शांति का अर्थ और म्यांमार शांति प्रक्रिया
शांति का अर्थ है, लोगों के बीच मतभेदों को सुलझाते हुए बिना किसी चिंता या विवाद के निर्दोष नागरिकों के बीच एकजुटता बनाना। ओस्लो यूनिवर्सिटी के प्रथम शांति शोधकर्ता जोहान गाल्टुंग ने शांति को हिंसा की अनुपस्थिति के साथ– साथ लोगों के बीच न्याय के आधार पर अन्य सामाजिक समस्याओं को हल करने और एक राष्ट्र के व्यापक विकास के रूप में वर्णित किया। शांति का उद्देश्य हमलों, हिंसा और सामाजिक मतभेदों को खत्म करना है, जिसके परिणामस्वरूप सभी प्राणी शांतिपूर्वक रह सकते हैं।
उपनिवेशवाद के नकारात्मक प्रभावों के कारण म्यांमार के जातीय लोगों की एकता समाप्त हो गई और अलग– अलग समूहों के बीच कई तरह के मतभेद उभर आए। स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद, देश ने लोकतंत्र अपनाने की कोशिश की और एक दशक तक इसे बनाए रखा। एक ऐसे राष्ट्र का पुनर्निर्माण करने के लिए, जो तबाह होने के कगार पर था, ततमादॉ (म्यांमार सेना) को लगातार सरकारों के माध्यम से सख्त प्रयास करने पड़े, जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय एकजुटता और संप्रभुता हासिल करना था, साथ ही लोगों द्वारा वांछित लोकतांत्रिक राष्ट्र के विकास के लिए भी प्रयास करना था।
म्यांमार में सरकार ने एक वास्तविक लोकतांत्रिक व्यवस्था को प्राप्त करने का प्रयास करने हुए व्यवस्थित रूप से प्रशासन, कानून और न्यायपालिका जैसे तीन स्तंभों का निर्माण किया है। ततमादॉ ने 2010 और 2015 के आम चुनावों में अपनी भूमिका में स्वच्छ और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए वास्तव में ठोस प्रयास किए। नवंबर 2020 में हुए आम चुनावों के संबंध में, मतदान में अनियमितताएं और धोखाधड़ी हुई, जिसके कारण सरकार को आपातकाल घोषित करनी पड़ी। राजनीतिक संस्कृति के अनुरूप बातचीत के लिए ततमादॉ द्वारा किए गए प्रयास सफल नहीं रहे। इसलिए 2008 के संविधान की धारा 417 के अनुसार, अंतरिम राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा परिषद के साथ बातचीत करके राज्य राष्ट्र के जिम्मेदारियों को कमांडर– इन– चीफ़ ऑफ डिफेंस को सौंप दिया और आपातकाल की घोषणा कर दी।
राष्ट्र प्रशासन परिषद का उद्देश्य वास्तविक बहुदलीय लोकतंत्र प्रणाली के अभ्यास के माध्यम से संघवाद और लोकतंत्र पर आधारित संघ का निर्माण करना है। सरकार समकालीन राजनीति के आधार पर सबसे उपयुक्त चुनाव प्रणाली का चयन करेगी ताकि भावी पीढ़ियों को शासन निकायों में भाग लेने और राष्ट्र का नेतृत्व करने के लिए हलुटाव के प्रतिनिधियों के रूप में काम करने की पूरी योग्यता के साथ विकसित किया जा सके। राष्ट्र प्रशासन परिषद दो राष्ट्रीय कार्यों को प्राथमिकता दे रही है, ये कार्य हैं– समृद्धि और खाद्यान्न पर्याप्तता। दो राजनीतिक कार्य हैं– वास्तविक एवं अनुशासित समृद्ध बहुदलीय लोकतांत्रिक प्रणाली को मजबूत करना और लोकतंत्र एवं संघवाद आधारित संघ का निर्माण।
शांति प्रक्रिया की गति को जारी रखने, जातीय सशस्त्र समूहों के साथ समझौते करने और शांति स्थापना से संबंधित मामलों पर चर्चा करने एवं राष्ट्रीय एकजुटता और शांति स्थापना की कार्य–प्रक्रिया को प्रभावी तरीके से क्रियान्वित करने के लिए राष्ट्र प्रशासन परिषद ने तीन समितियां बनाईं हैं:
एनएसपीएनसी(NSPNC) सशस्त्र हमलों को न्यूनतम करने एवं एथनिक आर्मर्ड ऑर्गेनाइज़ेशन (ईएओ/EAOs) के साथ शांति प्रक्रिया को मजबूत करने के लिए द्विपक्षीय समझौते करने हेतु प्रासंगिक प्रक्रियाएं चला रहा है जो एनसीए के हस्ताक्षरकर्ता हैं और राजनीतिक दलों सहित शांति प्रक्रिया के हितधारकों के साथ– साथ ईएओ को, जो एनसीए के हस्ताक्षरकर्ता नहीं हैं, समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है।
