हाल ही में, जून और जुलाई 2023 के महीनों में, मुझे अंतरराष्ट्रीय प्रवासन पर तीन वैश्विक कार्यक्रमों में शामिल होने का सौभाग्य मिला:
इन तीनों ही कार्यक्रमों में जो एक समानता है वह यह है कि ये सभी 2030 में एसडीजी की अवधि समाप्त होने तक जीसीएम उद्देश्यों की पूर्ति से संबंधित हैं। इस अतिथि स्तंभ का उद्देश्य अपने तीन प्रमुख हितधारकों, अर्थात् शिक्षा जगत, निजी क्षेत्र और सरकार के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रवासन के सभ्य वैश्विक प्रशासन के परिप्रेक्ष्य से उन पर अपने विचार साझा करना है।
1. विकास से वितरण तक विकेंद्रित प्रवासन अध्ययन:
इंटरनेशनल माइग्रेशन, इंटीग्रेशन एंड सोशल कोहेशन इन यूरोप (आईएमआईएससीओई) का 20वां वार्षिक सम्मेलन, विश्व में प्रवासन विद्वानों के सबसे बड़ा नेटवर्क संघ, वारसॉ विश्वविद्यालय, पोलैंड द्वारा 3 से 6 जुलाई, 2023 तक, "प्रवासन और असमानताएँ: उत्तर और समाधान की खोज" के चुनौतीपूर्ण विषय पर आयोजित किया गया था। सम्मेलन में विश्व भर से 950 लोग व्यक्तिगत रूप से और 400 लोगों ने ऑनलाइन प्रतिभागियों के रूप भाग लिया। मैंने अपना मुख्य भाषण यह कहते हुए शुरू किया कि जहां असमानताएं प्रकृति का उपहार हैं और प्रवासन उन्हें समतल करता है, वहीं प्रवासन संबंधी समस्याएं आमतौर पर मानव निर्मित होती हैं! यदि असमानताएं न होतीं तो शायद अधिकांश प्रवासन का अस्तित्व ही नहीं होता। मैंने यह भी कहा कि मेरे लिए यह सम्मेलन दो दशक पुराने बहुपक्षीय फोकस “प्रवासन और विकास” से “प्रवासन और समानता” पर एक उल्लेखनीय बदलाव की शुरुआत है। मैंने कहा कि इसे अब बहु– विषयक अनुसंधान में प्रवासन प्रवचनों में एक महत्वपूर्ण मोड़ की शुरुआत करनी चाहिए और आशा है कि अंततः इंटरडिसिप्लनेरी एवं ट्रांसडिसिप्लनेरी अनुसंधान के क्षेत्र में, तीनों, परस्पर नहीं लेकिन ओवरलैपिंग तरीके से समझे जाने के बावजूद तीनों एक दूसरे से अलग हैं। इस संदर्भ में, मैंने आगे कहा कि विशेष रूप से अर्थशास्त्र के मेरे अपने सामाजिक विज्ञान विषय में यह वृद्धि और विकास को अधिकतम करने की बात से लेकर विकास अर्थशास्त्र की दिशा में वितरण एवं कल्याण को अनुकूलित करने की दिशा में उल्लेखनीय बदलाव का प्रतीक होगा। जीवन स्तर एवं जीवन की गुणवत्ता को ऊपर उठाने के लिए उत्तर और दक्षिण में दो सार्वभौमिक एजेंडे हैं।
मैंने प्रवासन विद्वानों की सामूहिक स्मृति को ताज़ा किया और बताया कि 20वीं शताब्दी के अविकसितता की चुनौतियों ने हमें एमडीजी, 8 सहस्राब्दी विकास लक्ष्य (2000 -2015) दिए थे, जो निरंकुशता में वैश्विक दक्षिण (विकासशील देश) की बेहतरी तक ही सीमित थे यानी विशेष रूप से किसी की भी वैश्विक उत्तर (विकसित देश) से हस्तक्षेप या समर्थन। हालांकि, चाहे हमने ध्यान दिया हो या नहीं, इसने वैश्विक दक्षिण को वैश्विक उत्तर के करीब लाने में प्रवासन को कोई समान भूमिका नहीं सौंपी! बल्कि, यह राष्ट्रीय सीमाओं की परस्पर अनन्य संप्रभुता की धारणा थी जो वैश्विक बहुपक्षीय वार्ताओं से मानव गतिशीलता को दूर रखने के लिए प्रबल थी। यह तत्कालीन संयुक्त राष्ट्र महासचिव कोफी अन्नान की दूरदर्शिता थी जिन्होंने ग्लोबल कमिशन ऑन इंटरनेशनल माइग्रेशन(जीसीआईएम) का गठन किया, जिसने वैश्विक विकास एजेंडा पर वैश्विक मानव प्रवासन को बढ़ावा देने की पहल की। यह बहुपक्षीय कूटनीति की एक अतिनैतिकतावादी पहल थी जिस पर किसी ने कोई आपत्ति नहीं जताई होगी! इसके बाद, एमडीजी ने वैश्विक उत्तर की समान भागीदारी के साथ सतत विकास लक्ष्यों– एसडीजी (2015 - 2030) को रास्ता दिया लेकिन विडंबना यह है कि "प्रवास" फिर से बाद के घोषित 17 लक्ष्यों में से एक में शामिल होने से चूक गया। गोपनीय सूत्रों ने हमें 169 लक्ष्यों की सूक्ष्म जांच के जरिए यह पता लगाने की सांत्वना दी की क्या “प्रवासन” शब्द से संबंधित कोई शब्द था। निश्चित रूप से बहुपक्षीय कूटनीति के लिए खुशी की बात है कि हमें लक्ष्य 10 जिसका उद्देश्य “प्रवासियों के लिए प्रेषण की लेनदेन लागत को कम करना”, की तलाश करने के लिए बनाया गया था, लेनदेन के वर्तमान मूल्य 6% से एसडीजी सं.10 के लिए कम कर के 3% तक लाना, जिसे इस प्रकार सूचीबद्ध किया गया हैः “देशों में और देशों के बीच में असमानताओं को कम करना”। (ज़ोर देते हुए) यह बाद में जीसीएम 2018 के उद्देश्यों के मूल में अंतर्निहित था और वह वारसॉ सम्मेलन है जिसने इसे नया सूत्रवाक्य: “प्रवासन और असमानताएं” के साथ शिक्षा जगत के नए सभ्य एजेंडे के लिए कई गुना अधिक महत्व दिया है।
