चीन खुद को दुनिया के सबसे बड़े व्यापारिक राष्ट्र, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) के दूसरे सबसे बड़े स्रोत व गंतव्य और दूसरे सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार के रूप में स्थापित कर चुका है, जिसकी वजह से यह वैश्विक माल और पूंजी प्रवाह का केंद्र बन गया है। चीन के लिए, उसकी भौगोलिक निकटता उसकी भू-अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाला प्रमुख घटक है, क्योंकि इसका आर्थिक वैश्वीकरण और शक्ति का विस्तार पड़ोसी देशों के साथ-साथ इसकी भौगोलिक स्थिति पर भी निर्भर करता है। चीन के आर्थिक शक्ति के इस मॉडल को 'इंटरडिपेंडेंस एसिमेट्री' कहा जाता है, जोकि केओहेन और नी के सिद्धांत के आधार पर ड्यू (2016) द्वारा बनाया गया एक मॉडल है, और जिसमें अन्योन्याश्रय विषमता का विश्लेषण करने हेतु अन्य देशों के साथ चीन के द्विपक्षीय व्यापार के आंकड़ों का इस्तेमाल सूचकांक के रूप में किया जाता है।[i]
इस मॉडल ने 2013 में शुरू की गई चीन की वन बेल्ट एंड वन रोड (ओबीओआर) या यी दाई यी लु पहल और इसका हिस्सा रहे चीन-पाकिस्तान-आर्थिक-गलियारे (सीपीईसी) को चीन के तीन मुख्य उद्देश्यों, अर्थात् आर्थिक, भू-राजनीतिक और ऊर्जा सुरक्षा से जुड़े उद्देश्यों को पूरा करने के लिए प्रेरित करने का कार्य किया। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) चीन के इस भू-आर्थिक प्रयास को दर्शाता है कि वह संघर्ष या बल का उपयोग किए बिना, केवल निवेश और आर्थिक सहायता के ज़रिए बाकी देशों पर प्रभाव डाल सकता है। इस पहल के तहत सीपीईसी को हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) पर नियंत्रण हासिल करने, मध्य पूर्व व मध्य एशियाई क्षेत्र तक अपनी पहुंच बढ़ाने और विशेष रूप से भारत व इसकी ऊर्जा आपूर्ति को घेरने के लिए चीन की भू-रणनीति के रूप में पेश किया गया है।
हालांकि, कुछ लोगों के अनुसार, पाकिस्तान में व्याप्त भ्रष्टाचार, सुरक्षा लागत और कर्ज संबंधी मुद्दों की वजह से चीन के रुख पर असर पड़ा और अब वह सीपीईसी में निवेश करने को लेकर अनिच्छुक दिखाई दे रहा है।[ii]
इसी संदर्भ में, यह शोध-पत्र उन तरीकों का विश्लेषण करता है जिससे चीन की अनिच्छा सीपीईसी कॉरिडोर में उसके निवेश को प्रभावित कर रही है और उन तरीकों का भी विश्लेषण करता है जिनसे यह चीन-पाकिस्तान की सदाबहार दोस्ती को प्रभावित करेगा। शोध-पत्र को निम्न खंडों में क्रमबद्ध किया गया है- (क) चीन के बीआरआई के हिस्से के रूप में आर्थिक गलियारों में निवेश; ख) दोनों देशों के लिए सीपीईसी का महत्व; ग) सीपीईसी में चीन के निवेश में कमी आने के कारण; घ) भारत के लिए इसके क्या मायने हैं?
