20 अगस्त 2024 को 'भारत उभरते ग्लोबल साउथ की ओर: मलेशिया– भारत संबंधों का लाभ उठाना' विषय पर 50वें सप्रू हाउस व्याख्यान में मलेशिया के प्रधान मंत्री माननीय दातो सेरी अनवर बिन इब्राहिम के साथ प्रश्नोत्तर सत्र की प्रतिलिपि।
एमः महामहिम, उन प्रेरक टिप्पणियों, एक सच्चे दूरदर्शी के शब्दों के लिए आपका बहुत– बहुत धन्यवाद। देवियों और सज्जनों, हमारे पास समय है, प्रधानमंत्री जी कुछ सवालों का उत्तर देंगे। इसके लिए हमारे पास कुछ मिनटों का समय है। कृपया सवाल पूछने में दिलचस्पी रखने वाले लोग अपने हाथ उठाएं, अपना परिचय दें और संक्षिप्त एवं मुद्दे से संबंधित सवाल पूछें। जी हाँ, कृपया आप अपना सवाल पूछें।
प्रश्न: नमस्कार, मेरा नाम श्रेया है। मैं लेडी श्री राम की छात्रा हूँ। इस वर्ष भारत ने बहुपक्षीय सैन्य युद्ध अभ्यास– मिलान की मेज़बानी की और मलेशिया ने दूसरे आसियान देशों के साथ इस अभ्यास में हिस्सा लिया था। तो क्या आपको लगता है कि इससे सहयोगात्मक रूप से रणनीतिक समुद्री सुरक्षा रणनीति का प्रभावी विकास हो सकता है जो संभावित रूप से दक्षिण चीन सागर और मलक्का जलडमरूमध्य में चुनौतियों जैसे कि आईयूयू में मछली पकड़ना आदि, का समाधान दे सकता है, और साथ ही चीन की ब्लू ड्रैगन रणनीति से निपटने और उसे नियंत्रित करने में भी सक्षम हो सकता है?
उत्तर: मैं संक्षेप में यह कहना चाहूंगा कि आसियान की स्थिति और मलेशिया की स्थिति सभी देशों के साथ जुड़ने के केंद्रीयता की है। हमें भारत के साथ समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ा है, इसलिए हम साझा रक्षा रणनीति समेत मिल कर काम करना जारी रखते हैं। हमें चीन से किसी भी तरह की समस्या अब तक नहीं हुई है और इसलिए हमारे संबंध बहुत अच्छे बने हुए हैं। हमें सभी क्षेत्रों में सहयोगात्मक प्रयासों को बढ़ाने के लिए उस शांति और विश्वास का उपयोग करना चाहिए। यही हमारी स्थिति है और इसलिए जब हम समुद्री या रक्षा रणनीति या मिल कर काम करने या सहयोग के बारे में बात करते हैं तो हम आतंकवाद को रोकने, अनुचित खतरों या शांति प्रक्रिया को विफल करने के किसी भी प्रयास को रोकने के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हैं लेकिन हमारी स्थिति आसियान केंद्रीयता की तरह बनी हुई है जो हमारे सभी पड़ोसियों के साथ जुड़ना चाहती है क्योंकि आसियान क्षेत्र में, जैसा कि आप जानते हैं, म्यांमार के घरेलू मुद्दों के भीतर थोड़ी सी भी कमीशन के साथ, यह दुनिया का सबसे शांतिपूर्ण उप– क्षेत्र है और विश्व में सबसे तेज़ी से बढ़ता हुआ उप–क्षेत्र है। यदि हम उस प्रारूप को बनाए रखें और अपने महत्वपूर्ण पड़ोसी देशों के साथ मिल कर काम करें तो हमारे लिए ये फायदे की बात होगी। धन्यवाद।
प्रश्न: धन्यवाद सर, मेरा नाम प्रतिमा लाहिड़ी है। मैं एलएएम यानि सांसद का विधायी सहायक, की फेलो हूँ। सर, इस भाषण के लिए बहुत– बहुत धन्यवाद। मेरा सवाल यह है कि जैसा कि आप कह रहे थे जलवायु परिवर्तन के संबंध में बढ़ती अनिश्चितताओं को देखते हुए, मैं जानना चाहती हूं कि आप जलवायु परिवर्तन के अनुकूल संरचनाओं और अर्थव्यवस्थाओं के निर्माण एवं इसी विचारधारा में भारत के साथ साझेदारी के बारे में क्या विचार रखते हैं। धन्यवाद।
