विश्व मामलों की भारतीय परिषद ने आसियान-भारत केंद्र के सहयोग से विकासशील देशों के लिए अनुसंधान और सूचना प्रणाली (आरआईएस) नई दिल्ली में, “मेकांग-गंगा सहयोग (एमजीसी) के 20 वर्ष” पर, इस पहल के दो दशक की स्मृति में 5-6 नवंबर 2020 को दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया। वेबिनार में भारत और मेकांग देशों के कुल 23 वक्ता थे। वक्ताओं में शिक्षाविदों, नीति निर्माताओं, राजनयिकों और विशेषज्ञों का एक बहु-अनुशासनात्मक समूह का गठन किया गया था ।
2. वेबिनार के पाँच सत्रों में जिन प्रमुख विषयों पर चर्चा की गई उनमें शामिल हैं:
3. सचिव (पूर्व), विदेश मंत्रालय, भारत श्रीमती रीवा गांगुली दास ने उद्घाटन भाषण दिया । उन्होंने भारत और मेकांग क्षेत्र के बीच ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक संबंधों पर और वे समकालीन सहयोग को कैसे समृद्ध करते हैं इस पर बल दिया । जैसा कि, चल रही कोविड-19 महामारी ने अभूतपूर्व संकट पैदा कर दिया है, एमजीसी पहल, महामारी के नकारात्मक प्रभाव का मुकाबला करने और आगे का रास्ता सुझाने के लिए प्रगतिशील नीतिगत निर्णय और सुझाव देने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच बन गया है। उन्होंने, 2019 में अपनाई गई एमजीसी कार्य योजना (2019-2022) के तहत प्रगति कैसे हुई है, इसे रेखांकित किया । भारत की त्वरित-प्रभाव परियोजनाएँ, क्षमता निर्माण और मानव संसाधन विकास प्रयास, क्षेत्र के साथ सहयोग के महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं। आईसीडब्ल्यूए के महानिदेशक, डॉ. टीसीए राघवन ने हमारी साझी विरासत, सभ्यता और ऐतिहासिक संबंधों पर ध्यान केंद्रित करते हुए सामूहिक रूप से विद्वानों के प्रयासों को बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया । एमजीसी के बीस साल, अब तक प्राप्त की गई प्रगति की संवीक्षा करने और दर्शाने तथा पाठ्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए एक उपयुक्त अवसर है। आरआईएस के अध्यक्ष, डॉ. मोहन कुमार ने कनेक्टिविटी के महत्व पर और सम्मेलन को विशेष रूप से एमजीसी देशों द्वारा आर्थिक संबंधों को और मजबूत करने में सामना करने वाली बाधाओं की पहचान कैसे करनी चाहिए इस पर प्रकाश डाला ।
4. सम्मेलन के पहले सत्र को 'साझा संस्कृति और विरासत' शीर्षक दिया गया था और इसकी अध्यक्षता डॉ. प्रबीर डे ने की थी। सत्र में वक्ता थे दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशियाई कला इतिहास की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. पारुल पंड्या धर; डॉ. सुधा गोपालकृष्णन निदेशक, और सुश्री निहारिका गुप्ता, निदेशक (अनुसंधान), सहपीडिया, नई दिल्ली; प्रो. डॉ. सोफना श्रीचम्पा, अध्यक्ष, भारत अध्ययन सेंटर, एशिया की भाषाओं और संस्कृति के अनुसंधान संस्थान, महिदोल विश्वविद्यालय, थाईलैंड; और डॉ. पयानत सोइखम, उबोन रत्चाथानी विश्वविध्यालय, थाईलैंड में राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंध