संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत: अप्रैल 2021 का मासिक पूर्वावालोकन
एशिया, अफ्रीका और विषयगत मुद्दों पर केंद्रित
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के निर्वाचित सदस्य के रूप में अपने आठवें दो वर्ष के कार्यकाल में भारत के साथ, संयुक्त राष्ट्र में भारत के पूर्व स्थायी प्रतिनिधि राजदूत अशोक कुमार मुखर्जी द्वारा 'संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा में भारत: मासिक संक्षिप्त' की आईसीडब्ल्यूए श्रृंखला में चौथा विश्लेषण किया गया है।
वियतनाम ने अप्रैल 2021 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की अध्यक्षता ग्रहण की। आसियान का सदस्य होने के नाते, इसकी प्राथमिकता म्यांमार में बढ़ते संकट के लिए यूएनएससी की ओर से प्रतिक्रिया करनी यूएनएससी UNSC ने अप्रैल के महीने में सर्वसम्मति से 11 फैसले लिए। अध्यक्ष के दो बयानों के अलावा, यूएनएससी ने चार प्रस्तावों को अपनाया, जिनमें से दो लीबिया से संबंधित थे, एक सामूहिक विनाश के हथियारों के प्रसार (यूएनएससीआर 2572), और एक नागरिक के संरक्षण (यूएनएससीआर 973) से संबंधित था।
भारत भी इस महीने के दौरान यूएनएससी द्वारा सर्वसम्मत से दिए गए पांच प्रेस वक्तव्य का एक पक्ष था। इसमें माली में संयुक्त राष्ट्र के शांति सैनिकों पर हुए हमलों की निंदा की गई; यमन में शांति का समर्थन किया गया; इथियोपिया में मानवीय स्थिति पर चिंता व्यक्त की गई; सोमालिया में अनुसूचित चुनाव को समर्थन दिया गया; और पाकिस्तान में क्वेटा में हुए आतंकवादी हमले की निंदा की गई थी।
यूएनएससी ने कोसोवो (13 अप्रैल), पश्चिमी सहारा (21 अप्रैल) और कोलम्बिया (21 अप्रैल) पर शांति भंग की राजनीतिक संवाद की स्थिति पर विचार करने हेतु वार्ता की।
एशियाई मुद्दे
म्यांमार के विषय पर यूके, यूएसए, फ्रांस, एस्टोनिया, नॉर्वे और आयरलैंड द्वारा 9 अप्रैल को यूएनएससी हेतु एक "अररिया फॉर्मूला" बैठक सह-प्रायोजित की गई थी। इसका उद्देश्य म्यांमार के जातीय समूहों पर संघर्ष के प्रभाव, आसियान के साथ बातचीत की प्रक्रिया और बातचीत के माध्यम से नए संविधान के लिए समर्थन बढ़ाने के लिए "म्यांमार के प्रमुख शख्सियतों" को एक साथ लाना था। भारत ने गिरफ्तार किए गए राजनीतिक नेताओं की रिहाई की बात रखी। म्यांमार से विस्थापित लाखों लोगों को भारत के जमीनी स्तर के समर्थन के साथ बांग्लादेश के शिविरों में रखने के लिए भारत ने बांग्लादेश की सराहना की। भारत, म्यांमार संकट के हल के लिए वियतनाम, चीन और रूस के साथ बातचीत में शामिल हुआ।
30 अप्रैल को म्यांमार पर हुई एक "निजी बैठक" में, ब्रुनेई ने जकार्ता में आसियान नेताओं की 24 अप्रैल को हुई बैठक के परिणामों की जानकारी यूएनएससी को दी। बैठक में हिंसा को खत्म करने और बातचीत में शामिल होने के लिए संबंधित पक्षों को एक "पांच-सूत्रीय आम सहमति" जारी की गई। भारत ने म्यांमार संकट के जवाब में आसियान की केंद्रीय भूमिका का समर्थन किया।