उत्तर: वैसे, जलवायु परिवर्तन से निपटने में भारत द्वारा की गई कुछ पहल प्रभावशाली हैं। लेकिन जैसा कि आप जानते हैं, यह एक वैश्विक आपदा है जिसके लिए वैश्विक संकल्प की आवश्यकता है। बेशक हमारे पास सीओपी28 (COP28), सीओपी29 (COP29) है। अमीर देशों द्वारा शुरुआती 100 अरब अमेरिकी डॉलर देने का वादा पूरा नहीं हुआ है। आम तौर पर, कुछ सत्ताधारी लोगों का कृपालु रवैया सिर्फ थोपना, हुक्म चलाना और धमकाना होता है। और हमने सोचा कि हम इससे तंग आ चुके हैं। इसलिए मुझे लगता है कि ग्लोबल साउथ द्वारा अपनाया गया रुख मेरे लिए सर्वोपरि है, क्योंकि हम स्थिति को संबोधित कर सकते हैं और दूसरों को भी भाग लेने के लिए विवश कर सकते हैं। आप यह समस्या पैदा करते हैं और फिर हमें सभी मुद्दों को हल करना होता है। मेरा अर्थ है, यह निश्चित रूप से अस्वीकार्य है। इसलिए, मेरे विचार से, हम जो कर सकते हैं, हम अधिकतम करेंगे। मेरे कहने का अर्थ है मलेशिया भी एक छोटा देश था। इसका पचास प्रतिशत हिस्सा अभी भी जंगल है जिसमें से अधिकांश अब भी अछूते हैं। लेकिन आप दूसरी जगहों पर क्या करते हैं? इसलिए उनकी प्रतिबद्धता भी प्रासंगिक है। धमकी देना अब स्वीकार्य नहीं है। यह एक आम संकल्प है। दुनिया को बचाना एक बड़ी समस्या है। अब भले ही वे ऐसा कर रहे हों, हम टाल नहीं सकते। इसलिए मुझे लगता है कि ग्लोबल साउथ के बीच सहयोग को एक स्थिति लेनी होगी। हमें स्वयं ऐसा करने की जरूरत है। और मुझे लगता है कि दक्षिण के अधिकांश देशों ने वह स्थिति ले ली है। लेकिन हमें इस मंच का उपयोग बाकी देशों की तुलना करने, व्यवस्था का सम्मान करने और एक अच्छा उदाहरण पेश करके और जिम्मेदारी का हिस्सा लेकर उसकी स्थिति के संदर्भ में अधिक यथार्थवादी होने के लिए भी करना चाहिए। धन्यवाद।
प्रश्न: नमस्कार। मेरा नाम आशुतोष है। मैं जामिया का छात्र हूँ। मेरा प्रश्न बहुत खास है। यह भारत को निर्यात किए जाने वाले पाम ऑयल से जुड़ा है। और इस संबंध में, चूंकि मलेशिया भारत को मुख्य रूप से पाम ऑयल का निर्यात करता रहा है, जैसा कि आपने बताया है– यह लगभग दो– तिहाई है। तो क्या हम भारत और मलेशिया के बीच द्विपक्षीय व्यापार संबंधों में विविधता लाना चाहते हैं? चूंकि चार महीने के प्रतिबंध ने वास्तव में भारत और मलेशिया की अर्थव्यवस्था और व्यापार को प्रभावित किया है, इसलिए कृपया जवाब दें।
उत्तर: जैसा कि आप जानते हैं, जैसा कि मैंने राजदूत के भाषण में भी कहा था, कि शुरू में निर्यात में निर्भरता मुख्य रूप से पाम ऑयल पर थी। अब बेशक यह एक तिहाई हो गया है, लेकिन भारत बेशक पाम ऑयल का प्रमुख आयातक है और हम इसके लिए आभारी हैं। और हम विविधीकरण भी कर रहे हैं। मलेशिया इस क्षेत्र में सेमीकंडक्टर के लिए सबसे महत्वपूर्ण केंद्र है लेकिन इसे एक दौर से गुज़रना पड़ा है। और शुरूआत में हमारी निर्भरता रबर और टिन पर थी, इसी तरह, यह बदल रही है। एकमात्र समस्या, निश्चित रूप से, यूरोप के कुछ देश और संयुक्त राज्य अमेरिका, पाम ऑयल के उपयोग के खिलाफ अपने जोरदार अभियान में हैं लेकिन सोयाबीन की रक्षा के लिए अधिक है। इसलिए हमें इससे निपटना होगा। लेकिन मुझे लगता है कि हम निश्चित रूप से विविधता ला रहे हैं और यही कारण है कि पारंपरिक उत्पादों से परे मलेशिया और भारत के बीच निवेश और व्यापार की सीमा को खोलना और व्यापक बनाना रणनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है।
प्रश्न: सर, नमस्कार। मैं सीएनएन न्यूज़18 से अभिषेक झा हूँ। आपने इस क्षेत्र में कट्टरपंथ और उग्रवाद का मुकाबला करने के बारे में भी बात की। एक धर्मोपदेशक है जिससे भारतीय एजेंसियां काफी समय से पूछताछ करना चाहती हैं और प्रत्यर्पण के लिए भी अपील की जा रही है। मैं ज़ाकिर नाइक के बारे में बात कर रहा हूँ। मेरा सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री के साथ आपकी बैठक के इस मुद्दे पर भी चर्चा हुई थी और भारतीय एजेंसियों द्वारा की जा रही प्रत्यर्पण मांग पर मलेशिया का क्या रुख है?