I
आर्थिक गलियारा और बीआरआई
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा बीआरआई की घोषणा के बाद से ही, चीन की विदेश नीति का मुख्य ध्यान उसके आधिकारिक बीआरआई दस्तावेज़ "विज़न एंड एक्शन ऑन जॉइंट बिल्डिंग सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट और 21वीं सदी के मैरीटाइम सिल्क रोड" में दर्शाए गए पांच क्षेत्रों पर रहा है (राष्ट्रीय विकास एवं सुधार आयोग (एनडीआरसी) (2015)। इसमें निहित क्षेत्र हैं - नीति समन्वय, कनेक्टिविटी की सुविधा, अबाधित व्यापार, वित्तीय एकीकरण, और लोगों-से-लोगों के बीच व्यापार, जिन्हें अर्ध-आधिकारिक तौर पर "सभी के लिए लाभ" हेतु आर्थिक सहयोग को बढ़ाने का साधन कहा जाता है।[iii] चीन बीआरआई के कनेक्टिविटी लक्ष्य, जिसमें विशेष रूप से छह आर्थिक गलियारे - चीन-पाकिस्तान, न्यू यूरेशिया लैंड ब्रिज, चीन-मंगोलिया-रूस, इंडोचीन प्रायद्वीप, बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार, चीन-मध्य एशिया-पश्चिम एशिया शामिल हैं, को हासिल करने हेतु कई देशों के साथ निवेश और सहयोग कर रहा है, जिसमें एशियाई क्षेत्र के साथ-साथ विश्व व्यवस्था में चीन को लाभ देने की पर्याप्त क्षमता है।[iv] अवंसरचना और कनेक्टिविटी भू-राजनीति का एक नए साधन बन गए हैं, जिसमें बीआरआई राज्यों को राष्ट्रीय हितों की रक्षा और आगे बढ़ाने हेतु अपने निर्धारित क्षेत्र से बाहर निकलने या आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहा है।[v]
II
सीपीईसी और ग्वादर: चीन-पाकिस्तान की सदाबहार मित्रता को बढ़ावा
सीपीईसी चीन के पश्चिमी प्रांतों को विकसित करने और पाकिस्तान से होते हुए मध्य पूर्व व मध्य एशिया से जुड़ने के लिए एक व्यवहार्य पारगमन मार्ग स्थापित करने और साथ-साथ कम लागत व कम समय में ऊर्जा आयात सुनिश्चित करने के चीन के उद्देश्य का हिस्सा है। बीआरआई के तहत आने वाली सीपीईसी चीन के वित्त पोषण और सहयोग से पाकिस्तान के विकसित पूर्व में सीमा पार 44 मील या 72 किमी का गलियार है। सीपीईसी परियोजना के तहत, चीन - क) ग्वादर पोर्ट जो कि पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में 46 बिलियन अमेरिकी डॉलर की परियोजना है, ख) झिंजियांग प्रांत को ग्वादर बंदरगाह से जोड़ने के लिए 800 मील काराकोरम राजमार्ग के निर्माण हेतु धन देने के लिए प्रतिबद्ध है।[vi] सीपीईसी के तहत आने वाला ग्वादर पोर्ट चीन की 'गो वेस्ट स्ट्रैटेजी' का एक हिस्सा है। जोकि 1978 में राष्ट्रपति देंग शियाओ पिंग द्वारा होर्मुज और हिंद महासागर के जलडमरूमध्य तक पहुंच की सुविधा हेतु चीन के आर्थिक सुधारों के हिस्से के रूप में 'टू ब्रॉड डेवलपमेंट स्कोप' से जुड़ा एक कार्यक्रम है।[vii] भारत को घेरने के लिए चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स रणनीति भी ग्वादर बंदरगाह के निर्माण और सीपीईसी का इस्तेमाल पाकिस्तान की संभावित आंतरिक व बाहरी अस्थिरता से निपटने के दौरान दक्षिण एशियाई क्षेत्र में भविष्य की सुरक्षा और उपस्थिति के लिए चीन के निवेश की एक वजह है।[viii] सीपीईसी को लेकर पाकिस्तान में मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिली हैं, जिसमें कुछ लोग इसे पाकिस्तान की पहले से ही बदतर अर्थव्यवस्था के लिए एक सहारा मानते हैं, और कुछ सीपीईसी को एक अवसर मानते हैं जिससे इसकी ऊर्जा क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा। पाकिस्तान निर्माण सहायता और ऋण के लिए चीन पर निर्भर रहा है और इस क्षेत्र में भारत से मुकाबला करने के लिए इसे पाकिस्तान की संभावित भू-रणनीति मानता है।[ix] जबकि भारतीय दृष्टिकोण से, इसे चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स रणनीति का एक हिस्सा माना जाता था, क्योंकि ग्वादर बंदरगाह और सीपीईसी के निर्माण से हिंद महासागर क्षेत्र से भारतीय ऊर्जा व्यापार बाधित होगा।[x] इसके अलावा, पाकिस्तान पहले से ही भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशियाई गणराज्यों के साथ व्यापार करने हेतु अपनी पारगमन सुविधाओं का इस्तेमाल करने से इंकार कर रहा है, और बंदरगाह के विकास से भारत के खिलाफ पाकिस्तान को इस क्षेत्र में बढ़त मिल सकती है।
III
निवेश में आती गिरावट
