"इक्कीसवीं शताब्दी में भारत-पोलैंड संबंध : भावी सहयोग के लिए संभावनाएं" पुस्तक
(डा. विजय सुखीजा, डा. दिनोज के उपाध्यक्ष और श्री पैट्रिक किगुएल द्वारा संपादित)
पर आयोजित पैनल चर्चा
में
राजदूत राजीव के. भाटिया
महानिदेशक, आईसीडब्ल्यूए
द्वारा
टिप्पणियां
स्प्रू हाउस, नई दिल्ली 24 जून, 2014
महामहिम (प्रो.) पियोतर क्लोड्कोव्स्की, भारत में पोलैंड गणराज्य के राजदूत, डा. बोगुस्ला जालेस्की, पोलैंड गणराज्य के पूर्व विदेश उप-मंत्री, श्री राहुल छाबड़ा, संयुक्त सचिव (मध्य यूरोप), विदेश मंत्रालय, भारत सरकार, डा. जैकब जाजाक्ज़कोविस्की, वारशा विश्वविद्यालय, पोलैंड, महामहिमगण, मित्रो, देवियो और सज्जनो,
(बाएं से दाएं)पियोतर ओपालिंस्की, उप मिशन प्रमुख, पोलैंड गणराज्य दूतावास; महामहिम (प्रो.)पियोतर क्लोड्कोस्की; भारत में पोलैंड गणराज्य के राजदूत; सुश्री एना त्रिक-बोम्ले, निदेशक, पोलिश इंस्टिट्यूट; डा. बोगुस्ला जोलेस्की, पोलैंड गणराज्य के पूर्व विदेश उप-मंत्री और राजदूत राजीव के. भाटिया, महानिदेशक, आईसीडब्ल्यूए.
दो मेजबानों - भारतीय विश्व मामले परिषद (आईसीडब्ल्यूए) तथा नई दिल्ली में पोलैंड गणराज्य की ओर से मैं आप सभी का हार्दिक स्वागत करते हुए प्रसन्न्ता का अनुभव कर रहा हूं। यह पैनल चर्चा भारत-पोलैंड संबंधों की बदलती हुई गतिशीलता का विश्लेषण करने तथा पोलैंड इंस्टिट्यूट ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स (पीआईएसएम) के साथ हमारे शैक्षणिक और शोध सहयोग का मूल्यांकन करने के लिए आयोजित की जा रही है, जो यूरोप में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का एक अग्रणी संस्थान है। "इक्कीसवीं शताब्दी में भारत-पोलैंड संबंध : भावी सहयोग के लिए संभावनाएं" नामक पुस्तक पीआईएसएम के साथ हमारे पूर्व शैक्षणिक संबंधों का परिणाम है। यह भारत-पोलैंड संबंधों के विभिन्न पहलुओं की समीक्षा करती है। इन संबंधों के इतिहास को ध्यान में रखते हुए, पुस्तक ने भावी सहयोग के लिए संभावनाओं को तलाशने के उद्देश्य से एक व्यावहारिक और भविष्यगामी दृष्टिकोण अपनाया है।
मुझे यह जानकर प्रसन्नता है कि आईसीडब्ल्यूए पीआईएसएम के साथ नियमित रूप से शैक्षणिक संपर्क में रहा है। आईसीडब्ल्यूए और पीआईएसएम के बीच समझौता-ज्ञापन 2006 में हस्ताक्षरित किया गया था। दोनों संस्थानों ने पहले ही तीन सम्मेलन आयोजित कर लिए हैं। हम इस वर्ष के अंत में हमारे चौथे सम्मेलन में पोलैंड के शिष्टमंडल की मेजबानी करने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
भारत और यूरोप, दोनों ही ने हाल ही में अनेक राजनीतिक परिवर्तन देखे हैं जिनके पहले इस वार्ता ने एक संवर्धित महत्व अर्जित कर लिया है। एक लंबी निर्वाचन प्रक्रिया के उपरांत, भारत ने एक नई सरकार ने संसद के निचले सदन में स्पष्ट बहुमत के साथ अब शासन संभाल लिया है। नई सरकार ने कुशलतापूर्वक यह दर्शाया है कि यूरोप केसाथ एक स्वस्थ भागीदारी इसकी प्राथमिकताओं के शीर्ष पर रहेगी। संसद को दिए गए अपने अभिभाषण में भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने कहा, 'भारत यूरोप के साथ अपने व्यापक सहयोग को भी महतव प्रदान करता है। सरकार यूरोपीय संघ के साथ तथा इसके अग्रणी नेताओं के साथ प्रमुख क्षेत्रों में प्रगति हासिल करने के सतत् प्रयास करेगी।