6 अप्रैल को, यूएनएससी ने सीरिया में रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल संबंधित आरोपों पर विचार करने हेतु बैठक की। भारत ने सीरिया में जरुरी गतिविधियों को जारी रखने बनाने हेतु सीरिया सरकार, रासायनिक हथियार निषेध संगठन और यूएनओपीएस (यूएन ऑफिस ऑफ प्रोजेक्ट सर्विसेज़) के बीच त्रिपक्षीय समझौते को छह महीने के लिए बढ़ाने का समर्थन किया। 28 अप्रैल को नॉर्वे में संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत गेय पेडर्सन द्वारा की गई ब्रीफिंग18 अप्रैल को सीरिया की संसद के अध्यक्ष की इस घोषणा से फीकी पड़ गई कि वहां राष्ट्रपति चुनाव 18 मई को होंगे। पी3 (फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका) द्वारा किसी भी चुनाव का विरोध करने, और रूस तथा चीन द्वारा चुनावों का समर्थन करने के साथ यूएनएससी के स्थायी सदस्यों के बीच ध्रुवीकरण बढ़ गया। हालांकि, यूएन ने बताया कि संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ ने आश्वासन दिया है कि उनके एकतरफा प्रतिबंध से सीरिया को मानवीय आपूर्ति नहीं रुकेगी, इसके बावजूद अंतर्राष्ट्रीय दमिश्क-आधारित कई गैर-सरकारी संगठनों ने 2021 में गंभीर बैंकिंग समस्याओं की बात कही। भारत ने संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत की इस संभावना पर अपनी व्यक्त की कि बातचीत लगातार जारी रखे बिना, उत्तर-पश्चिम सीरिया में दुश्मनी बढ़ेगी, और इराक में इस्लामिक स्टेट तथा लेवेंट (आईएसआईएल / दाएश) द्वारा आतंकवाद फिर से उभरेगा।
15 अप्रैल को यमन में हुई यूएनएससी की बैठक में, भारत ने आतंकी खतरों को रोकने के लिए बातचीत का समावेशी राजनीतिक माहौल बनाने को प्राथमिकता दी। भारत ने हुदैदाह के बंदरगाह पर निर्बाध मानवीय आपूर्ति की बात कही, जहां भारत के लेफ्टिनेंट जनरल अभिजीत गुहा की अध्यक्षता में हुदैदाह समझौते (यूएनएमएचए) का समर्थन करने हेतु संयुक्त राष्ट्र का मिशन जारी है। 16 अप्रैल को जारी यूएनएससी प्रेस वक्तव्य में भारत ने अपनी चिंताएं जाहिर कीं, जिसमें यमन में संघर्ष को खत्म करने और व्यापक राजनीतिक हल निकालने के लिए यमन सरकार द्वारा समर्थित 22 मार्च को सऊदी अरब की घोषणा का स्वागत किया गया था। यूएनएससी ने यमनी के नियंत्रण वाली, समावेशी, राजनीतिक व्यवस्था के तहत तुरंत राष्ट्रव्यापी युद्धविराम हेतु महत्वपूर्ण हितधारकों के बीच बिना बिना शर्त जुड़ा के उद्देश्य से ओमान की मध्यस्थता के प्रयासों का स्वागत किया।
नॉर्वे के संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत टॉर वेन्सलैंड ने 22 अप्रैल को फिलिस्तीन के सवाल पर एक खुली बहस में यूएनएससी को जानकारी दी। उनका उद्देश्य फिलिस्तीन में चुनावों के माध्यम से एकल वैध राष्ट्रीय प्राधिकरण की शुरुआत का समर्थन करना था, जिससे इजरायल के साथ सामंजस्य बन सके और क्षेत्र में शांति कायम हो सके। भारत ने फिलिस्तीनी केंद्रीय चुनाव आयोग को चुनावी अवलोकन और चुनाव संबंधी प्रशिक्षण में भागीदारी के माध्यम से क्रमशः 22 मई और 31 जुलाई को होने वाले विधायी और राष्ट्रपति चुनावों के लिए फिलिस्तीन की तैयारियों के प्रति अपने समर्थन पर बल दिया। भारत ने सीधी वार्ता द्वारा दो-स्तरीय बातचीत के माध्यम से संघर्ष के व्यवहार्य समाधान हेतु नीति का समर्थन करते हुए अपनी नीति को दोहराया, जिसके तहत राज्य की संप्रभुता और संप्रभुता के लिए फिलिस्तीन की उम्मीदों को पूरा करने, इजरायल की सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने और सभी मुद्दों को हल करने की बात की गई है।