सीपीईसी से चीन और पाकिस्तान के बीच परस्पर संबंध और आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा मिलता है। इससे पाकिस्तान की वित्तीय समस्याओं में कमी आती है क्योंकि पाकिस्तान ने केवल 20% धन ऋण के रुप में लिए हैं, जबकि शेष निर्माण सहायता चीन के प्रत्यक्ष निवेश व मुफ्त सहायता के रुप में है।[xi] सीपीईसी के निर्माण की घोषणा के बाद से, 22 परियोजनाओं का निरीक्षण किया गया और यह माना है कि इससे पाकिस्तान की ऊर्जा, अवसंरचना और नौकरी के सृजन की स्थिति में सुधार हो रहा है। बाकी के देशों से निवेश हासिल करने के बाद ग्वादर बंदरगाह ने पाकिस्तान के रणनीतिक संबंधों को बढ़ाया है, जिससे ग्वादर बंदरगाह व्यापार का संभावित केंद्र बन गया है। उदाहरण के लिए - सऊदी अरब ने 2019 में ग्वादर बंदरगाह के पेट्रोकेमिकल परिसर में 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश को मंजूरी दी थी।[xii]
सीपीईसी निर्माण परियोजना के दूसरे चरण में निवेश करने से चीन की अनिच्छा 6.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर की रेलवे परियोजना पर चीन-पाकिस्तान के मतभेदों के बाद से बढ़ रही है। चीन के निवेश में आई गिरावट के कई कारण हैं - क) पाकिस्तान पर बढ़ते कर्ज का बोझ; ख) सीपीईसी प्राधिकरण और पाकिस्तान स्थित चीन की कंपनियों में व्याप्त भ्रष्टाचार; ग) सीपीईसी परियोजनाओं पर पाकिस्तान सरकार में सैन्य नियंत्रण बढ़ाने का प्रयास।[xiii]
पहला, पाकिस्तान की देनदारियों और ऋण की वजह से पाकिस्तान पर कर्ज का बोझ उसके सकल घरेलू उत्पाद के 106.8% से अधिक या जून 2020 तक 44.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है। ऐसा माना जा रहा है कि, अगर यही स्थिति बनी रही तो ये 2023 तक कर्ज और देनदारियां दोगुनी हो सकती हैं।[xiv] दूसरा, सीपीईसी के अध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) असीम सलीम बाजवा को 3 जुलाई 2020 को उनके प्रशासन में कथित भ्रष्ट आचरण के कारण सूचना एवं प्रसारण विभाग में प्रधानमंत्री इमरान खान के विशेष सहायक के पद से हटाना, पाकिस्तान में सीपीईसी स्थित प्राधिकरण पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। भ्रष्ट अधिकारियों की मौजूदगी पाकिस्तान के बढ़ते कर्ज के मुद्दे का प्रमुख कारण भी रही है। इसके अलावा, चीन ने ही सीपीईसी प्राधिकरण के नियंत्रण को सत्तारूढ़ नागरिक सरकार से सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारियों को सत्तारूढ़ नागरिक सरकार की अत्यधिक लागत और गैर-पारदर्शी खर्च का हवाला देते हुए स्थानांतरित करने का फैसला किया था, और सैन्य अधिग्रहण के बाद भी इसी तरह के भ्रष्टाचार के मामलों के खुलासे से चीन का भरोसा टूटा है।[xv]
भरोसे से जुड़ा मुद्दा सीपीईसी में निवेश करने से चीन की बढ़ती अनिच्छा में नज़र आता है, विशेष रूप से मेन लाइन -1 (एमएल -1) रेलवे परियोजना के लिए पाकिस्तान को ऋण देने से पहले गारंटी की मांग करने में, जो दूसरे चरण के सीपीईसी निर्माण का प्रमुख हिस्सा है जिसके तहत पेशावर से कराची तक की रेलवे लाइन को अपग्रेड किया जाएगा। चीनी अधिकारियों के आधिकारिक बयान में कहा गया है कि - "पाकिस्तान में वित्तीय स्थिति, साथ ही ऋण निलंबन के लिए जी-20 नियमों द्वारा निर्धारित शर्तों को ध्यान में रखते हुए, पाकिस्तान सरकार एमएल-1 परियोजना के लिए सॉवरेन ऋण के अलावा बाकी के ऋण हेतु अतिरिक्त गारंटी तंत्र प्रदान कर सकती है।"[xvi] वास्तव में, चीन ने दूसरे चरण के लिए पाकिस्तान को 8.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर देने के किए गए वादे को घटाकर केवल 6.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर कर दिया,[xvii] जिसका पाकिस्तान के अधिकारियों और लोगों ने बहुत विरोध किया।
कोविड-19 महामारी की वजह से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में बदलाव के साथ निवेश बहाल होता दिख रहा था, जिसमें चीन सक्रिय रूप से दुनिया को वैक्सीन और चिकित्सा उपकरणों के निर्यात में लगा हुआ है। इससे चीन की स्वास्थ्य कूटनीति में सीपीईसी का महत्व बढ़ सकता है जो पाकिस्तान के लिए एक अवसर हो सकता है। हालांकि, निवेश और अवसंरचना में देरी से सीपीईसी परियोजना की गति के साथ-साथ पाकिस्तान के क्षेत्रीय लक्ष्य भी प्रभावित हुए हैं।
IV
भारत के लिए इसके क्या मायने हैं?
