संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत: जनवरी 2021 के मासिक संक्षिप्त में आतंकवाद और कोविद प्रतिक्रिया पर ध्यानाकर्षण
जैसा कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (युनएससी) के निर्वाचित सदस्य के रूप में अपना आठवां दो वर्ष का कार्यकाल शुरू किया; राजदूत अशोक कुमार मुखर्जी, संयुक्त राष्ट्र में भारत के पूर्व स्थायी प्रतिनिधि, द्वारा आईसीडब्लूऐ की ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा में भारत मासिक पूर्वावालोकन’ श्रृंखला में पहला विश्लेषण निम्नलिखित है।
भारत ने 1 जनवरी 2021 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में अपना आठवां दो वर्षीय निर्वाचित कार्यकाल शुरू किया। इस चुनाव अभियान की अवधि मे, भारत ने चार प्राथमिकताओं को चिह्नित किया था। यह सुधारित बहुपक्षीय प्रणाली (एनओआरएमएस) के लिए एक नई अभिविन्यास को शांति और सुरक्षा के लिए कार्यान्वित करने के लिए थे; आतंकवाद का विरोध करने के लिए परिणाम-उन्मुख यूएनएससी उपायों को आगे बढ़ाने के लिए; संयुक्त राष्ट्र के शांति संचालन (पीकेओ) को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए; और मानव-केंद्रित प्रौद्योगिकी संचालित जगत पर ध्यान केंद्रित करने के लिए।
यूएनएससी के भीतर अपनी घोषित प्राथमिकताओं को आगे बढ़ाने हेतु, एक सहायक मंडली बनाने के लिए भारत की द्विपक्षीय व्यहवार-कुशलता का उपयोग स्पष्ट है। पांच स्थायी सदस्यों (पी5) अर्थात फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका के साथ भारत की सामरिक साझेदारी हाल के वर्षों में परिष्कृत हुई है। 21 दिसंबर 2020 को भारत और वियतनाम (2021 मे एक ई-10 सदस्य) ने एक आभासी शिखर सम्मेलन आयोजित किया, जिसके माध्यम से उन्होंने अपने व्यापक सामरिक साझेदारी के भविष्य के विकास का मार्गदर्शन करने के लिए एक संयुक्त विचार प्रक्रिया को स्वीकृत किया। भारत ने दिसंबर, 2020 में एस्टोनिया (वर्ष 2021 के दौरान ई-10 सदस्यों) में अपना आवासीय दूतावास खोलने की घोषणा की। भारत ने इससे पहले, सितंबर 2019 में, सेंट विंसेंट और द ग्रेनाडाइन्स (2020-21 में ई-10 सदस्य) के प्रधानमंत्री की विशेष अतिथि के रूप मे भारत यात्रा का आयोग किया था। भारत ने आयरलैंड, केन्या, मैक्सिको, नाइजर, नॉर्वे और ट्यूनीशिया जैसे अन्य ई-10 सदस्यों के साथ अच्छे द्विपक्षीय संबंध बनाए रखे है।
राजदूत टी.एस. त्रिमूर्ति, संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि, ने 4 जनवरी 2021 को, यूएनएससी कक्ष के सामने भारतीय ध्वज की औपचारिक स्थापना में भाग लिया, जो परिषद में शामिल होने वाले निर्वाचित सदस्यों के लिए कजाकिस्तान द्वारा 2018 में शुरू की गई पद़्यति है। इस अवसर पर बोलते हुए, उपराजदूत ने भारत के विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र और मानवता के एक-छठे हिस्से का प्रतिनिथि होते हुए, भारत के हितों और विचारों को यूएनएससी के कार्यों में परिलक्षित होने की प्राथमिकता के महत्त्व को अभिव्यक्त किया। उन्होंने यूएनएससी की कार्यसूची में शांति, सुरक्षा और विकास के बीच अंतर-संबंध पर भी जोर दिया।
