अंतर्राष्ट्रीय मामलों की भारतीय परिषद् ने “वर्तमान संदर्भ में भारत-श्रीलंका संबंध: क्या यह नीति के पुनर्मूल्यांकन का समय है?” विषय पर 29 और 30 अगस्त 2019 को सप्रू हाउस, नई दिल्ली में एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया। संगोष्ठी के प्रतिभागियों में पाँच पूर्व राजदूत, ग्यारह विश्वविद्यालयों के विद्वान और प्रबुद्ध मंडल, रक्षा और खुफिया कार्मिक तथा पत्रकारगण शामिल हुए। स्वागत उद्बोधन राजदूत टी.सी.ए. राघवन, अंतर्राष्ट्रीय मामलों की भारतीय परिषद् के महानिदेशक द्वारा दिया गया तथा शुभारंभ अभ्युक्ति भारत सरकार की भूतपूर्व विदेश सचिव एवं श्रीलंका के लिए भूतपूर्व भारतीय उच्चायुक्त, राजदूत निरुपमा राव द्वारा दी गई। इस संगोष्ठी में ऐतिहासिक संबंधों, 80 के दशक में भारत-श्रीलंका संबंधों के संस्मरण, राजनीतिक संबंध, द्विपक्षीय संबंधों के आर्थिक और सुरक्षा पहलुओं पर पाँच सत्रों का आयोजन किया गया था।
“भारत-श्रीलंका के ऐतिहासिक तथा सभ्यतागत संबंधों के समकालीन आयाम” पर प्रथम सत्र राजदूत निरुपमा राव की अध्यक्षता में हुआ। डॉ. निरंजन जेना, प्राध्यापक, संस्कृत विभाग, पालि और प्राकृत, भाषा-भावना, विश्व भारती, शांतिनिकेतन, पश्चिम बंगाल; डॉ एन. मनोहरन, संबद्ध प्रोफेसर, क्रिस्ट विश्वविद्यालय बेंगलुरू; डॉ. उमाकांत मिश्रा, संबद्ध प्रोफेसर, इतिहास विभाग, रावेनशॉ विश्वविद्यालय, कटक, ओडिशा और श्री एन. सत्य मूर्ति, वरिष्ठ अध्येता और निदेशक, ओ.आर.एफ. चेन्नई इस पैनल के सदस्य थे। इस अधिवेशन ने भारत और श्रीलंका के मध्य उन ऐतिहासिक संबंधों की समकालीन प्रासंगकिता और इतिहास को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता पर जोर दिया जो तमिल और सिंहल दोनों के अनुबंधन पर परस्पर विरोधी धारणाओं के बोझ तले से दबी हुई थीं। इस अधिवेशन ने द्विपक्षीय संबंधों की बेहतर समझ हेतु ऐतिहासिक संबंधों के आधार पर पर्यटन को पुनर्जीवित करने और बढ़ावा देने पर भी विचार किया।
द्वितीय सत्र “80 के दशक की रूपरेखा- कितनी दीर्घ? कितनी गूढ़?” राजदूत रोनेन सेन की अध्यक्षता में हुआ और टी.पी. श्रीनिवासन, एनएसएस अकादमी ऑफ सिविल सर्विसेज के निदेशक और केरल अंतर्राष्ट्रीय केंद्र, तिरुवनंतपुरम के महानिदेशक; लेफ्टिनेंट जनरल ए.एस. कलकत, पूर्व आईपीकेएफ कमांडर और भारत-श्रीलंका संधि 1987 के कार्यान्वयनकर्ता; राजदूत रंजन मथई, भूतपूर्व विदेश सचिव, भारत सरकार; श्री टी. रामकृष्णन, सह-संपादक, द हिंदू, चेन्नई; एयर मार्शल एम मथेश्वरन एवीएसएम वीएम, पी.एचडी; अध्यक्ष, द पेनिनसुला फाउंडेशन चेन्नई; श्री प्रताप हेबिलकर, पूर्व विशेष सचिव, भारत सरकार; श्री एस.वी. वेंकट नारायण, द फॉरेन कॉरेसपोरेंडेंट्सक्लब ऑफ साउथ एशिया (एफसीसी), नई दिल्ली के अध्यक्ष; प्रोफेसर आर. मणिवन्नन, राजनीति और लोक प्रशासन विभाग, मद्रास विश्वविद्यालय के प्रमुख इस सत्र में सदस्य थे। यह अधिवेशन चातुम हाउस नियमों के तहत आयोजित किया गया था।
