आईसीडब्लूए अतिथि कॉलम
मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन का दौरा
द्वारा
राजदूत स्कंद आर तयाल
27 अप्रैल, 2016
मालदीव के राष्ट्रपति महामहिम अब्दुल्ला यामीन अब्दुल गयुम (एवाईएजी) 10-11 अप्रैल, 2016 को अल्पकाल और कारोबार हेतु नई दिल्ली के दौरे पर आए। यह एवाईएजी का तीसरा भारत दौरा था। पहला दौरा जनवरी, 2014 में हुआ था और वह दौरा बड़ा महत्वपूर्ण था क्योंकि वह राजनीतिक अशांति व विवादास्पद चुनाव के बाद सत्ता पाने के पश्चात एवाईएजी का प्रथम सरकारी दौरा था। एवाईएजी का दूसरा दौरा मई, 2014 में हुआ था जब उन्होंने सार्क के अन्य नेताओं के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शपथ समारोह में शिरकत की थी।
मालदीव एक छोटा सा देश है जिसकी जनसंख्या 350000 है और जो हिंद महासागर के लक्षद्वीप द्वीपसमूहों के दक्षिण में 185 द्वीपसमूहों में फैला हुआ है। यह देश भारत की महत्वपूर्ण सुरक्षा औश्र रणनीतिक हित वाला देश है क्योंकि इसके द्वीपसमूह हिंद महासागर में समुद्री तटों के निकट हैं।
भारत ऐतिहासिक रूप से मालदीव की सरकार और वहां के लोगों का एक मित्र, भला चाहने वाला और निवल सुरक्षा प्रदाता रहा है। मालदीव को 1965 में यूके से आजादी मिली और गत वर्ष भारत व मालदीव ने कूटनीतिक संबंधों की स्थापना की 50वीं वर्षगांठ मनायी। पूर्व राष्ट्रपति मोमून अब्दुल गयुम ने तीस वर्षों (1978-2008) तक देश में अपनी पकड़ मजबूत किए हुए शासन किया और अभी भी न्यायपालिका, सेना और आंतरिक सुरक्षा तंत्रों में अपने विस्तारित परिवारों और प्रतिनिधियों के माध्यम से अच्छा खासा प्रभाव बनाए हुए है। वर्तमान मालदीव राष्ट्रपति उनका सौतेला भाई है। भारत ने 1988 में श्रीलंकाई तमिल किराया सैनिकों के षड्यंत्र से राष्ट्रपति गयुम के विरूद्ध तख्तापलट के प्रयास में हस्तक्षेप किया और उसे असफल कर दिया था।
देश में वर्ष 2008 में प्रथम स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव में एक उदार, युवा और लोकप्रिय नेता मोहम्मद नशीद को राष्ट्रपति के रूप में चुना गया। वास्तविक लोकतंत्र लागू करने के उनके प्रयासों का पुराने मजबूत प्रतिष्ठान द्वारा विरोध किया गया और उसे 2012 में न्यायिक तख्तापलट द्वारा सत्ता से बाहर कर दिया गया। उसके बाद से देश आंतरिक राजनीतिक अशांति, विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी और प्रेस पर नियंत्रण के बीच फंसा रहा है। वर्ष 2013 में पूर्व राष्ट्रपति नशीद को संदिग्ध आरोपों में 13 वर्ष की सजा दी गयी। मोहम्मद नशीद वर्तमान में चिकित्सा आधार पर पैरोल पर हैं और उनका इंग्लैंड में इलाज चल रहा है।
नशीद का कार्यकाल उदारवादी लोकतांत्रिक अभिविन्यास का रहा और उन्होंने भारत समर्थित अधिगम की घोषणा की थी। न्यायपालिका और राष्ट्र के अन्य सरकारी अंगों में पक्षपात हीनता व जबावदेही को लागू करने के उनके प्रयास के कारण ही उनका पतन हुआ। जहां मोहम्मद नशीद की अगुवाई वाला मालदीव लोकतांत्रिक दल बदलाव की ताकत का प्रतिनिधित्व करता है वहीं मालदीव पुपील्स पार्टी इस प्रतिष्ठान और सशस्त्र सेनाओं के हितों का प्रतिनिधित्व करती है।
व्यवस्था क्रम भंग और दो राष्ट्रपति चुनावों के बाद अब्दुलाह यमीन अब्दुल गयुम ने मोहम्मद नसीद को हराया और 2014 के शुरूआत में सत्ता में आए। तथापि, शुरूआत से ही इस नई सरकार ने प्रत्यक्ष रूप से भारत विरोधी रूख अपनाया। उसने खुले रूप में चीन का समर्थन किया और माले हवाई अड्डे के उन्नयन और परिचालन के लिए भारतीय कंपनी जीएमआर को दिए गए 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर के बड़े करार को रद्द कर दिया। हाल ही में इसका करार चीनी कंपनी को दिया गया है। साथ हीं, मालदीव के लिए ये प्रस्ताव भी हैं कि वह चीन को स्थायी रूप से यह द्वीप पट्टे पर दे और मालदीव भारत की चिंताओं की परवाह किए बिना समुद्री रेशम मार्ग में चीन का उत्साही भागीदार है।