सम्मेलन के उपशीर्षक अर्थात, “उत्तर और समाधान की खोज में”, हम सामाजिक वैज्ञानिकों के लिए पहली और सबसे महत्वपूर्ण चुनौती यह होगी: प्रवासन और असमानताओं के बीच बदलते संबंधों के बारे में कौन से नए सैद्धांतिक प्रश्न पूछे जाएं? हर बार जब कोई प्रवासन– प्रभावकारी संकट हमारे सामने चुनौती प्रस्तुत करता है तो नए सैद्धांतिक प्रश्न तैयार करना आसान नहीं होता है, जैसे 2007-08 का आर्थिक संकट; या कोविड-19 महामारी। हमारी दूसरी चुनौती होगीः विभिन्न सामाजिक विज्ञान विषयों के अतिव्यापी सैद्धांतिक ढांचे को कैसे आगे बढ़ाया जाए, जैसे,
मैंने देखा है कि दो चीजों को समझना दिलचस्प होगा:
मैंने किसी कार्यशाला या सम्मेलन में एक ही मंच पर पूरक या स्थानापन्न नज़रियों को एक साथ लाने के मल्टीडिसिप्लनेरी प्रयासों में कुछ प्रगति देखी है। उदाहरण के लिएः सीईआरसी इन माइग्रेशन एंड इंटीग्रेशन एनुअल कॉन्फ्रेंस ऑन नरेटिव्स और डेटाफिकेशन ऑफ बॉर्डर्स पर हाल में हुआ एक कार्यशाला जो टोरंटो मेट्रोपॉलिटन यूनिवर्सिटी, कनाडा में हुई थी, जहां मैं स्कॉलर ऑफ एक्सीलेंस विज़िट प्रोफेसर था। हालांकि, जो 21वीं सदी की सतत चुनौती बनी हुई है, वह वास्तव में इंटरडिसिप्लनेरी फ्रेमवर्क की बौद्धिक रूप से सामंजस्यपूर्ण (या समग्र) पद्धति में एकीकृत करने का कार्य है। मैंने कहा कि अनुशासनात्मक सीमाएं अधिक विभाजनकारी हो गई हैं जिसे मैं अंतःविषयक ईर्ष्या (इंटरडिसिप्लनेरी एन्वी), भय और कभी– कभी एक–दूसरे के तरीकों के लिए अवमानना कहूंगा, के बढ़ते तनाव के साथ, और हमारी भावी पीढ़ी के विद्वानों के लिए उस प्रवृत्ति को बदलना एक चुनौती होगी। सत्रों के विषयों और वक्ताओं एवं प्रस्तुतकर्ताओं की प्रोफाइलों को उनके क्रॉस–कटिंग हितों और विशेषज्ञता के संदर्भ को देखते हुए हम प्रवासन और असमानताओं की 21वीं सदी की चुनौतियों के बारे में पूछने के लिए वास्तव में ट्रांसडिसिप्लनेरी प्रश्नों का एक समृद्ध भंडार बनाने के लिए उनसे प्रेरणा ले सकते हैं। हम अपने आश्रित और स्वतंत्र चरों को कैसे पहचानेंगे और उन्हें कैसे मापेंगे, यह उन सवालों के जवाब देने के लिए बुनियादी कदम होंगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि कई बार हमारे कारण–प्रभाव संबंध प्रतिवर्ती होते हैं, उदाहरण के लिए, निम्नलिखित दो डेटा सेट आपको बताएंगे:
चित्र 1: एक देश के भीतर असमानताएं (अमेरिका)
स्रोत: लेखक, संयुक्त राज्य अमेरिका जनगणना ब्यूरो (2015), अमेरिकी सामुदायिक सर्वेक्षण (एसीएस) से 2007 और 2013 के आंकड़ों का प्रयोग करते हुए।
चित्र 2: देशों के बीच असमानताएं
प्रतिभा पलायन प्रतिभा विकास
स्रोत: खदरिया, बी. (2022), “क्या आईएमआरएफ में आकर्षक नारे और भविष्य की प्रतिबद्धताएं जीसीएम के खराब कार्यान्वयन को दर्शाती हैं?”, कनाडा एक्सीलेंस रिसर्च चेयर (सीईआरसी), टोरंटो मेट्रोपॉलिटन यूनिवर्सिटी द्वारा 7 जून को आयोजित "ग्लोबल कॉम्पैक्ट का वर्तमान और भविष्य" विषय पर अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला में "टेकिंग स्टॉक ऑफ द ग्लोबल कॉम्पैक्ट्स" पैनल में पेपर प्रस्तुत किया गया।
इस प्रकार के आंकड़े कई उभरती चुनौतियों से पैदा होने वाली नई असमानताओं की अंतःविषयक जांच के अधीन हो सकते हैं, उदाहरण के लिए,
मैंने इस बात पर ज़ोर दिया कि इन चुनौतियों के प्रभावी उत्तर और समाधान के लिए दो शर्तों को पूरा करने की जरूरत होगी। अर्थशास्त्र की भाषा में कहें तो ये हैं:
अन्यथा, मैंने निष्कर्ष निकाला है कि यह छह अंधे लोगों की प्रसिद्ध उपमा की तरह होगा जो एक हाथी का वर्णन करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन हर कोई जानवर के एक हिस्से को कुछ अन्य ज्ञात वस्तु का होना बता रहा है। दूसरे शब्दों में, हम शिक्षा जगत को अन्यथा 21वीं सदी की असमानताओं की चुनौती के आंशिक नवाचार से संतुष्ट रहना होगा, लेकिन पूरी तस्वीर से नहीं!