अफ्रीकी मुद्दे
माली और एमआईएनयूएसएमए शांति मिशन (जिसका शासनादेश 30 जून 2021 को समाप्त हो रहा है) पर 6 अप्रैल को हुई यूएनएससी की बैठक में, भारत ने परिषद से पाँच समूह के संयुक्त बल साहेल (एफसी-जी5एस) के राजनयिक प्रयासों को समर्थन की जरुरत की बात दोहराई, जिसमें बुर्किना फासो, चाड, माली, मॉरिटानिया और नाइजर शामिल हैं। भारत ने जोर देकर कहा कि परिषद का मुख्य उद्देश्य मार्च 2022 में होने वाले चुनावों की सुविधाजनक बनाना होना चाहिए। माली की निर्वाचित सरकार को संयुक्त राष्ट्र के महासचिव द्वारा 25 मार्च को यूएनएससी को सौंपी गई तीन-चरणीय रिपोर्ट में बताये गए दीर्घकालिक मुद्दों को हल करना चाहिए। भारत ने माली में संवैधानिक व्यवस्था की बहाली हेतु ईसीओडब्ल्यूएएस और एयू की मध्यस्थता भूमिका का समर्थन किया।
2 अप्रैल को जारी यूएनएससी के प्रेस वक्तव्य में माली की संक्रमणकालीन सरकार से एमआईएनयूएसएमए पर आतंकवादी हमलों के अपराधियों की जांच करने और उन पर मुकदमा चलाने का आह्वान किया गया, जो माली में 15,000 सैनिकों वाला संयुक्त राष्ट्र का शांति मिशन है, जिसमें अब तक 140 सैनिक आतंकवादी कार्रवाई में अपनी जान गवां चुके हैं। यूएनएससी में माली पर "पेन-होल्डर" के रूप में फ्रांस को उम्मीद थी कि संयुक्त राष्ट्र के खिलाफ निर्देशित आतंकवाद को रोकने के लिए माली की संक्रमणकालीन सरकार के साथ मिलकर काम किया जाएगा।
चीन के ग्रेट लेक क्षेत्र हुआंग ज़िया के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत ने 12 अप्रैल को यूएनएससी को अपनी ब्रीफिंग में कहा कि 15.3 मिलियन लोग अपने गृह देशों में हिंसा के कारण क्षेत्र से विस्थापित हो गए हैं। इस क्षेत्र में एक प्रमुख विकास भागीदार (10 देशों में 3.9 बिलियन डॉलर की लाइन ऑफ क्रेडिट) और सैन्य योगदानकर्ता (एमओएनयूएससीओ में 18000 संयुक्त राष्ट्र की सेनाओं में से 2000) होने के नाते, भारत ने 2013 के संयुक्त राष्ट्र-ब्रोकर शांति, सुरक्षा व सहयोग (पीएससी) फ्रेमवर्क समझौता को लागू करने के महत्व पर जोर दिया। यह तंजानिया, युगांडा, कांगो गणराज्य और मध्य अफ्रीकी गणराज्य में चुनावों के सफल आयोजन पर आधारित होगा और क्षेत्र में संघर्ष के कारणों को हल करेगा।
15 अप्रैल को, संयुक्त राज्य अमेरिका ने इथियोपिया के टाइग्रे में बढ़ते मानवीय संकट की बात उठाई, जिसकी वजह से यूएनएससी में 1.7 मिलियन लोग विस्थापित हुए। यूएनएससी के 22 अप्रैल के प्रेस वक्तव्य में संकट के जवाब में संयुक्त राष्ट्र के "मानवता, तटस्थता, निष्पक्षता एवं स्वतंत्रता सहित मानवीय आपातकालीन सहायता के मार्गदर्शक सिद्धांतों" का उल्लेख किया गया। भारत ने इथियोपिया की संप्रभुता व क्षेत्रीय अखंडता और इस संकट को दूर करने में इथियोपिया की मदद करने में एयू व आईजीएडी की भूमिका का समर्थन किया।
