कोरियाई प्रायद्वीप के संबंध में मूल स्थान से रिपोर्ट
द्वारा
राजदूत स्कंद तयाल
1 जून, 2018
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जब आईसीडब्लूए शिष्टमंडल कोरियाई राष्ट्रीय कूटनीतिक अकादमी (केएनडीए) के साथ बातचीत करने के लिए 27 मई की सुबह इंचेऑन हवाई अड्डे पर उतरा तो वहां उसका स्वागत दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे-इन और उत्तर कोरिया के अध्यक्ष किम जोंग-उन के बीच पिछले दिन हुए शिखर सम्मेलन की आश्चर्यजनक समाचार ने किया। इस अभूतपूर्व शिखर सम्मेलनों, बैठकों, विवरणों और झल्लाहटों की चल रही श्रृंखलाओं में यह अद्यतन घटना थी जिसमें कोरियाई प्रायद्वीप संबंधी सतत इतिवृत्त के चार प्रमुख शामिल रहे हैं।
महानिदेशक राजदूत नलिन सूरी के नेतृत्व वाले इस शिष्टमंडल के लिए वार्ता हेतु दिनों का निर्धारण दक्षिण कोरिया से प्रत्याशित राष्ट्रपति दौरे के आलोक में किया गया है। किंतु केएनडीए, विदेश मंत्रालय, तीन थिंक टैंक और रूढ़िवादी व उदार रणनीतिक विशेषज्ञों के साथ औपचारिक और अनौपचारिक चर्चाओं में कोरियाई प्रायद्वीप संबंधी घटनाक्रम प्रमुख थे।
यह केवल भविष्य के गर्त में है कि क्या राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और अध्यक्ष किम जोंग-उन के बीच शिखर वार्ता होगी और यदि होगी तो कब होगी। किंतु दक्षिण कोरियाई अधिकारियों और विशेषज्ञों के साथ स्पष्ट चर्चाओं से दक्षिण कोरिया का उत्तर कोरिया के प्रति धारणा में बड़े बदलाव तथा अमेरिका व चीन के प्रति दक्षिण कोरियाई रणनीतिक अभिविन्यास में बड़े पुनर्समायोजन का पता चला।
1945 से ही देश की बड़ी शक्ति के विभाजन के बाद से ही दक्षिण कोरियाई राजनीतिक व्यवस्था मुख्य रूप से दो विचारधाराओं में विभाजित हैं। कंजरवेटिव विचारधारा अमेरिका के निकट, चीन के प्रति अविश्वासी हैं तथा कठोर व्युत्क्रम आधार पर उत्तर कोरिया के साथ सामंजस्य की नीति का अनुसरण करता है। उदारवादी विचारधारा, जिसका प्रतिनिधिज्व राष्ट्रपति मून जे-इन करते हैं, में अमेरिका के प्रति सावधान, चीन के प्रति सम्मान है तथा यह उत्तर कोरिया के साथ सामंजस्य स्थापित करने में आगे बढ़कर हाथ मिलाने को इच्छुक है। उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच सुधरते संबंध के बारे में चल रही आंतरिक बातचीत में रूढ़िवादी यह मुद्दा उठाते हैं कि डीपीआरके के पिछले रिकार्ड को देखते हुए क्या किम जोंग-उन पर भरोसा किया जा सकता है? उदारवादी उत्तर बातचीत के जरिये अब विश्वास बहाली की जा रही है और व्यक्ति को अपने भूतकाल का गुलाम नहीं होना चाहिए।
रूढ़िवादी उत्तर कोरिया द्वारा अपने परमाणु हथियारों और आईसीबीएम क्षमता को छोड़ देने के बाद भी उसके प्रति सशंकित है। उदारवादी को विश्वास है कि पूर्ववर्ती परमाणु विकल्प में उत्तर कोरिया के लिए लागत समानता और शांति संधि के रूप में आर्थिक विकास, मान्यता सहित वादा किए गए लाभों की तुलना में कम है।