इसलिए, वर्ष 2012 के बाद से भारत और मालदीव के बीच संबंध अशांत रहा है और मालदीव दक्षिण एशिया का एकमात्र ऐसा देश है जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दौरा नहीं किया है। राष्ट्रपति शी जिंगपिंग सितम्बर, 2014 में भारत की अपनी यात्रा के दौरान मालदीव और श्रीलंका के दौरे पर थे।
हलांकि दिल्ली में एवाईएजी ने अपने अशांत मेजबानों को शांत करने का प्रयास किया है। प्रेस वार्ता में उन्होंने घोषणा की थी कि मालदीव की ‘सर्वप्रथम भारत’ की विदेश नीति रही है। उन्होंने यह भी कहा कि मालदीव सदैव भारत की सुरक्षा चिंताओं का ख्याल रखेगा। उन्होंने तट रक्षकों हेतु स्थान और डॉक यार्ड की सुविधाएं सृजित करने के लिए उथुरू थिला फलहु परियोजना में सतत भारतीय भागीदारी को दुहराया। उन्होंने महत्वाकांक्षी ‘’आईहवाना एकीकृत विकास परियोजना’ में भागीदारी करने के लिए भी भारत को आमंत्रित किया, इसकी योजना मुख्यत: चीनी निवेश के साथ एक प्रमुख ट्रांस शिपमेंट और संभार केन्द्र के रूप बनायी गयी है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ 11 अप्रैल को किए संयुक्त प्रेस सम्मेलन में मालदीव के राष्ट्रपति ने सार्वजनिक रूप से कहा कि उनके दौरे का मुख्य उद्देश्य 20 अप्रैल, 2016 के उत्तरार्द्ध में होने वाले राष्ट्रमंडल मंत्री स्तरीय कार्य समूह (सीएमएजी) की आगामी समीक्षा बैठक में भारत का समर्थन पाना है ताकि मालदीव शासन व्यवस्था पर राष्ट्रमंडल देशों द्वारा कोई दंडात्मक प्रतिबंध नहीं लगाया जाए। राष्ट्रपति यामीन ने निष्कपट रूप से यह स्वीकार किया कि, ‘’हम मालदीव पर सीएमएजी द्वारा किसी अनुचित, किसी दंडात्मक कार्रवाई को रोकने में भारत के सतत सहयोग चाहते हैं........ छोटे-छोटे देशों को अनुचित रूप से दंड दिया जाता है।‘’
राष्ट्रमंडल मंत्री स्तरीय कार्य समूह संदिग्ध राष्ट्रपति और संसदीय चुनावों, नागरिक अशांति और लोकतांत्रिक विपक्ष को कुचलने एवं मत भिन्नता वाले राजनेताओं की गिरफ्तारी के बाद की स्थिति पर विचार करता रहा है।
एक तीन-सदस्यी सीएमएजी मिशन जिसमें विदेश सचिव एस. जयशंकर शामिल थे, ने 6-8 फरवरी, 2016 को मालदीव का दौरा किया और इस रिपोर्ट पर इस समूह द्वारा 24 फरवरी, 2016 को विचार किया गया। अपने समापन रिपोर्ट में मिशन मालदीव पर किसी दंडात्मक कार्रवाई करने से दूर रहा और उसने एक समावेशी राष्ट्रीय राजनीतिक वार्ता के लिए मालदीव सरकार द्वारा सीएमएजी को दिए गए वचन का स्वागत किया।‘’ तथापि, यह रिपोर्ट अपनी आलोचनात्मक टिप्पणी के प्रति स्पष्टवादी रही और इसमें बताया गया कि:-
“….उनकी सतत चिंता विपक्ष के लिए उपलब्ध राजनीतिक स्थान के संबंध रही है, जिसमें देश में गिरफ्तार अथवा कैद में नेता तथा राजनीतिक नेताओं का देश से बाहर होना; शक्ति का पृथककरण व न्यायपालिका की स्वतंत्रता; और लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्वतंत्रता और कानूनी कार्यकलाप शामिल है।” पूर्व संवैधानिक परिवर्तनों और बहु दलीय लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में परिवर्तन को समेकित करने के लिए इस रिपोर्ट में कई कार्रवाइयों के महत्व को रेखांकित किया गया है जिसमें समावेशी और समय बद्ध राजनीतिक वार्ता, गिरफ्तार किए गए राजनीतिक नेताओं की रिहाई और राजनीतिक वार्ता व 2018 के चुनाव में उनकी पूर्ण भागीदारी शामिल है।