लीबिया पर यूके द्वारा "पेन-होल्डर" के रूप में तैयार किए गए दो प्रस्तावों को यूएनएससी ने 16 अप्रैल को अपनाया। प्रस्ताव 2570 में लीबिया के युद्धविराम निगरानी तंत्र (एलसीएमएम) को संयुक्त राष्ट्र के समर्थन की बात की गई थी और प्रस्ताव 2571 द्वारा लीबिया से पेट्रोलियम के अवैध निर्यात से संबंधित उपायों, जिसकी समाप्ति 30 अप्रैल को होने वाली है, और 1970 लीबिया प्रतिबंध समिति की सहायता करने वाले विशेषज्ञों के पैनल का जनादेश, जो 15 मई को समाप्त हो रहा है, को नवीनीकृत किया गया।
इन प्रस्तावों को अपनाने पर परामर्श देते हुए, भारत (जो यूएनएससी लीबिया प्रतिबंध समिति की अध्यक्षता करता है) ने फरवरी 2011 में यूएनएससी द्वारा लगाये गए हथियारों के प्रतिबंध के पूर्ण अनुपालन, लीबिया के संघर्ष में हस्तक्षेप न करने, और लीबिया से सभी विदेशी बलों और भाड़े के सैनिकों की तुरंत वापसी पर जोर दिया। भारत ने दिसंबर 2021 में होने वाले चुनावों की तैयारी के लिए लीबिया के अधिकारियों को संयुक्त राष्ट्र की सहायता की पेशकश का समर्थन किया।
23 अप्रैल को, यूएनएससी ने लीबिया में विदेशी लड़ाकों और सैनिकों की गतिविधियों पर "ए3 + 1" (केन्या, नाइजर, ट्यूनीशिया और सेंट विंसेंट व ग्रेनेडाइंस) द्वारा आयोजित की गई एक अनौपचारिक बैठक में हिस्सा लिया। इसके बाद 19 अप्रैल को चाड के राष्ट्रपति इदरिस डेबी की मृत्यु की वजह से पड़ोसी देश चाड में होने वाले संघर्ष में लीबिया से विद्रोहियों की भूमिका की रिपोर्ट सामने आई।
23 अप्रैल को सोमालिया पर जारी यूएनएससी प्रेस वक्तव्य में चुनाव आयोजित करने के प्रस्तावों को लागू करने हेतु सोमालिया में संघर्षरत पार्टियों की प्रतिबद्धता को बनाए रखने पर बल दिया गया। भारत ने इसके लिए परिषद से तय समय में "सोमाली-नेतृत्व वाली चुनावी प्रक्रिया" का समर्थन करने का आह्वान किया और इसके लिए एयू और आईजीएडी की भूमिका की बात की।
26 अप्रैल को, यूएनएससी ने सूडान और दक्षिण सूडान के बीच गहरी हुई दोस्ती के बाद सूडान / अबाई की स्थिति पर विचार किया। दक्षिण सूडान के तेल क्षेत्रों में बड़े स्तर पर निवेश के साथ, भारत ने दक्षिण सूडान के यूनिटी व तोमा दक्षिण तेल क्षेत्रों में तेल उत्पादन फिर से शुरू होने का स्वागत किया। भारत ने "सामुदायिक जमीनी स्तर पर शांति प्रक्रिया" का समर्थन करने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव द्वारा प्रस्तावित संयुक्त राष्ट्र के विशेष मिशन (यूएनआईएसएफए) की सतत भूमिका का समर्थन किया। यूएनएससी के "ए3 + 1" सदस्यों ने विवाद में मध्यस्थता करने हेतु एयू की भूमिका का समर्थन किया।
विषयगत मुद्दे