में व्याख्याता द्वारा एक संयुक्त प्रस्तुति । इस सत्र में भारत और मेकांग देशों के बीच मौजूद सभ्यतागत संबंधों के माध्यम से साझा ऐतिहासिक संबंधों के पहलुओं पर चर्चा हुई। यह कहा गया था कि भारत और मेकांग के बीच सांस्कृतिक संबंध पुरातत्व, भाषा और पाठ, धर्म, विरासत स्थलों की साझा बहाली और अकादमिक आदान-प्रदान में दिखाई देता है। इस सत्र में चर्चा की गई कि कैसे एमजीसी, मौजूदा विश्वविद्यालयों और संसाधन केंद्रों में केंद्र स्थापित करने, ऐतिहासिक दस्तावेजों के डिजिटलाइजेशन, विद्वानों के आदान-प्रदान, संग्रहालयों के बीच नेटवर्किंग, इत्यादि जैसी परियोजनाओं को शुरू करके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों पर एक अन्तरंग समझ का निर्माण करने में मदद कर सकता है। भारत, मेकांग क्षेत्र में योग और आयुर्वेद को बढ़ावा दे सकता है।
5. 'आर्थिक संबंधों' पर दूसरे सत्र की अध्यक्षता राजदूत सुधीर टी देवारे, पूर्व सचिव (पूर्व), विदेश मंत्रालय और आईसीडब्ल्यूए के पूर्व महानिदेशक ने की। सत्र में वक्ता थे; श्री मधुरज्या के दत्ता, निदेशक, व्यापार सुविधा प्रभाग, मेकांग संस्थान, खॉन केन, थाईलैंड; डॉ. वो थी मिन ले, उप प्रमुख, वियतनाम एकेडमी ऑफ सोशल साइंसेज, हनोई, डॉ. ट्रूंग क्वांग होन, वियतनाम एकेडमी ऑफ सोशल साइंसेज, हनोई; डॉ. नीलांजन घोष, निदेशक, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, कोलकाता; श्री प्रणव कुमार, प्रमुख, अंतर्राष्ट्रीय नीति, भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई), नई दिल्ली; और डॉ. टेम्जेनमेरेन एओ, रिसर्च फेलो, आईसीडब्ल्यूए। सत्र में एमजीसी देशों के बीच बढ़ते आर्थिक सम्बन्ध पर और इसमें और तेजी लाने, विशेष रूप से वर्तमान महामारी के समय, संबंधों को तेज करने में मदद करने के लिए व्यापार और संस्थागत सुधार जैसे कार्यों को आगे बढ़ाने के बारे में चर्चा की गई। सत्र में अध्यक्ष और वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि कैसे खराब कनेक्टिविटी एक गंभीर समस्या है जो भारत और मेकांग देशों के बीच व्यापार और निवेश के प्रवाह को रोकती है। क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखलाओं को प्रोत्साहित करके भारत और मेकांग के बीच आर्थिक सहयोग को बढ़ाने की आवश्यकता है। भारत मेकांग में सस्ती स्वास्थ्य सुविधाओं के निर्माण में सहायता कर सकता है।
6. 'नई अर्थव्यवस्था और क्षेत्रीय सहयोग' पर तीसरे सत्र की अध्यक्षता राजदूत राजीव भाटिया, प्रतिष्ठित फैलो, गेटवे हाउस, और पूर्व महानिदेशक, आईसीडब्ल्यूए ने की। सत्र में वक्ता थे डॉ. हुआ होन गुयेन, वियतनाम एकेडमी ऑफ सोशल साइंस, हनोई; डॉ. सुनील शुक्ला, निदेशक, भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान, अहमदाबाद; डॉ. रीना मारवाह, एसोसिएट प्रोफेसर, जीसस एंड मैरी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, नई दिल्ली; और डॉ. नोमेश बोलिया, आसियान पीएचडी फैलोशिप प्रोग्राम, आईआईटी