2. प्रवासियों से बाज़ारों तक विप्रेषण को कम करना:
16 जून को मनाए गए संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय परिवार प्रेषण दिवस पर धन प्रेषण पर मेरा वीडियो संदेश और उसके बाद विकास अर्थशास्त्री एवं जांबिया के जीआरएफडीटी के उपाध्यक्ष सुश्री पैडी सियांगा नुडसेन को दिया गया मेरा वीडियो साक्षात्कार प्रवासी श्रमिकों द्वारा उनके परिवारों को धन भेजने के ज्ञात सकारात्मक एवं कम ज्ञात नकारात्मकताओं को उजागर करने के बारे में था। जिन तीन मुद्दों पर मैंने ध्यान देने की आवश्यकता बताई थी, वे थे – प्रेषण में लेन–देन लागत में कमी के गुणक प्रभाव, प्रेषण के स्याह पक्ष और प्रेषण का गुप्त परिणाम।
नैरोबी में आयोजित संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम में मैंने जो वीडियो संदेश भेजा था वह इस प्रकार था: “ यह विशेष रूप से आगामी कार्यक्रमों जैसे एसडीजी शिखर सम्मेलन, ग्लोबल कॉम्पैक्ट फॉर माइग्रेशन और ग्लोबल फोरम ऑन रेमिटेंस इन्वेस्टमेंट डेवलपमेंट समिट 2023 के साथ– साथ अंतरराष्ट्रीय परिवार प्रेषण दिवस के संदर्भ में प्रेषण के बारे में बात करने का अच्छा समय है। मैं जो विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानता हूँ वह यह है कि प्रेषण पर चर्चा को प्रवासियों के विभिन्न मूल देशों द्वारा प्राप्त प्रेषण के स्तर और प्रवासियों के मूल देशों में मौद्रिक संसाधनों का उपयोग कैसे किया जाना चाहिए, इस पर चर्चा के लिए पर्याप्त समय और गुंजाइश दी गई है। हमने अब तक इस बात पर चर्चा नहीं की है कि प्रेषण को वित्तीय समावेशन के अधीन क्यों लाया जाना चाहिए और प्रेषण की लागत को तीन प्रतिशत से नीचे क्यों लाया जाना चाहिए। मुझे लगता है कि इसे समझना महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से तब जब धन प्राप्त करने वाले परिवारों और धन हस्तांतरण के व्यवसाय का काम करने वाली कंपनियों के मापदंडों के बीच हितों का टकराव होता है। लागत कम करने का एक लाभ यह है कि इससे परिवारों के हाथों में खर्च करने योग्य आय में वृद्धि होगी। मुझे लगता है कि यह ध्यान में रखने योग्य एक बहुत ही महत्वपूर्ण बिंदु है क्योंकि यह लागत कम करने पर कंपनियों को कम मुनाफे की भरपाई करने जा रहा है क्योंकि तब उनके पास परिवारों की क्रय शक्ति अधिक होगी और साथ ही एक बड़ा बाज़ार होगा, इससे उनकी 'मांग' बढ़ेगी और इस प्रकार वास्तविक खपत भी बढ़ेगी।
दूसरी ओर, प्रेषण के उत्सव के साथ– साथ, हमें प्रेषण के नकारात्मक पक्ष या अंधेरे पक्ष के बारे में भी बात करने की आवश्यकता है। उत्तरार्द्ध क्योंकि प्रेषण का निर्माण प्रवासी श्रमिकों द्वारा वास्तविक खपत में कमी के माध्यम से होता है और जिससे उनके पोषण में कमी आती है, उनके स्वास्थ्य की स्थिति और उनके रहने एवं काम करने की स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है– इन सभी के कारण श्रम उत्पादकता में कमी आती है जो वास्तव में होती है, इससे संबंधित देश की कुल राष्ट्रीय आय में कमी आती है।”
अब, जांबिया के पैडी सियांगा नुडसेन के साथ अपनी बाद की बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए, मैं इस बात की थोड़ी पृष्ठभूमि बताना चाहूंगा कि हम आज अंतरराष्ट्रीय पारिवारिक प्रेषण दिवस पर किस स्थिति में हैं। डिजिटल प्रेषण के इर्द–गिर्द इस वर्ष के स्मरणोत्सव के अभियान का नारा (क) वित्तीय समावेशन और (ख) लागत में कमी लाना है। वित्तीय लेन–देन के माध्यम से 647 बिलियन अमेरिकी डॉलर की भारी–भरकम राशि के आदान–प्रदान की सूचना है, जिसके 2023 में एसडीजी समाप्त होने पर लगभग सात वर्षों में 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ने की आशा है। दरअसल, अंतरराष्ट्रीय पारिवारिक प्रेषण दिवस के स्मरणोत्सव और जीसीएम उद्देश्य 20 के बीच एक संबंध है, जो प्रेषण उद्योग के विदेशी मुद्रा और धन हस्तांतरण बाज़ारों में प्रेषण लागत में कमी के बारे में है। समुदायों में संबंधित हितधारकों में से, जिन्हें अब “संपूर्ण समाज” कहा जाता है, विश्व के 600 से अधिक प्रतिनिधियों के साथ नैरोबी में आयोजित प्रेषण निवेश एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र के ग्लोब फोरम में निजी क्षेत्र की अनेक कंपनियों ने हिस्सा लिया था।