यूएनएससी ने ट्यूनीशिया की अध्यक्ष्ता के अंतर्गत, 7 जनवरी 2021 को, भारत को तालिबान प्रतिबंध समिति के अध्यक्ष, लीबिया प्रतिबंध समिति के अध्यक्ष और आतंकवाद निरोधी समिति (सीटीसी) के उपाध्यक्ष के रूप में चुना गया। ट्यूनीशिया के दिसंबर 2021 में यूएनएससी कार्यकाल पूरा होने के बाद भारत 2022 में सीटीसी का अध्यक्ष बन जाएगा। भारत को जन विनाश समिति के परमाणु अप्रसार के उपाध्यक्षों में से एक चुना गया, जिसकी अध्यक्षता मैक्सिको द्वारा की जाएगी, साथ ही साथ यूएनएससी के अल कायदा और तालिबान पर कार्यान्वयन के निरीक्षण के लिए कार्यदल का उपाध्यक्ष (फ्रांस और रूस के साथ) चयनित किया गया। यह कार्य-दल, जिसकी अध्यक्षता नाइजर कर रहा है, आतंकवाद द्वारा पीड़ित लोग और उनके परिवार की क्षतिपूर्ति के लिए अंतर्राष्ट्रीय कोष की स्थापना प्रस्तावित कर सकता है। भारत के समावेशी दृष्टिकोण के ये परिणाम उसे अब तक आतंकवाद का मुकाबला करने में यूएनएससी की अक्षमता को सुधारने के प्रयास के लिए एक मंच प्रदान करते हैं।
भारत की तालिबान प्रतिबंध समिति की अध्यक्षता, जहां दो उपाध्यक्ष रूस और सेंट विंसेंट और द ग्रेनाडाइन्स हैं, महत्वपूर्ण होगी। अफगानिस्तान ने 2013 में अपनी उम्मीदवारी से अलग होकर एशिया-प्रशांत क्षेत्र से 2021-22 रिक्ति के लिए यूएनएससी में चुनाव के बजाय भारत का समर्थन किया। इस तथ्य के अनुसार, अफगानिस्तान में और उसके आस-पास की बढ़ती भू-राजनीतिक स्थिति के साथ, भारत को यूएनएससी प्रतिबंधों को लागू करते समय अफगानिस्तान के हितों को ध्यान में रखना होगा।
भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका पर 9/11 आतंकवादी हमलों की 20 वीं वर्षगांठ के अवसर पर 12 जनवरी 2021 को यूएनएससी की बैठक में भाग लिया। विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने आतंकवाद के विरू़द्ध लड़ाई में दोहरे मानकों से बचने की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए आतंगवाद के विरुध लड़ाई के लिए 8- बिंदु कार्य योजना का प्रस्ताव रखा। भारत ने वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) के साथ घनिष्ठ सहयोग का आह्वान किया, ताकि यूएनएससी प्रतिबंधों को लागू करने के लिए वित्तीय संस्थानों के एफएटीएफ संघ का उपयोग किया जा सके। भारत तथा यूएनएससी के सभी पी-5 सदस्य एफएटीएफ के सदस्य है। इस दृष्टिकोण को लागू करने में भारत की सफलता पी-5 की स्थिति से निर्धारित होगी, जिन्होंने अपने क्षेत्रीय और भूराजनीतिक हितों के कारण अफ-पाक क्षेत्र से आतंकवाद पर मुकदमा चलाने के लिए विभिन्न स्तरों पर उभयभाविता प्रदर्शित किया है।
लीबिया प्रतिबंध समिति के नव निर्वाचित यूएनएससी अध्यक्ष के रूप में, 28 जनवरी 2021 को लीबिया में यूएनएससी की बैठक में भारत की भागीदारी ने लीबिया संकट के समाधान को सक्षम करने के लिए उसके दृष्टिकोण का संकेत दिया। 2011 में जब यूएनएससी ने लीबिया पर अपने दुर्भाग्यपूर्ण संकल्पों को अपनाया, जो वर्तमान संकट का कारण बना, भारत ने राजनीतिक रूप से बातचीत वाले समाधान की आवश्यकता को प्रकाशित किया जो कि "लीबिया के नेतृत्व वाला और लीबिया के स्वामित्व वाला" होना चाहिए। भारत ने लीबिया में संघर्ष विराम समझौते को बनाये रखने के लिए यूएनएससी के प्रतिबंधों को लागू करने के महत्व पर बल दिया, जिससे "राष्ट्रीय पुनर्मिलन" का उद्देश्य सुसाध्य होगा। यूके का दृष्टिकोण, जो लीबिया पर यूएनएससी के निर्णयों का आलेखन करने में "कलम-धारक" है, यह निर्धारित करेगा कि यूएनएससी इस उद्देश्य को कैसे पूरा करने में सक्षम है।
विदेश सचिव हर्ष वी श्रृंगला ने 6 जनवरी 2021 को यूएनएससी की बैठक में इन देशो के समक्ष आने वाली परिस्थितियो और चुनौतियों के चिंतन में भाग लिया। उन्होंने अपनी प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए, अफ्रीकी देशों की सहायता करने के लिए भारत की बिना शर्त प्रतिबद्धता को रेखांकित किया। भारत ने कोविद -19 महामारी अनुक्रिया के तत्काल संदर्भ में, 16 जनवरी 2021 को अपना राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान शुरू किया। भारत ने 19 जनवरी से, दक्षिण एशिया में अपने निकटतम पडोसी देशो और अफ्रीका के देशों जैसे मॉरीशस और सेशेल्स में वैक्सीन लगाना शुरू किया जिसके साथ-साथ विश्व टीका संधि (जीएवीआई) के अंतर्गत अफ्रीका में 10 लाख टीकों की उपलब्धि भी धारित कराइ गयी। भारत की पहल ने प्रौद्योगिकी, सतत विकास और सभी देशो के बीच संदर्भों में शांति और सुरक्षा के निर्वाह संयोजन को चित्रित किया है।