शांति की किम जोंग-उन की खोज के पीछे मंशा के संबंध में दक्षिण कोरिया का विचार अनिश्चित सा है। तथापि, सामान्य राय यह है कि अप्रैल 2017 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् द्वारा अध्यारोपित प्रतिबंध की गंभीरता और इन प्रतिबंधों को पूर्णत: लागू करने के लिए चीन के संबंध में राष्ट्रपति ट्रंप के निरंतर दबाव का उत्तर कोरियाई अर्थव्यवस्था पर बहुत बड़ा और अधारणीय
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प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। विदेश मामले राष्ट्रीय सुरक्षा संस्थान के प्रो. ली सोंग-सूक के अनुसार मई, 2016 में कामगार पार्टी के 7 वें सम्मेलन के बाद से उत्तर कोरियाई नीति में धीमा बदलाव होता रहा है जिसने किम जोंग - उन के उत्तराधिकार को औपचारिक बनाया था। बाद में जून, 2016 में सुप्रीम पीपल्स एसेम्बली ने अध्यक्ष के रूप में किम जोंग-उन के साथ ‘राज्य मामले आयोग’ (एसएसी) को सृजित करने के लिए इस संविधान को संशोधित किया। यही वह शीर्षक है जिसके माध्यम से उत्तर कोरिया के नेता की उत्तर कोरियाई मीडिया और विश्व द्वारा पहचान की जाती है। आयोग ने ‘राष्ट्रीय रक्षा आयोग’ को प्रतिस्थापित किया है जिसने स्व. किम जोंग-इल की पूर्व अध्यक्षता वाले उत्तर कोरिया पर शासन किया था। एसएसी ने कथित रूप से यह संकेत देते हुए ‘सोंगन’ (सेना प्रथम) के सिद्धांत को छोड़ दिया कि उक्त ‘सोंगन राजनीति’ उत्तर कोरिया के शासन की विचारधारा नहीं है। इन कदमों के कारण उत्तर कोरिया की पार्टी, सेना और सरकार के बीच संबंधों में एक मूलभूत परिवर्तन हुआ जो 20 अप्रैल, 2018 को 7वीं केन्द्रीय समिति की तीसरे पूर्ण अधिवेशन बैठक में और पुष्ट हुआ।
20 अप्रैल के प्लेनम में किम जोंग-उन ने उत्तर कोरिया की नई रणनीतिक लक्ष्य –सामाजिक आर्थिक निर्माण- की घोषणा की और घोषित किया कि उत्तर कोरिया पड़ोसी देशों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ निकट संबंध बनाने व सक्रिय बातचीत करने सहित आर्थिक पुनर्निर्माण के लिए एक अनुकूल अंतरराष्ट्रीय माहौल तैयार करने का प्रयास करेगा। इस विश्लेषण में उत्तर कोरिया के रणनीतिक उद्देश्यों और इसकी विदेश नीति की दिशा में हाल के बदलावों तथा शांतिपूर्ण व कम अस्थिर उत्तर कोरिया के प्रयास का उल्लेख किया गया है।
राष्ट्रपति मून प्रत्यक्ष रूप में दक्षिण कोरिया के आर्थिक पुनर्निर्माण एवं उत्तर कोरिया की शासन स्थिरता की गंभीरता के संबंध में अध्यक्ष किम को समझाने में सफल रहा है तथा दोनों ही नेताओं में बेहतरीन समझ और विश्वास रहा है जैसा कि 26 मई के उनके द्वितीय शिखर सम्मेलन से प्रकट हुआ। राष्ट्रपति मून के लिए चुनौती राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा आयोजित ‘नयी शैली की कूटनीति’ को समायोजित करने की है। दक्षिण कोरिया में जनमानस की भावना में एक महत्वपूर्ण बदलाव वहां के युवाओं में देखने को मिल रहा है जो युवा पूर्व में उत्तर कोरिया में अपने संबंधियों के साथ पुन: जुड़ने अथवा सामंजस्य के बारे में किसी भी प्रकार की बातचीत से उदासीन थे। हाल के चुनावों से पता चला कि उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच हाल के रिश्ते की गरमाहट के लिए युवाओं में अधिक और सकारात्मक रूचि और समर्थन है। राष्ट्रपति मून की अनुमोदन रेटिंग लगातार 70 प्रतिशत के आसपास रही है और इस प्रकार उनका हाथ मजबूत हो रहा है।