मीडिया की भूमिका
समाचार लोगों के लिए पोषक तत्व जैसा होता है और यह अच्छी और बुरी दोनों तरह की खबरें देता है। मनुष्य का स्वभाव है कि वह अच्छी और बुरी सभी तरह की खबरें जानना चाहता है। अच्छी खबरें बुद्धि, विश्लेषणात्मक कौशल और ज्ञान की शक्ति होती हैं जबकि बुरी खबरें विपरीत प्रभाव पैदा करती हैं। मीडिया पर अच्छे और बुरे विचारों के संबंध में, आज का युग नकारात्मक विचारों से प्रभावित है और सच्ची खबरें फैलाने में मीडिया की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। मीडिया हर समाज में सूचना के ज्ञान को बढ़ावा देने में भूमिका निभाता है। मीडिया का अच्छा काम झूठी खबरों, अन्याय और सामाजिक मतभेदों को उजागर करना है। मीडिया ज्ञान को बढ़ाने और विश्व की अलग– अलग नीतियों से रचनात्मक परिणाम बनाने में मदद करता है।
शांति प्रक्रिया पर झूठी खबरों की चुनौतियां
शांति प्रक्रिया के संदर्भ में, मीडिया की भूमिका सुरक्षा और स्थिरता के मामलों को उजागर करती है। दूसरी ओर, मीडिया न केवल सही जानकारी साझा करता है, बल्कि झूठी खबरें भी साझा करता है, जो समस्याएं पैदा करता है और समस्याएं शांति प्रक्रिया के लिए चुनौतियां पैदा करती हैं। संघर्ष क्षेत्र में, झूठी खबरें और अलग– अलग विचारों वाली खबरें अधिक विवादों को जन्म देती हैं। यदि समाचार और सूचना के स्रोत विश्वसनीय हैं तो शांति प्रक्रिया के लिए सहयोग अधिक प्रभावी होता है। मीडिया के स्वतंत्र प्रेस के बावजूद, कुछ मीडिया पक्षपाती और राजनीतिक रूप से प्रेरित हैं। स्वतंत्र प्रेस होने के बावजूद मीडिया, कुछ मीडिया, पक्षपाती और राजनीति से प्रेरित हैं। मीडिया को एक हथियार के रूप में और एक राष्ट्र की नियति को बदलने के लिए शक्ति के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। समकालीन मीडिया में नैतिकता नहीं है और यह अन्य समूहों की एकतरफा जानकारी को दर्शाता है, जो उनका समर्थन करते हैं। यह पाया गया है कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया ज़मीनी स्थिति को दर्शाए बिना स्थानीय विपक्षी दलों के तथ्यों और सूचनाओं को संदर्भित करता है। हमें गलत सूचना और भ्रामक सूचनाओं की आलोचना एवं विश्लेषण करने की जरूरत है। हमें गलत सूचना, भ्रामक सूचना और दुर्भावनापूर्ण सूचना से विशेष रूप से सावधान रहने की आवश्यकता है ताकि यह सरकार और लोगों के बीच, साथ ही सरकार और स्थानीय एवं अंतरराष्ट्रीय समुदायों के बीच हलचल पैदा न करे। समाचार के प्रकार चाहे जो भी हों, उनका समाज पर प्रभाव पड़ता है और चिंता पैदा होती है। एक कहावत है कि सत्य के सामने आने से पहले झूठ आधी दुनिया में फैल सकता है। फेसबुक, टिकटॉक और इंस्टाग्राम जैसे डिजिटल मीडिया पर सच्ची खबरों के बजाय झूठी खबरें पोस्ट की जाती हैं, जिससे शांति प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होती है।
शांति की राह में चुनौतियां
ततमादॉ ने देश की जिम्मेदारियां संभाली हैं और सेना एवं नागरिकों के सहयोग से राष्ट्र प्रशासन परिषद की स्थापना की है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना अंतिम लक्ष्य है और देश की जिम्मेदारियां संभालने के बाद से ही इसकी व्यापक रूप से घोषणा की गई है। राजनीतिक परिवर्तन के बाद, अहिंसक प्रदर्शन धीरे–धीरे अराजकता एवं दंगों में बदल गए। यह सशस्त्र हिंसा कुछ अतिवादी दलों के नेतृत्व में शुरू हुई है। कुछ युवाओं को ऐसे सशस्त्र समूहों के तहत आतंकवादी प्रशिक्षण में भाग लेने के लिए उकसाया गया, जिनका राष्ट्र के प्रति ईमानदार भावना नहीं है और जो शांति नहीं