निजी क्षेत्र के व्यावसायिक हितों को ध्यान में रखते हुए, लाखों प्रवासियों एवं उनके परिवारों की स्थितियों में सुधार लाने के उद्देश्य से प्रेषण पर एक इष्टतम संतुलित परिप्रेक्ष्य खोलने की आवश्यकता है। दूसरे शब्दों में, एक प्रवासी के नजरिए से, हमें यह पूछकर वित्तीय समावेशन और प्रेषण लागत में कमी के बारे में बेहतर समझ की आवश्यकता है कि प्रवासियों के परिवारों के लिए बेहतर आजीविका की सुविधा के लिए प्रेषण के लिए जीसीएम उद्देश्य 20 कहां महत्वपूर्ण हैं? प्रेषण लागत में कमी का घोषित उद्देश्य वर्तमान 6% से और संयुक्त राष्ट्र के 3% से नीचे लाने का लक्ष्य है। यह लागत कटौती प्रवासियों के लिए किस प्रकार मायने रखती है, यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है जिस पर हम आमतौर पर विचार नहीं करते हैं। इसकी बजाए, हमने अब तक प्रवासियों के मूल देशों में आने वाले प्रेषण की मात्रा के संदर्भ में मैक्रो डेटा पर ही ध्यान दिया है। हम विश्व बैंक और आईएमएफ लीग तालिका में देशों की रैंकिंग को देखकर ही संतुष्ट हो जाते हैं कि वे साल– दर– साल पहले, दूसरे, तीसरे, चौथे और पांचवे स्थान पर किस प्रकार बदल रहे हैं। प्रवासियों के नज़र से, यदि औपचारिक हस्तांतरण चैनलों में लेनदेन की लागत को कम कर दिया जाता है तो इससे प्रवासियों को हवाला बाज़ार के अनौपचारिक चैनलों से दूर रहने में मदद मिलेगी, जो कम लेनदेन लागत पर सेवा प्रदान कर सकते हैं और यहां तक कि सुरक्षित कार्यप्रणाली की अघोषित गारंटी है। लेनदेन लागत में कमी से औपचारिक चैनलों का प्रयोग करने वाले परिवारों की जेब में अधिक क्रय शक्ति होगी, जिसका बाजार पर कई गुना प्रभाव पड़ेगा। औपचारिक धन हस्तांतरण बाज़ार में लेनदेन लागत को कम करने में गैर– सरकारी क्षेत्र की एजेंसियों द्वारा खोया गया राजस्व अंततः समग्र बाज़ार के आकार का विस्तार करने के लिए वापस आ जाएगा और आखिर में दान नहीं बल्कि स्व–हित का एक काम बन जाएगा जो हर प्रकार से लाभकारी होगा। यह जिम्मेदार नागरिक के रूप में प्रवासियों के लिए भी चिंता का विषय बन जाएगा जब औपचारिक चैनलों में बदलाव से निश्चित रूप से अनौपचारिक बाज़ार में काले धन में कमी के माध्यम से राष्ट्र निर्माण में मदद मिलेगी, साथ ही सार्वजनिक उपयोगितांओं को प्रदान करने के लिए देश के कल्याण बजट जैसे पानी, स्वच्छता, सड़क के साथ– साथ प्रवासियों के बचे हुए रिश्तेदारों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य एवं आवाज जैसा सामाजिक सेवाओं पर प्रभाव पड़ेगा। इससे न केवल नागरिक समाज में प्रवासियों की आवाज को अधिक वैधता मिलेगी, बल्कि राष्ट्र निर्माण में सक्रिए प्रतिभागियों के रूप में उनके फील– गुड फैक्टर और मानसिक स्वास्थ्य की औसत स्थिति को भी बढ़ावा मिलेगा। जीआरएफडीटी जैसे विचार मंच और निश्चित रूप से युवा विद्वान जो इस तर्क और अनुनय के साथ अपने लेखन, बहस एवं अभियानों के माध्यम से नीति निर्माताओं को प्रभावित कर सकते हैं, इस प्रकार परिवार प्रेषण के अंतरराष्ट्रीय दिवस के उद्देश्य को पूरा कर सकते हैं।
हमें यह भी ध्यान में रखना होगा कि प्रेषण की लागत लेन–देन की गई राशि पर प्रति– इकाई दर है, जो लेनदेन की मात्रा से विपरीत रूप से संबंधित हो सकती है। इसमें कोई विरोधाभास नहीं है क्योंकि यदि मात्रा बड़ी है तो डीलरों के लिए बाज़ार द्वारा उत्पन्न कुल लाभ पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना दर कम हो सकती है। जब प्रेषण की वैश्विक मात्रा साल– दर– साल बढ़ रही है तो लागत की दर कम होने पर भी कुल लाभ भी बढ़ेगा, इस प्रकार प्रेषण प्राप्त करने वाले परिवारों की जेब में उपयोग के लिए अधिक धन बचेगा जिससे समग्र बाज़ार और उनके द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं का विस्तार होगा। इससे यह डर और संदेह दूर हो जाना चाहिए कि प्रेषण की लागत में कमी से पैसा हस्तांतरण व्यवसाय उद्यमों, चाहे वे गैर– सरकारी क्षेत्र के हों या सरकारी क्षेत्र के, के प्रबंधकों एवं मालिकों की डिस्पोजेबल इनकम के रूप में टेक– होम प्रॉफिट (लाभ) कम हो जाएगा। संक्षेप में, लागत में कमी के तर्क के पीछे का तर्क मुद्रा बाज़ार की मांग एवं आपूर्ति दोनों पक्षों के लिए लाभकारी स्थिति है, जिससे “संपूर्ण समाज” के समग्र कल्याण में वृद्धि होगी।