उत्तर: सबसे पहले तो यह मुद्दा प्रधानमंत्री द्वारा नहीं उठाया गया है। उन्होंने बहुत साल पहले इस मुद्दे को उठाया था। लेकिन मुद्दा यह है कि , मैं किसी एक व्यक्ति के बारे में बात नहीं कर रहा हूँ, मैं उग्रवाद की भावना के बारे में बात कर रहा हूँ, उन मामलों और सबूतों के बारे में बात कर रहा हूँ जो किसी व्यक्ति या समूह या गुट या दलों द्वारा किए गए अत्याचारों का संकेत देते हैं। ये हमारे लिए चिंता का विषय हैं। गाज़ा में इज़रायली सेना द्वारा किए जा रहे अत्याचार, जो वास्तविक हैं तथा 40,000 लोगों की हत्या की गई, जहाँ तक मेरा सवाल है, यह अत्याचार है, यह कट्टरता है। अब, देशों द्वारा उठाए गए मुद्दे, ताकि आपसी समझ को सुरक्षित किया जा सके तथा यह सुनिश्चित किया जा सके कि हमारे बीच अच्छे द्विपक्षीय संबंध हों, जारी रहेंगे तथा हम किसी भी विचार के लिए खुले हैं तथा यदि साक्ष्य प्रस्तुत किए जाते हैं, तो हम आतंकवाद का समर्थन नहीं करेंगे। लेकिन समर्थन के लिए हमें ठोस मामलों को प्रस्तुत करना होगा। और हम सख्त हैं, हम आतंकवादी समूहों के खिलाफ इनमें से कई मुद्दों पर भारत के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। लेकिन मुझे नहीं लगता कि एक मामले को हमें भावी सहयोग और हमारे द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ाने से रोकना चाहिए।
प्रश्न: नमस्कार सर, मैं न्यू इंडिया एक्सप्रेस से येशी साली हूँ। मैं दो छोटे– छोटे सवाल पूछना चाहती हूँ। प्रधानमंत्री मोदी ने भारत और मलेशिया के बीच स्थानीय मुद्राओं में व्यापार के बारे में बात की। क्या आप इस बारे में कुछ बताएंगे? और साथ ही, हमारे पड़ोसी देश, चाहे वह बांग्लादेश हो या म्यांमार, अभी अस्थिर हैं। क्या इस मुद्दे पर भी चर्चा हुई? क्या ऐसी कोई बात थी जिस पर आपने बात की?
उत्तर: जितना संभव हो सके स्थानीय मुद्रा के प्रयोग का निर्णय ऐसा मामला है जिसे हम महत्वपूर्ण मानते हैं, और यह हमारी प्राथमिकता में है। हमारे सेंट्रल बैंक ने रुपये और रिंगगिट के इस्तेमाल पर सहमति जताई है। हमने चीन के साथ अपने व्यापार का कम– से– कम 20% या थाईलैंड के साथ 18% या इंडोनेशिया के साथ लगभग 20%, सफलतापूर्वक किया है। इसलिए हम अपने व्यापार में स्थानीय मुद्रा मूल्यवर्ग का उपयोग करने के लिए इसका विस्तार कर रहे हैं और मैंने निश्चित रूप से स्थानीय मुद्रा, रुपये और रिंगिट का प्रयोग करने की आवश्यकता पर प्रधानमंत्री मोदी के प्रस्ताव पर बहुत सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त की और मुझे लगता है कि यह समय है कि वैश्विक दक्षिण के देश जागें और अधिक अप्रचलित मौद्रिक प्रणाली पर निर्भर रहने के बजाय खुद पर और अपने साथियों पर निर्भर रहें, जिसने कई क्षेत्रों में हमारी स्थिति को कमज़ोर कर दिया है। म्यांमार के मुद्दे पर, हाँ, हमने चर्चा की है। हम वर्तमान घटनाक्रमों को लेकर थोड़े चिंतित हैं, लेकिन मुझे लगता है कि हमें थोड़ा और गंभीरता से काम करने की जरूरत है। आसियान की स्थिति पांच सूत्री सर्वसम्मति को मान्यता नहीं देना है। लेकिन इसके बावजूद, हम एक अलग स्तर पर संलग्न होने की आवश्यकता को स्वीकार करते हैं। और मैंने इसका उल्लेख इसलिए किया है क्योंकि भारत इस प्रक्रिया में भाग ले सकता है। हम सभी चिंतित हैं। अब बात बांग्लादेश की, बदलती परिस्थितियां, निश्चित रूप से चर्चा