ऊपर बताएं गए मुद्दों को लेकर चीन और पाकिस्तान के बीच बढ़ते अविश्वास से सीपीईसी गलियारे की गति धीमी होगी, जिससे भारत को उसकी ऊर्जा सुरक्षा की चुनौतियों और जोखिम से राहत मिलेगी। अगर ग्वादर बंदरगाह क्षेत्र का व्यापार केंद्र बनता है, तो यह न केवल इस क्षेत्र से जुड़ी भारत की भू-रणनीतिक तथा भू-राजनीतिक आकांक्षाओं के लिए बल्कि भारत के भू-आर्थिक लक्ष्यों के लिए भी बड़ा खतरा होगा। चीन-पाकिस्तान की मित्रता का भारत के लिए भू-राजनीतिक खतरा या जोखिम होने के साथ-साथ, सीपीईसी गलियारे की भू-रणनीति भारत के लिए आर्थिक और साथ ही कनेक्टिविटी की दृष्टि से भारत के विकास को प्रभावित करने हेतु दो पड़ोसियों के गठबंधन के संदर्भ में तनाव का कारण रही है। हालांकि, चाबहार बंदरगाह समझौते पर ईरान के साथ भारत की साझेदारी ने भारत को इस संदर्भ में भू-सामरिक संतुलन हासिल करने में मदद की है, लेकिन साथ ही व्यापार और अन्य अवसंरचना निवेश हेतु ईरान-चीन की भागीदारी ने इस भू-सामरिक संतुलन को भारत के लिए सीमित कर दिया है। इसके अलावा, पाकिस्तान के कार्यों और नीतियों को तय करने में चीन के दखल की वजह से भारत-ईरान संबंध कभी भी समान नहीं रहे हैं। पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के अलावा, चीनी निवेश और प्राप्तकर्ता देश को दी जाने वाली सहायता से जुड़ी बाधाओं की लगातार घटनाएं जिम्मेदार हितधारक के रूप में चीन की स्थिति को प्रभावित कर रही हैं। हंबनटोटा पोर्ट (श्रीलंका) का मामला और चीन की कर्ज कूटनीति में फंसा बांग्लादेश इसका एक उदाहरण है। इससे चीन की बीआरआई और स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स की भू-रणनीति के बढ़ते लक्ष्य के तहत भारत को घेरने की संभावना कम हो जाएगी।
*****
*नेहा मिश्रा, विश्व मामलों की भारतीय परिषद में शोध प्रशिक्षु हैं।
अस्वीकरण: व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
पाद टिप्पणियां
[i] Lang, Yi; Chen, Mingxing; Lu, Dadao; Ding, Zijin and Zheng, Zhi, “The Spatial Evolution of Geoeconomic Pattern among China and Neighboring Countries since the Reform and Opening-Up. Multidisciplinary Discipline Publishing Institute (MDPI). 11 April 2019. Volume 11 (2168). Available at: https://doi.org/10.3390/su11072168 (Accessed on 02-03-2021).
[ii] Bilalkhalil, Ahmad, “Pakistan and China: Don’t Fear Chabahar Port”. The Diplomat. 31 January, 2017. Available at: https://thediplomat.com/2017/01/pakistan-and-china-dont-fear-chabahar-port/ (Accessed on 25-02-2021).
[iii] Full text of the Vision for Maritime Cooperation under the Belt and Road Initiative. English.gov.CN.