भारत ने एशिया-प्रशांत क्षेत्र से यूएनएससी के एक निर्वाचित सदस्य के रूप में, परिषद के कार्य-सूची में एशियाई मुद्दों पर यूएनएससी के निर्णयों में एशिया में संघर्षों की वास्तविकताओं को एकीकृत करने पर ध्यान केंद्रित किया। जनवरी 2021 के दौरान तीन ऐसे मुद्दे थे पश्चिम एशिया, यमन और सीरिया।
भारत ने 26 जनवरी 2021 को आयोजित मध्यपूर्वी देश के सन्दर्भ में खुली बहस में फिलिस्तीनी प्रश्न के "उचित समाधान" के लिए अपने मजबूत समर्थन की पुष्टि की, जो "दो-राज्य समाधान को प्राप्त करने के शांतिपूर्ण प्रयासों" के आधार पर फिलिस्तीन के एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन, "इजराइल के साथ शांति और सुरक्षा में कंधे से कंधा मिला कर" एक संप्रभु और स्वतंत्र फिलिस्तीन के दृष्टिकोण को प्राप्त करने के लिए सभी संबंधित पक्षों की भागीदारी के साथ शांति, का स्वागत करता है।
भारत ने अब्राहम समझौते के अंतर्गत इजराइल और कुछ अरब राज्यों के क्षेत्रीय संगठन के बीच संबंधों के राजनीतिक सामान्यीकरण का समर्थन किया,और क़तर और अन्य जीसीसी सदस्यों के बीच मेल-जोल के बाद खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के बीच भी अपना समर्थन व्यक्त किया। पश्चिम एशिया क्षेत्र में इन संबंधों के वृद्धिशील स्थिरीकरण का भारत की ऊर्जा सुरक्षा के साथ-साथ जीसीसी देशों में 80 लाख भारतीय प्रवासी की उपस्थिति का सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
संयुक्त राष्ट्र के दो नॉर्वेजियन दूतों की उपस्तिथि (सीरिया शांति प्रक्रिया के राजदूत गीर पेडरसन, और मध्य पूर्व के लिए राजदूत तोर वेन्स्लैंड) इस संदर्भ में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, विशेष रूप से जब नॉर्वे को भारत के साथ 2021-22 के यूएनएससी कार्यकाल के लिए निर्वाचित किया गया हो। यूएनएससी में नॉर्वे की वर्तमान राजदूत, मोना जुयाल, 1990 के दशक में इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच सफल ओस्लो समझौते के पीछे एक सूत्रधार रहीं।
14 जनवरी 2021 को, यूएनएससी की यमन, जिसे विशेष रूप से 2015 से संघर्ष द्वारा अस्थिर कर दिया गया है, पर चर्चा में भारत जुड़ गया। यूनिसेफ ने यमन को दुनिया का सबसे बड़ा मानवीय संकट कहा, जिसमे 120 लाख बच्चे सहित 80% आबादी को तत्काल मानवीय सहायता की आवश्यकता है।
इस संकट को हल करने के लिए यूएनएससी की अप्रभावीता में यमन के सतत विकास के साथ-साथ पश्चिमी भारत-प्रशांत की समुद्री सुरक्षा सहित दोनों पर प्रभाव पड़ा है। भारत ने बैठक में अपनी भागीदारी में इस परिप्रेक्ष्य को स्पष्ट किया, जिसमें राजनीतिक समाधान का आह्वान किया गया जो समावेशी और शांति से बातचीत के माध्यम से "यमनी-नेतृत्व वाली और यमनी-स्वामित्व वाली" होगी। इस संकट को समाधान के लिए यूएनएससी की अप्रभावीता में यमन के सतत विकास के साथ-साथ पश्चिमी भारत-प्रशांत की समुद्री सुरक्षा सहित दोनों पर प्रभाव पड़ा है। भारत ने बैठक में अपनी भागीदारी में इस परिप्रेक्ष्य को स्पष्ट किया, जिसमें राजनीतिक समाधान का आह्वान किया गया जो समावेशी और शांति से बातचीत के माध्यम से "यमनी-नेतृत्व वाली और यमनी-स्वामित्व वाली" होगी। इसे आरंभ करने की प्रतिप्राप्ति यूके के अंतर्गत है, जो यमन के यूएनएससी निर्णयों का आलेखन करने में एक "कलम-धारक" का प्रतीक है।