का विषय है। मैंने प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस को फोन करके कहा कि, आप जानते हैं, हम उनके अच्छे होने की कामना करते हैं, आशा है कि देश में स्थिरता बहाल होगी और वहां मानवाधिकारों एवं अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा होगी। उन्होंने इसका आश्वासन दिया है और हमें उन्हें कुछ समय देने की आवश्यकता है। और हम, पड़ोसी होने के नाते, विशेष रूप से भारत, मेरा मतलब है, हमें, बांग्लादेश में शांतिपूर्ण परिवर्तन के लिए, जो वहां की जनता तय करती है लेकिन लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से, यह सुनिश्चित करने के लिए जो कुछ भी कर सकते हैं, करना चाहिए। मैं बांग्लादेश की आवाम को शुभकामनाएं देता हूँ और मेरा मानना है कि हमारा कर्तव्य यह सुनिश्चित करना है कि वहां तत्काल शांति हो और वे जो परिवर्तन की योजना बना रहे हैं, वह यथाशीघ्र हो, विशेष रूप से लोकतांत्रिक परिवर्तन क्योंकि आर्थिक रूप से वे अपेक्षाकृत अच्छा कर रहे हैं और उन्हें इसे बनाए रखने एवं संभवतः इसे आगे बढ़ाने या आर्थिक विकास को गति देने की आवश्यकता है।
प्रश्न: प्रधानमंत्री जी, मैं हिंदुस्तान टाइम्स से रेज़ाउल लस्कर। क्या आप खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में भारत के साथ सहयोग पर कुछ बताना चाहेंगे। मलेशिया भारत से और अधिक चावल लेना चाहता है और जहाँ तक मेरा ख्याल है, आज एक खेप को मंजूरी दे दी गई है। कृपया खाद्य सुरक्षा सहयोग पर कुछ बताएं।
उत्तर: हमने इस मामले पर थोड़ा काम किया है और तकनीकी रूप से (0:49:04.9 आवाज़ नहीं थी) हमें इस पर काम करना चाहिए और हमारी शासन शैली कुछ अलग होनी चाहिए। तीन महीनों में हमें अधिकारियों द्वारा भेजे गए विशेष कार्यक्रम को दोनों प्रधानमंत्रियों के समक्ष प्रस्तुत करना होगा। लेकिन खाद्य सुरक्षा पर, निश्चित रूप से, प्राथमिकता होगी। हम अभी भी लगभग 15 अरब डॉलर का आयात कर रहे हैं जो उपजाऊ भूमि और परती पड़ी भूमि वाले देश के लिए पूर्ण रूप से अस्वीकार्य है। हम इस पर काम कर रहे हैं। हमने तकनीक, अनुभव, अनुसंधान के क्षेत्र में भारत से सहयोग की मांग की है और उन्होंने ने भी हमें पाम ऑयल समेत कुछ क्षेत्रों में सहयोग देने की मांग की है, जिसका निश्चित रूप से हम सकारात्मक उत्तर देंगे। हम अभी भी चावल का आयात कर रहे हैं और मैंने प्रधानमंत्री जी से भारत द्वारा स्थिर आपूर्ति पर आश्वासन मांगा है। लेकिन मुझे लगता है अनुसंधान और तकनीक, दोनों के हस्तांतरण के मामले में, हमारी चर्चाओं में संयुक्त अभियानों, निवेश और खाद्य सुरक्षा को प्राथमिकता दी गई है। और संयोग से, हमारे बुरे समय में हिंदुस्तान टाइम्स ने हमारा बहुत ख्याल रखा है। आपका बहुत– बहुत धन्यवाद।
प्रश्न: जी। प्रधानमंत्री महोदय, नमस्कार। मैं मानस प्रदीप गोयल। मैं पीटीआई, प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के लिए काम करता हूँ। यह एक समाचार एजेंसी है। मैं आपसे हिंद– प्रशांत की कुल स्थिति के बारे में पूछना चाहता हूँ, विशेष रूप से उस क्षेत्र में हमने जो महाशक्ति प्रतिस्पर्धा देखी है, उसके संदर्भ में। विभिन्न ब्लॉकों के गठन, जैसे क्वाड, की बहुत आलोचनाएं हुई हैं। आप क्वाड के एजेंडे, विशेष रूप से हिंद– प्रशांत, कैसे देखते हैं और इस पूरी स्थिति के संदर्भ में आपका आकलन क्या है?