20 June 2017. Available at: http://english.www.gov.cn/archive/publications/2017/06/20/content_281475691873460.htm (Accessed on 26-02-2021).
[iv] Belt and Road: One masterplan. Six economic corridors of power. Bloomberg.com. 3 January 2019. Available at: https://www.sc.com/en/feature/one-masterplan-six-corridors/ (Accessed on 28-02-2021).
[v] Belt and Road: One masterplan. Six economic corridors of power. Bloomberg.com. 3 January 2019. Available at: https://www.sc.com/en/feature/one-masterplan-six-corridors/ (Accessed on 28-02-2021).
[vi] Bilalkhalil, Ahmad, “Pakistan and China: Don’t Fear Chabahar Port”. The Diplomat. 31 January, 2017. Available at: https://thediplomat.com/2017/01/pakistan-and-china-dont-fear-chabahar-port/ (Accessed on 25-02-2021).
[vii] Bilalkhalil, Ahmad, “Pakistan and China: Don’t Fear Chabahar Port”. The Diplomat. 31 January, 2017. Available at: https://thediplomat.com/2017/01/pakistan-and-china-dont-fear-chabahar-port/ (Accessed on 25-02-2021).
[viii] Bilalkhalil, Ahmad, “Pakistan and China: Don’t Fear Chabahar Port”. The Diplomat. 31 January, 2017. Available at: https://thediplomat.com/2017/01/pakistan-and-china-dont-fear-chabahar-port/ (Accessed on 25-02-2021).
[ix] Bilalkhalil, Ahmad, “Pakistan and China: Don’t Fear Chabahar Port”. The Diplomat. 31 January, 2017. Available at: https://thediplomat.com/2017/01/pakistan-and-china-dont-fear-chabahar-port/ (Accessed on 25-02-2021).
[x] Bilalkhalil, Ahmad, “Pakistan and China: Don’t Fear Chabahar Port”. The Diplomat. 31 January, 2017. Available at: https://thediplomat.com/2017/01/pakistan-and-china-dont-fear-chabahar-port/ (Accessed on 25-02-2021).
[xi] Chattha, Muhammad Khudadad, “Financing Structure of CPEC”. CPEC Portal, China Pakistan Institute. 3 October 2019. Available at: http://cpecinfo.com/financing-structure-of-cpec/ (Accessed on 31 March 2021).
[xii] Chattha, Muhammad Khudadad, “Financing Structure of CPEC”. CPEC Portal, China Pakistan Institute. 3 October 2019. Available at: http://cpecinfo.com/financing-structure-of-cpec/ (Accessed on 31 March 2021).
[xiii] Why China-Pakistan Ties are ‘unravelling’ over CPEC. The Times of India. 25 January 2021. Available at: https://timesofindia.indiatimes.com/world/pakistan/why-china-pakistan-ties-are-unraveling-over-cpec/articleshow/80450316.cms (Accessed on 28-02-2021).
[xiv] Haider, Mehtab, “Pakistan’s debt, liabilities stand at 106.8pc of GDP”. The News. 29 August 2020. Available at: https://www.thenews.com.pk/print/707446-pakistan-s-debt-liabilities-stand-at-106-8pc-of-gdp#:~:text=Pakistan's%20total%20debt%20stood%20at,476%20trillion%20till%20June%202020
(Accessed on 22-02-2021).
[xv] Haider, Mehtab, “Pakistan’s debt, liabilities stand at 106.8pc of GDP”. The News. 29 August 2020. Available at: https://www.thenews.com.pk/print/707446-pakistan-s-debt-liabilities-stand-at-106-8pc-of-gdp#:~:text=Pakistan's%20total%20debt%20stood%20at,476%20trillion%20till%20June%202020
(Accessed on 22-02-2021).
[xvi] The Economic Times, China seeks additional guarantees before sanctioning $6 billion loan for rail project in Pakistan. 24 December 2020. Available at:
https://m.economictimes.com/news/international/world-news/china-asks-pakistan-for-additional-guarantees-for-6-bn-loan/articleshow/79917001.cms (Accessed on 28-02-2021).
[xvii] The Economic Times, China seeks additional guarantees before sanctioning $6 billion loan for rail project in Pakistan. 24 December 2020. Available at:
https://m.economictimes.com/news/international/world-news/china-asks-pakistan-for-additional-guarantees-for-6-bn-loan/articleshow/79917001.cms (Accessed on 28-02-2021).