सीरिया पर, दो यूएनएससी बैठकों में भारत की भागीदारी (5 जनवरी 2021 को रासायनिक हथियारों के कथित उपयोग पर चर्चा के लिए और 20 जनवरी 2021 को व्यापक राजनीतिक और मानवीय स्थिति पर) ने संवहनिये परिणामों तक पहुँचने के लिए राजनीतिक वार्ता की प्रधानता की आवश्यकता पर जोर दिया। सीरिया और उसके कुछ पड़ोसी देशो की अस्थिर स्थिति का शोषण करने वाले आतंकवादी तत्वों का खतरा और उनका अफ्रीका और एशिया के बहरी क्षेत्र में प्रभाव, भारत द्वारा प्रकाशमय किया गया था। इस क्षेत्र से यूएनएससी के एक निर्वाचित सदस्य के रूप में, भारत ने यूएनएससी के उन संकल्पो का समर्थन किया जो "सीरिया-नेतृत्व और सीरियाई-स्वामित्व" को बनाए रखेंगे, जो सीरिया की एकता, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को सुरक्षित करेगा।
यूएनएससी ने जनवरी 2021 मे, माली और मध्य अफ्रीकी गणराज्य में स्थिति पर विचार किया। वैश्विक स्तर पर तैनात लगभग 80,000 संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों में से 27,000 से अधिक इन दो देशों में संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों (पीकेओ) में तैनात हैं, जिनका कुल वार्षिक 6.5 अरब डॉलर का संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना बजट में से 2 बिलियन डॉलर है। यद्यपि, भारत इन दो संयुक्त राष्ट्र पीकेओ में सैन्य-योगदानकर्ता नहीं है, उसने शांतिपूर्ण वार्ता के माध्यम से इनके बीच राजनीतिक समाधान के लिए प्रयासों का समर्थन करने हेतु 13 जनवरी और 21 जनवरी 2021 को यूएनएससी चर्चाओं में भाग लिया। भारत ने राजनीतिक प्रक्रिया में समावेशी लोकतांत्रिक भागीदारी को मजबूत करने की आवश्यकता पर ध्यान आकर्षित करते हुए माली में संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में "वायु संपत्ति" का योगदान करने की इच्छा व्यक्त की। इन प्रस्तावों का अनुबंध करना पी-5 के ऊपर आश्रित है, विशेष रूप से फ्रांस जो इन दोनों समस्या पर एक "कलम-धारक" का प्रतीक है।
यूएनएससी के चुने गए अफ्रीकी सदस्यों को माली और मध्य अफ्रीकी गणराज्य में जनादेश के प्रारूपण का हिस्सा बनाने से आधारिक वास्तविकताएं सामने आएँगी जो इस प्रक्रिया के परिणाम को बनाए रखेगा।
यूएनएससी के एक निर्वाचित सदस्य के रूप में भारत ने पहले महीने में ही अपनी घोषित प्राथमिकताओं को आगे बढ़ाने के लिए जगह बनाने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है, विशेष रूप से आतंकवाद का मुकाबला करने में। उनके अनुभव ने यूएनएससी को निर्णय लेने में अधिक समावेशी दृष्टिकोण और अपने कार्यसूची में विषय-क्षेत्र-संबंधी और देश-विशिष्ट मुद्दों को स्वीकार करने की आवश्यकता को दर्शाया है।
पहले चरण के रूप में, इसके लिए पी-5 के बीच अनौपचारिक "कलम-धारक" व्यवस्था को संबोधित करने की आवश्यकता है, जिसे अब तक फ्रांस, यूके और यूएसए द्वारा सक्रिय रूप से उपयोग किया जाता रहा है। यह व्यवस्था, जो संयुक्त राष्ट्र के घोषणापत्र में नहीं है, पी-5 को यूएनएससी एजेंडे पर मूल वस्तुओं पर बातचीत के प्रस्तावों और मसौदा तैयार करने का नेतृत्व करने की अनुमति देता है। यहां तक कि एक निर्वाचित सदस्य को "कलम-धारक" के रूप में नामित करना, उनके निषेधाधिकार के कारण यूएनएससी के निर्णय पर पी-5 के प्रभुत्व को दूर नहीं कर सकता है। "सुधारित बहुपक्षवाद" पर भारत के प्रयास की प्राथमिकता "कलम-धारक" व्यवस्था को चरणबद्ध करना और निर्णय लेने में चुने गए यूएनएससी सदस्यों द्वारा समान भागीदारी के साथ प्रतिस्थापित करना होगा।
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