उत्तर: आसियान केंद्रीयता पर हमारा रुख किसी भी ऐसी कार्रवाई या निर्णय या नीति या कदम से बचना है जिसे अनावश्यक रूप से उकसाने वाला माना जा सकता है। इसलिए मेरे लिए, यह स्थिति सर्वोपरि है, एक शांतिपूर्ण क्षेत्र, विशेष रूप से एशिया– प्रशांत, हिंद महासागर या दक्षिण चीन सागर दोनों में सुनिश्चित करने के लिए प्रासंगिक है। और मुझे लगता है कि उस स्थिति का सम्मान किया जाना चाहिए। जहाँ तक हमारा सवाल है, हमें द्विपक्षीय रूप से जुड़ना चाहिए, बहुपक्षीय रूप से भी जुड़ना चाहिए। इसलिए कोई भी कदम जिसे जानबूझकर उकसाने वाला नहीं माना जा सकता है, लेकिन अगर इसे दूसरे पक्ष द्वारा उकसाने वाला माना जाता है तो आपको इसमें शामिल होने और इससे बचने की जरूरत है क्योंकि इसमें बहुत कुछ दांव पर लगा है। और मेरे लिए, राजनीति और शासन लोगों के कल्याण के बारे में है, न कि एक या दो व्यक्तित्वों के अहंकार के बारे में। हमारे लोगों ने बहुत दुख उठाए हैं और यह हमारी प्रतिबद्धता है, अग्रणी सरकारों और नेताओं के साथ, यह सुनिश्चित करने के लिए कि हमारे पास ऐसी नीतियां हों जो हमारे लोगों के कल्याण पर ध्यान दे। और यह मेरे लिए एक बेहतरीन समय है। कोविड के बाद, इतनी समस्याओं के बाद, यह समय है कि हम फिर से ध्यान देना शुरू करें। इसलिए, जैसे मैं अपने कुछ विचारों में दृढ़ रह सकता हूँ, चाहे वह म्यांमार में उत्पीड़न हो या गाज़ा का उपनिवेशीकरण, लेकिन हमारे क्षेत्र के लिए हमें इससे बचना चाहिए। हमने उप–क्षेत्रों में सीखा है कि जहाँ आपदा है, जहाँ युद्ध हैं, वहां लोग पीड़ित हैं। धन्यवाद।
एम: समय– सीमा समाप्त हो चुकी है लेकिन चूँकि प्रधानमंत्री ने बहुत धैर्य के साथ सभी सवालों का जवाब दिया है, इसलिए, हम एक या दो सवाल और पूछ सकते हैं। कृपया अपना प्रश्न पूछें।
प्रश्न: मेरा प्रश्न यह है कि, भविष्य में, यदि (चीनी) युआन (अमेरिकी) डॉलर की जगह ले ले तो उभरते ग्लोबल साउथ में मलेशिया को इससे कोई समस्या होगी?
उत्तर: आपने भविष्य के बारे में पूछा। आमतौर पर जब लोग मुझसे भविष्य के बारे में पूछते हैं, तो मैं कहता हूँ, ठीक है, साराह, साराह। नहीं, नहीं, मज़ाक को रहने दें। नहीं, हमें क्यों बंधे रहना चाहिए? मेरा मतलब है, हम डॉलर का प्रयोग करते हैं, यह अभी भी विनिमय के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्रा है, लेकिन हमें उस पर जुनूनी या निर्भर क्यों होना चाहिए? अब हम जो कर रहे हैं वह एक व्यवहार्य विकल्प पर काम करना है जो अधिक न्यायसंगत होगा। मैंने द्विपक्षीय वार्ता के दौरान प्रधानमंत्री जी से कहा, आप जानते हैं, पिछले वर्ष निवेश बढ़ा है, विकास प्रभावशाली रहा है, मुद्रास्फीति कम हुई है– 2%, बेरोज़गारी 3% थी। और फिर भी रिंगगिट पर बड़ा हमला। आर्थिक बुनियादी बातों से कोई लेना– देना नहीं है, बस वाशिंगटन डीसी में क्या फैसला लिया जाता है। इसलिए हम बहुत कुछ नहीं कर सकते सिवाए इसके कि हम अन्य तरीकों का उपयोग करें जहां हम समाधान करने और प्रभावों को कम करने में मदद कर सकते हैं। यही कारण है कि, जबकि हम अभी भी कुछ क्षेत्रों में डॉलर में लेन–देन पर निर्भर हैं, लेकिन हम अपने स्थानीय मुद्रा मूल्यवर्ग का प्रयोग यह सुनिश्चित करने के लिए करते हैं कि हमारे सौदों में कम– से–कम कुछ प्रतिशत ऐसा हो जो संभवतः नकारात्मक प्रभाव को कम कर सके। क्योंकि अंततः, एक अर्थव्यवस्था के प्रबंधन में, हम बुनियादी बातों के बारे में बात करते हैं। बुनियादी बातों की अच्छी तरह से रक्षा की जाती है और ठोस उपाय, सब्सिडी, गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं बुनियादी ढांचे को सुनिश्चित करना, ये सभी किए जा रहे हैं। और सुशासन, ज्यादतियों और भ्रष्टाचार को मिटाना या उनसे लड़ना, ये सब किया जा रहा है। लेकिन फिर भी, हम अंततः फेड के निर्णय के अधीन हैं। यह, जाहिर है, निष्पक्ष अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संरचना