दिल्ली के राष्ट्रीय समन्वयक। सत्र ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे एमजीसी केवल सांस्कृतिक सहयोग के बारे में ही नहीं, बल्कि अन्य क्षेत्रों में साझेदारी बनाने के लिए एक मंच बन रहा है जिनमें ऊर्जा, क्षमता निर्माण, उद्योग, शिक्षा आदि शामिल हैं। सत्र में इस बात पर चर्चा हुई कि कैसे एमजीसी को जल और खाद्य सुरक्षा जैसी उभरती चुनौतियों वाले क्षेत्रों और निचले मेकांग क्षेत्र में पारिस्थितिकी तंत्र के खतरे को दूर करने के लिए एक बहुपक्षीय तंत्र बनाने की आवश्यकता है।
7. ‘लोगों-के-लोगों से संपर्क’ पर चौथे सत्र की अध्यक्षता राजदूत प्रीति सरन, पूर्व सचिव (पूर्व), विदेश मंत्रालय ने की। इस सत्र के वक्ता थे डॉ. वन्नारिथ छिआंग, सीनियर फेलो, कंबोडियन इंस्टीट्यूट फॉर कोऑपरेशन एंड पीस, पोनोम पेन्ह; डॉ. वो जुआन विन्ह, वियतनाम एकेडमी ऑफ सोशल साइंस, हनोई; डॉ. श्रीस्ती पुखरेम, सीनियर रिसर्च फेलो, इंडिया फाउंडेशन; और डॉ. राजीव रंजन चतुर्वेदी, पूर्व विजिटिंग फेलो, आरआईएस। चर्चा लोगों से लोगों के आयाम पर केंद्रित थी, जो कि लोक नृत्य, संगीत, रामायण जैसे महाकाव्यों, कला और शिल्प, बौद्ध संपर्क, बॉलीवुड और योग की लोकप्रियता, जातीय और सांस्कृतिक निकटता की समानताओं पर आधारित एमजीसी का एक प्रमुख तत्व है। सत्र ने एक प्रमुख बाधा के रूप में, कनेक्टिविटी की कमी पर जोर दिया और यह कि एमजीसी, जो व्यापार, सांस्कृतिक और लोगों से लोगों के सहयोग के समृद्ध इतिहास का उत्सव है, इसी पर निर्भर करता है। सांस्कृतिक और लोगों से लोगों को जोड़ने के महत्व के अलावा, मेकांग का रणनीतिक महत्व सुविख्यात है और भारत उप-क्षेत्र के प्रत्येक देश के साथ अच्छे द्विपक्षीय संबंध साझा करता है।
8. ‘आगे का रास्ता: एमजीसी के तीसरे दशक की ओर’ के पाँचवें और अंतिम सत्र की अध्यक्षता डॉ. संजय बारू, सदस्य, शासकीय परिषद, आईसीडब्ल्यूए, नई दिल्ली द्वारा की गई। सत्र में वक्ता थे डॉ. मयो थान्ट, वरिष्ठ सलाहकार, म्यांमार आईएसआईएस, पूर्व प्रधान अर्थशास्त्री, एशियाई विकास बैंक, मनीला; प्रो. सुथिफंद चिरथिवात, आसियान अध्ययन केंद्र, चुललोंगकोर्न विश्वविद्यालय, बैंकॉक; डॉ. नानी गोपाल महंत, निदेशक, दक्षिण पूर्व एशियाई अध्ययन केंद्र, गुवाहाटी विश्वविद्यालय, गुवाहाटी; प्रो. नित्या नंदा, निदेशक, सामाजिक विकास परिषद, नई दिल्ली; और डॉ. प्रबीर डे, प्रोफेसर, आसियान-भारत केंद्र, आरआईएस। पैनलिस्टों ने चल रही कनेक्टिविटी परियोजनाओं को हल करने और आगे बढ़ाने पर और भौतिक, डिजिटल और लोगों से लोगों के संपर्क के संदर्भ में कनेक्टिविटी के निर्माण के महत्त्व को दोहराया। एमजीसी के तीसरे दशक को देखते हुए, सत्र ने जन-उन्मुख होने के लिए सहयोग की आवश्यकता पर चर्चा की, जिसमें स्वास्थ्य, समुदाय, शिक्षा, रोजगार सृजन और संवाद के माध्यम से निर्मित होने वाले सांस्कृतिक आदान-प्रदान के क्षेत्र में परियोजनाएँ शामिल हैं।
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