बुई थान सोन की अध्यक्षता में खदान के मुद्दों पर 8 अप्रैल को हुई यूएनएससी की खुली बहस में, वियतनाम के नव नियुक्त विदेश मंत्री ने राष्ट्रपति के एक बयान को अपनाया, जो उपकरण तथा यूएनपीकेओ के प्रशिक्षण के माध्यम से हताहतों की संख्या निर्धारित करने हेतु 30 जून 2017 को यूएनएससी प्रस्ताव 2635 के कार्यान्वयन पर केन्द्रित है। भारत ने 2001 के कुछ निश्चित पारंपरिक हथियारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन और उसके सभी पांच प्रोटोकॉल को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। भारत ने बारूदी सुरंगों के निर्यात और हस्तांतरण पर अपनी निषेध, और एंटी-पर्सनेल माइनिंग (एपीएम) पर निर्भरता को कम करने की अपनी प्रतिबद्धता जताई। भारत आईईडी के विकास व प्रसार से होने वाले नुकसान को कम करने के संबंध में सदस्य देशों और संयुक्त राष्ट्र के साथ अपनी अच्छी विधियों को साझा करने और क्षमता निर्माण, पीड़ितों की सहायता व पीड़ित पुनर्वास की दिशा में योगदान देने हेतु तत्पर है।
महिलाओं, शांति, एवं सुरक्षा पर 14 अप्रैल को हुई यूएनएससी की वार्षिक खुली बहस में, भारत ने सेल्फ-स्टैंडिग अपराध के रूप में यौन हिंसा के प्रभावी अभियोजन हेतु अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार एक व्यापक कानूनी ढांचा बनाने के लिए सदस्य-देशों के सामने एक सात-सूत्रीय योजना रखी। ये सात-सूत्र थे: (i) अपने क्षेत्रों में होने वाले संघर्ष की स्थिति में ऐसे अपराधों पर मुकदमा चलाने और उन्हें रोकने की प्राथमिक ज़िम्मेदारी देश की सरकार की है, भले ही वो कथित रूप से नॉन-स्टेट लोगों द्वारा किए गए हों; (ii) सशस्त्र संघर्षों में यौन हिंसा को रोकने और प्रतिक्रिया देने हेतु पीड़ित-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाने की जरुरत है; (iii) आतंकवाद को बढ़ावा देने, हिंसक चरमपंथी समूहों के वित्तपोषण, तस्करी और सशस्त्र संघर्षों में होने वाली यौन हिंसा की सूचना देना; (iv) सशस्त्र संघर्षों में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा में शामिल व्यक्तियों और संस्थाओं को सूचीबद्ध करके यूएनएससी द्वारा प्रतिबंधों के नियम और अन्य लक्षित उपायों को मजबूत बनाने की जरुरत है; (v) संघर्ष समाधान और संघर्ष के बाद के सुलह प्रक्रियाओं में महिलाओं की भागीदारी अधिक होनी चाहिए; (vi) शांति अभियानों में लैंगिक दृष्टिकोण को मुख्यधारा में लाने और शांति व्यवस्था में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने की जरुरत है; और (vii) यौन हिंसा सहित महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मुद्दे पर मानवाधिकार परिषद सहित अन्य संयुक्त राष्ट्र निकायों द्वारा चर्चा की जानी चाहिए।
19 अप्रैल को, वियतनाम के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति गुयेन जुआन फुक ने संयुक्त राष्ट्र और क्षेत्रीय संगठनों पर आयोजित यूएनएससी की एक खुली बहस की अध्यक्षता की, जिसके दौरान, अपने-अपने क्षेत्रों में संघर्ष के मूल कारणों को समझने हेतु क्षेत्रीय व उप-क्षेत्रीय संगठनों का अच्छी तरह से इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है और विभिन्न स्तरों पर विश्वास बनाने और राजनीतिक संवाद को कैसे बढ़ावा दिया जा सकता है, पर एक राष्ट्रपति का वक्तव्य अपनाया गया। इसने सिफारिश की कि संयुक्त राष्ट्र को ऐसे संगठनों की क्षमता को बढ़ावा देना चाहिए।
विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने कहा कि भारत यूएन चार्टर के अनुसार, यूएन तथा क्षेत्रीय व उप-क्षेत्रीय संगठनों के बीच जुड़ाव का समर्थन करता है, क्योंकि इन संगठनों को स्थानीय कारकों और जटिलताओं की गहरी समझ है। आतंकवाद, कट्टरता, मादक पदार्थों की तस्करी और संगठित अपराध के साथ-साथ नई तकनीकों के सुरक्षा निहितार्थ जैसी चुनौतियों का सामना करने हेतु संयुक्त राष्ट्र को समन्वित व ठोस कार्रवाई करने की जरुरत है। आसियान भारत की विदेश नीति और उसकी एक्ट ईस्ट पॉलिसी का प्रमुख स्तंभ है। अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और नियम-आधारित व्यवस्था पर आधारित एक स्वतंत्र, खुले व समावेशी इंडो-पैसिफिक के भारत के विजन में आसियान केंद्र में है और यह विजन सभी की प्रगति व समृद्धि की तलाश पर आधारित है। भारत ने बिम्सटेक ढांचे के तहत क्षेत्रीय सहयोग में अपना योगदान दिया था, और विकास साझेदारी पहल के लिए अफ्रीकी संघ के साथ साझेदारी कर रहा है।
27 अप्रैल को आयोजित नागरिकों के संरक्षण पर यूएनएससी की खुली बहस में, वियतनाम ने नागरिकों के लिए जरुरी वस्तुओं के नष्ट होने के मानवीय प्रभाव को दर्शाने के लिए यूएनएससी संकल्प 2573 को प्रस्तुत किया।
भारत ने इस बात पर बल दिया कि आवश्यक सेवाओं के रखरखाव सहित आबादी की सुरक्षा जरूरतों को पूरा करना देश की सरकारों की प्राथमिक जिम्मेदारी है। आक्रमणकारी समूहों और संगठनों की भी समान जिम्मेदारी है कि सशस्त्र संघर्षों में नागरिकों और नागरिक अवसंरचना को निशाना न बनाया जाय। भारत ने निर्दोष नागरिकों के खिलाफ दमनकारी हिंसा के इस्तेमाल और सशस्त्र संघर्षों में नागरिकों की संपत्तियों को निशाना बनाने की निंदा की। संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों की बात करते हुए, भारत ने कहा कि शांति सैनिकों की सुरक्षा नागरिकों की सुरक्षा जितनी ही महत्वपूर्ण है। संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशनों के उद्देश्यों को हासिल करने और सभी स्तरों पर स्पष्ट जवाबदेही के लिए उचित उपकरण, प्रशिक्षण और संसाधनों के बिना, शांति सैनिकों से नागरिकों की संपत्तियों की रक्षा की उम्मीद करना वास्तविक नहीं है।
इस महीने के दौरान, यूएनएससी के एजेंडे से संबंधित मुद्दों पर भारत का रचनात्मक जुड़ाव देखा गया, जिसके दौरान भारत ने बातचीत के माध्यम से संघर्ष और संकट को हल करने हेतु राजनीतिक दृष्टिकोण अपनाने को प्राथमिकता देने की मांग की। इससे एजेंडा (विशेषकर एशियाई मुद्दों पर) तय करने में असमर्थता के बावजूद यूएनएससी में भारत की साख बढ़ी। इस भूमिका में फ्रांस, ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे "पेन-होल्डर" तथा स्थायी सदस्यों का वर्चस्व जारी रहा।
*****
लेख के सभी अधिकार रिजर्व्ड हैं। लेख की सामग्री को संस्थान या लेखक की स्पष्ट अनुमति के बिना कॉपी, उद्धृत, पुनरुत्पादित या वितरित नहीं किया जाना चाहिए।