उदाहरण के लिए, नौरोबी फोरम में, सेंट्रल बैंकरों से लेकर ऐसे सभी महत्वपूर्ण विशेषज्ञ और व्यवसायी मौजूद थे जो भुगतान प्रणालियों के साथ काम करते हैं और प्रेषण को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने की सुविधा प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए ऐसे पुरस्कार भी थे जो अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में प्रेषण बाज़ार से निपटने वाले डिजिटल वित्त उद्योग को, विशेष रूप से सेंट्रल बैंक ऑफ गाम्बिया और सेंट्रल बैंक ऑफ केन्या को उनके अनुकरणीय कार्य के लिए, दिए गए। सेंट्रल बैंक ऑफ गाम्बिया ने अपने योगदान को मान्यता देने के लिए अपना पुरस्कार प्रवासियों और प्रवासी भारतीयों को समर्पित करने में बहुत तत्परता दिखाई। अक्सर, हम भूल जाते हैं कि यह प्रमुक निजी क्षेत्र के खिलाड़ियों के साथ धन हस्तांतरण का एक अरब डॉलर का उद्योग है, जो लोगों की प्रयोज्य आय के बड़े हिस्से के साथ सकारात्मक या नकारात्मक रूप से बातचीत करता है।
जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, जिसे मैं “अंधेरा पक्ष” या नकारात्मक पक्ष कहता हूँ– प्रेषण की गतिशीलता के बारे में कम ज्ञात तथ्य– के बारे में बात करना भी बेहद महत्वपूर्ण है। इसके लिए प्रेषण के निर्माण की प्रक्रिया में जाना होगा कि वे कहां से आते हैं। वे उस आय और मजदूरी से आते हैं जो प्रवासी गंतव्य देश में कमाते और बचाते हैं। उस बचत को अधिकतम करने के लिए, प्रवासी श्रमिक बड़े समझौते करके उपभोग, दवा, पोषण, आवास आदि की अपनी बुनियादी न्यूनतम जरूरतों में कटौती करते हैं। मेरी राय में, मुझे लगता है कि गैर– सरकारी क्षेत्र को, “संपूर्ण समाज” के हिस्से के रूप में, इन तंत्रों को एक साथ रखने की कोशिश करने की जरूरत है कि लेनदेन की लागत को इष्टतम स्तर पर लाकर अंधेरे पक्ष को उज्जवल पक्ष में कैसे बदला जा सकता है। साथ ही, प्रवासियों द्वारा भेजे गए धन के लिए गारंटी, प्रतिभूतियां और बीमा प्रदान करने के लिए तंत्र होना चाहिए ताकि अगर कुछ गलत हुआ तो देखभाल करने और सुरक्षा प्रदान करने के लिए कोई अन्य एजेंसी, शायद स्वयं सरकार या अन्य निजी क्षेत्र की बीमा एजेंसियां हों। मुझे लगता है कि यह विश्वास पैदा करेगा जो एक आवश्यक घटक है– प्रवासी भारतीयों में, बैंकिंग प्रणाली में, सरकार में, नौकरशाही में, वास्तव में “संपूर्ण सरकार” में विश्वास।
जब बात "संपूर्ण सरकार" की आती है, तो मुझे लगता है कि इसे इसके तीन प्रमुख घटकों में विभाजित करने की आवश्यकता है, अर्थात्, विधायिका – जहां नीति निर्माता के रूप में राजनेता नीतियां बनाते हैं, नौकरशाही– जो क्षेत्र में नीतियों को क्रियान्वित करती है और आखिर में, हम अब तक पर्याप्त रूप से इसमें कुछ विशेष नहीं कर सके हैं, वह है– न्यायपालिका। न्यायपालिका हमारी नैतिक रक्षक है, मुझे लगता है कि हमें इसे और अधिक सक्रिए बनाने की जरूरत है एवं गैर– सरकारी क्षेत्र को प्राकृतिक न्याय क्या है एवं क्या चीजें नैतिक नहीं है, समाज को यह समझाने में ठोस भूमिका निभानी चाहिए। मेरे विचार से यह बहुत जरूरी है ताकि हम पूरे समाज या पूरी सरकार के बारे में बात करें तो यह सिर्फ तकियाकलाम से शुरू होकर तकियाकलाम पर ही खत्म न हो जाए। दोनों को अच्छे से समझने की आवश्यकता है। उनके अलग– अलग घटक क्या हैं और हितों का टकराव कहां हो रहा है। "संपूर्ण सरकार" की तीन एजेंसियों में से किसी को भी परिणामों के लिए धैर्य खोने की जरूरत नहीं हैं और अगर किसी को लंबे समय तक प्रतीक्षा करनी पड़े तो जल्दबाज़ी करने की भी आवश्यकता नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण क्या है? मैं कहना चाहूंगा– वह है एक– दूसरे के प्रति विश्वास, समय और ईमानदारी रखना ताकि वास्तव में लेनदेन की लागत को कम करने के लाभ उठाए जा सकें, जिसमें कई प्रभाव और गुणक प्रभाव होंगे जो "संपूर्ण समाज" को प्रभावित कर सकते हैं।
