देवियों और सज्जनों!
महामहिम व्लादिमीर नोरोव
और आईसीडब्ल्यूए के महानिदेशक,
मुझे रूस और मध्य एशियाई क्षेत्र से जुड़े प्रमुख भारतीय विद्वानों को संबोधित करते हुए खुशी हो रही है। इस क्षेत्र के तेजी से बदलते परिदृश्य में, "एससीओ और भारत - आगे की दिशा" पर आज का सम्मेलन सामयिक होने के साथ आवश्यक भी है। मुझे विश्वास है कि यह बैठक हमारे पड़ोस में तेजी से बदलते घटनाक्रम और शंघाई सहयोग संगठन -एससीओ के साथ भारत के बढ़ते जुड़ाव को बेहतर ढंग से समझने में सहायक होगी।
2. हमने, 2005 में एक पर्यवेक्षक देश के रूप में और फिर 2017 से एक पूर्ण सदस्य देश के रूप में संगठन के साथ अपने सहयोग का एक लंबा सफर तय किया है। इस यात्रा में हमने एक सकारात्मक और रचनात्मक भूमिका निभाना जारी रखा है जिसने इस क्षेत्र के विकास और समृद्धि में योगदान दिया है। हमारे लिए इस क्षेत्र में शांति और सुरक्षा का सवाल सबसे अहम रहा है - यह एससीओ चार्टर का भी एक प्रमुख हिस्सा है। ताशकंद में क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (आरएटीएस) जैसे अपने विशेष निकाय के माध्यम से यह संगठन इस क्षेत्र में जो महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है उससे हम अवगत हैं।भारत आरएटीएस के काम में सक्रिय रूप से योगदान दे रहा है और हम 2021-22 में एससीओ आरएटीएस की हमारी वर्तमान अध्यक्षता के दौरान इसकी गतिविधियों को एक नई दिशा और गति देने की उम्मीद करते हैं। हम आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद, आतंकवाद के वित्तपोषण, नशीली दवाओं तथा हथियारों और गोला-बारूद की अवैध तस्करी का मुकाबला करने में आरएटीएस के साथ जारी सहयोग को बहुत महत्व देते हैं। हम आशा करते हैं कि आरएटीएस की हमारी अध्यक्षता के दौरान का समय अन्य सदस्य देशों के साथ हमारे जुड़ाव का एक महत्वपूर्ण वर्ष होगा।
3. एससीओ कई सदस्य देशों के अफगानिस्तान का पड़ोसी होने के कारण क्षेत्रीय सुरक्षा पर उनकी चिंताएं अफगानिस्तान में जो कुछ हो रहा है उससे गहरे जुड़ी हुई हैं। ईरान को एक नए सदस्य देश के रूप में शामिल करने के निर्णय के साथ ही अफगानिस्तान के सभी पड़ोसी देश अब एससीओ परिवार का हिस्सा बन चुके हैं। यह एससीओ को अफगानिस्तान में उभरती स्थितियों पर सहयोग और आम समझ के लिए एक स्वाभाविक मंच बनाता है। इसके कारण दुशांबे में पिछले महीनों में दो प्रमुख कार्यक्रम हुए हैं - 14 जुलाई को एससीओ-अफगानिस्तान संपर्क समूह की बैठक और 17 सितंबर को अफगानिस्तान पर एससीओ-सीएसटीओ आउटरीच। ये दोनों बैठकें अफगानिस्तान पर खुले रूप में विचारों के आदान-प्रदान और पूरे क्षेत्र पर इसके प्रभाव के लिए एक मंच के रूप में उपयोगी रहीं।
4. सुरक्षा मुद्दों के अलावा, भारत ने व्यापार, संपर्क और संस्कृति के क्षेत्र में सहयोग के लिए एससीओ की विशाल क्षमता का भरपूर लाभ उठाने का आह्वान किया है। हमने 2020 में एससीओ के राष्ट्राध्यक्षों की परिषद् की भारत की अध्यक्षता के दौरान इन क्षेत्रों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता बताई और इसके साथ ही हमने पारंपरिक चिकित्सा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा स्टार्ट-अप और नवाचार पर एससीओ के भीतर सहयोग के तीन नए स्तंभ बनाने का प्रस्ताव भी रखा है।
5. भारत ने पहली बार 2020 में एससीओ में यंग साइंटिस्ट्स कॉन्क्लेव, एमएसएमई फोरम और एससीओ स्टार्टअप फोरम की मेजबानी की। हमने भारत के नेतृत्व में स्टार्टअप्स पर और पारंपरिक चिकित्सा पर एक विशेषज्ञ कार्य समूह जैसे दो नए संस्थागत तंत्र स्थापित करने का भी प्रस्ताव रखा।
6. हमारी साझा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को उजागर करते हुए, भारत ने एससीओ सदस्य देशों में बौद्ध धर्म से जुड़ी साझा विरासत पर पहली आभासी प्रदर्शनी का भी आयोजन किया और क्षेत्रीय भारतीय साहित्य की दस पुस्तकों का एससीओ की आधिकारिक भाषाओं, रूसी और चीनी में अनुवाद करवाया। हमारी पहल का सभी सदस्य देशों ने स्वागत किया।
7. ऐसे समय में जब कि संगठन इस वर्ष अपनी 20वीं वर्षगांठ मना रहा है, यह एक प्रमुख क्षेत्रीय बहुपक्षीय सहयोग फ्रेमवर्क के रूप में उभरा है और भारत को अपने सभी पड़ोसियों, विशेष रूप से मध्य एशिया के देशों के साथ जुड़ने के लिए एक संस्थागत मंच प्रदान करता है। महामारी के बाद वैश्विक राजनीतिक और आर्थिक स्थितियों में आए व्यापक बदलाव के बीच , एससीओ अपने उन सदस्य देशों को परस्पर सहयोग बढ़ाने का एक रचनात्मक मंच प्रदान करता है जो वैश्विक आबादी का 40 प्रतिशत और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 27 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करते हैं।
8. भारत एससीओ क्षेत्र में सुरक्षा, व्यापार, संपर्क और संस्कृति के क्षेत्र में पारस्परिक रूप से लाभकारी सहयोग के लिए एक विशाल और अप्रयुक्त क्षमता देखता है। हमें उम्मीद है कि आज की चर्चा हमें एससीओ के साथ इस जुड़ाव को गहरा और समृद्ध बनाने में नई अंतर्दृष्टि प्रदान करेगी।
धन्यवाद!
*****