बढ़ते आतंकी हमलों समेत अन्य प्रकार के दबावों से जूझ रहा है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय का पाकिस्तान पर विश्वास अब तक के सबसे निचले स्तर पर है। ऐसे समय में पाकिस्तान भारत के साथ टकराव जारी रखने का जोखिम नहीं उठा सकता।
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि सिंधु जल संधि और इस पर मतभेदों पर बारीकी से नज़र रखी जानी चाहिए क्योंकि भारत संधि में संरचनात्मक बदलावों की अपनी पहल को आगे बढ़ा रहा है जिसे अब तक भारत– पाकिस्तान संबंधों में एक सफलता माना जाता था लेकिन अब भारत इसे ‘एक–तरफा’ मानता है और इसमें ‘समीक्षा’ एवं ‘संशोधन’ की जरूरत है। अपने हितों और अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए सिंधु जल संधि से संबंधित भारत के कदमों का पाकिस्तान के साथ उसके समग्र संबंधों के साथ– साथ उनके अन्य पहलुओं पर भी प्रभाव पड़ेगा।
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*डॉ. श्रबन बरुआ, ओपी जिंदल यूनिवर्सिटी के जिंदल स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज़ में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये आईसीडब्ल्यूए की पूर्व रिसर्च फेलों हैं।
अस्वीकरण : ये लेखक के अपने विचार हैं।
[i] Suhasini Haider and Jocob Koshy, ‘No more Indus Commission meetings till Treaty renegotiated: India’, 18 September 2024, The Hindu, URL: https://www.thehindu.com/news/national/india-serves-notice-to-pakistan-seeking-review-of-indus-water-treaty/article68655577.ece
[ii] Text of the Indus Water Treaty, 1960, Accessed on 2 February 2023, URL: https://jalshakti-dowr.gov.in/sites/default/files/INDUS%20WATERS%20TREATY.pdf.
[iii] Ibid.
[iv] Ibid.
[v] ‘Fact Sheet: The Indus Water Treaty1960 and the Role of World Bank’, The World Bank, 11 June 2018, URL: https://www.worldbank.org/en/region/sar/brief/fact-sheet-the-indus-waters-treaty-1960-and-the-world-bank.
[vi] ‘Pak withdraws objection to two J&K power projects’, The Hindu, 31 May 2010, URL: https://www.thehindu.com/new
s/national/Pak-withdraws-objection-to-two-JampK-power-projects/article16304798.ece.
[vii] ‘Indus Water Treaty 1960: Present Status of Development in India’, Ministry of Water Resources, River Development and Ganga Rejuvenation, Government of India, 22 February 2019, URL: https://pib.gov.in/Pressreleaseshare.aspx?PRID=1565906.
[viii] ‘Reviewing Tulbul navigation project can put Pakistan on backfoot: Officials’, Business Standard, 26 September, 2016, URL:https://www.business-standard.com/article/news-ians/reviewing-tulbul-navigation-project-can-put-pakistan-on-backfoot-officials-116092601242_1.html.
[ix] Harikishan Sharma, ‘Changed circumstances: In 2021, House panel urged Centre to renegotiate Indus treaty’, The Indian Express, 29 January 2023, URL: https://indianexpress.com/article/india/changed-circumstances-in-2021-house-panel-urged-centre-to-renegotiate-indus-treaty-8410215/.
[x] Partial Award over The Indus Water Kishenganga Arbitration, Court of Arbitration, 18 February 2013, pp. 46, URL: https://pcacases.com/web/sendAttach/1681
[xi] P.K. Saxena, ‘Indus Water Dispute: India’s Strategic Victory in Neutral Expert Proceedings’, NatStrat, January 2025.
[xii] Partial Award over The Indus Water Kishenganga Arbitration, Court of Arbitration, 2013.
[xiii] Saxena, 2025.
[xiv] ‘Blood and water cannot flow together: PM Modi at Indus Water Treaty meeting’,The Indian Express, 27 September 2016, URL: https://indianexpress.com/article/india/india-news-india/indus-water-treaty-blood-and-water-cant-flow-together-pm-modi-pakistan-uri-attack/.
[xv] Press Information Bureau, Government of India, Ministry of Water Resources, River Development and Ganga Rejuvenation, URL: https://pib.gov.in/Pressreleaseshare.aspx?PRID=1565906.
[xvi] ‘Parliamentary panel recommends renegotiation of Indus Water Treaty’,The Statesman, 6 August 2021, URL: https://www.thestatesman.com/india/parliamentary-panel-recommends-renegotiation-indus-water-treaty-1502991042.html
[xvii] Sandeep Dikshit, ‘Pakistan opposes India's notice to alter Indus Water Treaty as first hearing on dispute begins at The Hague’, The Tribune, 28 January, 2023, URL: https://www.tribuneindia.com/news/nation/pakistan-opposes-indias-notice-to-alter-indus-treaty-as-first-hearing-on-dispute-begins-at-the-hague-474323.
[xviii] R.H. Naik, ‘Protests against the Bursar dam in J&K gather steam’, The Third Pole, 30 April 2018, URL: https://www.thethirdpole.net/en/energy/jk-bursar-dam/.
[xix] Sushant Sarin, ‘Indus Waters Treaty: Opening the water front’, ORF, 28 January 2023, URL: https://www.orfonline.org/expert-speak/indus-waters-treaty/.