मैं इस तथ्य पर भी ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा कि जहां हमें "संपूर्ण समाज" और "संपूर्ण सरकार" के बारे में बात करने के लिए कहा गया है, वहीं हमें "संपूर्ण प्रवासी" के बारे में बात करने के लिए नहीं कहा गया है, और मई 2022 में आईएमआरएफ में मौखिक और लिखित रूप से मेरे द्वारा इशारा दिए जाने के बावजूद ऐसा करने की अनुमति दी गई। मुझे प्रसन्नता है कि "परिवार" शब्द को अंतरराष्ट्रीय परिवार प्रेषण दिवस में शामिल किया गया है ताकि इसमें न केवल प्रवासी श्रमिक बल्कि प्रवासियों के पति/पत्नी और उनके बच्चे भी शामिल हों। मैं एक कदम आगे बढ़ कर अगली पीढ़ी में प्रवासियों के पोते– पोतियों/ नाती– नातिनों को एवं पिछली पीढ़ी में माता– पिता और दादा– दादी/ नाना– नानी को शामिल करना चाहूंगा। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इनमें प्रवासी का पूरा परिवार शामिल है, विशेष रूप से वैश्विक दक्षिण के घनिष्ठ समाजों एवं समुदायों में, जो प्रेषण के लाभार्थी यै गैर– लाभार्थी बन सकते हैं। मैं कहना चाहूंगा कि यदि उनमें से कोई भी इन अधिकारों और विशेषाधिकारों से वंचित है तो हम “संपूर्ण प्रवास” के बारे में बात नहीं कर रहे हैं बल्कि केवल इसके एक अंश के बारे में बात कर रहे हैं।
मैं तीन और बातों पर ध्यान दिलाना चाहूंगा। पहली, प्राप्तकर्ता देश में लोकतांत्रिक संस्कृति इस अर्थ में महत्वपूर्ण है कि एक लोकतांत्रिक संस्था का औपचारिक चैनलों के माध्यम से होने वाले प्रेषण के हस्तांतरण से संबंध होता है। भले ही प्रेषण पर कर नहीं लगाया जाना चाहिए लेकिन एक समय कुछ मांग रही है कि जब मूल देशों को धन भेजा जाता है तो गंतव्य देश इन संसाधनों से वंचित हो जाते हैं। यह विडंबनापूर्ण है क्योंकि यह कर बचत के बाद चुकाया गया कर है जिसे प्रवासी घर भेज रहे हैं। जब वे हवाला बाज़ार के अनौपचारिक चैनलों के माध्यम से जाते हैं तो ऑपरेटरों से मूल देश की सरकार को मिलने वाला व्यवसाय या कॉर्पोरेट कर, चोरी की वजह से नहीं मिल पाता। हस्तांतरित किया गया पैसा काला धन बन जाता है और तब राजस्व और कल्याणकारी गतिविधियों पर खर्च के संदर्भ में समाज या देश के लोकतांत्रिक कामकाज का सिद्धांत विरूपित हो जाता है। इसलिए, मुझे औपचारिक चैनलों को किफायती बनाया जाना महत्वपूर्ण लगता है क्योंकि यदि वे हवाला बाज़ार से अधिक महंगे होंगे तो लोग स्वभावित रूप से समानांतर बाज़ार का सहारा लेंगे, जिससे कल्याणकारी राष्ट्र की लोकतांत्रिक संस्था कमज़ोर होती जाएगी– एक महत्वपूर्ण कारण जिसे आपने बनाया।
दूसरी, अप्रलेखित प्रवासियों का सवाल, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रवासियों पर निगरानी प्रणाली के ऐसे कुछ संपर्क बिन्दुओं से संबंधित किया गया है और इसमें पैसे का लेन–देन भी होता है। इसलिए, लोगों ने अधिकारियों द्वारा पकड़े जाने से बचने के लिए जुगाड़ ढूंढ़ रखा है और फिर उन्हें सुधार या निर्वासन हेतु पालक घरों में लौटने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। यह आश्चर्यजनक है कि हवाला प्रणाली कैसे इतनी कुशलता के साथ विश्वास का लाभ उठा रही है, उदाहरण के लिए– किसी व्यक्ति द्वारा दूसरे के हाथों अनौपचारिक हस्तांतरण करना। अन्यथा, विश्वास के बिना वे एक ब्लैक होल बन कर रह जाएंगे जिसका प्रयोग प्रवासी करते रहेंगे। इसलिए, मेरा मानना है कि इसे विश्वास प्राप्त करने के स्थान के नज़रिए से देखने की जरूरत है।
मेरी तीसरी बात यह है कि क्या हमें उत्तर से दक्षिण को भेजे जाने वाले धन की तुलना दक्षिण से उत्तर को भेजे जाने वाले धन से करनी चाहिए। उदाहरण के लिए, ऐसे कई लोग हैं जो ग्लोबल नॉर्थ (विकसित देशों) में अपने बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाते हैं और वैश्विक उत्तर (विकासशील देशों) में कई उद्यमियों के लिए भारी मात्रा में धन का हस्तांतरण किया जाता है जो स्टार्टअप में निवेश करते समय धन भेजने के लिए वैश्विक दक्षिण (विकसित देशों) में अपने परिवारों के संसाधनों पर निर्भर रहते हैं। दूसरे, यह पता लगाना महत्वपूर्ण है कि क्या प्रवासियों को बिना दस्तावेज के प्रेषण के औपचारिक चैनलों तक पहुंच प्रादन की जानी चाहिए। मेरा मानना है कि यह पहुँच प्रवासियों के कानूनी दर्जे पर आधारित नहीं होनी चाहिए। बिना दस्तावेज़ वाले प्रवासियों को प्रेषण के औपचारिक चैनल तक पहुंच की अनुमति देना किसी प्रकार का दान देना नहीं होगा। सबसे पहले यह अनुमान लगाना महत्वपूर्ण है कि किस अनुपात में लोग या प्रवासी श्रमिक या परिवार गैर–दस्तावेज वाले हैं और वे कितना कमाते एवं बचत करते हैं और अपनी बचत का कितना हिस्सा वे अपने घर भेज सकते हैं। तीसरा, वैश्विक दक्षिण से वैश्विक उत्तर या मूल देशों से भेजे जाने वाले देशों को रिवर्स प्रेषण को भी प्रवासन प्रशासन के बहुपक्षीय एजेंडे में शामिल किया जाना चाहिए। कुल साल पहले, उत्तर से