चाहते। बाद में, तथाकथित पीडीएफ (PDF) समूह, आतंकवादी संगठन बन गए। राष्ट्रव्यापी युद्धविराम समझौते (एनसीए) के हस्ताक्षरकर्ता और गैर–हस्ताक्षरकर्ता दोनों ही एथनिक आर्मर्ड ऑर्गेनाइजेशंस (ईएओ/EAOs) ने तथाकथित पीडीएफ के साथ सहयोग किया और सार्वजनिक सड़कों, पुलों, बिजली के टावरों को बारूदी सुरंगों से नष्ट करने, आवासीय कस्बों और गांवों को जलाने, निर्दोष नागरिकों की हत्या करने, नए सदस्यों की जबरन भर्ती करने, सार्वजनिक और राष्ट्र की संपत्तियों को बर्बाद करने, ततमादॉ की सैन्य चौकियों पर हमला करने जैसे अपराध किए। अब तक, वे देश भर में अपने बेतरतीब हमलों, हत्याओं और बमबारी से निर्दोष नागरिकों को डराते रहे हैं। जो नागरिक आतंकवादी संगठनों से दूर किसी स्थान पर नहीं जा सकते, वे शारीरिक और मानसिक रूप से चिंता और भय से पीड़ित हैं। इस क्षेत्र के लोग गरीबी का सामना कर रहे हैं और सामाजिक–आर्थिक, स्वास्थ एवं शिक्षा प्रणाली पर इसका बुरा असर पड़ा है। कुछ सशस्त्र संगठनों ने देश की अस्थिरता का फायदा उठाया और क्षेत्रीय नियंत्रण प्राप्त करने का प्रयास किया।
लोकतंत्र और जातीय मामलों की परवाह किए बिना, उनकी कार्रवाई उग्रवाद की ओर ले जा रही है और ऐसी स्थिति की ओर ले जा रही है जिसे युद्ध के जरिए हल करने की आवश्यकता है। एक देश की सुरक्षा पूरी तरह से खतरे में है और अगर कोई सशस्त्र समूह सरकार का विरोध कर रहा है तो शांति निर्माण प्रक्रिया बाधित होगी। अगर कोई आतंकवादी नहीं है तो किसी भी राजनीतिक व्यवस्था की परवाह किए बिना वास्तविक शांति उचित रूप से विकसित होगी। राष्ट्र निर्माण में विनाशकारी हिंसा को रोकने की आवश्यकता है, जो ततमादॉ की जिम्मेदारियों में से एक है।
स्थायी और सतत शांति एवं अंतरराष्ट्रीय समुदाय का महत्व
म्यांमार में स्वतंत्रता के साथ ही सशस्त्र संघर्ष की शुरुआत हुई और वास्तव में इसके पीछे एक जटिल राजनीतिक पृष्ठभूमि है। लगातार सरकारों ने इसे हल करने की कोशिश की और यह अभी भी अनुसुलझा है। चूंकि कई वर्षों से सशस्त्र संघर्ष के नकारात्मक प्रभाव जारी हैं इसलिए लोगों में शांति के प्रति जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि स्थायी और सतत शांति के लाभों को समझा जा सके और अपने– अपने क्षेत्र में राष्ट्रीय जातियों के भावनात्मक विश्वास और आत्मविश्वास को मजबूत किया जा सके।
सरकार स्वतंत्र और निष्पक्ष बहुदलीय आम चुनाव कराने के बाद चुनाव परिणामों के आधार पर, जीतने वाली पार्टी, एक नई सरकार को देश की जिम्मेदारियां सौंपने को प्रतिबद्ध है। एनएसपीएनसी (NSPNC) उन एथनिक आर्मर्ड ऑर्गेनाइजेशंस के लिए किसी भी स्थिति में बिना कोई पूर्व शर्त बातचीत का दरवाज़ा खोलता है जो अभी तक शांति वार्ता के लिए आगे नहीं आए हैं। जब वे वार्ता के लिए कदम बढ़ाएंगे तो एनएसपीएनसी यह सुनिश्चित करेगा कि ईएओ संवाद और लचीलेपन के माध्यम से शांति प्रक्रिया में शामिल रहने को प्रोत्साहित कर स्थायी शांति की दिशा में काम करें।
संघर्ष क्षेत्र में पीड़ित लोगों, विशेष रूप से बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों के लिए विभिन्न सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और मानवाधिकारों को पूरी तरह से उपलब्ध कराया जाना आवश्यक है। हालांकि सरकार के पास उन समस्याओं के प्रबंधन और शासन की मुख्य जिम्मेदारियां हैं लेकिन सरकार के प्रावधान में बाधा नहीं आनी चाहिए और नागरिक समाज संगठनों (सीएसओ/CSOs) और अंतरराष्ट्रीय समुदाय का सहयोग महत्वपूर्ण है। नागरिक समाज संगठनों के समर्थन से, यह राजनीतिक खुलेपन के माध्यम से विश्व सुरक्षा को बढ़ावा देने एवं मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य एवं सामाजिक–आर्थिक जीवन की रक्षा के लिए भविष्य में शांति को आकार देने में सहायक होगा।