के बारे में हैं। नहीं। मैं एक बार विश्व बैंक और आईएमएफ विकास समिति का अध्यक्ष भी रह चुका हूँ। मेरी स्थिति अच्छी रही है। मेरा कहने का मतलब है कि एक ऐसी प्रणाली की अत्यधिक निर्भरता जो बहुमत के हितों, न्यायपूर्ण व्यवस्था के सिद्धांत के लिए, चाहे वह व्यापार में हो या वित्तीय संरचना में, अब और स्वीकार नहीं की जा सकती। अब, चूंकि हमारे पास अभी बदलाव करने की क्षमता नहीं है, इशलिए हम इसे अपने तरीके से करते हैं, कम– से– कम प्रभाव को कम करते हैं। और मुझे लगता है कि अगर हम, उदाहरण के लिए 20 अरब डॉलर या 80 अरब डॉलर के व्यापार के साथ अपने स्थानीय मुद्रा में 20 प्रतिशत या 30 प्रतिशत का उपयोग कर सकते हैं, तो यह नकारात्मक प्रभाव को कम करेगा।
प्रश्न: मैं फिलिस्तीन दूतावास से बासेम हिल्स हूँ। प्रधानमंत्री महोदय, मैं आपको धन्यवाद कहना चाहता हूँ क्योंकि आपने फिलिस्तीन में हमारी स्थिति के बारे में बताया, खासकर गाज़ा में। हम उम्मीद करते हैं कि भविष्य में हम अपने नागरिक फिलिस्तीनी लोगों पर इस आक्रमण को रोक पाएंगे। आपका बहुत– बहुत धन्यवाद।
उत्तर: धन्यवाद। मुझे लगता है कि भारत महात्मा गांधी के समय से ही यह जानता है। वह स्थिति मजबूत और अडिग थी। और मुझे लगता है हम जो करने का प्रयास कर रहे हैं, वह कम– से– कम एक संदेश देना है, बहुत ही स्पष्ट संदेश कि, यह पाखंड अब बंद होना चाहिए। मेरे कहने का मतलब है कि आप यूक्रेन में नरसंहार के बारे में बात नहीं कर सकते क्योंकि कुछ गांवों पर बमबारी की गई और 40,000 लोग मारे गए, खैर, यह युद्ध का प्रभाव है, हम इसे माफ कर सकते हैं। यह चौंकाने वाला है और मैं इसे सरासर पाखंड कहता हूँ, लेकिन लड़ने के लिए खड़ने नहीं होना चाहिए, इसे खत्म होना चाहिए। मतलब, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि पीड़ित मुस्लिम हैं या ईसाई या हिंदू या बौद्ध या कुछ और। मेरा मतलब है, वे इंसान हैं और इस युग में हमारे लिए यह महसूस करना कि, नहीं, मुझे खेद है, कुछ नहीं किया जा सकता, अत्याचार है। मैं प्रतिकूलताओं, बेदखली की राजनीति का उल्लेख करता था। मेरा मतलब है, हमने लड़ाई लड़ी, भारत, मलेशिया, अल्जीरिया, वियतनाम, सभी ने उपनिवेशवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी। किसी भी देश को, किसी भी कारण से, किसी अन्य समाज या देश पर विजय प्राप्त करने, नियंत्रण करने या बेदखल करने का कोई अधिकार नहीं है। लेकिन फिलिस्तीन और गाजा को अपवाद क्यों दिया जाए? खैर, क्योंकि कुछ आतंकवादी, मुझे बताइए कि आपके पास किस देश में कई रूपों और आउटलेट में आतंकवादी नहीं है। लेकिन आतंकवाद पर हमारी स्थिति स्पष्ट है, यह समझौता करने योग्य नहीं है। लेकिन इसलिए यह कठिन है, यह मुश्किल है, जरूरी नहीं कि लोकप्रिय हो। लेकिन मुझे लगता है कि राजनीति और शासन में, राजदूत को पता होगा कि कभी– कभी हमें वही करना पड़ता है जो सही है। मुझे लगता है, फिर से, मुझे याद है कि गांधीजी ने कहा था कि जो नैतिक रूप से सही है वह राजनीतिक रूप से गलत नहीं हो सकता, जो राजनीतिक रूप से सही है वह नैतिक रूप से गलत नहीं हो सकता, महान महात्मा गांधी। लेकिन अब कौन परेशान है? इसलिए सब्र करें। अल्लाह हमारी मदद करेगा।
एम: प्रधानमंत्री जी, इस उत्तर के लिए आपका बहुत– बहुत धन्यवाद। हम शायद एक आखिरी सवाल ले सकते हैं, हाँ। पीछे बैठे सज्जन। आप अपना प्रश्न पूछें।
प्रश्न: प्रधानमंत्री महोदय, मैं राहुल मिश्रा, जेएनयू में एसोसिएट प्रोफेसर हूँ। मुझे यूनिवर्सिटी ऑफ मलाया में छह साल तक पढ़ाने का सौभाग्य मिला। दातुक सेरी जी, आपके पिछले भाषणों में, जिसमें इस साल एशिया– प्रशांत गोलमेज सम्मेलन भी शामिल है, आपने मलेशिया की मदनी नीति पर बात की थी और बताया था कि यह आपके नेतृत्व में आने वाले वर्षों में मलेशिया की विदेश नीति को किस तरह आगे ले कर जाएगी। मेरा सवाल यह है कि आप मदनी नीति को ग्लोबल साउथ एजेंडे और उसमें भारत की भूमिका को किस प्रकार जोड़ कर देखते हैं? धन्यवाद।