दक्षिण की ओर भेजी जाने वाली धनराशि का लगभग 15 प्रतिशत केवल अंतरराष्ट्रीय छात्रों की शिक्षा के खर्च के लिए उत्तरी देशों में वापस चला जाता था। विदेशी छात्रों में अंतरराष्ट्रीय प्रवासियों का एक बड़ा वर्ग है और उनकी शिक्षा की लागत का 65 प्रतिशत हिस्सा उनके माता– पिता की जेब से आता है, चाहे वह उनकी अपनी बचत से हो या ब्याज पर ऋण के माध्यम से। केवल 10 प्रतिशत धन गंतव्य देशों के स्रोतों से आता है और शेष 25 प्रतिशत तीसरे पक्ष के स्रोतों से आता है, जो दान संगठन होते हैं। इसके अलावा, इस प्रकार के रिवर्स रेमिटेंस वैश्विक उत्तरी गंतव्य देशों में प्रवासी पेशेवरों द्वारा स्थापित स्टार्टअप और अन्य उद्यमों का भी समर्थन करते हैं। रिवर्स रेमिटेंस में नवीनतम वृद्धि निवेश वीज़ा की शुरूआत और उन प्रवासियों के लिए स्थायी निवास एवं नागरिकता की पेशकश के कारण है जो बड़े पैमाने पर धन का निवेश कर रहे हैं और वैश्विक उत्तर के गंतव्य देशों में रोजगार पैदा कर रहे हैं। रिवर्स रेमिटेंस के इन सभी प्रवाहों का अनुमान लगाने की आवश्यकता है। मैंने उन्हें “प्रेषण के गुप्त परिणाम” कहा था क्योंकि किसी ने उनके बारे में बात नहीं की थी और वे प्रवासन एवं विकास के वैश्विक एजेंडे के तहत चर्चा का मुद्दा नहीं थे। इसलिए, अब यह महत्वपूर्ण है कि हम इन कड़ियों को जोड़ें और गंतव्य देशों में वापस भेजी जाने वाली विभिन्न संभावनाओं एवं अनुपातों के साथ प्रेषण निर्माण पर ध्यान दें।
3. उद्देश्यों से संकेतकों तक कार्यान्वयन की विकेंद्रीकृत शासन व्यवस्था
सितंबर 2023 में आगामी एसडीजी शिखर सम्मेलन की तैयारियों के समन्वय में, 23 जीसीएम उद्देश्यों के साथ सफलता प्राप्त करने में प्रगति के माप संकेतकों पर पांच क्षेत्रीय परामर्श सत्र 24– 28 जुलाई के बीच हुए।[i]
मई 2022 में हुई इंटरनेशनल माइग्रेशन रिव्यू फोरम (आईएमआरएफ) की प्रगति घोषणापत्र के पैराग्राफ 70 में, सदस्य देशों ने महासचिव से दो कार्य प्रस्तावित करने का अनुरोध किया: (i) सतत विकास लक्ष्यों और 2030 एजेंडा के लक्ष्यों के लिए वैश्विक संकेतक रूपरेखा को आधार बनाकर सुरक्षित, व्यवस्थित एवं नियमित प्रवासन (जीसीएम) हेतु ग्लोबल कॉम्पैक्ट के कार्यान्वयन से संबंधित प्रगति की समीक्षा करने के लिए संकेतकों का एक सीमित सेट निर्धारित करना और (ii) स्थानीय, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक स्तर पर अलग– अलग प्रवासन आंकड़ों में सुधार के लिए व्यापक रणनीति शामिल करना। इस अनुरोध को पूरा करने के लिए " जीसीएम कार्यान्वयन से संबंधित प्रगति की समीक्षा करने हेतु संकेतकों के प्रस्तावित सीमित सेट के विकास” पर संयुक्त राष्ट्र नेटवर्क माइग्रेशन वर्कस्ट्रीम की स्थापना की गई थी। वर्ष 2023 के दौरान, वर्कस्ट्रीम संकेतकों के प्रस्तावित सीमित सेट के विकास पर ध्यान दिया जाएगा, जबकि 2024 में यह अलग– अलग प्रवासन आंकड़ों में सुधार के लिए व्यापक रणनीति से संबंधित गतिविधियों को प्राथमिकता देगा। परिणामी प्रस्ताव 2024 में महासचिव की निम्नलिखित द्विवार्षिक रिपोर्ट में होगा।
वर्कस्ट्रीम का नेतृत्व संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाह (यूएन डीईएसए) और अंतरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (आईओएम) द्वारा किया जाता है और इसमें जून 2023 तक, इन दो सह– प्रमुखों के अलावा, विशेष रूप से तेरह सदस्य , जिसमें मेरा अपना संगठन ग्लोबल रिसर्च फ़ोरम ऑन डायस्पोरा एंड ट्रांसनेशनलिज्म (जीआरएफडीटी) भी है, शामिल हैं। शेष बारह सदस्य हैं: जेंडर हब+, अंतरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष (आईएफएडी), अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ), अंतरराष्ट्रीय व्यापार संघ परिसंघ (आईटीयूसी), मेयर्स माइग्रेशन काउंसिल, मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (ओएचसीएचआर), संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम(यूएनडीपी), संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए), संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर), संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय बाल कोष (यूनिसेफ), विश्व बैंक और विश्व स्वास्थ्य संगठन(डब्ल्यूएचओ)।