दिनांक 20 अप्रैल को सीएमएजी द्वारा इस मुद्दे पर चर्चा की गयी। सीएमएजी ने मालदीव की स्थिति को अपने औपचारिक एजेंडें में शामिल नहीं किया बल्कि सर्वदलीय वार्ता संबंधी सीमित प्रगति व जेल में बंद विपक्षी नेताओं की रिहाई पर अपनी गंभीर चिंता जतायी। इस समूह ने सितम्बर, 2016 को स्पष्ट और उपयोगी प्रगति का आह्वान किया जब वह प्रगति का आकलन करेगा, स्थिति को देखेगा तथा तदनुसार ही निर्णय लेगा। मालदीव ने यह संतोष जताया है कि स्थिति को इतना गंभीर नहीं माना गया है कि उसे सीएमएजी की औपचारिक कार्य सूची में रखा जाए।
भारत के लिए चिंता की एक अन्य बात धार्मिक रूप से चरमपंथी ताकतों की वर्तमान सरकार का समर्थन होना है। नागरिकों पर अपनी पकड़ मजबूत करने के प्रयास में पूर्व दबंग शासक राष्ट्रपति मोमून अब्दुल गयुम ने मालदीव को 1997 में एक इस्लामी गणतंत्र घोषित किया था। रूढ़िवादिता, मस्जिद और धर्म को लोकतंत्र, समानता और उदार विचार की ताकतों के खिलाफ एकजुट किया गया।
इस कदाचित जोखिम भरी नीति का अनुकरण करते हुए वर्तमान मालदीव सरकार सउदी अरब के साथ अपने धार्मिक संबंध को मजबूत बना रहा है और मालदीव की जनता की अभी तक सहिष्णु इस्लाम प्रथा पर जहरीले वहाबी प्रभाव के लिए द्वार खोल रहा है। राष्ट्रपति यामीन ने गत दो वर्षों में सउदी अरब की तीन बार यात्रा की है और माले में एक सउदी दूतावास खोला गया है। मालदीव के इस्लामी मामले के मंत्री मालदीव इस्लाम के तीव्र वहाबी बनने के एजेंडे को आक्रमक रूप से बढ़ा रहा है। पहले ही से इस्लाम के दृश्यमान संकेतों की उपस्थिति, सिर पर टोपी, हिजाब आदि देश में बढ़ रही है। रूद्विवादिता के प्रति राष्ट्र के समर्थन से पर्यटकों की खुली जीवन शैली कैसे बराबरी करेगा, यह मालदीव के नीति निर्धारकों को निर्णय करना है। मालदीव के जीडीपी में 30 प्रतिशत से अधिक योगदान पर्यटन का है और 3 मिलियन से अधिक विदेशी सैलानियों ने 2015 में 350000 लोगों के इस देश में यात्रा की।
मालदीव का उग्र चरमपंथी बनने को भारत द्वारा सावधानीपूर्वक निगरानी किए जाने की आवश्कयता है क्योंकि इसकी लहर को केरल में महसूस किया जाएगा जिनका मालदीव के साथ पुराना सांस्कृतिक और लोगों के आपसी संबंध है। 40 से अधिक मालदीव युवाओं के सीरिया/ इराक में आईएसआईएस के साथ होने की सूचना है।
इसलिए, एवाईएजी द्वारा इस संक्षिप्त दौरे को भारत के साथ मालदीव के अपने संबंध को सुधारने के लिए एक पहल के रूप में देखा जाना चाहिए। यह समय कुछ स्पष्ट बातचीत करने तथा दोनों पड़ोसी देशों के बीच कुशल कूटनीति करने का है। मालदीव को चीन और धार्मिक चरमपंथ की तुलना में भारत के रेड लाइन से अवगत होने की आवश्यकता है। मालदीव को यह महसूस करने की आवश्यकता है कि वह भारत को उकसाने से बचना चाहिए तथा इस विशाल पड़ोसी देश की सुरक्षा और रणनीतिक हितों की पूर्ण सराहना और समायोजन करना चाहिए।
भारत को अपनी ओर से मालदीव को यह आश्वासन देने की आवश्यकता है कि जहां हम एक सिद्धांत के रूप में लोकतंत्र का समर्थन करते हैं और एक उदार राजनीतिक व्यवस्था के रूप में हम उस देश में आंतरिक राजनीतिक संघर्ष में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।
अंतिम विश्लेषण में इस क्षेत्र में सुरक्षा, संरक्षा और स्थायित्व सबसे अधिक महत्वपूर्ण है और इस क्षेत्र के देशों से ही इसे बेहतर तरीके से सुनिश्चित की जा सकती है। इस संदर्भ में राष्ट्रपति के दौरे के दौरान हस्ताक्षर किए गए रक्षा सहयोग हेतु कार्य योजना संबंधी एमओयू महत्वपूर्ण है।