उत्तर: धन्यवाद। धन्यवाद। मुझे यह जान कर अच्छा लगा कि आप जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से हैं। यह एक बेहतरीन विश्वविद्यालय है और मैं कभी वहाँ जरूर जाऊंगा। मदानी सिद्धांत, हम स्थिरता की बात करते हैं, न्याय या समान वितरण के बिना स्थिरता नहीं आ सकती। क्योंकि मेरे लिए आर्थिक विकास करुणा के साथ होना चाहिए। हाँ, हमें आर्थिक विकास को बढ़ावा देना चाहिए। हमारे पास पारिस्थितिकी तंत्र संबंधी सभी पैमाने, नीतियां हैं जो सहायक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में सक्षम दिखाई देंगी लेकिन मेरे लिए मदनी रूपरेखा में जो आवश्यक है वह यह है कि हम मूल्यों, स्वतंत्रता एवं न्याय के मुद्दे पर अतिरिक्त ज़ोर दें, क्योंकि शासन और राजनीति में कुछ कमी है जिसमें अंतरराष्ट्रीय राजनीति, मूल्यों का मुद्दा, मानवता का मुद्दा, करुणा का मुद्दा शामिल है। आप मानवता और करुणा के बिना धर्म की बात करते हैं। आप राजनीति और शासन की बात करते हैं, वह भी मानवता और करुणा के बिना। इसलिए आप ज्यादतियों को माफ करते हैं, आप आक्रामकता को माफ कर देते हैं, आप समूहों को डराने– धमकाने या परेशान किए जाने को माफ कर देते हैं। और कोई मदनी नहीं है। मदनी सिद्धांत अनिवार्य रूप से मानवीय सिद्धांत है और मुझे लगता है कि व्यापारिक नेताओं, राजनीतिक नेताओं को शामिल करना और उन्हें याद दिलाना महत्वपूर्ण है, आप देखिए, जबकि राजनीति और शासन महत्वपूर्ण है या व्यवसाय एवं लाभ किसी देश के लिए सबसे महत्वपूर्ण है, आर्थिक बुनियादी बातें, लेकिन इसे मानवीय होना चाहिए, इसे न्याय के सिद्धांतों में विश्वास करना चाहिए, इसमें करुणा होनी चाहिए फिर आप पुरुषों एवं महिलाओं की गरिमा का सम्मान करते हैं। अन्यथा, जैसा कि हमने देखा है, विश्वास की कमी है, नैतिक विफलता, नैतिक उपदेशों के मामले में कमी है, क्योंकि आप कैसे पाते हैं कि लोग हत्या या भेदभाव या दुर्व्यवहार एवं अपमान को अनदेखा कर सकते हैं क्योंकि उनके रंग या पंथ या धर्म के मामले में मतभेद हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि आप करुणा और मानव मूल्यों के बिना शासन की बात करते हैं। खैर, यह मेरा नज़रिया है और मैं दर्शन पर काम नहीं कर रहा हूँ लेकिन यह बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि लोग बनाने के लिए बहुत व्यावहारिक, बेहद तकनीकी हो जाते हैं। आप इस बात को भूल जाते हैं कि आप मनुष्यों के साथ व्यवहार कर रहे हैं और करुणा एवं न्याय के बिना, आप डिजिटल तकनीक या वित्तीय क्षमता या यहां तक कि आर्थिक सफलता के मामले में बहुत आगे बढ़ सकते हैं और उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकते हैं। लेकिन मानवता कहां है? न्यायसंगत विवतरण कहां है? हम आईटी के नाम पर बहुत अमीर और बहुत गरीब के बीच एक बड़ा अंतर क्यों देखते हैं? और यहीं पर मुझे लगता है कि शासन का सिद्धांत है कि न्याय और करुणा समेत मूल्यों के महत्व को नज़रअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। धन्यवाद।
एम: नहीं, अब हमें क्षमा करें, हमारा समय समाप्त हो गया है। अच्छा ठीक है, एक आखिरी सवाल ले लेते हैं।
प्रश्नः इतने शानदार भाषण और अपने भाषण में गाज़ा के मुद्दे को शामिल करने के लिए आपका बहुत– बहुत धन्यवाद। मेरा सवाल जलवायु परिवर्तन से जुड़ा है। कई वैज्ञानिकों और कुछ नोबल पुरस्कार विजेताओं के अनुसार जलवायु में कोई परिवर्तन नहीं हो रहा है। वास्तव में, यह एक छलावा है जिसे डीप स्टेट ने नई विश्व व्यवस्था को अमल में लाने और मध्यम वर्ग को नष्ट करने के लिए बनाया है। यहां तक कि डोनाल्ड ट्रंप भी जलवायु परिवर्तन को एक धोखा मानते हैं और राष्ट्रपति पद के अपने पहले कार्यकाल में, उन्होंने पेरिस जलवायु शिखर सम्मेलन से बाहर निकलने का फैसला किया। आपका क्या विचार है?