संकेतकों के सीमित सेट के प्रस्ताव में दिखाई देने वाले महत्वपूर्ण तत्वों की जानकारी प्राप्त करने के लिए फरवरी 2023 में वर्कस्ट्रीम ने एक प्रचार प्रश्नावली आयोजित की थी। सदस्य देशों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और हितधारकों, कुल मिलाकर निन्यानवे की संख्या में, ने, दायरे और मानदंडों पर अपने विचार साझा करते हुए प्रतिक्रिया दी। समर्थित मानदंडों में महत्वपूर्ण हैं– वर्तमान अंतरराष्ट्रीय मानकों एवं अनुशंसाओं का अनुपालन, राष्ट्रों एवं क्षेत्रों के बीच अंतरराष्ट्रीय तुलना हेतु आधार प्रदान करना और समय के साथ प्रगति की निगरानी के लिए उपयोग किया जाना, को, संकेतकों की सीमित सेट के लिए प्रस्ताव तैयार करने हेतु महत्वपूर्ण मानक बताया गया था। चित्र 3 और 4 प्रचार प्रश्नावली का उत्तर देने वाली संस्थाओं का क्षेत्रवार एवं प्रकारवार वितरण दिखाते हैं।
चित्र 3: प्रतिक्रियाओं की संख्या, क्षेत्रवार
चित्र 4: संस्था के प्रकार के अनुसार प्रतिक्रियाओं की संख्या
हालांकि प्रश्नावली के उत्तरों का सारांश अभी संकलित किया जाना है और टिप्पणियों के लिए उपलब्ध कराया जाना है, मैं मुख्य रूप से दो टिप्पणियां करना चाहता हूँ:
उपसंहार
शिक्षा जगत, निजी क्षेत्र और सरकार, के तीन मंचों पर अंतरराष्ट्रीय प्रवास के वैश्विक प्रशासन को विकेंद्रीकृत करना 2030 तक एसडीजी के व्यापक लक्ष्यों में 23 जीसीएम उद्देश्यों के इष्टतम कार्यान्वयन हेतु आसन्न उपकरण बन गया है। यहीं पर मुझे लगता है कि प्रवासियों की दुनिया गंतव्य और मूल दोनों देशों के लिए समान रूप से मानव गतिशीलता के केंद्र एवं आंतरिक क्षेत्र के रूप में, विशेष रूप से भारत के लिए, दुनिया के सबसे बड़े आंतरिक क्षेत्र के रूप में निर्णायक मोड़ पर है। भारत, उच्च शिक्षा अकादमी के बड़े आकार, सार्वजनिक एवं निजी निर्माता के बड़े आकार और सरकार की संघीय लोकतांत्रिक संरचना के साथ इसमें सुशासन के जीसीएम एजेंडे के कार्यान्वयन को, वर्तमान में जहां से केंद्रित किया गया है, वहां से भविष्य में इसे कहां केंद्रित किया जाना चाहिए, को बेहतर बनाने में विश्व में अग्रणी बनने की क्षमता है। इसकी शिक्षा, निजी क्षेत्र और सरकार की तीनों एजेंसियों को वैश्विक प्रवासन में रूढ़िवादिता से बाहर देखना होगा और नवाचार के दायरे में कदम रखना होगा। प्रतिमान परिवर्तन की संभावना यह भी कहती है कि भारत ज्ञान कार्यकर्ताओं एवं सेवा कर्मियों दोनों के लिए प्रवास का केंद्र बने रहने की बजाए एक केंद्र बने। इसके लिए लक्ष्य की राह में आने वाली चुनौतियों के प्रति लगातार विश्वास, समय और ईमानदारी की आवश्यकता होगी। अंतरराष्ट्रीय प्रवासन प्रशासन के वैश्विक एजेंडे को बदलने से पहले, क्या भारत एक समग्र प्रवासन नीति तैयार कर सकता है जिसे वह बहुपक्षीय मंचों पर विश्व के सामने प्रदर्शित कर सके? इस प्रश्न का उचित उत्तर ढूंढ़ने से भारत के लिए संभावनाओं के कई रास्ते खुल जाएंगे।
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लेखक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र, शिक्षा और अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन के पूर्व प्रोफेसर हैं; वर्तमान में वह ग्लोबल रिसर्च फोरम ऑन डायस्पोरा एंड ट्रांसनेशनलिज्म (जीआरएफडीटी) के अध्यक्ष हैं। लेखक जाम्बिया के विकास अर्थशास्त्री पैडी सियांगा नुडसेन के ऋणी हैं; ट्रांसनेशनल कॉरिडोर के रचिद एल'आउफिर ई.वी. बर्लिन से; टोरंटो के सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ इमान अहमद और हैदराबाद विश्वविद्यालय की मंजिमा अंजना को प्रेषण पर बातचीत के दौरान महत्वपूर्ण बिंदु उठाने के लिए सम्मानित किया गया। जीआरएफडीटी के सदानंद साहू और फ़िरोज़ खान ने बातचीत की वीडियो रिकॉर्डिंग और ट्रांसक्रिप्शन की सुविधा प्रदान की, जिससे इस अतिथि कॉलम को लिखने में मदद मिली। आईसीडब्ल्यूए की पूर्व सदस्य सुरभि सिंह ने पहले के मसौदे पर उपयोगी टिप्पणियाँ प्रदान की थीं। लेखक का साक्षात्कार और प्रेषण पर वीडियो संदेश
https://www.youtube.com/watch?v=K27UJf9ifXk&t=1s पर उपलब्ध है।
[i] प्रवासन पर संयुक्त राष्ट्र नेटवर्क, “वर्कस्ट्रीम 1: जीसीएम कार्यान्वयन से संबंधित प्रगति की समीक्षा हेतु संकेतकों के प्रस्तावित सीमित सेट तैयार करना” https://migrationnetwork.un.org/sites/g/files/tmzbdl416/files/resources_files/Workstream%201%20-%20Discussion%20note%20final%20.pdf