हाल में आयोजित यूरोपीय संसदीय चुनावों में यूरो-समर्थक और अति-दक्षिणपंथी दलों की विजय ने यह दर्शाया है कि यूरोपीय संघ में सुधार करने की मांग यूरोप में निरंतर बढ़ती जा रही है। इसके परिणामस्वरूप, यूरोपीय एकीकरण प्रक्रिया धीमी हो सकती है। यह भी प्रतीत होता है कि यूरोपीय संघ के लिए एक साझी विदेश और सुरक्षा नीति के लिए मांग को हाशिए पर रखा जाएगा। सदस्य-राज्यों द्वारा द्विपक्षीय प्रयास बाहरी विश्व के साथ रणनीतिक संबंधों में प्रधानता हासिल करेंगे। भारत के सदस्य-राज्यों के साथ संबंध द्विपक्षीय स्तर पर विस्तारित होंगे, परंतु नई दिल्ली यूरोपीय संघ के साथ भी अपने सहयोगों को गहन बनाने का प्रयास करेगी।
ऐतिहासिक दृष्टि से, भारत और पोलैंड के बीच संस्कृति, कला और साहित्य के क्षेत्रों में शताब्दियों पुराने संबंध हैं। उनके संबंध में 1954 में औपचारिक राजनयिक संबंधों की स्थापना के बाद से ही व्यापार, रक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में विस्तारित हुए हैं। दोनों देश समकालीन विश्व व्यवस्था में द्विपक्षीय और बहुपक्षीय स्तरों पर अपने संबंधों को बढ़ाने के लिए प्रयास कर रहे हैं।
पोलैंड मध्य यूरोप में एक विशालतम देश है। यह इस क्षेत्र में भारत का महत्वपूर्ण आर्थिक भागीदार है। यूरोपीय संघ बाजार के द्वार के रूप में, पोलैंड के पास यूरोपीय संघ के साथ अपने आर्थिक और वाणिज्यिक संबंधों में वृद्धि करने की गुंजाइश है। भारत और पोलैंड वैश्विक शासन की संस्थाओं के सुधार को सहायता प्रदान करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका भी निभा सकते हैं। नई दिल्ली वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए वारशा के योगदान को मान्यता प्रदान करती है।
भारत-पोलैंड संबंधों के लिए एक गुंजायमान बौद्धिक संबंध एक मूल्यवान परिसंपत्ति हैं। हम सामान्यत: भारत की संस्कृति, भाषाओं, लोकतांत्रिक मूल्यों, विज्ञान और साहित्य में पोलैंड के शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं, विद्वानों और लोगों द्वारा दर्शाई गई रुचि की सराहना करते हैं। हालांकि दोनों देशों के बीच शैक्षणिक और शोध क्रियाकलापों में निरंतर वृद्धि हो रही है, मेरा मानना है कि हमारे बौद्धिक संपर्कों को व्यापक बनाने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
मुझे पूर्ण आशा है कि आज हमारा वार्तालाप दोनों देशों के मध्य शोध और शैक्षणिक संपर्कों को आगे बढ़ाने के लिए नए विचारों को उत्पन्न करेगा जिनसे भारत-पोलैंड के संबंध और भी मजबूत होंगे।
मेरी बात ध्यान से सुनने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
*****