उत्तर: मेरे दोस्त। आप इसके बारे में अक्सर सुनते हैं लेकिन आखिर में आपको तथ्यों और आंकड़ों के आधार पर निर्णय करना होगा। और यह निर्विवाद तथ्य है जो यह सुझाव देता है कि आप गिरावट देख सकते हैं। मेरे कहने का मतलब है कि वैज्ञानिक ज्ञानियों के बारे में तो भूल ही जाइए। सभी धर्मों और ऋषियों में, महान हिंदू ऋषियों से लेकर इस्लामी विचारों तक, पश्चिमी से लेकर पूरब तक, एक बुनियादी समीकरण है। भूमि का क्षरण, पर्यावरण का नाश, यहाँ तक कि एक छोटा परिवार भी, बाहर निकलता है और अपने घर के बाहर कूड़ा फेंक देता है, इससे बदबू आती है जो असहनीय है। और मुझे नहीं लगता कि इसे समझना बहुत मुश्किल है। बेशक, जलवायु परिवर्तन से इनकार, होलोकॉस्ट से इनकार, 9–11 से इनकार हैं। यह विश्व को बहुत रोमांचक बनाता है और कुछ क्षेत्रों से कुछ अजीबोगरीब बातें सामने आती हैं। लेकिन कृपया तथ्यों पर फिर से गौर करें। उसी तरह, जब आप जलवायु परिवर्तन, जलवायु मुद्दों या समस्याओं से इनकार करने की बात करते हैं तो बहुत आश्चर्यचकित न हों, क्योंकि जलवायु इनकार भी है। मैंने संयुक्त राज्य अमेरिका में कुछ कांग्रेसियों, सीनेटरों को कहते सुना है, गाज़ा में क्या अत्याचार, क्या आपदा, हमने कुछ भी नहीं देखा है, और वे लोग नेत्रहीन नहीं हैं। इसलिए, मैं कहता हूँ कि नैतिक सिद्धांत की चुनौती, मानवता की चुनौती, अलग– अलग रंग या अलग– अलग नस्ल के कारण निर्णय में भिन्नता है। मेरे लिए, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हिंदू लड़की है, या मुस्लिम लड़की है या ईसाई लड़की है, अगर उसका बलात्कार होता है या उसे मार दिया जाता है तो कार्रवाई तुरंत की जानी चाहिए। आप देखें, मैं नहीं पूछता, यानि, मैं मलेशिया से हूँ और यह एक बहुसांस्कृतिक, बहुजातीय देश भी है। निश्चित रूप से, बहुसंख्यक मुस्लिम हैं लेकिन हमारे यहां हिंदुओं की आबादी भी बहुत है– 7–8% और ईसाई एवं बौद्ध, और मैं यह नहीं कह सकता कि मैं मुसलमानों का प्रधानमंत्री हूँ और मैं अल्पसंख्यकों के अधिकारों को नकारता हूँ क्योंकि वहां इनकार होगा। मेरे कहने का अर्थ है, इनकार का स्थिति, सिंड्रोम का एक ही सिद्धांत है। और मेरी चिंता सिर्फ जलवायु नहीं है, अगर आप इस प्रकार के मूलभूत तथ्य को नकार सकते हैं तो यह पूरी मानवता के लिए खतरा है। इसलिए आपको अपने मामले का बचाव करने के लिए विवश, जैसा कि मैं कहता हूँ, अकाट्य तथ्यों के साथ उनका मुकाबला करना होगा, और इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। उदाहरण के लिए, अगर छात्रों को विज्ञान के नाम पर इस प्रकार की शरारतों के बारे में बताया गया है तो इसका तर्क के साथ सामना किया जाना चाहिए। और मुझे लगता है कि आखिरकार जीत हमारी होगी। अगर हम इस प्रकार की लड़ाई में नहीं जीतते हैं तो यह विश्व के लिए आपदा का नुस्खा होगा। मैंने छात्रों के साथ अपने कुछ संवादों में यह सुना है, वे कहते हैं, आप जलवायु परिवर्तन पर पश्चिम की धमकियों को क्यों सुनना पसंद करते हैं, जबकि वास्तव में अगर मैं एक ग्रामीण होऊं तो मुझे कोई समस्या नहीं दिखेगी। मैं कहता हूँ कि कृपया अपनी मोटरसाइकिल उठाएं और शहरों में जाएं एवं देखें कि वहाँ रह रहे अवैध निवासियों को देखें या कूड़ेदान के न होने या प्लास्टिक से भरे समुद्र तटों को देखें। इसलिए मेरा मानना है कि सब्र रखें लेकिन इन मामलों से निपटने के प्रति आपका संकल्प भी स्पष्ट हो। आखिर में, यह उपलब्ध तथ्यों और आंकड़ों के आधार पर तर्क का मामला है। और कभी भी, हमारे समाज के भीतर इस प्रकार के विचलन को स्वीकार न करें जो केवल इनकार की स्थिति में हैं क्योंकि ऐसा करना हमारे समाज और हमारे देशों के लिए अच्छा नहीं है।
एम: सभी सवालों को इतनी विनम्रता से उत्तर देने के लिए प्रधानमंत्री जी आपका बहुत– बहुत धन्यवाद। आपके विचार सुनना हम सभी के लिए एक बड़ा सम्मान रहा है, विशेष रूप से मानवता और मानव– केंद्रित विकास पर। इसके साथ ही हमारा यह सत्र अब समाप्त होता है।
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