जब सरकार शांति संबंधी चुनौतियों का समाधान करती है तो अंतरराष्ट्रीय सहयोग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। म्यांमार स्वतंत्र, सक्रिए और गुटनिरपेक्ष विदेश नीति का पालन करता है। साथ ही, शांतिपूर्ण सह– अस्तित्व के पांच (5) सिद्धांतों के आधार पर, सभी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों की नीति अपनाई जाती है। पड़ोसी देशों के साथ राजनीति, आर्थिक और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर ज़ोर दिया जाता है। भारत और म्यांमार दोनों देशों के बीच आपसी समझ एवं मित्रता के आधार पर परंपरागत मैत्रीपूर्ण संबंध हैं। भारतीय सभ्यता की नैतिकता के अनुरूप आईसीडब्ल्यूए ने संविधानवाद और संघवाद पर पहली वार्ता जून के पहले सप्ताह में म्यांमार के यंगून और ने पी तॉ में आयोजित की और दूसरी वार्ता नवंबर 2024 के पहले सप्ताह में भारत के नई दिल्ली में आयोजित की गई, ताकि दोनों देशों के आपसी लाभ के लिए ज्ञान साझा करने और अनुभवों का आदान– प्रदान किया जा सके। वार्ता के दौरान संविधान के अनुसार केंद्र सरकार और राज्यों एवं क्षेत्रों की सरकारों के बीच सत्ता के बंटवारे, जिम्मेदारी और जवाबदेही के मामलों पर व्यापक चर्चा की गई है।
निष्कर्ष
वर्तमान में, ऐसे पत्रकार और समाचार मीडिया हैं जो राष्ट्र के भाग्य को बदलने का प्रयास कर रहे हैं। लोगों को एहसास हो रहा है कि असंरचनात्मक और अविश्वसनीय समाचार मीडिया और पत्रकार मौजूद हैं। इसके अलावा, लोगों को यह भी एहसास होने लगा है कि ऐसी मनगढ़ंत खबरें हैं जो निर्दोष नागरिकों की आजीविका को नष्ट करने, आतंकवादियों को भड़काने और लोगों की चिंताओं को बढ़ाने का इरादा रखती हैं। राष्ट्रीय एकता और शांति वार्ता समिति (एनएसपीएनसी/ NSPNC), जो मुख्य रूप से म्यांमार शांति प्रक्रिया के उद्देश्यों को लागू कर रही है, सभी संभावित पक्षों से बातचीत करने और समाधान ढूंढ़ने की पद्धति अपना रही है जो म्यांमार शांति प्रक्रिया को संभालने वाले हितधारकों के बीच संवाद, समावेश और विश्वास निर्मण को प्राथमिकता देती है। संवाद करना और समाधान खोजना लोकतंत्र एवं संघवाद के निर्माण की नींव है। इसलिए शांति वार्ता, शांति प्रक्रिया समीक्षा, सुरक्षा एकीकरण और विश्वास निर्मण पर कार्यशालाएं, बातचीत और मध्यस्थता पर वार्ताएं भी आयोजित की गईं। इसके अलावा एनएसपीएनसी (NSPNC) https://nspnc.gov.mm, https://nca.gov.mm और https://infosheet.org के माध्यम से लोगों को सच्ची खबरें और शांति प्रक्रिया के काम की जानकारी समय पर दे रहा है। सरकार, ततमादॉ और लोगों का अंतिम उद्देश्य भविष्य में सशस्त्र संघर्षों के बिना एक शांतिपूर्ण, स्थिर और विकसित राष्ट्र बनाना है। एनएसपीएनसी (NSPNC) का दृढ़ विश्वास है कि सशस्त्र विवादों को समाप्त करने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। स्थायी और सर्वकालिक शांति प्राप्त करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि संघर्ष में शामिल पक्षों को प्रक्रिया पर विश्वास विकसित करने की आवश्यकता है। वास्तव में, विश्वास बनाने के लिए चुनौतियाँ हैं। सैन्य, राजनीति, संस्कृति और सुरक्षा के क्षेत्रों पर विश्वास बनाना वास्तव में एक ऐसी बातचीत शुरू करने के लिए महत्वपूर्ण है जो संघर्ष को दूर कर सके। यह शोधपत्र मेरी उस सच्ची इच्छा को समर्पित है जिसमें म्यांमार शांति प्रक्रिया में शामिल सभी पक्ष स्थायी और सर्वकालिक शांति को लागू करना जारी रखेंगे।
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