तृतीय अधिवेशन “समकालीन श्रीलंका की राज्यव्यवस्था: भारत-श्रीलंका संबंधों के लिये निहितार्थ” अंतर्राष्ट्रीय मामलों की भारतीय परिषद् के महानिदेशक, डॉ. टी.सी.ए. राघवन, की अध्यक्षता में हुआ और प्रोफेसर अजय दर्शन बेहरा, प्राध्यापक, तृतीय विश्व अध्ययन अकादमी, जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली; डॉ एस. वाई. सुरेंद्र कुमार, सहायक प्राध्यापक, राजनीति विज्ञान विभाग, बेंगलुरू विश्वविद्यालय, बेंगलुरू; डॉ. श्वेता सिंह, सहायक प्राध्यापक, अंतर्राष्ट्रीय संबंध विभाग, दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय (एसएयू) और डॉ. श्रीपति नारायणन, सहायक प्राध्यापक, जिंदल स्कूल ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स इस सत्र के सदस्य थे। इस सत्र में वक्ताओं ने क्षेत्र में उभरते गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरों जो दोनो देशों के मध्य राजनीतिक सहयोग को परिभाषित करते हैं समझने के लिए भी भारत और श्रीलंका के मध्य विद्यमान सांस्कृतिक, जातीय, धार्मिक संबंधों को गहराई से अध्ययन करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। भारतीय संघवाद और श्रीलंका के प्रति नीति को प्रतिरूप देने में केद्र-राज्य मिलन बिंदु पर चर्चा हुई। बौद्ध राष्ट्रवाद के उदय और उसके प्रभाव पर चर्चा हुई क्योंकि हाल ही में श्री लंका में एक नए संविधान को लेकर बहस हुई थी।
चतुर्थ सत्र “भारत-श्रीलंका आर्थिक और विकास सहयोग : मुद्दे और संभावनाएँ”; की अध्यक्षता राजदूत टी.पी. श्रीनिवासन ने की। प्रोफेसर निशा तनेजा, इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनल इकोनॉमिक रिलेशंस (आईसीआरआईईआर), नई दिल्ली; प्रोफेसर बिस्वजीत नाग, प्राध्यापक, भारतीय विदेश व्यापार संस्थान, नई दिल्ली; डॉ. जाबिन थॉमस जेकब, सहायक प्राध्यापक, अंतर्राष्ट्रीय संबंध और शासन अध्ययन विभाग, स्कूल ऑफ ह्यूमैनिटीज एंड सोशल साइंसेज (एसओएचएसएस), शिव नादर विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश इस सत्र के सदस्य थे। इस सत्र में आर्थिक सहयोग और व्यापार की वर्तमान स्थिति एवं दोनों राष्ट्रों के मध्य निवेश संबंध और चीन की श्रीलंका के साथ आर्थिक कूटनीति के दृष्टिकोण पर विचार-विमर्श हुआ।
पंचम अधिवेशन “भारत-श्रीलंका सहयोग के सुरक्षा आयाम” की अध्यक्षता राजदूत रंजन मथई, पूर्व विदेश सचिव, भारत सरकार द्वारा की गई। इस सत्र के सदस्य, ‘आफ्टर द फॉल: श्रीलंका इन विक्ट्री एंड वॉर’, के लेखक श्री मोहन के. टिक्कू, नई दिल्ली; प्रो. ए. सुब्रमण्यम राजू, प्राध्यापक, यूएमआईएसएआरसी- दक्षिण एशियाई अध्ययन केंद्र, सामाजिक विज्ञान और अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन स्कूल, पांडिचेरी; डॉ. टी.सी. कार्तिकेयन, सहायक प्राध्यापक, राजनीतिक विज्ञान और विकास प्रशासन विभाग, गांधीग्राम ग्रामीण संस्थान (ए सेंट्रल डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी), गांधीग्राम, तमिलनाडु; डॉ. समथा मल्लेमपति, रिसर्च फेलो, आईसीडब्ल्यूए, नई दिल्ली और डॉ. गुलबीन सुल्ताना, रिसर्च एनालिस्ट, आईडीएसए, नई दिल्ली थे। इस सत्र में सहयोग के सुरक्षा पहलुओं और अवसरों जो, विद्यमान ब्लू इकोनॉमी सहयोग, पर्यटन और अनुयोजकता को बढ़ाते हैं पर चर्चा हुई। इस सत्र में श्रीलंका के विदेश और सुरक्षा संबंधों और उसके द्विपक्षीय संबंधों पर संभावित प्रभाव के साथ-साथ इंडो-पेसिफिक की उभरती आकृति में श्रीलंका की भूमिका पर भी विचार-विमर्श हुआ।