दक्षिण कोरिया की मीडिया और विशेषज्ञ का यह साझा विचार है कि चीन कोरियाई प्रायद्वीप पर चल रही शांति और सामंजस्य संबंधी प्रक्रिया से बहुत नाखुश है। 26 मार्च और 7 मई को अपने दो शिखर सम्मेलनों में अध्यक्ष किम के साथ राष्ट्रपति शी जिंपिंग ने कोरियाई युद्ध और बाद में उत्तर कोरियाई सुरक्षा के गारंटीदाता में प्रमुख भागीदार के रूप में कोरियाई प्रायद्वीप पर किसी भी भावी समझौते में चीन के अपने हितों और प्रमुखता को व्यक्त किया है।
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दक्षिण कोरियाई नीति निर्माता इस पर सावधान हैं कि चीनी कंपनियां धीरे-धीरे चीन और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कोरियाई उत्पादों को प्रतिस्थापित कर रही हैं।
दक्षिण कोरियाई विद्धान इस पर चर्चा कर रहे हैं कि क्या आगे बढ़कर चीन के साथ नेटवर्क को और व्यापक बनाया जाए अथवा अमेरिका व जापान के साथ संबंध को और गहरा किया जाए क्योंकि वर्ष 2030 के दशक में अमेरिकी अर्थव्यवस्था को चीनी अर्थव्यवस्था के हथिया लेने की अपरिहार्यता कारक बन रहा है। राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा शुरू की गयी तथा ट्रंप प्रशासन द्वारा जारी रखी गयी एशिया प्रशांत पहल के लिए अमेरिकी संतुलन का कार्यक्षेत्र, टिकाउपन और विस्तार का भी सतत रूप से मूल्यांकन किया जा रहा है। तथापि, दक्षिण कोरियाई लोग यह मानते हैं कि चीन को किसी भी भावी रणनीतिक संरचना में अवश्य शामिल किया जाना चाहिए। उनका विश्वास है कि 19वीं दल सम्मेलन के बाद चीन ने एक ‘शक्तिशाली देश रणनीति’ को शुरू किया है और एशिया में अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को उत्तरोत्तर आकार देने के लिए प्रतिबद्ध है। तथापि, चीन अभी भी अमेरिका के मुकाबले सैन्य रूप से कमजोर स्थिति में है और उनके लिए अमेरिका को सीधे-सीधे चुनौती देने का यह सही समय नहीं है। किंतु चीन को अमेरिका के धीरे-धीरे क्षीण पड़ने तथा पहले को आर्थिक क्षेत्र में और बाद में सैन्य क्षेत्र में अमेरिका से आगे बढ़ जाने का विश्वास है। दक्षिण कोरिया के रणनीतिक विश्लेषक इस तेजी से बदलते रणनीतिक समीकरण से निपटने के रास्ते पर चिंतन कर रहे हैं और ‘मध्य शक्ति के गठबंधन’ की संभाव्यता पर विचार कर रहे हैं।
इस पृष्ठभूमि में वर्तमान सच्चाई यह है कि एक ओर तो राष्ट्रपति मून और राष्ट्रपति ट्रंप तथा दूसरी ओर अध्यक्ष किम और राष्ट्रपति जी के बीच बेहतर रणनीतिक समझ और उद्देश्यों के अभिसरण की अपेक्षा राष्ट्रपति मून-जे-इन तथा अध्यक्ष किम जोंग-उन के बीच यह समझ अधिक है। दोनों कोरियाई देशों के 27 अप्रैल के पैनमुंजोम घोषणा को दृढ़ निश्चय के साथ आगे ले जाने की संभावना है किंतु उनकी कूटनीतिक कौशल की परीक्षा एक अपूर्वानुमेय ट्रंप और संदिग्ध चीन द्वारा सीमित होगी ।
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